अमृता प्रीतम का कहना भी इस संबंध में ध्यान से सुनिए
महफ़िल से उठ जानेवालों,
तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम
तुम आबाद घरों के वासी,
मैं आवारा और बदनाम
मेरे साथी, मेरे साथी,
मेरे साथी खाली जाम......
बाद में यही गीत फिल्म दूज का चांद में भी शामिल हुआ।
इसका संगीत तैयार किया था रौशन साहिब ने और इसे आवाज़ दी थी मोहम्मद रफी साहिब ने। इस गीत में भी उसी अकेलेपन की तरफ इशारा किया गया है जो मोहब्बत करने वालों को ही मिला करती है।
अमृता प्रीतम की रचनाओं में भी इसी अकेलेपन का अहसास होता है। जब उसे अधिकतर लोग गालियों जैसी भाषा में ही सम्बोधन और याद किया करते थे उस दौर में जानेमाने कहानीकार कुलवंत सिंह विर्क की तरफ से स्नेह और सम्मान में मिली सौगात ज़ख्मों पर मरहम जैसी थी। अमृता जी ने कहा भी है शायद कहीं कि लोग मुझे जी भर कर गालियां दे क्र भी रुला नहीं पाते लेकिन विर्क मुझे अपने अच्छेपन से रुला देते हैं। उनदिनों पंजाब के बुद्धिजीवी, पत्रकार और खास कर एक स्थापित अख़बार अमृता के पीछे पड़े थे। उन दिनों विर्क की सौगात का मिलना ख़ास बात। थी। वोह भजन जैसा बहुत ही लोकप्रिय गीत है न-जैसे सूरज की गर्मी में तपते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया! बस उसी तरह के अहसास की अनुभूति कराती हुई यह सौगात अमृता प्रीतम को हमेशां याद रहीं। उन्होंने अपने अंदाज़ से ही जीवन जिया। लेखन में उनके अनुशासन की बातें तो अमिया कुंवर जी ने भी बहुत ही नज़दीक हो कर देखीं।
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लेकिन इस के साथ ही एक हकीकत यह भी है कि अमृता प्रीतम को पढ़ने के बाद दिल और दिमाग में जज़्बातों के तूफ़ान न उठें यह हो ही नहीं सकता। अमृता प्रीतम को पढ़ने के बाद शायद आपको पहली बार खुद से प्रेम होने का आभास हो। पहली बार शायद आपको लगे कि इस सिस्टम और समाज को बदलना ज़रूरी है। हो सकता है पहली बार आप को आपके ही अंतर्मन में बगावत की सुर सुनाई दे। हो सकता है पहली बार आपको लगे कि आप खुद के रूबरू हो रहे हैं। उस रुबरू के दौरान खुद ही खुद से कई तरह के सवाल भी कर सकते हैं। ज़्यादातर यह सवाल मोहब्बत को ले कर होते या बंदिशों को लेकर होते। धर्मकर्म और लाईफस्टाईल के मुद्दे भी उठते हैं। बहुत से लोगों को अमृता प्रीतम का कटे हुए बालों वाला स्टाईल उम्र भर अखरता रहा। कइयों को अमृता जी का सिगरेट और शराब पीना भी बेहद बुरा लगा। जून-1984 और नवंबर-1984 के बाद तो पंजाब के बहुत से लोगों को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ अमृता प्रीतम जी की पुराणी दोस्ती भी खटकती रही। उन पर कविताएं भी लिखीं गईं कि बुल्ले शाह को आवाज़ लगा कर पुकारने वाली अब दिल्ली में इतना कुछः हुआ देख कर भी चुप्प कयूं रही? शायद ये विवाद अब हमेशां बने क्यूंकि शख्सियत ही दरम्यान नहीं रही।
मोहब्बत पर एक टवीट सामने आया है। टविटर पर अमृता के नाम से ही उसके कुछ चाहने वालों ने शायद एक प्रोफाईल बना रखा है। इस टवीट में दर्ज है:इंसान अपने अकेलेपन से निजात पाने के लिए मुहब्बत करता है, और मुहब्बत इस बात की तस्दीक करती है कि उसका अकेलापन अब ताउम्र कायम रहेगा। इन शब्दों में छिपी हकीकत और गहराई बहुत ही सूक्ष्मता से दिल में उतरती है और उसके बाद दिमाग को चढ़ जाती है। उस वक़्त मोहब्बत के इतने पहलू दिमाग में आने लगते हैं कि इंसान मोहब्बत के रंगों से ही चकरा जाता है। कुल मिला कर आज की पीढ़ी को अमृता जी की अधिक से अधिक कताबें पढ़नी चाहियें। इन नावलों कहानियों के पात्र आज भी आपको अपने आसपास घुमते और सक्रिय मिलेंगे। अजीब इतफ़ाक़ है की वक़्त ने उनकी रिहायश के-25, हौज़खास का अस्तित्व भी नहीं रहने दिया। उनके चाहनेवालों ने उसे के तौर पर कोई ज़ोरदार प्रयास भी किया। अमृता जी उनकी यादगार।
प्रस्तुति:रेक्टर कथूरिया
रेक्टर साहेब उम्दा आर्टिकल
ReplyDeleteअमृता प्रीतम को पढ़कर वाक़ई अच्छा लगता है। अपने अकेलेपन, मुहब्बत को कभी छुपाया, दबाया नहीं अमृता जी ने।
एक बात जो बड़बोल-सी लगती है -एक बार मेरे फ्री वर्स (छंदमुक्त) रचनाएं पढ़कर मधुर नजमी जी ने कहा था तुम्हारी ये रचनाएं अमृता प्रीतम की याद दिलाती हैं।
जी इन अनमोल विचारों के लिए हार्दिक आभार---
DeleteRector saheb apne bilkul sahi farmaya ki Amrita Pritam ji k bare me ki unko padh k khud k ander se hi bagawat hone lgti hai ki sachmuch is system me badlaw ki zarurt hai .Bahut khoobsurat likha apne
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार--नाम पता या फोन नम्बर देने में कोई दिक्कत आए तो संदेश में ही शामिल क्र दिया करें प्लीज़--वैसे तकनीकी टीम इस पर काम कर रही है--
DeleteWah g wah bitter but true
ReplyDeleteप्रदीप शर्मा जी बहुत बहुत शुक्रिया
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