Friday, September 21, 2012

9वां विश्व हिंदी सम्मेलन 22 सितम्बर से

9वें विश्व हिंदी सम्मेलन का विस्तृत कार्यक्रम 
पंजाब केसरी के पृष्ठ 2 पर प्रकशित समाचार की तस्वीर 
9वें विश्व हिंदी सम्मेलन को लेकर जालन्धर से प्रकाशित दैनिक पंजाब केसरी ने भी विशेष प्रबंध किये हैं। समाचारपत्र ने इस मकसद के लिए 
वहाँ अपने एक वरिष्ठ सम्वाददाता 
सुनील कुमार धवन को भी भेजा है। श्री धवन ने इस सम्बन्ध में तैयारिओं की जो खबर भेजी है उसे भी प्रमुखता से प्रकाशित किया है।
इस कार्यक्रम में हिंदी के विकास और एनी फ्लूयों पर विस्त्र्यत चर्चा होंगी। उम्मीद की जनि चाहिए की हिंदी विद्धानों के खोज पत्र इस दिशा में कई नई दिशायें स्थापित करेंगे। आप इस तरह के आयोजनों पर क्या सोचते हैं इस पर अवश्य लिखें। हिंदी को स्थानीय स्तर से अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक ले जाने में ऐसे आयोजनों की क्या भूमिका रही है और भविष्य में इनसे क्या अपेक्षाएं हैं इस पर आपके विचारो की इंतज़ार बनी रहेगी। यदि आप भी वहां इसी सम्मेलन में में शामिल हैं तो आप भी अपने अनुभव और वहां का हाल अवश्य भेजें। आपके विचार आपकी रचना इस मामले में बहुत अहम स्थान रखती है। आप तस्वीरें भी भेज सकते हैं और वीडियो भी। सम्भव हो तो अपने साथी लोगों के विचारों पर आधारित परिचर्चा भी।-आपके विचारों कि इंतज़ार बनी रहेगी।            -रेक्टर कथूरिया  


Monday, September 17, 2012

डॉ अ कीर्तिवर्धन को "हिंदी भाषा भूषण "

साहित्य मंडल, श्रीनाथ द्वारा ( राजस्थान) ने किया सम्मानित
मुज़फ्फरनगर -उत्तर प्रदेश के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी डॉ अ कीर्तिवर्धन को देश -विदेश में प्रतिष्ठित संस्था "साहित्य मंडल, श्रीनाथ द्वारा ( राजस्थान) ने उनकी हिंदी सेवा के लिए ,हिंदी दिवस पर आयोजित दो दिवसीय सम्मलेन में "हिंदी भाषा भूषण "की मानद उपाधि से अलंकृत किया | हिंदी के विकास को समर्पित इस सम्मलेन में देश की जानी मानी हिंदी प्रेमी हस्तियों ने भाग लिया | श्री भगवती प्रसाद देवपुरा ,प्रधानमंत्री,साहित्य मंडल एवं अन्य अतिथियों द्वारा तिलक लगाकर,शाल उढ़ाकर ,भगवान श्रीनाथ जी की भव्य स्वर्ण जल से हस्त निर्मित तैयार फोटो ,प्रसाद व अलंकरण पत्र प्रदान किया गया | इस अवसर पर सम्मलेन में विचार गोष्ठी,सम्मान समारोह व साहित्यकारों द्वारा बैंड बाजों के साथ नगर भ्रमण द्वारा हिंदी का प्रचार -प्रसार व जागरूकता का आयोजन भी किया गया |
डॉ अ कीर्तिवर्धन देश के बहुप्रकाशित व बहुपठनीय हस्ताक्षर हैं |आपकी अब तक सात पुस्तकें मेरी उड़ान,सच्चाई का परिचय पत्र ,मुझे इंसान बना दो, सुबह सवेरे, दलित चेतना के उभरते स्वर,जतन से ओढ़ी चदरिया तथा चिंतन बिंदु  प्रकाशित हो चुकी हैं | उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर कल्पान्त पत्रिका ने विशेषांक प्रकाशित कर उनके हिंदी योगदान को सराहा | देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा ६० से भी अधिक सम्मान एवं मानद उपाधियाँ , ४०० से अधिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित डॉ कीर्तिवर्धन की अनेक रचनाओं का उर्दू,तमिल,अंग्रेजी ,मैथिलि,अंगिका,व नेपाली में अनुवाद व प्रकाशन हो चूका है |
हाल ही में न्यूज़ पेपर्स एंड मैगजीन फैडरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा "एन.एम्.ऍफ़.आई.अवार्ड २०१२" ,ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद्,ग्वालियर (मध्य प्रदेश ) द्वारा "उत्कृष्ट हिंदी सेवी सम्मान",तथा साहित्य सरोवर,सिरुगुप्पा (बल्लारी) कर्णाटक द्वारा "साहित्य गौरव" सम्मान प्रदान किये गए |
जतन से ओढ़ी चदरिया तथा चिंतन बिंदु आपकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं |
उनसे सम्पर्क का पता है:
अभिषेक वर्धन 
४६७/९,केशव पुरी
मुज़फ्फरनगर-२५१००१
०९५५७४०३७८९

