Saturday, May 23, 2015

मुमताज शाहजहाँ की चौथी बीवी थी

14 वे बच्चे को जन्म देते हुए हुयी थी मुमताज़ की मौत
शासन तंत्र अक्सर अपनी गलतियों को छुपाने और शर्मनाक कदमों को अच्छा बताने के प्रयास करता है।  यह सिलसिला अवश्य ही पहले भी रहा होगा। जिस प्रेम कथा को लेकर फिल्में बानी और एक खलनायक को नायक बना दिया गया उसकी वास्तविकता क्या है? इसकी चर्चा पहले भी हो चुकी है।  अब नई पोस्ट सामने आई है प्रेस क्लब लुधियाना (रजि.) के वाटसआप ग्रुप में। पोस्ट किया है कुलदीप जी ने। आप भी पढ़िए अपने मित्रों को भी पढ़ाइए। देखिये क्या था वो जिसे आप नायक समझते रहे। --रेक्टर कथूरिया 
ताजमहल को प्यार की निशानी कहने वालों...
मुमताज का मकबरा कहने
वालों... 
ध्यान से पढो...
ताजमहल किसी शाहजहाँ ने
नही बनवाया था।
सारी दुनिया अभी तक
इस धोखे में थी कि ताजमहल शाहजहाँ ने मुमताज के लिए बनवाया था।
पर professor ओक ने अपनी खोज में पाया कि ये ईमारत कोई
मकबरा नहीं है बल्कि एक प्राचीन शिव मंदिर है। जिसका नाम
तेजो महालय था।
जिसको शाहजहाँ ने महाराजा जय सिंह जी से अवैध रूप से छीन लिया था। और उसके बाद इससे तमाम ऐसी चीजे मिटा दी जिससे कि भविष्य में किसी को पता ना चले कि ये एक शिव मंदिर था। और फिर शुरू की झूठी अफवाह कि शाहजहाँ ने कारीगरों के हाथ कटवा दिए।

लेकिन सच छुपता नही छुपाने से...।

शाहजहाँ सभी सबूत नष्ट नही कर
पाया और अब धीरे धीरे इस झूठ से पर्दा उठ रहा है।

डॉ सुब्रमण्यम स्वामी जी ने ताजमहल को लेकर कोर्ट में केस
भी फ़ाइल किया है। और अभी तक केस हम हिन्दुओ के पक्ष में है।

क्योंकि सबूत बोलते है कि ये ताजमहल तेजो महालय था। और जल्द ही पूरी दुनिया के सामने होगा यह सच कि दुनिया की सबसे खुबसुरत ईमारत मकबरा नहीं... एक शिव मंदिर है। 

वहा पर गिरने वाली पानी की बुन्द मुमताज का आसु नहीं शिवलिंग पर गिरनेवाला कुदरती जलाभीषेक है। 

भारत के इतिहास को बदला  गया है।

(जिसे भी ये जानकारी अच्छी लगे शेयर करे)
जय महादेव 
एक बार इसे भी पढ़ेँ... 

१) मुमताज शाहजहाँ की चौथी बीवी थी...
२) शाहजहाँ ने मुमताज से शादी करने के लिए उसके पति का खून किया था...
३) १४ वे बच्चे को जन्म देते हुए मुमताज़ की मौत हुई थी...
४) मुमताज के मरने के बाद शाहजहाँ ने उसकी बहन से शादी कर ली...

इसमें प्रेम कहा है...?

plzz share to all

अगर आपके पास इससे अलग विचार हों तो भी अवश्य भेजें। हमारा मकसद केवल सच को सामने लाना है। 

Tuesday, May 5, 2015

आचरण और प्रवचन एक जैसा ही होना चाहिए

वाटसऐप पर पंजाब स्क्रीन ग्रुप में राजीव मल्होत्रा की एक मर्मस्पर्शी पोस्ट
लुधियाना: 5 मई 2015: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन):  
राजीव मल्होत्रा जानेमाने समाज सेवी हैं। कभी बहुत पहले उनसे मुलाकात एक धार्मिक आयोजन में हुई थी। शायद 18-20 वर्ष पूर्व।  उन दिनों विशाल बर्फ पर तांडव डांस करने वाले कलाकारों को उन्होंने जनता के सामने लाने का प्रशंसनीय कार्य किया था। फिर उनसे नज़दीकियां बड़ी जब मेरा बेटा थैलासीमिया के कारण अस्पताल में था। उन दिनों आज की  नहीं हुआ करते थे। हर परिवार को थैलेसीमिया की लड़ाई अकेले ही लड़नी पद रही थी। राजीव जी अपने साथियों सहित मेरे बेटे के लिए खून दान करने पहुंचे थे। रात्रि का वक़्त। अचानक डाक्टरों ने बताया कि बीटा नहीं रहा। गहरे सदमे की उस खबर के बाद मुझे और परिवार के साथ साथ राजीव जी ने साडी स्थिति को संभाला। अस्पताल के बिल से लेकर शमशान घाट तक उन्होंने मुझे एक पल के लिए भीं अकेला नहीं होने दिया
आजकल वह सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय हैं। कभी कभी उनके बेबाक विचारों से सहमति नहीं भी होती लेकिन इसके बावजूद हमारा प्रेम कभी खटास में नहीं बदला। उनकी एक पोस्ट आज ही सामने आई जिसे उन्होंने वाटसऐप पर बने पंजाब स्क्रीन ग्रुप में पोस्ट किया है। 
आप भी इस पोस्ट के मर्म से वाकिफ हो सकें इसलिए उसे यहाँ भी पोस्ट किया जा रहा है।  
 एक नगर मे रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर-दूर तक थी। पास ही के गाँव मे स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से, उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था।
एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस मे चढ़े, उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए।

कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हे रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया की कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए है। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा।
कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है, आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है, बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे।

मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, "भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे।"
  
कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला, "क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है?"
पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला, "मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस मे देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूँ तो आप क्या करते हो! अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए" बोलते हुए, कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।

पंडित जी बस से उतरकर पसीना पसीना थे। उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान का आभार व्यक्त किया, "प्रभु तेरा लाख लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया, मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी। पर तूने सही समय पर मुझे सम्भलने का अवसर दे दिया।"

कभी कभी हम भी तुच्छ से प्रलोभन में, अपने जीवन भर की चरित्र पूंजी दांव पर लगा देते है।[5/5/2015, 09:34] Rajiv Malhotra: