Monday, November 26, 2012

रेल क्षेत्र

26-नवंबर-2012 20:03 IST
भारत और चीन ने किए सहमति-पत्र पर हस्‍ताक्षर
भारत और चीन ने रेलवे में तकनीक सहयोग के बारे में आज एक सहमति-पत्र पर हस्‍ताक्षर किए। सहमति-पत्र पर हस्‍ताक्षर भारत की ओर से रेलवे बोर्ड के अध्‍यक्ष श्री विनय मित्‍तल और चीन की तरफ से वहां रेल मंत्रालय में उपमंत्री श्री लॉन्‍ग झिग्‍युओ ने किया। 

सहमति-पत्र के अनुसार, दोनों देश द्रुत गति रेल, भारी वस्‍तुओं की ढुलाई और रेलवे स्‍टेशनों के विकास सहित रेल तकनीक के विभिन्‍न क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ाएंगे। दोनों पक्ष नीतियों की जानकारी प्रशिक्षण एवं विनियम कार्यक्रम, परियोजना स्‍थलों का दौरा, आदि क्षेत्र में आदान-प्रदान के आधार पर काम करेंगे। दोनों देश इस बात पर भी सहमत हैं कि भारत-चीन राजनीतिक आर्थिक वार्तालाप के तहत गठित इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर कार्य दल के तहत ही भविष्‍य में रेल क्षेत्र में सहयोग करेंगे। भारत और चीन के बीच ये समझौता हस्‍ताक्षर होने की तारीख से अगले 5 साल के लिए लागू होगा। (PIB)


वि.कासोटिया/अनिल/सुनील-5552               रेल क्षेत्र

Sunday, November 25, 2012

दीपावली व धनतेरस पर खरीदी जाती हैं लडकियां भी!

