Tuesday, December 31, 2013

बाबा रामदेव चलाएंगे पहली मार्च से घर-घर जाकर वोट फार मोदी कैंपेन

Tue, Dec 31, 2013 at 1:58 PM
कहा-लोगों को पानी मुफ्त देना सरकार का दायित्व
केजरीवाल ने नया क्या किया
अमृतसर: 31 दिसंबर 2013 : (गजिंदर सिंह किंग//पंजाब स्क्रीन//हिंदी स्क्रीन): 
देश में भ्रष्टाचार समाप्त करने और विदेशी बैंकों में जमा काले धन को वापस लाने के मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार से टक्कर लेने वाले योग गुरु बाबा रामदेव ने स्पष्ट किया है, कि इस समय देश को नरिंदर मोदी जैसे दिग्गज नेता की जरूरत है, जो लोगों को भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन देने में समर्थ हैं। वह आज अमृतसर पहुंचे थे। पत्रकार वार्ता के दौरान उन्होंने कहा, कि 2014 में देवत्व की स्थापना के साथ-साथ अन्य मुद्दों पर भी उनका आंदोलन जारी रहेगा। अपने आंदोलन के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा, कि एक मार्च से वह और उनके कार्यकर्ता पूरे देश में घर-घर जाकर वोट फार मोदी और भ्रष्टाचार समेत अन्य मुद्दों के खिलाफ वोट करने के लिए लोगों से अपील करेंगे। इसके अलावा 23 मार्च को शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में वह दिल्ली में एक बहुत बड़ा योग कैंप लगा रहे हैं, जिसमें एकसाथ पूरे देश में करीब दस करोड़ लोग एकसाथ योगाभ्यास करेंगे।
   नरिंदर मोदी के प्रचारक के रूप में बाबा रामदेव के आगे आने के बारे में पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा, कि वह नरिंदर मोदी के प्रचारक नहीं है। बल्कि वह इसलिए उनका साथ दे रहे हैं, क्योंकि नरिंदर मोदी और उनके मुद्दे एकसमान है। इसलिए वह नरिंदर मोदी का प्रचार करने में जुटे हुए हैं। आम आदमी पार्टी की ओर से सत्ता में आते ही लोगों को मुफ्त पानी जैसी सुविधा दिए जाने के बारे में बाबा रामदेव ने कहा, कि इसमें केजरीवाल ने नया क्या किया। उन्होंने कहा, कि पहले आम आदमी पार्टी को अपनी विचार धारा स्पष्ट करनी होगी कि उनकी विचारधारा वामपंथी है या कुछ और। दिल्ली में नरिंदर मोदी के जादू के फेल होने के बारे में बाबा रामदेव ने कहा, यदि वहां मोदी फैक्टर नहीं चला होता, तो भाजपा की हालत कांग्रेस से भी बदत्तर होती।

Sunday, September 22, 2013

काव्य रचना// रिवाज़// डॉ अ कीर्तिवर्धन

दीवार खिंची आँगन में,मन भी बँट गए,
जब से अलग चूल्हे का चल गया रिवाज !

रहते थे एक घर में ,परिवार एक साथ,
अकेले रहने का अब चल गया रिवाज़ |

टूटने लगे हैं घर जब से गली गाँव में,
बच्चों के मन से बुजुर्गों का मिट गया लिहाज |

दीवार खिंची आँगन में,मन भी बँट गए,
जब से अलग चूल्हे का चल गया रिवाज |

दीवारें क्या खिंची माँ-बाप बँट गए,
बताने लगे हैं बच्चे अब खर्च का हिसाब |

मुश्किल है आजकल बच्चों को डांटना,
देने लगे हैं बच्चे हर बात का जवाब |

दिखते नहीं हैं बूढों के भी बाल अब सफ़ेद,
लगाने लगे हैं जब से वो बालों में खिजाब |

दौलत की हवस ने "कीर्ति" कैसा खेल खेला,
बदल गया है आजकल हर शख्स का मिजाज |


डॉ अ कीर्तिवर्धन अपने लेखों आलेखों की तरह काव्य रचना में भी अपनी कला अक्सर दिखाते रहते हैं। 
उनका सम्पर्क नबर है:
8265821800


काव्य रचना// रिवाज़// डॉ अ कीर्तिवर्धन

Friday, September 13, 2013

डॉ अ कीर्तिवर्धन पर रचनाएं आमंत्रित

Fri, Sep 13, 2013 at 1:47 PM
आदरणीय ,
                विषय :- डॉ अ कीर्तिवर्धन  की समग्र पड़ताल करता सुरसरी का विशेषांक।
बड़े ही हर्ष के साथ सूचित करना चाहते हैं कि बिहार से प्रकाशित सुप्रसिद्ध साहित्यक पत्रिका “ सुरसरी “ ने डॉ अ कीर्तिवर्धन के समग्र व्यक्तित्व , कृतित्व एवं साहित्यक यात्रा का मूल्यांकन करने का निर्णय लिया है

वरिष्ठ साहित्यकार , सरल , सहज , मानवीय दृष्टिकोण से ओत -प्रोत डॉ अ कीर्तिवर्धन सम्पूर्ण देश में जाने - पहचाने व पढ़े जाते हैं।  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी उनके अनेक पाठक, शुभचिंतक व मित्र हैं।  आपकी अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हैं , जिनमे से बाल साहित्य पर “ सुबह सवेरे “ , बुजुर्गों की दशा - दिशा पर प्रथम ग्रन्थ के रूप में मान्य “ जतन से ओढ़ी चदरिया “ तथा  आलेखों का संग्रह “ चिंतन बिंदु “ बहुचर्चित रही हैं।  अनेक पत्र -पत्रिकाओं में सहयोगी , अतिथि सम्पादक, परामर्शद डॉ वर्धन समाज सेवा व ट्रेड यूनियन से भी जुड़े हैं। वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं।

साहित्यक उपलब्धियों के रूप में 400 से अधिक पत्र -पत्रिकाओं में आपकी रचनाओं का निरंतर प्रकाशन, 60  से अधिक सम्मान व उपाधियाँ , अनेकों रचनाओं का कोंकण , तमिल , नेपाली , उर्दू , अंगिका , मैथिलि व अंग्रेजी भाषाओं में अनुवाद व प्रकाशन तथा अनेकों संस्थाओं से सम्बद्धता है।  आप उत्तर प्रदेश साहित्यकार स्वाभिमान समिति के सदस्य , दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन के कार्यकारिणी सदस्य , अखिल भारतीय साहित्य परिषद् ,मुज़फ्फरनगर ईकाई के अध्यक्ष होने के साथ साथ अनेकों संस्थाओं के उत्तर प्रदेश संयोजक भी हैं।

श्री कीर्तिवर्धन जी का जन्म शामली में हुआ और वर्तमान में आप नैनीताल बैंक की मुज़फ्फरनगर शाखा में कार्यरत हैं।  आप पिछले 33  वर्षों से बैंक में सेवारत है। नैनीताल बैंक स्टाफ एसोसिएशन के महामंत्री व ट्रेड यूनियन के विभिन्न पदों पर रहते हुए आपने अपनी कार्यकुशलता के साथ जुझारू छवि स्थापित की।  वर्तमान में आप नैनीताल बैंक इम्पलाईज यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।  आपकी कार्य प्रणाली तथा मृदु व्यवहार बैंक के ग्राहकों , साथी कर्मचारियों एवं प्रबंधकों द्वारा भी सराहनीय रहा है।  

वर्धन जी की लोकप्रियता , सहजता , सरलता तथा साहित्यक उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए सन 2011 में प्रमुख राष्ट्रीय पत्रिका “ कल्पान्त “ ने भी उन पर केन्द्रित “ साहित्य का कीर्तिवर्धन “ विशेषांक प्रकाशित किया था , जिसकी व्यापक चर्चा तथा प्रसंशा हुई थी।  आपकी कवितायें , शोध आलेख तथा निबन्ध अपनी अलग शैली के कारण पहचान छोड़ते हैं।  समीक्षा करने की समालोचनात्मक दृष्टि उन्हें विशिष्ट बनाती है तो पुस्तकों की भूमिका लिखते  समय वह प्रेरणा व प्रोत्साहन देते दिखाई पड़ते हैं।

आदरणीय , आप कीर्तिवर्धन जी के बाल सखा, विद्यार्थी जीवन के साथी , सामाजिक कार्यों के सहयोगी , ट्रेड यूनियन में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले मित्र , साहित्य में पाठक , प्रसंशक , अग्रज , बैंक में ग्राहक एवं साथी , रिश्तेदार , दोस्त , समाज सेवा के क्षेत्र में उनके अग्रणीय यानि किसी न किसी रूप में कीर्तिवर्धन जी से जुड़े रहे रहे हैं , उनके कृतित्व व व्यक्तित्व के पहलुओं से परिचित हैं।  

हमारा आपसे अनुरोध है कि आप अपनी यादों एवं कीर्तिवर्धन जी के साथ लिए गए अनुभवों मे से कुछ हमारे साथ साझा करें।  उनके साथ लिए गए विभिन अवसरों के फोटो तथा आपके संस्मरण पत्रिका को गरिमा प्रदान करेंगे तथा कीर्तिवर्धन जी के व्यक्तित्व को भी नई उंचाईयां प्रदान करेंगे।

सभी पत्र - पत्रिकाओं के सम्मानित संपादकों से भी विनम्र अनुरोध है कि इस विज्ञप्ति को अपनी पत्रिका में स्थान प्रदान कर अनुगृहित करें तथा अपने विचारों से भी अवगत कराने की कृपा करें।

माननीय , आपसे अनुरोध है कि डॉ अ कीर्तिवर्धन से सम्बंधित अपने संस्मरण , विचार , उनकी पुस्तकों पर समीक्षा , कविताओं का मूल्याङ्कन ,  उनके साथ बिताये गए क्षणों के चित्र , शुभकामना सन्देश , आशीर्वचन , उनकी रचनाओं का किसी अन्य भाषा में अनुवाद आदि हमें निम्न पते पर अथवा सीधे डॉ कीर्तिवर्धन जी को निम्न पते पर प्रेषित करें।  

आप सम्बंधित सामग्री e mail से भी भेज सकते हैं -------
कृपया अपना फोटो भी संलग्न करें।
                                                                                     
पता --                                                                               निवेदक
डॉ अ कीर्तिवर्धन                                                     अश्विनी कुमार आलोक                                           
विद्यालक्ष्मी निकेतन                                               सम्पादक - “ सुरसरी “
53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव ,जानसठ रोड ,                     प्रोफेसर्स कॉलोनी, महनार
मुज़फ्फरनगर -251001 (उत्तर प्रदेश)                        वैशाली -844506 ( बिहार )

08265821800                                                      09801699936

a.kirtivardhan@gmail.com                                 ashwinikumaralok@gmail.com

Friday, August 30, 2013

पंखे की जगह भारत की घड़ी चल रही है...!

