Sunday, July 31, 2022

प्रेमचंद के नाम में कैसे जुड़ा 'मुंशी'

पूरी कहानी बता रहे हैं जाने माने लेखक राजिंद्र साहिल 

लुधियाना: 31 जुलाई 2022: (राजिंद्र साहिल//हिंदी स्क्रीन)::

आज महान कथाकार प्रेमचंद की जयंती है। इस अवसर उन्हें बड़ी आत्मीयता से याद भी किया जा रहा है। उनके नाम के साथ 'मुंशी' शब्द का प्रयोग भी धड़ल्ले से किया जा रहा है। दरअसल वे मुंशी जैसे किसी पद पर कभी कार्यरत नहीं रहे। फिर यह 'मुंशी' आया कहां से? 

"हंस' पत्रिका जब आरंभ की गई, तब उसके दो संपादक निश्चित हुए। पहले प्रसिद्ध साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और दूसरे स्वयं प्रेमचंद। संपादक के तौर पर दिया गया : मुंशी - प्रेमचंद।

बाद में इन दोनों शब्दों के बीच से '-' हाइफन भुला दिया गया और कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का 'मुंशी' प्रेमचंद के साथ जुड़ गया और वे बन गये मुंशी प्रेमचंद।

(प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा लिखित प्रेमचंद की जीवनी 'प्रेमचंद घर में' इस तथ्य का उद्घाटन किया गया है।

अहमद फ़रहाद साहिब की वह ग़ज़ल जिसने लोकप्रियता के रेकार्ड तोड़ दिए

 मैं फूल बाँटता हूँ मुझे–मार दीजिए 


खरड़//मोहाली: 30 जुलाई 2022: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन)::

वैसे तो अहमद फरहाद की यह ग़ज़ल भी लोकप्रियता की बुलंदियों को छूती हुई जन जन के दिल में उत्तर गई लेकिन हमें इसे पढ़ने की खुशनसीबी मिली खरड़//मोहाली के एक वटसप ग्रुप वेद दीवाना फैन क्लब में। बहुत ही मय्यारी रचनाओं को पाठकों के सामने रखने वाला यह ग्रुप तेज़ी से अपनी जगह बनाता चला जा रहा है। इसी ग्रुप में से हम दे रहे हैं अहमद फरहाद साहिब की यह ग़ज़ल जिसे ग्रुप में सभी के सामने रखा है इंद्र सैनी साहिब ने। 

काफ़िर हूँ सरफ़िरा हूँ मुझे– मार दीजिए

मैं सोचने लगा हूँ मुझे– मार दीजिए

                      मै पूछने लगा हूँ सबब अपने क़त्ल का

                     मैं हद से बढ़ गया हूँ मुझे– मार दीजिए

शायर अहमद फरहाद साहिब 

ख़ुशबू से मेरा रब्त है जुगनूँ से मेरा काम

कितना भटक गया हूँ मुझे–मार दीजिए

                    मालूम है मुझे कि–बड़ा जुर्म है ये काम

                    मैं ख़्वाब देखता हूँ मुझे– मार दीजिए

ये ज़ुल्म है कि ज़ुल्म को कहता हूँ साफ़ ज़ुल्म

क्या ज़ुल्म कर रहा हूँ मुझे–मार दीजिए

                           ज़िंदा रहा तो करता रहूंगा हमेशा प्यार

                          मैंसाफ़ कह रहा हूँ मुझे– मार दीजिए

जो ज़ख़्म बाँटते हैं उन्हें–ज़ीस्त पे है हक़

मैं फूल बाँटता हूँ मुझे–मार दीजिए

                       बारूद का नहीं– मेरा मसला दुरूद है

                      मैं ख़ैर माँगता हूँ मुझे–मार दीजिए

                             --अहमद फ़रहाद 

Friday, July 22, 2022

कविता कथा कारवां की ओर से 'सावन कवि दरबार' का आयोजन

18th July 2022 at 09:14 PM

 जानेमाने शायर सरदार पंछी मुख्य अतिथि के रूप में पधारे 


लुधियाना: 18 जुलाई 2022: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन):: 

शायरी तभी सम्भव होती है जब इन्दगी दर्द भी देती है, संवेदना भी देती है, दर्द भी देती है। इस जहां अनुभूति के बाद कोई कोई ही होता है जो इस सरे अनुभव की अभिव्यक्ति कर सकता है। जैसे जैसे यह अनुभूतियां गहरी होती आती है वैसे वैसे अभिव्यक्ति का रंग भी गहराता जाता है। लोग कहने लगते हैं आपकी कविता बहुत सुंदर हो गई है। बस ऐसे अनुभवों का अहसास करते करते ही जसप्रीत कौर फलक ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी साहिब  की कविता पर पीएचडी कर ली। यानि जीवन में भी कविता, शोध में भी कविता और इन्दगी के आयोजनों में भी कविता। कुल मिला कर जसप्रीत कौर फलक का पूरा जीवन ही कवितामय बन गया है। इसकी चमक अब तो चेहरे पर भी स्पष्ट नज़र आने लगी है। 

कविता कथा कारवाँ (रजि.) की ओर से 'सावन कवि दरबार' का आयोजन माया नगर में किया गया।  वरिष्ठतम शायर सरदार पंछी  इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे। इस अवसर पर संस्था की अध्यक्षा डॉ जसप्रीत कौर फ़लक ने आमंत्रित कवियों एवं उपस्थित गणमान्य काव्य प्रेमियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रसिद्ध भजन गायिका सरोज वर्मा के सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना गायन से हुआ। 

