Monday, August 15, 2022

चल अकेला गाते गाते चले गए डाक्टर भारत

उनके बिन सब मेले सूने हो गए


लुधियाना
: 14 अगस्त 2022: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::

कल फिर आ रही है 15 अगस्त की तारीख। स्वतंत्रता दिवस के आयोजन कल भी होंगें। कल फिर फहराए जाएंगे तिरंगे लेकिन डाक्टर भारत के बिन सब सूना लगेगा कल भी। वह इस बरस भी नज़र नहीं आएंगे। उन्होंने पूरी उम्र होश संभालते ही स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के आयोजन मनाने शुरू कर दिए थे। हम लोग कई बरसों से इस आयोजन को लुधियाना के सिविल लाईन्स इलाके में स्थित न्यू कुंदनपुरी इलाके में देख रहे थे। इसके इलावा अयोध्या, फैज़ाबाद, आज़मगढ़, दिल्ली, मुंबई, भोपाल और कई अन्य जगहों पर भी भी डाक्टर भारत एफ आई बी के बैनर तले इस तरह के आयोजन करवाते रहे। इस बार भी उनकी अनुपस्थिति खटकती रहेगी। प्रस्तुत हैं सबसे पहले उनकी स्मृति में कुछ पंक्तियां: 

डाक्टर भारत ने झंडा उठाया था यह! 

उम्र भर हां तिरंगा झुलाया था यह!

आखिरी साँस तक वह समर्पित रहे! 

इसी की बात की, इस पर लड़ते रहे!

अपनी हर सांस इस पर न्योछावर करी!

अपनी पूरी उम्र इस के ही नाम की!

इन्हीं गलियों में झंडा फहराया था यह!

साल में दो समागम उन्हीं के तो थे!

साल में ये दो मेले उन्हीं के तो थे!

देश भक्ति के गीत वो गाते रहे!

देशभक्ति की बातें जगाते रहे!

सबसे मिलते रहे और मिलाते रहे!

झंडा ऊंचा रहे ये ही गाते रहे!

हर एक घर में तिरंगा पहुँचाया था यह!

ज़िंदगी भर वो खुद मुश्किलों में रहे!

फिर भी हंसते रहे, मुस्कराते रहे!

देश भक्ति के मेले लगाते रहे!

देश भक्ति की महफिल सजाते रहे!

चाय समोसों के लंगर लगाते रहे!

देश भक्ति के नारे लगाते रहे!

देश भक्ति का मकसद जगाया था यह!

उनके बिन आज सूनी न्यू कुंदनपुरी!

उनके बिन आज वैसी कोई महफिल नहीं!

न वो तंबू. कनातें, न वो कुर्सियां, 

उनके बिन आज गीतों की महफिल नहीं!

खो गए रूठ कर हमसे जाने कहां!

वो तिरंगा न जाने किसे दे गए!

उनके बिन कैसा मौसम अब आया है यह!

15 अगस्त 2018 को स्वतंत्रता दिवस पर जो आयोजन हुआ वह भी यादगारी था। डाक्टर भारत की सहयोगी टीम में सोनू शर्मा और उनके साथी राजू बंगा और दुसरे नौजवान पूरी तरह सक्रिय थे। बेलन ब्रिगेड की अनीता शर्मा भी विशेष तौर पर उस आयोजन में आईं। भाजपा की महिला नेत्री सुधा खन्ना ने विशेष हाज़िरी लगवाई। कांग्रेस के पार्षद डाक्टर जय प्रकाश भी पहुंचे थे। पड़ोस के ही लोकप्रिय डाक्टर राज गिल्होत्रा हमेशां इस तरह के आयोजनों में सक्रिय रह कर काम करवाते लेकिन खुद परदे के पीछे बने रहते। उस समय भी डाक्टर भारत की रहनुमाई में चलने वाले जानेमाने संगठन FIB ने कहा था कि सियासत से ऊपर उठ कर तिरंगे से जुड़ा भी जाए और सभी को जोड़ा भी जाए। वो कितना पहले सक्रिय थे तिरंगे  को घर घर ले जाने के लिए। 

कभी कभी जुबां पर शिकवा शिकयत भी आता है। डाक्टर साहिब आपके बिन कौन है यहाँ---बहुत जल्दी कर दी आप ने जाने में। कितनी लम्बी योजनाएं बना लीं थी।  क्या बनेगा अब उन योजनाओं का? उन पर काम भी शुरू था लेकिन आप अचानक हम सभी से रूठ गए।  आखिर ऐसा भी क्या हुआ था? काश उस दुनिया में कोई फोन मिल जाता या उस दुनिया का कुछ पता मिल जाता। लेकिन नामुमकिन जैसा ही है सब। बस अब उनकी बातें ही याद रह गयीं। वो भी बहुत कम लोग ही कर पाते हैं। जो बातें आप ने बतायीं थी उन्हें जल्द ही कलम से सबके सामने लाना भी है। अफ़सोस जिन्होंने चाईना गेट वाली टीम में हर सहयोग का वायदा किया था वही लोग डाक्टर साहिब के जाते ही बदल गए। और और मामलों में उलझ गए। शायद यही है दुनिया। 

