Friday, August 30, 2013

पंखे की जगह भारत की घड़ी चल रही है...!

मेरठ कैंट के रहने वाले मित्र Ravinder Singh Sethi ने एक रचना फेसबुक पर पोस्ट की है जिसे अग्रिम धन्यवाद सहित यहाँ भी प्रकशित किया जा रहा है। यह रचना उनकी है या किसी और की अभी यह भी स्पष्ट नहीं है पर यह रचना देश की जिस दुखद और चिंतनीय हालत पर काव्यपूर्ण व्यंग्य शैली में बहुत प्रकाश डालती है वह देश और उसकी यह हालत हम सब की अवश्य है। इस हालत से उबरने और सुधरने की ज़िम्मेदारी भी हम सब की है। इस रचना पर आप क्या चाहते हैं आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी। ---रेक्टर कथूरिया  
एक आदमी ने धरती से किया प्रस्थान... 
यमराज के कक्ष में
घड़ियां देखकर रह गया हैरान..
हर देश की अलग घड़ी थी...
कोई छोटी, कोई बड़ी थी...
कोई दौड़ रही, कोई बंद, कोई तेज, कोई मन्द...
उनकी अलग-अलग रफ्तार देखकर
आदमी चकराया...
कारण पूछा तो यमराज ने बताया...
हर घड़ी की उसी हिसाब से है रफ्तार..
जिस हिसाब से हो रहा है उस देश में
भ्रष्ट्रचार..

आदमी ने चारों तरफ नजर दौड़ाई...
लेकिन भारत की घड़ी कहीं भी नजर
नहीं आई..

आदमी मुस्कुराया, यमराज के कान
में फुसफुसाया..
कांग्रेस वाले भ्रष्टाचार यहां भी ले
आए..
सच-सच बताओ, घड़ी न रखने के
कितने पैसे खाए..

यमराज बोले: तेरे शक की सुई तो
बिना बात उछल रही है..
मेरे बेड रूम में जाकर देख ..
..
पंखे की जगह भारत की घड़ी चल
रही है...

Tuesday, August 20, 2013

अब चौरासी कोसी परिक्रमा पर भी चला सरकारी डंडा

                                                                                                                                    Tue, Aug 20, 2013 at 2:35 PM
अयोध्या एक बार फिर से सियासी आग की चपेट में 
लेखक राजीव गुप्ता
संतो की अगुआई और विश्व हिन्दू परिषद के सहयोग से चलने वाली आगामी 25 अगस्त से अयोध्या-क्षेत्र में प्रस्तावित चौरासी कोसी परिक्रमा यात्रा को उत्तरप्रदेश सरकार ने अनुमति देने से मना कर दिया. जिसके चलते देश भर में  हर जगह उत्तरप्रदेश सरकार के इस रवैये का विरोध हो रहा है. चुनाव के नज़दीक आते-आते शांत रहने वाला अयोध्या एक बार फिर से सियासत की आग की चपेट में आ गया है. उत्तरप्रदेश के प्रमुख गृहसचिव आरएम श्रीवास्तव के अनुसार अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा को चैत्र पूर्णिमा से बैशाख पूर्णिमा तक (25 अप्रैल- 20 मई) पारंपरिक तरीके से इस वर्ष में संपन्न करवा दिया गया है तो इसका क्या यह अर्थ लगाया जाय कि अब इस वर्ष कोई भी अयोध्या की चौरासी-कोसी परिक्रमा नही कर सकता ? क्या शासन व्यक्तिगत धार्मिक मान्यताओं पर भी नियंत्रण करेगा ? सौभाग्य से मेरा जन्म अयोध्या के चौरासी कोसी परिक्रमा क्षेत्र के समीप ही हुआ है और हम अपनी-अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं के अनुरूप बचपन में वर्ष में दो-तीन बार भी अयोध्या जी की चौरासी-कोसी परिक्रमा करते थे. अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा का अनुष्ठान अपनी-अपनी मान्यता के अनुसार वर्षभर में कोई भी, कभी भी और कई बार भी कर सकता है. संविधान ने धार्मिक स्वतंत्रता के चलते प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार दिया है और सत्ता की यह जवाबदेही होती है कि वह संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन न होने दे. इसके लिए ही देश में कानून व्यवस्था बनाये रखने हेतु केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों ने अर्द्धसैनिक बलों का गठन किया गया है.

