31-जनवरी-2013 15:11 IST
'' ''फेथ एंड फ्रीडम: गांधी इन हिस्ट्री'' '' का विमोचन
हमेशा ही विशेषज्ञों और सामान्य पाठकों के बीच रुचिकर और उपयुक्त रहा है-उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने कहा कि गांधी जी पर शैक्षणिक कार्य हमेशा ही विशेषज्ञों और सामान्य पाठकों के बीच रुचिकर और उपयुक्त रहा है। उनकी शहादत की वर्षगांठ पर इस कार्य का विमोचन अपने आप में गौरव प्रदान करता है। उन्होंने प्रो. मुशीरूल हसन द्वारा लिखी गई पुस्तक ''फेद एंड फ्रीडम: गांधी इन हिस्ट्री'' का विमोचन करने के बाद संबोधन में कहा कि गांधी जी पर लिखे सभी लेख इंसान, शिक्षक, समाज सुधारक, जन-नेता, सांप्रदायिक सद्भाव के उपदेशक, शक्तिशाली साम्राज्य के प्रतिवादी, नए तरह के राजनीतिक सक्रियतावाद के निर्माता अपने देश तथा नागरिकों की महान आत्माओं के कुछ पहलुओं पर आधारित है। प्रो. मुशीरूल हसन की पुस्तक पारंपरिक जीवनी और मानक इतिहास से परे है। यह पुस्तक विषयों के माध्यम से इतिहास के अनुसार चलती है। यह पुस्तक महात्मा गांधी के जीवन के उन पहलुओं तथा उनके द्वारा किए गए कार्य पर प्रकाश डालती है, जो हमें पता है परंतु उनका पर्याप्त विश्लेषण नहीं हो पाया है।
उन्होंने बताया कि प्रो. मुशीरूल हसन का ध्यान गांधी जी के विचार तथा कार्य के दो विशिष्ट पहलुओं के विश्लेषण पर केंद्रित है। पहला उनकी ''काँग्रेसी मुसलमानों के साथ जटिल तथा अस्थिर संबंध जोकि एक अपेक्षाकृत अज्ञात प्रजाति और जिन कारणों से उन्होंने लीग के दावे यानी पाकिस्तान का चयन किया'' और दूसरा ''गांधी जी का दक्षिण एशिया में स्पष्टता और समझदारी से इस्लाम और मुस्लिम समुदाय की समझ की व्याख्या करना' (PIB)
***गांधी जी पर शैक्षणिक कार्य
Thursday, January 31, 2013
Sunday, January 27, 2013
महामहिम का राष्ट्र के नाम संदेश
25-जनवरी-2013 19:43 IST
भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का राष्ट्र के नाम संदेश
भारत में पिछले छह दशकों के दौरान,छह सदियों से अधिक बदलाव
उपनिवेशवाद की राख से एक नए भारत के सृजन का महान सपना
64वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश का मूल पाठ इस प्रकार है:-
मेरे प्यारे देशवासियो :
चौंसठवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं भारत में और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध सैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों को विशेष बधाई देता हूं।
भारत में पिछले छह दशकों के दौरान, पिछली छह सदियों से अधिक बदलाव आया है। यह न तो अचानक हुआ है और न ही दैवयोग से; इतिहास की गति में बदलाव तब आता है जब उसे स्वप्न का स्पर्श मिलता है। उपनिवेशवाद की राख से एक नए भारत के सृजन का महान सपना 1947 में ऐतिहासिक उत्कर्ष पर पहुंचा, और इससे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि स्वतंत्रता से राष्ट्र-निर्माण की नाटकीय कथा की शुरुआत हुई। इसकी आधारशिला, 26 जनवरी, 1950 को अंगीकृत हमारे संविधान के द्वारा रखी गई थी, जिसे हम प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। इसका प्रेरक सिद्धांत था, राज्य और नागरिक के बीच एक सहमति अर्थात न्याय, स्वतंत्रता तथा समानता के द्वारा पोषित सशक्त सार्वजनिक-निजी भागीदारी।
भारत ने अंग्रेजों से स्वतंत्रता इसलिए नहीं ली थी कि वह भारतीयों को आजादी से वंचित रखे। संविधान दूसरी आजादी का प्रतीक था और यह आजादी थी लिंग, जाति, समुदाय की गैर-बराबरी की घुटन से और उन दूसरी प्रकार की बेड़ियों से, जो हमें बहुत समय से जकड़े हुए थी।
इसने ऐसे क्रांतिकारी उद्विकास को प्रेरणा दी जिसने भारतीय समाज को आधुनिकता के मार्ग पर आगे बढ़ाया : समाज में क्रमिक उद्विकास के द्वारा बदलाव आया, क्योंकि हिंसक क्रांति भारतीय परिपाटी नहीं है। जटिल सामाजिक ताने-बाने में बदलाव पर अभी कार्य जारी है, और इसको कानून में समय-समय पर आने वाले सुधारों और जनमत की शक्ति से प्रेरणा मिलती रही है।
पिछले छह दशकों में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं। हमारी आर्थिक विकास दर तीन गुना से अधिक हो गई है। साक्षरता की दर में चार गुना से अधिक वृद्धि हुई है। खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के बाद अब हम खाद्यान्न के निर्यातक हैं। गरीबी की मात्रा में काफी कमी लाई गई है। हमारी एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि लैंगिक समानता की दिशा में हमारा प्रयास है।
ऐसा किसी ने नहीं कहा कि यह कार्य आसान होगा। 1955 में अधिनियमित हिंदू संहिता विधेयक, जैसी पहली बड़ी कोशिश में जो समस्याएं आई थी, उनकी अलग कहानी है। यह महत्त्वपूर्ण कानून जवाहर लाल नेहरू तथा बाबा साहेब अंबेडकर जैसे नेताओं की अविचल प्रतिबद्धता से ही पारित हो पाया था। जवाहरलाल नेहरू ने बाद में इसे अपने जीवन की संभवत: सबसे बड़ी उपलब्धि बताया था। अब समय आ गया है कि हर-एक भारतीय महिला के लिए लैंगिक समानता सुनिश्चित की जाए। हम न तो इस राष्ट्रीय दायित्व से बच सकते हैं और न ही इसे छोड़ सकते हैं क्योंकि इसे नजरअंदाज करने की बहुत भारी कीमत चुकानी होगी। निहित स्वार्थ आसानी से हार नहीं मानते। इस राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए सिविल समाज तथा सरकार को मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे।
प्यारे देशवासियो :
मैं आपको ऐसे समय पर संबोधित कर रहा हूं जब एक बहुत व्यापक त्रासदी ने हमारे प्रमाद को झकझोर डाला है। एक नव-युवती के नृशंस बलात्कार और हत्या ने, एक ऐसी महिला जो कि उदीयमान भारत की आकांक्षाओं का प्रतीक थी, हमारे हृदयों को रिक्तता से तथा हमारे मनों को क्षोभ से भर दिया है। हमने एक जान से कहीं अधिक कुछ खोया है; हमने एक सपना खो दिया है। यदि आज हमारे युवा क्षुब्ध हैं तो क्या हम अपने युवाओं को दोष दे सकते हैं?
देश का एक कानून है। परंतु उससे ऊंचा भी एक कानून है। महिला की पवित्रता भारतीय सभ्यता नामक समग्र दर्शन का नीति निर्देशक सिद्धांत है। वेद कहते हैं कि माता एक से अधिक हो सकती हैं; जन्मदात्री, गुरुपत्नी, राजा की पत्नी, पुजारी की पत्नी, हमें दूध पिलाने वाली और हमारी मातृभूमि। मां हमें बुराई और दमन से बचाती है, हमारे लिए जीवन और समृद्धि का प्रतीक है। जब हम किसी महिला के साथ पाशविकता करते हैं तो अपनी सभ्यता की आत्मा को लहुलुहान कर डालते हैं।
देश को अपनी नैतिक दिशा को फिर से निर्धारित करने का समय आ गया है। निराशावादिता को बढ़ावा देने के लिए कोई अवसर नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि निराशावाद नैतिकता को अनदेखा करता है। हमें अपनी अंतरात्मा में गहराई से झांकना होगा और यह पता लगाना होगा कि हमसे कहां चूक हुई है। समस्याओं का समाधान विचार-विमर्श तथा नजरियों में तालमेल से ढूंढ़ना होगा। लोगों को यह विश्वास होना चाहिए कि शासन भलाई का एक माध्यम है और इसके लिए हमें सुशासन सुनिश्चित करना होगा।
प्यारे देशवासियो :
हम दूसरे पीढ़ीगत बदलाव के मुहाने पर हैं; गांवों और कस्बों में फैले हुए युवा इस बदलाव के अग्रेता हैं। आने वाला समय उनका है। वे आज अस्तित्व संबंधी बहुत सी शंकाओं से ग्रस्त हैं। क्या तंत्र योग्यता को समुचित सम्मान देता है। क्या समर्थवान लालच में पड़कर अपना धर्म भूल चुके हैं। क्या सार्वजनिक जीवन में नैतिकता पर भ्रष्टाचार हावी हो गया है। क्या हमारी विधायिका उदीयमान भारत का प्रतिनिधित्व करती है या फिर इसमें आमूल-चूल सुधारों की जरूरत है। इन शंकाओं को दूर करना होगा। चुने हुए प्रतिनिधियों को जनता का विश्वास फिर से जीतना होगा। युवाओं की आशंका और उनकी बेचैनी को, तेजी से, गरिमापूर्ण तथा व्यवस्थित ढंग से बदलाव के कार्य पर लगाना होगा।