Sunday, September 16, 2012

हिंदी: असली मुद्दा है स्वाधीनता के बाद का

अंतर केवल चमड़ी के रंग में हुआ था
Sanjay Kashilal Bhardwaj    संजय काशिलाल भारद्वाज* की एक पोस्ट फेसबुक पर नजर आई। राष्ट्रभाषा: मनन-मंथन-मंतव्य-संजय भारद्वाज हिंदी आंदोलन के अध्यक्ष भी हैं उनकी बात भी तीखी है और तेवर भी तीखे हैं। दोस्त हो दुश्मन---सीधा सीने में उतरते हैं। दोस्तों के दिल में जगह बना लेते हैं दुश्मनों के दिल को बुरी तरह से हिला देते हैं। आप उनके विचारों को पूरे दिल से पढिये-----अगर आप उनसे सहमत नहीं भी हुए तो भी आपके विचारों को यहाँ प्रकाशित किया जायेगा तांकि बात और आगे बढ़ सके। इसलिए आप भी अवश्य लिखिए लेकिन तर्क और तथ्यों का साथ मत छोडिये। आपके विचारों/रचनायों की इंतज़ार में-रेक्टर कथूरिया     
देसी चमड़ी के फिरंगियों की धूर्तता देखकर गोरी चमड़ी का फिरंगी भी दंग रह गया
भाषा का प्रश्न समग्र है। भाषा अनुभूति को अभिव्यक्त करने का माध्यम भर नहीं है। भाषा सभ्यता को संस्कारित करने वाली वीणा एवं संस्कृति को शब्द देनेवाली वाणी है। किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति नष्ट करनी हो तो उसकी भाषा नष्ट कर दीजिए। इस सूत्र को भारत पर शासन करने वाले विदेशियों ने भली भॉंति समझा। आरंभिक आक्रमणकारियों ने संस्कृत जैसी समृद्ध और संस्कृतिवाणी को हाशिए पर कर अपने-अपने इलाके की भाषाएं लादने की कोशिश की। बाद में सभ्यता की खाल ओढ़कर अंग्रेज आया। उसने दूरगामी नीति के तहत भारतीय भाषाओं की धज्जियॉं उड़ाकर अपनी भाषा और अपना हित लाद दिया। लद्दू खच्चर की तरह हिंदुस्तानी उसकी भाषा को ढोता रहा। अंकुश विदेशियों के हाथ में होने के कारण वह असहाय था।
यहॉं तक तो ठीक था। शासक विदेशी था, उसकी सोच और कृति में परिलक्षित स्वार्थ व धूर्तता उसकी सभ्यता के अनुरुप थीं। असली मुद्दा है स्वाधीनता के बाद का। अंग्रेजी और अंग्रेजियत को ढोते लद्दू खच्चरों की उम्मीदें जाग उठीं। जिन्हे वे अपना मानते थे, अंकुश उनके हाथ में आ चुका था। किंतु वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि अंतर केवल चमड़ी के रंग में हुआ था। फिरंगी देसी चमड़ी में अंकुश हाथ में लिए अब भी खच्चर पर लदा रहा। अलबत्ता आरंभ में पंद्रह बरस बाद बोझ उतारने का "लॉलीपॉप' जरुर दिया गया। धीरे-धीरे "लॉलीपॉप' भी बंद हो गया। खच्चर मरियल और मरियल होता गया। अब तो देसी चमड़ी के फिरंगियों की धूर्तता देखकर गोरी चमड़ी का फिरंगी भी दंग रह गया है।
प्रश्न है कि जब राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा माना जाता है तो क्या हमारी व्यवस्था को एक डरा-सहमा लोकतंत्र अपेक्षित था जो मूक और अपाहिज हो? विगत इकसठ वर्षों का घटनाक्रम देखें तो उत्तर "हॉं' में मिलेगा। 
