Thursday, October 17, 2024

PEC:14 से 16 अक्टूबर तक तीन दिवसीय कविता कार्यशाला का सफल आयोजन

Thursday 17th October 2024 at 5:29 PM Email K K Singh PEC 

डा.शम्स तबरेज़ी और डा.अनीश गर्ग, ने सिखाई काव्य की बारीकियां 


चंडीगढ़: 17 अक्टूबर, 2024: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

जब इंजीनिरिंग और कविता की उड़ान मिलते हैं तो बहुत से नए करिश्मे सामने आने लगते हैं। PEC के छात्रों के लिए इस तरह के करिश्मों को सामने लाने वाली  काव्य वर्कशाप आयोजन कुछ ऐसा ही तजुर्बा था।  बारीकियां सामने लाने लाने  हुए थे दो जानेमाने शायर डा. शम्स तबरेज़ी और डा. अनीश गर्ग। 


पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (PEC) के हिंदी संपादक मंडल (HEB) ने
14 से 16 अक्टूबर तक तीन दिवसीय कविता कार्यशाला का सफल आयोजन किया, जो उनके ओआई लोकेश सर के निर्देशन में संपन्न हुआ। इस कार्यशाला में 40 से अधिक छात्रों ने भाग लिया। इसमें दो प्रख्यात कवियों, डॉ. शम्स तबरेज़ी और डॉ. अनीश गर्ग, ने छात्रों को कविता लेखन और पठन की बारीकियों से परिचित कराया।

डॉ. शम्स तबरेज़ी, जो अपनी गहन और भावपूर्ण कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं, ने आत्म-अभिव्यक्ति के महत्व और शब्दों की शक्ति पर चर्चा करते हुए कार्यशाला की शुरुआत की। उन्होंने छात्रों को अपनी आंतरिक सोच और भावनाओं को कविता के माध्यम से व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया, ताकि यह कला उनके व्यक्तिगत अनुभवों का प्रतिबिंब बने। डा. शम्स तबरेज़ी की शायरी भी बहुत  है। उनकी शायरी की एक झलक आप देख सकते हैं बस यहां क्लिक कर के। 

डॉ. अनीश गर्ग, जो काव्य तकनीकों में अपनी मुहारत के लिए जाने जाते हैं, ने छात्रों को कविता के तकनीकी पहलुओं जैसे ताल, छंद और चित्रण से परिचित कराया। उन्होंने इंटरैक्टिव सत्र भी आयोजित किए, जहां प्रतिभागियों ने विभिन्न कविताओं में गहरे अर्थों की परतों की पहचान और सराहना करना सीखा। इस सेशन में सवाल जवाब का सिलसिला काफी दिलचस्प रहा। 

शायरी पर इस कार्यशाला ने सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक अभ्यास का संतुलित मिश्रण प्रदान किया, जिससे छात्रों को विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में अपनी कविताएं लिखने का अवसर मिला। इस मार्गदर्शन का इन छात्रों को आगे चल कर फायदा भी बहुत होगा। PEC में आयोजित इस कार्यशाला के अंत तक, प्रतिभागियों ने अपनी लेखन क्षमता में पहले से बहुत अधिक आत्मविश्वास महसूस किया और इस अवसर के लिए प्रशंसा व्यक्त की कि उन्हें इतने कुशल कवियों से सीखने का अवसर मिला।
 
कुल मिला कर यह आयोजन अत्यंत सफल रहा, जिसने छात्रों को प्रेरित और उत्साहित किया, और उनकी काव्य यात्रा को जारी रखने की नई ऊर्जा प्रदान की।

"गीत मेरी मातृभाषा का; है न चाकू जैसी !

कविता//मातृभाषा//सुखपाल 


सभी काम कर लेता है 

तीस साला डेविड 

'हैंडीमैन' हमारे अस्पताल का।

सफाई

टपकती छत की मुरम्मत 

बिजली वाले यंत्र ठीक करना 

टूटी हुई पाइपें जोड़ना 

फर्नीचर बनाना 

ड्राईवाल लगाना 

टायलेट फिट करना 

मशीनें ठीक करना....

दफ़्तर की चाबी घर भूल आया मैं 

डेविड को पूछा...

वह‌ बोला...

"चाबी तो है नहीं 

लेकिन दरवाजा खोल देता हूं तेरा !"

