लेकिन कामरेड समता तदबीरों को छोड़ कर लकीरों की तरफ क्यूं?
लुधियाना: 30 मार्च 2020: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::
जब जब भी मुलाकात हुई मुझे हर बार जसप्रीत कौर समता वाम विचारधारा से प्रभावित लडकी लगी। कभी कभी तो मुझे उस पर यह प्रभाव जनून की हद तक भी महसूस हुआ। फिर कई बार नज़दीक से भी उसकी बातें सुनी। बार बार लगा कि उसके दिल में कोई दर्द है जिसे उसने छुपा लिया है। जैसे पंजाबी के जानेमाने शायर प्रोफेसर मोहन सिंह कहते हैं न--
होली होली बन गया
मित्रां दा गम
लोकां दा गम
बस समता मुझे हर बार उसी प्रक्रिया से गुज़रती हुई लगी। अपने गम को जनता के गम में तब्दील करती हुई। वह गमा क्या था मैंने कभी नहीं पूछा। मुझे ऐसे सवाल कभी भी अच्छे नहीं लगते। कुछ भी ऐसा पूछने पर मुझे लगता जैसे मैं नियमों के विपरीत जा रहा हूँ। अंग्रेजी में एक शब्द आता है-एन्क्रोचमेंट। बस कुछ भी ऐसा पूछना मुझे एनक्रोच करना ही लगता। समय गुज़रता रहा। इसके साथ ही एक दर्द समता के चेहरे पर हर वक़्त रहने वाली मुस्कान के पीछे छुपा सा झलकता रहा। फिर दबे सुर की कुछ बातें भी सुनीं जो इधर सुन कर उधर से निकल भी जाती रहीं। जब जब भी मुझे अपनी कवरेज में कोई मुश्किल महसूस होती तब तब समता मुझे सहायता देने को सामने होती। जब उसने पहली बार कैमरे के सामने माईक पकड़ा तो सबके लिए हैरानी थी। उस दिन पंजाबी भवन में जस्टिस कोलसे पाटिल एक विशेष आयोजन में आये हुए थे। माईक समता के हाथों में था और कैमरा मैंने खुद संभाल लिया। मैं जस्टिस कोलसे की यादगारी तस्वीरों को कैमरे में कैद क्र लेना चाहता था। जब मन में ऐसी भावना हो तो ध्यान पूरी तरह कैमरे में रखना पड़ता है। मैं भी ध्यान मग्न था लेकिन मन में चिंता थी कि अब उनसे ऐसे बौद्धिक सवाल कौन पूछेगा जो उनके स्तर के भी हों। ऐसे में समता ने कमाल कर दिए। उसने बहुत अच्छे सवाल पूछे। स्टोरी भी बहुत अच्छी बनी। इसके इसी ग्रुप में रहने वाला कामरेड अरुण उसे हर बार मज़ाक मज़ाक में एक दिन की पत्रकार बता कर बार बार हंसाता। लेकिन वह पंजाब स्क्रीन टीम की एक ऐसी सदस्य बन गयी थी जिसे आड़े वक़्तों की साथी कहा जा सकता है। जब जब भी फेसबुक खोलता तो समता की कोई न कोई पोस्ट सामने होती। हर पोस्ट में लोगों के साथ हो रहे अन्याय की बात का ज़िक्र होता। मुझे हैरानी भी होती कि क्या इस लड़की को अपना कोई गम ही नहीं? समय अलग अलग रंग दिखाता रहा। आज फेसबुक पर समता की पोस्ट बिलकुल ही अलग रंग की थी। उसने काव्यपूर्ण शब्दों में कहा:
मुकम्मल हुआ हो इश्क़ जिसका
उसकी हथेली देखनी है,
कैसी होती है वो
" लक़ीर "
जो मेरे हाथों में नहीं है...!!!
मेरे लिंए यह पोस्ट किसी हैरानी से कम नहीं थी। हर समय लोगों के दर्द की बात करने वाली लड़की आज अपने दिल के दर्द की बात कर रही थी। मैंने झट से एक कुमेंट करते हुए समता से कहा:
शायद किसी ने सही कहा है:
हाथों की चंद लकीरों का!
यह खेल है बस तकदीरों का!
पे इसी गीत में आगे चल कर इसका जवाब भी है:
तक़दीर है क्या, में क्या जानूँ,
में आशिक हूँ तदबीरों का...!
....और कामरेड तक़दीर पर नहीं तदबीर पर भरोसा करते हैं Jaspreet Kaur Samta जी...
इस बात को कभी भूलना नहीं।
वैसे प्रकृति के नियमों में मैंने कई बार इसे सच होते देखा कि जब प्रकृति किसी चीज़ को छीनती है तो वास्तव में जल्द ही उससे बेहतर हमें थमा भी देती है।
सो हिम्मत और हौंसला ज़रूरी है।
किसी शायर ने बहुत पहले कहा था:
हालात के कदमों पे कलन्दर नहीं गिरता।
टूटे भी जो तारा तो ज़मीं पर नहीं गिरता।
गिरते हैं समंदर में आ आ के कई दरिया!
लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता!
