Sunday, August 17, 2025

लेखक एवं पत्रकार मित्र आकाश माथुर सम्मानित

Received from Neelima Sharma on 17th August 2025 at 11:11 Regarding Writer Akash Mathur

“मुझे सूरज चाहिए" के लिए रामदरश मिश्र न्यास के रामदरश मिश्र शताब्दी सम्मान से  किया गया

नई दिल्ली: 17 दिसंबर 2025: (नीलिमा शर्मा//हिंदी स्क्रीन)::

लेखक एवं पत्रकार, मित्र आकाश माथुर जी को हाल ही में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिल्ली में आयोजित सम्मान समारोह में उनके शानदार उपन्यास “मुझे सूरज चाहिए" के लिए रामदरश मिश्र न्यास के रामदरश मिश्र शताब्दी सम्मान से  किया गया। 

साथ ही, मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रतिष्ठित वागीश्वरी पुरस्कार-2025 के लिए निर्णायक मंडल ने उनके उपन्यास उमेदा-एक योद्धा नर्तकी को चुना है।

इस अवसर पर आकाश जी को ढेर सारी शुभकामनाएँ एवं बधाई। हम परम पिता परमेश्वर से आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं। आमतौर पर जो सम्मान एक लेखक को बड़ी उम्र में मिलते हैं, वे आपको युवावस्था में ही मिल रहे हैं, जो दर्शाता है कि आप माँ सरस्वती के कितने चहेते पुत्र हैं। हमें विश्वास है कि आप इसी तरह उम्दा कहानियाँ और रोमांचक उपन्यास लिखते रहेंगे और अपने शहर व परिवार का नाम रोशन करते रहेंगे।

Friday, July 25, 2025

कमेंट काव्य के चलते एक नया प्रयोग

हिमांशु कुमार जी ने रमाशंकर विद्रोही जी की बहुत अच्छी रचना पोस्ट की है

यह है वो काव्य पोस्ट -जिसे लिखा है जनाब रमाशंकर विद्रोही साहिब ने और सोशल मीडिया पर शेयर किया हैं जानेमाने समाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार साहिब ने जो जनजागृति के मकसद से अक्सर कुछ न कुछ पोस्ट करते ही रहते हैं। उनके विचारों से अलगाव भी हो सकता है लेकिन फिर भी उनके विचार दिलचस्प तो होते ही हैं। जब उन्होंने विद्रोही साहिब की रचना पोस्ट की तो सोचा बहुत सी गहरी बातें कह रहे हैं। यूं लग रहा था जैसे भारत एक खोज को दुबारा पढ़ने का सौभाग्य मिला है। जब इस पर कमेंट करने का प्रयास किया तो बात कुछ ज़्यादा ही लंबी होती चली गई। इसके बावजूद इसे पोस्ट कर दिया। पोस्ट करते करते मन में आया इस टिप्पणो को इस रचना पर पोस्ट करने के साथ साथ ब्लॉग पर भी सहेज लिया जाए। सो यहाँ भी प्रस्तुत है। आपको यह टिप्पणी काव्य का यह प्रयोग कैसा लगा अवश्य बताएं।


इस कमाल की कविता को कविता मत कहो प्लीज़ - --!

यह तो एक नावल है शायद - --!

नहीं - -नहीं - -यह नावल भी नहीं है . ..!

यह तो एक सच्ची दास्तान है शायद- --!

नहीं --नहीं - -कोई एक सच्ची दास्ताँ भी नहीं यही तो कई दास्तानों का संकलन जैसा है . .!

नहीं यह ऐसा भी नहीं - --!

यह तो किसी ख़ास दस्तावेज़ी फिल्म जैसा है - --!

यह किसी अतीत को दर्शा रही है शायद - -----!

अरे नहीं - --!

यह अतीत को ही नहीं उससे पहले के दौर को भी दिखा रही है - ---!

उस दौर को भी जब कुछ भी नहीं था . ..!

मुझे इसमें भी भारत एक खोज की हलकी हलकी गूँज सुनाई दे रही है . ..!

मुझे महाभारत का समय भी महसूस हो रहा है . ...!

वह भी कह रहा है - .. ..!

हां. ..मैं समय हूँ . ...!

निरन्तर घूम रहा हूँ . ..!

मुझे अशोक चक्र कहो या कुछ और , ,,!

मैं वास्तव में समय का चक्र हूँ . ... !

घूम घूम कर भी---कहीं पहुँचता नहीं हूँ . ..!

शायद कोहलू के बैल का पहिया हूँ . ..!

हार हार कर भी हारता नहीं हूँ . ..!

