एक 'अमेरिकन" पर "पाकिस्तानियों" का हमला...!
फेसबुक एक अलग और नई दुनिया बन के विकसित हो रही है. एक ऐसी दुनिया जो सोशल नेटवर्किंग से कहीं आगे बढ़कर आपके दिल पर दस्तक देती है, आत्मा को झंक्झौरती है और अपनी सोच का रुख बदलने पर भी विवश कर देती है. इस दुनिया में जिंदगी के हर अच्छे बुरे रंग की चर्चा होती है. फेसबुक पर पोस्ट होने वाली तस्वीरों के साथ साथ साहित्य भी अपनी जगह बना रहा है. एक नई एचना नजर आई है जिसे आगरा में रहने वाले बंटी ग्रोवर ने पोस्ट किया है. लीजीये आप भी पढिये यह रचना. आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य लिखें.--रेक्टर कथूरिया
अमेरिकन बनने के 4 घंटे बाद
एक पाकिस्तानी लड़के ने अमेरिकन स्कूल में
एडमिशन लिया।
टीचर- तुम्हारा नाम क्या है?
लड़का- अहमद।
टीचर- अब तुम अमेरिका में हो, इसलिए आज
से तुम्हारा नाम जॉन है।
लड़का घर पहुंचा...
...मां- पहला दिन कैसा रहा अहमद?
लड़का- मैं अब अमेरिकन हूं और आगे से मुझे
जॉन कहकर पुकारना।
मां और पापा ने यह सुनते ही उसकी जमकर
धुनाई कर दी।
शरीर पर चोट के निशान लिए अगले दिन वह
स्कूल पहुंचा।
टीचर- क्या हुआ जॉन?
लड़का- मेरे अमेरिकन बनने के 4 घंटे बाद
ही मुझपर 2 पाकिस्तानियों ने हमला कर
दिया !!
Saturday, October 27, 2012
Monday, October 8, 2012
राष्ट्रिय विकास मंच ने किया एक और अहम एलान
गाँधी जी की विचारधारा को घर घर ले जाने का संकल्प
महात्मा गाँधी का नाम और विचारधारा उनकी शहादत के बाद लगातार और जोर पकडती जा रही है। तेज़ी से से प्रासंगिक हो रहे गाँधी जी के विचार एक बार फिर युवायों को आकर्षित कर रहे हैं। उनके समर्थकों की सख्या भी बढ़ रही है और विरोधियों की भी। चर्चा उनक समर्थक भी उनके विचारों की करते हैं और उनके विरोधी भी। हालत यह है की गाँधी जी का विरोध करने वाले भी उनकी हत्या करने वाले नाथू राम गोडसे को सीधे सीधे नायक कहने की हालत में नहीं हैं। गत दिनों एक स्कूली छात्रा ने आरती आई के ज़रिये प्रधानमन्त्री कार्यालय से एक सवाल पूछा कि महात्मा गाँधी को बापू गाँधी की उपाधि या नाम किस ने और कब दिया। इस सवाल का जवाब न तो प्रधानमंत्री कार्यालय ने दिया और न ही गृह मन्त्रालय ने। आखिर इस बच्ची की तस्वीर, उसका सवाल और सरकार का इस पर टालमटोल का जवाब सब कुछ फेसबुक पर आ गया। राष्ट्र के बापू केसाथ यह कैसा मजाक ? जिस नमक आन्दोलन बापू ने सारी दुनिया हिला दी वही नमक देश में आजादी आ जाने के बाद महंगे भाव पर बिकने लगा। जिस स्वदेशी के नारे ने अँगरेज़ साम्राज्य की नींव हिला दी थी आजादी आ जाने के बाद आज उसी स्वदेशी की नीति को पांवों तले कुचल कर विदेशी कम्पनियों को घुटने टेक कर निमंत्रित किया जा रहा है की आईये और हमें लूटिये। देश के बापू के साथ यह कैसा खिलवाड़ ? सीधे विदेशी निवेश जको एक आवश्यक मुख्य नीती के तौर पर अपना लिया गया है। आज समझ आने लगा है की गाँधी जी ने आजादी आने के बाद कांग्रेस को भंग करने की बात क्यूं कही थी? महात्मा गाँधी का नाम लेने वाले लोग ही गाँधी जी के सपनों को धुल में मिला रहे हैं। हमारा संविधान जिस विचार, नीति और भावना की बात करता है हमारे कदम उस सब के पूरी तरह विपरीत जा रहे हैं। किसी भी तरह नहीं लगता कि यह गाँधी जे के सपनों या विचारों की आजादी है !
