Mailed: 9th January 2020 at 3:34 PM
परवाज़ की बातें करती कहानियाँ ...//श्रद्धा श्रीवास्तव
पुस्तक संसार: 11 जनवरी 2020: (श्रद्धा श्रीवास्तव//हिंदी स्क्रीन)::
मुक्तिबोध का कथन है–सच्चा लेखक खुद का दुश्मन होता है, वह अपनी आत्मशांति को भंग करके ही लेखक हो सकता है। कविता वर्मा की कहानियों का कथ्य और किरदार इसी बेचैननियों का रूपांतरण है जो अपनी सहज सरल कथन शैली में सजगता के साथ बुना हुआ है। उनकी कहानियों का पाठ आपको मनुष्य बनाता है। आप कह सकते है पढने के बाद 'बर्फ पिघल चुकी थी जो कभी पूरी तरह जमी ही नहीं थी'। (कहानी आदत)
कहानी संग्रह-कछु अकथ कहानी में कुल पंद्रह कहानियाँ है जो विविध विषय को अपने में समेटे हुए है जैसे आज के समय का अजनबीपन और अकेलापन, अपने एकांत की तलाश, विवाहोत्तर प्रेम-सम्बन्ध, स्त्री सशक्तिकरण, विस्थापन का दर्द, पराश्रित विधवा, दरकिनार होते धंधे, गरीबी और शोषण, सांप्रदायिक उभार, मनुष्यता और ईमान को बचाए रख पाने की कोशिश आदि। कुछ कहानियों के हवाले से देखते हैं।
संग्रह की पहली कहानी "दरख्तों के साये में धूप" दुष्यंत जी की पंक्ति है जो स्त्री के जीवन के विरोधाभास को व्यक्त करती है। "लोग सोचते है कितनी खुश है वह। खुश है जब तक सबके अनुसार सोचे और करे।" एक मम्मी की भोली-सी इच्छा है वह खुद कार ड्राइव कर सहेली के घर जाए और एक निर्णय का हौसला जुटाने के द्वन्द ही कहानी है। औरत अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी खुद ड्राइव करे यह वास्तव में एक सुखद सपन हैं–सपने देखना और बात है, उन्हें पूरा करने के साधन जुटाना आसान है लेकिन हौसला जुटाना आसान नहीं हैं।
आज भी स्त्री को कुछ खास भूमिकाओं में देखने का हमारा समाज आदि है। स्नेह, समर्पण, वात्सल्य, करुणा, कोमलता की मूर्ति। कविता वर्मा इस गढ़ी हुई छवि से बाहर आना चाहती है। सच तो यह है इस गढ़ंत से बाहर आना आसान भी नहीं है। "अपारदर्शी सच" की तनुजा अपने पति से यौन-तृप्ति न पाकर संस्कारों के अंकुश और नैसर्गिक प्यास की कशमकश में उलझी और खोयी-खोयी रहती है, रास्ते तलाशती अवश्य है वह ...समाज में स्त्री व पुरुष के इस संयम पर-पर स्वयं से बात भी करती हैं और अपनी विश्वसनीय सहेली निशा से भी और यहाँ पर उषा प्रियंवदा की कहानी नायिकाओं की ही तरह अपने संस्कारों को छोड़ भी नहीं पाती। कहानी की मौलिकता व नया विमर्श अवश्य रेखांकित किया जाना चाहिए जहाँ पति मनीष ही टूटने से बचाते है यह कहकर- "मैं तुम्हारा दोषी हूँ ...तुम चाहो तो..."
