Saturday, July 25, 2020

वो दो रोटियां-आशीर्वाद है मेरे लिए//*रुबीता अरोड़ा

25th July 2020 at 11:05 AM
 आज भी मेरी यादों का खास खज़ाना हैं वो दो रोटियां 
प्रतीकत्मक तस्वीर जिसे Cottonbro ने 25 अक्टूबर 2019 को 8:46 बजे सुबह खींचा  
मैं अपने मायके में सबसे छोटी थी,सबकी लाडली। कभी ज़्यादा काम नहीं किया था। लेकिन ससुराल में मैंने बड़ी बहू बन कर कदम रखा। ऊपर से सासु मां अक्सर बीमार रहती थी इसीलिए परिवार की सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ पड़ी। समय पर सबको खाना देना, पूरे घर का ध्यान रखना आदि आदि। इन सबमें सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रही थी कि तभी मेरी दादी सास, जो पहले अलग घर में रहती थी, अब हमारे साथ रहने आ गई। घर में एक सदस्य तो बढा पर दादी के स्वभाव ने दिल जीत लिया। अस्सी साल की बूढ़ी दादी छड़ी लेकर पूरे घर में घूम-फिर कर निरीक्षण करती, हर किसी का ध्यान रखती, प्यार की मूरत लेकिन जरूरत पड़ने पर किसी को भी डाँटने की आदत ने जल्द ही उन्हें  पूरे घर की जान बना दिया। मुझे रोज़ अकेले सबका काम करते देखती तो उन्हे बहुत बुरा लगता। बस इसीलिए वे हमेशा किसी न किसी तरीके से मेरी मदद करने की कोशिश के चक्कर में मौका मिलते ही रसोई मे चली जाती पर भारी-भरकम शरीर, कमज़ोर आंखों की वजह से कुछ और ही कर बैठती और उनकी पकाई रोटियों का तो कहना ही क्या मोटी मोटी आधी कच्ची, आधी जली हुई जिन्हें खाना मेरे लिए आसान न होता हालाकिं बाकी सदस्य चुपचाप खा लेते। मैं हमेशा मना करती, बार-बार कहती आप आराम करो। मै बना लूंगी। कई बार तो हाथ पकड़ कर जबरदस्ती बिठाना पड़ता लेकिन वह भी कहां मानने वाली थीं। जब भी मै कही इधर-उधर किसी काम से बाहर जाती या किसी दिन काम ज़्यादा होता तो थक कर सो जाती तो उन्हें मौका मिल जाता, चुपचाप रसोई में जाती और फिर पूरे परिवार की रोटियां सेंक डालती। 
*लेखिका रुबीता अरोड़ा 
सबके लिए सेंकने के बाद दो अलग से सेंकती, बेहद सावधानी के साथ और उन्हे बडे प्यार से अलग से लपेट कर रखती। जब मै रसोई मे जाने लगती तो पहले ही निर्देश देती मैने सबकी रोटियां सेंक दी है, तेरी दो अलग से बनाकर रखी है-पतली पतली, छोटी-छोटी जैसी तू खाती है। मना मत करना मैने बड़े प्यार से बनाई है। 
रोटियां देखती तो उनमें और बाकी रोटियों में कोई ज्यादा अंतर न होता पर उनमें दादी का मेरे प्रति प्यार जरूर झलकता। कई बार देवर शरारत से रोटियां हाथ में लेकर कहता हमारे लिए कच्ची-पक्की और अपनी बहू के लिए अच्छी-अच्छी आज तो ये दो रोटियां मैं खाऊँगा तो दादी छड़ी लेकर उसके पीछे भागती, उस पर चिल्लाती और हम सब खूब हंसते। दादी का कहना था बहू दिन-रात हमे हमारी मर्जी का खिलाती है तो उसका भी हक है कभी-कभार आराम से बैठकर खाने का। कई बार बाहर से कुछ खाकर आओ तो वैसे भी भूख न होती पर दादी के प्यार के सामने नतमस्तक होना पडता।  वो दो रोटियां साधारण न रहकर आशीर्वाद बन जाती मेरे लिए। भूख न होने के बावजूद मुझे खानी पडती। परन्तु ये हर बार मुझे अहसास दिलाती कि मैं भी परिवार की महत्वपूर्ण सदस्य हूं और परिवार में कोई है जो मेरे लिए इतना सोचता है। आज चूंकि दादी इस दुनिया में नहीं है तो कोई नहीं है इस तरह प्यार से बिठाकर खिलाने के लिए, खुद ही बनाना पडता है। बहुत याद आती हैं वो दो रोटियां। मिस यू दादी। 
 *रुबिता अरोड़ा मूल तौर एक शिक्षिका के तौर पर कार्यरत हैं लेकिन साहित्य में रूचि के चलते वह अक्सर ज़िंदगी की छोटी बड़ी बातों पर लिखती रहती हैं 

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