हालात लगातार नाज़ुक हो रहे हैं। अमन, शांति और सदभावना के पुजारी महात्मा गाँधी को बापू कहने वाले देश में हत्या, साड्फूंक, खूनखराबा, लूटमार, बेईमानी, बलात्कार, भ्रूण हत्या, शोषण, बेरोज़गारी, छूयाछात जैसे कलंक एक आम बात हो चुकी है। इन अत्यंत गंभीर हालात में राष्ट्रीय विकास मंच ने एक संकल्प लिया है गाँधी जी के विचारों को घर घर तक लेजाने का। इसकी औपचारिक शुरूआत की गयी दो अक्टूबर गाँधी जयंती के दिन। पहले दो छोटे छोटे से कार्यक्रम हुए लुधियाना के गोलबाग में, इसके बाद रखबाग और फिर 1 बजे गाँधी धाम पर हुआ मुख्य समारोह। गुरिंदर सूद, निर्दोष भारद्वाज, हरजीत सिंह नंदा और रवि सोई के मार्गदर्शन और संचालन में संकल्प लिया गया की वे सभी मिल कर छूआछात, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और देश में बढ़ रहे विदेशी के चलन का दत कर विरोध किया जायेगा। ਇਹਨਾਂ ਅੱਤ ਦੇ ਗੰਭੀਰ ਹਾਲਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਵਿਕਾਸ ਮੰਚ ਨੇ ਇੱਕ ਵਾਰ ਫੇਰ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਦੇ ਫਲਸਫੇ ਨੂੰ ਘਰ ਘਰ ਤੱਕ ਲਿਜਾਣ ਦਾ ਬੀੜਾ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ। दो अक्टूबर 2012 को शुरू हुआ यह अभियान 30 जनवरी तक जरी रहेगा। इस अभियान के अंतर्गत 13 अक्टूबर 2012 को बापू गाँधी का श्राद्ध भी किया जायेगा। गौरतलब है कि बापू के श्राद्ध का आयोजन किसी भी विचार्धार्क सन्गठन की और से शायद पहली बार किया जा रहा है। उल्लेखनीय है की 13 अक्टूबर 1948 के दिन को ही बापू गाँधी की अस्थियों का विसर्जन भी हुआ था। इस श्राद्ध में भाग लेने के इच्छुक नीचे दिए गए नम्बरों पर सम्पर्क भी कर सकते हैं।
गुरिंदर सूद: +91 98881 23786
रवि राज सोई: +91 98884 92198
ਨਿਰਦੋਸ਼ ਭਾਰਦਵਾਜ : +91 99884 03850
नीचे दिए गए दो पंजाबी लिंक भी देखें:
1*ਗਾਂਧੀਵਾਦ ਅੱਜ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ–ਮੋਹਿਤ ਸੇਨ
13 अक्टूबर को होगा लुधियाना में बापू गाँधी का श्राद्ध
![]() |
संकल्प लेते राष्ट्रिय विकास मंच के सदस्य और अन्य लोग |
![]() |
राष्ट्रीय विकास मंच के आयोजन की एक यादगारी तस्वीर |
गुरिंदर सूद: +91 98881 23786
रवि राज सोई: +91 98884 92198
ਨਿਰਦੋਸ਼ ਭਾਰਦਵਾਜ : +91 99884 03850
नीचे दिए गए दो पंजाबी लिंक भी देखें:
1*ਗਾਂਧੀਵਾਦ ਅੱਜ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ–ਮੋਹਿਤ ਸੇਨ
केबल सेट टॉप बॉक्स द्वारा बिजली की खपत
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने दिया स्पष्टीकरण