मेरठ कैंट के रहने वाले मित्र Ravinder Singh Sethi ने एक रचना फेसबुक पर पोस्ट की है जिसे अग्रिम धन्यवाद सहित यहाँ भी प्रकशित किया जा रहा है। यह रचना उनकी है या किसी और की अभी यह भी स्पष्ट नहीं है पर यह रचना देश की जिस दुखद और चिंतनीय हालत पर काव्यपूर्ण व्यंग्य शैली में बहुत प्रकाश डालती है वह देश और उसकी यह हालत हम सब की अवश्य है। इस हालत से उबरने और सुधरने की ज़िम्मेदारी भी हम सब की है। इस रचना पर आप क्या चाहते हैं आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी। ---रेक्टर कथूरिया  
एक आदमी ने धरती से किया प्रस्थान... 
यमराज के कक्ष में
घड़ियां देखकर रह गया हैरान..
हर देश की अलग घड़ी थी...
कोई छोटी, कोई बड़ी थी...
कोई दौड़ रही, कोई बंद, कोई तेज, कोई मन्द...
उनकी अलग-अलग रफ्तार देखकर
आदमी चकराया...
कारण पूछा तो यमराज ने बताया...
हर घड़ी की उसी हिसाब से है रफ्तार..
जिस हिसाब से हो रहा है उस देश में
भ्रष्ट्रचार..

आदमी ने चारों तरफ नजर दौड़ाई...
लेकिन भारत की घड़ी कहीं भी नजर
नहीं आई..

आदमी मुस्कुराया, यमराज के कान
में फुसफुसाया..
कांग्रेस वाले भ्रष्टाचार यहां भी ले
आए..
सच-सच बताओ, घड़ी न रखने के
कितने पैसे खाए..

यमराज बोले: तेरे शक की सुई तो
बिना बात उछल रही है..
मेरे बेड रूम में जाकर देख ..
..
पंखे की जगह भारत की घड़ी चल
रही है...

Tuesday, August 20, 2013

अब चौरासी कोसी परिक्रमा पर भी चला सरकारी डंडा

                                                                                                                                    Tue, Aug 20, 2013 at 2:35 PM
अयोध्या एक बार फिर से सियासी आग की चपेट में 
लेखक राजीव गुप्ता
संतो की अगुआई और विश्व हिन्दू परिषद के सहयोग से चलने वाली आगामी 25 अगस्त से अयोध्या-क्षेत्र में प्रस्तावित चौरासी कोसी परिक्रमा यात्रा को उत्तरप्रदेश सरकार ने अनुमति देने से मना कर दिया. जिसके चलते देश भर में  हर जगह उत्तरप्रदेश सरकार के इस रवैये का विरोध हो रहा है. चुनाव के नज़दीक आते-आते शांत रहने वाला अयोध्या एक बार फिर से सियासत की आग की चपेट में आ गया है. उत्तरप्रदेश के प्रमुख गृहसचिव आरएम श्रीवास्तव के अनुसार अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा को चैत्र पूर्णिमा से बैशाख पूर्णिमा तक (25 अप्रैल- 20 मई) पारंपरिक तरीके से इस वर्ष में संपन्न करवा दिया गया है तो इसका क्या यह अर्थ लगाया जाय कि अब इस वर्ष कोई भी अयोध्या की चौरासी-कोसी परिक्रमा नही कर सकता ? क्या शासन व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताओं पर भी नियंत्रण करेगा ? सौभाग्य से मेरा जन्म अयोध्या के चौरासी कोसी परिक्रमा क्षेत्र के समीप ही हुआ है और हम अपनी-अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं के अनुरूप बचपन में वर्ष में दो-तीन बार भी अयोध्या जी की चौरासी-कोसी परिक्रमा करते थे. अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा का अनुष्ठान अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार वर्षभर में कोई भी, कभी भी और कई बार भी कर सकता है. संविधान ने धार्मिक स्वतंत्रता के चलते प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार दिया है और सत्ता की यह जवाबदेही होती है कि वह संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन न होने दे. इसके लिए ही देश में कानून व्यवस्था बनाये रखने हेतु केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने अर्द्धसैनिक बलों का गठन किया गया है.

उत्तरप्रदेश सरकार का यह तर्क गले नही उतरता है कि उसे इस प्रस्तावित चौरासी कोसी परिक्रमा से अगर राज्य में कानून व्यवस्था भंग होने का अन्देशा है. अगर राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने हेतु उसके पास पी.ए.सी के जवान कम पड रहे है तो वह अन्य राज्यों अथवा केन्द्र से अधिक संख्या में अर्द्धसैनिकों की मांग कर सकती है. अगर उत्तरप्रदेश सरकार अपनी दूरदर्शिता दिखाते हुए इस विषय पर स्थानीय स्तर पर ही संभाल लेती तो इस विषय का समाधान वही हो जाता और इसका सीधा असर उसकी छवि पर भी पडता. सरकार के इस रवैये के चलते किसी भी समुदाय के लोगों को किसी भी प्रकार की आपत्ति नही होती साथ ही समाज़-सत्ता के टकराव को भी रोका जा सकता है. परंतु उत्तरप्रदेश सरकार ने ऐसा न करके अब इस विषय को देशव्यापी बनाते हुए इसका राजनीतिकरण कर दिया है. जिसके फलस्वरूप उत्तरप्रदेश सरकार के इस तानाशाही रवैये के चलते देश की कानून-व्यवस्था ही दांव पर लग गई है. अत: अब देश की कानून – व्यवस्था भंग न हो इसके लिए केन्द्र सरकार को अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उत्तरप्रदेश सरकार को यह आश्वासन देते हुए कि उसे पर्याप्त संख्या में अर्द्धसैनिक बल उपलब्ध करवाये जायेंगे, उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा जनित उसके इस तनावपूर्ण फैसले पर हस्तक्षेप करते हुए उसे अपने फैसले को वापस लेने के लिये बाध्य करे. ताकि देश में तनाव बढने की बजाय एक सकारात्मक सन्देश जाए.

उत्तरप्रदेश सरकार ने विहिप की प्रस्तावित चौरासी कोसी परिक्रमा पर अब तक चली आ रही चौरासी कोसी परिक्रमा को लेकर नई परंपरा डालने का आरोप लगाया. दरअसल इसी विषय पर अपना मत स्पष्ट करने हेतु ही संतो की अगुआई में अशोक सिंहल समेत एक दल मुलायम सिंह यादव से 10 अगस्त को मिला था और मुलायम सिंह यादव ने उन्हे इस चौरासी कोसी परिक्रमा के अनुष्ठान को पूर्ण करने की मौखिक स्वीकृति भी दी थी. वास्तव में यह विवाद बारबंकी के टिकैतपुर से लेकर गोंडा तक के कुछ किमी. तक नये मार्ग को लेकर है. ध्यान देने योग्य है कि वर्तमान समय में सरयू नदी का जलस्तर बढ जाता है जिससे सरयू नदी को नाव की सहायता से पार करना संभव नही है. इसलिये विहिप ने एक विकल्प के रूप में नया मार्ग चुना. अगर उत्तरप्रदेश सरकार को विहिप के इस वैकल्पिक नये मार्ग से कुछ परेशानी है तो इस बारे में विहिप ने लचीला रूख अपनाया है. उत्तरप्रदेश सरकार को बजाय चौरासी कोसी परिक्रमा रोकने के विहिप को संवाद हेतु आमंत्रित कर इस समस्या का हल ढूंढना चाहिए.

