Wednesday, September 2, 2020

जनाब दुष्यंत कुमार के जन्मदिन पर डा. कुमार विश्वास

दुष्यंत के तेज़ाबी तेवरों में एक बार फिर असली कलम का रंग 
जनाब दुष्यंत कुमार साहिब की शायरी झलक 

सोशल मीडिया
: 2 सितंबर 2020: (हिंदी स्क्रीन ब्यूरो)::
विदेश से लेकर पंजाब की हर गली तक जन चेतना  लगी पत्रकार सोनिया के
साथ जानेमाने शायर डाक्टर कुमार विश्वास
 
आज के दौर में जो शायर लोकप्रियता के शिखर छू रहे हैं उनमें डाक्टर कुमार विश्वास भी विशेष तौर पर ख़ास शायरों में से गिने जाते हैं। पहली सितंबर के मौके पर उन्होंने कालजयी शायर दुष्यंत कुमार को बहुत ही श्रद्धा से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये। उन्होंने अपने फेसबुक प्रोफाईल पर कहा:
कविता के चाहने वाले अक्सर मुझसे पूछते हैं कि ये ‘कालजयी-कविता’ कैसी होती है ! आइए समझाने की कोशिश करता हूँ ! आपातकाल के दौरान जब हमारे देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गाँधी जी ने सत्ता के अहंकार और चमचों की जय-जयकार में मग्न होकर भारतीय-लोकतंत्र को व्यक्ति-निष्ठा के आगे नतमस्तक करने की कोशिश की थी तो उसी पार्टी की राज्य सरकार में कार्यरत कवि-ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से बेख़ौफ़ उन्हें सच का आईना दिखाया था ! उस वक़्त की बंधक सरकारी-मशीनरी, घुटने टेकती मीडिया और इमरजेंसी को ‘अनुशासन-पर्व’ बताते भयभीत बौद्धिकों से उम्मीद हार चुकी आम जनता की ज़ुबान, दुष्यंत के तेज़ाबी तेवरों में मुखरित होने लगी ! याद रखिए ये आज से पैंतालीस साल पहले का इतिहास है😳! 
अब समझिए ‘कालजयी’😂! दुष्यंत कुमार के जन्मदिन पर आज जब हमने, आज से भी पाँच साल पहले बनाए ‘महाकवि सीरियल के ये पैंतालीस साल पहले लिखे अंश, कवि को श्रद्धांजलि स्वरूप, सोशल मीडिया पर लगाए तो ‘व्यक्ति-निष्ठा’ की उसी पुरानी बीमारी के युगीन शिकारों ने लगभग हर ग़ज़ल के नीचे ‘गाली-गुफ्तार’ करनी शुरू कर दी ! वे भड़क उठे कि मैं व्यवस्था का विरोध कर रहा हूँ बिना ये जाने की ये पैंतालीस साल पुरानी ग़ज़लें हैं और उस वक़्त की व्यवस्था के ख़िलाफ़ रची गई थीं😂! पढ़कर मैं तो बहुत हँसा कि चलो इनकी इस संकुचित सोच के कारण हमारा बड़ा कवि तो ‘कालजयी रचनाकार’ सिद्ध हो ही रहा है, सत्ता के अकारण अहंकार और व्यक्ति को व्यवस्था समझने वाले जय-जयकारी भक्त भी जय के तस, आजतक वैसे ही बराबर मौजूद है, यह भी सिद्ध हो ही रहा है ! अब आप समझे, यह होता है “कालजयी कवि” और यह होती है उसकी कालजयी कविता 😍😍🇮🇳👍!
ख़ैर आज उस खुद्दार कवि दुष्यंत कुमार के जन्मदिन के समापन से पहले, आइए देखिए ये एपिसोड और जानिए कि अंधभक्ति की अलोकतांत्रिक ख़ुराक पाकर कैसे धीरे-धीरे, हर दौर, हर सरकार, हर व्यवस्था में सच सुनने की शिद्दत ख़त्म होती जाती है लेकिन हर दौर में कवि बिना डरे उस अहंकार की आँखों में आँखें डालकर जनता के सवाल पूछता ही है ! न व्यवस्था का ग़ुरूर बदला न कवि का बेबाक़ सच कहने का सुरूर 😍🇮🇳 !
बक़ौल हमारे राजनैतिक विद्यालय के कवि-कुलपति अटलजी “सरकारें तो आएँगी जाएँगी, पार्टियाँ बनेंगी बिगड़ेगी, सत्ता का खेल तो चलेगा लेकिन ये देश रहना चाहिए, इसका लोकतंत्र रहना चाहिए !”
🇮🇳👍 देश और सच को कभी मत छोड़िए ! देश का मसला हो तो अपने “आप” के ख़िलाफ़ भी बोलिए और अपने बाप के ख़िलाफ़ भी बोलिए 😂😂! जयहिंद 


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