उत्तरप्रदेश सरकार का यह तर्क गले नही उतरता है कि उसे इस प्रस्तावित चौरासी कोसी परिक्रमा से अगर राज्य में कानून व्यवस्था भंग होने का अन्देशा है. अगर राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने हेतु उसके पास पी.ए.सी के जवान कम पड रहे है तो वह अन्य राज्यों अथवा केन्द्र से अधिक संख्या में अर्द्धसैनिकों की मांग कर सकती है. अगर उत्तरप्रदेश सरकार अपनी दूरदर्शिता दिखाते हुए इस विषय पर स्थानीय स्तर पर ही संभाल लेती तो इस विषय का समाधान वही हो जाता और इसका सीधा असर उसकी छवि पर भी पडता. सरकार के इस रवैये के चलते किसी भी समुदाय के लोगों को किसी भी प्रकार की आपत्ति नही होती साथ ही समाज़-सत्ता के टकराव को भी रोका जा सकता है. परंतु उत्तरप्रदेश सरकार ने ऐसा न करके अब इस विषय को देशव्यापी बनाते हुए इसका राजनीतिकरण कर दिया है. जिसके फलस्वरूप उत्तरप्रदेश सरकार के इस तानाशाही रवैये के चलते देश की कानून-व्यवस्था ही दांव पर लग गई है. अत: अब देश की कानून – व्यवस्था भंग न हो इसके लिए केन्द्र सरकार को अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए उत्तरप्रदेश सरकार को यह आश्वासन देते हुए कि उसे पर्याप्त संख्या में अर्द्धसैनिक बल उपलब्ध करवाये जायेंगे, उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा जनित उसके इस तनावपूर्ण फैसले पर हस्तक्षेप करते हुए उसे अपने फैसले को वापस लेने के लिये बाध्य करे. ताकि देश में तनाव बढने की बजाय एक सकारात्मक सन्देश जाए.

उत्तरप्रदेश सरकार ने विहिप की प्रस्तावित चौरासी कोसी परिक्रमा पर अब तक चली आ रही चौरासी कोसी परिक्रमा को लेकर नई परंपरा डालने का आरोप लगाया. दरअसल इसी विषय पर अपना मत स्पष्ट करने हेतु ही संतो की अगुआई में अशोक सिंहल समेत एक दल मुलायम सिंह यादव से 10 अगस्त को मिला था और मुलायम सिंह यादव ने उन्हे इस चौरासी कोसी परिक्रमा के अनुष्ठान को पूर्ण करने की मौखिक स्वीकृति भी दी थी. वास्तव में यह विवाद बारबंकी के टिकैतपुर से लेकर गोंडा तक के कुछ किमी. तक नये मार्ग को लेकर है. ध्यान देने योग्य है कि वर्तमान समय में सरयू नदी का जलस्तर बढ जाता है जिससे सरयू नदी को नाव की सहायता से पार करना संभव नही है. इसलिये विहिप ने एक विकल्प के रूप में नया मार्ग चुना. अगर उत्तरप्रदेश सरकार को विहिप के इस वैकल्पिक नये मार्ग से कुछ परेशानी है तो इस बारे में विहिप ने लचीला रूख अपनाया है. उत्तरप्रदेश सरकार को बजाय चौरासी कोसी परिक्रमा रोकने के विहिप को संवाद हेतु आमंत्रित कर इस समस्या का हल ढूंढना चाहिए.

