Saturday, March 30, 2024

सनातन धर्म बनाम हिंदू धर्म//संजय पराते की टिप्पणी

Saturday: 30th March 2024 at 5:39 PM

हिंदी पुस्तक सनातन धर्म : इतना सरल नहीं पर विशेष टिप्पणी 

छत्तीसगढ़ से: 30 मार्च 2024: (संजय पराते//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::
हाल ही में अरुण माहेश्वरी की 8 अध्यायों में विभाजित एक छोटी-सी पुस्तिका "सनातन धर्म : इतना सरल नहीं" आई है। यह पुस्तिका सनातन धर्म और हिंदू धर्म के बीच के संबंधों और विवादों का गहराई से तथ्यपरक विश्लेषण करती है। 

हाल ही में हिंदुत्व का झंडा उठाए संघ-भाजपा ने चुपचाप हिंदू धर्म को सनातन धर्म से प्रतिस्थापित करने की कोशिश की है और सनातन धर्म को हिंदू धर्म का  समानार्थी बता रही है। संघ भाजपा के इस चमत्कार पर पानी डालने का काम अरुण माहेश्वरी ने किया है। इस मायने में सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं के लिए यह पुस्तिका बहुत उपयोगी है। 

स्वामी करपात्री महाराज हिंदू धर्म के कट्टर नेता और शास्त्रज्ञ थे, जिन्होंने वेद, दर्शन, धर्म और राजनीति से जुड़े विषयों पर विपुल लेखन किया है। कट्टर हिंदू थे, सनातनी धर्म के अनुयायी थे, तो निश्चित रूप से मार्क्सवाद विरोधी भी थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी "मार्क्सवाद और रामराज्य।" इसके जवाब में राहुल सांकृत्यायन ने एक छोटी-सी पुस्तिका लिखी थी "रामराज्य और मार्क्सवाद", जिसमें उन्होंने करपात्रीजी के दार्शनिक और राजनैतिक तर्कों की धज्जियां उड़ा दी थी। लेकिन इससे करपात्रीजी की विद्वत्ता पर कोई आंच नहीं आती।

वर्ष 1940 में उन्होंने एक 'धर्म संघ' की स्थापना की थी -- जिसका उद्देश्य था सनातन धर्म की स्थापना ; जबकि वर्ष 1925 में ही आरएसएस की स्थापना हो चुकी थी, जो हिंदू धर्म और नाजीवाद के आधार पर देश को चलाना चाहता था। साफ है कि आरएसएस के हिंदू धर्म से करपात्री महाराज के सनातनी धर्म का कोई लेना-देना नहीं था। वर्ष 1948 में उन्होंने 'रामराज्य परिषद्' का गठन किया, जबकि इसके बाद आरएसएस ने 1951 में जनसंघ का गठन किया था। आरएसएस का यह कदम भी बताता है कि उस समय उसके हिंदू धर्म का सनातन से कोई संबंध नहीं था। 1966 से गोरक्षा आंदोलन की शुरुआत भी करपात्रीजी ने ही की थी, जबकि यह मुद्दा आरएसएस के एजेंडे में भी नहीं था। करपात्रीजी के आरएसएस विरोध का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि उन्होंने 'राष्ट्रीय सेवक संघ और हिंदू धर्म' नामक एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने संघ के परम पूज्य गुरु गोलवलकर की 'विचार नवनीत' और 'हम या हमारा राष्ट्रीयत्व' में उल्लेखित हिंदू धर्म संबंधी धारणाओं का दार्शनिक दृष्टि से खंडन किया है और आरएसएस को हिंदू धर्म विरोधी संगठन घोषित किया है। उनकी दृष्टि में संघ का पूरा आचरण कपट और मिथ्याचार से भरा था और ऐसे में उनसे हिंदू धर्म की रक्षा की आशा नहीं की जा सकती थी। यही कारण है कि अपने शुरुआती जीवन के कुछ वर्षों बाद उन्होंने संघ से सहयोग का रास्ता छोड़ दिया था।

अपनी पुस्तिका में अरुण माहेश्वरी ने गोलवलकर की विचार-सरणी के बरक्स करपात्री महाराज को रखा है। आज जब "भगवाधारी आए हैं" का नारा संघ-भाजपा का प्रिय नारा बन गया है, माहेश्वरी बताते हैं कि किस प्रकार    करपात्रीजी ने भगवा ध्वज की श्रेष्ठता और इसके राष्ट्रीयता का प्रतीक होने की संघ की धारणा को दार्शनिक चुनौती दी थी। वे करपात्री जी को उद्धृत करते हैं -- (महा) "भारत संग्राम में भीष्म, द्रोण, कर्ण, भीम, अर्जुन के रथ के ध्वज पृथक-पृथक थे। अर्जुन तो कपि ध्वज के रूप में प्रसिद्ध ही है। अतः सभी हमारे पूर्वज भगवा ध्वज को ही मानते थे, यह तो नहीं ही कहा जा सकता। ... (इसलिए) आपके भगवा ध्वज को अपना लेने से वह सार्वभौम, सर्वमान्य नहीं कहा जा सकता।" यह उल्लेखनीय है कि भगवा ध्वज की श्रेष्ठता का प्रचार करते हुए छत्तीसगढ़ में ध्वज विवाद के नाम पर कई जगहों पर संघ-भाजपा ने सांप्रदायिक तनाव और दंगे भड़काए हैं। इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर तो ऐसा माहौल बनाया गया था कि राष्ट्रीय झंडा 'तिरंगा' की जगह भगवा ने ही ले लिया है। 