जेब से चाकू निकाल 

डेविड ने ताले के सुराख में झांका 

झट से दरवाजा खोल‌ मारा

और बोला -

चाबी की बजाय चाकू रखा करो जेब में 

"चाबी से एक दरवाजा खुलता है 

चाकू से बहुत सारे 

रोटी वाला भी..."

खुला का खुला रह गया मेरा मुंह 

" इतने काम कहां सीखें, डेविड ?"

वह मुस्कुराया -

" बहुत खराब था मेरा बचपन.."

चाकू हवा में उछाल 

धार की ओर से बोच कर

तीखे स्वर में गीत गुनगुनाते हुए 

वह चल पड़ा ‌दूसरी ओर...

मैंने पीछे से आवाज़ लगाई 

" किस भाषा का गीत है..?"

सिर घुमाकर बोला -

" मेरी मातृभाषा का

है न चाकू जैसी !

यह भी बहुत दरवाजे खोलती है 

मेरे लिए..."

👌🏽👤👌🏽

पंजाबी मूल : सुखपाल 

हिन्दी अनुवाद : गुरमान सैनी 

संपर्क : 9256346906

Sunday, August 18, 2024

कवित्री सम्मेलन में महिला दुष्कर्मो पर गहरा खेद व्यक्त किया गया

Sunday 18th August 2024 at 12:18 AM

 इसके साथ ही दिया गया महिलाओं को सशक्त रहने का सुझाव 


पंचकूला: 17 अगस्त 2024:(कृष्णा गोयल//इनपुट-हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

दुष्कर्मों की ख़बरों ने देश को हिला कर रख दिया है। दुनिया भर में इसकी चर्चा भी है। कुछ ज़्यादा पीछे न ही जाएं तो बात है 6 दिसंबर 2012 की जब निर्भया कांड की। उस कांड पर जितनी चर्चा हुई और जितने आंसू बहाए गए लेकिन वह सब कुछ मोमबत्तियां जलाने तक सीमित हो कर रह गया। न इस तरह की घटनाएं रुकीं और न ही लड़कियां और महिलाएं कभी सुरक्षित हो सकीं। निर्भया कांडा के बाद और भी जघन्य कांड हुए। 

अब कोलकाता तो ऐसी शर्मनाक वारदातों की शिखर बन के सामने आया है। अत्यंत शर्मनाक बात यह भी कि कोलकाता वाली इस वारदात के बाद भी कई जगहों पर इसी तरह की वारदातें होने की खबरें आईं हैं। सुबह अख़बार देखने से भी मन घबराता है। घर से बाहर कामकाज के लिए गईं हुईं बहु बेटियां जब तक घर नहीं लौट आतीं तब तक दिल दिमाग से चिंता नहीं हटती।   इन सभी का गहरा असर पड़ा नारी मानसिकता पर। शायरी और कला क्षेत्र से जुडी महिलाएं दिल दिमाग से आंदोलित भी हुईं लेकिन इसकी शक्ति और क्षमता नारी के पास कभी नहीं आई कि वह ऐसे तत्वों को सबक सिखाने वाले कानून बनवा सके या उन्हें लागू करवा सके। ऐसे में केवल कविता ही एक हथियार बचा था। उसका इस्तेमाल शायरी करने वाली महिलाओं ने बहुत अच्छे ढंग तरीके से किया भी। 

दिन शनिवार को चंडीगढ़ महिला काव्य मंच ने स्वतंत्रता दिवस के आह्वान पर एक कवित्री सम्मेलन का आयोजन सेक्टर 21 पंचकूला के हाउस नंबर 419 में श्री मोहित गर्ग कृष्णा गोयल एडवोकेट्स  के घर पर किया। इस मौके पर बहुत सी और नामी ग्रामी महिलाएं भी शामिल हुईं। 

इस यादगारी कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और पंचकुला उपाध्यक्ष रेणु अब्बी  के सरस्वती वंदना  से हुई जिस के बाद शहीदों को नमन करके  बांग्लादेश में हो रहे अत्याचारों पर शोक प्रस्ताव पास किया गया। कोलकाता की लेडी डॉक्टर की निर्मम हत्या पर सभी ने खेद व्यक्त किया। 

