Thursday, September 30, 2021

भारतीय अर्थव्यवस्था को परत दर परत खोलती है--पुस्तक "उलटी गिनती"

 Thursday: 30th September 2021 at 5:40 PM

"उलटी गिनती" पुस्तक में हैं बहुत से सबंधित सवालों का जवाब 

नई दिल्ली: 30 सितंबर 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

MRP 250/- (Paperback)
अच्छे दिनों का वायदा, फिर उस वायदे को चुनावी जुमला बताया जाना, साथ ही नोट बंदी, जीएसटी, कोविड का आतंक, लॉक डाऊन का प्रहार और बेरोज़गारी व भूख के मारे मज़दूरों का पलायन। देश की जनता ने निकट अतीत में ही बहुत से ह्रदय विदारक दृश्य देखे हैं।  

अर्थव्यवस्था पर आर्थिक हमला बेहद नाज़ुक स्थिति में हुआ। कोविड महामारी ने तो भारतीय अर्थव्यवस्था को ऐसे समय तहस-नहस कर दिया जब यह पहले से ही गहरे ढाँचागत मन्दी से जूझ रही थी। करोड़ों लोगों के रोजगार गँवा देने और उनके सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव लौटने के बीच शेयर बाजार न केवल तेजी से पटरी पर लौटा बल्कि जल्दी ही ऊँचाइयों पर पहुँच गया। इस तरह कोविड युग की यादें लम्बे समय तक भारतीय जनमानस के दिलो दिमाग पर छाई रहेंगी। गौरतलब है कि 2020 के भारत में चरम आर्थिक असमानता जिस तरह प्रमुखता से दिखाई दे रही है, वैसी पहले कभी नहीं देखी गई। इस चरम आर्थिक असमानता ने बहुत सी आशंकाओं को भी जन्म दिया जिसे लेकर मज़दूरों के गंभीर आंदोलन भी खड़े हुए। 

इस स्थिति पर बहुत कुछ लिखा गया। बहुत कुछ लिखा जा रहा है। बहुत कुछ अभी लिखा जाना है। बेहद सख्त लॉकडाउन थोपे जाने का सिलसिला शुरू होने के एक साल बाद, ‘उलटी गिनती’ इस आपदा के आर्थिक परिणामों/प्रभावों की समझ बनाने की कोशिश करती है और इसकी पड़ताल करती है कि क्या भारत सुधार-प्रक्रिया की कुछेक अहम उपलब्धियों यानी प्रतियोगिता और गरीबी में तेज़ गिरावट को, उलटने के करीब है। बहुत ही महत्वपूर्ण और नाज़ुक सा विश्लेषण भी है यह। इस किताब को दस्तावेज़ भी कहा जा सकता है। 

इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है कि भारत के लिए समय तेजी से निकलता जा रहा है। यहां तक कि बढ़त के सर्वोत्तम सालों के दौरान, भारत पर्याप्त रोज़गार पैदा करने या मानव विकास की दिशा में ठोस प्रगति करने में विफल रहा। अब जनसांख्यिकी लाभांश के दौर के अन्तिम दशक में, भारत की अर्थव्यवस्था को दोबारा गति देने के लिए एक साहसिक नजरिए की जरूरत है। आखिर कौन जुटाएगा यह साहस? कौन दे सकेगा इस जरजराती महसूस हो रही अर्थव्यवस्था को गति? महंगाई जिस चरम पर है उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। 

यह पुस्तक ‘उलटी गिनती’ सतत सुधार के लिए एक खाका भी पेश करती है जो भारत को तेज़ बढ़त की पटरी पर वापस ला सकता है और न्यूनतम सम्भव समय में उसकी युवा आबादी के लिए करोड़ों रोजगार पैदा कर सकता है। क्या यह सम्भव हो सकेगा? क्या आम जनता की निराशा को विराम देना सम्भव रह गया है? क्या महंगाई पर अंकुश की कोई संभावना बाकी बची है? इस महंगाई ने सबसे ज़्यादा मार रसोई पर मारी है। 