करपात्रीजी शास्त्रों के सहारे यह भी सिद्ध करते है कि सनातनी हिंदू अनिवार्य तौर पर वर्णाश्रमी होगा और सांप्रदायिक होना कोई दुर्गुण नहीं, बल्कि हिन्दू होने का प्रमुख गुण है। संघ-भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति इन दोनों आरोपों से बचना चाहती है। इसी क्रम में उन्होंने 'राष्ट्रीयता' के संबंध में आरएसएस की इस अवधारणा का भी शास्त्रीय खंडन किया है कि केवल समान धर्म, समान भाषा, समान संस्कृति, समान जाति और समान इतिहास वाले लोग ही 'एक राष्ट्र' कहे जा सकते हैं और मुस्लिम, ईसाई आदि यदि हिंदू धर्म में सम्मिलित हो जाएं, तो वे भी 'राष्ट्रीय' हो सकते हैं। करपात्री जी के सनातनी विचारों के अनुसार संघ की यह सोच मुस्लिम विरोध और हिटलर के उग्र राष्ट्रवाद की अनुगामिता से उपजी है। उनका मानना है कि सनातन की अवधारणा मूलतः वेदों की अनादिता और अपौरुषेयता पर टिकी हुई है, जिसे गोलवरकर नहीं मानते। इस प्रकार, अपने शास्त्र-आधारित तर्कों से करपात्री महाराज आरएसएस को न केवल हिंदू धर्म विरोधी, बल्कि सनातन धर्म विरोधी भी साबित करते हैं। 

गोलवलकर और किसी भी अन्य संघी सिद्धांतकार ने आज तक करपात्री जी के आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया है, क्योंकि उनके पास करपात्री के धर्म आधारित विचारों का खण्डन करने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि नहीं है, जैसी दृष्टि राहुल सांकृत्यायन के पास थी। अरुण माहेश्वरी की टिप्पणी है -- "आज तो इस मोदी युग में आरएसएस ने खुद ही सनातन धर्म का झंडा उठाकर प्रकारांतर से करपात्री के तब के सारे अभियोगों को नतमस्तक होकर पूरी तरह स्वीकार कर लिया है।" जिन लोगों पर सनातन धर्म नष्ट करने का आरोप लगा था, यह इतिहास की उलटबांसी है कि उनके ही वंशज आज सनातन धर्म का झंडा उठाए विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' पर आरोप लगा रहे हैं कि वे भारत से सनातन को नष्ट करना चाहते हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसा अंग्रेजों का तलुवे चाटने वाला संघ आज अपने को राष्ट्र भक्त और विपक्ष को राष्ट्र विरोधी बताने में लगा हुआ है। हिंदू धर्म को सनातन धर्म कहना वैसा ही है, जैसा वर्ष 2014 के चुनावी वादे बाद में पूरे संघी गिरोह के लिए 'जुमलों' में बदल गए थे और आज फिर उसे 'मोदी गारंटी' के रूप में पेश किया जा रहा है। साफ है कि संघ-भाजपा को न तो हिंदू धर्म से कोई मतलब है, न सनातन धर्म से कोई लेना-देना है। सत्ता के लिए धर्म को जब राजनीति का हथियार बनाया जाता है, तो ऐसी कलाबाजी भी करनी ही पड़ेगी। 

विचारशील 'भक्तों' के लिए भी यह पुस्तिका उनकी आंखें खोलने वाली साबित होगी, ऐसी आशा की जा सकती है।

 _*(टिप्पणीकार वामपंथी कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष है। संपर्क : 94242-31650)*

पुस्तक : सनातन धर्म : इतना सरल नहीं
लेखक : अरुण माहेश्वरी (मो. 98310-97219)
प्रकाशन : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
मूल्य : 200 रूपये

Sunday, March 17, 2024

नवरंग लिटरेरी सोसायटी फिर सजाई लुधियाना में अदबी महफिल

Sunday 17th March 2023 at 20:09 

शायरों ने फिर दिया समाज और दुनिया को ढाई आखर प्रेम का ज्ञान


लुधियाना
: 17 मार्च 2024:(कार्तिका कल्याणी सिंह//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

लुधियाना यूं तो कारोबारी शहर है। बिलकुल महानगर जैसा लेकिन फिर भी यहाँ शायरी लगातार फलफूल रही है। दशकों पहले साहिर लुधियानवी साहिब ने शायरी के जो बोल और सुर इस शहर की फ़िज़ायों में घोले थे उनका अहसास आज भी होता है। साहिर साहिब के बाद जनाब कृष्ण अदीब और अजायब चित्रकार जैसे समर्पित कलमकारों ने शायरी  के इस माहौल को अमीर बनाया। 

इसी परम्परा को ज़िंदा रखने वालों में नवरंग लिटरेरी सोसायटी भी है। जनाब सागर सियालकोटी साहिब सरदार पंछी और कई दुसरे शायर अपने अपने कलाम में लुधियाना के शायरी पसंद लोगों को उन्ही  के दिल की गहरी और सच्ची बातें  सुनाते रहते हैं। 

इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज की इस अदबी महफ़िल का स्थान श्री यशपाल गोसाईं जी का दफ्तर रखा गया था। चंडीगढ़ रोड पर फोर्टिज हस्पताल के नज़दीक सत्संग घर गेट नंबर 7 के सामने बने इस कार्यालय में हुआ  इस छोटी सी अदबी महफ़िल  का आयोजन। 

इस मौके पर सागर सिसलकोटी, विजय वाजिद, ए पी मौर्य, पाल संसारपुरी, गगन, केवल दीवाना, अशोक सन्यासी व रविन्द्र अग्रवाल ने अपने कलाम से महफ़िल में चार चाँद लगाए। नवरंग के अध्यक्ष सागर स्यालकोटी जी ने कहा ऐसी अदब की महफिलें सजती रहनी चाहिए इससे आपस में प्यार बढ़ता है और साहित्यकार अपनी रचनाओं से समाज की समस्याओं को उजागर करते हैं। नवरंग की कोशिश रहेगी कि हर माह में काव्य गोश्ठी का आयोजन करती रहेगी।

गौरतलब है कि उस्ताद शायर सागर सियालकोटी साहिब उर्दू ज़ुबान और शायरी की गहरी समझ रखते हैं। शायरी का मर्म समझने के लिए कई बार बहुत से साहित्य प्रेमी और खुद शायर भी सागर साहिब के साथ फोन पर मशवरा करते हैं। आज की महफ़िल भी बेहद ख़ास रही। 