युवा खाली पेट सपना नहीं देख सकते। उनके पास अपनी और राष्ट्र की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए रोजगार होना चाहिए। यह सच है कि हमने 1947 के बाद एक लम्बा रास्ता तय किया है, जब हमारे प्रथम बजट का राजस्व मात्र 171 करोड़ रुपये था। आज केन्द्र सरकार के संसाधन उस बूंद की तुलना में एक महासागर के समान हैं। परंतु हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कहीं आर्थिक विकास से प्राप्त लाभ पर, पिरामिड के शिखर पर बैठे भाग्यशाली लोगों का ही एकाधिकार न हो जाए। धन के सृजन का बुनियादी उद्देश्य हमारी बढ़ती जनसंख्या से भुखमरी, निर्धनता और अल्प आजीविका की बुराई को जड़ से खत्म करना होना चाहिए।
प्यारे देशवासियो :
पिछला वर्ष हम सभी के लिए परीक्षा का वर्ष रहा है। आर्थिक सुधारों के पथ पर अग्रसर होते हुए, हमें बाजार-आधारित अर्थव्यवस्थाओं की वर्तमान समस्याओं के प्रति जागरूक रहना होगा। बहुत से धनी राष्ट्र अब सामाजिक दायित्व रहित अधिकार की संस्कृति के जाल में फंस गए हैं; हमें इस जाल से बचना होगा। हमारी नीतियों के परिणाम हमारे गांवों, खेतों, फैक्ट्रियों तथा स्कूलों और अस्पतालों में दिखाई देने चाहिए।
आंकड़ों का उन लोगों के लिए कोई अर्थ नहीं होता जिन्हें उनसे लाभ नहीं पहुंचता। हमें तत्काल काम में लगना होगा अन्यथा, वर्तमान में जिन अशांत इलाकों का प्राय: ‘नक्सलवादी’ हिंसा के रूप में उल्लेख किया जाता है उनमें और अधिक खतरनाक ढंग से विस्तार हो सकता है।
प्यारे देशवासियो :
अभी पिछले दिनों, नियंत्रण रेखा पर हमारे सैनिकों पर गंभीर नृशंसता के मामले सामने आए हैं। पड़ोसियों में मतभेद हो सकते हैं; सीमाओं पर तनाव एक सामान्य स्थिति हो सकती है। परंतु राज्य से इतर तत्त्वों के माध्यम से प्रायोजित आतंकवाद समूचे राष्ट्र के लिए भारी चिंता का विषय है। सीमा पर शांति में हमारा विश्वास है और हम सदैव दोस्ती की उम्मीद में हाथ बढ़ाने के लिए तैयार हैं। परंतु इस हाथ को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
प्यारे देशवासियो :
भारत की सबसे अजेय सम्पत्ति है उसका खुद में विश्वास। हमारे लिए प्रत्येक चुनौती, अभूतपूर्व आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता हासिल करने के हमारे सकंल्प को मजबूत बनाने का अवसर बन जाती है। इस संकल्प को, खासकर बेहतर और व्यापक शिक्षा पर भारी निवेश के द्वारा, मजबूत बनाना होगा। शिक्षा ऐसी सीढ़ी है, जो सबसे निचले पायदान पर मौजूद व्यक्तियों को व्यावसायिक और सामाजिक प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचा सकती है। शिक्षा ऐसा मंत्र है जो हमारे आर्थिक भाग्य को बदल सकता है और ऐसी दरारों को पाट सकता है जो समाज में असमानता पैदा करती हैं। अभी तक शिक्षा की यह सीढ़ी, अपेक्षित स्तर तक, उन लोगों तक नहीं पहुंची है जिनको इसकी सबसे अधिक जरूरत है। भारत द्वारा वर्तमान वंचितों को, आर्थिक विकास के बहुत से उपादानों में बदल कर अपनी विकास दर को दोगुना किया जा सकता है।
हमारे चौंसठवें गणतंत्र दिवस के अवसर पर यद्यपि चिंता का कोई कारण हो सकता है परंतु हताशा का कोई नहीं। यदि भारत में छह दशकों में पिछली छह सदियों के मुकाबले अधिक बदलाव आया है तो मैं आपसे वायदा करता हूं कि इसमें अगले दस वर्षों में, पिछले साठ वर्षों से ज्यादा बदलाव आएगा। भारत की शाश्वत जिजीविषा जागृत है।
अंग्रेजों को भी यह लगा था कि वे एक ऐसा देश छोड़कर जा रहे हैं जो उससे बहुत अलग है जिस पर उन्होंने आधिपत्य किया था। राष्ट्रपति भवन स्थित जयपुर स्तंभ की आधारशिला पर एक शिलालेख है :-
‘‘विचारों में आस्था... शब्दों में प्रज्ञा...
कर्म में पराक्रम...
जीवन में सेवा...
अत: भारत महान बने’’
भारत की भावना प्रस्तर में उत्कीर्ण है।
जय हिंद!
**** महामहिम का राष्ट्र के नाम संदेश
मीणा/वि. कासोटिया/कविता/सुनील-327
भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी का राष्ट्र के नाम संदेश
भारत में पिछले छह दशकों के दौरान,छह सदियों से अधिक बदलाव
उपनिवेशवाद की राख से एक नए भारत के सृजन का महान सपना
64वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश का मूल पाठ इस प्रकार है:-
मेरे प्यारे देशवासियो :
चौंसठवें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मैं भारत में और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। मैं अपनी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध सैनिक बलों और आंतरिक सुरक्षा बलों को विशेष बधाई देता हूं।
भारत में पिछले छह दशकों के दौरान, पिछली छह सदियों से अधिक बदलाव आया है। यह न तो अचानक हुआ है और न ही दैवयोग से; इतिहास की गति में बदलाव तब आता है जब उसे स्वप्न का स्पर्श मिलता है। उपनिवेशवाद की राख से एक नए भारत के सृजन का महान सपना 1947 में ऐतिहासिक उत्कर्ष पर पहुंचा, और इससे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि स्वतंत्रता से राष्ट्र-निर्माण की नाटकीय कथा की शुरुआत हुई। इसकी आधारशिला, 26 जनवरी, 1950 को अंगीकृत हमारे संविधान के द्वारा रखी गई थी, जिसे हम प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं। इसका प्रेरक सिद्धांत था, राज्य और नागरिक के बीच एक सहमति अर्थात न्याय, स्वतंत्रता तथा समानता के द्वारा पोषित सशक्त सार्वजनिक-निजी भागीदारी।
भारत ने अंग्रेजों से स्वतंत्रता इसलिए नहीं ली थी कि वह भारतीयों को आजादी से वंचित रखे। संविधान दूसरी आजादी का प्रतीक था और यह आजादी थी लिंग, जाति, समुदाय की गैर-बराबरी की घुटन से और उन दूसरी प्रकार की बेड़ियों से, जो हमें बहुत समय से जकड़े हुए थी।
इसने ऐसे क्रांतिकारी उद्विकास को प्रेरणा दी जिसने भारतीय समाज को आधुनिकता के मार्ग पर आगे बढ़ाया : समाज में क्रमिक उद्विकास के द्वारा बदलाव आया, क्योंकि हिंसक क्रांति भारतीय परिपाटी नहीं है। जटिल सामाजिक ताने-बाने में बदलाव पर अभी कार्य जारी है, और इसको कानून में समय-समय पर आने वाले सुधारों और जनमत की शक्ति से प्रेरणा मिलती रही है।
पिछले छह दशकों में ऐसा बहुत कुछ हुआ है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं। हमारी आर्थिक विकास दर तीन गुना से अधिक हो गई है। साक्षरता की दर में चार गुना से अधिक वृद्धि हुई है। खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के बाद अब हम खाद्यान्न के निर्यातक हैं। गरीबी की मात्रा में काफी कमी लाई गई है। हमारी एक अन्य महत्त्वपूर्ण उपलब्धि लैंगिक समानता की दिशा में हमारा प्रयास है।
ऐसा किसी ने नहीं कहा कि यह कार्य आसान होगा। 1955 में अधिनियमित हिंदू संहिता विधेयक, जैसी पहली बड़ी कोशिश में जो समस्याएं आई थी, उनकी अलग कहानी है। यह महत्त्वपूर्ण कानून जवाहर लाल नेहरू तथा बाबा साहेब अंबेडकर जैसे नेताओं की अविचल प्रतिबद्धता से ही पारित हो पाया था। जवाहरलाल नेहरू ने बाद में इसे अपने जीवन की संभवत: सबसे बड़ी उपलब्धि बताया था। अब समय आ गया है कि हर-एक भारतीय महिला के लिए लैंगिक समानता सुनिश्चित की जाए। हम न तो इस राष्ट्रीय दायित्व से बच सकते हैं और न ही इसे छोड़ सकते हैं क्योंकि इसे नजरअंदाज करने की बहुत भारी कीमत चुकानी होगी। निहित स्वार्थ आसानी से हार नहीं मानते। इस राष्ट्रीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए सिविल समाज तथा सरकार को मिल-जुलकर प्रयास करने होंगे।
प्यारे देशवासियो :
मैं आपको ऐसे समय पर संबोधित कर रहा हूं जब एक बहुत व्यापक त्रासदी ने हमारे प्रमाद को झकझोर डाला है। एक नव-युवती के नृशंस बलात्कार और हत्या ने, एक ऐसी महिला जो कि उदीयमान भारत की आकांक्षाओं का प्रतीक थी, हमारे हृदयों को रिक्तता से तथा हमारे मनों को क्षोभ से भर दिया है। हमने एक जान से कहीं अधिक कुछ खोया है; हमने एक सपना खो दिया है। यदि आज हमारे युवा क्षुब्ध हैं तो क्या हम अपने युवाओं को दोष दे सकते हैं?
