Wednesday, January 8, 2020

नीलिमा शर्मा की काव्य रचना सफेद कुरता सीधा दिल में उतरती है

इसके बाद कौंधती हैं दिमाग में यादों की बिजलियां 
अब तुम कही भी नही हो
कही भी नही
ना मेरी यादो में
न मेरी बातो में
अब मैं मसरूफ रहती हूँ
दाल के कंकड़ चुन'ने में
शर्ट के दाग धोने में
क्यारी में टमाटर बोने में
एक पल भी मेरा
कभी खाली नही होता
जो तुझे याद करूँ
या तुझे महसूस करू
मैंने छोड़ दिए
नावेल पढने
मैंने छोड़ दिए है
किस्से गढ़ने
अब मुझे याद रहता हैं बस
सुबह का अलार्म लगाना
मुंह अँधेरे उठ चाय बनाना
और सबके सो जाने पर
उनको चादर ओढ़ाना
आज तुमको यह कहने की
क्यों जरुरत आन पढ़ी हैं
सामने आज मेरी पुरानी
अलमारी खुली पड़ी हैं
किस्से दबे हुए हैं जिस में
कहानिया बिखरी सी
और उस पर मुह चिडाता
तेरा उतारा सफ़ेद कुरता भी
नही नही !! अब कही भी नही हो
न मेरी यादो में न मेरी बातो में
फिर भी अक्सर मुझको सपने में
यह कुरता क्यों दिखाई देता हैं...... --नीलिमा शर्मा 
नीलिमा शर्मा के ब्लॉग में उनकी यह काव्य रचना "सफेद कुरता" एक यादगारी प्रभाव छोडती है। सीधा दिल में उतरती है और फिर दिमाग में किसी बिजली की तरह कौंधने लगती है। उन अहसासों की अनुभूति कराती है जब हम बहुत कुछ भूलना चाहते हैं।  खुद को इधर उधर व्यस्त करते हैं लेकिन फिर भी खुद बेबस सा पाते हैं। जल्द ही यूं लगता है जैसे हार रहे हैं।  कभी कभी तो हारने का मन भी होता है।  लेकिन दिल की बातें न समाज सुनता है न ही दिमाग। उस उधेड़बुन के अहसास को महसूस करना, पकड़ पाना पाना या शब्दों में बांध पाना आसान कहां? इसके बावजूद  इसे बहुत ही सादगी और खूबसूरती से प्रस्तुत किया है नीलिमा शर्मा ने सफेद कुरता नाम की अपनी काव्य रचना में। 
कभी जानमाने शायर अहमद फ़राज़ साहिब ने कहा था न--
पहले पहले का इश्क अभी याद है फ़राज़!
दिल खुद यह चाहता था कि रुसवाईयां भी हों! इसके साथ ही उनका एक और शेयर याद आता है---
वो मुझ से बिछड़ कर खुश है तो उसे खुश रहने दो “फ़राज़ “
मुझ से मिल कर उस का उदास होना मुझे अच्छा नहीं लगता…
मोहब्बत में कैसे कैसे उतराव चढ़ाव आते हैं, कैसे कैसे ख्याल  हैं उनको पकड़ पाना या याद रख पाना आसान नहीं होता। ज़िंदगी के फ़र्ज़ों और ज़िम्मेदारियों का गहन अंधेरा और उस अंधेरे में कौंध जाना यादों की बिजलियों का।  जैसे बिजली का कौंध जाना बरसात के मौसम में किसी कठिन पहाड़ी रास्ते में पल भर में रास्ता दिखा जाता है बस उसी तरह यादों का अहसास ज़िंदगी में भी मार्गदर्शन करता है। उस अहसास को महसूस करना भी आसान नहीं होता जिसे पकड़ने में सफलता पाई है नीलिमा शर्मा जी ने। इस सफल रचना के लिए एक बार फिर से बधाई। --रेक्टर कथूरिया 

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