अगर यह टकराव जल्दी ही नही खत्म नही हुआ तो अयोध्या की इस चौरासी कोसी परिक्रमा का भी राजनीतिकरण होना तय है. जिसका असर आने वाले चुनावों पर भी पडेगा. उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा उठाये गये इस तानाशाही कदम से विशुद्ध रूप से राजनैतिक कदम है क्योंकि इस टकराहट से हिन्दू और मुस्लिम वोंटो का जबरदस्त ध्रुवीकरण होगा. जिसका लाभ भाजपा और सपा दोनो ही दल उठायेंगे. भाजपा बहुसंख्यंको को रिझाने का प्रयास करेगी और सपा अल्पसंख्यकों पर डोरे डालेगी. इससे पहले भी अयोध्या का राजनीतिकरण हो चुका है. ध्यान देने योग्य है कि मुलायम सिंह यादव जब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उन्होने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था तबसे लेकर आजतक बहुसंख्यक समाज मुलायम के साथ मन से नही जुड पाया है. लोग कुछ इसी तरह भाजपा पर भी विश्वासघात का आरोप लगाते है. वे तर्क देते है कि भाजपा राममन्दिर निर्माण के मुद्दे पर ही सत्ता में आयी थी और सत्ता में आते ही उसने सबसे पहले अपने एजेंडे में से राममन्दिर-निर्माण के मुद्दे को ही निकाल दिया. यहाँ यह स्पष्ट होना चाहिए कि भाजपा के एजेंडे में आज भी राममन्दिर – निर्माण का विषय है. अटल जी की अगुआई में सरकार एनडीए की बनी थी न कि भाजपा की. भाजपा ने देश को स्थायी सरकार देने हेतु ही एनडीए का गठन किया था. एनडीए गठन के समय यह तय किया गया था कि अगर विवादित विषय धारा 370, राम-मन्दिर निर्माण जैसे विषयों को अलग कर दिया जाय तो देश को एक स्थायी सरकार मिल सकती है. इसी को ध्यान रखते हुए भाजपा ने सभी विषयों को यथावत अपने एजेंडे मे ही रखा और एनडीए के एजेंडे में से सभी विवादित विषयों को हटा दिया था. जिसके चलते लोग आज भी भाजपा पर विश्वासघात का आरोप लगाते है. अयोध्या में राममन्दिर निर्माण का विषय इस समय देश की सर्वोच्च न्यायालय के अधीन है. अत: आस्था के इस विषय पर राजनीति करने का अधिकार किसी भी राजनैतिक दल को नही है. राममन्दिर निर्माण के नाम पर देश का ध्यान भटकाने की अपेक्षा उत्तरप्रदेश सरकार जल्दी से जल्दी अयोध्या की चौरासी कोसी यात्रा पर अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे. क्योंकि समाज-सत्ता का टकराव किसी भी सूरत में देश-हित के लिए ठीक नही होता और दोनो पक्षों को टकराव की बजाय आपस में संवाद कर  इस समस्या का हल  निकालना चाहिये.        -राजीव गुप्ता, 09811558925

Monday, August 19, 2013

रक्षा बंधन पर राष्‍ट्रपति की शुभकामनाएं

19-अगस्त-2013 16:33 IST
समाज का प्रत्‍येक सदस्‍य इस त्‍यौहार पर महिलाओं के लिए सम्‍मान की भावना अपनाये
Courtesy Photo
राष्‍ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने रक्षा बंधन के अवसर पर अपने संदेश में देशवासियों को शुभकामनाएँ दी है। उन्‍होंने अपने संदेश में कहा है कि रक्षा बंधन का त्‍यौहार भाई-बहन के बीच विश्‍वास, प्‍यार और प्रतिबद्धता का प्रतीक है। उन्‍होंने कहा कि यह हमारे लिए महिलाओं खासकर लड़कियों के कल्‍याण के प्रति समर्पित होने का अवसर है। उन्‍होंने कहा कि महिलाओं को सुरक्षित और सौहार्दपूर्ण वातावरण उपलब्‍ध कराया जाना चाहिए ताकि, उनकी प्रतिभा विकसित हो और वे राष्‍ट्र निर्माण में पूरी भागीदारी कर सके। राष्‍ट्रपति ने कहा कि महिलाओं के सम्‍मान के लिए पारंपरिक सांस्‍कृतिक मूल्‍यों को ध्‍यान में रखा जाना चाहिए। 

