Thursday, May 30, 2013

Monday, May 27, 2013

हास्‍य व्‍यंग्‍य शैली के जादूगर अल्‍हड़ बीकानेरी

16-मई-2013 20:16 IST
विशेष लेख                                                        -अशोक शर्मा     
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शब्‍द को पूरी सामर्थ्य के साथ कविता में स्‍थापित करने में माहिर अल्‍हड़ बीकानेरी की इसी प्रतिभा ने उन्‍हें एक तरफ तो गजलों के उस्‍ताद के रूप में, वहीं दूसरी ओर हास्‍यरस में देश के सर्वाधिक सिद्ध रचनाकार के रूप में भी मान्‍यता दिलवाई। उनकी कविताओं में फूलों की महक और कांटों की चुभन, दोनों ही हैं। छंद, गीत, गजल और पैरोडियों के रचयिता अल्‍हड़ जी ऐसे अनूठे कवि थे, जिन्‍होंने हास्‍य को गेय बनाने की परंपरा की भी शुरुआत की। समाज को उन्‍होंने कविताओं की प्रयोगशाला बनाया। उनके कवि मन की कोमल कल्‍पनाएं जब यथार्थ की पथरीली जमीन से टकरातीं, तो तीक्ष्ण व्‍यंग्‍य की व्‍युत्‍पत्ति सहज भाव से हो जाती।

अल्हड़ जी एक ऐसे छंद शिल्पी थे, जिन्हें छंद शास्त्र का व्यापक ज्ञान था। अपनी पुस्‍तक 'घाट-घाट घूमे' में अल्‍हड़ जी लिखते हैं, ''नई कविता के इस युग में भी छंद का मोह मैं नहीं छोड़ पाया हूं, छंद के बिना कविता की गति, मेरे विचार से ऐसी ही है, जैसे घुंघरुओं के बिना किसी नृत्‍यांगना का नृत्‍य..... '' वे अपनी हर कविता को छंद में लिखते थे और कवि सम्‍मेलनों के मंचों पर उसे गाकर प्रस्‍तुत करते थे। वह एक ऐसे छंद शिल्‍पी थे, जिन्हें छंद शास्‍त्र का पूरा ज्ञान था। यही नहीं गज़ल लिखने वाले कवियों और शायरों के लिए उन्‍होंने गज़ल का पिंगल शास्‍त्र भी लिखा, जो उनकी पुस्‍तक 'ठाठ गज़ल के' में प्रकाशित हुआ।   
     17 मई, 1937 को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के बीकानेर गांव में जन्‍मे प्रख्‍यात हास्‍य कवि अल्‍हड़ जी का असली नाम श्री श्‍याम लाल शर्मा था। सन् 1954 में उन्‍होंने हरियाणा की मैट्रिक परीक्षा में 86 प्रतिशत अंक प्राप्‍त करके पूरे प्रदेश में पहला स्‍थान प्राप्‍त किया था। मैट्रिक करने के पश्‍चात उन्‍होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की लेकिन ईश्‍वर को तो कुछ और ही मंजूर था और इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष की परीक्षा में वे फेल हो गये। इसी दौरान मैट्रिक की परीक्षा में सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन की वजह से उन्‍हें डाक तार विभाग में क्‍लर्क की नौकरी मिल गई और दिल्‍ली के कश्‍मीरी गेट स्थित जी.पी.ओ. पोस्‍ट आफिस में उन्‍होंने डाक तार विभाग में नौकरी शुरू की।
इसी दौरान उनका सम्‍पर्क दिल्‍ली के मशहूर कव्‍वाल श्री नहीफ देहलवी से हुआ और उन्‍होंने 1962 से माहिर बीकानेरी उपनाम से ऊर्दू में गज़लें लिखनी शुरू कीं। उनका गज़लें लिखने का सिलसिला 1967 तक चलता रहा। 'रेत पर जहाज' गजल संग्रह में प्रकाशित एक गजल दिल को छूने वाली है :
     ''मरुस्‍थल तो मनाता है नदी को
     तरस लेकिन कब आता है नदी को
     नए शाइर-सा ये गुस्‍ताख झरना
     गजल अपनी सुनाता है नदी को
     हिमाकत देखिए इक बुलबुले की
     इशारों पर नचाता है नदी को''

     एक कवि सम्‍मेलन में हास्‍य कवि काका हाथरसी की फुलझडि़यां सुनकर वे अत्‍यधिक प्रभावित हुये। अपनी पुस्‍तक ''अभी हंसता हूं'' में अल्‍हड़ जी लिखते हैं, मैंने भी गम्‍भीर गीतों और गजलों को विराम देते हुए ''कह अल्‍हड़ कविराय'' की शैली में सैंकड़ों फुलझडि़यां लिख मारीं।''  यही वह मोड़ था, जिसने उन्‍हें माहिर बीकानेर बना दिया और उन्‍होंने हास्‍य कवितायें लिखनी शुरू की। धर्मयुग में उनका मुक्‍तक पहली बार प्रकाशित हुआ। वह इस प्रकार था-
  ''कोई कोठी है न कोई प्‍लाट है
  दोस्‍तो अपना निराला ठाठ है।
  एक बीवी तीन बच्‍चे और हम
  पाँच प्राणी एक टूटी खाट है। ''
इसी तरह एक अन्‍य खूबसूरत गजल में अल्‍हड़ जी कहते हैं :
     ''इठलाई घास
     तभी लेखनी की प्‍यास जगी
     लिख मारी घास पे गजल
     मेरे राम जी''

