गाजीपुर की कवयित्री रश्मि शाक्य भी होंगी पुरस्कृत
उक्त जानकारी साहित्यक एंव सामाजिक संस्था चेतना के महामंत्री गौरव विवेक ने प्रेस को जारी ब्यान में बताया कि संस्था की सरंक्षक व गाजीपुर की कवयित्री रश्मि शाक्य को उनकी पुस्तक हमसे कोई वचन न मांगो, मुक्तक विधा में सुशीला जिनेश स्मृति पुरस्कार, प्रदान किया जाएगा। रश्मि शाक्य की अब तक चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर का सम्मान हरिवंश राय बच्चन युवा गीतकार सम्मान, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा साहित्य गौरव सम्मान, भारतीय सिने कर्मचारी संघ द्वारा इंस्पायरिंग वीमेन अवार्ड, तुलसी शोध संस्थान लखनऊ द्वारा सन्त तुलसी सम्मान, विपुलम विदुषी सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। कार्यक्रम में कुसुम कुमारी जैन वरिष्ठता सम्मान, माया अग्रवाल, डॉ. फीरोजा मुजफ्फर सेवा सम्मान, डॉ. साधना शुक्ला को एवं डॉ. सुशीला कपूर हिंदी सेवी सम्मान, श्रीमती मनोरमा पंत, श्रीमती शोभा शर्मा कर्मठता सम्मान डॉ. साधना गंगराड़े को प्रदान किया जाएगा।
संस्था की सरंक्षक रश्मि शाक्य को सम्मान मिलने पर डा0 अंजना कुमार, योगेन्द्र सुन्दरीयाल, पल्लवी त्रिपाठी, आदेश चैहान, डा0 दिवाकर, बलराज मलिक, गौरव विवेक, रितेश कुमार आदि ने हर्ष व्यक्त किया। साहित्यिक दीप वेलफेयर सोसाइटी (रजि) लुधियाना की तरफ से भी हर्षित ह्रदय के साथ श्रीमती रश्मि शाक्य जी को सम्मान मिलने की खुशी में हर्ष व्यक्त किया गया।
गौरतलब है कि रश्मि शाक्या विद्रोही स्वर जैसे अपने विचार बभूत बेबाकी और बुलंदी से रखती हैं। उनकी शायरी की एक झलक आप यहाँ भी देख सकते हैं:
जो विधर्मी थे, पुजारी हो गए।
न्याय पर अन्याय भारी हो गए।
हो गयी धृतराष्ट्र जैसी राजसत्ता,
और हम भी गांधारी हो गए॥
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ये तो सच है कि कैसे भी कट जाएगी।
चन्द ग़म में ख़ुशी में निपट जाएगी।
गर तुम्हारे लिए प्यार दिल से घटा,
ज़िन्दगी भी उसी रोज़ घट जाएगी॥
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अगर निभा न हम पाए तो तड़प-तड़प कर मर जायेंगे,
हमसे कोई वचन न मांगो .......वचन बड़े भारी होते हैं.
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सत्ताओं के निर्णायक हैं .... हम भारत के लोग।
जन-गण भी हैं अधिनायक हैं हम भारत के लोग॥
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सत्य का परिणाम घोषित क्या करेंगे?
स्वयं हैं भूखे तो तोषित क्या करेंगे ?
आप सब उम्मीद पर जिनकी टिके हैं,
आत्मा से वे कुपोषित, क्या करेंगे ?
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मैंने आज़ादी मांगी
उन्होंने मुझे देशद्रोही कहा
उस दिन समझ आया-
"आज़ादी और देशभक्ति
दो अलग - अलग तलवारें हैं
जो एक म्यान में कभी नहीं आ सकतीं...."[
आप ज़रूरत अनुसार 'आज़ादी' की जगह रोज़गार, सामाजिक न्याय, सुरक्षा आदि-आदि शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं]
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बर्छी जैसे इस मौसम में,
नर्म धूप सी याद तुम्हारी
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कितने चेहरे आप लगाते साहब जी।
देख मुखौटे भी शरमाते साहब जी।
लोकतंत्र को लाठी लेकर हांक रहे,
तानाशाही ख़ूब चलाते साहब जी॥
छुरियों से छलनी-छलनी कर डाला है,
लेकिन मुँह से प्यार जताते साहब जी॥
घर को अपने रोज़ फूंक पर फूंक रहे,
ग़ैरों पर इल्ज़ाम लगाते साहब जी।
अपना कहते, पर हिस्सों में बांट रहे,
कैसा रिश्ता आप निभाते साहब जी॥
आपकी वहशत पर यदि चीखूं-चिल्लाऊं
मुझको विद्रोही बतलाते साहब जी॥
भ्रम टूटेगा, सदियां माफ़ करेंगी क्या?
कुछ तो इज़्ज़त आप बचाते साहब जी॥
*ज्योति बजाज स्वयं भी सक्रिय शायरा हैं और समकालीन आयोजनों और साहित्यिक सरगर्मियों पर नज़र भी रखती हैं।