Wednesday, February 14, 2024

तहज़ीब द्वारा 16 वां राष्ट्रीय मुशायरा 18 फरवरी को

Wednesday:14th February 2024 at 13:02 

इस मुशायरे में शिरकत कर के  सकेंगे बहुत सी अनमोल यादें 


लुधियाना
: 14 फरवरी 2024: (छाया शर्मा//हिंदी स्क्रीन डेस्क):: 

बाग़ में धीमी-धीमी चलती हवा पौधों को झूमने लगा देती है और फूलों से ख़ुशबू लेकर दूर-दूर तक फैला देती है। यही हवा सोये हुओं को जगाने का काम भी करती है। लुधियाना के 16वें कुल हिंद मुशायरे में शायरी की कुछ ऐसी ही हवा चलने वाली है। 

ख़ास और ख़ूबसूरत बात ये है कि इस मुशायरे में शिरकत कर रहे सभी शायर इसी मंद-मंद चलने वाली पुरवाई के नुमाईंदा शायर हैं। आपकी शाइरी, सुनने वालों के ज़ह्न से होते हुए सीधा दिल में जगह बना लेती है। तहज़ीब द कल्चर ऑफ लव सोसाइटी को ये शरफ़ हासिल हुआ है कि लुधियाना शहर के सुख़न फ़हम लोगों को ऐसे बेहतरीन शायरों से रू-ब-रू किया जाए।

तो आइये 18 फ़रवरी, इतवार को शाम 4:30 बजे नेहरू सिद्धांत केंद्र, फ़िरोज़ गाँधी मार्केट लुधियाना में इस शानदार मुशायरे का लुत्फ़ उठाने के लिये। मुशायरा की तैयारी संबंधी एक एग्जीक्यूटिव मीटिंग विवेकानंद मेडिटेशन पिरामिड में रखी गई जिसमें अनिल भारती, मुकेश आलम,प्रोफेसर सुरेंद्र खन्ना, अशोक धीर, राकेश खरबंदा, छाया शर्मा, मनीष कक्कड़ व राजेंद्र शर्मा उपस्थित थे।

इस बार भी यह मुशायरा ऐतिहासिक साबित होगा और हर बार की तरह इस बार भी अपनी बहुत सी यादें छोड़ जाएगा। इसमें आप बहुत से जानेमाने शायरों को बहुत नज़दीक से देख सुन सकेंगे और उनके अंदाज़ कॉमन में बसा सकेंगे। 

गौरतलब है कि यह मुशायरा कुछ बहुत ही गहरी यादों के सिलसिले को आगे बढ़ाता है। दिल से जुडी यादें। दोस्ती से जुडी यादें। करीब 17  बरस पहले जनाब मुकेश आलम साहिब के एक मित्र हुआ करते थे सुखबीर टोनी साहिब। बहुत ही मिलनसार और संवेदनशील इंसान। उनका होना बहुत से लोगों की ज़िन्दगी के लिए बेहद ज़रूरी भी था।शायरी के लिए भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहती। 

16 फरवरी 2019 के मुशायरे की एक यादगारी तस्वीर 

लेकिन अचानक एक वज्रपात हुआ और होनी हो के ही रही। उनका साथ हम सभी के साथ टूट गया। मौत ने उन्हें हमसे छीन लिया। उनकी याद में मुकेश आलम सहिब और अन्य दोस्तों ने इस मुशायरे की शुरुआत की। तब से मुशायरे का यह सिलसिला लगातार जारी है।

आखिर में जनाब राकेश खरबंदा जी के शब्दों में भी कुछ शब्द/कुछ पंक्तियां:

जिस पत्थर पर बैठ के मैंने याद किया था तुमको

आ कर देखो लोग उसे अब मंदिर बोल रहे हैं

प्यारे दोस्त सुखबीर टोनी की पाकीज़ा और लाफ़ानी याद में Tehzeeb - The Culture of Love की जानिब से लुधियाना का शानदार कुल-हिन्द मुशायरा 

👉इतवार, 18 फ़रवरी 2024 को शाम 4:30 बजे होने जा रहा है👈

आइए 'सुखबीर टोनी' की रूहानी शख़्सियत से मुलाक़ात करते हैं ❤️❤️

स्थान- नेहरू सिद्धांत केन्द्र, फ़िरोज़ गाँधी मार्केट, पक्खोवाल रोड, लुधियाना

निरंतर सामाजिक चेतना और जनहित ब्लॉग मीडिया में योगदान दें। हर दिन, हर हफ्ते, हर महीने या कभी-कभी इस शुभ कार्य के लिए आप जो भी राशि खर्च कर सकते हैं, उसे अवश्य ही खर्च करना चाहिए। आप इसे नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके आसानी से कर सकते हैं।

Thursday, February 8, 2024

स्व. कृष्णबिहारी नूर पर एक विशेष पोस्ट और श्रद्धासुमन

 Tuesday 30th January 2024 at 04:46 AM 

*डा. कृष्णकुमार 'नाज़' साहब की कलम से.... 

उनकी दोस्ती हर धर्म और हर वर्ग के लोगों से थी 


शायरी और शायरों की दुनिया
: 8 फरवरी 2024: (*
डा. कृष्णकुमार 'नाज़'//हिंदी स्क्रीन डेस्क):: 

गेहुँआँ रंग, उभरा हुआ माथा, काले रँगे हुए बाल, क्लीनशेव चेहरा, होंठों पर निरन्तर तैरती मुस्कान, हर समय कुछ न कुछ खोजती रहने वाली चमकदार आँखें; ये सब बातें यदि किसी अच्छे चित्रकार को बता दी जाएँ तो वह अपनी तूलिका से जो चित्र तैयार करेगा, वह निस्सन्देह श्री कृष्णबिहारी ‘नूर’ का होगा। चूड़ीदार पाजामा, ढीला कुर्ता और उस पर जैकेट पहने नूरसाहब जब मुशायरों और कवि-सम्मेलनों के मंचों पर जाते, तो पहली नज़र में ही ऐसा लगने लगता था कि जैसे लखनवी नज़ाकत और नफ़ासत सिमटकर उनकी आग़ोश में आ गयी हो। कपड़ों पर यदि तनिक भी दाग़-धब्बा लग गया, तो तुरन्त ही पोशाक बदलते थे। रहन-सहन, खाने-पीने और पहनने-ओढ़ने के मामले में उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। उनके व्यक्तित्व, बोलचाल और रहन-सहन में लखनऊ की वह तहज़ीब बसती थी, जो आज उँगलियों पर गिने जाने वाले लोगों को ही मयस्सर है। नूर साहब के व्यक्तित्व और सबको साथ लेकर चलने वाली उनकी जीवनशैली से प्रभावित लोगों का एक बड़ा समूह है। हालाँकि आज शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसका कोई विरोधी न हो, लेकिन मैं यह देखता था कि उनके विरोधी उनके सामने आते ही इस प्रकार हो जाते थे, जैसे मैगज़ीन के पन्ने ट्रेन की खिड़की से आती हवा में फड़फड़ाकर अपनी खीझ प्रकट करते हैं।