     यह अल्‍हड़ जी की प्रतिभा और लगन का ही करिश्‍मा था कि सन् 1970 आते-आते वे देश में एक लोकप्रिय हास्‍य कवि के रूप में प्रतिष्ठित हो गये। काव्‍य शुरू श्री गोपाल प्रसाद व्‍याज जी के मार्गदर्शन में अल्‍हड़ जी ने अनूठी हास्‍य कवितायें लिख कर उनकी अपेक्षाओं पर अपने को खरा साबित किया। अल्‍हड़ जी ने हिन्‍दी हास्‍य कविता के क्षेत्र में जो विशिष्‍ट उपलब्धियां प्राप्‍त कीं, उनमें 'साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान' के सम्‍पादक श्री मनोहर श्‍याम जोशी, 'धर्मयुग' के सम्‍पादक श्री धर्मवीर भारती और 'कादम्बिनी' के संपादक श्री राजेन्‍द्र अवस्‍थी की विशेष भूमिका रही। अल्‍हड़ जी की कवितायें 'लोट पोट', 'दीवाना तेज', 'साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान', 'कादम्बिनी', और 'धर्मयुग' जैसी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हुईं। उन्‍हीं दिनों अल्‍हड़ जी की कविता 'हर हाल में खुश हैं' जब 'साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान में छपी तो यह कविता पाठकों द्वारा बहुत पसंद की गई।
   
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अल्‍हड़ जी अपनी हास्‍य कविताओं में सामाजिक और राजनैतिक विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया। अपनी बात को कविता के माध्‍यम से वे बहुत ही सहज रूप से अभिव्‍यक्‍त करते थे। श्री अल्‍हड़ बीकानेरी ने हास्‍य- व्‍यंग्‍य कवितायें न सिर्फ हिन्‍दी बल्कि ऊर्दू, हरियाणवी संस्कृत भाषाओं में भी लिखीं और ये रचनायें कवि-सम्‍मेलनों में अत्‍यंत लोकप्रिय हुईं। उनके पास कमाल का बिंब विधान था। राजनीतिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्‍य में उनकी यह टिप्‍पणी देखिए :

     ''उल्‍लू ने बढ़ के हंस की थामी नकेल है
     कुदरत का है कमाल मुकद़्दर का खेल है''

     इसी तरह महंगाई पर पौराणिक संदर्भों का सहारा लेकर वे खूबसूरती से अपनी बात कहते हैं :
     ''बूढ़े विश्‍वामित्रों की हो सफल तपस्‍या कैसे
     चपल मेनका-सी महंगाई फिरे फुदकती ऐसे
     जैसे घोड़ी बिना लगाम, सीताराम, राधेश्‍याम
     भज मन, बमभोले का नाम, सीताराम, राधेश्‍याम''

     अल्‍हड़ जी को 'ठिठोली पुरस्‍कार', 'काका हाथरसी पुरस्‍कार', 'टेपा समान', हरियाणा गौरव समान' आदि पुरस्‍कारों से सम्‍मानित किया गया। अनेकों पुरस्‍कार तथा सम्‍मान प्राप्‍त करने वाले अल्‍हड़ जी विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे और वे बहुत ही सरल स्‍वभाव के थे। अल्‍हड़ जी की प्रकाशित पुस्‍तकें हैं- 'भज प्‍यारे तू सीताराम', 'घाट-घाट घमू', 'अभी हंसता हूं', 'अब तो आंसू पोंछ', 'भैंसा पीवे सोमरस', 'ठाठ गज़ल के', 'रेत पर जहाज़', 'अनझुए हाथ', 'खोल न देना द्वार', 'जय मैडम की बोल रे', 'बैस्‍ट ऑफ अल्‍हड़ बीकानेरी' और 'मन मस्‍त हुआ'। अल्‍हड़ जी की हास्‍य-कव्‍वाली' 'मत पूछिये फुर्सत की घडि़या हम कैसे गुजारा करते हैं' और हरियाणावी कविता 'अनपढ़ धन्‍नों' ने कवि-सम्‍मेलनों के मंचों पर लोकप्रियता के नये कीर्तिमान स्‍थापित किये।
     लगभग 50 वर्षों से अधिक की काव्‍य यात्रा में उनकी 12 पुस्‍तकें प्रकाशित हुईं और वे जीवन के अंतिम समय तक काव्‍य रचना में व्‍यस्त रहे। डाक तार विभाग में अपनी नौकरी भी उन्होंने पूरी की और वे दिल्ली के पटेल चौक स्थित डाक तार मुख्‍यालय से सहायक पोस्ट मास्टर के पद से सेवानिवृत्‍त हुये। वर्ष 2009 के जून मास में क्रूर काल ने देश के हास्य व्यंग्य के इस महान कवि को हमसे छीन लिया।(PIB)
*लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।
वि.कासोटिया/रीता/सुनीता

Sunday, May 26, 2013

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले की निंदा

26-मई-2013 16:36 IST
ऐसी घटनाएं हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के विरूद्ध हैं
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के संदेश का अनूदित पाठ इस प्रकार है: 
"मैं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले की कड़ी निंदा करता हूं। मैं उन लोगों के परिवारों के प्रति गहरी सहानुभूति प्रकट करता हूं जिन्होंने अपनी जान कुर्बान कर दी। मैं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री विद्याचरण शुक्ल सहित इस कायरतापूर्ण हमले में घायल लोगों के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार के लिए दुआ करता हूं। 

मैंने राज्य के मुख्यमंत्री से बात की है और उनसे अनुरोध किया है कि घायलों को हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाए तथा अपहृत लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। 

मैं हमलावरों से अपील करता हूं कि अपहृत लोगों को जल्द से जल्द छोड़ दें। 

ऐसी घटनाएं हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के विरूद्ध हैं। सरकार किसी भी तरह की हिंसा के दोषी लोगों पर कड़ी कार्रवाई करेगी।" (PIB)
***
वि. कासोटिया/प्रदीप/सतपाल/शदीद- 2506


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