Wednesday, April 8, 2020

क्रिएटिव राइटर्स ग्रुप ने लॉक डाउन के दौर में भी कराया मुशायरा

इस बार का विषय था पत्ते, जिन पर बहुत ही खूबसूरती से लिखा गया
लुधियाना: 7 अप्रैल 2020: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::
कोरोना का कहर टूटा तो इससे बचाव के लिए लॉक डाऊन सबसे आवश्यक था। लॉक डाउन के बिना कोई और चारा  भी नहीं था लेकिन इसके लागू होते ही ज़िंदगी थम सी गई। लोग अपने अपने घरों में कैद हो कर रह गए। कोरोना के कारण हुए इस लॉक डाउन में हालत नज़रबंदी जैसी हो कर रह गई। दुनिया की रफ्तार एक दम थम गई। इस थमे हुए माहौल में वे लोग फिर भी सक्रिय रहे जो थमने जानते ही नहीं। वे लोग जिन्हें तूफानों के सामने चिराग जलाने की हिम्मत नसीब में मिली है। जो वे लॉक डाउन की पालना करते हुए नहीं थमे। घरों में कैद हो कर भी वे  नहीं रुके। उनकी सोच चलती रही। उनके जज़्बात चलते रहे। उनकी कलम भी चलती रही। कोरोना ने उन्हें अपने अपने घरों में कैद तो करवा दिया लेकिन उनके ख्यालों की उड़ान जारी रही। युवा कलमकारों के दिलों की धड़कन जसप्रीत कौर फलक ने इस दिशा में बहुत ही शिद्दत से सोच विचार की। इस गहरी सोच विचार के बाद एक स्पेशल किस्म का आईडिया उनके दिमाग में उतरा। बात बहुत ज़बरदस्त थी लेकिन उसे प्रेक्टिस में लाना आसान भी नहीं था। इसे सोचना तो  मुश्किल था ही लेकिन इसे लागू करके दिखाना और भी मुश्किल था। फिर उन्होंने यह आईडिया वरिष्ठ कलमकार और विज्ञानी डाक्टर जगतार सिंह धीमान के साथ भी शेयर किया और इसकी सफलता के लिए उनका आशीर्वाद मांगा।  बात डाक्टर धीमान के भी दिल को लगी। उन्होंने भी इस पर गंभीरता से सोचा। उनके अंतरमन में बैठे कवि ने इसे अपने ढंग से सोचा, उम्र भर विज्ञान का अध्यन करने वाली सोच के सिस्टम ने अपने ढंग से सोचा और रजिस्ट्रार के पद पर बैठे प्रशासक ने अपने नज़रिये से अपना मशवरा दिया। फैसला हुआ कि अपने अपने घर में बैठ कर साहित्य की सरगर्मी चलाई जाये। एक ऑनलाइन मुशायरा शुरू किया जाये जिसमें नयी उम्र के कलमकारों को पहल दी जाये। बस यहीं से शुरू हुआ एक विशेष मुशायरा। इसमें कोरोना का दर्द भी था,कोरोना की बंदिशें भी और लॉक डाउन की ज़िंदगी के कड़वे मीठे अनुभव भी। यह आइडिया पत्रकारिता में उम्र गुजरने वाले अश्वनी जेतली को भी बेहद जचा और उन्होंने आखिर मूल तौर पर तो वह भी शायर ही ठहरे। शायरी ने युवा अवस्था में ही बहुत जनून में थी और बाद में पत्रकारिता ने भी अपना रंग उनकी शख्सियत में जोड़ दिया। वह भी इस काफिले में शामिल हो गए। उसके बाद शुरू लॉक डाऊन के नियमों की पालना करते हुए मुशायरा कराने का सिलसिला। अब यह सिलसिला हर रोज़ चलता है। हर रोज़ ही कोई नया विष भी सुझाया जाता है। नयी कलमों प्रोत्साहित करने के लिए उनका मार्गदर्शन भी होता है और आलोचना भी। देखिये इसका थोड़ा सा रंग यहाँ भी , इन रचनाओं को विस्तृत रूप से अलग से भी प्रकाशित किया जा रहा है। साहित्य स्क्रीन में भी। 
जब इस ग्रुप में पत्तों पर कुछ लिखने को कहा गया तो गुरवीर सियाण ने लिखा:
पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..!
हवाओं से लड़ सकते हो क्या..!
है क्या तुझमें इतनी क़ुव्वत..!
खुशी-खुशी झड सकते हो क्या..!
पत्तों जैसे बन सकते हो क्या..!
इसी तरह सिद्धार्थ ने भी इसी विषय पर बहुत ही सफलता से अपना हाथ आज़माया। उन्होंने कहा:
 बात पेंड़ो की,शाखा की हर कोई करता है,
बिछड़े हुए पत्तों की कौन सुना करता है।।
ये जो नए हैं डाली पर शान से खड़े हैं,
कल गिर जो गए तो बेजान से पड़े हैं।।
कालेज की छात्रा नवयोवना शायरा सारा सैफी ने तो कमाल ही कर दिया। भावनायों को बहुत ही संगीतमय अंदाज़ में प्रस्तुत करते हुए आज के इंसान पर गहरी चोट भी की:
सूखा पत्ता तेज़ हवा से 
उड़कर मेरे घर आया
इक ठोकर से मैनें उसको
जब आगे को सरकाया

बोला यूँ ना ठुकरा मुझको
मुझ पर भी हरियाली थी
पँछी भी सब खुश थे मुझसे
खुश मुझसे हर डाली थी
मैं तपता था कड़ी धूप में
करता था तुम पर साया

आज भी आग में जलकर मैं
सेक तुम्हें दे सकता हूँ
अपने ऊपर आज भी तेरे
 दुःख सारे ले सकता हूँ
 वो तो एक इन्सान है जिसने
 काम लिया और ठुकराया
सरू जैन साहिबा ने भी कमाल के अंदाज़ में अपनी बात कही। ज़रा आप भी पढिये:
यह सच है टूटा पत्ता
वापिस नहीं आता शाख़ पर।                                                             
पर नयी कोंपले फूटी                                         
अक्सर पतझड़ के बाद ही।
यह पत्ता टूटकर भी वफ़ा ही करे।                 
कितनी सुंदर चाह लिए दिल में।                         
चाहे मैं बिछुड़ूँ भी पेड़ से;                                 
फिर भी यह तो हरा भरा रहे।
इसी तरह कार्तिका सिंह ने भी पत्तों पर लिखते हुए उम्र और इंसानी ज़िंदगी की व्यथा को ही लिखा:
 पत्ते बस पत्ते होते हैं!
उग आते हैं--झड़ जाते हैं!
हरे रंग से पीले रंग तक 
रोज़ कहानी कह जाते हैं!
बात पते की कह जाते हैं!

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