राष्‍ट्रपति ने आशा व्‍यक्‍त की कि समाज का प्रत्‍येक सदस्‍य इस त्‍यौहार पर महिलाओं के लिए सम्‍मान की भावना अपनायेगा। 

वि.कासोटिया/इ. अहमद/गांधी/सुमन- 5678

Thursday, August 15, 2013

महामहिम राष्‍ट्रपति से मिला सम्मान

15-अगस्त-2013 08:23 IST
सबंधित क्षेत्रों में हर्ष की लहर
महामहिम राष्‍ट्रपति संस्‍कृत, फारसी अरबी तथा पाली/प्राकृत के निम्‍नलिखित विद्वानों को सहर्ष सम्‍मान-प्रमाणपत्र प्रदान करते हैं -
संस्‍कृत
1.      प्रोफेसर सुब्‍बारावव पेरी
2.      डॉ. कृष्‍ण लाल
3.      डॉ. हंसाबेन एन. हिंडोचा
4.      प्रोफेसर (डा.) चन्‍द्र कांत शुक्‍ला
5.      प्रोफेसर मल्लिकार्जुन बी. पराड्डी
6.      श्री मोहन गुप्‍ता
7.      प्रोफेसर मिथिला प्रसाद त्रिपाठी
8.      प्रोफेसर अलेखा चन्‍द्र सारंगी
9.      पदम शास्‍त्री (पदम दत्‍त ओझा शास्‍त्री)
10.  ड गणेशी लाल सुथार
11.  डा. प्रशस्‍य मित्रा शास्‍त्री
12.  श्री भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ‘वागीश शास्‍त्री’
13.  प्रोफेसर जय शंकर लाल त्रिपाठी

संस्‍कृत (अंतर्राष्‍ट्रीय)1. डॉ. रॉबर्ट पी. गोल्‍डमेन

फारसी1. प्रोफेसर (श्रीमती) क़मर गफ्फार2. श्री एम.एच. सिद्दकी

अरबी1. श्री मोहम्‍मद अज़ीमुद्दीन
2. प्रोफेसर जिक्‍रूर रहमान
3. प्रोफेसर अहमद नसीम सिद्दकी

पाली/प्राकृत

1. प्रोफेसर भिक्षु सत्‍यपाल

इसके अतिरिक्‍त, महामहिम राष्‍ट्रपति संस्‍कृत, फारसी, अरबी तथा पाली/प्राकृत के निम्‍नलिखित विद्वानों को महर्षि वदरायन व्‍यास सम्‍मान भी प्रदान करते हैं :

संस्‍कृत1. डॉ. बलराम शुक्‍ला
2. डॉ. धनंजय वायुदेव द्विवेदी
3. श्री के. वेंकटेश मूर्ति
4. प्रोफेसर नीरज शर्मा
5. डॉ. उपेन्‍द्र कुमार त्रिपाठी

फारसी1. श्री शबीब अनवर अल्‍वी

अरबी1. डॉ. अशफ़ाक अहमद

पाली/प्राकृत1. डॉ. अनेकांत कुमार जैन  यह सम्‍मान स्‍वतंत्रता दिवस पर वर्ष में एक बार संस्‍कृ, फारसी, अरबी तथा पाली/प्राकृत के क्षेत्रों में महत्‍वपूर्ण योगदान के लिए प्रदान किया जाता है।