पिछले दिनों कुछ समाचारपत्रों में छपा है कि केबल टीवी के डिजिटीकरण से सेट टॉप बॉक्स (एसटीबी) के जरिए बिजली की खपत काफी बढ़ जाएगी। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस बारे में स्थिति को स्पष्ट करते हुए बताया है कि यह खबर गलत है कि एसटीबी की बिजली की खपत 20 वाट है। मल्टी सिस्टम और स्थानीय केबल ऑपरेटरों द्वारा एसटीबी के कई तरह के मेक और मॉडल सप्लाई किए जाते हैं। अलग-अलग किस्मों के केबल एसटीबी की बिजली की खपत के आंकड़े नीचे तालिका में दिए गए हैं, जिनसे पता चलता है केबल एसटीबी इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ता करीब आठ वाट बिजली खर्च करते हैं, जो सीएफएल की खपत से भी कम है।
तालिका 1- विभिन्न मेकों के केबल एसटीबी की बिजली खपत की दरें
एसटीबी मेक एवं मॉडल
|
बिजली खपत (वाट)
| |
चालू स्थिति
|
प्रतीक्षा स्थिति
| |
डेन एंटरटेनमेंट नेटवर्क्स
| ||
स्काईवर्थ 7000
|
8
|
7
|
स्काईवर्थ 7600
|
8
|
7
|
स्काईवर्थ 7631
|
8
|
7
|
डिजिकेबल
| ||
इंडियोन एलडीसीए 1000
|
5.4
|
4.5
|
चांगहोंग C8899C0
|
7.5
|
6.9
|
स्काईवर्थ C371N EN
|
10
|
8
|
आईएमसीएल
| ||
एसडी एसटीबी
|
12
|
10
|
मॉयबॉक्स
|
7.5
|
6.9
|
हैथवे डेटाकॉम
| ||
स्काईवर्थ 9000
|
8
|
7
|
हुमा एनडी-1200C
|
15
|
5
|
डब्ल्यूडब्ल्यूआईएल
| ||
हेंडोन 1002C
|
6.5
|
5.8
|
हेंडोन 1041C
|
6.5
|
5.8
|
एरियोन 5012S
|
7.5
|
6.9
|
चांगहोंग C8899C0
|
7.5
|
6.9
|
मॉयबॉक्स
|
7.5
|
6.9
|
स्रोतः विनिर्माताओं के उत्पादों के विवरण से प्राप्त
विभिन्न घरेलू बिजली उपकरणों द्वारा बिजली की खपत की दरें नीचे तालिका 2 में दर्शायी गई हैं।
तालिका 2- विभिन्न मेकों के केबल एसटीबी की बिजली खपत की दरें
उपभोक्ता उपकरण
|
मॉडल
|
बिजली खपत (वॉट)
|
फ्रिज
|
210 लीटर
|
270
|
कूलर (डेजर्ट)
|
बजाज DC 2012
|
200
|
टेलीविजन
|
सोनी KV-SZ292M88 CRT - 29”
|
138
|
टेलीविजन
|
एलजी 14D7RBA CRT
|
80
|
टेलीविजन
|
सोनी KLV 20S400A LCD
|
60
|
टेलीविजन
|
सोनी KDL 26EX550 LCD
|
50
|
पंखा
|
क्रॉम्पटन ग्रीव्ज – 56”
|
80
|
पंखा
|
ओरियंट 32 – टेबल पंखा
|
70
|
पीसी (कंप्यूटर)
|
एचपी V185E
|
60
|
पीसी (कंप्यूटर)
|
मॉनीटर – 17”
|
80
|
लाइट
|
बल्ब इनकेंडिसेंट
|
100
|
डीवीडी प्लेयर
|
सोनी BDP S350
|
26
|
लाइट
|
फ्लोरेसेंट ट्यूब
|
50
|
लाइट
|
सीएफएल
|
10
|
एसटीबी
|
केबल टीवी के लिए औसत
|
8
|
स्रोतः विनिर्माताओं के उत्पादों और एनपीसीएल की वेबसाइट पर उपलब्ध विवरण
जैसा कि उपरोक्त तालिका से पता चलता है कि टेलीविजन,पंखें और ट्यूबलाइटें 60-60 वाट की बिजली की खपत करती हैं,जबकि एसटीबी की खपत 8 वाट है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति एक घंटे तक टेलीविजन देखता है और एक कमरे मे एक पंखा और एक ट्यूबलाइट भी चलाता है तो इन उपकरणों द्वारा एक घंटे में बिजली की खपत एसटीबी की खपत से ज्यादा होगी, चाहे