Wednesday, January 29, 2020

हम तन्हा हर बार चले//*पुष्पिंदर कौर "नीलम"

क्या बतलायें  कैसे हमपे  दुनिया के सब वार चले!
दोधारी तलवार था जीवन फिर भी हम हर बार चले!
मौत से आँख मिलाई हमने तांकि घर संसार चले!

आग का इक दरिया था जीवन फिर भी हमने कदम रखा;
तांकि शायद सकूं का जीवन हमको भी उस पार मिले! 

किसने सपने दिखलाये और किसने सपने तोड़ दिए;
लाख भुलाया लेकिन दिल में सोच वही हर बार चले!

इक इक सांस था मुश्किल फिर भी चेहरे पर मुस्कान रही;
क्या बतलायें  कैसे हमपे  दुनिया के सब वार चले!

बेगानों का क्या कहना है अपने भी अपने न हुए;
फिर भी जीवन की हर राह पर हम तन्हा हर बार चले!

मौत इशारे करती थी और रस्ता भी आसान सा था;
लेकिन हमको जीना था कि अपना घर परिवार चले!

कदम मिलाये, कदम बढ़ाये, फिर राहों में छोड़ गए!
आज भी लगता है कि शायद फिर उनका इकरार मिले!

हर मुस्कान में गम होता है, हर गम में कोई ख़ुशी छुपी;
ध्यान से देखो रातों में भी किरणों का इज़हार मिले! 

इक उजियारा, इक अँधियारा बार बार मिलते ही रहे;
समझ न पाए कब नफरत और कब कब किसका प्यार मिले! 

हम तो हम हैं, फिर भी खुद ही समझ न पाए खुद को हम;
फिर भी चाहत है कि हमको भगवन का इज़हार मिले!
                                                ---*पुष्पिंदर कौर "नीलम" 
*जन्म भी चंडीगढ़।  कर्मभूमि भी चंडीगढ़। कुराली और खरड़ के साथ बहुत सा भावुक लगाव। औपचारिक पढ़ाई लिखाई के बाद घर गृहस्थी में रहना चाहा था लेकिन पति की मौत एक बहुत बड़ा हादसा भी थी और चुनौती भी। रोज़ी रोटी की तलाश अकाउन्टस की तरह ले आई। फिर LIC में भी भाग्य आज़माया। चुनौतिओं का सामना करने की हिम्मत और सीख वहां से भी मिली। फिर ज़िंदगी पत्रकारिता की तरफ भी ले आई। पंजाब स्क्रीन मीडिया समूह से जुड़ना कुछ ऐसा ही साबित हुआ। यहीं से मन में दबी शायरी भी जाग उठी। तब से हालात की आंधिओं में गुम हुई डायरियों का शिकवा छोड़ कर फिर से लिखना शुरू किया है। जानती हूँ बहुत सी कमियां हैं। आप सभी लोग बताते रहना। --पुष्पिंदर कौर "नीलम" 

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