ऐसा बहुत कुछ है जिसे पढ़ते हुए या जिसकी बात करते हे नए नए सवाल पैदा होंगें। महामारी और लॉकडाउन के दौरान हुई गंभीर आर्थिक क्षति की पहली व्यापक समीक्षा पेश करती किताब। इस किताब ने इन सवालों का जवाब देने की भी कोशिश की है। जमीनी स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था के गहरे जख्मों की पड़ताल करती यह किताब। इसका यही अंदाज़ इसे ख़ास भी बनाता है। 

सारे प्रस्तुतिकरण को देख कर कहा जा सकता है कि ‘उलटी गिनती’ पुस्तक व्यापक समृद्धि की ओर बढ़ने और पर्याप्त रोजगार सृजन के साथ फिर से ऊँची बढ़त हासिल करने के लिए सुधार का एक टिकाऊ एजेंडा मुहैया कराती है। यह एजेंडा हौंसला भी देता है और उत्साह भी बढ़ाता है। 

इसके साथ ही एक सौगात भी है जो पुस्तक खरीदने वालों को एकदम निशुल्क मिलेगी। आप भविष्य में अपनी बचत के कौन-से सुरक्षित रास्ते अपनाएँ, इस बारे में विश्वसनीय सुझाव और तथ्य पेश करती 16 पृष्ठों की एक पुस्तिका ‘उलटी गिनती’ किताब के साथ निःशुल्क। यह लघु पुस्तिका बहुत ही काम की होगी। आप इसे संभाल कर रखना चाहेंगे। 

Thursday, September 23, 2021

सोनिया पाहवा की दूसरी पुस्तक "कीमती जज़्बात" हुई रिलीज़

Thursday 23rd September 2021 at 08:22 PM Whatsapp

GCG लुधियाना में सहायक प्रोफेसर हैं मिस सोनिया पाहवा


लुधियाना: 23 सितंबर 2021: (अमृतपाल सिंह//कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन)::

लुधियाना के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में से एक है लड़कियों का राजकीय कालेज अर्थात जीसीजी। इस शिक्षण संस्थान में जहां सिलेबस की पढ़ाई होती है हुए उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है वहीं साहित्य और कला के क्षेत्र में ऊँची उड़ान का मौका सभी को दिया जाता है। इसका अहसास हुआ एक नई पुस्तक के विमोचन को देख कर। 

अपनी पहली पुस्तक "ट्यून इनटू द वर्ल्ड ऑफ रेडियो" की शानदार सफलता के बाद गवर्नमेंट कॉलेज गर्ल्स, लुधियाना में सहायक प्रोफेसर का तौर पर कार्यरत्त सोनिया पाहवा ने आज अपनी दूसरी पुस्तक, कीमती जज़्बात का विमोचन किया।  

पुस्तक का विमोचन करते हुए सहायक प्रोफेसर सोनिया पाहवा ने कहा कि वह लंबे समय से अपनी भावनाओं को पाठकों तक पहुंचाना चाहती थीं।  इस पुस्तक में लिखी गई शायरी के माध्यम से उन्होंने अपनी अनमोल भावनाओं को लोगों के सामने पेश किया है और उम्मीद है कि पहली किताब की तरह इस किताब को भी लोगों का प्यार मिलेगा| यह किताब Amazon, Flipkart आदि पर मिल सकती है।

इस पुस्तके के विमोचन की औपचारिक रस्म अदा करते हुए गवर्नमेंट कॉलेज गर्ल्स, लुधियाना की प्रिंसिपल डॉ सुखविंदर कौर ने कहा कि यह उनके कॉलेज के लिए बहुत ही गर्व की बात है।  मैडम सोनिया पाहवा की इस किताब में शायरी को बेहद खूबसूरत अंदाज में पेश किया गया है और वे ना केवल अध्यापन के क्षेत्र में नाम कमा रही हैं बल्कि लेखन के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रही हैं। 

