Thursday, July 12, 2018

ज़िंदगी ने जो कहा था; मौत ने भी सुन लिया था

पर हमीं वो सुन न पाए; जो मोहब्बत ने कहा था !
साभार चित्र 
मिल जाये मुस्कान कोई;
मौत का वरदान कोई। 
देख ले कुछ दर्द मेरे;
काश अब भगवान कोई। 

भरम है भगवान का भी;
यूं ही डर शैतान का भी। 
मन शिवाला बन गया है;
डर  है पर अहसान का भी। 

दिल के अंदर वेदना है;
और ज़रा सी चेतना है। 
खेल भी अब सामने है;
पर किसे अब खेलना है !

आ रहा हर पल बुलावा;
छोड़ दे दुनिया छलावा;
तोड़ भी डाले ये बंधन;
इक तेरी चाह के अलावा ...! 

सोचता हूँ चल पड़ें अब;
उस तरफ भी हैं मेरे सब। 
कोई न लौटा वहां से;
देखते हैं कब मिलें अब !

ज़िंदगी ने जो कहा था;
मौत ने भी सुन लिया था। 
पर हमीं वो सुन न पाए;
जो मोहब्बत ने कहा था। 
                                       ---रेक्टर कथूरिया
(19  जून 2018 की रात को करीब 10:55 बजे)

10 comments:

  1. Wah wah kmaaal hai
    Aap bhi likhte ho aaj pta chala
    Ur poem is selected

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    1. शुरुआत लिखने से ही हुई थी---नज़्म-ग़ज़ल--मिनी कहानी, रेडियो ड्रामे, टीवी स्क्रिप्ट---लेकिन खबरों की भागदौड़ में खुद का पता भी भूल गया---

      साहित्य रचना स्कून देती है लेकिन पत्रकारिता रात की नींद भी छीन लेती है बहुत कुछ और भी---दोनों के दवंद्व में साहित्य रचना बचा पाना नामुमकिन सा तह ालेकिन आप जैसी शख्सियतों के आयोजनों ने यह करिश्मा कर दिखाया

      आप ने रचना पसंद की---इससे होंसला हुआ--उत्साह भी बढ़ा---
      --रेक्टर कथूरिया (99153-22407)Ludhiana

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    2. बहुत बढिया। उम्मीद है आगे भी आपकी रचनाएँ पढने को मिलेगी।

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  2. आदरणीय कथूरिया जी
    बहुत खूबसूरत और दिल को छू लेने वाली रचना। मुझे बहुत पसंद आई।
    सादर

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया जी---

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  3. बहुत ही बेहतरीन रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जी---

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  4. बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

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    1. आपके शब्दों से और प्रेरणा मिलेगी--

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