अशोक तो जीत कर भी हार गया था . ..!

लेकिन मुझे मानने वाले हारते कहाँ हैं . ..!

मैं जीतूंगा भी किसी दिन - --!

मैं पहुंचूंगा भी कहीं पर . ..!

बहुत से विजयी लोगों के रहस्य मेरे पास हैं . ..!

बहुत से हारने वाले लोगों के आंसुओं की बाढ़ मेरे पास है . ..!

जितनी स्त्रियों के शव गुमनाम से पड़े हैं - -!

उन्हें भी ले कर आऊंगा ..!

उनकी अग्नि से बहुत से नए वीर उठेंगे....!

वे पितृसत्ता से भी अपने अपने वध का बदला लेंगें ..!

हर हत्यारे को देखा जाएगा ...!

न्याय होगा ही होगा...!

जितनी हड्डियां बिखरी पड़ी हैं . ...!

उनमें बहुत सी हड्डियां

बहुत सी अस्थियां महाऋषि दधीचि की भी हैं . ........!

दधीचि एक ही तो नहीं हुए . ...!

वैसे वह उनका बलिदान था या वध था या छल था--?

वह कई बार राजाओं के लिए वज्र बनाने के काम आया ...!

इस बार एक नहीं बहुत से वज्र बनेंगे ...!

लेकिन यह नए वज्र किसी राजा के लिए नहीं

प्रजा की सेना के लिए भी बनेंगे........!

देखना स्त्रियों के शव

कैसे संजीवनी बन कर उठेंगे..!

देखना!

इन स्त्रिओं के शव गंगा की लहरें बन कर उठेंगे..!

दुनिया के कोने कोने से आ रही हैं

बदलाहट की आवाज़ें ..!

मैंने देखा

बहुत से चेग्वेएरा नए जन्म की तैयारी कर चुके हैं . ..!

इन गुज़रे वक़्तों के

तथाकथित नायक और नायकाएँ भी

इनकी हकीकत जान चुकी हैं सब . ..!

अब कहानियां नए सिरे से लिखी जाएंगी ...!

पुराना तो अब

खुद ही अपनी बर्बादियीं की आंधी से मिट रहा है . ..!

यह है वो काव्य पोस्ट - -

Saturday, July 19, 2025

लगातार डटे हुए हैं हरनाम सिंह डल्ला अपनी टीम के साथ

 19th July 2025 at 18:15 Via WhatsApp From H S Dalla Regarding Behrampur Bet

संदेश है:  तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा .......!


खरड़
/ /बहरामपुर बेट: 19 जुलाई 2025: (मीडिया लिंक रविंद्र/ /हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

पहली जनवरी 1959 को एक फिल्म रिलीज़ हुई थी "धूल का फूल"इस फिल्म की कहानी उसी समाजिक समस्या पर आधारित थी जिसे आजकल उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता। अवैध संतान कुछ दशक पूर्व एक बहुत बड़ी समस्या हुआ करती थी। इसी विषय पर निर्माता बी आर चोपड़ा ने एक गज़ब की फिल्म बनाई थी जिसे निर्देशित किया गठा उन्हीं के भाई यश चोपड़ा ने। इसका एक दोगाना बहुत हिट हुआ था . .तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ...वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ...! जानेमाने कलाकार राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा पर फिल्माए गए इस गीत की लोकेशन दिखाई गई है एक कालेज का वार्षिक आयोजन। इस दोगाने के सवाल-जवाब/ /अन्तरे बहुत अर्थपूर्ण थे जिन्हें बहुत पसंद किया गया। बाकी गीत भी बहुत पसंद किए गए लेकिन इस गीत का तो जवाब ही नहीं था। लगातार दते हुए हैं हरनाम सिंह डल्ला 

इन गीतों को आवाज़ दी थी सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और सुरों के जादूगर मोहम्मद रफ़ी साहिब ने। गीत लिखे थे साहिर लुधियानवी साहिब ने। उनके लिखे गीत समाज के लिए एक विशेष संदेश भी छोड़ा करते गठे। इस फिल्म के गीतों में भी उन्होंने अपना संकल्प निभाया। इसी फिल्म के गीतों में एक गीत था-तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा

तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है

तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है

जिस इल्म ने इंसानों को तक़्सीम किया है

इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है

तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया

हम ने इसे हिन्दू या मुसलमान बनाया

क़ुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती

हम ने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया

जो तोड़ दे हर बंद वो तूफ़ान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है

इंसाँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है

क़ुरआन न हो जिस में वो मंदिर नहीं तेरा

गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है

तू अम्न का और सुल्ह का अरमान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा। 

