Wednesday, January 8, 2020

विश्व पुस्तक मेले से लौटकर कविता वर्मा की विशेष रिपोर्ट

Tuesday: 8th January 2020 at 3:44 PM
यह पुस्तक मेला गांधी जी को समर्पित है
नई दिल्ली: 7 जनवरी 2020: (कविता वर्मा//हिंदी स्क्रीन)::
दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले का इंतजार पुस्तक प्रेमियों लेखकों और प्रकाशकों को साल भर रहता है। अभी कुछ वर्षों से यह जनवरी के प्रथम शनिवार से दूसरे रविवार तक लगने लगा है। हालांकि इस समय दिल्ली कड़ाके की ठंड और कोहरे की गिरफ्त में होती है और दूरदराज के प्रदेशों से आने वाले पुस्तक प्रेमियों लेखकों को ट्रेन बस या फ्लाइट की लेटलतीफी या निरस्त होने की आशंका से जूझना पड़ता है। लेकिन फिर भी उनका उत्साह कम नहीं होता।  
 यह पुस्तक मेला एक ही छत के नीचे लेखकों के आपसी मेलजोल पुस्तक विमोचन अपने प्रिय लेखक से मिलने और कुछ चर्चा परिचर्चा का अवसर देता है। लगभग हर दिन विभिन्न प्रकाशकों के स्टॉल पर बड़ी संख्या में पुस्तक विमोचन होता है। इस स्टॉल से उस स्टाॅल तक रेलम पेल लगी रहती है। लेखक खुद अपने दोस्तों परिचितों को याद दिला दिला कर स्टॉल तक खींच लाते हैं वहां जो भी वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित होते हैं उन्हीं के हाथों विमोचन करवाया जाता है। 
कुछ  बड़े या कहें लोकप्रिय प्रकाशक जिनके यहां से बहुत पुस्तकों का प्रकाशन होता है वह कुछ मीडिया फोटोग्राफर या वीडियो ग्राफर को भी बुलाते हैं और फिर बकायदा कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग होती है। लेखक और वरिष्ठों की बाइट ली जाती है जिसे सोशल मीडिया पर प्रसारित करके पुस्तक की पब्लिसिटी की जाती है। 
दरअसल पुस्तक मेले में पुस्तक विमोचन लोगों का जमावड़ा फोटो वीडियो आदि का  समस्त तामझाम सोशल मीडिया या अपने अपने यूट्यूब चैनल पर पुस्तक के प्रचार-प्रसार के लिए ही होता है। इसमें न लेखक को अलग से खूब इंतजाम करना होते हैं और न प्रकाशक को कोई खर्च। अब इस सब में कुछ मित्र गण मन से कुछ रिश्तो की खातिर तो कुछ शर्मा शर्मी में कुछ किताबें खरीद लेते हैं। कुछ वहीं के वहीं गिफ्ट भी कर दी जाती हैं समीक्षा की उम्मीद में। वरिष्ठ भी इस बात से खुश होते हैं कि पुस्तक मेले में झोले भरकर किताबें मिलीं। बहरहाल किताबें लिखी जा रही हैं प्रकाशित हो रही हैं और उसकी सूचना प्रसारित हो रही है यह जरूरी है और पुस्तक मेला यह कार्य बखूबी कर रहा है। लगभग सभी हिंदी भाषी प्रदेशों के लेखक और प्रकाशक सूचनाओं के आदान-प्रदान में लगे हैं। 
इस वर्ष देश गांधी जी का डेढ़ सौ वाँ जन्म वर्ष मना रहा है और यह पुस्तक मेला गांधी जी को समर्पित है। पुस्तक मेले के बैनर पोस्टर पर गांधी जी की तस्वीर और डेढ़ सौ का शून्य उनका चरखा इस शून्य होती संवेदना के युग में नया वितान रचता है। इस चरखे से बना सूत गांधी जी के हाथों में बड़ा संदेश देते हैं । 
पुस्तक मेला हर वर्ष हॉल 12 ए में  लगता है इस बार इसका आकार काफी बड़ा है। जहाँ हिंदी इंग्लिश के साथ अन्य भाषाओं की पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। हॉल 12 ए में प्रवेश के साथ ही योग खानपान आचार व्यवहार  प्रेरणादायक कहानियों की पुस्तकों के स्टॉल हैं जहाँ सबसे ज्यादा भीड़ रहती है। वहीं बच्चों के लिए बाल कहानी कविता खिलौने वर्क बुक भी बहुतायत में उपलब्ध हैं। बच्चों के लिए आजकल खूब साहित्य लिखा जा रहा है और कई बड़े साहित्यकार बच्चों के लिए लिख रहे हैं। बाल साहित्य की रंग बिरंगी मोटे चिकने पृष्ठों की मोटी मोटी किताबें भी साहित्य के प्रकाशन से छप रही हैं। हालांकि अभी इस बाल साहित्य का आकलन होना बाकी है। नेशनल बुक ट्रस्ट बाल साहित्य पर अच्छा काम कर रहा है लेकिन साहित्य की अन्य विधाओं की तरह ही इस पर किसी तरह का पैमाना नहीं है। मोटे चिकने रंग-बिरंगे पृष्ठों में किताबों की कीमत भी बढ़ा दी है जिससे वह एक वर्ग विशेष की पहुंच तक रह गई हैं और वह वर्ग विशेष शायद पुस्तकों में रुचि ही नहीं रखता। प्रकाशक लेखक अगर दिखने की सुंदरता के मोह से बाहर आएं और पेपर बैक में सामान्य रेखा चित्रों के साथ बाल साहित्य की पुस्तकों को प्रकाशित करें तो इनकी पहुंच सही हाथों तक हो सकती है। 