इस तरह यह कॉलेज व समस्त स्टाफ के लिए फखर की बात है।  पुस्तक के विमोचन के अवसर पर श्रीमती कृपाल कौर (उप प्रधानाचार्य), श्रीमती गुरजिन्दर बराड़ (अंग्रेज़ी विभागाध्यक्ष) तथा अन्य स्टाफ सदस्य उपस्थित थे। अन्य साहित्य प्रेमियों ने भी ीा आयोजन में भाग लिया। 

Tuesday, September 14, 2021

हर पल सुनहरा:हिंदी के साथ--पूनम बाला

 14th September 2021 at 12:20 PM

प्रताप कालेज आफ ऐजुकेशन ने भी मनाया हिंदी दिवस 


लुधियाना
: 14 सितंबर 2021: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन)::

शायद कोविड नियमों की मजबूरियां इस बार भी आड़े आ रही हों वरना प्रताप कालेज आफ ऐजुकेशन, लुधियाना आयोजनों को भव्य अंदाज़ में किया करता है। इस मामले में यह कालेज हमेशां ही बहुत अच्छी कारगुज़ारी दिखाता रहा है। इस बार कालज द्वारा "हिंदी दिवस" के उपलक्ष्य में बहुत ही सादगी से हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया गया। इस बार भी जिन संस्थानों से बड़े पैमाने पर हिंदी दिवस मनाए जाने की अपेक्षा थी उनमें प्रताप कालेज ऑफ़ एजुकेशन भी एक था। मौजूदा हालात में इतना भी बहुत है। 

इस बार भी हिंदी दिवस आया तो कालेज का वही जाना पहचाना चेहरा आगे आया-प्रोफेसर पूनम बाला का। कालेज में ही कार्यरत्त हिंदी की सहायक शिक्षिका श्रीमती पूनम बाला ने संयोजिका के रूप में समूह स्टाफ सदस्यों व विद्यार्थियों को हिंदी दिवस की बधाई देते हुए समारोह की शुरुआत की। सरस्वती वंदना के पश्चात अपने सम्बोधन में उन्होंने हिंदी दिवस मनाये जाने का औचित्य बताया।उन्होंने अपनी स्वरचित कविता के माध्यम से सभी को हिंदी भाषा अपनाने के लिए प्रेरित किया। भारत की नई शिक्षा नीति के अनुसार हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात महाविद्यालय के भावी शिक्षकों द्वारा हिंदी को समर्पित कविताओं का काव्य पाठ किया गया।इस अवसर पर उपस्थित समूह स्टाफ सदस्यों ने भावी अध्यापकों द्वारा उच्चरित कविताओं की सराहना की। उल्लेखनीय है कि पूनम बाला बहुत ही अच्छी शायरी करती हैं। दिल को छू लेने वाली शायरी। साथ ही मंच संचालन में भी किसी प्रोफेशनल एंकर से काम नहीं हैं उनकी कला। 

कालेज डायरेक्टर डा.बलवंत सिंह तथा प्रिंसिपल डा.मनप्रीत कौर ने एक संदेश द्वारा सभी को हिंदी दिवस की बधाई दी।अंत में समारोह की संयोजिका श्रीमती पूनम बाला ने सभी का धन्यवाद  किया। गौरतलब है कि हिंदी और साहित्य के मामले में कालेज की प्रिंसिपल डा. मनप्रीत कर बहुत ही गहरा ज्ञान रखती हैं। 

Saturday, September 11, 2021

मनोज धीमान ने लिखी एक और हिंदी फिक्शन किताब

'ये मकान बिकाऊ है' (लघुकथा संग्रह) बाजार में भी चर्चा में भी  

पुस्तक समाज के कई पहलुओं, व्यवस्था और शासकों की कार्यशैली को करती है उजागर

लुधियाना: 11 सितंबर 2021: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::