उनकी दोस्ती हर धर्म और हर वर्ग के लोगों से थी और वह इस बात का ख़याल भी रखते थे कि बातचीत के दौरान कहीं किसी को भावनात्मक ठेस न पहुँचे। एक घटना मुझे याद आ रही है। मैं नूरसाहब के साथ ही उनके ड्राइंगरूम में बैठा हुआ था। तभी उनके एक परिचित आये और अपनी कम्पनी का नववर्ष का कलेण्डर ड्राइंगरूम में टाँग दिया। नूरसाहब ने जब देखा कि कलेण्डर पर देवी-देवताओं के चित्र हैं, तो उनसे बोले-‘‘भई देखो हमारे ड्राइंगरूम में हर मज़हब के लोग आते हैं। इस कलेण्डर को देखकर हो सकता है किसी को ठेस पहुँचे, इसलिए इसे घर के भीतर टाँग दो और ड्राइंगरूम के लिए कोई ख़ूबसूरत सीनरी ले आओ।’’ यह था नूरसाहब का व्यक्तित्व और उनकी भावना।

नूर साहब समय का बहुत ख़याल रखते थे। अगर मिलने के लिए किसी को समय दिया है, तो निश्चित समय पर उस व्यक्ति की प्रतीक्षा करते थे। यदि अकारण ही वह व्यक्ति विलम्ब से आये तो उसे नूरसाहब की नाराज़गी सहनी पड़ती थी। 

नूर साहब वायदे की क़ीमत भी जानते थे और अहमियत भी। यह उनके व्यक्तित्व की विशेषता ही थी कि बाज़ार में जो चीज़ उन्हें पसन्द आ गयी, उसे ख़रीदते समय कभी उसका मूल्य नहीं पूछा, कभी मोल-भाव नहीं किया। दुकानदार ने क़ीमत बताई और नूरसाहब ने चुकता करदी। नूरसाहब के ही एक मित्र बताते हैं कि वह और नूरसाहब लखनऊ में मीना बाज़ार में घूम रहे थे। तभी एक दुकान पर उन्हें शोकेस में रखा कपड़ा पसन्द आ गया। नूरसाहब दुकान पर गये, कपड़ा लिया और दुकानदार द्वारा बतायी गयी क़ीमत चुका कर चल दिये। थोड़ी दूर जाकर उनके मित्र ने कहा- ‘‘नूरसाहब, अगर आप कुछ मिनट ठहरें तो यही कपड़ा उसी दुकान से मैं कम क़ीमत पर ला सकता हूँ।’’ यह सुनकर नूरसाहब हँसे और बोले- ‘‘यह काम तो हम भी कर सकते थे, लेकिन पसन्द आयी चीज़ का मोलभाव करना पसन्द की तौहीन है।’’ यह थी नूरसाहब की विशेषता और मूल्यों का रखरखाव। क्रोध के क्षणों में भी उनके होंठों पर कभी अमर्यादित शब्द नहीं आये।

नूर साहब बहुत विनम्र और सरल स्वभाव के सादगीपसन्द व्यक्ति थे। असल में यही सादगी और विनम्रता उनकी शायरी का केन्द्र है। नूरसाहब ने निरन्तर सफलता की ऊँचाइयों को छुआ, लेकिन अपनी ज़मीन को, अपने आधार को कभी पाँवों से नहीं खि़सकने दिया। जहाँ उन्होंने बड़ों को सम्मान दिया, वहीं छोटों को बेपनाह मुहब्बतें दीं, प्यार लुटाया। यह उनके व्यक्तित्त्व का बड़प्पन था। शायद इन्हीं सब बातों ने उन्हें साधारण इंसान से सन्त की श्रेणी में ला खड़ा किया। 

नूर साहब के व्यक्तित्त्व के सम्बन्ध में प्रसिद्ध इतिहासकार डा. योगेश प्रवीन कहते हैं- "20वीं सदी के अज़ीम शायर कृष्णबिहारी ‘नूर’ साहब एक बड़े शायर ही नहीं, एक आला दरजे की इंसानियत का मर्तबा रखने वाले इंसान थे। उनके पास अच्छी निगाह थी, रेशमी अहसास थे और सुनहरी क़लम थी, जिससे उन्होंने जो कुछ भी लिखा वो अमर हो गया। उन्होंने फूल की पंखुड़ियों पर भी लिखा है, चाँदनी की सतह पर भी लिखा है और सबसे बड़ी बात है कि हमारे आपके दिल के वरक़ पर भी लिखा है।’’

झाँसी से प्रकाशित ‘मार्गदर्शक’ साप्ताहिक की लेखमाला में श्री ओमशंकर ‘असर’ लिखते हैं- "नूरसाहब ज़िन्दगी में बहुत आम आदमी हैं, मगर शायरी में वे असाधारण ही हैं। साधारण और असाधारण दोनों गुण एक साथ अगर देखने हों, तो नूरसाहब का व्यक्तित्व और फिर उनकी शायरी का मज़ा लें। आम-फ़हम होने के नाते वे बहुत सादा ज़ुबान अपने शेरों में पिरोते हैं और असाधारण होने के नाते उनके विचार बहुत गहरे भी हैं और ऊँचे भी।’’