एक कदम आगे, दो कदम पीछे
Posted On November - 25 - 2012
वीना सुखीजा
चित्रांकन : संदीप जोशी
भरतपुर पुलिस ने बीती 12 नवम्बर को लुधियाना के एक गांव में दबिश डालते हुए दो ‘दलालों’ सुप्रिया कुमार व मुकेश उपाध्याय को गिरफ्तार किया। पुलिस ने उनके पास से तीन लड़कियों को बरामद किया। इन लड़कियों को मध्य प्रदेश के जबलपुर से भरतपुर में एक धार्मिक मेला दिखाने के बहाने लाया गया था। लेकिन बाद में उन्हें यह कहते हुए ‘बंदी’ बनाकर रखा गया कि उन्हें जल्द उनकी ससुराल भेजा जाएगा। इन लड़कियों को जबलपुर से लक्ष्मण  नामक व्यक्ति बहला-फुसलाकर लाया था  और उसने ही इन्हें ‘दलालों’ को बेचा था।
लेकिन यह मानव तस्करी की कोई असाधारण घटना नहीं है। यह उस भयावह परंपरा का हिस्सा है जिसमें महिलाओं के साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता है। दीपावली व धनतेरस पर लोग देशभर में सोना व चांदी खरीदते हैं, लेकिन राजस्थान के मेवात क्षेत्र में इस अवसर पर लड़कियां ‘खरीदी’ जाती हैं, खासकर कि भरतपुर, अलवर व धौलपुर जिलों की ‘मंडियों’ में। दीपावली या उससे पहले खरीदी गई इन लड़कियों को ‘देव उठनी एकादशी’ पर ऐसे पुरुषों के साथ ‘ब्याह’ दिया जाता है जो इनसे आयु में बहुत अधिक बड़े होते हैं।
इस घटना से जाहिर होता है कि दुनिया जहां एक कदम आगे बढ़ रही है वहीं कम से कम महिलाओं के सिलसिले में दो कदम पीछे हट रही है। अब यह खबर किसी से छुपी नहीं रही है कि 31 वर्षीय भारतीय महिला सविता हलपन्नावर को मिसकैरिज के बावजूद कैथोलिक देश आयरलैंड में गर्भपात से इनकार कर दिया गया क्योंकि 21वीं शताब्दी में भी हजारों वर्ष पुरानी धार्मिक परंपराओं को जीवन के अधिकार पर वरीयता दी गई और नतीजे में सविता की मौत हो गई। सविता को बचाया जा सकता था लेकिन उसके उपचार में लगे डॉक्टरों में दकियानूसी नियमों के खिलाफ जाने का साहस नहीं था। यह घटना इतनी शर्मनाक व त्रासदीपूर्ण थी कि जिन डॉक्टरों को शपथ दिलाई जाती है कि वह बीमार का उपचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, उन्होंने ही धर्म व दकियानूसी कानून का सहारा लिया और सविता को मरने दिया।
सविता अकेली ऐसी महिला नहीं है जो त्रासदीपूर्ण नतीजों का सामना करने के लिए इसलिए मजबूर की गई कि वह महिला है। मलाला यूसुफ जई के साथ हुई घटना से भी अब पूरा संसार परिचित है। पाकिस्तान में इस 14 वर्षीय लड़की को तालिबान ने कत्ल करने का प्रयास किया था। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वह अपने आपको व अन्य लड़कियों को शिक्षित करना चाहती थी।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि महिलाओं को अगर जान का खतरा होने पर भी गर्भपात का अधिकार नहीं है तो उन्हें शिक्षा का भी कोई अधिकार नहीं है।
संसार में परिवर्तन को छोड़कर कोई चीज स्थायी नहीं है। परिवर्तन को ही विज्ञान की भाषा में क्रमविकास कहते हैं। आज जब आधुनिक संसार तकनीकी प्रगति पर गर्व करते हुए यह बताना नहीं भूलता कि निकट भविष्य में बिना वीर्य (स्पर्म) व पुरुषों को भी बच्चे पैदा करना सम्भव हो जाएगा वहीं यह भी कड़वा सच है कि इस तकनीकी प्रगति के चेहरे पर सामाजिक प्रतीप-गमन (रिग्रेशन) कलंक बना हुआ है, चाहे वह महिलाओं व बच्चों के खिलाफ दिल दहलाने वाली हिंसक अपराधों के रूप में हो या बदजुबानी के रूप में सामने आए।
क्या इसे प्रगति कहा जा सकता है कि एक 20 दिन की बच्ची जिसका अभी नामकरण भी नहीं हुआ है, को मात्र 100 रुपये में बेच दिया जाता है और उसे भीख मांगने के औजार के रूप में प्रयोग किया जाता है। चेन्नै की यह घटना भी शायद अखबारों में न आ पाती अगर एक महिला सब इंसपेक्टर सतर्कता न बरतती। मूलाकड्डाई की मुन्नीअम्मल की मुलाकात इस बच्ची की मां सेलवी से बीती 12 नवम्बर को गवर्नमेंट स्टेनले हास्पिटल में हुई। 30 वर्षीय सेलवी विधवा है और यह बच्ची इसके दूसरे पुरुष से सम्बंध स्थापित करने के कारण वजूद में आई। मुन्नीअम्मल अस्पताल में अपने किसी रिश्तेदार को देखने के लिए गई थी कि उसकी नजर सेलवी की बच्ची पर पड़ी। सेलवी ने व्यथा कथा मुन्नीअम्मल को सुनाते हुए बच्ची को बेचने के इरादे से एक हजार रुपये मांगे, लेकिन मुन्नीअम्मल ने मात्र 100 रुपये देकर बच्ची को खरीद लिया।
बच्चे निश्चित रूप से हमारे देश का भविष्य हैं इसलिए उन्हें सम्पूर्ण विकास के लिए तमाम सुविधाएं मिलनी चाहिए, जिनमें खेलने के लिए पार्क व मैदान भी शामिल हैं। लेकिन स्थिति यह हो गई है कि सार्वजनिक स्थल जैसे पार्क, बस स्टॉप, सड़कें व चौराहे बच्चों के लिए खतरनाक स्थान बनते जा रहे हैं। बच्चों के लिए समय कितना खतरनाक हो गया है इसका अंदाजा अनेक चिन्हों से लगाया जा सकता है, जिनमें से एक यह है कि पैरेंट्स पब्लिक पार्क की तुलना में मॉल के नियंत्रित क्षेत्र को अपने बच्चों के लिए अधिक सुरक्षित जगह मानते हैं। ‘अर्ली चाइल्ड हुड एसोसिएशन’ का मानना है कि सार्वजनिक स्थल बच्चों के लिए सुरक्षित नही हैं, आप यह अंदाजा कर ही नहीं सकते कि कब कोई बुरी नीयत वाला वयस्क आपके बच्चे की तरफ कदम बढ़ा दे। हद तो यह है कि धार्मिक स्थल भी अपराधियों के अड्डे बन गए हैं। चूंकि साहित्य अपने दौर का आइना होता है, इसलिए आज का शायर कहता है :-
माहौल के ज़हर से जो लोग  वाकिफ हैं,
अपने बच्चों को घर से निकलने नहीं देते।