देखना एक दिन आपको मेरी बातें याद आएंगी। हिम्मत रखना।
--रेक्टर कथूरिया
(समता पर और चर्चा फिर कभी सही फ़िलहाल इतना ही)
लुधियाना: 30 मार्च 2020: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::
जब जब भी मुलाकात हुई मुझे हर बार जसप्रीत कौर समता वाम विचारधारा से प्रभावित लडकी लगी। कभी कभी तो मुझे उस पर यह प्रभाव जनून की हद तक भी महसूस हुआ। फिर कई बार नज़दीक से भी उसकी बातें सुनी। बार बार लगा कि उसके दिल में कोई दर्द है जिसे उसने छुपा लिया है। जैसे पंजाबी के जानेमाने शायर प्रोफेसर मोहन सिंह कहते हैं न--
होली होली बन गया
मित्रां दा गम
लोकां दा गम
बस समता मुझे हर बार उसी प्रक्रिया से गुज़रती हुई लगी। अपने गम को जनता के गम में तब्दील करती हुई। वह गमा क्या था मैंने कभी नहीं पूछा। मुझे ऐसे सवाल कभी भी अच्छे नहीं लगते। कुछ भी ऐसा पूछने पर मुझे लगता जैसे मैं नियमों के विपरीत जा रहा हूँ। अंग्रेजी में एक शब्द आता है-एन्क्रोचमेंट। बस कुछ भी ऐसा पूछना मुझे एनक्रोच करना ही लगता। समय गुज़रता रहा। इसके साथ ही एक दर्द समता के चेहरे पर हर वक़्त रहने वाली मुस्कान के पीछे छुपा सा झलकता रहा। फिर दबे सुर की कुछ बातें भी सुनीं जो इधर सुन कर उधर से निकल भी जाती रहीं। जब जब भी मुझे अपनी कवरेज में कोई मुश्किल महसूस होती तब तब समता मुझे सहायता देने को सामने होती। जब उसने पहली बार कैमरे के सामने माईक पकड़ा तो सबके लिए हैरानी थी। उस दिन पंजाबी भवन में जस्टिस कोलसे पाटिल एक विशेष आयोजन में आये हुए थे। माईक समता के हाथों में था और कैमरा मैंने खुद संभाल लिया। मैं जस्टिस कोलसे की यादगारी तस्वीरों को कैमरे में कैद क्र लेना चाहता था। जब मन में ऐसी भावना हो तो ध्यान पूरी तरह कैमरे में रखना पड़ता है। मैं भी ध्यान मग्न था लेकिन मन में चिंता थी कि अब उनसे ऐसे बौद्धिक सवाल कौन पूछेगा जो उनके स्तर के भी हों। ऐसे में समता ने कमाल कर दिए। उसने बहुत अच्छे सवाल पूछे। स्टोरी भी बहुत अच्छी बनी। इसके इसी ग्रुप में रहने वाला कामरेड अरुण उसे हर बार मज़ाक मज़ाक में एक दिन की पत्रकार बता कर बार बार हंसाता। लेकिन वह पंजाब स्क्रीन टीम की एक ऐसी सदस्य बन गयी थी जिसे आड़े वक़्तों की साथी कहा जा सकता है। जब जब भी फेसबुक खोलता तो समता की कोई न कोई पोस्ट सामने होती। हर पोस्ट में लोगों के साथ हो रहे अन्याय की बात का ज़िक्र होता। मुझे हैरानी भी होती कि क्या इस लड़की को अपना कोई गम ही नहीं? समय अलग अलग रंग दिखाता रहा। आज फेसबुक पर समता की पोस्ट बिलकुल ही अलग रंग की थी। उसने काव्यपूर्ण शब्दों में कहा:
मुकम्मल हुआ हो इश्क़ जिसका
उसकी हथेली देखनी है,
कैसी होती है वो
" लक़ीर "
जो मेरे हाथों में नहीं है...!!!
मेरे लिंए यह पोस्ट किसी हैरानी से कम नहीं थी। हर समय लोगों के दर्द की बात करने वाली लड़की आज अपने दिल के दर्द की बात कर रही थी। मैंने झट से एक कुमेंट करते हुए समता से कहा:
शायद किसी ने सही कहा है:
हाथों की चंद लकीरों का!
यह खेल है बस तकदीरों का!
पे इसी गीत में आगे चल कर इसका जवाब भी है:
तक़दीर है क्या, में क्या जानूँ,
में आशिक हूँ तदबीरों का...!
....और कामरेड तक़दीर पर नहीं तदबीर पर भरोसा करते हैं Jaspreet Kaur Samta जी...
इस बात को कभी भूलना नहीं।
वैसे प्रकृति के नियमों में मैंने कई बार इसे सच होते देखा कि जब प्रकृति किसी चीज़ को छीनती है तो वास्तव में जल्द ही उससे बेहतर हमें थमा भी देती है।
सो हिम्मत और हौंसला ज़रूरी है।
किसी शायर ने बहुत पहले कहा था:
हालात के कदमों पे कलन्दर नहीं गिरता।
टूटे भी जो तारा तो ज़मीं पर नहीं गिरता।
गिरते हैं समंदर में आ आ के कई दरिया!
लेकिन किसी दरिया में समंदर नहीं गिरता!
देखना एक दिन आपको मेरी बातें याद आएंगी। हिम्मत रखना।
--रेक्टर कथूरिया
(समता पर और चर्चा फिर कभी सही फ़िलहाल इतना ही)