संगठन के संरक्षक डॉक्टर नरेश नाज़ ने महिलाओं को जागृत वा सावधान रहने का संदेश दिया। प्रोफेसर सुदेश मोदगिल नूर, जापान की महिला मंच की अध्यक्ष मुख्य मेहमान ने महिलाओं को फिजिकली सशक्त होने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।  

ट्राई सिटी ब्रांच की अध्यक्षा सुनीता गर्ग ने  मंच का संचालन बहुत मनमोहक ढंग से करते हुए आपसी भाईचारे से मजबूत सामाजिक स्थिति की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करवाया। ऑर्गेनाइजर कृष्णा  गोयल ने सभी महिलाओं को अपने लिए लाइसेंस समेत सुरक्षा यंत्र रखने का  सुझाव दिया।  मंजू चौहान चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी  मंच अध्यक्ष , सीमा शर्मा हरियाणा अध्यक्ष, डॉक्टर ज्योति शर्मा शिक्षा मंच अध्यक्ष, संगीता कुंद्रा चंडीगढ़ मंच अध्यक्ष,  गरिमा रेनू अब्बी पंचकूला मंच अध्यक्ष समेत  गुरविंदरजीत कौर,  डॉक्टर सुनीत मदान, विमला गुगलानी, मंजू खोसला, सीता श्याम, कुसुम धीमान दर्शना सुभाष पाहवा,  पूजा गर्ग, पुष्पा  हंस, संगीता पुखराज  संगीता शर्मा, सरोज चोपड़ा आशा रानी सभी कवित्रियों ने महिलाओं को अपनी रक्षा के लिए समर्थ रहने के लिए कविताएं पढ़ी। वंदे मातरम के नारों के साथ इस गोष्ठी का समापन हुआ। इस गर्मजोश महिला काव्य गोष्ठी से आनंदित हो सभी ने इसकी भूरी भूरी प्रशंसा की।******

कृष्णा गोयल,महिला मंच उपाध्यक्ष,पंचकुला ट्राइसिटी,पूर्व ज्वाइंट रजिस्ट्रार

Thursday, July 25, 2024

हिंदी लेखक और पत्रकार मनोज धीमान के लिए नया सम्मान

25th July 2024 at 3:31 PM

GNDU ने धीमान को हिंदी विषय में बोर्ड ऑफ स्टडीज (पीजी) में शामिल किया

लुधियाना: 25 जुलाई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

लंबे समय तक पंजाब के सीमावर्ती लोगों के दर्द को लेकर रिपोर्टिंग करने वाले हिंदी लेखक और पत्रकार मनोज धीमान अब कई दश्कों से लुधियाना के साथ जुड़े हुए हैं। आंधी आए जा तूफ़ान मनोज धीमान अपनी लेखन और पत्रकारिता की ड्यूटी में मगन रहते हैं। उन्हें किसी ने भी किसी भी तरह की गट बंदी में रूचि लेते नहीं देखा। ुको ले कर अब ख़ुशी की नै खबर आई है।

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय (जीएनडीयू), अमृतसर ने हिंदी लेखक और पत्रकार मनोज धीमान को 01-07-2024 से 30-06-2026 तक की अवधि के लिए हिंदी विषय में बोर्ड ऑफ स्टडीज (पीजी) में शामिल किया है।

कलम के क्षेत्र में इस  लेकर ख़ुशी के लहर है कि धीमान को कल शाम विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार कार्यालय से इस नियुक्ति के संबंध में आधिकारिक सूचना प्राप्त हुई।

उन्होंने इस नियुक्ति के लिए जीएनडीयू के कुलपति को धन्यवाद दिया है। साथ ही, उन्होंने जीएनडीयू में डीन, भाषा संकाय और विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग प्रो (डॉ) सुनील का भी इस नियुक्ति के लिए आभार व्यक्त किया।  

Wednesday, July 10, 2024

ग़ज़ल//कृष्णा गोयल

Monday 8th July 2024 at 20:45 

जिसकी भावनाएं आप इसे पढ़ कर महसूस कर सकते हैं 


आग जो जल रही थी बुझाने के बाद;

शायरा कृष्ण गोयल 

आएगी फिर खुशी वह जमाने के बाद।


आज तुम ही डरा क्यों रहे हो हमें;

क्यों रुला भी रहे हो हंसाने के बाद। 


जब तुम्हें मान भाई लिया हमने फिर;