वि.कासौटिया/इ-अहमद/जुयाल/राजीव-5645

Sunday, August 11, 2013

उद्देश्य:भारतीय भाषाओं की उपयोगिता एवं आवश्यकताओं को रेखांकित करना

Sun, Aug 11, 2013 at 4:09 PM
नई दिल्ली मे हुआ दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन
नई दिल्ली: 11 अगस्त 2013 (राजीव गुप्ता*) विधि शिक्षा और न्याय क्षेत्र में भारतीय भाषाओं की उपयोगिता एवं आवश्यकताओं को रेखांकित करने के उद्देश्य से शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास एवं अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद ने नई दिल्ली मे दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया.  पहले दिन के इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश वी. एस. सिरपुरकर ने कहा कि देश मे भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन मिलना चाहिये. उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों को भी एक – दूसरे की भाषा का न केवल सम्मान करना चाहिये अपितु उसे अंगीकार भी करना चाहिये. इसी तरह संस्कृत भाषी कवियों व लेखकों को अपनी बात सरल भाषा में ही व्यक्त करना चाहिये. दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और प्रतियोगिता आयोग के सदस्य एस.एन. धींगरा ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थिति में भाषा को यदि व्यवसाय और रोजगार से जोड दिया जाय तो भाषा का विकास और इसकी उपयोगिता नि:सन्देह संभव है.   अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री और सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता डी. भरत कुमार ने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक का यह मौलिक अधिकार है कि वह अपना वाद और बहस अपनी मातृभाषा में करे. अपनी भाषा में न्याय की गुहार लगाना अनुच्छेद 19 का ही भाग है, जो प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है. दूसरे दिन के कार्यक्रम के मुख्य वक्ता और भारत सरकार के पूर्व सचिव बृज किशोर शर्मा ने कहा कि हिन्दी भारत की राष्ट्र्भाषा है और इसमें किसी भी प्रकार कभी भी कोई मतांतर नही रहा. जो मतांतर रहा वह केवल अंको के प्रयोग को लेकर रहा और कालंतर में निर्णय द्वारा आंग्ल लिपि के अंतर्राष्ट्रीय मानको को स्वीकृत किया गया और वही अनुच्छेद 343 में स्थान पाया. किसी भी अधिनियम के राजभाषा में अनुवाद को अधिकृत अधिनियम मानने हेतु संसद में 1972 में ही अधिनियम पारित कर दिया था, तभी से अधिकृत अनुवाद किसी भी राज्य की राजभाषा में सन्दर्भ हेतु प्रयोग किये जा सकते है. राजभाषा में विधि – पुस्तकों के हेतु उन्होनें कहा कि दंड प्रक्रिया, सिविल प्रक्रिया, संपत्ति हस्तांतरण आदि की पुस्तकें हिन्दी एवं सभी राजभाषाओं में उपलब्ध हैं लेकिन संविधान पर हिन्दी में टीका 1950 से लगातार केवल “बसु” की ही उपलब्ध हैं क्योंकि संवैधानिक विषय उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में विमर्श किये जाते है जहाँ की अधिकृत भाषा अंग्रेजी है. विधि आयोग के सदस्य बी.एन.त्रिपाठी ने कहा कि भाषा का स्वरूप सर्वप्रथम “बोली” से होता है तथा फिर शब्द व लिपि जुडती है. ऐसे में आज हिन्दी एवं राजभाषाओं को सही शब्दों से समृद्ध करना एक सतत प्रयास एवं प्रक्रिया है जिसके लिये राजभाषाओं में विधि शब्द कोषों की नितांत आवश्यकता है. साथ ही वें स्वयं सरकारी स्तर पर मातृभाषा के विषय को आगे बढायेंगे. शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के मीडिया प्रभारी राजीव गुप्ता ने बताया कि इस दो दिवसीय कार्यक्रम में देश के अनेक राज्यों के उच्च-न्यायालयों के अधिवक्ता इस दो दिवसीय कार्यक्रम में भाग लिया.

