हिंदी पुस्तक में पंजाबी का रंग इसे और भी यादगारी बना देता है
नई दिल्ली: 16 अक्टूबर 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::
ज़िंदगी और किस्मत जब रंग बदलती हैं तो सचमुच इसका पता तक नहीं चलने देती। गिरगिट भी मात खा जाता है। बदलाहट के बाद ही अहसास होता है कि अब पहले जैसा वो सब नहीं रहा। इसके बावजूद सतर्क कलमकार और बुद्धिजीवी इस बदलाहट को उसी वक्त पहचान लेते हैं जब यह दस्तक दे रही होती है। नीलिमा शर्मा ने बदलाहट का पता देने वाली उस मूक दस्तक की भयभीत करने वाली ख़ामोशी भरी आवाज़ के सूक्ष्म क्षणों को सफलता से पकड़ा है। उस हत्यारे दौर की तबाही को कलात्मक ढंग से कलमबद्ध किया है नीलिमा शर्मा ने। उस ज़हर को नीलकंठ की तरह पीने का प्रयास भी किया, कुछ सफलता भी मिली लेकिन वह नीलिमा थी न जिसके पास इंसान की सीमित शक्तियां होती हैं। वह देव न बन सकी। नीलकंठ न बन सकी। लेकिन इस प्रयास ने उसे बहुत ऊंचाई प्रदान की है। यह पुस्तक उस दौर की गहन उदासी से निकली है जिसकी टीस अभी सदियों तक महसूस की जाएगी। यह पुस्तक-"कोई ख़ुशबू उदास करती है'' बहुत ही विशिष्ट पुस्तक है। इसकी अनुभूति भी नीलिमा शर्मा ही कर सकती थी और इसकी अभिव्यक्ति की कला और क्षमता भी महांदेव ने नीलिमा को ही प्रदान की। तबाही अभी जारी है। तबाही की खामोश सी दस्तक भी अभी जारी है। नीलिमा जी अभी भी सुन रही हैं। इस किताब को पढ़ कर शायद आप बच सकें इस तबाही की मार से जो हम सभी की नियति ही बन गई लगती है। इस किताब को पढ़ना तो फायदेमंद रहेगा ही लेकिन पहले पढ़ लीजिए थोड़ा सा साराँश कि कैसे बनी यह पुस्तक? कैसे रखा गया इसका नाम? यह दास्तान आपको भी उदास कर देगी लेकिन ज़िंदगी के लिए यह उदासी भी बेहद आवश्यक है। एक आवश्यक औषधि की तरह। -रेक्टर कथूरिया
नीलिमा जी बताती हैं-एकांत की क्या कहूँ,बरसों से भीड़ के साथ रहते हुए भी मन का एक कोना अकेला है लेकिन उदास कभी नही रहता था। खुल कर ठहाके लगाना मेरी आदतों में शुमार था शायद मेरे ठहाकों को मेरी ही नज़र लग गयी। उस दिन किसी ने कहा तुमने अपनी कहानी की किताब का नाम "कोई ख़ुशबू उदास करती है'' क्यों रखा। आजकल तुम उदास लिखती हो तुम उदास लगने लगी हो, ज्यादा उदास रहने से उदासी की आदत बन जायेगी बस तब से सोच में हूँ ...
उदास होना तो प्रकृति ने सबकी नियति में लिखा है। हर कोई किसी न किसी क्षण में उदास होता है, लेकिन अवसाद को हावी नही होने देता । मैंने तो कई बार उदासियों के महासागर देखे है लेकिन मेरे मन की छोटी सी नाव उम्मीद की पतवार के सहारे वास्को डी गामा बनकर अपनी बाकी बचीकुची जिंदगी की तलाश में है। मन की यात्राएँ मुझे बहुत पसंद है औऱ हर बार सामने वाले को उदास देखकर अपनी ज़िन्दगी की खुशियों के लिए ईश्वर का शुकराना भी अदा करती हूँ।
आजकल मूडी हो गयी हूँ ,यस (चाहे तो) आप बूढ़ी भी पढ़ सकते है। आजकल कार की पिछली सीट पर बैठे बैठे मोबाइल में सर घुसाए रहती हूँ। शहनाज ओर सिद्धार्थ के वीडियो देखती रहती हूँ। परिजनों से 'कोई कंपनी मेरे बिना लॉस में नही जायेगी' के ताने उलाहने सुनती रहती हूँ। बार बार सबके कहने पर फोन को कुछ देर के लिए चार्जिंग रूपी ऑक्सिजन का मास्क पहनाती हूँ तो नजरें बाहर घूमती है कि "ओह यह तो दिल्ली है मेरी जान"। मुझे पता ही नही चलता कि दिल्ली है देहरादून ,मुज़फ्फरनगर है या मेरठ। हवाओ की ठंडक कभी कभार ही अहसास दिलाती है कि जिस शहर में आजकल तुम रहती हो न वहाँ का मौसम थोड़ा नम है, ख़ुश्क है या सर्द क्योंकि मन का मौसम तो आजकल खोया खोया रहता है।