देश का एक कानून है। परंतु उससे ऊंचा भी एक कानून है। महिला की पवित्रता भारतीय सभ्यता नामक समग्र दर्शन का नीति निर्देशक सिद्धांत है। वेद कहते हैं कि माता एक से अधिक हो सकती हैं; जन्मदात्री, गुरुपत्नी, राजा की पत्नी, पुजारी की पत्नी, हमें दूध पिलाने वाली और हमारी मातृभूमि। मां हमें बुराई और दमन से बचाती है, हमारे लिए जीवन और समृद्धि का प्रतीक है। जब हम किसी महिला के साथ पाशविकता करते हैं तो अपनी सभ्यता की आत्मा को लहुलुहान कर डालते हैं।
देश को अपनी नैतिक दिशा को फिर से निर्धारित करने का समय आ गया है। निराशावादिता को बढ़ावा देने के लिए कोई अवसर नहीं दिया जाना चाहिए क्योंकि निराशावाद नैतिकता को अनदेखा करता है। हमें अपनी अंतरात्मा में गहराई से झांकना होगा और यह पता लगाना होगा कि हमसे कहां चूक हुई है। समस्याओं का समाधान विचार-विमर्श तथा नजरियों में तालमेल से ढूंढ़ना होगा। लोगों को यह विश्वास होना चाहिए कि शासन भलाई का एक माध्यम है और इसके लिए हमें सुशासन सुनिश्चित करना होगा।
प्यारे देशवासियो :
हम दूसरे पीढ़ीगत बदलाव के मुहाने पर हैं; गांवों और कस्बों में फैले हुए युवा इस बदलाव के अग्रेता हैं। आने वाला समय उनका है। वे आज अस्तित्व संबंधी बहुत सी शंकाओं से ग्रस्त हैं। क्या तंत्र योग्यता को समुचित सम्मान देता है। क्या समर्थवान लालच में पड़कर अपना धर्म भूल चुके हैं। क्या सार्वजनिक जीवन में नैतिकता पर भ्रष्टाचार हावी हो गया है। क्या हमारी विधायिका उदीयमान भारत का प्रतिनिधित्व करती है या फिर इसमें आमूल-चूल सुधारों की जरूरत है। इन शंकाओं को दूर करना होगा। चुने हुए प्रतिनिधियों को जनता का विश्वास फिर से जीतना होगा। युवाओं की आशंका और उनकी बेचैनी को, तेजी से, गरिमापूर्ण तथा व्यवस्थित ढंग से बदलाव के कार्य पर लगाना होगा।
युवा खाली पेट सपना नहीं देख सकते। उनके पास अपनी और राष्ट्र की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए रोजगार होना चाहिए। यह सच है कि हमने 1947 के बाद एक लम्बा रास्ता तय किया है, जब हमारे प्रथम बजट का राजस्व मात्र 171 करोड़ रुपये था। आज केन्द्र सरकार के संसाधन उस बूंद की तुलना में एक महासागर के समान हैं। परंतु हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कहीं आर्थिक विकास से प्राप्त लाभ पर, पिरामिड के शिखर पर बैठे भाग्यशाली लोगों का ही एकाधिकार न हो जाए। धन के सृजन का बुनियादी उद्देश्य हमारी बढ़ती जनसंख्या से भुखमरी, निर्धनता और अल्प आजीविका की बुराई को जड़ से खत्म करना होना चाहिए।
प्यारे देशवासियो :
पिछला वर्ष हम सभी के लिए परीक्षा का वर्ष रहा है। आर्थिक सुधारों के पथ पर अग्रसर होते हुए, हमें बाजार-आधारित अर्थव्यवस्थाओं की वर्तमान समस्याओं के प्रति जागरूक रहना होगा। बहुत से धनी राष्ट्र अब सामाजिक दायित्व रहित अधिकार की संस्कृति के जाल में फंस गए हैं; हमें इस जाल से बचना होगा। हमारी नीतियों के परिणाम हमारे गांवों, खेतों, फैक्ट्रियों तथा स्कूलों और अस्पतालों में दिखाई देने चाहिए।
आंकड़ों का उन लोगों के लिए कोई अर्थ नहीं होता जिन्हें उनसे लाभ नहीं पहुंचता। हमें तत्काल काम में लगना होगा अन्यथा, वर्तमान में जिन अशांत इलाकों का प्राय: ‘नक्सलवादी’ हिंसा के रूप में उल्लेख किया जाता है उनमें और अधिक खतरनाक ढंग से विस्तार हो सकता है।
प्यारे देशवासियो :
अभी पिछले दिनों, नियंत्रण रेखा पर हमारे सैनिकों पर गंभीर नृशंसता के मामले सामने आए हैं। पड़ोसियों में मतभेद हो सकते हैं; सीमाओं पर तनाव एक सामान्य स्थिति हो सकती है। परंतु राज्य से इतर तत्त्वों के माध्यम से प्रायोजित आतंकवाद समूचे राष्ट्र के लिए भारी चिंता का विषय है। सीमा पर शांति में हमारा विश्वास है और हम सदैव दोस्ती की उम्मीद में हाथ बढ़ाने के लिए तैयार हैं। परंतु इस हाथ को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।
प्यारे देशवासियो :
भारत की सबसे अजेय सम्पत्ति है उसका खुद में विश्वास। हमारे लिए प्रत्येक चुनौती, अभूतपूर्व आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता हासिल करने के हमारे सकंल्प को मजबूत बनाने का अवसर बन जाती है। इस संकल्प को, खासकर बेहतर और व्यापक शिक्षा पर भारी निवेश के द्वारा, मजबूत बनाना होगा। शिक्षा ऐसी सीढ़ी है, जो सबसे निचले पायदान पर मौजूद व्यक्तियों को व्यावसायिक और सामाजिक प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचा सकती है। शिक्षा ऐसा मंत्र है जो हमारे आर्थिक भाग्य को बदल सकता है और ऐसी दरारों को पाट सकता है जो समाज में असमानता पैदा करती हैं। अभी तक शिक्षा की यह सीढ़ी, अपेक्षित स्तर तक, उन लोगों तक नहीं पहुंची है जिनको इसकी सबसे अधिक जरूरत है। भारत द्वारा वर्तमान वंचितों को, आर्थिक विकास के बहुत से उपादानों में बदल कर अपनी विकास दर को दोगुना किया जा सकता है।
हमारे चौंसठवें गणतंत्र दिवस के अवसर पर यद्यपि चिंता का कोई कारण हो सकता है परंतु हताशा का कोई नहीं। यदि भारत में छह दशकों में पिछली छह सदियों के मुकाबले अधिक बदलाव आया है तो मैं आपसे वायदा करता हूं कि इसमें अगले दस वर्षों में, पिछले साठ वर्षों से ज्यादा बदलाव आएगा। भारत की शाश्वत जिजीविषा जागृत है।
अंग्रेजों को भी यह लगा था कि वे एक ऐसा देश छोड़कर जा रहे हैं जो उससे बहुत अलग है जिस पर उन्होंने आधिपत्य किया था। राष्ट्रपति भवन स्थित जयपुर स्तंभ की आधारशिला पर एक शिलालेख है :-
‘‘विचारों में आस्था... शब्दों में प्रज्ञा...
कर्म में पराक्रम...
जीवन में सेवा...
अत: भारत महान बने’’
भारत की भावना प्रस्तर में उत्कीर्ण है।
जय हिंद!
**** महामहिम का राष्ट्र के नाम संदेश
मीणा/वि. कासोटिया/कविता/सुनील-327
Thursday, January 24, 2013
मौसम की भविष्यवाणी
23-जनवरी-2013 17:21 IST
पृथ्वी विज्ञान प्रणाली संगठन के जरिये विशेष मौसम सेवाएं शुरु
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय मौसम विभाग ने देशभर में पृथ्वी विज्ञान प्रणाली संगठन के जरिये विशेष मौसम सेवाएं शुरु की हैं। इसमें वेब आधारित जानकारी को शामिल किया जाएगा। इस सेवा के अंतर्गत प्रायोगिक तौर पर 117 शहरी केन्द्रों को शामिल किया जाएगा जो 3-6 घंटे के रेंज में खराब मौसम (गरज के साथ छींटे, निम्न/ दबावों से भारी वर्षा) की जानकारी देंगे। खराब मौसम की शुरुआत के स्थान, उसके आगे बढ़ने/खराब मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए (ऑटोमेटिक वैदर सेक्शन- एडब्ल्यूएस, ऑटोमेटिक रेन गॉजेस-एआरजी, डोपलर वैदर रेडारों-डीडब्ल्यूआर, ऑटोमेटिक वैदर ऑब्जरविंग सिस्टम-एडब्लयूओ, सेटलाइट व्युत्पन्न वायु वैक्टर, तापमान, आर्द्रता फील्ड आदि) उपलब्ध प्रणालियों का समावेश किया गया है जो 3 घंटे के रेंज में (विषय वस्तु और चित्रात्मक रुप में) भविष्यवाणी कर सकेंगे।
खराब मौसम का पता लगाने के लिए 14 डीडब्ल्यूआर वाली 24 घंटे की निगरानी प्रणाली अगरतला, चैन्नई, दिल्ली-हवाई अड्डा, दिल्ली–लोधी रोड, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, मछलीपत्नम, नागपुर, पटना, विशाखापतनम, लखनऊ, परिटयाला और मोहनबाड़ी में काम करने लगी है। मुंबई और भुज में डीडब्ल्यूआर का स्थान ग्रहण परीक्षण चल रहा है जबकि भोपाल में इसे लगाने का कार्य चल रहा है। डीडब्ल्यूआर लगाने का काम गोआ, पारादीप और करईकल में फिलहाल रोककर रखा गया है। इसे रक्षा मंत्रालय की मंजूरी मिलनी बाकी है। (PIB)
वि कासोटिया/कविता-293
पृथ्वी विज्ञान प्रणाली संगठन के जरिये विशेष मौसम सेवाएं शुरु
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत भारतीय मौसम विभाग ने देशभर में पृथ्वी विज्ञान प्रणाली संगठन के जरिये विशेष मौसम सेवाएं शुरु की हैं। इसमें वेब आधारित जानकारी को शामिल किया जाएगा। इस सेवा के अंतर्गत प्रायोगिक तौर पर 117 शहरी केन्द्रों को शामिल किया जाएगा जो 3-6 घंटे के रेंज में खराब मौसम (गरज के साथ छींटे, निम्न/ दबावों से भारी वर्षा) की जानकारी देंगे। खराब मौसम की शुरुआत के स्थान, उसके आगे बढ़ने/खराब मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए (ऑटोमेटिक वैदर सेक्शन- एडब्ल्यूएस, ऑटोमेटिक रेन गॉजेस-एआरजी, डोपलर वैदर रेडारों-डीडब्ल्यूआर, ऑटोमेटिक वैदर ऑब्जरविंग सिस्टम-एडब्लयूओ, सेटलाइट व्युत्पन्न वायु वैक्टर, तापमान, आर्द्रता फील्ड आदि) उपलब्ध प्रणालियों का समावेश किया गया है जो 3 घंटे के रेंज में (विषय वस्तु और चित्रात्मक रुप में) भविष्यवाणी कर सकेंगे।
खराब मौसम का पता लगाने के लिए 14 डीडब्ल्यूआर वाली 24 घंटे की निगरानी प्रणाली अगरतला, चैन्नई, दिल्ली-हवाई अड्डा, दिल्ली–लोधी रोड, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, मछलीपत्नम, नागपुर, पटना, विशाखापतनम, लखनऊ, परिटयाला और मोहनबाड़ी में काम करने लगी है। मुंबई और भुज में डीडब्ल्यूआर का स्थान ग्रहण परीक्षण चल रहा है जबकि भोपाल में इसे लगाने का कार्य चल रहा है। डीडब्ल्यूआर लगाने का काम गोआ, पारादीप और करईकल में फिलहाल रोककर रखा गया है। इसे रक्षा मंत्रालय की मंजूरी मिलनी बाकी है। (PIB)
वि कासोटिया/कविता-293
Friday, January 18, 2013
सभी कार्यक्षेत्रों की महिलाओ का सम्मान
भारत को ब्रह्माण्ड़ गुरु की गरिमा वापस दिलाने का प्रयास
दामिनी की जान हम नहीं बचा पाए उसके बाद इस तरह की घटनायों की मुक्कमल रोकथाम भी नहीं कर पाए लेकिन इस के बावजूद महिला सम्मान को लेकर एक आन्दोलन अवश्य खड़ा हुआ जो लगातार मजबूत हो रहा है। जहाँ एक और महिलायों और उनकी पौशाक को लेकर बहुत ज़िम्मेदार समझे जाने वाले लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं वहीँ इस नाज़ुक समय में महिलायों के समान को लेकर एक विशेष आयोजन भी हो रहा है। महिला रत्नों के सम्मान में आप अपने क्षेत्र की महिलायों के नामांकन भी भेज सकते हैं साथ ही आलेख, सुझाव, सहयोग और विज्ञापन भी। इस विशेष आयोजन में कर्मठ, सत्यानिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ , संघर्षशील, प्रतिभाशाली, समाजसेवी , राष्ट्रहित में कार्य करने वाली सभी कार्यक्षेत्रों की महिलाओ का सम्मान किया जायेगा। आयोजकों का कहना है कि विश्व सभ्यता की रक्षा, सुरक्षा एवं वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति के विकास व विस्तार हेतु संकल्प के साथ इस महाभियान मे सहयोग करों सफलता आपके कदम चूमेंगी। आपका छोटा सा प्रयास भारत को विश्वगुरु ही नही वरन्