उसे 24 घंटे तक क्यों न चलाया जाए। दूसरे शब्दों में एसटीबी की खपत 1 दिन में 1/5 यूनिट है जबकि एक पंखे, एक टेलीविजन और एक ट्यूबलाइट की खपत 1.5 यूनिट है। इसी प्रकार घरेलू फ्रिज की खपत रोजाना औसतन 4-5 यूनिट है, जो एसटीबी की एक दिन की खपत के 20 गुना से भी ज्यादा है। इस प्रकार केबल एसटीबी की खपत महीने में 5-6 यूनिट बैठती है और अन्य बिजली उपकरणों के मुकाबले बहुत मामूली है।
डिजिटिकरण से उपभोक्ताओं को तस्वीर और आवाज की बेहतर क्वालिटी मिलेगी और चैनल चुनने की आजादी होगी। फिल्म और गेम आदि भी अपनी पसंद के मांगे जा सकेंगे और यह सब बिजली की मामूली खपत पर ही उपलब्ध होंगे।
आमतौर पर घरों में एसटीबी स्विच ऑफ नहीं किए जाते है। जब टीवी नहीं देखा जा रहा होता, तब भी एसटीबी को प्रतीक्षा स्थिति में रखा जाता है, ताकि ऑफ होने के बाद एसटीबी को फिर से शुरू करने में और समय न लगे। प्रतीक्षा स्थिति में एसटीबी के ऑन रहने के बिजली की खपत और भी कम होती है।(PIB) (08-अक्टूबर-2012 15:17 IST)
मीणा/राजगोपाल/अर्जुन- 4825
Friday, October 5, 2012
बोधिसत्व कस्तूरिया की और कविता
Fri, Oct 5, 2012 at 1:26 PM
इक दिन एक नन्ही परी, जब मेरे आँगन मे आई!
सारे घर मे खुशियाँ गूंजी, ओर बाज उठी शहनाई!!
किलकारी से महका आँगन,उपवन मे छाई तरुणाई,
फ़िर मीठे तुतले बोलों से,पुरखों की बगिया महकाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
पता नही संग सहेली ,कब विद्द्यालय की दौड लगाई,
धीरे-धीरे यौवन की पाँखुर, लेने लगी नई अरुणाई !!
इक दिन एक नन्ही परी,
स्वप्न सलोने लगी सजाने,पौढी पर बारात जो आई,
सबकी आँखो मे अश्रुधार थी,घडी विदा की जब आई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
चार दिना भी बीते नही ,दहेज़ लोलुपों ने कार मंगाई,
कैसे अम्मा-बाबू से कहती,खामोश सह्ती रही पिटाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
घर-घर परियो की यही कहानी,मुझको दे रही सुनाई,
किससे मनुहार करे?सारे अब तो मुझको लगें कसाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
उस दिन आँखे पथराय गई,तलाक नोटिस दिया सुनाई,
कोर्ट-कचहरी सब बेमानी, लगी गाँठ सुलझे न सुलझाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
पर वो भारत की नारी है, उसने फ़िर हार नही अपनाई,
तन-मन-धन से फ़िर शुरू की, उसने आगे अपनी पढाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
मन मे इक विश्वास जगा ,अद्ध्यन से नही बडी कमाई,
अद्ध्य्यन अध्यापन से नारी मे, उसने नई अलख जगाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
जन -सेवा संकल्प लिया ,सरकारी नौकरी की करी पढाई,
आज सभी उसके गुण गाते, खाते उसी की गाढी कमाई !!
