Sunday, January 12, 2020

शायरी में आज के सवाल उठाती रजनी शर्मा की एक रचना और

Sent: Friday: 10th January 2020:Whats app
दिल को छोड़ कर वह देश से पूछती है-हुआ क्या है!
लुधियाना: 12 जनवरी 2020: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::
कभी जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब साहिब ने लिखा था--दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है!आखिर  इस दर्द की दवा क्या है! यह ग़ज़ल बहुत मकबूल हुई और फ़िल्मी गीत के रूप में भी सामने आई। इसमें शब्द और संगीत का जो जादू महसूस होता है वह बहुत गहरे तक असर करता है।  यह फैसला करना मुश्किल सा लगता है कि इसके शब्द इस संगीत या इस धुन के लिखे गए या फिर यह धुन या संगीत इन शब्दों के लिए बनाई गई। जनाब गुलाम मोहम्मद साहिब ने इस की धुन बनाते समय जो कमाल दिखाया वह हमारे युग की एक विशेष उपलब्धि है। कितना सुंदर है यह संगीत और यह गीत इसकी विस्तृत चर्चा अलग से भी की गई है। यहां शायद इसका दोहराव भी होता अगर आज के युग की आधुनिक शायरा रजनी शर्मा ने अपनी यह रचना न भेजी होती। आज के हालात में हो रहे हर घटनाक्रम पर शायराना प्रतिक्रिया व्यक्त करने में बहुत अग्रणी है रजनी शर्मा। नवां शहर जैसे प्राकृतिक रंग में रंगे हुए  इलाके में रहने वाली रजनी शर्मा यूं तो अध्यापन के क्षेत्र  है लेकिन उसका अंतर्मन पूरे ब्राह्मण्ड से जुड़ा हुआ है। कहीं भी मानवता पर कुछ आघात जैसा कुछ होता है तो उसका कंम्पन,  उसका दर्द रजनी शर्मा के दिल तक भी पहुंचता है और दिमाग तक भी। इस असहनीय दर्द को झेल कर भी वह चुप नहीं बैठती। खामोश नहीं रहती। सवाल डॉ सवाल उठाती है। पूरी बुलंद आवाज़ से पूछती है। इस रचना में भी उस ने सवाल उठाये हैं। वह पूछती इस पूरे देश से, देश की जनता से और देश के कर्णधारों से। उसके यही सवाल दिल से देश तक की बात करते हैं, दुनिया तक पहुंचते हुए पूरे ब्राह्मण्ड को झंकझोरने का प्रयास करते हैं।  फिर मन के भावों का आवेग हिंदी में उठे या पंजाबी में-वह व्यक्त करके ही रहती है। देखिये उसकी शायरी की एक और झलक। -रेक्टर कथूरिया 
यह मेरे मुल्क को हुआ क्या है। 
क्या बताऊँ के मामला क्या है। 

मज़हबी चालों से उठी आँधी; 
नफ़रतों की यहाँ शिफा क्या है। 

बह रहा है लहू जो सब का तो;
दौर ए हिन्द की सजा क्या है। 

लिखनी है तो ग़ज़ल तू सच पे लिख;
झूठ का फिर ये काफिया क्या है। 

यह जो फ़रमान जारी वहशत के;
ताबो ताकत का ये नशा क्या है। 

मेरी दिवानगी पे हसते हैं;
होश वालों का माजरा क्या है। 

कलियों को यूँ सुलगते देखा तो;
दिल में मेरे ये दिलजला क्या है।                                    

आशिकी से जो ना मिले हम को;
ऐसा भगवान ओ ख़ुदा क्या है। 
                      --रजनी शर्मा

7 comments:

  1. जी आभार आपका
    नमन

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    1. आप बहुत अच्छा लिखती हैं--इस लेखनी की साधना को जारी रखना--हालात चाहे कुछ भी क्यूँ न बनते रहें--आप समाज के लिए अमूल्य धरोहर हैं---स्वार्थ के इस युग में समाज के लिए सोचने वाले लोग लगातार समाप्त हो रहे हैं--इस चिंता को मरने मत देना---मानवता के नाते यह संवेदना और चिंता बहुत आवश्यक है---

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    2. जी जी
      मेरा आत्मीय आभार स्वीकारें
      नमन

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  2. रजनी शर्मा आप की रचना दिल में दिमाग को जागृत करती है और दिमाग में दिल को भी जगाती है। शायर आम तौर पर दिल से सोचते हैं और दूसरे लोग दिमाग से भावना की बात करते हैं। इस तरह नफा नुकसान देखने वाले इस युग के माहौल में आप ने देश की बात कर के देश की जनता और देश की सियासत-दोनो को सोचने पर मजबूर कर दिया है। इस सफल रचना के लिए हार्दिक बधाई।

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    1. जी हार्दिक शुक्रिया आपका
      अपना स्नेह बनाये रखिये
      सफलता आपके कदम चूमें

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  3. Very Nice---बहुत ही बढ़िया रचना---आप ने बिलकुल सत्य कहा रजनी जी--

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    1. जी अशेष आभार
      खुश रहिये सदा

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