अगर यह टकराव जल्दी ही नही खत्म नही हुआ तो अयोध्या की इस चौरासी कोसी परिक्रमा का भी राजनीतिकरण होना तय है. जिसका असर आने वाले चुनावों पर भी पडेगा. उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा उठाये गये इस तानाशाही कदम से विशुद्ध रूप से राजनैतिक कदम है क्योंकि इस टकराहट से हिन्दू और मुस्लिम वोंटो का जबरदस्त ध्रुवीकरण होगा. जिसका लाभ भाजपा और सपा दोनो ही दल उठायेंगे. भाजपा बहुसंख्यंको को रिझाने का प्रयास करेगी और सपा अल्पसंख्यकों पर डोरे डालेगी. इससे पहले भी अयोध्या का राजनीतिकरण हो चुका है. ध्यान देने योग्य है कि मुलायम सिंह यादव जब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन्होने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था तबसे लेकर आजतक बहुसंख्यक समाज मुलायम के साथ मन से नही जुड पाया है. लोग कुछ इसी तरह भाजपा पर भी विश्वासघात का आरोप लगाते है. वे तर्क देते है कि भाजपा राममन्दिर निर्माण के मुद्दे पर ही सत्ता में आयी थी और सत्ता में आते ही उसने सबसे पहले अपने एजेंडे में से राममन्दिर-निर्माण के मुद्दे को ही निकाल दिया. यहाँ यह स्पष्ट होना चाहिए कि भाजपा के एजेंडे में आज भी राममन्दिर – निर्माण का विषय है. अटल जी की अगुआई में सरकार एनडीए की बनी थी न कि भाजपा की. भाजपा ने देश को स्थायी सरकार देने हेतु ही एनडीए का गठन किया था. एनडीए गठन के समय यह तय किया गया था कि अगर विवादित विषय धारा 370, राम-मन्दिर निर्माण जैसे विषयों को अलग कर दिया जाय तो देश को एक स्थायी सरकार मिल सकती है. इसी को ध्यान रखते हुए भाजपा ने सभी विषयों को यथावत अपने एजेंडे मे ही रखा और एनडीए के एजेंडे में से सभी विवादित विषयों को हटा दिया था. जिसके चलते लोग आज भी भाजपा पर विश्वासघात का आरोप लगाते है. अयोध्या में राममन्दिर निर्माण का विषय इस समय देश की सर्वोच्च न्यायालय के अधीन है. अत: आस्था के इस विषय पर राजनीति करने का अधिकार किसी भी राजनैतिक दल को नही है. राममन्दिर निर्माण के नाम पर देश का ध्यान भटकाने की अपेक्षा उत्तरप्रदेश सरकार जल्दी से जल्दी अयोध्या की चौरासी कोसी यात्रा पर अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे. क्योंकि समाज-सत्ता का टकराव किसी भी सूरत में देश-हित के लिए ठीक नही होता और दोनो पक्षों को टकराव की बजाय आपस में संवाद कर  इस समस्या का हल  निकालना चाहिये.        -राजीव गुप्ता, 09811558925

Monday, August 19, 2013

रक्षा बंधन पर राष्‍ट्रपति की शुभकामनाएं

19-अगस्त-2013 16:33 IST
समाज का प्रत्‍येक सदस्‍य इस त्‍यौहार पर महिलाओं के लिए सम्‍मान की भावना अपनाये
Courtesy Photo
राष्‍ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने रक्षा बंधन के अवसर पर अपने संदेश में देशवासियों को शुभकामनाएँ दी है। उन्‍होंने अपने संदेश में कहा है कि रक्षा बंधन का त्‍यौहार भाई-बहन के बीच विश्‍वास, प्‍यार और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उन्‍होंने कहा कि यह हमारे लिए महिलाओं खासकर लड़कियों के कल्‍याण के प्रति समर्पित होने का अवसर है। उन्‍होंने कहा कि महिलाओं को सुरक्षित और सौहार्दपूर्ण वातावरण उपलब्‍ध कराया जाना चाहिए ताकि, उनकी प्रतिभा विकसित हो और वे राष्‍ट्र निर्माण में पूरी भागीदारी कर सके। राष्‍ट्रपति ने कहा कि महिलाओं के सम्‍मान के लिए पारंपरिक सांस्‍कृतिक मूल्‍यों को ध्‍यान में रखा जाना चाहिए। 

राष्‍ट्रपति ने आशा व्‍यक्‍त की कि समाज का प्रत्‍येक सदस्‍य इस त्‍यौहार पर महिलाओं के लिए सम्‍मान की भावना अपनायेगा। 

वि.कासोटिया/इ. अहमद/गांधी/सुमन- 5678

Thursday, August 15, 2013

महामहिम राष्‍ट्रपति से मिला सम्मान

15-अगस्त-2013 08:23 IST
सबंधित क्षेत्रों में हर्ष की लहर
महामहिम राष्‍ट्रपति संस्‍कृत, फारसी अरबी तथा पाली/प्राकृत के निम्‍नलिखित विद्वानों को सहर्ष सम्‍मान-प्रमाणपत्र प्रदान करते हैं -
संस्‍कृत
1.      प्रोफेसर सुब्‍बारावव पेरी
2.      डॉ. कृष्‍ण लाल
3.      डॉ. हंसाबेन एन. हिंडोचा
4.      प्रोफेसर (डा.) चन्‍द्र कांत शुक्‍ला
5.      प्रोफेसर मल्लिकार्जुन बी. पराड्डी
6.      श्री मोहन गुप्‍ता
7.      प्रोफेसर मिथिला प्रसाद त्रिपाठी
8.      प्रोफेसर अलेखा चन्‍द्र सारंगी
9.      पदम शास्‍त्री (पदम दत्‍त ओझा शास्‍त्री)
10.  ड गणेशी लाल सुथार
11.  डा. प्रशस्‍य मित्रा शास्‍त्री
12.  श्री भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ‘वागीश शास्‍त्री’
13.  प्रोफेसर जय शंकर लाल त्रिपाठी

संस्‍कृत (अंतर्राष्‍ट्रीय)1. डॉ. रॉबर्ट पी. गोल्‍डमेन

फारसी1. प्रोफेसर (श्रीमती) क़मर गफ्फार2. श्री एम.एच. सिद्दकी

अरबी1. श्री मोहम्‍मद अज़ीमुद्दीन
2. प्रोफेसर जिक्‍रूर रहमान
3. प्रोफेसर अहमद नसीम सिद्दकी

पाली/प्राकृत

1. प्रोफेसर भिक्षु सत्‍यपाल

इसके अतिरिक्‍त, महामहिम राष्‍ट्रपति संस्‍कृत, फारसी, अरबी तथा पाली/प्राकृत के निम्‍नलिखित विद्वानों को महर्षि वदरायन व्‍यास सम्‍मान भी प्रदान करते हैं :

संस्‍कृत1. डॉ. बलराम शुक्‍ला
2. डॉ. धनंजय वायुदेव द्विवेदी
3. श्री के. वेंकटेश मूर्ति
4. प्रोफेसर नीरज शर्मा
5. डॉ. उपेन्‍द्र कुमार त्रिपाठी

फारसी1. श्री शबीब अनवर अल्‍वी

अरबी1. डॉ. अशफ़ाक अहमद

पाली/प्राकृत1. डॉ. अनेकांत कुमार जैन  यह सम्‍मान स्‍वतंत्रता दिवस पर वर्ष में एक बार संस्‍कृ, फारसी, अरबी तथा पाली/प्राकृत के क्षेत्रों में महत्‍वपूर्ण योगदान के लिए प्रदान किया जाता है।

वि.कासौटिया/इ-अहमद/जुयाल/राजीव-5645

Sunday, August 11, 2013

उद्देश्य:भारतीय भाषाओं की उपयोगिता एवं आवश्यकताओं को रेखांकित करना

Sun, Aug 11, 2013 at 4:09 PM
नई दिल्ली मे हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन
नई दिल्ली: 11 अगस्त 2013 (राजीव गुप्ता*) विधि शिक्षा और न्याय क्षेत्र में भारतीय भाषाओं की उपयोगिता एवं आवश्यकताओं को रेखांकित करने के उद्देश्य से शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एवं अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद ने नई दिल्ली मे दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया.  पहले दिन के इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वी. एस. सिरपुरकर ने कहा कि देश मे भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन मिलना चाहिये. उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों को भी एक – दूसरे की भाषा का न केवल सम्मान करना चाहिये अपितु उसे अंगीकार भी करना चाहिये. इसी तरह संस्कृत भाषी कवियों व लेखकों को अपनी बात सरल भाषा में ही व्यक्त करना चाहिये. दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और प्रतियोगिता आयोग के सदस्य एस.एन. धींगरा ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थिति में भाषा को यदि व्यवसाय और रोजगार से जोड दिया जाय तो भाषा का विकास और इसकी उपयोगिता नि:सन्देह संभव है.   अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता डी. भरत कुमार ने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक का यह मौलिक अधिकार है कि वह अपना वाद और बहस अपनी मातृभाषा में करे. अपनी भाषा में न्याय की गुहार लगाना अनुच्छेद 19 का ही भाग है, जो प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है. दूसरे दिन के कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और भारत सरकार के पूर्व सचिव बृज किशोर शर्मा ने कहा कि हिन्दी भारत की राष्ट्र्भाषा है और इसमें किसी भी प्रकार कभी भी कोई मतांतर नही रहा. जो मतांतर रहा वह केवल अंको के प्रयोग को लेकर रहा और कालंतर में निर्णय द्वारा आंग्ल लिपि के अंतर्राष्ट्रीय मानको को स्वीकृत किया गया और वही अनुच्छेद 343 में स्थान पाया. किसी भी अधिनियम के राजभाषा में अनुवाद को अधिकृत अधिनियम मानने हेतु संसद में 1972 में ही अधिनियम पारित कर दिया था, तभी से अधिकृत अनुवाद किसी भी राज्य की राजभाषा में सन्दर्भ हेतु प्रयोग किये जा सकते है. राजभाषा में विधि – पुस्तकों के हेतु उन्होनें कहा कि दंड प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, संपत्ति हस्तांतरण आदि की पुस्तकें हिन्दी एवं सभी राजभाषाओं में उपलब्ध हैं लेकिन संविधान पर हिन्दी में टीका 1950 से लगातार केवल “बसु” की ही उपलब्ध हैं क्योंकि संवैधानिक विषय उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में विमर्श किये जाते है जहाँ की अधिकृत भाषा अंग्रेजी है. विधि आयोग के सदस्य बी.एन.त्रिपाठी ने कहा कि भाषा का स्वरूप सर्वप्रथम “बोली” से होता है तथा फिर शब्द व लिपि जुडती है. ऐसे में आज हिन्दी एवं राजभाषाओं को सही शब्दों से समृद्ध करना एक सतत प्रयास एवं प्रक्रिया है जिसके लिये राजभाषाओं में विधि शब्द कोषों की नितांत आवश्यकता है. साथ ही वें स्वयं सरकारी स्तर पर मातृभाषा के विषय को आगे बढायेंगे. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के मीडिया प्रभारी राजीव गुप्ता ने बताया कि इस दो दिवसीय कार्यक्रम में देश के अनेक राज्यों के उच्च-न्यायालयों के अधिवक्ता इस दो दिवसीय कार्यक्रम में भाग लिया.