ब्रह्माण्ड़ गुरु की प्राचीन गरिमा वापस दिलाएगा। सम्पर्क : भावना त्यागी भारतीय (011 22528272, 9013666652) और भू त्यागी भारतीय (विश्व चिंतक) (09999466822, 9013666651) आप अपने सुझाव यहाँ भी भेज सकते हैं जिन्हें आयोजकों तक पहुंचा दिया जायेगा।-- रेक्टर कथूरिया
*महिला रत्नों का सम्मान *सभी कार्यक्षेत्रों की महिलाओ का सम्मान
*महिला रत्नों का सम्मान *सभी कार्यक्षेत्रों की महिलाओ का सम्मान
नामांकन आमन्त्रण महिला और मीडिया 2013 FFF.pdf
Wednesday, January 9, 2013
कल कोच्चि में हुई प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद की बैठक
उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों के ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाना
विश्वभर से 13 प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों ने लिया भाग
प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद की बैठक कल कोच्चि में हुई। विश्वभर से 13 प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों ने इसमें भाग लिया। बैठक में प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री श्री वायलार रवि, वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री आनंद शर्मा, विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद, मानव संसाधन मंत्री श्री एम.एम. पल्लम राजू, योजना आयोग के उपाध्यक्ष डॉक्टर मोंटेक सिंह आहलुवालिया और केन्द्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी बैठक में भाग लिया।
बैठक में जिन प्रवासी भारतीयों ने भाग लिया, उनमें श्री करण एफ. बिलीमोरिया, श्री स्वदेश चटर्जी, सुश्री इला गांधी, लॉर्ड खालिद हमीद, डॉक्टर रेणु खाटोर, श्री किशोर मधुबनी, श्री एल.एन. मित्तल, लॉर्ड भीखु छोटालाल पारेख, श्री सैमपितरोदा, तान श्री दातो अजीत सिंह, श्री नेविले जोसफ रोस, प्रोफेसर श्रीनिवास एस.आर.वर्धन और श्री युसूफाली एम.ए. शामिल थे।
बैठक में प्रतिभागियों ने महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों और भारत पर होने वाले उनके प्रभावों के बारे में विचारों का आदान-प्रदान किया। इनमें वैश्विक आर्थिक स्थिति, पश्चिम एशिया और खाड़ी क्षेत्र की घटनाएं, ऊर्जा सुरक्षा और एशिया प्रशांत क्षेत्र में प्रवृत्तियां जैसे मुद्दे शामिल थे। सदस्यों ने भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच तथा भारत और विभिन्न देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के बारे में भी अपने विचार प्रस्तुत किये।
प्रधानमंत्री ने उनके दृष्टिकोण और रचनात्मक सुझावों के लिए सदस्यों का धन्यवाद किया।
प्रधानमंत्री की प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद का गठन वर्ष 2009 में हुआ था और हर साल इसकी बैठक होती है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में फैले विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों के ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाना है, ताकि भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच सम्पर्कों के लिए व्यापक एजेंडा तैयार किया जा सके।(PIB) 09-जनवरी-2013 12:52 IST
विश्वभर से 13 प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों ने लिया भाग

प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद की बैठक कल कोच्चि में हुई। विश्वभर से 13 प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों ने इसमें भाग लिया। बैठक में प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री श्री वायलार रवि, वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री आनंद शर्मा, विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद, मानव संसाधन मंत्री श्री एम.एम. पल्लम राजू, योजना आयोग के उपाध्यक्ष डॉक्टर मोंटेक सिंह आहलुवालिया और केन्द्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी बैठक में भाग लिया।
बैठक में जिन प्रवासी भारतीयों ने भाग लिया, उनमें श्री करण एफ. बिलीमोरिया, श्री स्वदेश चटर्जी, सुश्री इला गांधी, लॉर्ड खालिद हमीद, डॉक्टर रेणु खाटोर, श्री किशोर मधुबनी, श्री एल.एन. मित्तल, लॉर्ड भीखु छोटालाल पारेख, श्री सैमपितरोदा, तान श्री दातो अजीत सिंह, श्री नेविले जोसफ रोस, प्रोफेसर श्रीनिवास एस.आर.वर्धन और श्री युसूफाली एम.ए. शामिल थे।
बैठक में प्रतिभागियों ने महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों और भारत पर होने वाले उनके प्रभावों के बारे में विचारों का आदान-प्रदान किया। इनमें वैश्विक आर्थिक स्थिति, पश्चिम एशिया और खाड़ी क्षेत्र की घटनाएं, ऊर्जा सुरक्षा और एशिया प्रशांत क्षेत्र में प्रवृत्तियां जैसे मुद्दे शामिल थे। सदस्यों ने भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच तथा भारत और विभिन्न देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के बारे में भी अपने विचार प्रस्तुत किये।
प्रधानमंत्री ने उनके दृष्टिकोण और रचनात्मक सुझावों के लिए सदस्यों का धन्यवाद किया।
प्रधानमंत्री की प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद का गठन वर्ष 2009 में हुआ था और हर साल इसकी बैठक होती है। इसका उद्देश्य दुनिया भर में फैले विभिन्न क्षेत्रों के प्रसिद्ध प्रवासी भारतीयों के ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाना है, ताकि भारत और प्रवासी भारतीयों के बीच सम्पर्कों के लिए व्यापक एजेंडा तैयार किया जा सके।(PIB) 09-जनवरी-2013 12:52 IST
कोच्चि में प्रवासी वैश्विक सलाहकार परिषद की बैठक
मीणा/राजगोपाल/गीता-97
Sunday, January 6, 2013
सिक्किम की सुगंध-टेमी चाय
03-जनवरी-2013 14:58 IST
दुनिया भर के चाय प्रेमियों का दिल जीत लिया
टेमी चाय पर विशेष लेख * खगेन्द्रमणि प्रधान
आकर्षक और भव्य माउंट कंचन ज़ोंगा की पृष्ठभूमि में तीस्ता नदी की सुहावनी समीर के साथ सिक्किम हर सुबह टेमी चाय का आनंद लेता है। 4500 से 6,316 फुट की ऊंचाई पर फैली ढलान वाली 180 हेक्टेयर भूमि में टेमी चाय के बागान हैं, जहां बहुत ही बढ़िया परम्परागत चाय की पैदावार होती है, जिसकी चाय के कदरदान तारीफ करते नहीं थकते।
टेमी चाय बागान की स्थापना सिक्किम के पूर्व नरेश चोग्याल के शासनकाल में 1969 में हुई थी और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन 1977 में शुरू हुआ। चाय बागान के रोजमर्रा के काम-काज को व्यवस्थित रखने के लिए 1974 में चाय बोर्ड की स्थापना की गई और बाद में यह सिक्किम सरकार के अंतर्गत उद्योग विभाग की सहायक कम्पनी बन गई। टेमी चाय से जहां एक ओर 4 हजार से अधिक श्रमिकों और 30 कर्मचारियों को सीधे रोजगार मिलता है, वहीं यह कम्पनी सरकारी क्षेत्र में रोजगार प्रदान करने वाली एक बड़ी कम्पनी बन गई है।
हल्की ढलान वाली यह भूमि तेंदोंग पर्वत श्रृंखला से शुरू होती है। 30-50 प्रतिशत ढलान वाली दुम्मट मिट्टी की यह भूमि चाय बागान के लिए बहुत ही उपयुक्त है और यहां साल में लगभग 100 टन चाय की पैदावार होती है। यदि बड़े चाय बागानों से मुकाबला किया जाए, तो यह पैदावार बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इसकी गुणवत्ता और सुगंध ने भारत और दुनिया भर के चाय प्रेमियों का दिल जीत लिया है।
टेमी चाय बागान में पैदा हुई चाय को ''टेमी चाय'' जैसे कई ब्रांड नामों से पैक किया जाता है, जो सबसे बढ़िया क्वालिटी की चाय होती है, जिसमें सुनहरी फूलों जैसी नारंगी झलक वाली बढि़या काली चाय होती है। इसके बाद दूसरी बढ़िया चाय का लोकप्रिय ब्रांड नाम है 'सिक्किम सोलजा' और उसके बाद 'मिस्टीक चाय' और 'कंचनजंगा' चाय का नाम आता है। इसे 'ऑर्थोडोक्स डस्ट टी' के नाम से बेचा जाता है। चाय की लगभग 70 प्रतिशत पैदावार अधिकृत दलाल के माध्यम से कोलकाता में सार्वजनिक नीलामी से बेची जाती है और बाकी की चाय के रिटेल (खुदरा बिक्री के लिए) पैकेट बनाए जाते हैं और स्थानीय बाजार में बेचे जाते हैं।
चाय बागान की भूमि की भौगोलिक स्थिति और चाय के पौधों को जैविक खाद से पोषित करने से इस चाय बागान में पैदा होने वाली चाय के पत्तों की कीमत और सुगंध और बढ़ जाती है।
टेमी चाय बागान ने स्विटज़रलैंड की बाजार नियंत्रण से संबंधित संस्था-आईएमओ के निर्देशों का पालन किया और पर्यवेक्षण की अवधि पूरी होने के बाद आईएमओ इंडिया ने, जो आईएमओ स्विटज़रलैंड का सदस्य समूह है, 2008 में टेमी चाय बागान को 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक का प्रमाण पत्र दिया। इसके अलावा खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के अंतर्गत भी यह आईएसओ-22,000 मानक के अनुसार एचएसीसीपी द्वारा भी परमाणीकृत चाय बागान है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बाजार पहुंचने वाला उत्पाद उत्तम गुणवत्ता वाला है। यह भी उल्लेखनीय है कि टेमी चाय बागान को लगातार दो वर्षों से भारतीय चाय बोर्ड ने भी अखिल भारतीय गुणवत्ता पुरस्कार से सम्मानित किया है।
