Sunday:1 April 2018 at 7:51 AM : FB//IB
चाँदनी बन धरा पर आ गई!!
रात तुम कुछ लिखते रहे,
और मै गहरी नीद सो गई!
जब सुबह उठ कर मै,
तुम्हारी उस मेज़ तक गई!!रात......
कुछ कागज़ बिखरे पडे थे,
उन्हे पढ आँखे चुधिया गई!
कितना प्यार करते हो मुझे,
सोच कर ही मै शरमा गई !! रात........
मेरे रूप का अदभुत वर्णन,
पढ कर मै सच सकुचा गई!!
तुमने लिखा मुझे सुमन ,
मै उपवन मे गोते खा गई !! रात.....
तुमने लिखा चाँद मुझको,
चाँदनी बन धरा पर आ गई!!
तुम्हारा स्नेह और समर्पण,
तुमसे ज़्यादा मै पा गई!! रात.....
तुमने लिखा त्रप्ती मुझे ,
मै सप्त सागर मे नहा गई !!
तुमने कहा सजनी मुझे ,
मै गर्व से फूली समा गई !! रात.....
बोधिसत्व कस्तूरिया 202 नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा 282
चाँदनी बन धरा पर आ गई!!
रात तुम कुछ लिखते रहे,
और मै गहरी नीद सो गई!
जब सुबह उठ कर मै,
तुम्हारी उस मेज़ तक गई!!रात......
कुछ कागज़ बिखरे पडे थे,
उन्हे पढ आँखे चुधिया गई!
कितना प्यार करते हो मुझे,
सोच कर ही मै शरमा गई !! रात........
मेरे रूप का अदभुत वर्णन,
पढ कर मै सच सकुचा गई!!
तुमने लिखा मुझे सुमन ,
मै उपवन मे गोते खा गई !! रात.....
तुमने लिखा चाँद मुझको,
चाँदनी बन धरा पर आ गई!!
तुम्हारा स्नेह और समर्पण,
तुमसे ज़्यादा मै पा गई!! रात.....
तुमने लिखा त्रप्ती मुझे ,
मै सप्त सागर मे नहा गई !!
तुमने कहा सजनी मुझे ,
मै गर्व से फूली समा गई !! रात.....
बोधिसत्व कस्तूरिया 202 नीरव निकुन्ज सिकन्दरा आगरा 282