पुस्तक मेले में बड़े नामी और पुराने प्रकाशकों के यहाँ भारी भीड़ देखी जाती है और यह भी रिसर्च पुस्तकों के लिए ज्यादा उमड़ती है। हिंदी साहित्य में रिसर्च संबंधित वरिष्ठ साहित्यकारों नामवर सिंह धर्मवीर भारती कमलेश्वर की पुस्तकें यहां पेपर बैक में उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं। यहाँ प्रकाशक किसी सेलिब्रिटी की बायोग्राफी या अन्य पुस्तकों पर उनके हस्ताक्षर सहित पुस्तक का प्रलोभन देकर अच्छी कमाई करते हैं। 
मेले के बीचो बीच एक मंच पर चर्चा परिचर्चा विमोचन साक्षात्कार के कार्यक्रम लगातार चलते हैं। लगभग पचास लोगों की बैठक व्यवस्था के साथ आधे से एक घंटे के टाइम स्लॉट में अलग-अलग कार्यक्रम होते रहते हैं जिन्हें कोई भी अपनी रूचि के अनुसार देख सुन सकता है। इसी मंच पर  मशहूर एक्टर  प्रेम चोपड़ा की बायोग्राफी के हिंदी अनुवाद का विमोचन का कार्यक्रम भी हुआ यश पब्लिकेशन से आए इस अनुवाद को किया श्रुति अग्रवाल ने और इंग्लिश में बायोग्राफी लिखी है स्वयं प्रेम प्रेम चोपड़ा की बेटी ने।
 हर वर्ष कार्यक्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है इसलिए एक अन्य हॉल में भी सेमिनार हॉल उपलब्ध है इस हाल में इंग्लिश और अन्य भाषाओं की पुस्तकों के स्टॉल भी हैं। 
हार्ड कॉपी में प्रकाशित पुस्तकों का अपना महत्व है लेकिन आज का युवा डिजिटल हो गया है और सोशल मीडिया के प्रचार-प्रसार के बाद अगला दौर डिजिटल साहित्य का है। आज कई वेब पोर्टल ईमैग्जीन चलताऊ से लेकर अच्छा सार्थक साहित्य उपलब्ध करवा रहे हैं। इन्हीं में एक मातृ भारती पोर्टल ने तो बकायदा लेखकों को प्रकाशन पूर्व मानदेय देना भी प्रारंभ किया है। आज इस वेब पोर्टल पर हजारों कहानियाँ कविताएँ लघुकथाएँ और उपन्यास उपलब्ध हैं। जो संपादन टीम की नजरों से गुजर कर इस वेब पोर्टल पर पहुंचते हैं और डाउनलोड के आधार पर अपने पाठकों की संख्या की जानकारी भी लोगों तक पहुंचा रहे हैं। 
 युवा वर्ग इस डिजिटल माध्यम से ही भारतीय साहित्य तक पहुंच रहा है अन्यथा वह देशी विदेशी इंग्लिश या अनुवादित पुस्तकों तक सीमित है। अगर कहा जाए कि ये वेबपोर्टल  युवाओं को भारत से जोड़ रहे हैं तो गलत नहीं होगा। 
कुल मिलाकर विश्व पुस्तक मेला साहित्य का बड़ा समागम है इसका आकर्षण ही इसकी सार्थकता है। यहाँ आया हर लेखक प्रकाशक पाठक समीक्षक आलोचक और युवा यहाँ से कुछ लेकर ही जाता है चाहे वे किताबें हो मिलने जुलने की संतुष्टि हो या अच्छी यादें।          --कविता वर्मा

4 comments:

  1. इस रिपोर्ट से हमें घर बैठे ही पुस्तक मेले की यात्रा हो गई...शुक्रिया कविता जी

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  2. विस्तृत, जरूरी और उपयोगी जानकारी पुस्तक मेले की दी। कविता जी बहुत शुक्रिया

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  3. बहुत सुंदर रिपोर्ट लिखी है आपने । मातृभारती की तरफ से भी बहुत बहुत शुक्रिया

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  4. बहुत बढ़िया रिपोर्ट । कविता तुम्हारी आँखों से देख लिया सब ।

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