बहरहाल, खतरा सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं है बल्कि महिलाओं ने भी सुबह व शाम को अपनी सहेलियों के साथ वॉक पर निकलना बंद कर दिया है। अब तो बंगाल के लोक (पुरुष) भी भद्र (विनीत, सभ्य) नहीं रहे हैं, जैसा कि पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों से स्पष्ट है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार बंगाल में बलात्कार की घटनाओं में पिछले एक साल के दौरान 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो कि राष्ट्रीय वृद्धि (33 प्रतिशत) से लगभग दोगुनी है। मध्य प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल में बलात्कार (29133) की सबसे ज्यादा घटनाएं हुई हैं। इसी प्रकार बंगाल में महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाओं में 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यह भी इस संदर्भ में अखिल भारतीय वृद्धि (24 प्रतिशत) से दोगुनी से भी अधिक है।
हद तो यह है कि बंगाल की महिलाएं न सिर्फ घर के बाहर बल्कि घर के अन्दर भी असुरक्षित हैं। इस राज्य में नवविवाहित महिलाओं पर ससुराल में की गई ज्यादतियों की पिछले एक साल में 19722 घटनाएं रिकार्ड की गई हैं, जबकि घरेलू हिंसा की वारदातें बंगाल में अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा होती हैं। महिला संगठनों का कहना है कि ये आंकड़े पूरी तरह से सही नहीं हैं क्योंकि बलात्कार, छेड़छाड़, उत्पीडऩ आदि की बहुत सी घटनाओं को तो रिकार्ड ही नहीं किया जाता है।
लेकिन अकेले बंगाल को ही दोष क्यों दिया जाए। देश में हर जगह यही हाल देखने को मिल रहा है। एक समय में मुंबई को महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह समझा जाता था कि अकेली महिला भी वहां बिना किसी डर के रह सकती थी। लेकिन अब इस महानगर में भी हाल यह है कि एक स्पेनी छात्रा से बांद्रा जैसे पॉश इलाके के फ्लैट में बलात्कार किया गया, बुजुर्ग विधवा की उसके घर में हत्या कर दी गई व एक नाबालिग पर सेक्सुअल हमला किया गया।  पिछले महीने (अक्तूबर) हरियाणा में सामूहिक बलात्कार की 19 घटनाएं हुईं, जिनमें एक पीडि़त बच्ची तो मात्र 13 वर्ष की थी। जबकि बेंग्लुरू के सम्मानित नेशनल लॉ स्कूल के कैंपस में एक 22 वर्षीय महिला को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया गया। जब इस महिला ने हमले का विरोध किया तो उसकी गर्दन काट दी गई।
लेकिन इन दर्दनाक घटनाओं से भी अफसोसनाक बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ इस हिंसा को राजनीतिक रंग देने का प्रयास किया गया या पीडि़त पर ही सारे इल्जाम लगा दिए। मसलन, हरियाणा में जब दलित महिलाओं को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा था तो एक नेता ने कहा कि 90 प्रतिशत ‘बलात्कार’ आपसी सहमति से होते हैं। हरियाणा सरकार की एक मंत्री ने इन वारदातों को ‘राज्य सरकार के खिलाफ साजिश’ बताया। खाप पंचायतों ने बलात्कार के लिए फास्ट फूड को दोषी ठहराया। खाप पंचायतों ने यह भी कहा कि बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को कम कर देना चाहिए।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं के खिलाफ हिंसक अपराध निरंतर बढ़ते जा रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2001 में देश में बलात्कार की घटनाएं 16075 हुई थीं जो 2011 में बढ़कर 24206 हो गईं। इसी तरह 2001 में 14545 महिलाओं का अपहरण किया गया जबकि 2011 में यह आंकड़ा बढ़कर 35565 हो गया। जहां तक महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की बात है तो 2001 में 49170 महिलाएं अपने पति की क्रूरता का शिकार हुई थीं, जबकि 2011 में यह संख्या बढ़कर 99135 हो गई। 2001 में 6851 दहेज हत्याएं हुई थीं जो 2011 में बढ़कर 8618 हो गईं।
एक समय था जब हम अपने आप से सवाल किया करते थे कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वास्तव में इजाफा हो रहा है या मीडिया के विस्तार के कारण इस किस्म की खबरों को हम ज्यादा सुन रहे हैं? लेकिन अब हम अपने आपको धोखा नहीं दे सकते; क्योंकि महिलाओं के विरुद्ध हर किस्म की हिंसा में तेजी आई है। कहा यह जा रहा है कि चूंकि जॉब्स की कमी है और महिलाएं प्रतिस्पर्धा में शामिल हो रही हैं, इसलिए उन्हें भेदभाव व हिंसा का सामना तो करना ही पड़ेगा।
सशक्तीकरण का सच

लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के मुंह से महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक शब्दों को इन दिनों सुना जा सकता है। महिला संगठनों ने इसका विरोध किया है लेकिन बाकी किसी को इसकी परवाह नहीं है। संसद में नियमित छोटी-छोटी बातों पर गर्मागर्म बहस होती है व रोजाना ही कोई न कोई समूह यह प्रदर्शन करता है कि उसकी भावनाओं को ठेस पहुंची है। लेकिन महिलाओं की भावनाओं को तो हर पल ठेस पहुंचती रहती है, उनका अपमान किया जाता है, गाली दी जाती है व उनके खिलाफ हिंसा की जाती है।
इस बारे में कहीं कुछ नहीं होता, सिवाय इसके कि कुछ महिला संगठन विरोध प्रदर्शन कर देते हैं व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आधे घंटे की बहस छेड़ दी जाती है। कभी न इस पर सवाल होता है और न ही हल करने का प्रयास किया जाता है कि 2011 में देश की विभिन्न अदालतों में 95065 बलात्कार के मामले ट्रायल के स्तर पर थे जिनमें से मात्र 26 प्रतिशत पर ही फैसला हुआ । इसी तरह से घरेलू हिंसा के 3.4 लाख मामले व महिला अपहरण के 71078 मामले अदालतों में लंबित पड़े हैं। यौन-उत्पीडऩ (25099) व दहेज (29669) के मामले भी लंबित हैं। आप हैरत करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में दिशा-निर्देश जारी किए थे कि बलात्कार पीडि़तों को आर्थिक मुआवजा दिया जाए, लेकिन इस पर योजना बनाने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग को 10 साल का समय लगा।
एक रिपोर्ट के आधार पर न सिर्फ विकसित देशों ने बल्कि पड़ोसी श्रीलंका जैसे अनेक विकासशील देशों ने प्लान बना लिया है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि अपने देश में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।
कुछ देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर विराम लगाने के लिए जो तरीके अपनाए गए हैं उनको अपने देश में भी लागू करना लाभकारी हो सकता है। मसलन, ऑस्ट्रेलिया में पुरुषों, विशेषकर सांसदों व सामुदायिक नेताओं को प्रेरित किया जाता है कि वह महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरुद्ध बोलें। तुर्की में नवविवाहित जोड़ों को घरेलू हिंसा कानूनों व प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी जाती है। इस प्रकार के विशिष्ट दृष्टिकोण महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कमी ला सकते हैं, लेकिन क्या महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने वाले हमारे नेता ऐसे प्लान को बनाने के लिए तैयार हैं? (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