इस गीत को सुन कर, इस गीत को पढ़ कर एक बारगी तो मज़हबी कटड़ता और धार्मिक उन्माद से नफरत होने लगती। बहुत से सवाल मन में उठने लगते। कुछ लोगों को यह गीत कम्युनिज़्म का संदेश फैलाता भी महसूस हुआ क्यूंकि साहिर लुधियानवी विचारों के तौर पर वामपंथी के तौर पर ही जाने जाते थे। उनकी नज़्म/गीत ताजमहल हो या फिर वो सुबह कभी तो आएगी - --उनका संदेश इसी विचारधारा का संदेश फैलाता ही लगता रहा। 

खैर दशकों गुज़र गए लेकिन आज भी इन गीतों का जादू कम नहीं हुआ। परिणाम यह हुआ कि आज भी कभी शिक्षा नीति को लेकर विवाद होता हौर कभी धर्म को लेकर। इन विवादों के बावजूद उन संदेशों का फैलना जारी है जिनको फैलाने में साहिर लुधियानवी साहिब भी अग्रसर रहे। 

आज के लेखक और शायर भी अब बड़े लोगों को समझाने की बजाए छोटे बच्चों को समझने समझाने का अभियान चलाने में लगे हैं। पंजाबी लेखक और पत्रकार हरनाम सिंह डल्ला आजकल  बच्चों के स्कूलों में जा जा कर इन बच्चों को बड़े दिल दिमाग वाला सच्चा इंसान बनाने में जुटे हैं। उनकी टीम भी साथ होती है और बच्चों को नई नई पुस्तकें थमाते हुए वे उन्हें ताकीद भी करते हैं कि इन पुस्तकों को पढ़ना ज़रूर है और वह भी पूरे ध्यान से। कुछ हफ़्तों के बात बच्चों की परीक्षा के मकसद से कुछ सवाल भी पूछे जाते हैं। 

अब जबकि कुछ संगठन और सियासतदान बच्चों की सोच को संकीर्ण बनाने में लगे हैं उस दौर में हरनाम सिंह डल्ला और उनकी टीम बच्चों की मानसिकता को खुले दिमाग वाला बनाने में जुटी है। यदि आप को उनका प्रयास अच्छा लगा हो तो आप भी उनसे जुड़ सकते हैं। उनकी टीम में साहित्य सभा रजिस्टर्ड बहरामपुर बेट के प्रधान कुलविंदर सिंह और कुछ दुसरे लोग भी शामिल हैं। 

इस टीम के सक्रिय सदस्त हरनाम सिंह डल्ला का मोबाईल फोन नंबर है: +91 94177 73283


Friday, January 24, 2025

पुस्तक मेले में भेंट हो सकेगी वाणी प्रकाशन से भी

Vani Prakashan 23rd January 2025 at 5:46 PM World Book Fair Input and Edited by Kartika Kalyani Singh

करीब 85 नयी पुस्तकों के साथ 12,000+ उत्कृष्ट कृतियाँ मिल सकेंगी


मोहाली: 24 जनवरी 2025: (कार्तिका कल्याणी सिंह//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

शब्दों में शक्ति होती है। शब्दों से चमत्कार जैसे अनुभव संभव हैं। जब तन मिट जाता है तो उस समय सब कुछ रख होने के बाद भी शब्द ही हमें ज़ाद दिलाते हैं की फलां फलां कलमकार कैसा था और उसने दुनिया बदलने के लिए कितना सोचा और आम लोगों के सामने नई तब्दीलियों का ब्लू प्रिंट रख दिया। ज़ेह रोड मैप की तरह सदियों तक समाज को रह दिखता है। ऐसी शक्तियों वाले शब्दों को सहेजने के लिए लेखक, प्रकाशक और पुस्तक मेले बहुत ही अमूल्य योगदान दे रहे हैं। ऐसा ही एक पुस्तक मेला दिल्ली में भी लग रहा है पहली फरवरी को। 

पिछले कुछ दशकों में पुस्तकों की लोकप्रियता को बरकरार रखने में पुस्तक मेलों का विशेष योगदान रहा है। विभिन्न पुस्तक मेलों ने पुस्तक कल्चर को प्रशंसनीय बढ़ावा दिया है। पुस्तकों को घर घर पहुँचाने में एक क्रान्ति घरेलू लाइब्रेरी योजना भी लेकर आई थी। आजकल के दौर में जब पुस्तकों के अस्तित्व को खतरा सा महसूस  उस समय पुस्तक मेले इस अस्तित्व को मज़बूत करने में जुटे हुए हैं। वाणी प्रकाशन  इस संबंध में बहुत अच्छी खबरें लाए हैं। 