राष्ट्रभाषा को स्थान दिये बिना राष्ट्र के अस्तित्व और सांस्कृतिक अस्मिता को परिभाषित करने की चौपटराजा प्रवृत्ति के परिणाम भी विस्फोटक रहे हैं। इन परिणामों की तीव्रता विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव की जा सकती है। इनमें से कुछ की चर्चा यहॉं की जा रही है।
राष्ट्रभाषा शब्द के तकनीकी उलझाव और आठवीं अनुसूची से लेकर सामान्य बोलियों तक को राष्ट्रभाषा की चौखट में शामिल करने के शाब्दिक छलावे की चर्चा यहॉं अप्रासंगिक है। राष्ट्रभाषा से स्पष्ट तात्पर्य देश के सबसे बड़े भूभाग पर बोली-लिखी और समझी जाने वाली भाषा से है। भाषा जो उस भूभाग पर रहनेवाले लोगों की संस्क़ृति के तत्वों को अंतर्निहित करने की क्षमता रखती हो, जिसमें प्रादेशिक भाषाओं और बोलियों से शब्दों के आदान-प्रदान की उदारता निहित हो। हिंदी को उसका संविधान प्रदत्त पद व्यवहारिक रूप में प्रदान करने के लिए आम सहमति की बात करने वाले भूल जाते हैं कि राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत और राष्ट्रभाषा अनेक नहीं होते। हिंदी का विरोध करने वाले कल यदि राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगीत पर भी विरोध जताने लगें, अपने-अपने ध्वज फहराने लगें, गीत गाने लगें तो क्या कोई अनुसूची बनाकर उसमें कई ध्वज और अनेक गीत प्रतिष्ठित कर दिये जायेंगे? क्या तब भी यह कहा जायेगा कि अपेक्षित राष्ट्रगीत और राष्ट्रध्वज आम सहमति की प्रतीक्षा में हैं? भीरु व दिशाहीन मानसिकता दुःशासन का कारक बनती है जबकि सुशासन स्पष्ट नीति और पुरुषार्थ के कंधों पर टिका होता है।
सांस्कृतिक अवमूल्यन का बड़ा कारण विदेशी भाषा में देसी साहित्य पढ़ाने की अधकचरी सोच है। राजधानी के एक अंग्रेजी विद्यालय ने पढ़ाया- Seeta was sweetheart of Rama! ठीक इसके विपरीत श्रीरामचरित मानस में श्रीराम को सीताजी के कानन-कुण्डल मिलने पर पहचान के लिए लक्ष्मणजी को दिखाने का प्रसंग स्मरण कीजिए। लक्ष्मणजी का कहना कि मैने सदैव भाभी मॉं के चरण निहारे, अतएव कानन-कुण्डल की पहचान मुझे कैसे होगी?- यह भाव संस्कृति की आत्मा है। कुसुमाग्रज की मराठी कविता में शादीशुदा बेटी का मायके में "चार भिंतीत नाचली' का भाव तलाशने के लिए सारा यूरोपियन भाषाशास्त्र खंगाल डालिये। न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी।