दीपावली व धनतेरस पर खरीदी जाती हैं भी!
हिंदुत्व शंखनाद सोशल साइट्स पर भी काफी सक्रिय है। राष्ट्र के लिए, राष्ट्र वादियों के साथ जुड़ना और जोड़ना हैं ये एक गैर राजनैतिक संगठन हैं !!अभी हाल ही में पोस्ट की गई एक रचना यहां भी प्रकाशित की जा रही है।गौरतलब है की मूल तौर पर यह रचना अरविन्द कुमार गुप्ता जी की है। महानता के  दावों को आईना  दिखाती यह रचना आपको कैसी लगी अवश्य लिखें।-रेक्टर कथूरिया
बात दुर्ग के रेलवे स्टेशन की है.., कल रात .,मैं ट्रेन के इंतज़ार में रेल्वे - प्लेटफार्म पर टहल रहा था .,
एक वृद्ध महिला , जिनकी उम्र लगभग 60 - 65 वर्ष के लगभग रही होगी ., वो मेरे पास आयी और मुझसे खाने के लिए पैसे माँगने लगी ....
उनके कपडे फटे ., पूरे तार - तार थे., उनकी दयनीय हालत देख कर ऐसा लग रहा था की पिछले कई दिनों से भोजन भी ना किया हो ..
मुझे उनकी दशा पर बहुत तरस आया तो मैंने अपना पर्स टटोला ., कुछ तीस रुपये के आसपास छुट्टे पैसे और एकहरा " गांधी " मेरे पर्स में था .,
मैंने वो पूरे छुट्टे उन्हें दे दिए...
मैंने पैसे उन्हें दिए ही थे ., कि इतने में एक महिला ., एक छोटे से रोते - बिलखते., दूधमुहे बच्चे के साथ टपक पड़ी ., और छोटे दूधमुहे बच्चे का वास्ता देकर वो भी मुझसेपैसे माँगने लगी ... मैं उस दूसरी महिला को कोई ज़वाब दे पाता की उन वृद्ध माताजी ने वो सारे पैसे उस दूसरी महिला को दे दिए ., जो मैंने उन्हें दिए थे .... पैसे लेकर वो महिला तो चलती बनी... लेकिन मैं सोचमें पड़ गया ... मैंने उनसे पूछा की-" आपने वो पैसे उस महिला को दे दिए ..??? "
उनका ज़वाब आया -" उस महिला के साथउसका छोटा सा दूधमुहा बच्चा भी तोथा ., मैं भूखे रह लूंगी लेकिन वो छोटा बच्चा बगैर दूध के कैसे रह पायेगा ... ??? भूख के मारे रो भी रहा था ..."

उनका ज़वाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गया .... सच ... भूखे पेट भी कितनी बड़ी मानवता की बात उनके ज़ेहन में बसी थी ....
उनकी सोच से मैं प्रभावित हुआ ., तो उनसे यूं ही पूछ लिया की यूं दर -बदर की ठोकरे खाने के पीछे आखिर कारण क्या है ...???

उनका ज़वाब आया की उनके दोनों बेटो ने शादी के बाद उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया ., पति भी चल बसे .., आखिर में कोई चारा न बसा ...
बेटो ने तो दुत्कार दिया ., लेकिन वो भी हर बच्चे में अपने दोनों बेटो को ही देखती है ., इतना कहकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ...