उनकी पुरानी तस्वीरें अक्सर सामने आ जाती हैं तो बहुत सी पुरानी याद भी दिलाती हैं। उस दौर को एक बार तो फिर से जीवंत कर देती हैं ये तस्वीरें। हर तस्वीर बहुत कुछ याद दिला देती है--

तिरंगा हमेशां ऊंचा रहे-डाक्टर भारत राम का मकसद था यह और जीवन भर रहा। उसमें कभी उन्होंने समझौता न किया।  तिरंगे की बात आती तो वह पूरी तरह अड़ जाते। उनके लिए सबसे ऊपर था तिरंगा। 

देश हमेशां सुरक्षित हाथों में रहे उनका मिशन भी रहा। उनके स्रोत और साधन सीमित थे। फिर भी वह जासूसी में काम आने वाले सामान मंगवाते रहते। छुपे हुए कैमरे उनके पास अक्सर रहते जिन्हें उन्होंने अपनी टीम के ख़ास लोगों में बांटा भी था किसी न किस खास मिशन के लिए। अगर किसी को किसी ख़ास ख़ुफ़िया मिशन पर भेजते तो खतरों का पूरा आकलन करते। छुपे रह कर एक एक्स्ट्रा टीम ले कर उसके पीछे पीछे या आसपास रहते। अपने किसी जासूस या टीम को कभी खतरे में न पड़ने देते। कभी कभी तो हम हैरान रह जाते जिस जिस की डयूटी लगाई होती उसे आगाह करते हुए कहते आज घर परिवार के साथ जहाँ जा रहे हो वहां का प्रोग्राम रद्द कर दो। खतरा है वहां। इस तरह अपने लोगों को बचा भी लेते। डाक्टर भारत को किसी का पारिवारिक प्रोग्राम कैसे पता चलता थे यह आज भी रहस्य है। 

देश भक्ति डाक्टर भारत राम  की रग रग में रची हुई थी। बहुत सी देश विरोधी वारदातों को उन्होंने समझ से पहले सूंघ लें और फिर झट से इसकी सूचना सुरक्षा तंत्र को भी देनी। आतंकी खतरों से जगह करके बहुत सी जानें बचाई। कभी कभी आतंकी लोग भी आ जाते कि जो लेना है लो लेकिन हमारे कामों में टांग मत अड़ाओ। डाक्टर भारत सब कुछ नकार देते। उल्टा उन्हें कहते जो करना है करो लेकिन निर्दोषों का खून मत बहाओ। मेरे देश की तरफ आंख उठा कर मत देखो। मैं तिरंगे के दुश्मनों से कोई समझौता नहीं कर सकता। कभी कभी तो अपनी बातों से उनका ह्रदय परिवर्तन भी कर देते। आतंकी धमकियों की प्रवाह किए बगैर उन्हें सीधी राह पर-सद मार्ग पर  लाने के लिए डाक्टर भारत हमेशां प्रयासशील रहे। 

कांग्रेस की नीतियों से उन्हें इश्क था। शायद उनकी सियासत कांग्रेस के निकट रही हो। बड़े बड़े नेताओं से वह मिलते भी रहे। उनकी आलोचना भी करते रहे। अपने समय की लौह महिला इंदिरा गांधी के फैन भी रहे। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहिब का तो बेहद आदर करते थे। उम्र भर देश उनके लिए सर्वोप्रिय रहा। आखिरी सांस तक यह भावना नहीं बदली। 

बड़े बड़े लोगों से मिलना जुलना रहा लेकिन उन्होंने कभी इसका फायदा नहीं उठाया। चाहते तो लाल बत्ती वाली गाड़ी, बंगला फ़्लैट सब ले सकते थे लेकिन नहीं। भावुक थे। दिल से सोचते थे। नफा नुकसान तो कभी नहीं सोचा उन्होंने। 

उनके लिए देश किसी इमारत का नाम नहीं था बल्कि देश की जनता थी असली भारत। समाज में एकता बनी रहे इसके लिए वह आखिरी सांस तक प्रयासशील रहे। साम्प्रदायिक और फूट डालने वालों के खिलाफ हर दिन लड़ते रहे।  फुट और नफरत की सियासत से उन्हें सख्त नफरत थी। प्रेम के पुजारी थे, प्रेम के ही दूत थे। हर तरफ प्रेम ही चाहते थे। प्रेम की रक्षा के लिए हर जंग भी लड़ सकते थे।  