शिक्षा के माध्यम को लेकर बनी शिक्षाशास्त्रियों की अधिकांश समितियों ने प्राथनिक शिक्षा मातृभाषा में देने की सिफारिश की। यह सिफारिशें आज कूड़े-दानों में पड़ी हैं। त्रिभाषा सूत्र में हिंदी, प्रादेशिक भाषा एवं संस्कृत/अन्य क्षेत्रीय भाषा का प्रावधान किया जाता तो देश को ये दुर्दिन देखने को नहीं मिलते। अब तो हिंदी को पालतू पशु की तरह दोहन मात्र का साधन बना लिया गया है। सिनेमा में हिंदी में संवाद बोलकर हिंदी की रोटी खानेवाले सार्वजनिक वक्तव्य अंग्रेजी में करते हैं। जनता से हिंदी में मतों की याचना करनेवाले निर्वाचित होने के बाद अधिकार भाव से अंग्रेजी में शपथ उठाते हैं। 
छोटी-छोटी बात पर और प्रायः बेबात संविधान को इत्थमभूत धर्मग्रंथ-सा मानकर अशोभनीय व्यवहार करने वाले छुटभैयों से लेकर कथित राष्ट्रीय नेताओं तक ने कभी राष्ट्रभाषा को मुद्दा नहीं बनाया। जब कभी किसीने इस पर आवाज़ उठाई तो बरगलाया गया कि भाषा संवेदनशील मुद्दा है। तो क्या देश को संवेदनहीन समाज अपेक्षित है? कतिपय बुद्धिजीवी भाषा को कोरी भावुकता मानते हैं। शायद वे भूल जाते हैं कि युद्ध भी कोरी भावुकता पर ही लड़ा जाता है। युद्धक्षेत्र में "हर-हर महादेव' और "पीरबाबा सलामत रहें' जैसे भावुक (!!!) नारे ही प्रेरक शक्ति का काम करते हैं। यदि भावुकता से राष्ट्र एक सूत्र में बंधता हो, व्यवस्था शासन की दासता से मुक्त होती हो, शासकों की संकीर्णता पर प्रतिबंध लगता हो, अनुशासन कठोर होता हो तो भावुकता देश के लिए अनिवार्य होनी चाहिए।
वर्तमान में सीनाजोरी अपने चरम पर है। काली चमड़ी के अंगे्रज पैदा करने के लिए भारत में अंग्रेजी शिक्षा लानेवाले मैकाले के प्रति नतमस्तक होता आलेख पिछले दिनों एक हिंदी अखबार में पढ़ने को मिला। यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब जनरल डायर और जनरल नील-छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज चौहान के स्थान पर देश में शौर्य के प्रतीक के रूप में पूजे जाने लगेंगे।
सामान्यतः श्राद्धपक्ष में आयोजित होनेवाले हिंदी पखवाड़े के किसी एक दिन हिंदी के नाम का तर्पण कर देने या सरकारी सहभोज में सम्म्मिलित हो जाने भर से हिंदी के प्रति भारतीय नागरिक के कर्तव्य की इतिश्री नहीं हो सकती। आवश्यक है कि नागरिक अपने भाषाई अधिकार के प्रति जागरुक हों। वह सूचना के अधिकार के तहत राष्ट्रभाषा को राष्ट्र भर में मुद्दा बनाएं। 
लगभग तीन दशक पूर्व दक्षिण अफ्रीका का एक छोटा सा देश आज़ाद हुआ। मंत्रिमंडल की पहली बैठक में निर्णय लिया गया कि देश आज से "रोडेशिया' की बजाय "जिम्बॉब्वे' कहलायेगा। राजधानी "सेंटलुई' तुरंत प्रभाव से "हरारे' होगी। नई सदी प्रतीक्षा में है कि कब "इंडिया'की केंचुली उतारकर "भारत' बाहर आयेगा। आवश्यकता है महानायकों के जन्म की बाट जोहने की अपेक्षा भीतर के महानायक को जगाने की। अन्यथा भारतेंदु हरिशचंद्र की पंक्तियॉं - "आवहु मिलकर रोवहुं सब भारत भाई, हा! हा! भारत दुर्दसा न देखन जाई!' क्या सदैव हमारा कटु यथार्थ बनी रहेंगी?