चाय उत्पादन की पूरी प्रक्रिया को परंपरागत से ऑर्गेनिक में बदलने से न केवल इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ी है, बल्कि सिक्किम जाने वाले पर्यटक भी बड़ी संख्या में इसकी मांग करते हैं। चाय की ऑर्गेनिक खेती के लिए जैविक खाद और वर्मिन-कम्पोस्ट खाद, नीम और अरंण्डी की बट्टियों के रूप में कीटनाशक भी उपलब्ध होते हैं। चाय बागान के पास लगभग 100 एकड़ वन भूमि भी है, जिससे बड़ी मात्रा में चाय बागान के लिए जैविक खाद-पदार्थों की पूर्ति हो जाती है, जो इसे आवश्यक संसाधनों की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाता है।
खेती में रासायनिक खादों के इस्तेमाल को छोड़कर पैदावार के ऑर्गेनिक तरीके अपनाने से न केवल टेमी चाय बागान की उत्पादन लागत कम हुई है, बल्कि हानिकारक रसायनों से मुक्त ऑर्गेनिक पैदावार को पसंद करने वालों का एक बहुत बड़ा बाजार भी मिल गया है। टेमी चाय बोर्ड को अपनी सफलता पर गर्व है और वह सरकारी राजस्व में भी पर्याप्त योगदान दे रहा है।
जर्मनी, ब्रिटेन, अमरीका और जापान टेमी चाय के प्रमुख खरीददार हैं। ग्रीन टी की बढ़ती मांग को देखते हुए इसमें विविधता लाने के कई प्रयास किए जा रहे है और इसकी कीमत बढ़ाने के लिए अधिक आकर्षक डिज़ाइन वाले पैकेट तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा सिक्किम की इस चाय के लिए विदेशी बाजार में सीधे खरीददार बनाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। चाय बोर्ड ने कनाडा और जापान को ऑर्गेनिक चाय के छोटे पैकेट सीधे निर्यात करना भी शुरू कर दिया है, जहां इसके लिए स्पर्धात्मक और आकर्षक दाम मिल रहे हैं।
चाय बागान के विस्तार के लिए उपयुक्त भूमि न मिलने से इसके क्षेत्र का विस्तार नहीं हो पा रहा है। लेकिन टेमी चाय बागान छोटे किसानों और उत्पादकों को बढ़िया पौध और अन्य तकनीकी जानकारी की सहायता उपलब्ध करा रहा है। बागान की नर्सरी में बढ़िया पौध तैयार की जाती है, जिसका वितरण राज्य के छोटे चाय बागानों की सहकारिताओं में किया जाता है।
हालांकि टेमी चाय चाय पारखियों की उम्मीदों पर खरी उतरी है, फिर भी चाय बागान की जलवायु संबंधी परिस्थितियों को देखते हुए यहां अधिक कीमत वाली और बढि़या चाय पत्तों वाली पैदावार की अभी भी गुंजायश है। (PIB) (पत्र सूचना कार्यालय विशेष लेख)सिक्किम की सुगंध-टेमी चाय
*फ्रीलांस पत्रकार
नोट: लेखक द्वारा इस लेख में व्यक्त किए गए विचार आवश्यक नहीं कि पत्र सूचना कार्यालय के विचारों से मेल खाते हों।
सिक्किम स्क्रीन में भी देखें
मीणा/राजगोपाल/लक्ष्मी-03
दुनिया भर के चाय प्रेमियों का दिल जीत लिया
टेमी चाय पर विशेष लेख * खगेन्द्रमणि प्रधान
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Courtesy Photo |
टेमी चाय बागान की स्थापना सिक्किम के पूर्व नरेश चोग्याल के शासनकाल में 1969 में हुई थी और बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन 1977 में शुरू हुआ। चाय बागान के रोजमर्रा के काम-काज को व्यवस्थित रखने के लिए 1974 में चाय बोर्ड की स्थापना की गई और बाद में यह सिक्किम सरकार के अंतर्गत उद्योग विभाग की सहायक कम्पनी बन गई। टेमी चाय से जहां एक ओर 4 हजार से अधिक श्रमिकों और 30 कर्मचारियों को सीधे रोजगार मिलता है, वहीं यह कम्पनी सरकारी क्षेत्र में रोजगार प्रदान करने वाली एक बड़ी कम्पनी बन गई है।
हल्की ढलान वाली यह भूमि तेंदोंग पर्वत श्रृंखला से शुरू होती है। 30-50 प्रतिशत ढलान वाली दुम्मट मिट्टी की यह भूमि चाय बागान के लिए बहुत ही उपयुक्त है और यहां साल में लगभग 100 टन चाय की पैदावार होती है। यदि बड़े चाय बागानों से मुकाबला किया जाए, तो यह पैदावार बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इसकी गुणवत्ता और सुगंध ने भारत और दुनिया भर के चाय प्रेमियों का दिल जीत लिया है।
टेमी चाय बागान में पैदा हुई चाय को ''टेमी चाय'' जैसे कई ब्रांड नामों से पैक किया जाता है, जो सबसे बढ़िया क्वालिटी की चाय होती है, जिसमें सुनहरी फूलों जैसी नारंगी झलक वाली बढि़या काली चाय होती है। इसके बाद दूसरी बढ़िया चाय का लोकप्रिय ब्रांड नाम है 'सिक्किम सोलजा' और उसके बाद 'मिस्टीक चाय' और 'कंचनजंगा' चाय का नाम आता है। इसे 'ऑर्थोडोक्स डस्ट टी' के नाम से बेचा जाता है। चाय की लगभग 70 प्रतिशत पैदावार अधिकृत दलाल के माध्यम से कोलकाता में सार्वजनिक नीलामी से बेची जाती है और बाकी की चाय के रिटेल (खुदरा बिक्री के लिए) पैकेट बनाए जाते हैं और स्थानीय बाजार में बेचे जाते हैं।
चाय बागान की भूमि की भौगोलिक स्थिति और चाय के पौधों को जैविक खाद से पोषित करने से इस चाय बागान में पैदा होने वाली चाय के पत्तों की कीमत और सुगंध और बढ़ जाती है।
टेमी चाय बागान ने स्विटज़रलैंड की बाजार नियंत्रण से संबंधित संस्था-आईएमओ के निर्देशों का पालन किया और पर्यवेक्षण की अवधि पूरी होने के बाद आईएमओ इंडिया ने, जो आईएमओ स्विटज़रलैंड का सदस्य समूह है, 2008 में टेमी चाय बागान को 100 प्रतिशत ऑर्गेनिक का प्रमाण पत्र दिया। इसके अलावा खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली के अंतर्गत भी यह आईएसओ-22,000 मानक के अनुसार एचएसीसीपी द्वारा भी परमाणीकृत चाय बागान है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बाजार पहुंचने वाला उत्पाद उत्तम गुणवत्ता वाला है। यह भी उल्लेखनीय है कि टेमी चाय बागान को लगातार दो वर्षों से भारतीय चाय बोर्ड ने भी अखिल भारतीय गुणवत्ता पुरस्कार से सम्मानित किया है।
चाय उत्पादन की पूरी प्रक्रिया को परंपरागत से ऑर्गेनिक में बदलने से न केवल इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ी है, बल्कि सिक्किम जाने वाले पर्यटक भी बड़ी संख्या में इसकी मांग करते हैं। चाय की ऑर्गेनिक खेती के लिए जैविक खाद और वर्मिन-कम्पोस्ट खाद, नीम और अरंण्डी की बट्टियों के रूप में कीटनाशक भी उपलब्ध होते हैं। चाय बागान के पास लगभग 100 एकड़ वन भूमि भी है, जिससे बड़ी मात्रा में चाय बागान के लिए जैविक खाद-पदार्थों की पूर्ति हो जाती है, जो इसे आवश्यक संसाधनों की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाता है।
खेती में रासायनिक खादों के इस्तेमाल को छोड़कर पैदावार के ऑर्गेनिक तरीके अपनाने से न केवल टेमी चाय बागान की उत्पादन लागत कम हुई है, बल्कि हानिकारक रसायनों से मुक्त ऑर्गेनिक पैदावार को पसंद करने वालों का एक बहुत बड़ा बाजार भी मिल गया है। टेमी चाय बोर्ड को अपनी सफलता पर गर्व है और वह सरकारी राजस्व में भी पर्याप्त योगदान दे रहा है।
जर्मनी, ब्रिटेन, अमरीका और जापान टेमी चाय के प्रमुख खरीददार हैं। ग्रीन टी की बढ़ती मांग को देखते हुए इसमें विविधता लाने के कई प्रयास किए जा रहे है और इसकी कीमत बढ़ाने के लिए अधिक आकर्षक डिज़ाइन वाले पैकेट तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा सिक्किम की इस चाय के लिए विदेशी बाजार में सीधे खरीददार बनाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। चाय बोर्ड ने कनाडा और जापान को ऑर्गेनिक चाय के छोटे पैकेट सीधे निर्यात करना भी शुरू कर दिया है, जहां इसके लिए स्पर्धात्मक और आकर्षक दाम मिल रहे हैं।
चाय बागान के विस्तार के लिए उपयुक्त भूमि न मिलने से इसके क्षेत्र का विस्तार नहीं हो पा रहा है। लेकिन टेमी चाय बागान छोटे किसानों और उत्पादकों को बढ़िया पौध और अन्य तकनीकी जानकारी की सहायता उपलब्ध करा रहा है। बागान की नर्सरी में बढ़िया पौध तैयार की जाती है, जिसका वितरण राज्य के छोटे चाय बागानों की सहकारिताओं में किया जाता है।
हालांकि टेमी चाय चाय पारखियों की उम्मीदों पर खरी उतरी है, फिर भी चाय बागान की जलवायु संबंधी परिस्थितियों को देखते हुए यहां अधिक कीमत वाली और बढि़या चाय पत्तों वाली पैदावार की अभी भी गुंजायश है। (PIB) (पत्र सूचना कार्यालय विशेष लेख)सिक्किम की सुगंध-टेमी चाय
*फ्रीलांस पत्रकार
नोट: लेखक द्वारा इस लेख में व्यक्त किए गए विचार आवश्यक नहीं कि पत्र सूचना कार्यालय के विचारों से मेल खाते हों।
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मीणा/राजगोपाल/लक्ष्मी-03

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एक बच्चा एक लैम्प:
04-जनवरी-2013 19:35 IST
स्कूल के दिनों को रोशन करने की एक परियोजना
विशेष लेख *मनीष देसाई**भावना गोखले
ग्रामीण परिदृश्य में बदलाव
पिछले दो दशकों के दौरान भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार के बदलाव आए हैं। वहां बेहतर सड़क संपर्क के साथ ही स्वास्थ्य सुविधाएं में महत्वपूर्ण सुधार, साक्षरता में सुधार और हर किसी के लिए मोबाइल फोन की सुविधा देखने को मिलती हैं। किंतु बिजली की आपूर्ति में उतना सुधार देखने को नहीं मिलता है। देश के अधिकांश राज्यों में 12 से लेकर 14 घंटे तक बिजली नहीं मिलना एक सामान्य बात है। जब इतने लम्बे समय तक बिजली न मिले तो इससे स्कूल जाने वाले बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होने वालों में शामिल हैं।
बिजली नहीं रहने के कारण छात्र या तो पढ़ाई नहीं कर पाते या फिर वे मिट्टी के तेल वाले लैम्प की रोशनी में पढ़ाई करते हैं। यह स्थिति अच्छी नहीं है। बिजली की आपूर्ति में कमी होने के कारण देश के 12 करोड़ से अधिक बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए मिट्टी के तेल वाले लैम्प पर निर्भर करते हैं। मिट्टी के तेल वाले लैम्प से उतनी रोशनी नहीं होती, जिससे बच्चे आराम से पढ़ाई कर सकें। उससे कार्बन मोनोक्साइड गैस भी उत्सर्जित होती है, जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। मिट्टी का तेल लीक होने की स्थिति में आग लगने का भी खतरा रहता है। अंतत: इसका परिणाम यह होता है कि छात्र अपनी पढ़ाई के साथ तालमेल रखने में असफल रहते हैं और जब वे उतीर्ण होते हैं, तो उनमें रोजगार के अवसरों तक पहुंचने के लिए आत्मविश्वास में कमी होती है और उनका कौशल स्तर भी कम होता है।
इसलिए बच्चों की पढ़ाई के दौरान रोशनी की उपलब्धता काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए हम इस समस्या का किस प्रकार समाधान करें ?