समापन समारोह में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव अतुल कोठारी ने सभा को बताया कि इस दो दिवसीय कार्यक्रम में निम्नलिखित निर्णय लिये गयें हैं :

विधि और न्याय के क्षेत्र में भारतीय के राष्ट्रीय परिसंवाद में में सर्वसम्मति से केन्द्र सरकार से मांग की गई कि -

1.      अंग्रेजी के प्रयोग पर रोक लगाकर केन्द्र में  हिन्दी और राज्यों में उनकी राजभाषा में कारगर कदम उठाये जाय.

2.      मध्य प्रदेश, रजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार (इनके विभाजन स्वरूप उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ) में उच्च न्यायालयों मे हिन्दी के प्रयोग की अनुमति है. इसी प्रकार देश के सभी अन्य राज्यों में उनके उच्च न्यायालयों के कामकाज की भाषा राजभाषा बनायी जाय.

3.      राष्ट्रपति के आदेशानुसार उच्चतम न्यायालय में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में कार्य करने की भी अनुमति दी जाय.

4.      देश के सभी राज्यों की विधि संबंधी सभी परीक्षाओं तथा न्यायिक सेवा का माध्यम अंग्रेजी के अलावा हिन्दी और प्रादेशिक भाषाएँ बनायी जाय.

5.      राष्ट्रीय विधि संस्थानो एवं विश्वविद्यालयों में विधि पाठयक्रमों का माध्यम हिन्दी और भारतीय भाषाएँ हो.

6.      सभी न्यायालयों में सभी कार्य राजभाषाओं में हो.

7.      सभी विधान सभाओं में विधि बनाने का कार्य मूलत: राज्य की राजभाषा में हो.

8.      सभी राज्यों में राजभाषा कार्यांवयन समिति का गठन हों.

*राजीव गुप्ता जाने माने युवा पत्रकार भी हैं और इस संगठन/संस्थान के मीडिया प्रभारी भी --उनकी रचनाएं अक्सर पंजाब स्क्रीन और अन्य ऑनलाईन पत्रिकायों में छपती रहती हैं  उनका फोन पर बात करने के लिए सम्पर्क नम्बर है  09811558925

उद्देश्य:भारतीय भाषाओं की उपयोगिता एवं आवश्यकताओं को रेखांकित करना 

Saturday, August 10, 2013

आधी सदी में भारत ने खो दी अपनी 200 से अधिक स्वदेशी भाषाएँ

1961 में बोली जाती थीं भारत में 1100 भाषाएँ 
                                                     Photo: EPA
मामला बेहद गंभीर है और इसकी खबर दी है रेडियो रूस ने जिसका शीर्षक है-आधी सदी में भारत की 200 से अधिक भाषाएँ विलुप्त। रेडिओ ने पूरी ज़िम्मेदारी से तथ्यों का हवाला देते हुए बताया है कि भारत के एक शोध संस्थान 'भाषा' जिसे 'भाषा शोध एवं प्रकाशन केन्द्र' भी कहा जाता है, के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आधी सदी में भारत ने अपनी 200 से अधिक स्वदेशी भाषाएँ खो दी हैं।
इस क्षेत्र के एक शोधकर्ता गणेश देवी के अनुसार, सन् 1961 में भारत में 1100 भाषाएँ बोली जाती थीं लेकिन अब उनमें से 220 भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं। ये भाषाएँ सपेरों, ज्योतिषियों, स्वदेशी चिकित्सकों द्वारा बोली जाती थीं। भारत की 3-4 प्रतिशत जनसंख्या, यानी लगभग पाँच करोड़ लोग ऐसी भाषाएँ बोल सकते थे।
भारत में दो भाषाओं, हिन्दी और अंग्रेज़ी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है जबकि 22 अन्य भाषाओं का देश के राज्यों में सरकारी भाषा के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

आधी सदी में भारत की 200 से अधिक भाषाएँ विलुप्त

Friday, July 26, 2013

श्री अकाल तख्त साहिब: सरना ब्न्धुयों ने फिर किया समर्पण

Fri, Jul 26, 2013 at 8:51 PM
दायर केस को वापस लें सरना बंधु-जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब 
कहा-अपनी भूलों की क्षमा याचना के लिए गुरुद्वारा रकाबगंज में करवाए श्री अखंड पाठ 
यथा शक्ति मुताबिक लंगर लगाने का भी आदेश 
श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों का इन-बिन करेंगे पालन-सरना बंधु
अमृतसर (गजिंदर सिंह किंग) नवंबर 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों की यादगार के खिलाफ हाईकोर्ट में पटिशन दायर करने के बाद श्री अकाल तख्त साहिब पर तलब किए गए सरना बंधुओं को श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने श्री अकाल तख्त साहिब से आदेश दिया है, कि वह उक्त केस को तुरंत वापस लें। इसके अलावा सरना बंधुओं को यह भी आदेश दिया गया है कि वे क्षमा याचना के लिए गुरुद्वारा रकाबगंज में श्री अखंड पाठ के साथ-साथ यथा शक्ति मुताबिक लंर लगाए। उधर, इस मौके पर सरना बंधुओं ने कहा, कि हम श्री अकाल तख्त साहिब के फैसले को मंजूर करते हैं। 
         नवंबर 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों की यादगार को गुरुद्वारा रकाब गंज में बनाए जाने के विरोध में हाईकोर्ट में याचिका दायर करने पर श्री अकाल तख्त साहिब पर तलब किए गए परमजीत सिंह सरना अपने भाई के साथ आज पांच सिंह साहिबानों के समक्ष पेश हुए। इस दौरान उन्होंने पांच सिंह साहिबानों को अपना लिखित स्पष्टीकरण पेश किया। पांच सिंह साहिबानों ने विचार करने के बाद परमजीत सिंह सरना और उनके भाई मंजीत सिंह सरना पर अपना फैसला ले लिया। पांच सिंह साहिबानों के इस फैसले को श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने श्री अकाल तख्त साहिब से सुनाया। जिसमें आदेश दिया गया कि सरना बंधु तुरंत कोर्ट में दायर किए गए केस को वापस लें। इसके साथ वे दोनों सिख दंगों के पीड़ित परिवारों के साथ गुरुद्वारा रकाबगंज में श्री अखंड पाठ रखवाएं और यथा शक्ति मुताबिक लंगर भी लगाएं और अपनी भूलों की क्षमा याचना करें।
      इससे पूर्व सिंह साहिबानों से मिलने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए परमजीत सिंह सरना और हरविंदर सिंह सरना ने स्पष्ट किया, कि वे श्री अकाल तख्त साहिब को समर्पित हैं और श्री अकाल तख्त साहिब के प्रत्येक आदेश की इन-बिन पालना करेंगे। उन्होंने कहा, कि सिंह साहिबानों ने उनसे यही वादा लिखित में भी लिया है। परमजीत सिंह सरना ने यहां फिर स्पष्ट किया, कि वह सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों की यादगार के खिलाफ नहीं है। बल्कि वह यह नहीं चाहते हैं, कि गुरुओं के शहीदी स्थल में किसी अन्य की शहीदी यादगार की स्थापना हो। सजा सुनने के बाद भावुक हुए परमजीत सिंह सरना ने कहा, कि वह हमेशा से ही श्री अकाल तख्त साहिब को समर्पित रहें हैं। उन्होंने कहा, कि उन्हें श्री अकाल तख्त साहिब से जो भी हुकुम हुआ है, वह उन्हें मंजूर है।  
सरना बन्धु श्री अकाल तख्त साहिब के सामने नतमस्तक

Thursday, June 6, 2013

अटल बि‍हारी वाजपेयी हि‍न्‍दी वि‍श्‍वविद्यालय

06-जून-2013 17:02 IST
राष्‍ट्रपति‍ नेरखी आधारशि‍ला 
राष्‍ट्रपति‍श्री प्रणब मुखर्जी ने आज भोपाल में अटल बि‍हारी वाजपेयी हि‍न्‍दी वि‍श्‍ववि‍द्यालय की आधारशि‍ला रखी। 

श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि‍सरकार तथा जनता के बीच भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सामाजिक कल्याण तथा विकास के कार्यक्रमों की सफलता भाषा पर निर्भर करती है। इसलिए हमें हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए। हमारे राष्ट्र को जोड़ने में हिंदी का अह्म योगदान है। यह भारत की सामाजिक तथा सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। 

राष्‍ट्रपति‍महोदय ने कहा कि‍समाज और राष्ट्र के विकास में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। महिलाओं और बच्चों के प्रति बढ़ते अपराध अत्‍यंत चिंता का वि‍षय हैं। इसके अलावा, हमारे समाज को आत्मचिन्तन करते हुए नैतिकता में हो रहे पतन को भी रोकने की जरूरत है। हमारे विश्वविद्यालयों को नैतिक चुनौतियों का सामना करने के लिए एक अभियान चलाना होगा। उन्‍होंने कहा कि‍हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे युवाओं में देश के प्रति प्रेम; दायित्वों का निर्वाह; सभी के प्रति करुणा; भिन्नताओं का सम्मान; महिलाओं और बुजुर्गों का आदर; जीवन में सच्चाई और ईमानदारी; आचरण में अनुशासन तथा कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदारी की भावना हो। 

श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि‍2010-20 के दशक को अभि‍नव प्रयोग का दशक घोषि‍त कि‍या गया है। उन्‍होंने कहा कि‍पिछले महीने, मुझे उत्तर प्रदेश और असम के दो केंद्रीय विश्वविद्यालयों में इनोवेशन क्लबों के उद्घाटन का अवसर मिला। उन्‍होंने कहा कि‍ मैंने विश्वविद्यालयों में आयोजित प्रदर्शनियों को भी देखा। उन्‍होंने वि‍श्‍ववि‍द्यालय से आग्रह कि‍या कि‍वह अपने यहां भी नवान्वेषण संस्कृति शुरू करने के लिए पहल करे। 