यक़ीनन नूरसाहब जितने बड़े शायर थे, उतने ही बड़े इंसान भी। उनके व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व में अन्तर तलाश पाना असम्भव है। मैंने स्वयं कविसम्मेलन और मुशायरों के मंचों पर देखा है कि नये से नये शायर ने अगर अच्छी कविता लिखी है, तो उसे भरपूर प्रोत्साहित किया करते थे, जबकि बड़े से बड़े शायर की नीरस और अर्थहीन कविता पर वे ख़ामोशी ओढ़ लिया करते थे। अपने से बड़ों को भरपूर सम्मान देना तथा छोटों से बड़े प्यार के साथ मिलना उनके व्यक्तित्त्व का विशेष गुण था।

नूर साहब का लेखन चूँकि अध्यात्म और भारतीय दर्शन पर आधारित है, इसलिए उनकी कविता के चाहने वालों में बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों की संख्या अधिक है। इस बात को नूरसाहब बख़ूबी जानते थे और इसकी पुष्टि एक छोटे से संस्मरण से भी हो जाती है-

बात सन् 1990 की है। मैं मुरादाबाद के ही महाराजा हरिश्चन्द्र डिग्री कालेज से उर्दू में एम.ए. कर रहा था। यूँ कहिये कि एम.ए. के द्वितीय वर्ष की परीक्षा देने के बाद मैं ‘वायवा’ के लिए कालेज गया था। जैसे ही मेरा नम्बर आया और मैं कमरे में दाखि़ल हुआ तो वहाँ उर्दू विभागाध्यक्ष साबिर हसन साहब ने परीक्षक महोदय से मेरा परिचय कराया- सर, ये मिस्टर कृष्णकुमार हैं और हमारे कालेज के अकेले नाॅन मुस्लिम कैंडिडेट हैं।

परीक्षक महोदय ने बड़े प्यार के साथ कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा- तशरीफ़ रखिये। मैं कुर्सी पर बैठ गया, लेकिन दिल धड़क रहा था कि कहीं वह कोई ऐसा सवाल न पूछ बैठें जो मुझे नहीं आता हो। तभी उन्होंने कहा-‘आप किसी शायर के दो शेर सुनाइये।’ मैंने उनसे निवेदन किया- सर, अगर आप इजाज़त दें, तो मैं अपने ही दो शेर पेश कर दूँ। उन्होंने ख़ुश होते हुए पूछा- क्या आप भी शेर कहते हैं? मैंने कहा- जी सर, थोड़ी-बहुत जोड़-तोड़ कर लेता हूँ। वह बोले- सुनाइये। मैंने धड़कते दिल से दो शेर सुना दिये। सुनकर बोले- वाह-वाह, दो शेर और सुनाइये। मैंने दो शेर और सुना दिये। उन्होंने फिर दाद दी और पूछा- आप इसलाह किनसे लेते हैं? मैंने कहा- जनाब कृष्णबिहारी ‘नूर’ से।

यक़ीन जानिये, नूरसाहब का नाम सुनते ही वे दोनों हत्थे पकड़कर कुर्सी से खड़े हो गये और बोले-"अरे भई! वाह-वाह, आपने उस्ताद के रूप में ऐसे शायर का इन्तख़ाब किया है, जो अपने तरीक़े का हिन्दुस्तान का अकेला शायर है। शुक्रिया, आपका वायवा हो गया।" मेरी सारी मुश्किल आसान हो गयी। 

शायर मेराज फ़ैज़ाबादी नूर साहब को चचा कहते थे और उनका बड़ा सम्मान करते थे। नूरसाहब भी उन्हें बहुत प्यार करते थे। मेराज साहब का नूरसाहब के व्यक्तित्त्व के प्रति अद्भुत दृष्टिकोण है। वह कहते हैं- ‘‘होठों पर मुस्तकि़ल खेलती हुई हँसी, ज़िन्दगी से भरपूर मुस्कराहट, चेहरे पर ऋषियों जैसा सुकून और पवित्रता, आँखों में लमहाभर चमककर बुझ जाने वाले दुखों के साये, कृष्णबिहारी ‘नूर’ तारीकियों के इस युग में बीती हुई पुरनूर सदियों का सफ़ीर (राजदूत), एक फ़नकार, एक इंसान, एक फ़क़ीर और मुशायरे के माइक पर एक फि़क्रोफ़न का दरिया।’’

प्रसिद्ध कवि एवं पत्रकार कन्हैयालाल नंदन लिखते हैं- ‘‘लखनऊ ऑल इंडिया रेडियो ने एक कवि-सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें हिन्दी-उर्दू दोनों की नुमाइंदगी की गयी। बाईपास सर्जरी के बाद पहला मुशायरा पढ़ने आये थे इसमें नूरसाहब। दिल्ली से मैं भी शरीके-महफि़ल था, सो चश्मदीद वाक़या बयान कर रहा हूँ कि जब नूरसाहब को पढ़ने की दावत दी गई तो रेडियो ने उन्हें सहूलियत से काम-अंजाम देने के लिए जहाँ बैठे थे, वहीं से पढ़ने की सुविधा देनी चाही। नूरसाहब ने अपना बाईपास रखा किनारे और हाज़रीन से मुख़ातिब होते हुए बोले- ‘आप माफ़ी दें, डाक्टरों ने दिल चीर के रख दिया, लेकिन उन्हें क्या पता कि मेरा दिल मेरे पास है ही नहीं, वह तो मेरे चाहने वाले आप जैसे लोगों के पास है, सो शेर मुलाहज़ा हो ...’ और फिर तो साहब नूरसाहब ने ऐसे पढ़ा जैसे पिंजरे से निकल के परिन्दे ने बेख़ौफ़ उड़ानें भरी हों। ग़ज़ल भी वो पढ़ी जो उनकी ग़ज़लों में मेरी सबसे पसन्दीदा ग़ज़ल है। बल्कि उसका एक शेर तो मेरे जीवन के दर्शन का हिस्सा बन चुका है-

मैं एक क़तरा हूँ मेरा अलग वजूद तो है

हुआ करे जो समन्दर, मेरी तलाश में है"

