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Monday, February 4, 2013

महाकाल को मानव कैसे जीतेगा?

10.11.2012, 17:47 
सूरज बूढ़ा और पुराना हो जाएगा और वह सड़ने लगेगा 
बाद में मानव को मंगल ग्रह से भी दर-बदर होना पड़ेगा
                                                                                                                        © www.nasa.gov        (Courtesy:Voice of Russia)
क़रीब 2 अरब 80 करोड़ साल बाद सूरज बूढ़ा और पुराना हो जाएगा और वह सड़ने लगेगा यानी वह फूलना शुरू हो जाएगा और एक विशाल लाल आग के गोले में बदल जाएगा। सूरज में होने वाले इन बदलावों का पृथ्वी पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा । ज़मीन पर गर्मी इस बुरी तरह से बढ़ जाएगी कि जीवन पूरी तरह से ख़त्म हो जाएगा। एक भी जीव-जन्तु इस धरती पर बाक़ी नहीं रहेगा। वैसे तो एक अरब 80 करोड़ साल बाद ही पृथ्वी पर रहने वाले जीव-जन्तु और मनुष्य ख़त्म हो जाएँगे, लेकिन पानी में रहने वाले तरह-तरह के जीवाणु और कीटाणु तथा ज़मीन के भीतर गहराई में रहने वाले जीव फिर भी बचे रह जाएँगे।

यह भविष्यवाणी उन ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने की है, जो पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के लुप्त होने की प्रक्रिया का क्रमबद्ध ढंग से अध्ययन कर रहे हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने न सिर्फ़ सूर्य की गरमी बढ़ने से पृथ्वी पर होने वाले बदलावों का अध्ययन किया है, बल्कि उन्होंने यह भी देखा है कि यदि अंतरिक्ष में पृथ्वी की कक्षा में कोई बदलाव होता है तो उसका पृथ्वी के जीवों पर क्या असर पड़ेगा।

नक्षत्रशास्त्री यह जानते हैं कि सूरज की तरह के सितारे आख़िर में विशालकाय लाल गोलों में बदल जाते हैं और उनमें होने वाला बदलाव हमेशा इसी ढंग से होता है। जब हमारा सूरज आग के लाल विशालकाय गोले में बदलेगा तो उसका आकार बीसियों गुना बढ़ जाएगा और उसकी धूप की झलक भी पीली नहीं बल्कि लाल दिखाई देगी। सूरज जब फूलकर बुध और शुक्र ग्रहों को निगलकर पृथ्वी के महासागरों का पानी सुखा देगा, उससे बहुत पहले ही पृथ्वी पर परिस्थितियाँ जीवन के लायक नहीं रह जाएँगी। मास्को विश्वविद्यालय की एक जीव-वैज्ञानिक येलेना वराब्योवा भी इस बात से सहमत हैं कि जीवाणु और कीटाणु ही हमारी पृथ्वी के अन्तिम वासी होंगे क्योंकि वे ही सबसे पहले पृथ्वी पर अवतरित भी हुए थे। सबसे पहले धरती पर उन्हीं का जन्म हुआ था। येलेना वराब्योवा ने कहा :

आज भी इस तरह के जीवाणुओं और कीटाणुओं की कमी नहीं है, जो गर्म पानी के जलाशयों और ख़ूब नमकीन पानी में रहते हैं। वैसे भी जीवाणु ऐसे जीव होते हैं, जो मानव के मुक़ाबले कठिन से कठिन जीवन-परिस्थितियों को भी झेलकर अपने अस्तित्त्व को सुरक्षित रखते हैं। हम आज यह कल्पना कर सकते हैं कि जब पृथ्वी पर जीवाणुओं के रूप में जीवन की शुरूआत हुई थी तो कैसी परिस्थितियाँ रही होंगी। तब न तो पेड़-पौधे ही थे और न ही दूसरी तरह की वनस्पतियाँ या जीव-जन्तु। इन जीवाणुओं से ही पृथ्वी पर जीवन की रचना हुई। इन जीवाणुओं के क्रमिक विकास से ही बाद में वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं और मानव-जीवन का विकास हुआ।

तो जीवाणु ही पृथ्वी पर लम्बे समय तक जिएँगे। लेकिन मानवजाति क्या करे? वह कहाँ जाए? जीव-वैज्ञानिक येलेना वराब्योवा ने कहा -- मंगल-ग्रह पर जाकर रहा जा सकता है... :

मंगल-ग्रह पर उसके ध्रुवीय क्षेत्र में ठोस बर्फ़ के रूप में पानी जमा है। गरमी बढ़ने पर यह पानी तरल रूप ग्रहण कर लेगा और नदियों के रूप में बहने लगेगा, तब मंगल पर भी जीवन फूट पड़ेगा। शायद मंगल ही वह जगह है, जहाँ जाकर, पृथ्वी पर जीवन की सुरक्षा के लिए ख़तरा पैदा होने पर मानवजाति अपना जीवन बचा सकती है।

लेकिन बाद में मानव को मंगल ग्रह से भी दर-बदर होना पड़ेगा यानी कहीं और जाना होगा। तब तक शायद मानवजाति को अन्तरिक्ष में उपस्थित दूसरे नक्षत्र-मंडलों की भी विस्तृत जानकारी हो जाएगी। कहीं न कहीं तो ऐसी परिस्थितियाँ होंगी ही, जहाँ जाकर आदमी रह सकेगा। बहुत से रूसी वैज्ञानिक भी अपने ब्रिटिश सहयोगियों की बातों से सहमत हैं। हाँ, वे उनके द्वारा बताई गई अवधि को कुछ संदेह की निगाह से देखते हैं। इसका कारण यह है कि पृथ्वी जिन प्रक्रियाओं से गुज़रेगी, उन पर न सिर्फ़ सूरज पर बढ़ने वाली गर्मी का असर पड़ेगा या पृथ्वी की कक्षा में होने वाले बदलावों का असर पड़ेगा, बल्कि सवाल यह भी है कि पृथ्वी की जलवायु और जीवमण्डल में उन प्रक्रियाओं की वज़ह से क्या बदलाव आएँगे। अभी से इसकी भविष्यवाणी करना बेहद कठिन है। हमारा विज्ञान आज, अभी तक इतना ज़्यादा विकसित नहीं हुआ है कि वह जीव-मंडल में आने वाले बदलावों में लगने वाले समय की भविष्यवाणी कर सके। वैसे भी बात सदियों-सहस्त्राब्दियों की नहीं, करोड़ों-अरबों वर्षों की हो रही है। (रेडियो रूस से साभार)