खुशखबरी यह है कि हर वर्ष की तरह इस बार भी वाणी प्रकाशन ग्रुप विश्व पुस्तक मेला 2025 में नयी किताबों के साथ आपका स्वागत करने के लिए तत्पर है। हम, वाणी प्रकाशन (हॉल नम्बर 2-3, स्टॉल नम्बर N-03), यात्रा बुक्स और भारतीय ज्ञानपीठ की पुस्तकों के स्टॉल (हॉल नम्बर 2-3, स्टॉल नम्बर P-05) पर आपसे 1-9 फ़रवरी 2025 तक, सुबह 11 बजे से शाम 8 बजे तक मिलेंगे। आपका साहित्य घर आपकी प्रतीक्षा करेगा। और आप जानते ही हैं कि साहित्य से सबंधित प्रतीक्षा किस्मत वालों के हिस्से में न ही आते है। 

आधुनिक तकनीक के साथ कदम से कदम मिलाते हुए आज के डिजिटल युग में किताबों के हर रूप — मुद्रित, ई-पुस्तक या ऑडियो बुक—हम हर माध्यम से अपने पाठकों के समीप पहुँचने के लिए उत्सुक हैं।


आगामी पुस्तक मेले में लगभग 85 नयी पुस्तकों के साथ 12,000+ कालजयी साहित्य, जिसमें कविता, कहानी, उपन्यास, शायरी, कथा साहित्य, बाल साहित्य व अनुवाद की उत्कृष्ट कृतियाँ आपकी प्रतीक्षा में रहेंगी।


वाणी प्रकाशन, भारतीय ज्ञानपीठ और यात्रा बुक्स की गौरवमयी परम्परा के अंतर्गत प्रकाशन, साहित्य व लेखकों को समर्पित है। 


इस मेले में साहित्य की नज़दीकियों का आनंद लेने के इच्छुक कलमकारों और  साहित्य स्नेहियों से निवेदन है कि अपनी सम्भावित आगमन तिथि के बारे में वाणी प्रकाशन को अग्रिम तौर पर अवश्य सूचित करें, ताकि इस संबंध में नेशनल बुक ट्रस्ट को सूचना दी जा सके और आपका हार्दिक स्वागत भी प्रेम के साथ किया जा सके। 


यदि आप इस संबंध में अग्रिम सूचना दे सकें साहित्यिक पत्रकारिता से जुड़े लोगों को भी आपसे संपर्क में आसानी रहेगी। 

Thursday, November 28, 2024

मुल्क सारा बज़ार जैसा है//ह्रदयेश मयंक की एक नई ग़ज़ल के कुछ शेर

 Hindi Poem Posted by Haridyesh Mayank on 26th November 2024 at 5:55 PM FB

दिल मेरा इश्तहार जैसा है.... !


आज ह्रदयेश मयंक की एक नई ग़ज़ल के कुछ शेर जो दिल से लेकर बाज़ार तक की बात करते हैं। निवास मुंबई में है। चिंतन दिशा की संपादक और प्रकाशक हैं। पत्रिका संचालन के चलते स्वनिर्भर भी हैं। वास्तव में नीतिगत और विचारधारक पत्रिकाएं समय भी मांगती हैं, मुश्किलों से जुटाया हुआ धन भी और इसके साथ ही, दिल, दिमाग की पूरी ऊर्जा भी। आसान नहीं होती साहित्य साधना, पत्रकारिता और लेखन। देखिए ह्रदयेश मयंक जी  शायरी का एक अंदाज़। --रेक्टर कथूरिया//संपादक: हिंदी स्क्रीन 


लम्हा- लम्हा उधार जैसा है 

मुल्क सारा बज़ार जैसा है 

सारी दुनिया ख़रीद ली मैंने 

फिर भी दिल बेक़रार जैसा है 

ज़िन्दगी रूठकर निभाती रही 

उसका गुस्सा भी प्यार जैसा है 

हर तरफ़ ,शोर है ,तमाशा है 

सारा मंज़र ग़ुबार  जैसा है 

हर्फ़-ब-हर्फ़ आईने की तरह 

दिल मेरा इश्तहार जैसा है।

    ----सोशल मीडिया से साभार ह्रदयेश मयंक

आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं। नीचे कुमेंट बॉक्स में आपके विचारों की  इंतज़ार रहेगी ही। अपना नाम, स्टेशन का नाम और मोबाईल नंबर साथ लिखेंगे ऑटो हमें ज़्यादा अच्छा लगेगा। 