मैं भी भावुक हो गया .,मैंने पास की एक कैंटीन से उन्हें खाने का सामान ला दिया ... मैं भी वहा से फिर साईड हट गया ...
लेकिन बार-बार ज़ेहन में यही बात आ रही थी ., की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है ., जो अपनी जन्म देने वाली माँ तक को सहारा नहीं दे सकती ...??? लानत है ऐसी संतान पर .... और दूसरी तरफ वो " माँ " ., जिसे हर बच्चे में अपने " बेटे " दिखाई देते है ....
धन्य है " मातृत्व-प्रेम

Friday, November 23, 2012

राष्ट्रपति ने प्रदान किये

23-नवंबर-2012 16:49 IST
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर साहित्य रत्न सम्मान
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज (23 नवंबर 2012) 21 प्रख्यात लेखकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ साहित्य रत्न सम्मान प्रदान किये। 

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने आजादी के संघर्ष में श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के योगदान एवं हिन्दी साहित्य के प्रति उनके द्वारा की गयी सेवाओं का उल्लेख किया। 

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वि.कासोटिया\यादराम\चित्रदेव-5493

मोदी का जादू क्या है ?

गुजरात : जैसा मैने देखा // राजीव गुप्ता      
                                                                                                                                                                 Courtesy Photo
पिछ्ले दिनो मुझे गुजरात जाने का अवसर मिला. शहर की चकाचौन्ध से कोसो दूर ग्रामीणो के बीच कई दिनो तक उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. अभी तक मैने गुजरात के बारे मे अच्छा – बुरा  मात्र मीडिया की माध्यम से ही सुना था परंतु गुजरात की आम-जनता से सम्मुख होने का यह अनुभव मुझे पहली बार प्राप्त हुआ. एक तरफ जहा मीडिया मोदी के जादू के बारे मे अपना आंकलन प्रस्तुत करने की कोशिश करता है तो दूसरी तरफ वह 2002 मे गोधरा मे हुए दंगो से आगे सोच ही नही पा रहा. इसी बीच अमेरिका-ब्रिटेन द्वारा मोदी की तरीफ ने मुझे गुजरात देखने को और अधिक बेचैन कर दिया. एक तरफ जहां ये सेकुलर बुद्धिजीवी और मीडिया की आड़ में राजनेता अपनी राजनीति की रोटियां सेकने में व्यस्त है तो वही इससे कोसो दूर गुजरात अपने विकास के दम पर भारत के अन्य राज्यों को दर्पण दिखाते हुए उन्हें गुजरात का अनुकरण करने के लिए मजबूर कर रहा है . 
मोदी की जादू के बारे मे वहा के ग्रामीण-समाज से मुझे जानने का अवसर मिला. सड्के अपनी सौन्दर्यता से मेरा ध्यान अपनी ओर बार-बार खींच रही थी. पुवाडवा, चनडवाना, मांगरोल, धोरडो, खावडा, कुरण, धौलावीरा, लखपत, क़ानेर, उमरसर जैसे अनेक गांवो मे खस्ता हालत मे सड्को को ढूंढ्ने की मैने बहुत कोशिश की पर असफल रहा. लगभग हर गांव को सडको से जुडे हुए देखकर मुझे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की उस दूरदर्शिता की याद आ गयी जिसे उन्होने जोर देकर भारत के हर गांव को सडक से जोड्ने के लिये प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक योजना की शुरुआत की थी.

गुजरात के प्रत्येक गांव मे 24 घंटे बिजली की आपूर्ति होती है ग्रामीणो की इस बात ने मुझे और हैरत मे डाल दिया, परंतु उनकी यह बात सौ प्रतिशत सच थी कि गुजरात के सभी गांवो मे बिजली कभी नही जाती. उत्सुकतावश मैने उनसे बिजली वितरण प्रणाली और बिजली चोरी की बात भी की तो उनके माध्यम से पता चला कि बिजली वितरण प्रणाली के चलते बिजली चोरी यहा सम्भव ही नही है क्योंकि हर घर मे बिजली का मीटर लगा है और पूरे गांव क एक अलग से बिजली का मीटर लगा है. हर गांव के सरपंच को यह निर्देश है कि गांव के बिजली के मीटर की रीडिंग और हर घर के मीटर की रीडिंग का कुल योग बराबर होना ही चाहिये अन्यथा जबाबदेही सरपंच के साथ-साथ पूरे गांव की ही होगी. परिणामत: बिजली चोरी का सवाल ही नही उठता.
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समरस ग्राम पंचायत के बारे मे उनसे पहली बार जानने का मौका मिला. ग्राम पंचायत को और अधिक मजबूत करने के उद्देश्य से नरेन्द्र मोदी द्वारा समरस ग्राम पंचायत की शुरुआत की गयी. समरस ग्राम पंचायत का अर्थ समझाते हुए मुझे उन लोगो ने मुझे बताया कि हमारे यहा अन्य राज्यो की भांति सरपंच का चुनाव कोई सरकारी मशीनरी द्वारा न होकर अपितु गांव के लोग ही मिलकर अपना सरपंच चुन लेते है और ऐसे सभी समरस ग्राम पंचायत को विकास हेतु सरकार अलग से वितीय सहायता देती है. परिणामत: सरपंच के चुनाव हेतु सरकारी खर्च बच जाता है और गांव के लोगो के मन-मुताबिक उनका मुखिया भी मिल जाता है.  कुरण गांव के लोगो ने सोढा प्राग्जि एवम सता जी का उदाहरण भी बताया कि उनके यहा मुस्लिम समुदाय की संख्या लगभग 50,000 है और हिन्दु समुदाय की संख्या लगभग 400 ही है परंतु सोढा प्राग्जि एवम सता जी जो कि हिन्दु समुदाय से ही थे उनके निर्णयो की कसमे आज भी लोग खाते है. छोटे-मोटे झगडो का निपटारा पंचायत द्वारा गांव मे ही कर दिया जाता है.   उन सबकी यह बात सुनकर मुझे मुंशी प्रेमचन्द की कहानी पंच-परमेश्वर एवम गान्धी के पंचायत राज की याद आ गयी. वास्तव मे अपनी कई खूबियो के चलते गुजरात की पंचायत व्यवस्था देखने लायक है.
वैसे तो कुरण गांव मे रहने वाले लोग अनुसूचित जाति से सम्बन्धित है परंतु उस गांव के मन्दिर मे पुरोहित भी अनुसूचित जाति से ही है. इस गांव का आदर्श उन कुंठित राजनेतओ के मुह पर तमाचा है जो समाज विभेद की राजनीति करते हुए छुआछूत को बढावा देते हुए अपने वोट बैंक की राजनीति करते है. गुजरात के हर गांव मे एक पानी – संग्रहण की व्यवस्था है जिसका उपयोग सामूहिक रूप से सभी ग्रामीण अपने जानवरो को पानी पिलाने, कपडे धोने, एवम स्नान इत्यादि के लिये करते है. खेती की सिंचाई हेतु सरकार द्वारा कई छोटे-छोटे तालाब बनवाये गये है जिसमे बारिश का पानी संग्रहित किया जाता है. परिमात: किसानो को सिचाई हेतु भरपूर पानी मिलता है.

