Tuesday, October 13, 2020

डा. सुरजीत पात्र की काव्य रचना बनी जसप्रीत फलक की प्रेरणा

 कविता, कथा कारवां के मंच ने करवाई किसानी पर विशेष चर्चा 


लुधियाना
: 12 अक्टूबर 2020: (हिंदी स्क्रीन ब्यूरो)::

शायर का मन बेहद संवेदनशील होता है। जब किसान घर बाहर छोड़ कर रेल पटरियों आ गये तो कलमकारों के दिल भी उठे।  उनकी खेती, उनकी मेहनत, कृषि से उनका इश्क-जब सब कुछ पूंजीपतियों के हवाले किये जाने साज़िशें कानून बनने लगीं तो शायर का अंतर्मन भी दहल उठा।  

डॉ. सुरजीत पातर जी की कृषि पर आधारित कविता 

"एह बात  निरी एनी ही नहीं  

ना ऐह मसला सिर्फ किसान दा ऐ" 

आयोजन का आधार बनी। इसी कविता को एक प्रभावशाली प्रेरणा कर जसप्रीत फलक बुद्धिजीवियों, शिक्षण के महारथियों और युवाओं को भी किसानों के दर्द और संघर्ष  की तरफ अग्रसर करने में  सफल रही। इश्क की बातें बहुत हो चुकी अब तो समय की नब्ज़ पर हाथ रख कर कुछ कहना आवश्यक हो गया था। इसी भावना से सभी उपस्थित सम्मानीयजनों का स्वागत किया गया। किसानों और किसानों को दरकिनार करके न तो खुशहाली सम्भव है और न ही सच्ची देशभक्ति। 

साहित्यिक और  सांस्कृतिक मंच कविता कथा कारवांँ की तरफ से आधुनिक कृषि में युवाओं की शमूलियत पर ऑनलाइन विचार चर्चा की गई जिसमें पंजाब के खेती माहिरों व प्रगतिशील किसानों द्वारा शिरकत की गई। कार्यक्रम का शुभारम्भ अध्यक्षा जसप्रीत कौर फ़लक ने सभी का स्वागत करते हुए किया। 

पंजाब के जॉइंट डायरेक्टर (कृषि) डॉ बलदेव सिंह बतौर मुख्य मेहमान शामिल हुए। उन्होंने बताया कि कृषि को किस प्रकार लाभदायक बनाया जा सकता है। कृषि क्षेत्र में हुनर विकास की बहुत संभावनाएं हैं उन्होंने कृषि के आधुनिक यंत्रों की जानकारी और उनके इस्तेमाल के बारे में बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि किसानों को अपनी पराली को नहीं जलाना चाहिए पराली के धुएं से करोना बढ़ने की संभावना पैदा हो सकती है।  डॉ बलदेव सिंह ने उन नौजवान प्रगतिशील किसानों की मिसाल दी जिन्होंने कुछ हटकर किया और कृषि से अधिकतम मुनाफा कमाया है। पीएयू के साबका प्रोफेसर दलजीत सिंह ने कृषि के प्रगतिशील हुनर सीखने और उन्हें अमल में लाने की बात की और इसे व्यवसाय के तौर पर किस तरह अपनाना चाहिए इन सब बातों को बताया सीटी यूनिवर्सिटी के डीन एकेडमिक डॉ बक्शी ने कहा कि कृषि उद्योग के साथ जुड़े उद्योगों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है कृषक जसवीर सिंह गुलाल ने सारे बताया कि परिवार में मिलजुल कर बागवानी का कार्य कर घर में भी खेती कर सकते हैं। पतरस गिल ने किसानों पर एक मार्मिक गीत 

"ख़री फसल ते चल दियां तवीयां, साडी हिक उत्ते फिर दिया छवियां, 

सब भुर गईयां सधरां जो नवीयां,  

चढ़े कर्जे ही उतार दे  मर गए, 

साडे पिंडेयां ते मारां दे निशान ने" 

और इसी तरह अन्य शायरों ने भी किसान के दर्द को बहुत ही कलात्मक अंदाज़ में प्रस्तुत किया।  बात बेशक पराली जलाने के मुद्दे को लेकर शुरू हुई लेकिन किसानों पर चढ़े क़र्ज़ और उसके शोषण पर भी भी काव्य चर्चा हुई:

प्रभलिखारी ने किसानों के प्रति एक संवेदनशील कविता पेश की:

ओह हक्कां दे लई लड़दा ए, 

ओह राखी फसल दी करदा हे,  

ओह अपने आप विच पूरा हे,  

ते लोकां नू पूरा कर दा ए" 

आयोजन को समाप्ति की तरफ ले जाते हुए मौजूदा संघर्ष पर भी गहन चर्चा हुई। पंजाब और देश के हालात पर भी विचार विमर्श हुआ। 

डॉ. जगतार धीमान,रजिस्ट्रार सी टी यूनिवर्सिटी ने कृषि की जानकारी देते हुए  मंच का संचालन बखूबी किया।


No comments:

Post a Comment