लेड अध्ययन लैम्प – सर्वोत्तम समाधान
सभी संभव समाधानों के बीच सौर ऊर्जा पर आधारित सौर लैम्प सबसे सस्ता और सबसे त्वरित समाधान के रूप में दिखाई पड़ता है।
उभरती हुई लेड रोशनी की प्रौद्योगिकी, जो एक सेमीकंडक्टर पर आधारित है, वह रोशनी की समस्या से जुड़ा एक बेहतरीन और सरल समाधान है। श्वेत लेड क्रांति के बल पर अब पढ़ाई के उद्देश्य के लिए एक उपयुक्त और सरल समाधान प्रस्तुत हो रहा है, जो एक चौथाई वाट से भी कम बिजली लेकर एक लैम्प की तुलना में 10 से लेकर 50 गुना अधिक रोशनी देता है।
हैदराबाद स्थित स्वैच्छिक संगठन – थ्राइव एनर्जी टेक्नोलॉजिज ने एक सौर अध्ययन लैम्प विकसित किया है, जो अध्ययन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पर्याप्त रोशनी प्रदान करता है। एक बार पूरा चार्ज करने पर इससे प्रतिदिन सात से आठ घंटे तक रोशनी मिलती है।
सौर लेड की विशेषताएं
*एक लैम्प द्वारा दो से तीन लक्स रोशनी की तुलना में यह लगभग 150 लक्स रोशनी प्रदान करता है।
*इसमें निकेल धातु वाली हाइड्राइड की बैट्री का इस्तेमाल होता है, जिसे 0.5 वाट वाले सोलर पैनल के जरिए अथवा ए.सी मोबाइल चार्जर या फिर सौर ऊर्जा आधारित चार्जिंग प्रणाली के जरिए चार्ज किया जा सकता है।
*इसमें विश्व के सर्वोत्तम लेड और एक उन्नत आईसी का इस्तेमाल होता है, जो कई वर्षों के इस्तेमाल के बाद भी निरंतर और बढि़या रोशनी देता है।
इस परियोजना से जुड़े आई.आई.टी बम्बई के रवि तेजवानी का कहना है – ‘सामान्यत: जो लैम्प तैयार किए जाते हैं, वे ग्रामीण पर्यावरण के लिए उतना उपयुक्त साबित नहीं होते। प्रौद्योगिकी और प्रक्रियाओं में नवीनता के माध्यम से ये लैम्प व्यापारिक तौर पर बाजार में उपलब्ध समकक्ष गुणवत्ता वाले लैम्पों की तुलना में 40 प्रतिशत तक किफायती हैं।’
खरगौन का प्रयोग : एक बच्चा एक लैम्प
‘एक बच्चा एक लैम्प’ नामक परियोजना दक्षिण-पश्चिम मध्य प्रदेश के खरगौन जिले में शुरू की गई। इसका उद्देश्य जिले के प्रत्येक 100 स्कूलों के सौ-सौ बच्चों - कुल मिलाकर 10,000 बच्चों, को सोलर लैम्प प्रदान करना है। झिरन्या और भगवानपुरा तहसील के 100 स्कूलों को भी इस योजना में शामिल किए जाने का प्रस्ताव है, जो सबसे अधिक पिछड़े क्षेत्रों में शामिल हैं। मुख्य योजना जिले में 1,00,000 लैम्पों का वितरण करना है।
मध्य प्रदेश के खरगौन जिले को एक शीर्ष जिले के रूप में चुना गया है, क्योंकि 84 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गांव में निवास करती है और इसमें से 40 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी की है। रोशनी के लिए 40 प्रतिशत से अधिक लोग मिट्टी के तेल का इस्तेमाल करते हैं। मध्य प्रदेश में प्रति व्यक्ति बिजली का उपभोग मात्र लगभग 330 यूनिट प्रतिवर्ष है, जबकि भारत के लिए यह 750 यूनिट है और विश्वभर के लिए यह औसत 2000 यूनिट है। खरगौन जिले में स्थित एजुकेशन पार्क की ओर से इस परियोजना को कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसमें थ्राइव एनर्जी टेक्नोलॉजिज, हैदराबाद सहयोग कर रहा है। अब तक 4500 से भी अधिक सौर लेड लैम्प वितरित किए गए हैं। इसका उद्देश्य सिर्फ वितरण करना है।
परियोजना की कार्य प्रणाली
छात्रों के लिए सौर लैम्प की रियायती लागत केवल 200 रूपये है, हालांकि बाजार में इसकी कीमत 580 रूपये है। श्री तेजवानी का कहना है कि इन सौर लैम्पों को स्कूल के एक ही स्थान पर चार्ज किया जाएगा, जबकि छात्रों की पढ़ाई स्कूल के टैरेस में स्थापित एक साझा सौर पीवी मॉड्यूल के जरिए कराई जाएगी। दिन में इन लैम्पों को चार्ज किया जाएगा और 4 से 5 घंटे के चार्ज होने के बाद ये 2-3 दिनों तक रात के दौरान 2-3 घंटे तक रोशन प्रदान करने में सक्षम होंगे। जिन छात्रों के पास ये लैम्प होंगे, वे इसे घर ले जाकर रात में अपनी पढ़ाई करेंगे। जरूरत होने पर वे स्कूल ले जाकर इसे फिर से चार्ज कर सकेंगे।
परियोजना के लाभ एक बार सफलतापूर्वक कार्यान्वित होने पर समाज के लिए यह परियोजना प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाभकारी होगी।
*10,000 छात्रों को सौर लैम्प मिल जाने पर इसके परिणामस्वरूप अध्ययन के लिए प्रतिवर्ष लगभग 30,00,000 अतिरिक्त घंटे उपलब्ध होंगे।
*इससे माता-पिता, शिक्षकों और प्रशासकों के बीच जागरूकता आएगी और लोग अपना-अपना सौर लैम्प प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। घर में इस्तेमाल के लिए एक अन्य घरेलू लैम्प का मॉडल भी उपलब्ध है।*इससे मिट्टी के तेल की मांग में कमी होगी, जिसकी आपूर्ति पहले से ही कम हो रही है और इसके बदले देश के लिए बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
*इससे मिट्टी के तेल वाले लैम्पों के इस्तेमाल से बच्चों को होने वाले स्वास्थ्य के खतरे में भी कमी आएगी।
*इस परियोजना के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 15,00,000 टन कार्बनडाईऑक्साइड के उत्सर्जन में भी कमी आएगी।
इस परियोजना का उद्देश्य मध्य प्रदेश के सामाजिक जीवन पर होने वाले प्रभाव को दर्शाना और सरकार को रोशनी के लिए सौर लैम्पों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोशनी के लिए सबसे अधिक किफायती समाधान है।सौर ऊर्जा पर भारत का जोर सरकार ने सौर ऊर्जा के महत्व को स्वीकार किया है और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन नामक कार्यक्रम शुरू किया है। इस मिशन का तात्कालिक लक्ष्य देश में केंद्रित और विकेंद्रित - दोनों स्तरों पर सौर प्रौद्योगिकी को पहुंचाने के लिए एक वातावरण तैयार करने पर जोर देना है। इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आई.आई.टी. बम्बई में राष्ट्रीय फोटोवोल्टाइक अनुसंधान और शिक्षा केंद्र (एनसीपीआरई) स्थापित किया गया है, ताकि आधारभूत और उन्नत अनुसंधान संबंधी गतिविधियां संचालित हो सके। एनसीपीआरई का उद्देश्य सौर पीवी को एक किफायती और प्रासंगिक प्रौद्योगिकी विकल्प बनाना है। (PIB) (पसूका विशेष लेख)
***
*निदेशक (मीडिया), पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई
**मीडिया और संचार अधिकारी (मीडिया), पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई
शिक्षा जगत में भी देखें
स्कूल के दिनों को रोशन करने की एक परियोजना
विशेष लेख *मनीष देसाई**भावना गोखले
ग्रामीण परिदृश्य में बदलाव

बिजली नहीं रहने के कारण छात्र या तो पढ़ाई नहीं कर पाते या फिर वे मिट्टी के तेल वाले लैम्प की रोशनी में पढ़ाई करते हैं। यह स्थिति अच्छी नहीं है। बिजली की आपूर्ति में कमी होने के कारण देश के 12 करोड़ से अधिक बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए मिट्टी के तेल वाले लैम्प पर निर्भर करते हैं। मिट्टी के तेल वाले लैम्प से उतनी रोशनी नहीं होती, जिससे बच्चे आराम से पढ़ाई कर सकें। उससे कार्बन मोनोक्साइड गैस भी उत्सर्जित होती है, जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। मिट्टी का तेल लीक होने की स्थिति में आग लगने का भी खतरा रहता है। अंतत: इसका परिणाम यह होता है कि छात्र अपनी पढ़ाई के साथ तालमेल रखने में असफल रहते हैं और जब वे उतीर्ण होते हैं, तो उनमें रोजगार के अवसरों तक पहुंचने के लिए आत्मविश्वास में कमी होती है और उनका कौशल स्तर भी कम होता है।
इसलिए बच्चों की पढ़ाई के दौरान रोशनी की उपलब्धता काफी महत्वपूर्ण है। इसलिए हम इस समस्या का किस प्रकार समाधान करें ?