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इतना ही नही इस गांव मे ही 8वी तक का स्कूल है जिससे बच्चो को प्राथमिक पढाई हेतु गांव से बाहर जाने की नौबत ही नही आती. इस स्कूल मे लड्के – लड्कियो का अनुपात भी बराबर ही है. गांव के इस स्कूल की खासियत यह है कि यहा पर बच्चो को सीधे  बायोसेफ प्रोग्राम जो कि  जी सी ई आर टी, गान्धीनगर द्वारा संचालित होता है से उनका पूरा पाठ्यक्रम पढाया जाता है. इस स्कूल के  सभी बच्चो कम्पय़ूटर से न केवल अपने पाठ्यक्र्म को पूरा करते है अपितु वे अपनी समस्याये सीधे इंटरनेट के जरिये जी सी ई आर टी से भी पूछ सकते है. अध्यापिकाओ की संख्या अध्यापको की संख्या से अधिक ही है. इस स्कूल के पुस्तकालय की तरफ आप स्वत: ही खींचे चले जाते है.   
वैसे तो गांव के नजदीक ही कोई न कोई कम्पनी लगी है जिससे वहा के स्थानीय निवासियो को रोजगार सुलभ है परंतु लोगो का मुख्य व्यवसाय पशु-चारण और दुग्ध – उत्पादन ही है. एक-एक घर मे लगभग सैकडो गाय है. झुंड के झुंड चरती गायो को देखकर तो मुझे एक बार द्वापर युग और गुप्त-काल की याद आ गयी जहा नन्दगांव मे भगवान श्रीकृष्ण गायो को चराने जाते थे और दूध की नदिया बहती थी. मुझे सबसे आश्चर्य की बात यह लगी कि इन गायो का स्वामी हिन्दू समुदाय से न होकर मुस्लिम समुदाय से थे और वे सभी भी गाय को दूध-उत्पादन के लिये ही पालते है. हिन्दु समुदाय के साथ – साथ  उनके लिये भी गाय पूजनीय ही है साथ ही कभी भी वहा गाय का वध नही किया गया. घी से सराबोर रोटी के साथ छाछ अनिवार्यत: मिलेगी. इतना ही नही गांव के लोगो द्वारा दूध/छाछ सप्ताह मे दो दिन “मुफ्त” मे बांटा जाता है. एक बार तो मुझे लगा कि शायद मै किसी सपने मे हू परंतु यह ग्रामीण गुजरात की वास्तविकता थी. कई-कई दिन घर से बाहर लोग पशुओ को चराते रहते है और एक गाडी पैसे देकर उन पशुओ का सारा दूध इकट्ठा कर यात्रियो के लिये चलने वाली सरकारी बसो की सहायता से शहर मे पहुचा देती है. परिणामत: उन सभी को रोजगार उनके घर पर ही मिल जाता है.           
कच्छ के सफेद रण और भगवान द्त्तात्रेय के मन्दिर जहा कभी लोग जाने से भी डरते थे परंतु आज दृश्य पूर्णत: बदल चुका है. नरेन्द्र मोदी द्वारा इन स्थानो को पर्यटन का रूप देने से आज देश ही नही विदेशो से भी लोग कच्छ के सफेद रण और भगवान द्त्तात्रेय के मन्दिर को देखने आते है. हर वर्ष रणोत्सव मनाया जाता है जिसमे गुजरात के ग्रामोद्योग को बढावा देने हेतु हस्तकला इत्यादि की प्रदर्शनी लागायी जाती है जिसे देखने लाखो की संख्या मे विदेशी सैलानी आते है. परिणामत: वहा के ग्रामीण समाज को रोजगार वही उपलब्ध हो जाता है.                 इतना ही नही भुज से लगभग 19 किमी दूर एशिया का सबसे उन्नत केरा नामक एक गांव है. इनके घर शहर की कोठियो जैसे ही है व इस गांव के हर परिवार का कोई न कोई सद्स्य एनआरआई है.   