प्रख्यात संगीतकार एवं गीतकार श्री रवीन्द्र जैन कुछ यूं फ़रमाते हैं- "नूरसाहब यूँ तो तहत में पढ़ते थे, लेकिन पढ़ने के अंदाज़ से तरन्नुम में पढ़ने वाले मात खा जाते थे। मुशायरा मुंबई में हो या मुंबई के आसपास, नूरसाहब का क़याम अक्सर और पेशतर मेरे छोटे से आशियाने में हुआ करता था। घर में क़याम तो जिस्मानी तौर पर था, नूरसाहब तो रूह की गहराइयों में उतर चुके थे। न सिर्फ़ अपने, बल्कि हम दोनों अपने पसंदीदा शायरों के शेर एक-दूसरे से बाँटते थे, जब कभी मेरा लखनऊ प्रवास होता, नूरसाहब मेरी सिदारत में अपने दौलतख़ाने पर मेरे एज़ाज़ में नशिस्त रखते। वो शायरी जिसका हम मुंबई में तसव्वुर भी नहीं कर सकते, लखनऊ के शोअरा से सुनने को मिलती, भाभीजान के हाथ के बने मूँगफली के क़बाब मैं आज भी नहीं भूला हूँ। मुंबई-लखनऊ में मिलने का सिलसिला अब भी बरक़रार रहता, अगर दयाहीन मृत्यु उन्हें यूँ अचानक न ले जाती।

अपने होने का सुबूत और निशाँ छोड़ती है

रास्ता कोई नदी यूँ ही कहाँ छोड़ती है

नश्शे में डूबे कोई, कोई जिये, कोई मरे

तीर क्या-क्या तेरी आँखों की कमाँ छोड़ती है

बंद आँखों को नज़र आती है, जाग उठती हैं

रोशनी ऐसी हर आवाज़े-अज़ाँ छोड़ती है

ख़ुद भी खो जाती है, मिट जाती है, मर जाती है

जब कोई क़ौम कभी अपनी ज़बाँ छोड़ती है

आत्मा नाम ही रखती है न मज़हब कोई

वो तो मरती भी नहीं, सिर्फ़ मकाँ छोड़ती है

एक दिन सबको चुकाना है अनासिर का हिसाब

ज़िंदगी छोड़ भी दे, मौत कहाँ छोड़ती है

मरने वालों को भी मिलते नहीं मरने वाले

मौत ले जाके ख़ुदा जाने कहाँ छोड़ती है

ज़ब्ते-ग़म खेल नहीं है अभी कैसे समझाऊँ,

देखना मेरी चिता कितना धुआँ छोड़ती है

और अंत में श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए अपनी बात समाप्त करता हूं…

वो जिसने ज़िंदगी भर छांव बांटी 

मैं पत्ता हूं उसी बूढ़े शजर का

*डा. कृष्णकुमार ' नाज़' साहिब की  यह प्रस्तुति हमें माननीय साहित्य प्रेमी और शायरी   ग्रुप इत्यादि के सक्रिय संचालक राजीव कुमार जी से हुई। 

जनाब कृष्ण बिहारी नूर साहिब पर एक पोस्ट यहां क्लिक करके भी देखें प्लीज़ 


Tuesday, October 10, 2023

ग़ज़ल//*शुचि 'भवि'

हिंदी में गज़ल के रंग को गहरा करने में जुटी शायरा  


लुधियाना: 10 अक्टूबर 2023: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन):: 

कम से कम 10 पुस्तकों की रचेता जिनमें 5 दोहा संग्रह, 1 कविता संग्रह, 1 ग़ज़ल संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह,1 उपन्यास, 1छंद संग्रह इत्यादि शामिल हैं। इन दस पुस्तकों में उनकी रचनात्मक क्षमता का विशेष रंग देखने को मिलता है। भिलाई छत्तीसगढ़ में रहते हुए भी पंजाब और पंजाबी से भी शुचि भवि का पूरा लगाव है। पंजाब के साहित्य प्रेमी जब भी याद करें तो शुचि भवि इतनी दूरी तय करके पंजाब में भी आ जाती हैं। उनकी शायरी में जहां ख्यालों  की उड़ान कमाल की होती है वहीं गज़ल की व्याकरण और तोल का भी पूरा ध्यान रखा जाता है। 

इस मुहारत का सारा क्रेडिट वह अपने उस्ताद शायर जनाब सागर सियालकोटी साहिब को देती हैं और बताती हैं कि उनकी गज़ल साधना में सागर साहिब हर कदम पर मार्गदर्शन देते रहे हैं। अब भी उनका आशीर्वाद हमेशा साथ रहता है। 

इस बार वह नवरंग लिटरेरी सोसाइटी की तरफ से विशेष तौर पर आयोजित एक कार्यक्रम में लुधियाना आ रही हैं 21 अक्टूबर 2023 को। इसका विवरण अलग पोस्ट में है। मंच पर भी शुचि भवि का अंदाज़ बेहद यादगारी होता है। 

उन्हें पहली बार सुना देखा था कई बरस पहले लुधियाना के बहुत ही पुराने स्कूल वायली मेमोरियल स्कूल में। अंधेरा होने को था लेकिन श्रोता बार बार उनसे एक और*एक और रचना की गुजारिश किए जा रहे थे।फ़िलहाल आप यहां पढिए सुश्री शुचि भवि की एक नई गज़ल। जो उन्होंने हमें हाल ही में प्रकाशनार्थ भेजी है।  हम आपके सामने उनकी और रचनाएं भी जल्द लाएंगे।   --रेक्टर कथूरिया 

शायरा शुचि भवि 

कहाँ बदरी  कि  मनमानी  टिकेगी  चाँद  आते ही

चली   है  चाँदनी  इठला  के  चंदा  के  बुलाते  ही


नज़र उसने झुका ली क्यों  ग़ज़ल ये  गुनगुनाते ही

चमक रुख़सार पर आयी ये किसका नाम आते ही


ज़माने  भर  के  झूठों  ने जलायीं  थी  मशालें  जो

बुझीं सारी, हमारे सच की इक शम्अ के जलाते ही


मुझे अफ़सोस है इस बात का लेकिन  है मजबूरी

कई  चेहरे   उतर   जाएंगे   मेरे   मुस्कुराते   ही


वफ़ाएँ जो नहीं समझा,नहीं समझा जो अश्कों को

उसे   क्यूँ  ढूँढता  है   दिल   ज़रा  सा दूर जाते ही


था बेशक तंग थोड़ा जो, हुआ अब क़ीमती बेहद

वो तहख़ाना मेरे दिल का, मकीं उसको बनाते ही


तेरी तस्वीर का भी आसरा अब है नहीं 'भवि' को

झलक  जाऊँगी  मैं  तुझमें, तेरा  चेहरा बनाते ही

---*शुचि 'भवि' 