हुए दगाबाज भाई कहाने  के बाद। 


क्यों रहे मार डंक  यार आस्तीन में;

दूध भी प्यार से यूं पिलाने के बाद।  


हाथ तुम जो बढ़ाओ ज़रा प्यार का;

आज भाई बनें शिकवे मिटाने के बाद।

***

 *चंडीगढ़ के निकट ही पंचकूला में रहने वाली शायरा कृष्णा गोयल पूर्व ज्वाइंट रजिस्ट्रार रहे हैं। ज़िन्दगी के उतराव चढ़ाव  हरे सफर में उन्होंने दुनिया को बहुत नज़दीक से देखा है। उनकी पैनी नज़र की यह काव्य पूर्ण अनुभूति बहुत गहरी रही है। इसकी अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं में अक्सर झलकती भी है। आपको उनकी यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं। 

Saturday, March 30, 2024

सनातन धर्म बनाम हिंदू धर्म//संजय पराते की टिप्पणी

Saturday: 30th March 2024 at 5:39 PM

हिंदी पुस्तक सनातन धर्म : इतना सरल नहीं पर विशेष टिप्पणी 

छत्तीसगढ़ से: 30 मार्च 2024: (संजय पराते//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::
हाल ही में अरुण माहेश्वरी की 8 अध्यायों में विभाजित एक छोटी-सी पुस्तिका "सनातन धर्म : इतना सरल नहीं" आई है। यह पुस्तिका सनातन धर्म और हिंदू धर्म के बीच के संबंधों और विवादों का गहराई से तथ्यपरक विश्लेषण करती है। 

हाल ही में हिंदुत्व का झंडा उठाए संघ-भाजपा ने चुपचाप हिंदू धर्म को सनातन धर्म से प्रतिस्थापित करने की कोशिश की है और सनातन धर्म को हिंदू धर्म का  समानार्थी बता रही है। संघ भाजपा के इस चमत्कार पर पानी डालने का काम अरुण माहेश्वरी ने किया है। इस मायने में सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं के लिए यह पुस्तिका बहुत उपयोगी है। 

स्वामी करपात्री महाराज हिंदू धर्म के कट्टर नेता और शास्त्रज्ञ थे, जिन्होंने वेद, दर्शन, धर्म और राजनीति से जुड़े विषयों पर विपुल लेखन किया है। कट्टर हिंदू थे, सनातनी धर्म के अनुयायी थे, तो निश्चित रूप से मार्क्सवाद विरोधी भी थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी "मार्क्सवाद और रामराज्य।" इसके जवाब में राहुल सांकृत्यायन ने एक छोटी-सी पुस्तिका लिखी थी "रामराज्य और मार्क्सवाद", जिसमें उन्होंने करपात्रीजी के दार्शनिक और राजनैतिक तर्कों की धज्जियां उड़ा दी थी। लेकिन इससे करपात्रीजी की विद्वत्ता पर कोई आंच नहीं आती।

वर्ष 1940 में उन्होंने एक 'धर्म संघ' की स्थापना की थी -- जिसका उद्देश्य था सनातन धर्म की स्थापना ; जबकि वर्ष 1925 में ही आरएसएस की स्थापना हो चुकी थी, जो हिंदू धर्म और नाजीवाद के आधार पर देश को चलाना चाहता था। साफ है कि आरएसएस के हिंदू धर्म से करपात्री महाराज के सनातनी धर्म का कोई लेना-देना नहीं था। वर्ष 1948 में उन्होंने 'रामराज्य परिषद्' का गठन किया, जबकि इसके बाद आरएसएस ने 1951 में जनसंघ का गठन किया था। आरएसएस का यह कदम भी बताता है कि उस समय उसके हिंदू धर्म का सनातन से कोई संबंध नहीं था। 1966 से गोरक्षा आंदोलन की शुरुआत भी करपात्रीजी ने ही की थी, जबकि यह मुद्दा आरएसएस के एजेंडे में भी नहीं था। करपात्रीजी के आरएसएस विरोध का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि उन्होंने 'राष्ट्रीय सेवक संघ और हिंदू धर्म' नामक एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने संघ के परम पूज्य गुरु गोलवलकर की 'विचार नवनीत' और 'हम या हमारा राष्ट्रीयत्व' में उल्लेखित हिंदू धर्म संबंधी धारणाओं का दार्शनिक दृष्टि से खंडन किया है और आरएसएस को हिंदू धर्म विरोधी संगठन घोषित किया है। उनकी दृष्टि में संघ का पूरा आचरण कपट और मिथ्याचार से भरा था और ऐसे में उनसे हिंदू धर्म की रक्षा की आशा नहीं की जा सकती थी। यही कारण है कि अपने शुरुआती जीवन के कुछ वर्षों बाद उन्होंने संघ से सहयोग का रास्ता छोड़ दिया था।