इस अवसर पर 'अटल संवाद' नामक एक न्‍यूज़लेटर भी जारी कि‍या गया, जि‍सकी पहली प्रति‍राष्‍ट्रपति‍महोदय को भेंट की गई। (PIB)

वि. कासोटिया/अरुण/मनीषा-2659

Thursday, May 30, 2013

Monday, May 27, 2013

हास्‍य व्‍यंग्‍य शैली के जादूगर अल्‍हड़ बीकानेरी

16-मई-2013 20:16 IST
विशेष लेख                                                        -अशोक शर्मा     
Courtesy Photo
शब्‍द को पूरी सामर्थ्य के साथ कविता में स्‍थापित करने में माहिर अल्‍हड़ बीकानेरी की इसी प्रतिभा ने उन्‍हें एक तरफ तो गजलों के उस्‍ताद के रूप में, वहीं दूसरी ओर हास्‍यरस में देश के सर्वाधिक सिद्ध रचनाकार के रूप में भी मान्‍यता दिलवाई। उनकी कविताओं में फूलों की महक और कांटों की चुभन, दोनों ही हैं। छंद, गीत, गजल और पैरोडियों के रचयिता अल्‍हड़ जी ऐसे अनूठे कवि थे, जिन्‍होंने हास्‍य को गेय बनाने की परंपरा की भी शुरुआत की। समाज को उन्‍होंने कविताओं की प्रयोगशाला बनाया। उनके कवि मन की कोमल कल्‍पनाएं जब यथार्थ की पथरीली जमीन से टकरातीं, तो तीक्ष्ण व्‍यंग्‍य की व्‍युत्‍पत्ति सहज भाव से हो जाती।

अल्हड़ जी एक ऐसे छंद शिल्पी थे, जिन्हें छंद शास्त्र का व्यापक ज्ञान था। अपनी पुस्‍तक 'घाट-घाट घूमे' में अल्‍हड़ जी लिखते हैं, ''नई कविता के इस युग में भी छंद का मोह मैं नहीं छोड़ पाया हूं, छंद के बिना कविता की गति, मेरे विचार से ऐसी ही है, जैसे घुंघरुओं के बिना किसी नृत्‍यांगना का नृत्‍य..... '' वे अपनी हर कविता को छंद में लिखते थे और कवि सम्‍मेलनों के मंचों पर उसे गाकर प्रस्‍तुत करते थे। वह एक ऐसे छंद शिल्‍पी थे, जिन्हें छंद शास्‍त्र का पूरा ज्ञान था। यही नहीं गज़ल लिखने वाले कवियों और शायरों के लिए उन्‍होंने गज़ल का पिंगल शास्‍त्र भी लिखा, जो उनकी पुस्‍तक 'ठाठ गज़ल के' में प्रकाशित हुआ।   
     17 मई, 1937 को हरियाणा के रेवाड़ी जिले के बीकानेर गांव में जन्‍मे प्रख्‍यात हास्‍य कवि अल्‍हड़ जी का असली नाम श्री श्‍याम लाल शर्मा था। सन् 1954 में उन्‍होंने हरियाणा की मैट्रिक परीक्षा में 86 प्रतिशत अंक प्राप्‍त करके पूरे प्रदेश में पहला स्‍थान प्राप्‍त किया था। मैट्रिक करने के पश्‍चात उन्‍होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की लेकिन ईश्‍वर को तो कुछ और ही मंजूर था और इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष की परीक्षा में वे फेल हो गये। इसी दौरान मैट्रिक की परीक्षा में सर्वश्रेष्‍ठ प्रदर्शन की वजह से उन्‍हें डाक तार विभाग में क्‍लर्क की नौकरी मिल गई और दिल्‍ली के कश्‍मीरी गेट स्थित जी.पी.ओ. पोस्‍ट आफिस में उन्‍होंने डाक तार विभाग में नौकरी शुरू की।
इसी दौरान उनका सम्‍पर्क दिल्‍ली के मशहूर कव्‍वाल श्री नहीफ देहलवी से हुआ और उन्‍होंने 1962 से माहिर बीकानेरी उपनाम से ऊर्दू में गज़लें लिखनी शुरू कीं। उनका गज़लें लिखने का सिलसिला 1967 तक चलता रहा। 'रेत पर जहाज' गजल संग्रह में प्रकाशित एक गजल दिल को छूने वाली है :
     ''मरुस्‍थल तो मनाता है नदी को
     तरस लेकिन कब आता है नदी को
     नए शाइर-सा ये गुस्‍ताख झरना
     गजल अपनी सुनाता है नदी को
     हिमाकत देखिए इक बुलबुले की
     इशारों पर नचाता है नदी को''

     एक कवि सम्‍मेलन में हास्‍य कवि काका हाथरसी की फुलझडि़यां सुनकर वे अत्‍यधिक प्रभावित हुये। अपनी पुस्‍तक ''अभी हंसता हूं'' में अल्‍हड़ जी लिखते हैं, मैंने भी गम्‍भीर गीतों और गजलों को विराम देते हुए ''कह अल्‍हड़ कविराय'' की शैली में सैंकड़ों फुलझडि़यां लिख मारीं।''  यही वह मोड़ था, जिसने उन्‍हें माहिर बीकानेर बना दिया और उन्‍होंने हास्‍य कवितायें लिखनी शुरू की। धर्मयुग में उनका मुक्‍तक पहली बार प्रकाशित हुआ। वह इस प्रकार था-
  ''कोई कोठी है न कोई प्‍लाट है
  दोस्‍तो अपना निराला ठाठ है।
  एक बीवी तीन बच्‍चे और हम
  पाँच प्राणी एक टूटी खाट है। ''
इसी तरह एक अन्‍य खूबसूरत गजल में अल्‍हड़ जी कहते हैं :
     ''इठलाई घास
     तभी लेखनी की प्‍यास जगी
     लिख मारी घास पे गजल
     मेरे राम जी''

     यह अल्‍हड़ जी की प्रतिभा और लगन का ही करिश्‍मा था कि सन् 1970 आते-आते वे देश में एक लोकप्रिय हास्‍य कवि के रूप में प्रतिष्ठित हो गये। काव्‍य शुरू श्री गोपाल प्रसाद व्‍याज जी के मार्गदर्शन में अल्‍हड़ जी ने अनूठी हास्‍य कवितायें लिख कर उनकी अपेक्षाओं पर अपने को खरा साबित किया। अल्‍हड़ जी ने हिन्‍दी हास्‍य कविता के क्षेत्र में जो विशिष्‍ट उपलब्धियां प्राप्‍त कीं, उनमें 'साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान' के सम्‍पादक श्री मनोहर श्‍याम जोशी, 'धर्मयुग' के सम्‍पादक श्री धर्मवीर भारती और 'कादम्बिनी' के संपादक श्री राजेन्‍द्र अवस्‍थी की विशेष भूमिका रही। अल्‍हड़ जी की कवितायें 'लोट पोट', 'दीवाना तेज', 'साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान', 'कादम्बिनी', और 'धर्मयुग' जैसी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हुईं। उन्‍हीं दिनों अल्‍हड़ जी की कविता 'हर हाल में खुश हैं' जब 'साप्‍ताहिक हिंदुस्‍तान में छपी तो यह कविता पाठकों द्वारा बहुत पसंद की गई।
   
Courtesy Photo
अल्‍हड़ जी अपनी हास्‍य कविताओं में सामाजिक और राजनैतिक विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया। अपनी बात को कविता के माध्‍यम से वे बहुत ही सहज रूप से अभिव्‍यक्‍त करते थे। श्री अल्‍हड़ बीकानेरी ने हास्‍य- व्‍यंग्‍य कवितायें न सिर्फ हिन्‍दी बल्कि ऊर्दू, हरियाणवी संस्कृत भाषाओं में भी लिखीं और ये रचनायें कवि-सम्‍मेलनों में अत्‍यंत लोकप्रिय हुईं। उनके पास कमाल का बिंब विधान था। राजनीतिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्‍य में उनकी यह टिप्‍पणी देखिए :

     ''उल्‍लू ने बढ़ के हंस की थामी नकेल है
     कुदरत का है कमाल मुकद़्दर का खेल है''

     इसी तरह महंगाई पर पौराणिक संदर्भों का सहारा लेकर वे खूबसूरती से अपनी बात कहते हैं :
     ''बूढ़े विश्‍वामित्रों की हो सफल तपस्‍या कैसे
     चपल मेनका-सी महंगाई फिरे फुदकती ऐसे
     जैसे घोड़ी बिना लगाम, सीताराम, राधेश्‍याम
     भज मन, बमभोले का नाम, सीताराम, राधेश्‍याम''