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महिलाये देर रात तक बिना किसी भय के शहर/गांव व नदियो/झीलो के सौन्दर्य घाटो पर घूमती है. अहमदाबाद का चिडियाघर सौन्दर्यता का एक विशिष्ट उदाहरण है. कानून – व्यवस्था के बारे मे गुजरात के कुछ पुलिसवालो से बात करके पता चला कि उन्हे अपवाद स्वरूप ही महीने मे किसी झगडे इत्यादि मे जाना पड्ता है. और तो और ग्रामीण गुजरात मे मुझे कही भी हिन्दु-मुस्लिम समुदाय के बीच किसी भी प्रकार की विभाजन की रेखा देखने को नही मिली जैसा कि बारबार मीडिया द्वारा दिखाया जाता है. इतना ही नही एक आंकड़े के अनुसार गुजरात में मुसलमानों की स्थिति अन्य राज्यों से कही ज्यदा बेहतर है . ध्यान देने योग्य है कि भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात के मुसलमानों की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक है और सरकारी नौकरियों में भी गुजरात - मुसलमानों का प्रतिशत अन्य राज्यो की तुलना मे अव्वल नंबर पर है .  और तो और एक बार तो पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के 84वे स्थापन दिवस के मौके पर  गुजरात के कृषि विकास को देखते हुए यहा तक कहा था कि जलस्तर में गिरावट , अनियमित बारिश और सूखे जैसे समस्याओ के बावजूद गुजरात 9 प्रतिशत की अभूतपूर्व कृषि विकास दर के माध्यम से भारत के अन्य राज्यों पर अपना परचम लहरा है जबकि भारत की कुल कृषि विकास दर मात्र 3 प्रतिशत है . विश्व प्रसिद्द ब्रोकरेज मार्केट सीएलएसए ने  गुजरात के विकास विशेषकर इन्फ्रास्ट्रक्चर , ऑटोमोबाइल उद्योग तथा डीएमईसी प्रोजेक्ट की सराहना करते हुए यहाँ तक कहा कि नरेंद्र मोदी गुजरात का विकास एक सीईओ की तरह काम कर रहे है . यह कोई नरेंद्र मोदी को पहली बार सराहना नहीं मिली इससे पहले भी अमेरिकी कांग्रेस की थिंक टैंक ने उन्हें 'किंग्स ऑफ गवर्नेंस' जैसे अलंकारो से अलंकृत किया . नरेंद्र मोदी को  टाइम पत्रिका के कवर पेज पर जगह मिलने से लेकर ब्रूकिंग्स के विलियम एन्थोलिस, अम्बानी बंधुओ और रत्न टाटा जैसो उद्योगपतियों तक ने एक सुर में सराहना की है .
Courtesy:Hindu Jan Jagruti Samiti
नरेंद्र मोदी की प्रशासक कुशलता के चलते फाईनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में लिखा था कि देश के युवाओ के लिए नरेंद्र मोदी प्रेरणा स्रोत बन चुके है . पाटण जिले के एक छोटे से चार्णका गाँव में सौर ऊर्जा प्लांट लगने से नौ हजार करोड़ का निवेश मिलने से वहा के लोगो का जीवन स्तर ऊपर उठ गया . ध्यान देने योग्य है कि अप्रैल महीने में  नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी काउंसिल जनरल पीटर तथा एशियाई विकास बैंक के अधिकारियों की मौजूदगी में एशिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा पार्क का उद्घाटन किया था जिससे सौर ऊर्जा प्लांट से 605 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा जबकि शेष भारत का यह आंकड़ा अभी तक मात्र दो सौ मेगावाट तक ही पहुंच पाया है . भले ही कुछ लोग गुजरात का विकास नकार कर अपनी जीविका चलाये पर यह एक सच्चाई है कि गुजरात की कुल मिलाकर 11 पंचवर्षीय योजनाओं का बजट भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना के बजट के लगभग समकक्ष है .                                        
गुजरात के सरदार बल्लभ भाई पटेल को स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री न बनाकर इतिहास मे एक पाप किया गया जिसकी सजा पूरा देश आज तक भुगत रहा है परंतु वर्तमान समय मे अब ऐसा कोई पाप न हो यह सुनिश्चित करना होगा. नरेन्द्र मोदी जो कि संघ के प्रचारक भी रहे है परिणामत: उन्हे समाज के बीमारी की पहचान होने के साथ-साथ उन्हे उसकी दवा भी पता है. अत: अपनी इसी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता के चलते आज भारत ही नहीं विश्व भी नरेंद्र मोदी को भारत का भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखता है जिसकी पुष्टि एबीपी नील्‍सन ,  सीएनएन-आईबीएन और इण्डिया टुडे तक सभी के सर्वेक्षण करते  है और तो और  नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का अनुमान कई सोशल साइटो पर  भी देखा जा सकता है .   