आज के युग की पत्रकारिता आसान नहीं होती। लगातार इसका अभ्यास करते करते निष्ठुरता सी आने लगती है। घटनाओं की खबर बनाते वक़्त स्पेस और टाईम को देखते हुए उसकी बेरहमी से कांटछांट करनी पड़ती है। सामूहिक हत्याकांड की खबर आ जाए तो आंसू बहाने से पहले खबर कवर करनी होती है। इसके बावजूद हमारे पुराने मित्र मनोज धीमान ने अपनी संवेदना बचाए रखी। उसे मरने नहीं दिया। अपनी मासूमियत भी बचाए रखी जिसका बचना आज के युग में असम्भव सा ही हो गया है। मनोज की जीवन शैली से ही निकली है मनोज की चौथी पुस्तक। फ़िलहाल पढ़िए पुस्तक के आने की खबर बाकी बात फिर कभी करते हैं मनोज धीमान पर भी और मनोज जी की साहित्यिक रचना पर भी।  --रेक्टर कथूरिया 


पंजाब में पिछले तीन दशकों से अंग्रेजी पत्रकारिता से जुड़े पत्रकार मनोज धीमान ने
एक और हिंदी फिक्शन किताब 'ये मकान बिकाऊ है' (लघुकथा संग्रह) लिखी है, जिसका औपचारिक रूप अभी विमोचन नहीं हुआ है। लेकिन, यह किताब बाजार में आ गई है और पाठकों के हाथ में पहुंचते ही यह चर्चा का विषय बन गई है।

इस लघुकथा संग्रह में धीमान ने लगभग सभी विषयों जैसे राजनीति, धर्म, आर्थिक समस्या, सामाजिक विषमता, प्रेम, खराब संबंध और मीडिया पर अपनी कलम चलाई है। उन्होंने मानव मन में उत्पन्न हुई निराशा, दहशत, भय, त्रासदी को मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत करने का भी प्रयास किया है। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) के हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. अनिल कुमार पांडे ने कहा, "जिस तरह ये सभी विषय एक-दूसरे से संबंधित हैं, उसी तरह लघुकथाएं एक के बाद एक समस्याओं को व्यक्त करती रहती हैं।" 

लघु कथाओं के बारे में बोलते हुए डॉ पांडे ने कहा कि प्रत्येक कहानी अपने आप में पूर्ण है। उन्होंने कहा कि लघु कथाएँ समाज के कई पहलुओं, व्यवस्था और शासकों की कार्यशैली को उजागर करती हैं। उन्होंने कहा कि लाखों प्रयासों के बावजूद भ्रष्टाचार सामाजिक नीति का हिस्सा बना हुआ है। जिन पर भ्रष्टाचार को रोकने की जिम्मेदारी थी, वे इसे फलने-फूलने का धंधा कर रहे हैं। लघुकथा 'सोने की मुर्गी' में लेखक ने एक व्यापारी की कहानी के बहाने पुलिस व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है। कैसे एक पुलिस केस में व्यापारी को फंसाया जाता है और उसका फायदा उठाया जाता है। इसी तरह लेखक ने लघुकथा 'नया धंधा' में पथराव की घटनाओं का जिक्र किया है। यह लघुकथा एक बेरोजगार युवक के भाग्य के बारे में बताती है। लघुकथा 'राजा और प्रजा' में राजा स्वयं भगवान बन जाता है। यदि राजा कोई नेक कार्य करे तो प्रजा उसे भूल जाती है। अब क्योंकि हर राजा चाहता है कि जनता उसके 'दरबार' में उसकी प्रशंसा करने के इरादे से उपस्थित हो, तो भारतीय राजनेताओं में उनके द्वारा किए गए नेक कामों को गलत कामों में बदलने की कला है। बाढ़ से बचाव के लिए बनाए गए मजबूत बांध को कमजोर करने के लिए राजा ने ऐसा किया।