डाक्टर भारत ज़िंदगी भर अभावों में रहे लेकिन मुस्कराते रहे। कोई नियमित आमदनी तो थी नहीं। फक्कड़ सवभाव लेकिन दिल में बादशाही भी। इसके बावजूद मेहमानों के लिए चायपानी का खर्चा कभी कभी हर रोज़ तीन सो रुपयों से भी ज़्यादा बढ़ जाता। किसी दिन किसी को खाना खिलाना पड़ जाता या शाम को जाम चला तो खर्चा और भी बढ़ भी जाता। जो भी आता इन्हीं बातों में खर्च हो जाता। उन्होंने दोस्तों की आवभगत में कभी कोई कसर न छोड़ी. कभी कोई कंजूसी न की। दोमोरिया  दोमोरिया पुल की मार्कीट में बहुत ही पुराने बने हुए प्रीतम ढाबे में कभी कभी शाम को ओंकार पुरी साहिब भी खर्चे पानी से हाथ खड़े कर जाते और दुसरे लोग भी। इसके बावजूद महफ़िल जारी रहती। प्रीतम ढाबे के मालिक को थोड़ी सी आशंका होती कि कि डाक्टर साहिब की जेब संकट में हैं। वह आ कर हाथ जोड़ कर कहता डाक्टर साहिब आपका अपना ही ढाबा है। कोई चिंता मत करना। हिसाब किताब होता रहेगा। और महफ़िल जारी रहती। डेस्क पर पड़ा उनका जासूसी छल्ला आसपास की खबर लेता रहता।  हम लोग नाराज़ भी होते लेकिन डाक्टर भारत मुस्करा कर सब माहौल हल्का बना देते। जवाबी सवाल करते अरे भाई कोई फैज़ाबाद से आ रहा है, कोई मुंबई से, कोई दिल्ली से तो कोई आज़मगढ़ से क़ज़ा उन्हें जलपान भी न कराया जाए? 

उम्र के आखिरी दिनों में बिजली बोर्ड वाले उनका मीटर काट गए। बिल अदा नहीं हो पाया था। इसका गहरा सदमा लगा उन्हें। वह उदास रहने लगे। बिल की रकम कुछ हज़ारों में ही थी लेकिन फिर भी बहुत बड़ी न थी। दोस्तों से मिल जल कर भी वह रकम भी अदा न हुई।

उदास थे। जिन लोगों के लिए मैंने कभी अपना कुछ न बनाया। किसी बड़े से बड़े मामले में समझौता न किया। उन लोगों ने मुझे बिल की रकम के लायक भी न समझा! एक अकाली लीडर ने कहा अच्छा ही हुआ अब जल्दी घर जाया करोगे। यूं भी पंखे की हवा से सेहत खराब होती है। उसने शायद मज़ाक में कहा था लेकिन उन बातों ने भी उनको गहरी ठेस पहुंचाई। डाक्टर भारत ने इन्हें दिल पर ले लिया। एक दिन दिल का दर्द अचानक शिद्दत से उठा और पूरी टीम को अकेला छोड़ गए। शायद कह रहे थे-यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! कभी कभी लगता है अच्छा हुआ इस मतलबी दुनिया को छोड़ गए यहां दिल की बातें कौन समझता है? लेकिन उनके बाद पैदा हुई उदासी भी नहीं जाती। 

अब पूरी टीम में कोई नहीं है उन जैसा। डाक्टर भारत FIB टीम के सक्रिय सदस्यों को चाईना गेट टीम बोला करते थे। सारी उम्र उन्होंने इस टीम के प्रेम में काटी लेकिन हम लोग उन्हें हार्ट अटैक से बचा नहीं पाए। वह अपने FIB दफ्तर से अपनी बेटी की कार से घर की तरफ गए और फिर कभी लौट कर नहीं आए। हम इंतज़ार कर रहे थे शाम हो गई अभी आए  क्यूं नहीं! उस आखिरी दिन के घटनाक्रम को सोच सोच कर स्वयं पर ही आत्म ग्लानी  होती है हम कैसे दोस्त थे उन्हें सही वक्त पर किसी महंगे अस्पताल में नहीं लेजा पाए। 

अब भी दिल में दर्द उठता है उनके जाने के बाद। कोई तो आगे आए जो उनके मिशन को आगे ले जाने को राज़ी हो। पूरे समाज के लिए अपूरणीय क्षति है उनका इस तरह चले जाना--

-----आज भी उनके पड़ोस में रहना याद आता है।  उनके बिना अब न वो सिविल लाईन्ज़ का न्यू कुंदनपुरी वाला इलाका अच्छा लगता है न ही यहाँ मोहाली का इलाका जहां हमने एकसाथ आना था। वो भी अकेले चले गए। हम भी अकेले रह गए। याद आता है वो गीत चल अकेला चल अकेला चल अकेला! तेरा मेला पीछे छूटा बाबू चल अकेला!

                  --रेक्टर कथूरिया

               पंजाब स्क्रीन मीडिया समूह

बहुत सी यादें हैं बाकी फिर कभी सही---

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