Tuesday, December 31, 2019

शायद इस बार भी बस कैलेंडर ही बदलेगा//रेक्टर कथूरिया

जाते हुए साल 2019 के नाम मन में उठी कुछ पंक्तियां 
क्या करना है सन 2020?
क्या देगा?
अच्छे दिन?
क्या बदलेगा?
महंगाई रोकेगा या रोज़गार देगा?
शायद कुछ भी नहीं बदलेगा!
यह ऐसा कुछ भी नहीं देगा!
फिर भी
तारीख, सन और कैलेंडर तो बदलेगा ही....!
दिल की खुशियां चाहे वही रहें।
दिल के गम भी चाहे वही रहें।
उदासी और
चिंताएं भी चाहे वही रहें।
उम्मीदों का सिलसिला भी बेशक वही होगा !
फिर भी कुछ तो बदलेगा...!
शायद
कैलेंडर और डायरियां बनाने वालों के दिन फिरें!
शायद सच में आ जाएं उनके अच्छे दिन!
शायद उनको चार पैसों की आमदन हो जाये!
कुछ तो बदलेगा!
ज़रूर--बदलेगा!
दिखावे के लिए ही सही,
कुछ लोगों के लिए ही।
कुछ तो बदलेगा!
अब तो हमें भी
अपने पुराने गम अच्छे लगते हैं।
नया गम न जाने कैसा हो?
यही ठीक हैं...!
अब वाले गम...!
अब वाले आंसू...!
कम से कम
अपने और जाने पहचाने तो हैं।
देखो मेरे जाने पहचाने मित्रो !
बेशक सारी दुनिया बदल जाये !
तुम न बदलना!
तुम बेवफाई न करना!
तुम अपनेपन का यह रिश्ता न तोडना!
क्या करना है हमें नया साल?
यही ठीक था--2019
पता नहीं 2020
क्या गुल खिलायेगा!
आसार तो बहुत भयानक हैं।
अब तो डर लगता है!
अखबार में छपी खबरों से।
सड़कों पर नारे लगाते हजूमों से।
नए नए कानूनों से।
संविधान में हो रही तब्दीलियों से।
बहुमत से पारित प्रस्तावों से।
हमें कुछ भी नहीं चाहिए!
न रोज़गार, न ही सस्ती चीज़ें
न ही अच्छे दिन।
न ही15-15 लाख रूपये।
न ही दो करोड़ नौकरियां।
हमें कुछ भी नहीं चाहिए!
बस हमें शांति से रहने दो
यूंही एक दुसरे के साथ!
हमें मिलजुल कर गाने दो!
सारे जहां से अच्छा वाला गीत
मिलजुल कर सुनाने दो!
हमें बीते दिन ही लौटाने दो!
                   ---रेक्टर कथूरिया  

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