इसके बाद कविगणों एवं शायरों ने सावन ऋतु को केंद्र में रखकर अपनी-अपनी बेहतरीन कविताएं और ग़ज़लें प्रस्तुत कीं। रचनाकारों ने अपनी खूबसूरत ग़ज़लों, गीतों और कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। साहित्य के साथ साथ संगीत का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था। 

कवि दरबार में  डॉ जसप्रीत कौर फ़लक, डॉ जगतार धीमान, दानिश भारती, डॉ राजेंद्र साहिल, अमृतपाल गोगिया, हरदीप बिरदी, रश्मि अस्थाना, गुरचरण नारंग, नवप्रीत हैरी और डॉ रविंदर सिंह चंदी ने अपनी उच्च स्तरीय रचनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया। मशहूर शायर दानिश भारती ने प्रभावशाली ढंग से मंच का संचालन किया। 

अंत में सुश्री रश्मि अस्थाना, सचिव, कविता कथा कारवाँ (पंजीकृत) ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा। कार्यक्रम का सबसे बड़ा आकर्षण रहे मालपुए और खीर। सभी साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों ने स्वादिष्ट मालपुए-खीर का आनंद लिया और श्रावण मास का शगुन भी पूरा किया।


चलते चलते कुछ पंक्तियां 

कोई किस्से नहीं होते कोई बातें नहीं होतीं

महकते दिन नहीं होते मधुर रातें नहीं होतीं

कहीं पर दूर रहकर भी कोई दूरी नही होती

कहीं पर पास रहकर भी मुलाकातें नहीं होतीं

-डॉ कविता'किरण"

Thursday, July 21, 2022

कठिन अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति है रीतू कलसी

नई काव्य रचना भी यही बताती है 


सोशल मीडिया: 21 जुलाई 2022: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::

कितनी कठिन रही होगी ऐसी अनुभूति! 

कितनी कठिन रही होगी ऐसी कल्पना भी!

कितनी सहजता से कर दी अभिव्यक्ति!

कितनी शानदार है रीतू कलसी की यह काव्य रचना भी--!

आप ने सुना होगा वह लोकप्रिय गीत--

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे--जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे-संग संग तुम भी गुनगुनाओगे!

वो गीत भी सुना होगा--गर तुम भुला न दोगे

सपने ये सच ही होंगे

हम तुम जुदा न होगे

हम तुम जुदा न होगे 

ऐसे बहुत से गीत हैं--बहुत सी कहानियां हैं लेकिन कितने लोग याद रख पते हैं जब बिछड़ने वाला बिछड़ ही जाता है। हकीकत यही है कि जिसके बिना एक कदम तक चलना नामुमकिन लगता था हम उसके बिना भी फिर से जीना सीख ही लेते हैं। बेवफाई कहो या ज़िंदगी की मजबूरियां कि याद रखने में सहायता देने वाली सभी निशानियां मिल कर भी उन यादों को भूलने से रोक नहीं पातीं। हम सभी धीरे धीरे सभी को भूल जाते हैं। हमारे स्वार्थ हमें यही तो सिखाते हैं। ऐसे में रीतू ने कुछ ज़्यादाही सच्ची बात कह दी है। 

वैसे सत्य भी यही है--जीवन भी यही है--लेकिन स्वीकार करना आसान तो नहीं होता। हम भ्रम में जीने वाले लोग। अंधेरे में जीने वाले लोग। घर के अंदर और बाहर भी अपनी ज़रूरत के मुताबिक ही रौशनी का प्रबंध करते है। ऐसा तो कभी सपने में भी नहीं सोचते के हमारे अंतर्मन में भी हकीकत की रौशनी आ जाए। स्वयं को भुलाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलते हैं। कभी दारो--कभी सिनेमा--कभी नावल--कभी कविता---फिर भी स्वयं को भूल नहीं पाते तो कई बार नींद की गोली का भी सहारा--! बहुत डरते हैं हम अंतर्मन में रुष नि होने से। बहुत डरते हैं हम स्वयं के साक्षताकार से। अंतर्मन के आईने में झाँकने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हम लोग। जब अंतर्मन में किसी न किसी तरह ऐसी रौशनी आ ही  जाती है तभी सम्भव हो पाता है ऐसी रचना लिख पाना। ऐसी सफल रचना के लिए रीतू को हार्दिक बधाई। आप भी इस रचना को पढ़ सकते हैं लेकिन खतरा है यह आप का साक्षताकार कहीं आप से ही न करवा दे..! हिम्मत जुटा सकते हैं तो य्रुर पढिए इस धंदर कविता को।   --रेक्टर कथूरिया 

अब जिस कविता की बात की ज़रा उसे भी पढ़ लीजिए  


जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

भूल जाना उसी वक्त

बिल्कुल भी समय बरबाद मत करना

अपने दिमाग को कष्ट मत देना

मत सोचना कितना समय गुजारा मेरे साथ

हो सकता है पल भर के लिए भर आए आंखें

फिर भी जानती हूं किसी और के साथ होने से

याद भी न आयेंगे साथ गुजारे लम्हें

यही जिंदगी है जीवन है किसी के साथ कोई नही जाता

तो इसीलिए तुम ऐसा ही करना

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

सब झूठ जला देना मिटा देना 

कभी एक साथ रहने के वादों से खुद ही छुटकारा मिल जाएगा 

वादा खिलाफी के झमेलों से बचा लेगी मौत की खबर तुम्हे 

बस फिर भी 

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

तो चले जाना उसी समय बरसात में नहाने 

सब कुछ धुल जाएगा मन से तन से 

कहीं खुशबू बचाए न रखना अपने पास

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे 

मिटा देना नामोनिशान हर जगह से, हर जगह से

   ---रीतू कलसी