खैर बात हो रही थी कार के बाहर झाँकने की। कल दिल्ली कैंट की एक सड़क पर रेड लाइट पर ट्रैफिक काफी ज्यादा था। कारें धीरे धीरे सरक रही थी।अचानक एक काली बाइक आगे आयी। हेलमेट पहने कोई मध्यम कद काठी का लड़का (या आदमी) ड्राइव कर रहा था। एक मोटी लड़की (मुझसे कम) बाइक पर उसके पीछे बैठी थी। झटके से एकदम मेरी विंडो के साथ बाइक रुकी थी तो नज़र जाना स्वाभाविक ही था। पाकिस्तानी लॉन प्रिंट का पलाज़ो सूट पहने उस लड़कीं का हाथ उस लड़के की कमर पर था और आगे से उसकी शर्ट को मुठ्ठी में हल्का पकड़ा हुआ था। लड़के ने बड़े प्यार से उस हाथ को थामा औऱ अपने होठों तक ले जाकर हौले से चूम लिया । हेलमेट की वजह से उसका चेहरा नजर नही आया लेकिन लम्बी सी नाक हेलमेट के आगे शीशा/प्लास्टिक न लगे होने से बाहर तक नजर आ रही थी।
न जाने वो दोनो कौन थे लेकिन उनको देख कर एक प्यारा सा अहसास हुआ। हर रेडलाइट पर फेविकॉल के जोड़ की तर्ज पर चिपके लड़के लड़कियां नजर आ जाते है लेकिन यह तो .......मौसम सुहाना सा लगने लगा था।
फिर तो नज़र उस बाइक के साथ साथ चलती रही। कभी कार के आगे कभी कहीं पीछे बाइक हमारे साथ साथ रही। वेगास मॉल के फ़ूड कोर्ट में उस प्रिंट सूट को फिर मैंने अपने से आगे वाली टेबल पर बैठे देखा। अकेली बैठी वो चुपचाप फोन में एक तस्वीर देख रही थी। एक लड़के के साथ तस्वीर, लेकिन तस्वीर वाला लड़का साथ आये लड़के से अलग था। मेरे बच्चे भी मेरे लिए खाना लेने के लिए गए थे। हर कोई आता और हम खाली कुर्सी ले सकते है कहकर झुकने लगता। हर बार मना करती मेरी नजर उस महिला के सामने रखी खाली कुर्सी पर थी। जिसपर ज़ारा का शॉपिंग बैग था। तभी अचानक किसी का कॉल उसके फ़ोन पर आया।
मंद स्वर से फुसफुसाती सी वो बोली.... " आहो बीजी आज मैनू मॉल लेके आये ने, पिज़्जा लेण गए ने , मैं नही रहणा एथ्थे, मैं काके नू मिस कर रहिया। उन्ने रोटी खादी आज? नही प्रशांत चंगा हेगा लेकिन देव वर्गा तां नही हो सकदा न। बीजी जे कोरोना न होंदा ते आज देव मेरे नाल हौंदा।" उसकी ख़ामोश सिसकियां सिर्फ मुझे सुनाई दी । मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा औऱ वो भीगी आँखों से मुस्कुरा दी।
आप नही समझे न माजरा ?
नामुराद कोरोना ने कितने घरों के चिराग बुझा दिए। कितने तकिये अंदर तक आँसुओं की सीलन से भीगे हुए है। लेकिन कुछ ऊँची दीवारों के बीच मंद बुझती आँखों ने उम्मीद नहीं छोड़ी। ज़िन्दगी की उम्मीद, आने वाले कल की उम्मीद, अमावस की रात में जुगनुओं की रोशनी की उम्मीद, सुबह के आने की उम्मीद। उन बुझती उम्मीदों ने अपने बड़े बेटे के जाने के बाद छोटे बेटे की शादी बड़े की पत्नी से कर दी। छोटे ने मेरी लाइफ मेरा रूल मेरे सपने न कहकर उस ज़िम्मेदारी को प्यार से सम्हाल लिया। (है न हमारी परिवार संस्था महान)
नया उनका नया नया रिश्ता है। अचानक जुलाई में ही उन दोनो के रिश्ते ने नाम और रंग बदला है। उनके रिश्ते की ख़ुशबू बदल गयी है सो लड़कीं के 4 साल के बच्चे को दादी ने साथ रख लिया कि अब यह दोनों आपस मे एक दूसरे को समझें। फिर बाकी सब अबकि बार साथ रहेंगे। पंजाब के गांव में ज़मीन बेचने की तैयारी चल रही है। खेती करने वाला किसान बेटा अब नही रहा। बूढ़ा बाप कब तक माफियाओं से ज़मीन बचायेगा। द्वारका में फ्लैट खरीदने की बात चल रही है। अब जितनी ज़िंदगी बची है सब साथ साथ बिताएँगे।
अब बताओ ऐसी खुशबुएँ उदास करेंगी न .... चाहे उम्मीद भरी ख़ुशबू है।
बहुत सी खुशबुएँ मेरे कहानी संग्रह में भी समाहित है ।
कुछ दोस्त मेरी किताब 'कोई ख़ुशबू उदास करती है' मंगवाना चाहते है तो उनके लिए यह लिंक दे रही हूँ ।आप Shivna Prakashan से सीधे भी पुस्तक मँगवा सकते है ।
Koi Khushbu Udas Karti Hai, Neelima Sharma
http://www.amazon.in/dp/B08YN5D7YF
अद्भुत! आपकी लेखनी की मुरीद !
ReplyDeleteशुक्रिया ए अजनबी
Deleteवास्तव में खुशबुएँ उदास ही करती हैं। इस खूबसूरत संग्रह के लिए कथाकार नीलिमा शर्मा को तहे दिल से बधाई और शुभकामनाएं। उनकी लेखनी से ऐसे ही मस्त उद्गार निकलते रहें..💐
ReplyDeleteशुक्रिया जीतू जी
Deleteजरूर मंगवाती हूँ।
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