(लेखक के विस्तृत व्याख्यान के संपादित अंश।)
Like ·  · Follow Post · Yesterday at 1:27pm


राष्ट्रभाषा: मनन-मंथन-मंतव्य
-संजय भारद्वाज
(अध्यक्ष-हिंदी आंदोलन)

Friday, September 14, 2012

मुशायरे की एक झलक यूट्यूब से साभार

भोपाल में हुए हिंदी मुशायरे की एक झलक यूट्यूब से साभार

यह सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा


कालजयी शायरी करने वाले जन जन के शायर जनाब दुशियंत जी की एक प्रसिद्ध गजल सुश्री कुसुम शर्मा की आवाज़ में यहाँ यूट्यूब के साभार दी जा रही है....!...
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा

यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं सभी नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परेशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा

कई फ़ाके बिताकर मर गया जो उस के बारे में
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा

यहाँ पर सिर्फ़ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा

चलो अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें
कम से कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा
                                                     दुष्यंत कुमार

प्रगतिशील साहित्य का उदय

    
  • प्रगतिशील धारा ने उर्दू, पंजाबी और हिंदी साहित्य पर भी अमिट प्रभाव छोड़ा। मजदूरों और किसानों के साथ कलमकार भी आने सामने आ गए।आम लोगों के साथ उनके दुःख दर्द को ह्म्सूस करना, बांटना और फिर अपनी कलम या आवाज़ के ज़रिये उनके दुःख को जन जन तक लेजाना आसान नहीं था पर यह दुर्गम काम भी हुआ और अभी भी जारी है।
    इस वीडियो में कुछ इसी ही चर्चा है जिसे  यहाँ यूट्यूब  से साभार दिया जा रहा है। यदि आपके पास भी कुछ  ऐसी ही जानकारी हो तो उसे तस्वीरों या वीडियो के साथ हिंदी स्क्रीन के लिए भी प्रेषित कीजीये। आपकी रचना की इंतज़ार बनी रहेगी।--रेक्टर कथूरिया     

हिंदी के छायावादी कवि

हिंदी पुस्तकों का निशुल्क डाउनलोड

हिंदी दिवस के अवसर पर हम यहाँ यूट्यूब केसे साभार दे रहे हैं एक वीडीयो जसमे बताया गया है की आप हिंदी पुस्तकों का निशुल्क डाउनलोड कैसे कर सकते हैं। यदि आपके पास भी इसी कोई जानकारी हो जो हिंदी के विकास में योगदान दे सकती हो तरतो उस यहाँ भी सब के साथ बाँटिये। हिंदी स्क्रीन में इसी समग्री की इंतज़ार बनी रहती है।  आप भी कुछ भेजिए। -रेक्टर कथूरिया। 

हिंदी की बोलियां


हिंदी का अपना अलग रस है----अपना बिल्क्षण स्थान----फिलहाल प्रस्तुत हैं हिंदी बोलियाँ जिन्हें य्हना यूं ट्यूब के साभार दिया रहा है। जल्द ही हिंदी के एनी रंग भी दिए जायेंगे।--रेक्टर कथूरिया 

हिंदी दिवस-2011

श्री जी सी त्रिपाठी की एक वर्ष पूर्व बनी हिंदी दिवस मूवी


हिंदी दिवस के अवसर पर आपको यह वीडियो कैसी लगी अवश्य लिखें।इससे यहाँ यूं ट्यूब से साभार दिया जा   रहा अगर आपने भी कोई ऐसा ही आयोजन रिकार्ड किया है तो में अवश्य भेजें ....रेक्टर कथूरिया 

हिं‍दी दि‍वस कल मनाया जाएगा

वि‍ज्ञान भवन नई दि‍ल्‍ली में आयोजि‍त होगा हिं‍दी दि‍वस समारोह
देश भर में कल हिं‍दी दि‍वस मनाया जाएगा। 14 सि‍तम्‍बर 1949 को देश के संवि‍धान नि‍र्माताओं ने हिं‍दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्‍वीकार करने का फैसला कि‍या था। इस ऐति‍हासि‍क क्षण के उपलक्ष्‍य में प्रति‍वर्ष 14 सि‍तम्‍बर, को हिं‍दी दि‍वस मनाया जाता है। 

