Thursday, October 17, 2024

PEC:14 से 16 अक्टूबर तक तीन दिवसीय कविता कार्यशाला का सफल आयोजन

Thursday 17th October 2024 at 5:29 PM Email K K Singh PEC 

डा.शम्स तबरेज़ी और डा.अनीश गर्ग, ने सिखाई काव्य की बारीकियां 


चंडीगढ़: 17 अक्टूबर, 2024: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

जब इंजीनिरिंग और कविता की उड़ान मिलते हैं तो बहुत से नए करिश्मे सामने आने लगते हैं। PEC के छात्रों के लिए इस तरह के करिश्मों को सामने लाने वाली  काव्य वर्कशाप आयोजन कुछ ऐसा ही तजुर्बा था।  बारीकियां सामने लाने लाने  हुए थे दो जानेमाने शायर डा. शम्स तबरेज़ी और डा. अनीश गर्ग। 


पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (PEC) के हिंदी संपादक मंडल (HEB) ने
14 से 16 अक्टूबर तक तीन दिवसीय कविता कार्यशाला का सफल आयोजन किया, जो उनके ओआई लोकेश सर के निर्देशन में संपन्न हुआ। इस कार्यशाला में 40 से अधिक छात्रों ने भाग लिया। इसमें दो प्रख्यात कवियों, डॉ. शम्स तबरेज़ी और डॉ. अनीश गर्ग, ने छात्रों को कविता लेखन और पठन की बारीकियों से परिचित कराया।

डॉ. शम्स तबरेज़ी, जो अपनी गहन और भावपूर्ण कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं, ने आत्म-अभिव्यक्ति के महत्व और शब्दों की शक्ति पर चर्चा करते हुए कार्यशाला की शुरुआत की। उन्होंने छात्रों को अपनी आंतरिक सोच और भावनाओं को कविता के माध्यम से व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया, ताकि यह कला उनके व्यक्तिगत अनुभवों का प्रतिबिंब बने। डा. शम्स तबरेज़ी की शायरी भी बहुत  है। उनकी शायरी की एक झलक आप देख सकते हैं बस यहां क्लिक कर के। 

डॉ. अनीश गर्ग, जो काव्य तकनीकों में अपनी मुहारत के लिए जाने जाते हैं, ने छात्रों को कविता के तकनीकी पहलुओं जैसे ताल, छंद और चित्रण से परिचित कराया। उन्होंने इंटरैक्टिव सत्र भी आयोजित किए, जहां प्रतिभागियों ने विभिन्न कविताओं में गहरे अर्थों की परतों की पहचान और सराहना करना सीखा। इस सेशन में सवाल जवाब का सिलसिला काफी दिलचस्प रहा। 

शायरी पर इस कार्यशाला ने सैद्धांतिक ज्ञान और व्यावहारिक अभ्यास का संतुलित मिश्रण प्रदान किया, जिससे छात्रों को विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में अपनी कविताएं लिखने का अवसर मिला। इस मार्गदर्शन का इन छात्रों को आगे चल कर फायदा भी बहुत होगा। PEC में आयोजित इस कार्यशाला के अंत तक, प्रतिभागियों ने अपनी लेखन क्षमता में पहले से बहुत अधिक आत्मविश्वास महसूस किया और इस अवसर के लिए प्रशंसा व्यक्त की कि उन्हें इतने कुशल कवियों से सीखने का अवसर मिला।
 
कुल मिला कर यह आयोजन अत्यंत सफल रहा, जिसने छात्रों को प्रेरित और उत्साहित किया, और उनकी काव्य यात्रा को जारी रखने की नई ऊर्जा प्रदान की।

"गीत मेरी मातृभाषा का; है न चाकू जैसी !

कविता//मातृभाषा//सुखपाल 


सभी काम कर लेता है 

तीस साला डेविड 

'हैंडीमैन' हमारे अस्पताल का।

सफाई

टपकती छत की मुरम्मत 

बिजली वाले यंत्र ठीक करना 

टूटी हुई पाइपें जोड़ना 

फर्नीचर बनाना 

ड्राईवाल लगाना 

टायलेट फिट करना 

मशीनें ठीक करना....

दफ़्तर की चाबी घर भूल आया मैं 

डेविड को पूछा...

वह‌ बोला...

"चाबी तो है नहीं 

लेकिन दरवाजा खोल देता हूं तेरा !"

जेब से चाकू निकाल 

डेविड ने ताले के सुराख में झांका 

झट से दरवाजा खोल‌ मारा

और बोला -

चाबी की बजाय चाकू रखा करो जेब में 

"चाबी से एक दरवाजा खुलता है 

चाकू से बहुत सारे 

रोटी वाला भी..."

खुला का खुला रह गया मेरा मुंह 

" इतने काम कहां सीखें, डेविड ?"

वह मुस्कुराया -

" बहुत खराब था मेरा बचपन.."

चाकू हवा में उछाल 

धार की ओर से बोच कर

तीखे स्वर में गीत गुनगुनाते हुए 

वह चल पड़ा ‌दूसरी ओर...

मैंने पीछे से आवाज़ लगाई 

" किस भाषा का गीत है..?"

सिर घुमाकर बोला -

" मेरी मातृभाषा का

है न चाकू जैसी !

यह भी बहुत दरवाजे खोलती है 

मेरे लिए..."

👌🏽👤👌🏽

पंजाबी मूल : सुखपाल 

हिन्दी अनुवाद : गुरमान सैनी 

संपर्क : 9256346906