Friday, March 5, 2021

कैफ़ी आज़मी साहिब का एक शायराना अंदाज़

   जो गवाही है कि वह औरत को बराबरी का दर्जा देते थे  


कामरेड का शाब्दिक अर्थ होता है साथी। बहुत से लोग अपने सहयोगियों को कामरेड कहते हैं और साथी भी। वाम विचारधारा से सबंधित जालंधर से प्रकाशित पंजाबी के अख़बार रोज़ाना नवां ज़माना में काम करते करते हम सभी एक दुसरे को साथी ही कहा करते। साथी कहने की आदत इतनी पक गई कि घर आ कर हम लोग अपने भाई, पिता, चाचा, ताया और पड़ोसी को भी साथी ही कहा करते। लेकिन कैफ़ी आज़मी साहिब तो इससे भी आगे तक गए। उन्होने पत्नी अर्थात शौकत आज़मी को हमेशां हर कदम अपने सबसे करीबी साथी के तौर पर ही देखा। समझा जाता है कि औरत नाम की यह बहुचर्चित नज़्म उठ मेरी जान-मेरे साथ ही चलना है तुझे का खुला एलान है। इसे बहुत ही खूबसूरती से संभाला है बाबा आज़मी साहिब ने जिसके लिए हम सभी को उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। 
सारी दुनिया एक तरफ और यह एलान एक तरफ। आज जबकि फिर से औरतों को घर के रसोईघर और बेडरुम तक सीमित करने की निंदनीय साज़िशें रची जा रही और इस तरह के पाठ पढ़ाये जा रहे हैं तो कैफ़ी साहिब के इस हिम्मतवर एलान को हर दिल तक लेजाना ज़रूरी भी है। इसी जज़्बात से निकली। करीब 78 बरस पहले महिला सशक्तिकरण की इस हकीकत पर आधारित आवाज़ को बुलंद किया था कैफ़ी साहिब ने। तकनीकी विकास और यूटयूब की मेहरबानी है कि उनकी इस नज़्म को उन्हीं की आवाज़ में आज भी सुना जा सकता है। आप इस नज़्म को यहां पढ़ भी सकते हैं। 

    औरत//कैफ़ी आज़मी  

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज

हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज

आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज

हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

 

तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार

तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार

तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार

ता-ब-कै गिर्द तेरे वहम ओ तअय्युन का हिसार

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है

तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है

पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है

बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है

ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं

नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं

उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं

जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए...

गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए

फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए

क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए

ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं

तुझ में शोले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल

ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल

नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल

क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल

राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़

तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़

तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़

तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं

तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं

हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं

मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं

लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

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जश्ने  रेख्ता ने शबाना आज़मी साहिबा के अंदाज़ में भी इसी खूबसूरत नज़्म को संभाला है:


यह नज़्म इतनी खूबसूरत है कि बार बार सुनने के मन करता है। इसे जानेमाने लोगों ने अपने  अंदाज़ में गाया भी है। इसके शब्द खुद ही धुन और अंदाज़ को बनाते चले जाते हैं। महिला सशक्तिकरण का एक लम्बा मंत्र जैसा गीत सकते इसे। इसे माल्विका हरिओम ने बहुत  अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। माल्विका हरिओम साहिब कामरेड बनने का ज़िक्र भी  अंदाज़ में करती हैं। इसे भी सुन कर देखिये।

अगर आप ने भी इसे गाया है तो ज़रा  हमें भी ज़रूर भेजिए।  गली  पहुंचाइये।  इसे घर घर तक पहुँचाईये। आज महिल सशक्तिकरण के लिए  ज़रूरी है। 

प्रस्तुति और संकलन:मीडिया लिंक रविंद्र 

medialink32@gmail.com

WhatsApp:+919915322407

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