हिं‍दी दि‍वस के दौरान राजभाषा नीति का कार्यान्‍वयन‍, व्‍यावसायि‍क क्षेत्र के वि‍षयों में मौलि‍क हिं‍दी पुस्‍तक लेखन, वि‍ज्ञान और प्रौद्योगि‍की सहि‍त समकालीन रुचि ‍से जुड़े वैज्ञानि‍क और तकनीकी वि‍षयों पर हिं‍दी पुस्‍तक लेखन जैसे वि‍भि‍न्‍न क्षेत्रों में वि‍शि‍ष्‍ट पुरस्‍कार प्रदान कि‍ये जाते हैं। राजभाषा नीति‍ के कार्यान्‍वयन की श्रेणी के अंतर्गत भारत सरकार के मंत्रालयों, वि‍भागों, सार्वजनि‍क क्षेत्र के उपक्रमों, राष्‍ट्रीयकृत बैंकों और वि‍त्‍तीय संस्‍थानों, स्‍वायत्‍त नि‍कायों, नि‍गमों, बोर्डों को पुरस्‍कार प्रदान कि‍ए जाते हैं। 

वि‍भि‍न्‍न मंत्रालयों/वि‍भागों को दो- उप-श्रेणि‍यों के अंतर्गत पुरस्‍कार प्रदान कि‍ए जाते हैं। प्रथम श्रेणी में 300 और इससे अधि‍क कर्मचारि‍यों की संख्‍या वाले, जबकि ‍दूसरे श्रेणी में 300 से कम कर्मचारि‍यों की संख्‍या वाले वि‍भाग आते हैं। सार्वजनि‍क उपक्रमों तथा स्‍वायत्‍त नि‍कायों/नि‍गमों/बोर्डों को देश के तीन भाषायी क्षेत्रों यथा- "क", "ख" और "ग" के आधार पर पुरस्‍कारों से सम्‍मानि‍त कि‍या जाता है। इसके अति‍रि‍क्‍त हिं‍दी में मौलि‍क पुस्‍तक-लेखन के लि‍ए इंदि‍रा गांधी मौलि‍क पुस्‍तक लेखन पुरस्‍कार और राजीव गांधी राष्‍ट्रीय ज्ञान-वि‍ज्ञान मौलि‍क पुस्‍तक लेखन पुरस्‍कार भी प्रदान कि‍ए जाते हैं।

गृह-मंत्रालय के राजभाषा वि‍भाग द्वारा कल वि‍ज्ञान भवन, नई दि‍ल्‍ली में आयोजि‍त हिं‍दी दि‍वस समारोह के मुख्‍य अति‍थि‍ राष्‍ट्रपति‍ श्री प्रणब मुखर्जी होंगे। इस अवसर पर राष्‍ट्रपति‍ उल्‍लि‍खि‍त श्रेणि‍यों के अंतर्गत 50 पुरस्‍कार प्रदान करेंगे। केन्‍द्रीय गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे भी इस अवसर पर उपस्‍थि‍त रहेंगे। (पत्र सूचना कार्यालय)          
 (13-सितम्बर-2012 14:36 IST)

***

कल हिंदी दिवस

राष्‍ट्रपति करेंगे पुरस्‍कार समारोह को संबोधित
कल 14 सितंबर 2012 को हिंदी दिवस के अवसर पर यहां विज्ञान भवन में आयोजित एक समारोह में राष्‍ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी मुख्‍य अतिथि होंगे। समारोह की अध्‍यक्षता गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिन्‍दे करेंगे और गृह राज्‍य मंत्री श्री जीतेंद्र सिंह भी समारोह को सुशोभित करेंगे। 
समारोह में राज भाषा हिंदी से संबंधित विभिन्‍न क्षेत्रों में उत्‍कृष्‍ट प्रर्दशन करने वाले महानुभावों को राष्‍ट्रपति पुरस्‍कार प्रदान करेंगे। 
14 सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है, और उल्‍लेख‍नीय है कि 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने एकमत से हिंदी को राज भाषा घोषित किया था। इस ऐतिहासिक अवसर की स्‍मृति में हर वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। 
(पत्र सूचना कार्यालय)      
                               13-सितम्बर-2012 19:19 IST
***