इसी तरह "अभिमन्यु लड़ रहा है" "व" दाग-दाग उजाला" में विवाहेत्तर समबंधो के पीछे का मनोविज्ञान व्यक्त हुआ है। एक पुरुष मित्र से दोस्ती की इज़ाजत भी है तो किस कीमत पर? सोनाली का भास्कर द्वारा ठगा जाना और इस्तेमाल किये जाना और अपने पति मयंक का अविश्वास पाठक को सालता है ...दरअसल मन को समझाना ही जीवन को नए अर्थ दे सकता है।
एक ओर जहाँ सामराज की स्त्री पात्र वह बूढी अम्मा अपनों की उपेक्षा का खतरा, भौतिकवाद के खतरे के प्रति हमें सचेत करती है वह पात्र भी कभी ठकुराइन थी जो अब सड़क पर भिखारिन की तरह रहती है जिसे अपने प्रति एक निर्मम अन्याय की कोई शिकायत ही नहीं है ... "अम्मा तुम पुलिस के पास क्यों नहीं जाती, वह तुम्हारे बेटों से कहेंगी तुम्हें रखें। -नहीं बेटा अब वापस उते नहीं जाने जो थो सो ठाकुर साब को उनके बाद उनके लड़कों को। स्त्री का संपत्ति पर हक़ का कानून तो है पर स्त्री ही नकार रही है। वही दूसरी ओर विदा कहानी की माता पिता की इकलौती संतान दाखा है जिसने अट्ठारहवें साल में पिता का साया उठ जाने के बाद रणचंडी बनकर तमाम विरोध के बाद सबसे लड़कर पगड़ी पहनी और खेत खलिहान और माई की जिम्मेदारी भी खुद उठायी। दाखा एक सशक्त पात्र है। दाखा में अनायास ही हमें शिवमूर्ति की" कुच्ची" का अक्श दिखता है।
"बहुरि अकेला" कहानी में एक दर्शन छुपा है वस्तुतः हम सब अकेले है। जीवन एक यात्रा है। यात्रा आपको दुख से उबारती है। यात्रा में जिसका साथ मिला उसके बारे में कथा नायिका का कथा नायक से कहना है "आज शाम यह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह साथ छूट जायेगा जिसमें कहीं कोई वादे न थे, कोई आवेग न था, न कोई रूठना मनाना, न चुहल भरी चटपटी बातें लेकिन फिर भी बिछड जाने का दुःख उस पर हावी था, फिर कभी न मिल पाने की कसक थी।"
एक और कहानी गौरतलब है, गरीबी और लाचारी की। "आसान राह की मुश्किल" जहाँ मजदूर देवला और सेठ के बीच शोषक और शोषित का रिश्ता ज्यो का त्यों है ठीक वैसा ही जैसे सवा सेर गेहूँ में शंकर और पुरोहित का। देवला गरीबी से त्रस्त है और अत्यधिक काम के बोझ से भी। वह सोचता है–बीस रुपये का क़र्ज़ करे? कर्जा ही करना है तो बीस रुपयें का क्यों? इतना पैसा उठाये की सारी ज़रूरते पूरी हो जाएँ। उसे अपनी नियति मालूम है गुलामी।
"कछु अकथ कहानी" का झेमरिया बड़ोदा में एक सेठ की जमीन बटाई पर लेता है घर परिवार के कई लोग हिस्सेदार होते है। अपनी कमाई के पूरे रुपए लेकर जब वह गाँव पहुचता है तो वहाँ की कहानी यह है गाँव में जो आटा चक्की डाली है उसका बिल कैसे भरा जाएँ। साहेब के द्वारा बिल आधा हो जाने व साहेब ने उसकी बात पर विश्वास कर पांच सौ रुपये भर दिए थे ...पांच सौ रुपएँ साहब द्वारा दिए जाने पर भी वह बैचेन है–वह अपने से कहता है ' ए झेमरिया तू कई एतरा भला मानस के धोके देवोगो? "बल्कि पाठक बिजली के बिल का सच जनता है जो इन अपढ़ गरीबों से अंगूठा लगा कर भराया जाता होगा ...यही कहानी संग्रह का प्राण है और मुक्तिबोध के कथन के माध्यम से कहना होगा" आत्मपरक ईमानदारी तथा वस्तुपरक सत्यपरायणता इन दोनों का अन्तःकरण में जो संवेदनात्मक योग होता है, वह जीवन विवेक का प्राण है। जीवन विवेक के दोनों पक्षों में से किसी एक को छोड़ा नहीं जा सकता।
कछु अकथ कहानी (कहानी संग्रह )
लेखिका -कविता वर्मा
कलमकार मंच, जयपुर राजस्थान
मूल्य -केवल 150 रूपए
समीक्षा: श्रद्धा श्रीवास्तव
F/4, प्रियदर्शनी हाईट्स
गुलमोहर कॉलोनी
भोपाल (मध्य प्रदेश)
मोबाइल 94254 24802
shraddha.kvs@gmail.com
बहुत बढ़िया समीक्षा।
ReplyDeleteमधु जैन जी बहुत बहुत धन्यवाद--
Deleteकुछ अकथ कहानी लेखिका कविता वर्मा समीक्षक श्रीमती श्रद्धा श्रीवास्तव साहिबा आपकी समीक्षा सराहनीय है आप ने कहानीयों की जोAnalitical analysis किया है लाजवाब लेखिका और आप को दिली मुबारकबाद पेश करता हूं सागर सियालकोटी लुधियाना
ReplyDeleteसागर साहिब आप ने अपने व्यस्त जीवन में से वक़्त निकाल कर यह अनमोल टिप्पणी की, बहुत बहुत शुक्रिया।
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