राजीव गुप्ता स्वतंत्र पत्रकार है:  9811558925
मोदी का जादू क्या है ?

Wednesday, November 21, 2012

विशेष भारतीय सिनेमा शताब्‍दी पुरस्‍कार

गोवा में 43वें भारतीय अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह में भारतीय फीचर फिल्‍म के सौ साल पूरे होने के मद्देनज़र दस लाख रूपये के एक विशेष पुरस्‍कार की शुरूआत की गई है। भारतीय अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्म समारोह के निदेशक श्री शंकर मोहन ने कहा कि विशेष भारतीय सिनेमा शताब्‍दी पुरस्‍कार के लिए फिल्‍म का चुनाव अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍पर्धा, सिनेमा ऑफ द वर्ल्‍ड और भारतीय पैनोरमा से नामांकित तीन फिल्‍मों में से होगा। बुद्धदेब दास गुप्‍ता, गौतम घोष और किशवार देसाई की विशेष जूरी इन नामांकनों पर निर्णय लेगी । विजेता फिल्‍म को दस लाख रूपये का नकद पुरस्‍कार, रजत मयूर और एक प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा। (PIB) 20-नवंबर-2012 13:08 IST
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मीणा/विजयलक्ष्‍मी/मधुप्रभा-5403

सेंसरशिप वैश्विक समस्या- क्रिज्टॉफ जानुस्सी

कहा सेंसरशिप हमारी जिंदगी को प्रभावित करने वाली कठोर व्यवस्था
पोलैंड के प्रख्यात फिल्म निर्माता क्रिज्टॉफ जानुस्सी ने सेंसरशिप को वैश्विक समस्या माना है और इससे निपटने के लिए उपयुक्त मार्ग तलाशने पर बल दिया है। उन्होंने कहा सेंसरशिप हमारी जिंदगी को प्रभावित करने वाली कठोर व्यवस्था है और गैर-लोकतांत्रिक राष्ट्र इसे बेहद कडाई से लागू करते हैं जबकि लोकतांत्रिक देशों का रवैया अधिक लचीला होता है। 43वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में जीवनकालिक उपलब्धियों के लिए गोवा में आज शाम सम्मानित होने वाले जानुस्सी आज सवेरे मीडिया को संबोधित कर रहे थे । कम्फलेज, फैमिली लाइफ, द साइलेंट टच, द कॉन्ट्रैक्ट और रिविजिटेड जैसी सराहनीय फिल्मों का निर्माण करने वाले जानुस्सी ने विश्व को दिशा देने के लिए उच्च विचारों पर जोर दिया। भारत में सेंसरशिप के मुद्दे पर एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि इंटरनेट एक संपूर्ण नवीन समाज का निर्माण कर सकता है और यह हमें ध्वस्त भी कर सकता है इसलिए एक संतुलित मार्ग की पहचान करना बडी चुनौती है। समारोह में उनकी फिल्म “इल्युमिनेशन” को प्रदर्शित किया जाएगा। 

भारतीय सिनेमा के बारे में श्री क्रिज्टॉफ ज़ानुस्सी ने कहा कि स्‍वतंत्र सिनेमा और लोकप्रिय फिल्‍में एक दूसरे के पूरक हैं। उन्‍होंने कहा कि लोकप्रिय फिल्‍मों का सम्‍मान किया जाना चाहिए क्‍योंकि यह आम व्‍यक्ति की संस्‍कृति को दर्शाती हैं। अपने देश में सिनेमा के बारे में श्री जानुस्सी ने कहा कि वहां पर इस दिशा में अच्‍छा काम चल रहा है लेकिन जो पहचान, 1980 की शुरूआत में राजनीतिक उथलपुथल के दौरान थी वैसी नहीं है। उन्‍होंने कहा कि पोलैंड में कॉम्‍युनिस्‍ट युग की तुलना में अब स्थिति बेहतर है लेकिन युवा फिल्‍म निर्माताओं को नई समस्‍याओं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ज़ानुस्सी ने भौतिकी विषय में शिक्षा ग्रहण की है। उन्‍होंने कहा कि भौतिकी को जब ग्ंभीरता के साथ पढ़ा जाए तो वो इंजीनियर पढ़ाई न लगकर तत्‍व विज्ञान जैसी लगती है। श्री ज़ानुस्सी ने 80 से अधिक फिल्‍में और वृत चित्रों का निर्माण किया है।(PIB)
(20-नवंबर-2012 14:21 IST
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मीणा/प्रियंका/विजयलक्ष्‍मी/चन्द्रकला-5404