Friday, September 14, 2012

यह सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा


कालजयी शायरी करने वाले जन जन के शायर जनाब दुशियंत जी की एक प्रसिद्ध गजल सुश्री कुसुम शर्मा की आवाज़ में यहाँ यूट्यूब के साभार दी जा रही है....!...
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा

यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं सभी नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा

ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परेशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा

कई फ़ाके बिताकर मर गया जो उस के बारे में
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा

यहाँ पर सिर्फ़ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा

चलो अब यादगारों की अंधेरी कोठरी खोलें
कम से कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा
                                                     दुष्यंत कुमार

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