   भिलाई, छत्तीसगढ़


नवरंग लिटरेरी सोसाइटी की तरफ से विशेष आयोजन का विवरण अलग पोस्ट में यहाँ क्लिक कीजिए

Saturday, September 16, 2023

"हिन्दी दिवस" के उपलक्ष्य में हिन्दी शिक्षक संघ का विशेष आयोजन 17 सितम्बर को

मालवा सैन्ट्रल कॉलेज ऑफ ऐजुकेशन फ़ॉर वूमन में होगा कार्यक्रम 

लुधियाना: 15 सितम्बर 2023: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

पंजाब के पंजाबी परिवारों और सिख परिवारों में से
बहुत से कलमकार ऐसे हैं जिन्होंने उन दिनों भी हिंदी से अपना गहरा प्रेम बनाए रखा जब हिंदी के खिलाफ अभियान चलाए जा रहे था। भाषा और साहित्य को भी कुछ लोग अपनी अपनी सियासत के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। हिंदी का साहित्य भी पंजाब के पर्यावरण की गहरी बातें करता है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी साहिब की कालजयी कहानी को पढ़े बरसों हो गए लेकिन वह आज भी ज़हन में है उसे पढ़ते हुए जहां पंजाब का रूमानी पर्यावरण सजीव हो उठता है वहीं युद्ध की भयानक वि विभिप्षा भी आने लगती है--अब भी जवानों के शहीद होने की खबरें उसी माहौल की याद दिलाने लगती हैं जिस का रूमानी सा लेकिन क़ुरबानी भरा रंग इस प्रसिद्ध कहानी-उसने कहा था में उभरता है--एक दिव्य प्रेम और एक युद्ध की कहानी का रंग---आज भी वह दिव्य प्रेम  और भावनाएं हमारे दिलों में है लेकिन युद्ध की कलि छाया निरंतर फैलती चली जा रही है-प्रेम और क़ुरबानी के उस रंग को गहरा करता है हर वह कार्यक्रम जो हिंदी दिवस के नाम पर मनाया जाता है-- "उसने कहा था" पर बहुत बाद में प्रसार भारती ने दूरदर्शन पर एक विशेष फिल्म भी बनाई थी। 

हिन्दी शिक्षक संघ (रजि.) पंजाब द्वारा "हिन्दी दिवस" के उपलक्ष्य में 17 सितम्बर, 2023  दिन रविवार को मालवा सैन्ट्रल कॉलेज ऑफ ऐजुकेशन फ़ॉर वूमन लुधियाना में कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सरकारी स्कूलों के 8वीं,10वीं,12 वीं कक्षा बोर्ड परीक्षा में 95% अंक प्राप्त करने वाले छात्र एवं उनके अध्यापक सम्मानित किये जायेंगे।

इसमें प्रमुख वक्ता डॉ. बलवेन्द्र सिंह (सहायक आचार्य) स्नातकोत्तर हिन्दी-विभाग डी.ए.वी. कॉलेज जालन्धर और डॉ. राजेन्द्र साहिल, एसोसिएट प्रोफेसर गुरु हरगोबिन्द खालसा कॉलेज, गुरुसर सुधार, लुधियाना होंगे।  इस अवसर पर श्रीमती डिम्पल मदान, जिला शिक्षा अधिकारी (सै.शि) लुधियाना, स. बलदेव सिंह, जिला शिक्षा अधिकारी (ए.शि) लुधियाना, श्रीमती मंजू भारद्वाज, जिला शिक्षा अधिकारी (सै.शिक्षा, ए.शि) फतेहगढ़ साहिब , आशीष कुमार, जिला शिक्षा अधिकारी (ए.शि) शहीद भगत सिंह नगर, स. जसविंदर सिंह विर्क, उप जिला शिक्षा अधिकारी (सै.शि) लुधियाना, मनोज कुमार, उप जिला शिक्षा अधिकारी (ए.शि) लुधियाना, नीलम गुप्ता, प्रांत संरक्षक, भारत विकास परिषद पंजाब, श्री रूपेंद्र शर्मा, हिंदी अधिकारी पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय बठिंडा, डॉ. मुकेश अरोड़ा सीनेटर, पंजाब विश्व विद्यालय पंजाब, श्री मनोज प्रीत, प्रीत साहित्य सदन, लुधियाना।

श्री अशोक थापर राष्ट्रीय अध्यक्ष, शहीद सुखदेव थापर मैमोरियल ट्रस्ट, त्रिलोक चन्द भगत समाज सेवी विशेष महमान के रूप में पधारेंगे। 

 डॉ. नीरोत्तमा शर्मा, एसोसिएट प्रोफ़ेसर  मालवा सैन्ट्रल कॉलेज ऑफ ऐजुकेशन फ़ॉर वूमन लुधियाना कार्यक्रम प्रबंधक होंगे। यह जानकरी मनोज कुमार हिन्दी शिक्षक संघ (रजि. ) पंजाब ने दी। यकीन रखिए इस बार भी यह प्रोग्राम याद गारी होगा। 

निरंतर सामाजिक चेतना और जनहित ब्लॉग मीडिया में योगदान दें। हर दिन, हर हफ्ते, हर महीने या कभी-कभी इस शुभ कार्य के लिए आप जो भी राशि खर्च कर सकते हैं, उसे अवश्य ही खर्च करना चाहिए। आप इसे नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके आसानी से कर सकते हैं।