Tuesday, November 26, 2024

इस आख़री सफर को नाकाम तो मत कह

हिंदी में सियासत की बात करने वाली पत्रिकाओं में भी साहित्य के ज़रिए बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में बहुत कुछ कहा जा रहा है। इस बार देखिए हिंदी सामना में अनुराधा सिंह का अंदाज़:


इस तीरगी को आखिरी पयाम तो मत कह

इस इब्तिदा को अपना अंजाम तो मत कह

इंसानियत है अब भी बाकी जहान में

हैवानियत भरी है आवाम तो मत कह

तेरा ख़ुदा वही है जो मेरा ईश है

इतनी सी बात पर तू कत्लेआम तो मत कह

ये मृगमरिचिका है है भूलभुलैया

इसको ख़ुदा का पावन पैगाम तो मत कह

हम आए हैं वहीं से जाएंगे भी वहीं

इस आख़री सफर को नाकाम तो मत कह

                        ---@अनुराधा सिंह

हिंदी सामना से साभार 

Thursday, October 17, 2024

PEC:14 से 16 अक्टूबर तक तीन दिवसीय कविता कार्यशाला का सफल आयोजन

Thursday 17th October 2024 at 5:29 PM Email K K Singh PEC 

डा.शम्स तबरेज़ी और डा.अनीश गर्ग, ने सिखाई काव्य की बारीकियां 


चंडीगढ़: 17 अक्टूबर, 2024: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

जब इंजीनिरिंग और कविता की उड़ान मिलते हैं तो बहुत से नए करिश्मे सामने आने लगते हैं। PEC के छात्रों के लिए इस तरह के करिश्मों को सामने लाने वाली  काव्य वर्कशाप आयोजन कुछ ऐसा ही तजुर्बा था।  बारीकियां सामने लाने लाने  हुए थे दो जानेमाने शायर डा. शम्स तबरेज़ी और डा. अनीश गर्ग। 


पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (PEC) के हिंदी संपादक मंडल (HEB) ने
14 से 16 अक्टूबर तक तीन दिवसीय कविता कार्यशाला का सफल आयोजन किया, जो उनके ओआई लोकेश सर के निर्देशन में संपन्न हुआ। इस कार्यशाला में 40 से अधिक छात्रों ने भाग लिया। इसमें दो प्रख्यात कवियों, डॉ. शम्स तबरेज़ी और डॉ. अनीश गर्ग, ने छात्रों को कविता लेखन और पठन की बारीकियों से परिचित कराया।

डॉ. शम्स तबरेज़ी, जो अपनी गहन और भावपूर्ण कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं, ने आत्म-अभिव्यक्ति के महत्व और शब्दों की शक्ति पर चर्चा करते हुए कार्यशाला की शुरुआत की। उन्होंने छात्रों को अपनी आंतरिक सोच और भावनाओं को कविता के माध्यम से व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया, ताकि यह कला उनके व्यक्तिगत अनुभवों का प्रतिबिंब बने। डा. शम्स तबरेज़ी की शायरी भी बहुत  है। उनकी शायरी की एक झलक आप देख सकते हैं बस यहां क्लिक कर के। 

डॉ. अनीश गर्ग, जो काव्य तकनीकों में अपनी मुहारत के लिए जाने जाते हैं, ने छात्रों को कविता के तकनीकी पहलुओं जैसे ताल, छंद और चित्रण से परिचित कराया। उन्होंने इंटरैक्टिव सत्र भी आयोजित किए, जहां प्रतिभागियों ने विभिन्न कविताओं में गहरे अर्थों की परतों की पहचान और सराहना करना सीखा। इस सेशन में सवाल जवाब का सिलसिला काफी दिलचस्प रहा। 

शायरी पर इस कार्यशाला ने सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक अभ्यास का संतुलित मिश्रण प्रदान किया, जिससे छात्रों को विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में अपनी कविताएं लिखने का अवसर मिला। इस मार्गदर्शन का इन छात्रों को आगे चल कर फायदा भी बहुत होगा। PEC में आयोजित इस कार्यशाला के अंत तक, प्रतिभागियों ने अपनी लेखन क्षमता में पहले से बहुत अधिक आत्मविश्वास महसूस किया और इस अवसर के लिए प्रशंसा व्यक्त की कि उन्हें इतने कुशल कवियों से सीखने का अवसर मिला।
 
कुल मिला कर यह आयोजन अत्यंत सफल रहा, जिसने छात्रों को प्रेरित और उत्साहित किया, और उनकी काव्य यात्रा को जारी रखने की नई ऊर्जा प्रदान की।