अपनी पुस्तिका में अरुण माहेश्वरी ने गोलवलकर की विचार-सरणी के बरक्स करपात्री महाराज को रखा है। आज जब "भगवाधारी आए हैं" का नारा संघ-भाजपा का प्रिय नारा बन गया है, माहेश्वरी बताते हैं कि किस प्रकार    करपात्रीजी ने भगवा ध्वज की श्रेष्ठता और इसके राष्ट्रीयता का प्रतीक होने की संघ की धारणा को दार्शनिक चुनौती दी थी। वे करपात्री जी को उद्धृत करते हैं -- (महा) "भारत संग्राम में भीष्म, द्रोण, कर्ण, भीम, अर्जुन के रथ के ध्वज पृथक-पृथक थे। अर्जुन तो कपि ध्वज के रूप में प्रसिद्ध ही है। अतः सभी हमारे पूर्वज भगवा ध्वज को ही मानते थे, यह तो नहीं ही कहा जा सकता। ... (इसलिए) आपके भगवा ध्वज को अपना लेने से वह सार्वभौम, सर्वमान्य नहीं कहा जा सकता।" यह उल्लेखनीय है कि भगवा ध्वज की श्रेष्ठता का प्रचार करते हुए छत्तीसगढ़ में ध्वज विवाद के नाम पर कई जगहों पर संघ-भाजपा ने सांप्रदायिक तनाव और दंगे भड़काए हैं। इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर तो ऐसा माहौल बनाया गया था कि राष्ट्रीय झंडा 'तिरंगा' की जगह भगवा ने ही ले लिया है। 

करपात्रीजी शास्त्रों के सहारे यह भी सिद्ध करते है कि सनातनी हिंदू अनिवार्य तौर पर वर्णाश्रमी होगा और सांप्रदायिक होना कोई दुर्गुण नहीं, बल्कि हिन्दू होने का प्रमुख गुण है। संघ-भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति इन दोनों आरोपों से बचना चाहती है। इसी क्रम में उन्होंने 'राष्ट्रीयता' के संबंध में आरएसएस की इस अवधारणा का भी शास्त्रीय खंडन किया है कि केवल समान धर्म, समान भाषा, समान संस्कृति, समान जाति और समान इतिहास वाले लोग ही 'एक राष्ट्र' कहे जा सकते हैं और मुस्लिम, ईसाई आदि यदि हिंदू धर्म में सम्मिलित हो जाएं, तो वे भी 'राष्ट्रीय' हो सकते हैं। करपात्री जी के सनातनी विचारों के अनुसार संघ की यह सोच मुस्लिम विरोध और हिटलर के उग्र राष्ट्रवाद की अनुगामिता से उपजी है। उनका मानना है कि सनातन की अवधारणा मूलतः वेदों की अनादिता और अपौरुषेयता पर टिकी हुई है, जिसे गोलवरकर नहीं मानते। इस प्रकार, अपने शास्त्र-आधारित तर्कों से करपात्री महाराज आरएसएस को न केवल हिंदू धर्म विरोधी, बल्कि सनातन धर्म विरोधी भी साबित करते हैं। 