लेड अध्ययन लैम्प – सर्वोत्तम समाधान
सभी संभव समाधानों के बीच सौर ऊर्जा पर आधारित सौर लैम्प सबसे सस्ता और सबसे त्वरित समाधान के रूप में दिखाई पड़ता है।
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Courtesy Photo |
हैदराबाद स्थित स्वैच्छिक संगठन – थ्राइव एनर्जी टेक्नोलॉजिज ने एक सौर अध्ययन लैम्प विकसित किया है, जो अध्ययन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए पर्याप्त रोशनी प्रदान करता है। एक बार पूरा चार्ज करने पर इससे प्रतिदिन सात से आठ घंटे तक रोशनी मिलती है।
सौर लेड की विशेषताएं
*एक लैम्प द्वारा दो से तीन लक्स रोशनी की तुलना में यह लगभग 150 लक्स रोशनी प्रदान करता है।
*इसमें निकेल धातु वाली हाइड्राइड की बैट्री का इस्तेमाल होता है, जिसे 0.5 वाट वाले सोलर पैनल के जरिए अथवा ए.सी मोबाइल चार्जर या फिर सौर ऊर्जा आधारित चार्जिंग प्रणाली के जरिए चार्ज किया जा सकता है।
*इसमें विश्व के सर्वोत्तम लेड और एक उन्नत आईसी का इस्तेमाल होता है, जो कई वर्षों के इस्तेमाल के बाद भी निरंतर और बढि़या रोशनी देता है।
इस परियोजना से जुड़े आई.आई.टी बम्बई के रवि तेजवानी का कहना है – ‘सामान्यत: जो लैम्प तैयार किए जाते हैं, वे ग्रामीण पर्यावरण के लिए उतना उपयुक्त साबित नहीं होते। प्रौद्योगिकी और प्रक्रियाओं में नवीनता के माध्यम से ये लैम्प व्यापारिक तौर पर बाजार में उपलब्ध समकक्ष गुणवत्ता वाले लैम्पों की तुलना में 40 प्रतिशत तक किफायती हैं।’
खरगौन का प्रयोग : एक बच्चा एक लैम्प
‘एक बच्चा एक लैम्प’ नामक परियोजना दक्षिण-पश्चिम मध्य प्रदेश के खरगौन जिले में शुरू की गई। इसका उद्देश्य जिले के प्रत्येक 100 स्कूलों के सौ-सौ बच्चों - कुल मिलाकर 10,000 बच्चों, को सोलर लैम्प प्रदान करना है। झिरन्या और भगवानपुरा तहसील के 100 स्कूलों को भी इस योजना में शामिल किए जाने का प्रस्ताव है, जो सबसे अधिक पिछड़े क्षेत्रों में शामिल हैं। मुख्य योजना जिले में 1,00,000 लैम्पों का वितरण करना है।
मध्य प्रदेश के खरगौन जिले को एक शीर्ष जिले के रूप में चुना गया है, क्योंकि 84 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या गांव में निवास करती है और इसमें से 40 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी की है। रोशनी के लिए 40 प्रतिशत से अधिक लोग मिट्टी के तेल का इस्तेमाल करते हैं। मध्य प्रदेश में प्रति व्यक्ति बिजली का उपभोग मात्र लगभग 330 यूनिट प्रतिवर्ष है, जबकि भारत के लिए यह 750 यूनिट है और विश्वभर के लिए यह औसत 2000 यूनिट है। खरगौन जिले में स्थित एजुकेशन पार्क की ओर से इस परियोजना को कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसमें थ्राइव एनर्जी टेक्नोलॉजिज, हैदराबाद सहयोग कर रहा है। अब तक 4500 से भी अधिक सौर लेड लैम्प वितरित किए गए हैं। इसका उद्देश्य सिर्फ वितरण करना है।
परियोजना की कार्य प्रणाली
छात्रों के लिए सौर लैम्प की रियायती लागत केवल 200 रूपये है, हालांकि बाजार में इसकी कीमत 580 रूपये है। श्री तेजवानी का कहना है कि इन सौर लैम्पों को स्कूल के एक ही स्थान पर चार्ज किया जाएगा, जबकि छात्रों की पढ़ाई स्कूल के टैरेस में स्थापित एक साझा सौर पीवी मॉड्यूल के जरिए कराई जाएगी। दिन में इन लैम्पों को चार्ज किया जाएगा और 4 से 5 घंटे के चार्ज होने के बाद ये 2-3 दिनों तक रात के दौरान 2-3 घंटे तक रोशन प्रदान करने में सक्षम होंगे। जिन छात्रों के पास ये लैम्प होंगे, वे इसे घर ले जाकर रात में अपनी पढ़ाई करेंगे। जरूरत होने पर वे स्कूल ले जाकर इसे फिर से चार्ज कर सकेंगे।
परियोजना के लाभ एक बार सफलतापूर्वक कार्यान्वित होने पर समाज के लिए यह परियोजना प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाभकारी होगी।
*10,000 छात्रों को सौर लैम्प मिल जाने पर इसके परिणामस्वरूप अध्ययन के लिए प्रतिवर्ष लगभग 30,00,000 अतिरिक्त घंटे उपलब्ध होंगे।
*इससे माता-पिता, शिक्षकों और प्रशासकों के बीच जागरूकता आएगी और लोग अपना-अपना सौर लैम्प प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित होंगे। घर में इस्तेमाल के लिए एक अन्य घरेलू लैम्प का मॉडल भी उपलब्ध है।*इससे मिट्टी के तेल की मांग में कमी होगी, जिसकी आपूर्ति पहले से ही कम हो रही है और इसके बदले देश के लिए बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
*इससे मिट्टी के तेल वाले लैम्पों के इस्तेमाल से बच्चों को होने वाले स्वास्थ्य के खतरे में भी कमी आएगी।
*इस परियोजना के क्रियान्वयन के परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 15,00,000 टन कार्बनडाईऑक्साइड के उत्सर्जन में भी कमी आएगी।
इस परियोजना का उद्देश्य मध्य प्रदेश के सामाजिक जीवन पर होने वाले प्रभाव को दर्शाना और सरकार को रोशनी के लिए सौर लैम्पों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोशनी के लिए सबसे अधिक किफायती समाधान है।सौर ऊर्जा पर भारत का जोर सरकार ने सौर ऊर्जा के महत्व को स्वीकार किया है और जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन नामक कार्यक्रम शुरू किया है। इस मिशन का तात्कालिक लक्ष्य देश में केंद्रित और विकेंद्रित - दोनों स्तरों पर सौर प्रौद्योगिकी को पहुंचाने के लिए एक वातावरण तैयार करने पर जोर देना है। इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आई.आई.टी. बम्बई में राष्ट्रीय फोटोवोल्टाइक अनुसंधान और शिक्षा केंद्र (एनसीपीआरई) स्थापित किया गया है, ताकि आधारभूत और उन्नत अनुसंधान संबंधी गतिविधियां संचालित हो सके। एनसीपीआरई का उद्देश्य सौर पीवी को एक किफायती और प्रासंगिक प्रौद्योगिकी विकल्प बनाना है। (PIB) (पसूका विशेष लेख)
***
*निदेशक (मीडिया), पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई
**मीडिया और संचार अधिकारी (मीडिया), पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई
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Friday, January 4, 2013
कोलकाता में भारतीय विज्ञान कांग्रेस
04-जनवरी-2013 16:33 IST
डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा बाल विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने आज कोलकाता में बाल विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन किया। इस अवसर पर डॉ. कलाम ने कहा कि भारतीय विज्ञान कांग्रेस महान वैज्ञानिकों एस.एन. बोस, जे.सी. बोस, मेघनाथ साहा, सॅर सी.वी. रमण, श्रीनिवास रामानुजम, होमी भाभा और विक्रम साराभाई तथा अनेक भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर आधारित है। उन्होंने विचार और कार्यों में श्रेष्ठता विषय पर विचार व्यक्त किए। डॉ. कलाम ने इस अवसर पर उपस्थित उभरते हुए युवा वैज्ञानिकों से कहा कि वे विज्ञान को जीवन में विचारों और कार्य की श्रेष्ठता के रूप में अपनाएं और उसके लिए अपनी सर्वाधिक क्षमता के साथ काम करें। उन्होंने कहा कि मैं दो महान आवश्यकताओं के महत्व पर ध्यान केन्द्रित करना चाहूंगा- विज्ञान का महत्व और वैज्ञानिक उदारता। उन्होंने ऊर्जा संरक्षण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण केनिर्माण के बारे में भी विचार व्यक्त किए।
डॉ. कलाम ने कहा कि इतिहास ने सिद्ध कर दिया है कि जिन्होंने असंभव की परिकल्पना करने का साहस किया, वे ही सभी मानवीय सीमाओं को भंग कर पाए। मानव प्रयास के प्रत्येक क्षेत्र में, चाहे वह विज्ञान हो, औषधि हो, खेल हो, कला हो अथवा प्रौद्योगिकी, जिन्होंने असंभव की परिकल्पना की और उपलब्धियां प्राप्त की, वे ही लोग हमारे इतिहास का अंग बन गए हैं। अपनी परिकल्पना की सीमाओं को भंग कर ही वे विश्व में परिवर्तन ला पाये हैं।