Sunday, September 10, 2023

किताब "द रेप फाइल" से बढ़ेगी इस अपराध पर नियंत्रण की जागृती

Saturday  9th September 2023 at 21:55 

किताब का विमोचन किया विधानसभा स्पीकर कुलतार सिंह संधवा ने 


लुधियाना
: 09 सितम्बर 2023: (मीडिया लिंक32//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

यह किसी ट्रेजेडी से कम तो नहीं कि सत्ता से जुड़े लोग आम तौर पर उसी बात का गंभीर नोटिस लेते हैं जिससे सत्ता को खतरा होता हो। जिस खबर या कविता के शब्दों से सत्ता का विरोध न होता हो आम तौर पर वह नज़र अंदाज़ ही रह जाती है। फिर वह खबर या कविता बेशक समाज का बेडा गर्क करने वाली हो उस पर कोई सियासत एतराज़ नहीं करती। परिणाम यह होता है कि आम  लोगों को पैदा होने वाले नए नए खतरों के खिलाफ न समाज चेत पाता है और न सत्ता या प्रशासन। वाहियात किस्म के विज्ञापन आते है कि फलां परफ्यूम लगाओ तो लड़कियां फंसने लगेंगी।  फलां टायर इस्तेमाल करो तो लड़कियां फंसेंगी। सरकार या समाज के साथ जुड़े किसी भी संगठन या विभाग ने इन लोगों के खिलाफ कभी एक्शन तक नहीं लिया। परिणाम होता है कि अनैतिकता बढ़ती चली जा रही है।  इसी के चलते रेप की घटनाएँ भी बढ़ती जा रही हैं। कानून ने थोड़ी सख्ती की तो जिस महिला वर्ग को पीड़ित समझा जाता था उसी में से कुछ लोग इसी कानून का फायदा उठाने लगे। 

बस जब कभी कोई ऐसी घटना मीडिया में आती है तो दो चार दिन हो हल्ला होता है इसके बाद फिर लोगों को भूल जाता है कि कब हुआ था किसके साथ रेप! फिर कोई नहीं घटना सामने आती है तो फिर से भूल जाती है। गौरतलब है कि इस तरह की जितनी घटनाएँ घटित होती हैं उनमें से बहुत कम की शिकायत ही लोगों तक पहुँचती है। कई मामलों में इस तरह से समझौता भी हो जाता है कि उसका कुछ पता भी नहीं लगता।  कई मामलों में दबाव बढ़ने से शिकायत वापिस भी हो जाती है। इस के परिणामों को पूरा समाज भुगतता भी है। इस तरह के मामलों में अदालत संज्ञान लेती रही है लेकिन फिर भी सब कुछ कभी न रुक पाया। अब इस तरह की प्रमुख घटनाओं को आधार बना कर इन्हें दस्तावेज़ी की तरह संभालने का प्रयास किया है लुधियाना के एक सक्रिय वकील ने। 

लुधियाना के सीनियर एडवोकेट मुनीष पुरंग ने सच्ची घटनाओं पर अधारित पहली किताब को लिखा है। इस किताब को नाम दिया गया है "द रेप फाइल"। यह किताब उन केसों पर अधारित है, जिनमें पहले महिलाओं ने पुरुषों पर  रेप का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई। जब मामला अदालत में पहुंचा तो अपनी शर्तों पर समझौता किया। इसके बाद रेप के आरोपों से किनारा कर लिया। अदालत ने आरोपियों को बा इज्जत बरी कर दिया। इस तरह की बहुत सी दास्तानें हैं इस पुस्तक में।  शुक्रवार को विधानसभा स्पीकर कुलतार सिंह संधवा ने इस किताब का विमोचन किया है। 

किताब के लेखक एडवोकेट मुनीष पुरंग बताते है कि उनकी किताब में कुल 12 कहानियां है। यह सभी सच्ची घटनाओं पर अधारित है। इन 12 मामलों में पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और अदालत में केस भी चले।  इन केसों में बतौर एडवोकेट उन्होंने आरोपियों की  तरफ से केस लड़ा है। सुनवाई दौरान शिकायतकर्ता महिलाओं ने अपनी शर्तों पर समझौता किया। इसके बाद रेप के आरोपों से किनारा कर लिया। इस मामले के आरोपियों को अदालत ने बा इज्जत बरी कर दिया। इसलिए मेरे मन में ख्याल आया क्यों न समाज में चल रहे इस  ब्लैकमेलिंग का खुलासा आम लोगों के सामने रखा जाए। इसलिए इस किताब को लिखा गया है। 

इस किताब को लिखने में लुधियाना के जाने माने सर्जन डाक्टर  केके अरोड़ा ने सबसे ज्यादा प्रेरित किया। शुक्रवार को किताब के विमोचन के समय राहुल शर्मा, हरदियाल सिंह, मन्नू पुरंग, आरएस मंड, इंदरपाल सिंह, मैडम गरिमा, नरिंदर सिंह, सुखविंदर सिंह धालीवाल सहित कई अन्य लोग मौजूद थे। 

वकील मुनीश पुरंग ने केवल इस तरह की घटनाओं और मामलों को सहेजा ही नहीं बल्कि फैसला होने के बाद की हालतों में कुरेदा भी है। इनमें से ब्लैकमेलिंग की संभावना का भी पता लगाया है। समाज में ऐसा होना अब आम भी होने लगा है। इसे एक हथियार की तरह भी इस्तेमाल किया  जाने लगा है।  यही सिलसिला जारी रहा तो क्या बनेगा समाज का? क्या वकील मुनीश पुरंग की चिंताओं में सामजिक संगठन अपना योगदान देंगें? 

अब देखना है कि इस तरह के ने ट्रेंड की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं। मुकरने वाली लड़कियों/महिलाओं के साथ कानून अतीत में भी सख्ती से पेश आता रहा है लेकिन शायद इस सख्ती को और बढ़ाना पड़ेगा। 

निरंतर सामाजिक चेतना और जनहित ब्लॉग मीडिया में योगदान दें। हर दिन, हर हफ्ते, हर महीने या कभी-कभी इस शुभ कार्य के लिए आप जो भी राशि खर्च कर सकते हैं, उसे अवश्य ही खर्च करना चाहिए। आप इसे नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके आसानी से कर सकते हैं।