गोलवलकर और किसी भी अन्य संघी सिद्धांतकार ने आज तक करपात्री जी के आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया है, क्योंकि उनके पास करपात्री के धर्म आधारित विचारों का खण्डन करने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि नहीं है, जैसी दृष्टि राहुल सांकृत्यायन के पास थी। अरुण माहेश्वरी की टिप्पणी है -- "आज तो इस मोदी युग में आरएसएस ने खुद ही सनातन धर्म का झंडा उठाकर प्रकारांतर से करपात्री के तब के सारे अभियोगों को नतमस्तक होकर पूरी तरह स्वीकार कर लिया है।" जिन लोगों पर सनातन धर्म नष्ट करने का आरोप लगा था, यह इतिहास की उलटबांसी है कि उनके ही वंशज आज सनातन धर्म का झंडा उठाए विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' पर आरोप लगा रहे हैं कि वे भारत से सनातन को नष्ट करना चाहते हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसा अंग्रेजों का तलुवे चाटने वाला संघ आज अपने को राष्ट्र भक्त और विपक्ष को राष्ट्र विरोधी बताने में लगा हुआ है। हिंदू धर्म को सनातन धर्म कहना वैसा ही है, जैसा वर्ष 2014 के चुनावी वादे बाद में पूरे संघी गिरोह के लिए 'जुमलों' में बदल गए थे और आज फिर उसे 'मोदी गारंटी' के रूप में पेश किया जा रहा है। साफ है कि संघ-भाजपा को न तो हिंदू धर्म से कोई मतलब है, न सनातन धर्म से कोई लेना-देना है। सत्ता के लिए धर्म को जब राजनीति का हथियार बनाया जाता है, तो ऐसी कलाबाजी भी करनी ही पड़ेगी। 

विचारशील 'भक्तों' के लिए भी यह पुस्तिका उनकी आंखें खोलने वाली साबित होगी, ऐसी आशा की जा सकती है।

 _*(टिप्पणीकार वामपंथी कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष है। संपर्क : 94242-31650)*

पुस्तक : सनातन धर्म : इतना सरल नहीं
लेखक : अरुण माहेश्वरी (मो. 98310-97219)
प्रकाशन : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
मूल्य : 200 रूपये

Sunday, March 17, 2024

नवरंग लिटरेरी सोसायटी फिर सजाई लुधियाना में अदबी महफिल

Sunday 17th March 2023 at 20:09 

शायरों ने फिर दिया समाज और दुनिया को ढाई आखर प्रेम का ज्ञान


लुधियाना
: 17 मार्च 2024:(कार्तिका कल्याणी सिंह//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

लुधियाना यूं तो कारोबारी शहर है। बिलकुल महानगर जैसा लेकिन फिर भी यहाँ शायरी लगातार फलफूल रही है। दशकों पहले साहिर लुधियानवी साहिब ने शायरी के जो बोल और सुर इस शहर की फ़िज़ायों में घोले थे उनका अहसास आज भी होता है। साहिर साहिब के बाद जनाब कृष्ण अदीब और अजायब चित्रकार जैसे समर्पित कलमकारों ने शायरी  के इस माहौल को अमीर बनाया। 

इसी परम्परा को ज़िंदा रखने वालों में नवरंग लिटरेरी सोसायटी भी है। जनाब सागर सियालकोटी साहिब सरदार पंछी और कई दुसरे शायर अपने अपने कलाम में लुधियाना के शायरी पसंद लोगों को उन्ही  के दिल की गहरी और सच्ची बातें  सुनाते रहते हैं। 

इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज की इस अदबी महफ़िल का स्थान श्री यशपाल गोसाईं जी का दफ्तर रखा गया था। चंडीगढ़ रोड पर फोर्टिज हस्पताल के नज़दीक सत्संग घर गेट नंबर 7 के सामने बने इस कार्यालय में हुआ  इस छोटी सी अदबी महफ़िल  का आयोजन। 

इस मौके पर सागर सिसलकोटी, विजय वाजिद, ए पी मौर्य, पाल संसारपुरी, गगन, केवल दीवाना, अशोक सन्यासी व रविन्द्र अग्रवाल ने अपने कलाम से महफ़िल में चार चाँद लगाए। नवरंग के अध्यक्ष सागर स्यालकोटी जी ने कहा ऐसी अदब की महफिलें सजती रहनी चाहिए इससे आपस में प्यार बढ़ता है और साहित्यकार अपनी रचनाओं से समाज की समस्याओं को उजागर करते हैं। नवरंग की कोशिश रहेगी कि हर माह में काव्य गोश्ठी का आयोजन करती रहेगी।

गौरतलब है कि उस्ताद शायर सागर सियालकोटी साहिब उर्दू ज़ुबान और शायरी की गहरी समझ रखते हैं। शायरी का मर्म समझने के लिए कई बार बहुत से साहित्य प्रेमी और खुद शायर भी सागर साहिब के साथ फोन पर मशवरा करते हैं। आज की महफ़िल भी बेहद ख़ास रही।