इक दिन एक नन्ही परी,
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
इक दिन एक नन्ही परी, जब मेरे आँगन मे आई!
सारे घर मे खुशियाँ गूंजी, ओर बाज उठी शहनाई!!
किलकारी से महका आँगन,उपवन मे छाई तरुणाई,
फ़िर मीठे तुतले बोलों से,पुरखों की बगिया महकाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
पता नही संग सहेली ,कब विद्द्यालय की दौड लगाई,
धीरे-धीरे यौवन की पाँखुर, लेने लगी नई अरुणाई !!
इक दिन एक नन्ही परी,
स्वप्न सलोने लगी सजाने,पौढी पर बारात जो आई,
सबकी आँखो मे अश्रुधार थी,घडी विदा की जब आई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
चार दिना भी बीते नही ,दहेज़ लोलुपों ने कार मंगाई,
कैसे अम्मा-बाबू से कहती,खामोश सह्ती रही पिटाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
घर-घर परियो की यही कहानी,मुझको दे रही सुनाई,
किससे मनुहार करे?सारे अब तो मुझको लगें कसाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
उस दिन आँखे पथराय गई,तलाक नोटिस दिया सुनाई,
कोर्ट-कचहरी सब बेमानी, लगी गाँठ सुलझे न सुलझाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
पर वो भारत की नारी है, उसने फ़िर हार नही अपनाई,
तन-मन-धन से फ़िर शुरू की, उसने आगे अपनी पढाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
मन मे इक विश्वास जगा ,अद्ध्यन से नही बडी कमाई,
अद्ध्य्यन अध्यापन से नारी मे, उसने नई अलख जगाई!!
इक दिन एक नन्ही परी,
जन -सेवा संकल्प लिया ,सरकारी नौकरी की करी पढाई,
आज सभी उसके गुण गाते, खाते उसी की गाढी कमाई !!
इक दिन एक नन्ही परी,
बोधिसत्व कस्तूरिया २०२ नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा २८२००७
जिंदगी के असली रंगों की कविता
जीवन से प्रेम करो, और अधिक खुश रहो
Rk Shukla अर्थात आर के शुक्ला ने दुनिया देखी है। भुगौलिक तौर पर भी और जीवन के नजरिये से भी। गोरखपुर, दिल्ली, मुंबई, फिजी और अब लुधियाना। जिंदगी को समझने के मामले में उनका सफ़र काफी लम्बा रहा। कभी उनकी कविता बहुत कठोर लगती है, कभी कभी जलती हुई आग की आंधी और कभी कभी खुशबू से भरी हवा के किसी तेज़ झोंके जैसी। पर यह सब उन्होंने अपने जीवन से पाया। जिंदगी और दुनिया के गिरगिट की तरह बदलते रंगों ने उन्हें जो सिखाया वो शायद किताबों से कभी भी न सीखा जा सके। वह कहते हैं,"जीवन से प्रेम करो, और अधिक खुश रहो। जब तुम एकदम प्रसन्न होते हो, संभावना तभी होती है, वरना नहीं। कारण यह है कि दुख तुम्हें बंद कर देता है, सुख तुम्हें खोलता है। क्या तुमने यही बात अपने जीवन में नहीं देखी? जब भी तुम दुखी होते हो, बंद हो जाते हो, एक कठोर आवरण तुम्हें घेर लेता है। तुम खुद की सुरक्षा करने लगते हो, तुम एक कवच-सा ओढ़ लेते हो। वजह यह है कि तुम जानते हो कि तुम्हें पहले से काफी