डॉ पांडे ने कहा, "इस तरह, हर छोटी कहानी सच्चाई और आज की वास्तविकता के बहुत करीब है", "लेखक अपने समय की कहानियों को खुली आंखों से व्यक्त करता है।"

लघुकथा संग्रह 'ये मकान बिकाऊ है' के लेखन की शुरुआत कैसे हुई? इस सवाल का जवाब देते हुए धीमान ने कहा कि साल 2020 में कोरोना काल में वह व्हाट्सएप पर प्रसिद्ध हिंदी लेखकों के समूह "पाठक मंच" से जुड़े। "पाठक मंच" में कुछ लघु कथाएँ पोस्ट करने पर पाठकों की उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली, जिससे लेखन की निरंतरता बनी रही। इस तरह इन लघुकथाओं ने आखिरकार एक किताब का रूप ले लिया।

धीमान ने इस पुस्तक को प्रसिद्ध कवि, नाटककार और आलोचक डॉ. नरेंद्र मोहन को समर्पित किया है। उन्होंने  कहा कि डॉ. नरेंद्र मोहन ने न केवल उन्हें लघु कथाओं को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें अपने प्रकाशक - अकादमिक प्रकाशन, दिल्ली से बात करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने कहा, "मुझे जीवन भर पछताना पड़ेगा कि डॉ. नरेंद्र मोहन ने किताब प्रकाशित होने से पहले ही इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। नहीं तो आज अगर वह जिंदा होते तो किताब प्रकाशित होने के पश्चात जश्न का माहौल कुछ और होता।"

हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष व विख्यात लेखक कमलेश भारतीय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "लघुकथाएं रोजमर्रा की घटनाओं या जीवन की स्थितियों से निकलती हैं। रचनाएं जमीन से जुड़ी हुई हैं। समाचार पत्रों की सुर्खियां, राजनीति में कोई भी मोड़ या हमारे चारों ओर का जीवन लेखक की लघु कथाओं की दुनिया है।"

पंजाब के जाने-माने हिंदी उपन्यासकार व पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणि हिंदी साहित्य पुरस्कार से सम्मानित डॉ. अजय शर्मा ने कहा, "लघु कथाएँ एक पूरी कहानी कहती हैं। ऐसी तकनीक बहुत कम लघु कथाकारों में देखी जाती है।"  अंजू खरबंदा, संचालिका, लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल (दिल्ली शाखा) ने कहा, "लघुकथा पढ़ते समय पाठक भी उन लघु कथाओं के साथ चलने लगता है। लघु कथाएँ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव हैं, जो सीधे लोगों के दिलों तक पहुँचती हैं।" दोआबा साहित्य एवं कला अकादमी, फगवाड़ा (पंजाब) के अध्यक्ष डॉ. जवाहर धीर ने कहा, "लघुकथाएं बहुत कम शब्दों में एक बड़ा संदेश देने में सक्षम हैं।"

एकैडमिक पब्लिकेशन, दिल्ली के राजेश कुमार ने कहा कि पुस्तक में आज के जीवन और घटनाओं से ओत-प्रोत लघु कथाएँ हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह पुस्तक निश्चित रूप से हिन्दी साहित्य में एक विशेष स्थान बनाएगी। उन्होंने कहा कि किताब जल्द ही अमेज़न पर उपलब्ध होगी।

लघुकथा संग्रह 'ये मकान बिकाऊ है' में कुल 164 पृष्ठ हैं और इसमें 120 लघु कथाएँ हैं।

यहां बताया जाता है कि मनोज धीमान ने इससे पहले तीन हिंदी पुस्तकें लिखी हैं। ये पुस्तकें थीं: 'लेट नाइट पार्टी' (कहानी संग्रह), 'बारिश की बूंदे' (कविता संग्रह) और 'शुन्य की ओर' (उपन्यास)। 'लेट नाइट पार्टी' पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हो चुका है। अंग्रेजी अनुवाद प्रोफेसर शाहीना खान द्वारा किया गया था।