Friday, March 12, 2021

जन-आवाज़ बनी शायरा अनामिका को साहित्य अकादमी पुरस्कार

 नारीवाद को बुलंद आवाज़ में कहती है अनामिका 


नई दिल्ली//लुधियाना12 मार्च 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क):: 
इस बार साहित्य के आम पाठक भी खुश हैं और कलमकार भी। आखिर साहित्य अकादमी पुरस्कार 2020 की घोषणा भी हो ही गयी है। हिंदी काव्य की बुलंद आवाज़ कवयित्री अनामिका को उनके कविता संग्रह ‘टोकरी में दिगंत, थेरी गाथा: 2014’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार 2020 दिया गया है। इस कविता संग्रह में अनामिका ने बुद्ध की समकालीन महिला भिक्षुओं पर लंबी कविता लिखी है। महिला भिक्षुओं  के दर्द और अहसास को पहचान  नहीं था। इस संग्रह में उन भिक्षुणियों के संघर्ष का चित्रण है। अनामिका वही शायरा है जो तीन दश्कों से भी अधिक समय से निरंतर लिखती आ रही है।  उसकी शायरी में उस गहरे दुर्ख़ और दर्द की अनुभूति को अभिव्यक्ति दी गई होती है जो दुःख दर्द सभी को तो नज़र भी नहीं आता। स्त्री संवेदना पर उसकी कलम अक्सर कमाल करती है।

प्रेम के लिए फांसी (ऑन ऑनर किलिंग) / अनामिका


मीरारानी तुम तो फिर भी खुशकिस्मत थीं,

तुम्हे जहर का प्याला जिसने भी भेजा,

वह भाई तुम्हारा नहीं था,


भाई भी भेज रहे हैं इन दिनों

जहर के प्याले!


कान्हा जी जहर से बचा भी लें,

कहर से बचायेंगे कैसे!


दिल टूटने की दवा

मियाँ लुकमान अली के पास भी तो नहीं होती!


भाई ने जो भेजा होता

प्याला जहर का,

तुम भी मीराबाई डंके की चोट पर

हंसकर कैसे ज़ाहिर करतीं कि

साथ तुम्हारे हुआ क्या!


"राणा जी ने भेजा विष का प्याला"

कह पाना फिर भी आसान था,


"भैया ने भेजा"- ये कहते हुए

जीभ कटती!


कि याद आते वे झूले जो उसने झुलाए थे

बचपन में,

स्मृतियाँ कशमकश मचातीं;

ठगे से खड़े रहते

राह रोककर


सामा-चकवा और बजरी-गोधन के सब गीत :

"राजा भैया चल ले अहेरिया,

रानी बहिनी देली आसीस हो न,

भैया के सिर सोहे पगड़ी,

भौजी के सिर सेंदुर हो न..."


हंसकर तुम यही सोचतीं-

भैया को इस बार

मेरा ही आखेट करने की सूझी?

स्मृतियाँ उसके लिए क्या नहीं थीं?


स्नेह, सम्पदा, धीरज-सहिष्णुता

क्यों मेरे ही हिस्से आई,


क्यों बाबा ने

ये उसके नाम नहीं लिखीं?

                 --~अनामिका 

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