तकलीफ है और अब तुम और चोट बर्दाश्त नहीं कर सकते। दुखी लोग हमेशा कठोर हो जाते हैं। उनकी नरमी खत्म हो जाती है, वे चट्टानों जैसे हो जाते हैं।" कभी उनकी रचना में राजनीती का रंग महसूस होता है और कभी कभी किसी मासूम बच्चे जैसी मासूमियत। उनकी रचना पढ़ते हुए कभी कभी आप पाताल की गहराई नाप सकते हैं और कभी कभी गगन छूती उन्मुक्त उड़ान का मज़ा भी। खतरा पातळ में भी है और ऊंचे आकाश में भी। अगर आप खतरा उठा सकते हैं तो उनकी रचना अवश्य पढ़िए वरना यह सब आपके लिए नहीं है।--रेक्टर कथूरिया
![]() |
साभार चित्र |
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँजो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
जिस दिन मेरी चेतना जगी मैंने देखा
मैं खड़ा हुआ हूँ इस दुनिया के मेले में,
हर एक यहाँ पर एक भुलाने में भूला
हर एक लगा है अपनी अपनी दे-ले में
कुछ देर रहा हक्का-बक्का, भौचक्का-सा,
आ गया कहाँ, क्या करूँ यहाँ, जाऊँ किस जा?
फिर एक तरफ से आया ही तो धक्का-सा
मैंने भी बहना शुरू किया उस रेले में,
क्या बाहर की ठेला-पेली ही कुछ कम थी,
जो भीतर भी भावों का ऊहापोह मचा,
जो किया, उसी को करने की मजबूरी थी,
जो कहा, वही मन के अंदर से उबल चला,
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मेला जितना भड़कीला रंग-रंगीला था,
मानस के अन्दर उतनी ही कमज़ोरी थी,
जितना ज़्यादा संचित करने की ख़्वाहिश थी,
उतनी ही छोटी अपने कर की झोरी थी,
जितनी ही बिरमे रहने की थी अभिलाषा,
उतना ही रेले तेज ढकेले जाते थे,
क्रय-विक्रय तो ठण्ढे दिल से हो सकता है,
यह तो भागा-भागी की छीना-छोरी थी;
अब मुझसे पूछा जाता है क्या बतलाऊँ
क्या मान अकिंचन बिखराता पथ पर आया,
वह कौन रतन अनमोल मिला ऐसा मुझको,
जिस पर अपना मन प्राण निछावर कर आया,
यह थी तकदीरी बात मुझे गुण दोष न दो
जिसको समझा था सोना, वह मिट्टी निकली,
जिसको समझा था आँसू, वह मोती निकला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
जो किया, कहा, माना उसमें क्या बुरा भला।
मैं कितना ही भूलूँ, भटकूँ या भरमाऊँ,
है एक कहीं मंज़िल जो मुझे बुलाती है,
कितने ही मेरे पाँव पड़े ऊँचे-नीचे,
प्रतिपल वह मेरे पास चली ही आती है,
मुझ पर विधि का आभार बहुत-सी बातों का।
पर मैं कृतज्ञ उसका इस पर सबसे ज़्यादा -
नभ ओले बरसाए, धरती शोले उगले,
अनवरत समय की चक्की चलती जाती है,
मैं जहाँ खड़ा था कल उस थल पर आज नहीं,
कल इसी जगह पर पाना मुझको मुश्किल है,
ले मापदंड जिसको परिवर्तित कर देतीं
केवल छूकर ही देश-काल की सीमाएँ
जग दे मुझपर फैसला उसे जैसा भाए
लेकिन मैं तो बेरोक सफ़र में जीवन के
इस एक और पहलू से होकर निकल चला।
जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला
कुछ देर कहीं पर बैठ कभी यह सोच सकूँ
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