     अल्‍हड़ जी को 'ठिठोली पुरस्‍कार', 'काका हाथरसी पुरस्‍कार', 'टेपा समान', हरियाणा गौरव समान' आदि पुरस्‍कारों से सम्‍मानित किया गया। अनेकों पुरस्‍कार तथा सम्‍मान प्राप्‍त करने वाले अल्‍हड़ जी विनम्रता की प्रतिमूर्ति थे और वे बहुत ही सरल स्‍वभाव के थे। अल्‍हड़ जी की प्रकाशित पुस्‍तकें हैं- 'भज प्‍यारे तू सीताराम', 'घाट-घाट घमू', 'अभी हंसता हूं', 'अब तो आंसू पोंछ', 'भैंसा पीवे सोमरस', 'ठाठ गज़ल के', 'रेत पर जहाज़', 'अनझुए हाथ', 'खोल न देना द्वार', 'जय मैडम की बोल रे', 'बैस्‍ट ऑफ अल्‍हड़ बीकानेरी' और 'मन मस्‍त हुआ'। अल्‍हड़ जी की हास्‍य-कव्‍वाली' 'मत पूछिये फुर्सत की घडि़या हम कैसे गुजारा करते हैं' और हरियाणावी कविता 'अनपढ़ धन्‍नों' ने कवि-सम्‍मेलनों के मंचों पर लोकप्रियता के नये कीर्तिमान स्‍थापित किये।
     लगभग 50 वर्षों से अधिक की काव्‍य यात्रा में उनकी 12 पुस्‍तकें प्रकाशित हुईं और वे जीवन के अंतिम समय तक काव्‍य रचना में व्‍यस्त रहे। डाक तार विभाग में अपनी नौकरी भी उन्होंने पूरी की और वे दिल्ली के पटेल चौक स्थित डाक तार मुख्‍यालय से सहायक पोस्ट मास्टर के पद से सेवानिवृत्‍त हुये। वर्ष 2009 के जून मास में क्रूर काल ने देश के हास्य व्यंग्य के इस महान कवि को हमसे छीन लिया।(PIB)
*लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं।
वि.कासोटिया/रीता/सुनीता

Sunday, May 26, 2013

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले की निंदा

26-मई-2013 16:36 IST
ऐसी घटनाएं हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के विरूद्ध हैं
प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के संदेश का अनूदित पाठ इस प्रकार है: 
"मैं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले की कड़ी निंदा करता हूं। मैं उन लोगों के परिवारों के प्रति गहरी सहानुभूति प्रकट करता हूं जिन्होंने अपनी जान कुर्बान कर दी। मैं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री विद्याचरण शुक्ल सहित इस कायरतापूर्ण हमले में घायल लोगों के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार के लिए दुआ करता हूं। 

मैंने राज्य के मुख्यमंत्री से बात की है और उनसे अनुरोध किया है कि घायलों को हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाए तथा अपहृत लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। 

मैं हमलावरों से अपील करता हूं कि अपहृत लोगों को जल्द से जल्द छोड़ दें। 

ऐसी घटनाएं हमारे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के विरूद्ध हैं। सरकार किसी भी तरह की हिंसा के दोषी लोगों पर कड़ी कार्रवाई करेगी।" (PIB)
***
वि. कासोटिया/प्रदीप/सतपाल/शदीद- 2506


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सरकार के विरूद्ध युद्ध की तैयारी कर रहे नक्‍सलवादी                                 लाल सलाम 



Wednesday, April 24, 2013

मालवीय जी और हि‍न्‍दी

06-अप्रैल-2013 20:17 IST
वि‍शेष लेख                                                                           -वि‍श्‍व नाथ त्रि‍पाठी

