8th January 2022 at 0:38 AM
हुकूमत करे न यह नफ़रत कहीं पर;
कि अम्न ओ अमाँ हो सदा इस ज़मीं पर!
सन 1974 में एक फिल्म आई थी-"आपकी कसम।" इसमें आनंद बक्शी साहिब का लिखा एक गीत था जो बहुत हिट हुआ। आवाज़ दी थी किशोर कुमार साहिब ने और संगीत तैयार किया था आर दी बर्मन साहिब ने। उसकी एक पंक्ति थी-ज़िंदगी के सफर गुज़र जाते हैं जो मुकाम--वो फिर नहीं आते...वो फिर नहीं आते..! यही हकीकत भी है और प्राकृति का नियम भी। इसी ज़िंदगी में जब दुःख डेरा जमा कर बैठ जाएं तो निराशा होने लगती है लेकिन शायर लोग बुरे से बुरे वक्त में भी अच्छे दिन आने की बातें सिर्फ सुनते ही नहीं उन पर यकीन भी करते हैं। शायरा जसप्रीत कौर फ़लक ने नव वर्ष के अवसर पर कामना की है- सभी गुनगुनायें वफ़ा के तराने//सभी को मिलें मुसकुराते ज़माने! अध्यापन के क्षेत्र से जुडी इस शायरा को न तो राजनीतिक चुनावों से कोई मतलब है और न ही साहित्य से जुड़े चुनावों से। अपने रचना क्षेत्र में मग्न जसप्रीत कौर फ़लक की शायरी का आनंद आप भी लीजिए-रेक्टर कथूरिया
हवाओं ने मस्ती भरा गीत गाया।
सभी गुनगुनायें वफ़ा के तराने
सभी को मिलें मुसकुराते ज़माने।
नयीं हों उमंगें नयी रौशनी हो
हर इक चेहरे पर अब नयी ताज़गी हो।
यह कुदरत सभी पर मुहब्बत लुटाये
दुखों से भरा अब कोई दिन न आये।
यह पंछी पखेरू भी मस्ती में खेलें
ज़माने में महकें मुहब्बत की बेलें।
हुकूमत करे न यह नफ़रत कहीं पर
कि अम्न ओ अमाँ हो सदा इस ज़मीं पर।
डोर विश्वास की अब न टूटे कभी
अपनों का साथ भी अब न छूटे कभी ।
खेतों में खेतियाँ लहलहाती रहें
झरने बहते रहे लहरें गाती रहें ।
सबको जीवन मिले मुस्कुराता हुआ
गुज़रे हर पल नये गीत गाता हुआ ।
दिल मुहब्बत से सबका ही खुशहाल हो
और सबको मुबारक नया साल हो ।
फ़िर आयें बहारें खिलें फूल दिल के
'फ़लक' यह दुआ है रहें सारे मिल के ।
--जसप्रीत कौर फ़लक
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