Thursday, October 17, 2024

"गीत मेरी मातृभाषा का; है न चाकू जैसी !

कविता//मातृभाषा//सुखपाल 


सभी काम कर लेता है 

तीस साला डेविड 

'हैंडीमैन' हमारे अस्पताल का।

सफाई

टपकती छत की मुरम्मत 

बिजली वाले यंत्र ठीक करना 

टूटी हुई पाइपें जोड़ना 

फर्नीचर बनाना 

ड्राईवाल लगाना 

टायलेट फिट करना 

मशीनें ठीक करना....

दफ़्तर की चाबी घर भूल आया मैं 

डेविड को पूछा...

वह‌ बोला...

"चाबी तो है नहीं 

लेकिन दरवाजा खोल देता हूं तेरा !"

जेब से चाकू निकाल 

डेविड ने ताले के सुराख में झांका 

झट से दरवाजा खोल‌ मारा

और बोला -

चाबी की बजाय चाकू रखा करो जेब में 

"चाबी से एक दरवाजा खुलता है 

चाकू से बहुत सारे 

रोटी वाला भी..."

खुला का खुला रह गया मेरा मुंह 

" इतने काम कहां सीखें, डेविड ?"

वह मुस्कुराया -

" बहुत खराब था मेरा बचपन.."

चाकू हवा में उछाल 

धार की ओर से बोच कर

तीखे स्वर में गीत गुनगुनाते हुए 

वह चल पड़ा ‌दूसरी ओर...

मैंने पीछे से आवाज़ लगाई 

" किस भाषा का गीत है..?"

सिर घुमाकर बोला -

" मेरी मातृभाषा का

है न चाकू जैसी !

यह भी बहुत दरवाजे खोलती है 

मेरे लिए..."

👌🏽👤👌🏽

पंजाबी मूल : सुखपाल 

हिन्दी अनुवाद : गुरमान सैनी 

संपर्क : 9256346906

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