बहुमुखी प्रतिभा के धनी महामना पंडि‍त मदन मोहन मालवीय का कार्य क्षेत्र बहुत व्‍यापक था। सन् 1861 में प्रयाग में उनका जन्‍म हुआ था। वे एक महान देश भक्‍त, स्‍वतंत्रता सेनानी वि‍धि‍वत्‍ता, संस्‍कृत वाड्.मय और अंग्रेजी के वि‍द्वान, शि‍क्षावि‍द , पत्रकार और प्रखर वक्‍ता थे। उस युग में 25 वर्ष की आयु में उनमें इतनी राष्‍ट्रीय चेतना थी कि‍ उन्‍होंने 1886 में भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधि‍वेशन में भाग लि‍या और उसे संबोधि‍त कि‍या। वे सन् 1909, 1918, 1932 और 1933 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्‍यक्ष चुने गए। सन् 1931 में उन्‍होंने दूसरे गोलमेज सम्‍मेलन में भारत का प्रतिनिधित्‍व भी कि‍या।
  राष्‍ट्रीय आंदोलन में अपना पूर्ण्‍ योगदान देने के उद्देश्‍य से महामना ने 1909 में वकालत छोड़ दी यदयपि‍ उस समय वे इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय में पंडित मोती लाल नेहरू और सर सुन्‍दर लाल जैसे प्रथम श्रेणी के वकीलों में गि‍ने जाते थे। लकि‍न दस साल बाद उन्‍होंने चौरा-चौरी कांड के मृत्‍युदण्‍ड के सजायाफ्ता 156 बागी स्‍वतंत्रता सेनानियों की पैरवी की और उनमें से 150 को बरी करा लि‍या।
  यदि‍ कभी कोई इति‍हासकार स्‍वतंत्रता आंदोलन का वास्‍ति‍वक मूल्‍यांकन करेगा तो महामना का योगदान लोकमान्‍य ति‍लक और महात्‍मा गांधी के समकक्ष आंकने को बाध्‍य होगा। लेकि‍न इसे एक वि‍डम्‍बना ही कहना चाहि‍ए कि‍ उस देश में उनका नाम अधि‍कांश लोग केवल ‘बनारस हि‍न्‍दू वि‍श्‍ववि‍दयालय’ के संस्‍थापाक तथा एक महान शि‍क्षावि‍द् के रूप में ही जानते हैं। वास्‍तव में महामना अपने द्वारा कि‍ये गए कार्यों का न तो स्‍वयं प्रचार करते थे और न चाहते थे कि उनके द्वारा किए गए सद्कार्यों का कोई दूसरा भी प्रचार करें। वे सही मायने में एक कर्मयोगी थे। मालवीय जी अपने द्वारा शुरू कि‍ये कार्य को कि‍सी योग्‍य व्‍यक्‍ति‍ को सौंपकर दूसरे नए कार्य में जुट जाते थे। उनके नाम का कहीं उल्‍लेख न हो इस बात पर वह इतना ध्‍यान देते थे कि अपने  बनाए अपने घरों के बाहर भी उन्‍होंने अपना नाम कभी नहीं लि‍खवाया।
    19 वीं शताब्‍दी में नव जागरण और राष्‍ट्रीय चेतना का स्‍फुरण हो रहा था। एक तरफ युवकों में राष्‍ट्रीय चेतना अंकुरि‍त हो रही थी तो दूसरी तरफ मैकाले के जोर देने पर कम्‍पनी सरकार ने 1835 में अंग्रेजी शि‍क्षा प्रचार का प्रस्‍ताव पास कर दि‍या, एतदर्थ देश में यत्र-तत्र अंग्रेजी के स्‍कूल खोले जाने लगे। अब प्रश्‍न उठा अदालती भाषा का और स्‍कूलों में हि‍न्‍दी को एक अनिवार्य वि‍षय के रूप में रखने का। इन दोनों बातों में हि‍न्‍दी का घोर वि‍रोध हुआ। इस वि‍रोध की कहानी भी बहुत रोचक है। मुगलकाल में अदालतों की भाषा फारसी चल आ रही थी। अंग्रेजी-शासन काल में भी प्रारंभ में यही परम्‍परा चलती रही कि‍न्‍तु सर्वसाधारण जनता की फारसी-भाषा और उसकी लि‍पि‍ सम्‍बन्‍धी कठि‍नाइयों को देखकर सन् 1836 में कम्‍पनी सरकार ने आज्ञा जारी की कि‍ सारा अदालती काम देश की प्रचलि‍त भाषाओं में हुआ करे। इसके परि‍णाम स्‍वरूप संयुक्‍त प्राइज़ में हि‍न्‍दी खड़ी बोली को वहां की अदालती भाषा स्‍वीकार कर लि‍या गया। सारा अदालती कार्य हि‍न्‍दी भाषा और लि‍पि‍ में होने लगा। कम्‍पनी सरकार भाषा संबंधी इस नीति‍ पर चि‍रकाल तक न टि‍क सकी। केवल एक साल के पश्‍चात् उत्‍तरी भारत के सब दफ्तरों की भाषा उर्दू  कर दी गई। यह सब मुसलमानों के वि‍रोध के कारण हुआ। इस प्रकार मान-मर्यादा और आजीवि‍का की दृष्‍टि‍ से सबके लि‍ये उर्दू सीखना आवश्‍यक हो गया और देश-भाषा के नाम पर स्‍कूलों में छात्रों को उर्दू पढाई जाने लगी। इस प्रकार हि‍न्‍दी तथा अन्‍य भारतीय भाषाओं के पढ़ने वालों की संख्‍या दि‍न प्रतीदि‍न  कम होने लगे।
हि‍न्‍दी को अदालतों से बाहर नि‍कालने के कार्य में तो मुसलमानों को सफलता मि‍ल चुकी थी, अब वे इसे शि‍क्षा क्षेत्र से बाहर नि‍कालने में प्रयत्‍नशील थे। जब सरकार स्‍कूलों और मदरसों में हि‍न्‍दी के अनि‍वार्य रूप से पढ़ाये जाने के प्रस्‍ताव पर वि‍चार कर रही थीं तब प्रभावशाली मुसलमानों-सर सैय्यद अहमद खां आदि‍ ने उसका उ्ग्र वि‍रोध कि‍या। अन्‍तत: 1884 में सरकार को अपना वि‍चार छोड़ना पडा। सर सैय्यद अहमद खां का अंग्रेजों के बीच बड़ा मान था। वे हि‍न्‍दी को एक ‘गंवारू’ भाषा समझते थे। वे अंग्रेजी को उर्दू की ओर झुकाने की लगातार कोशि‍श करते रहे। इसी समय राजा शि‍व प्रसाद ‘सि‍तारे हि‍न्‍द’ का इस क्षेत्र में आगमन हुआ। वे भी अंग्रेजों के कृपा पात्र थे और हि‍न्‍दी के परम पक्षपाती थे। अंत: हि‍न्‍दी की रक्षा के लि‍ए उन्‍हें खड़ा होना पड़ा। वे इस कार्य में बराबर चेष्‍ठाशील रहे। यह झगड़ा बीसों वर्ष तक ‘भारतेन्‍दु’ हरि‍श्‍चंद्र के समय तक रहा।
इस हि‍न्‍दी-उर्दू संघर्ष में राजा शि‍व प्रसाद ‘सि‍तारे हि‍न्‍द’ के समय में ही राजा लक्ष्‍मण सिंह भी हि‍न्‍दी के संरक्षक बन कर सामने आये। अनेक वि‍घ्‍न-बाधाओं के होने पर भी शि‍व प्रसाद ने हि‍न्‍दी के उद्धार-कार्य में महत्‍वपूर्ण योगदान दि‍या। इन्‍हीं के प्रयत्‍नों से कम्‍पनी सरकार को स्‍कूलों में हि‍न्‍दी शि‍क्षा को स्‍थान देना पडा।
     जि‍स प्रकार दोनों राजाओं के सप्रयत्‍नों से संयुक्‍त प्रान्‍त में हि‍न्‍दी का प्रचार कार्य आरम्‍भ हुआ, उसी प्रकार उनके समसामयि‍क बाबू नवीन चन्‍द्र राय ने पंजाब में समाज सुधार तथा हि‍न्‍दी-प्रचार कार्य आरम्‍भ कि‍या। बंगाल में राजा राममोहन राय वेदान्‍त और उपि‍नषदों का ज्ञान लेकर आगे आये और उन्‍होंने वहां ‘ब्रह्म-समाज’ की स्‍थापना की। उन्‍होंने वेदान्‍त-सूत्र का हि‍न्‍दी में अनुवाद प्रकाशि‍त कराया।
     उधर उत्‍तरी भारत में स्‍वामी दयानन्‍द सरस्‍वती ने वैदि‍क धर्म-प्रचार और ‘आर्य समाज’ की स्‍थापना कर जनता को अपनी ओर आकार्षित कि‍या। उन्‍होंने हि‍न्‍दुस्‍तान को आर्यावर्त तथा हि‍न्‍दी को आर्य भाषा का नाम दि‍या तथा प्रत्‍येक आर्य के लि‍ए आर्यभाषा का पढ़ना आवश्‍यक ठहराया। स्‍वामी दयानन्‍द तथा उनके द्वारा स्‍थापि‍त ‘आर्य समाज’ ने हि‍न्‍दी भाषा के प्रचार में जो महत्‍वपूर्ण कार्य कि‍या, वह चि‍रस्‍मरणीय  है।  
अब देश में इस प्रकार का वातावरण बन रहा था कि‍ संयुक्‍त प्रान्‍त (आज के उत्‍तर प्रदेश और उत्‍तराखंड) के बुद्धि‍जीवि‍यों के लि‍ए यह बर्दाश्‍त करना असंभव होने लगा था कि‍ सुसंस्‍कृत तथा समृद्ध भाषा हि‍न्‍दी के होते हुए भी पराधीन होने के कारण प्रान्‍त की जनता को समस्‍त राजकीय कार्य में विदेशी भाषा फारसी अथवा अंग्रेजी का प्रयोग करना पड़े। अंत: 19 वीं शताब्‍दी के मध्‍य तक आते-आते अनेक स्‍वाभि‍मानी देशभक्‍त बुद्धि‍जीवि‍यों ने इस बात का बीड़ा उठाया कि‍ प्रदेश में वि‍देशी भाषा की जगह ‘नि‍ज भाषा’ के प्रयोग की शासकीय अनुमति‍ मि‍ल जाय। इस कड़ी में अत्‍यन्‍त महातवपूर्ण प्रयास राजा शि‍वप्रसाद द्वारा भी सन् 1868 में कि‍या गया जो उपर्युक्‍त वि‍दशेी लि‍पि‍यों के हि‍मायति‍यों के वि‍रोध के कारण सफल न हो सका।
     राजा शि‍व प्रसाद की भांति‍ बहुतों ने अदालतों में देवनागरी लि‍पि‍ के प्रवेश के लि‍ये जब-तब छि‍टपुट प्रयत्‍न कि‍या लेकि‍न सभी असफल रहे। 1848 में प्रयाग में हि‍न्‍दी उद्धारि‍णी-प्रति‍नि‍धि‍ मध्‍यसभा की स्‍थापना हुई। मालवीय जी ने इसमें जी खोलकर काम कि‍या, व्‍यारव्‍यान दि‍ए, लेख लि‍खे और अपने मि‍त्रों को भी उस काम में भाग लेने के लि‍ए उत्‍प्रेरि‍त कि‍या। उन्‍होंने नए सि‍रे से अदालतों में नागरी के प्रवेश का प्रयन्‍त कि‍या। मालवीय जी ने इस बात पर गम्‍भीरता से वि‍चार कि‍या कि‍ अब तक इस दि‍शा में क्‍यों सफलता नहीं मि‍ली। महामना ने व्‍यवस्थि‍त ढंग से इस काम को हाथ में लि‍या। एक ओर तो उन्‍होंने देवनागरी लि‍पि‍ के पक्ष में हस्‍ताक्षर अभि‍यान की योजना शुरू की दूसरी ओर बहुत सी सामग्री एकत्रि‍त कर ‘कोर्ट कैरेक्‍टर एण्‍ड प्राइमरी एजूकेशन’ नाम की पुस्‍तक लि‍खी। इसमें हि‍न्‍दी का प्रयोग सरकारी कामकाज में क्‍यों कि‍या जाय इसकी प्रचुर सामग्री थी।
     इसी प्रकार आधुनि‍क हि‍न्‍दी के जन्‍मदाता ‘भारतेन्‍दु’ हरिश्‍चंद्र द्वारा काशी में स्‍थापि‍त ‘नागर प्रचारि‍णी सभा’ भी नागरी लि‍पि‍ के प्रचार-प्रसार में लगी थी। कि‍न्‍तु मुचि‍त मार्गदर्शन प्राप्‍त न होने के कारण उसकी स्‍थि‍ति‍  बि‍गड़ रही थी। मालवीय जी ने ‘नागरी प्रचारि‍णी सभा’ की गति‍वि‍धि‍यों में आरंभ से ही अत्‍यधि‍क रूचि‍ ली तथा ‘नागरी प्रचारि‍णी सभा’ को भी हि‍न्‍दी के प्रचार-प्रसार के कार्य में प्रगति‍शील बनाकर उसे एक प्रकार से पुनर्जीवि‍त कर दि‍या।