समापन समारोह में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के सचिव अतुल कोठारी ने सभा को बताया कि इस दो दिवसीय कार्यक्रम में निम्नलिखित निर्णय लिये गयें हैं :

विधि और न्याय के क्षेत्र में भारतीय के राष्ट्रीय परिसंवाद में में सर्वसम्मति से केन्द्र सरकार से मांग की गई कि -

1.      अंग्रेजी के प्रयोग पर रोक लगाकर केन्द्र में  हिन्दी और राज्यों में उनकी राजभाषा में कारगर कदम उठाये जाय.

2.      मध्य प्रदेश, रजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार (इनके विभाजन स्वरूप उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ) में उच्च न्यायालयों मे हिन्दी के प्रयोग की अनुमति है. इसी प्रकार देश के सभी अन्य राज्यों में उनके उच्च न्यायालयों के कामकाज की भाषा राजभाषा बनायी जाय.

3.      राष्ट्रपति के आदेशानुसार उच्चतम न्यायालय में अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी में कार्य करने की भी अनुमति दी जाय.

4.      देश के सभी राज्यों की विधि संबंधी सभी परीक्षाओं तथा न्यायिक सेवा का माध्यम अंग्रेजी के अलावा हिन्दी और प्रादेशिक भाषाएँ बनायी जाय.

5.      राष्ट्रीय विधि संस्थानो एवं विश्वविद्यालयों में विधि पाठयक्रमों का माध्यम हिन्दी और भारतीय भाषाएँ हो.

6.      सभी न्यायालयों में सभी कार्य राजभाषाओं में हो.

7.      सभी विधान सभाओं में विधि बनाने का कार्य मूलत: राज्य की राजभाषा में हो.

8.      सभी राज्यों में राजभाषा कार्यांवयन समिति का गठन हों.

*राजीव गुप्ता जाने माने युवा पत्रकार भी हैं और इस संगठन/संस्थान के मीडिया प्रभारी भी --उनकी रचनाएं अक्सर पंजाब स्क्रीन और अन्य ऑनलाईन पत्रिकायों में छपती रहती हैं  उनका फोन पर बात करने के लिए सम्पर्क नम्बर है  09811558925

उद्देश्य:भारतीय भाषाओं की उपयोगिता एवं आवश्यकताओं को रेखांकित करना 

Saturday, August 10, 2013

आधी सदी में भारत ने खो दी अपनी 200 से अधिक स्वदेशी भाषाएँ

1961 में बोली जाती थीं भारत में 1100 भाषाएँ 
                                                     Photo: EPA
मामला बेहद गंभीर है और इसकी खबर दी है रेडियो रूस ने जिसका शीर्षक है-आधी सदी में भारत की 200 से अधिक भाषाएँ विलुप्त। रेडिओ ने पूरी ज़िम्मेदारी से तथ्यों का हवाला देते हुए बताया है कि भारत के एक शोध संस्थान 'भाषा' जिसे 'भाषा शोध एवं प्रकाशन केन्द्र' भी कहा जाता है, के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि आधी सदी में भारत ने अपनी 200 से अधिक स्वदेशी भाषाएँ खो दी हैं।
इस क्षेत्र के एक शोधकर्ता गणेश देवी के अनुसार, सन् 1961 में भारत में 1100 भाषाएँ बोली जाती थीं लेकिन अब उनमें से 220 भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं। ये भाषाएँ सपेरों, ज्योतिषियों, स्वदेशी चिकित्सकों द्वारा बोली जाती थीं। भारत की 3-4 प्रतिशत जनसंख्या, यानी लगभग पाँच करोड़ लोग ऐसी भाषाएँ बोल सकते थे।
भारत में दो भाषाओं, हिन्दी और अंग्रेज़ी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त है जबकि 22 अन्य भाषाओं का देश के राज्यों में सरकारी भाषा के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

आधी सदी में भारत की 200 से अधिक भाषाएँ विलुप्त