पूर्व राष्ट्रपति ने सन् 2012 में आयोजित राज्य बाल विज्ञान कांग्रेस, बाराबंकी में आयोजित उत्तर प्रदेश राज्य विज्ञान कांग्रेस, कोयम्बत्तूर, तमिलनाडू में हुए दक्षिणी क्षेत्रीय विज्ञान कांग्रेस, दरभंगा (बिहार) में हुए मेगा विज्ञान मेले और वाराणसी में हुए राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में छात्रों के साथ भी विचारों का आदान-प्रदान किया। डॉक्टर कलाम ने गॉड पार्टिकल के अविष्कार के बारे में सरन प्रयोगशाला में दो दलों की हाल की घटना की भी चर्चा की। गॉड पार्टिकल महान वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम पर हिग्स बोसन नामक प्राथमिक अणु के लिए प्रसिद्ध नाम है। उन्होंने कहा कि सन् 2011 में इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है और संभव है कि अगले कुछ वर्षों में हम गॉड पार्टिकल के बारे में बेहतर तरीके से समझ पाएं। साथ ही, इस रहस्य का भी उद्घाटन कर पाएंगे कि कैसे पदार्थ विद्यमान है और कैसे यह ब्रह्मांड अस्तित्व में आया। डॉ0 कलाम ने विश्वास व्यक्त किया कि आप में से कुछ युवा, भावी वैज्ञानिकों के रूप में अपनी वैज्ञानिक खोज के लिए सैद्धान्तिक भौतिकी जैसे विषयों को अपनाएं और अणु भौतिकी के इस अद्वितीय क्षेत्र में अधिक खोज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा भूमि विज्ञान मंत्री डॉ0 एस. जयपाल रेड्डी ने समारोह की अध्यक्षता की।
इस अवसर पर डॉ0 कलाम से इन्फोसिस ट्रेवल पुरस्कार प्राप्तकर्ता कुछ युवा छात्र भी उपस्थित थे। इनमें मुख्य रूप से तुनीर डे, कपिल, फयाम शेख, रीमा कुमार, बबीता, कुसुमित गॉडकर, अनुराधा दासगुप्ता, एन्जेल दिवेश मिश्रा, बी. मधु और पुलकित गॉडरॉव शामिल हैं।(PIB)
**** कोलकाता में भारतीय विज्ञान कांग्रेस
मीणा/क्वात्रा/यशोदा/तारा – 44
डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा बाल विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने आज कोलकाता में बाल विज्ञान कांग्रेस का उद्घाटन किया। इस अवसर पर डॉ. कलाम ने कहा कि भारतीय विज्ञान कांग्रेस महान वैज्ञानिकों एस.एन. बोस, जे.सी. बोस, मेघनाथ साहा, सॅर सी.वी. रमण, श्रीनिवास रामानुजम, होमी भाभा और विक्रम साराभाई तथा अनेक भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धियों पर आधारित है। उन्होंने विचार और कार्यों में श्रेष्ठता विषय पर विचार व्यक्त किए। डॉ. कलाम ने इस अवसर पर उपस्थित उभरते हुए युवा वैज्ञानिकों से कहा कि वे विज्ञान को जीवन में विचारों और कार्य की श्रेष्ठता के रूप में अपनाएं और उसके लिए अपनी सर्वाधिक क्षमता के साथ काम करें। उन्होंने कहा कि मैं दो महान आवश्यकताओं के महत्व पर ध्यान केन्द्रित करना चाहूंगा- विज्ञान का महत्व और वैज्ञानिक उदारता। उन्होंने ऊर्जा संरक्षण और वैज्ञानिक दृष्टिकोण केनिर्माण के बारे में भी विचार व्यक्त किए।
डॉ. कलाम ने कहा कि इतिहास ने सिद्ध कर दिया है कि जिन्होंने असंभव की परिकल्पना करने का साहस किया, वे ही सभी मानवीय सीमाओं को भंग कर पाए। मानव प्रयास के प्रत्येक क्षेत्र में, चाहे वह विज्ञान हो, औषधि हो, खेल हो, कला हो अथवा प्रौद्योगिकी, जिन्होंने असंभव की परिकल्पना की और उपलब्धियां प्राप्त की, वे ही लोग हमारे इतिहास का अंग बन गए हैं। अपनी परिकल्पना की सीमाओं को भंग कर ही वे विश्व में परिवर्तन ला पाये हैं।
पूर्व राष्ट्रपति ने सन् 2012 में आयोजित राज्य बाल विज्ञान कांग्रेस, बाराबंकी में आयोजित उत्तर प्रदेश राज्य विज्ञान कांग्रेस, कोयम्बत्तूर, तमिलनाडू में हुए दक्षिणी क्षेत्रीय विज्ञान कांग्रेस, दरभंगा (बिहार) में हुए मेगा विज्ञान मेले और वाराणसी में हुए राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में छात्रों के साथ भी विचारों का आदान-प्रदान किया। डॉक्टर कलाम ने गॉड पार्टिकल के अविष्कार के बारे में सरन प्रयोगशाला में दो दलों की हाल की घटना की भी चर्चा की। गॉड पार्टिकल महान वैज्ञानिक पीटर हिग्स के नाम पर हिग्स बोसन नामक प्राथमिक अणु के लिए प्रसिद्ध नाम है। उन्होंने कहा कि सन् 2011 में इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है और संभव है कि अगले कुछ वर्षों में हम गॉड पार्टिकल के बारे में बेहतर तरीके से समझ पाएं। साथ ही, इस रहस्य का भी उद्घाटन कर पाएंगे कि कैसे पदार्थ विद्यमान है और कैसे यह ब्रह्मांड अस्तित्व में आया। डॉ0 कलाम ने विश्वास व्यक्त किया कि आप में से कुछ युवा, भावी वैज्ञानिकों के रूप में अपनी वैज्ञानिक खोज के लिए सैद्धान्तिक भौतिकी जैसे विषयों को अपनाएं और अणु भौतिकी के इस अद्वितीय क्षेत्र में अधिक खोज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा भूमि विज्ञान मंत्री डॉ0 एस. जयपाल रेड्डी ने समारोह की अध्यक्षता की।
इस अवसर पर डॉ0 कलाम से इन्फोसिस ट्रेवल पुरस्कार प्राप्तकर्ता कुछ युवा छात्र भी उपस्थित थे। इनमें मुख्य रूप से तुनीर डे, कपिल, फयाम शेख, रीमा कुमार, बबीता, कुसुमित गॉडकर, अनुराधा दासगुप्ता, एन्जेल दिवेश मिश्रा, बी. मधु और पुलकित गॉडरॉव शामिल हैं।(PIB)
**** कोलकाता में भारतीय विज्ञान कांग्रेस
मीणा/क्वात्रा/यशोदा/तारा – 44
Thursday, January 3, 2013
वियतनाम के साथ संबंधों को मजबूत बनाने पर जोर
03-जनवरी-2013 19:17 IST
'पूरब की ओर देखो नीति' का एक स्तंभ है वियतनाम
हम अपनी रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए तैयार-पर्यटन मंत्री के. चिरंजीवी
केंद्रीय पर्यटन मंत्री श्री के. चिरंजीवी ने कहा कि वियतनाम भारत की 'पूरब की ओर देखो नीति' का एक स्तंभ है और भारत वियतनाम के साथ द्विपक्षीय और आसियान कार्यक्रम- दोनों तरफ से संबंधों को मजबूत बनाने के काम को उच्च प्राथमिकता देता है। हनोई स्थित भारतीय दूतावास की ओर से व्यापार और निवेश विषय पर आयोजित एक विचारगोष्ठी को संबोधित करते हुए मंत्री महोदय ने कहा कि हम अपनी रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है, जो विशेषकर आर्थिक, वाणिज्यिक, रक्षा और सुरक्षा, वैज्ञानिक और तकनीकी तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों से जुड़ हैं। इस आयोजन में वियतनाम का उद्योग और व्यापार मंत्रालय तथा वियतनाम चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री सहयोगी था। मंत्री महोदय ने कहा कि वर्ष 2015 तक आसियान-भारत व्यापार के लिए 100 अरब अमरिकी डॉलर का लक्ष्य रखा गया है।
इस विचारगोष्ठी में पीपुल्स कमिटी ऑफ डानांग के वाइस चैयरमैन श्री फुंग टान वीएट, वियतनाम चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री के वाइस चैयरमैन श्री हुवांग वॉन डुंग, वियतनाम नेशनल टूरिज्म के चैयरमैन श्री नगुऐन वॉन ट्वान और लगभग 150 वियतनामी कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। (PIB) वियतनाम के साथ संबंधों को मजबूत बनाने पर जोर
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वि.कासोटिया/सुधीर/सुजीत-37
'पूरब की ओर देखो नीति' का एक स्तंभ है वियतनाम
हम अपनी रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए तैयार-पर्यटन मंत्री के. चिरंजीवी
केंद्रीय पर्यटन मंत्री श्री के. चिरंजीवी ने कहा कि वियतनाम भारत की 'पूरब की ओर देखो नीति' का एक स्तंभ है और भारत वियतनाम के साथ द्विपक्षीय और आसियान कार्यक्रम- दोनों तरफ से संबंधों को मजबूत बनाने के काम को उच्च प्राथमिकता देता है। हनोई स्थित भारतीय दूतावास की ओर से व्यापार और निवेश विषय पर आयोजित एक विचारगोष्ठी को संबोधित करते हुए मंत्री महोदय ने कहा कि हम अपनी रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है, जो विशेषकर आर्थिक, वाणिज्यिक, रक्षा और सुरक्षा, वैज्ञानिक और तकनीकी तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों से जुड़ हैं। इस आयोजन में वियतनाम का उद्योग और व्यापार मंत्रालय तथा वियतनाम चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री सहयोगी था। मंत्री महोदय ने कहा कि वर्ष 2015 तक आसियान-भारत व्यापार के लिए 100 अरब अमरिकी डॉलर का लक्ष्य रखा गया है।
इस विचारगोष्ठी में पीपुल्स कमिटी ऑफ डानांग के वाइस चैयरमैन श्री फुंग टान वीएट, वियतनाम चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री के वाइस चैयरमैन श्री हुवांग वॉन डुंग, वियतनाम नेशनल टूरिज्म के चैयरमैन श्री नगुऐन वॉन ट्वान और लगभग 150 वियतनामी कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। (PIB) वियतनाम के साथ संबंधों को मजबूत बनाने पर जोर
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