     जब मालवीय जी नागरी प्रचार आन्‍दोलन के मुखि‍या बने तब हि‍न्‍दी के सबसे बड़े वि‍रोधी सर सैययद अहमद खां का इन्‍ति‍काल हो चुका था, पर मोहसुनुल मुल्‍क ने नागरी के वि‍रूद्ध घनघोर आन्‍दोलन शुरू कर दि‍या। लॉर्ड कर्जन की सरकार भी उनकी ओर झुकी जा रही थी पर मालवीय जी से टक्‍कर लेना भी टेढ़ी खीर थी। दि‍न-रात एक करके अपनी वकालत के सुनहरे दि‍नों में धुन के साथ मालवीय जी ने गहरी छानबीन के साथ नागरी के पक्ष में प्रमाण और आकड़े इकट्ठे कि‍ये। सैकड़ों जगह डेपुटेशन भेजे गए और हि‍न्‍दी भाषा और नागरी लि‍पि‍ की सुन्‍दरता, सहजता और उपयोगि‍ता दि‍खाई गई। मालवीय जी ने वकालत करते हुए भी अपने मित्र पंडि‍त श्रीकृण जोशी के साथ मि‍लकर घोर परि‍श्रम कि‍या। अपने पास से रूपये खर्च करके उपरोक्‍त कोर्ट लि‍पि‍ का इति‍हास, वि‍गत अधि‍कारि‍यों की सम्‍मति‍यां एकत्र करके एक बड़ी सुन्‍दर पुस्‍तक ‘कोर्ट कैरेक्‍टर एण्‍ड प्रायमरी एजुकेशन इन नार्थ वेस्‍टर्न प्रौवि‍न्‍सेज’ लि‍खी। यह अम्‍यर्थना लेख लेकर 2 मार्च सन् 1898 ई. को अयोध्‍या नरेश महराजा प्रताप नारायण सि‍हं मांडा के राजा राम प्रसाद सि‍हं, आवागढ़ के राजा बलवंत, डॉ. सुन्‍दर लाल आदि‍ के साथ मालवीय जी का एक दल गवर्न्‍मेंट हाउस प्रयाग में छोटे लाट साहब सर एन्‍टोनी मेक्‍डॉलेन से मि‍ला। मालवीय जी की मेहनत सफल हो गई। उनकी सब बातें मान ली गईं। अन्‍त में 18 अप्रैल सन् 1900 ई. को सर ए.पी. मैक्‍डॉलेन ने एक वि‍ज्ञप्‍ति‍  (गवर्न्‍मेंन गजट) नि‍काली जि‍ससे अदालतों में तथा शासकीय कार्यों में नागरी को भी स्‍थान मि‍ल गया। लेकि‍न देश के हि‍न्‍दी वि‍रोधी लोगों ने इस पर खूब ऊधम मचाया। इस आदेश के वि‍रोध में जगह-जगह सभाएं की गई। प्रस्‍ताव भेजे गए कि‍ हि‍न्‍दी को इस प्रकार स्‍वीकार न कि‍या जाय। पर मालवीय जी भी अपने अभि‍यान में डटे रहे। हि‍न्‍दी के पक्ष में भी सभाएं हुईं प्रस्‍ताव भेजे गए। अत: लाट साबह तनि‍क भी वि‍चलि‍त न हुए और अन्‍त में बड़े लाट साहब की अनुमति‍ से यह नि‍यम बन गया कि‍ सभी लोग अपनी अर्जी, शि‍कायत की दरखास्‍त चाहे हि‍न्‍दी या फारसी में दे सकते हैं। अदालतों, शासकीय कार्यालयों को निर्देश दे दि‍या गया कि‍ सभी कागजात जैसे सम्‍मन आदि‍, जो सरकार की ओर से जनता के लि‍ए नि‍काले जायेंगे वह दोनों लि‍पि‍यों यानी नागरी और फारसी में लि‍खे अथवा भरे होंगे। सरकार ने इसके साथ ही यह भी ऐलान कर दि‍या कि‍ आगे कि‍सी भी व्‍यक्‍ति‍  को तभी सरकारी नौकरी मि‍ल सकेगी जब वह हि‍न्‍दी भाषा का भी जानकार हो। जो कर्मचारी हि‍न्‍दी नहीं जानते थे उन्‍हें एक साल के भीतर हि‍न्‍दी सीखने को कहा गया अन्‍यथा वे नौकरी से अलग कर दि‍ए जायेंगे। इस प्रकार मालवीय जी के अथक प्रयास से हि‍न्‍दी का प्रवेश संयुक्‍त प्रान्‍त के शासकीय कार्यालयों में हुआ।
     महामना हि‍न्‍दी के प्रति समर्पित थे। वे चाहते थे कि‍ शि‍क्षा का माध्‍यम भी हि‍न्‍दी हो। सन् 1882 ई्. में अंग्रेजों ने एक शि‍क्षा कमीशन बैठाया। इसका मुख्‍य उद्देश्‍य था कि‍ यह नि‍धार्रि‍त हो कि‍ शि‍क्षा का माध्‍यम क्‍या हो और शि‍क्षा कैसे दी जाये? इस आयोग में साक्ष्‍य के लिए महामना पंडित मदनमोहन मालवीय तथा ‘भारतेन्‍दु’ हरि‍श्‍चन्‍द्र चुने गए थे। ‘भारतेन्‍दु’ अस्‍वस्‍थता के कारण आयोग के सम्‍मुख उपस्‍थि‍त  नहीं हो पाये। उन्‍होंने अपना लि‍खि‍त बयान आयोग को भेजा था। परन्‍तु महामना आयोग के सामने उपस्‍थि‍त हुए थे। उन्‍होंने अपने बयान में इस बात पर जोर दि‍या था कि‍ शि‍क्षा समस्‍त क्षेत्रों में दी जाय और वह हि‍न्‍दी भाषा में हो।
     महामना वर्ष 1886 ई. से कांग्रेस से जुडकर देश की राजनीति‍ में आजादी की लड़ाई का हि‍स्‍सा बन चुके थे। तभी से उनका सम्‍पर्क देश के बड़े राजनेताओं से हो गया था। धीरे-धीरे उनको देश के बड़े राजनेता के रूप में जाना जाने लगा। भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के 1909 के अधि‍वेशन के वह अध्‍यक्ष चुने गए। देश के व्‍यापक भ्रमण और गहन जन सर्म्‍पक से उन्‍हें यह स्‍पष्‍ट  दि‍खने लगा कि‍ अनेक भाषाओं के इस देश में भारत के स्‍वतंत्र होने पर कि‍सी एक भाषा को सम्‍पर्क भाषा के लि‍ए राष्‍ट्रभाषा का रूप लेना पड़ेगा। उन्‍होंने देखा कि‍ देश के अधि‍कांश भूभाग में अधि‍क से अधि‍क लोग कि‍सी न कि‍सी प्रकार की हि‍न्‍दी बोलते और समझते थे। जबकि‍ देश की अन्‍य भाषाएं यद्यपि उतनी ही महत्‍वपूर्ण थी पर उनका दायरा सीमि‍त था। वे इतने वि‍शाल जनसमुदाय के द्वारा बोली और समझी नहीं जाती थीं। एक स्‍वतंत्र राष्‍ट्र को जोड़ने के लिए एक राष्‍ट्र भाषा के रूप में मालवीय जी ने हि‍न्‍दी की महत्‍ता को परखा। उन्‍होंने यह भी अनुभव कि‍या कि‍ देश के अहि‍न्‍दी भाषी क्षेत्रों में लोगों को हि‍न्‍दी जानने व समझने का मौका मि‍लना चाहि‍ए। अंत: सन् 1910 ई. में महामना के प्रयासों से काशी में ‘’हि‍न्‍दी साहि‍त्‍य सम्‍मेलन’’ की स्‍थापना हुई। मालवीय जी इसके प्रथम अध्‍यक्ष बने। धीरे-धीरे पूरे देश में ‘हि‍न्‍दी साहि‍त्‍य सम्‍मेलन’ की शाखाएं खोली गईं। इसके माध्‍यम से देश के अहि‍न्‍दी भाषी क्षेत्र के लोगों को हि‍न्‍दी पढ़ने व सीखने का अवसर मि‍ला। अपने स्‍वभाव के अनुरूप मालवीय जी ने हि‍न्‍दी साहि‍त्‍य सम्‍मेलन की स्‍थापना करने के बाद इसे आगे चलाने के लि‍ए बाबू पुरूषोत्‍तम दास टण्‍डन को सौंप दि‍या।
सन् 1918 में इन्‍दौर में हुए हि‍न्‍दी साहि‍त्‍य सम्‍मेलन के अधि‍वेशन में महात्‍मा गांधी इसके अध्‍यक्ष बने। उनके नेतृत्‍व में हि‍न्‍दी के प्रचार का एक नया अध्‍याय शुरू  हुआ। उन्‍होंने दक्षि‍ण भारत में राष्‍ट्रभाषा हि‍न्‍दी-प्रचार का काम प्रारम्‍भ कि‍या। 1935 में दूसरी बार इन्‍दौर में हुए सम्‍मेलन के अधि‍वेशन को सम्‍बोधित करते हुए महात्‍मा गांधी ने अपने अध्‍यक्षीय भाषण में कहा कि‍ ‘’मेरा क्षेत्र दक्षि‍ण में हि‍न्‍दी-प्रचार है। सन् 1918 में जब आपका अधि‍वेशन यहां हुआ था तब से दक्षि‍ण में हि‍न्‍दी-प्रचार के कार्य का आरम्‍भ हुआ है।’’ महात्मा गांधी ने मालवीय जी के हि‍न्‍दी-प्रचार की प्रशंसा करते हुए कहा था ‘’सबसे पहला अधि‍वेशन सन् 1910 में हुआ था। उसके सभापति‍ मालवीय जी महाराज ही थे। उनसे बढ़ कर हि‍न्‍दी-प्रेमी भारत वर्ष में हमें कहीं नहीं मि‍लेगा। कैसा अच्‍छा होता यदि‍ वह आज भी इस पद पर होते। उनका हि‍न्‍दी प्रचार-क्षेत्र भारतव्‍यापी है; उनका हि‍न्‍दी का ज्ञान उत्‍कृष्‍ट है।’’
महात्‍मा गांधी मालवीय जी का बड़ा सम्‍मान करते थे। वे मालवीय जी के राष्‍ट्रभाषा हि‍न्‍दी सम्‍बन्‍धी वि‍चारों से पूर्णत: सहमत थे। महात्‍मा गांधी कहते थे कि‍ ‘’यह भाषा का वि‍षय बड़ा भारी और बड़ा महत्‍वपूर्ण है।’’
  अन्‍तत: हि‍न्‍दी के महत्‍व को सभी ने समझा। कालान्‍तर में कांग्रेस के अधि‍वेशन में हि‍न्‍दी को ही राष्‍ट्रभाषा बनाने के प्रस्‍ताव को स्‍वीकृति‍ प्राप्‍त हुई। स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के बाद 14 सि‍तम्‍बर 1949 के दि‍न हि‍न्‍दी को भारत की राजभाषा के रूप में स्‍वीकृत कि‍या गया। भारतीय संवि‍धान में राजभाषा हि‍न्‍दी के प्रबन्‍ध में अनुच्‍छेद 343 (1) के अनुसार संघ की राजभाषा हि‍न्‍दी और लि‍पि‍ देवनागरी होगी।
     आज इस देश के लोगों को शायद इस बात का अहसास भी न होगा कि‍ भारत में हि‍न्‍दी को वि‍श्‍ववि‍दयालयों में एक वि‍षय के रूप में कोई भी मान्‍यता प्राप्‍त नहीं थी। मालवीय जी ने बनारस हि‍न्‍दू वि‍श्‍ववि‍दयालय में हि‍न्‍दी को सर्वप्रथम एक वि‍षय के रूप में मान्‍यता दी। आज  हि‍न्‍दी में पढ़ाई सारे वि‍श्‍ववि‍दयालयों में प्रचलि‍त है। हि‍न्‍दी साहि‍त्‍य के पुरोधा आचार्य रामचन्‍द्र शुक्‍ल, पं; अयोध्‍या सि‍हं उपाध्‍याय ‘हरि‍औध’, आचार्य हजारी प्रसाद द्वि‍वेदी आदि‍ इसी वि‍श्‍ववि‍दयालय के हि‍न्‍दी वि‍भाग के रत्‍न थे। मालवीय जी को हि‍न्‍दी के अखबारों का जनक कहना भी अति‍शयोक्‍ति‍ न होगी। कालाकॉकर (प्रतापगढ़) से ‘हि‍न्‍दुस्‍तान’ का संपादन करने के बाद उन्‍होंने प्रयाग से वर्ष 1907 में प्रकाशि‍त ‘अभ्‍युदय’ और उसके बाद ‘मर्यादा’ का संपादन कि‍या। इन समाचार पत्रों और इनके संपादकीय को जो सफलता और लोकप्रि‍यता मि‍ली वह अन्‍य समाचार पत्रों के लि‍ये मार्गदर्शक बनी।
--------वि‍श्‍व नाथ त्रि‍पाठी
    बी-47 कौशाम्‍बी, गाजि‍याबाद-201010
फोन: 0120-4372290


वि. कासोटिया/ सतपाल/दयाशंकर/संजना-62