Friday, July 25, 2025

कमेंट काव्य के चलते एक नया प्रयोग

हिमांशु कुमार जी ने रमाशंकर विद्रोही जी की बहुत अच्छी रचना पोस्ट की है

यह है वो काव्य पोस्ट -जिसे लिखा है जनाब रमाशंकर विद्रोही साहिब ने और सोशल मीडिया पर शेयर किया हैं जानेमाने समाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार साहिब ने जो जनजागृति के मकसद से अक्सर कुछ न कुछ पोस्ट करते ही रहते हैं। उनके विचारों से अलगाव भी हो सकता है लेकिन फिर भी उनके विचार दिलचस्प तो होते ही हैं। जब उन्होंने विद्रोही साहिब की रचना पोस्ट की तो सोचा बहुत सी गहरी बातें कह रहे हैं। यूं लग रहा था जैसे भारत एक खोज को दुबारा पढ़ने का सौभाग्य मिला है। जब इस पर कमेंट करने का प्रयास किया तो बात कुछ ज़्यादा ही लंबी होती चली गई। इसके बावजूद इसे पोस्ट कर दिया। पोस्ट करते करते मन में आया इस टिप्पणो को इस रचना पर पोस्ट करने के साथ साथ ब्लॉग पर भी सहेज लिया जाए। सो यहाँ भी प्रस्तुत है। आपको यह टिप्पणी काव्य का यह प्रयोग कैसा लगा अवश्य बताएं।


इस कमाल की कविता को कविता मत कहो प्लीज़ - --!

यह तो एक नावल है शायद - --!

नहीं - -नहीं - -यह नावल भी नहीं है . ..!

यह तो एक सच्ची दास्तान है शायद- --!

नहीं --नहीं - -कोई एक सच्ची दास्ताँ भी नहीं यही तो कई दास्तानों का संकलन जैसा है . .!

नहीं यह ऐसा भी नहीं - --!

यह तो किसी ख़ास दस्तावेज़ी फिल्म जैसा है - --!

यह किसी अतीत को दर्शा रही है शायद - -----!

अरे नहीं - --!

यह अतीत को ही नहीं उससे पहले के दौर को भी दिखा रही है - ---!

उस दौर को भी जब कुछ भी नहीं था . ..!

मुझे इसमें भी भारत एक खोज की हलकी हलकी गूँज सुनाई दे रही है . ..!

मुझे महाभारत का समय भी महसूस हो रहा है . ...!

वह भी कह रहा है - .. ..!

हां. ..मैं समय हूँ . ...!

निरन्तर घूम रहा हूँ . ..!

मुझे अशोक चक्र कहो या कुछ और , ,,!

मैं वास्तव में समय का चक्र हूँ . ... !

घूम घूम कर भी---कहीं पहुँचता नहीं हूँ . ..!

शायद कोहलू के बैल का पहिया हूँ . ..!

हार हार कर भी हारता नहीं हूँ . ..!

अशोक तो जीत कर भी हार गया था . ..!

लेकिन मुझे मानने वाले हारते कहाँ हैं . ..!

मैं जीतूंगा भी किसी दिन - --!

मैं पहुंचूंगा भी कहीं पर . ..!

बहुत से विजयी लोगों के रहस्य मेरे पास हैं . ..!

बहुत से हारने वाले लोगों के आंसुओं की बाढ़ मेरे पास है . ..!

जितनी स्त्रियों के शव गुमनाम से पड़े हैं - -!

उन्हें भी ले कर आऊंगा ..!

उनकी अग्नि से बहुत से नए वीर उठेंगे....!

वे पितृसत्ता से भी अपने अपने वध का बदला लेंगें ..!

हर हत्यारे को देखा जाएगा ...!

न्याय होगा ही होगा...!

जितनी हड्डियां बिखरी पड़ी हैं . ...!

उनमें बहुत सी हड्डियां

बहुत सी अस्थियां महाऋषि दधीचि की भी हैं . ........!

दधीचि एक ही तो नहीं हुए . ...!

वैसे वह उनका बलिदान था या वध था या छल था--?

वह कई बार राजाओं के लिए वज्र बनाने के काम आया ...!

इस बार एक नहीं बहुत से वज्र बनेंगे ...!

लेकिन यह नए वज्र किसी राजा के लिए नहीं

प्रजा की सेना के लिए भी बनेंगे........!

देखना स्त्रियों के शव

कैसे संजीवनी बन कर उठेंगे..!

देखना!

इन स्त्रिओं के शव गंगा की लहरें बन कर उठेंगे..!

दुनिया के कोने कोने से आ रही हैं

बदलाहट की आवाज़ें ..!

मैंने देखा

बहुत से चेग्वेएरा नए जन्म की तैयारी कर चुके हैं . ..!

इन गुज़रे वक़्तों के

तथाकथित नायक और नायकाएँ भी

इनकी हकीकत जान चुकी हैं सब . ..!

अब कहानियां नए सिरे से लिखी जाएंगी ...!

पुराना तो अब

खुद ही अपनी बर्बादियीं की आंधी से मिट रहा है . ..!

यह है वो काव्य पोस्ट - -

Saturday, July 19, 2025

लगातार डटे हुए हैं हरनाम सिंह डल्ला अपनी टीम के साथ

 19th July 2025 at 18:15 Via WhatsApp From H S Dalla Regarding Behrampur Bet

संदेश है:  तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा .......!


खरड़
/ /बहरामपुर बेट: 19 जुलाई 2025: (मीडिया लिंक रविंद्र/ /हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

पहली जनवरी 1959 को एक फिल्म रिलीज़ हुई थी "धूल का फूल"इस फिल्म की कहानी उसी समाजिक समस्या पर आधारित थी जिसे आजकल उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता। अवैध संतान कुछ दशक पूर्व एक बहुत बड़ी समस्या हुआ करती थी। इसी विषय पर निर्माता बी आर चोपड़ा ने एक गज़ब की फिल्म बनाई थी जिसे निर्देशित किया गठा उन्हीं के भाई यश चोपड़ा ने। इसका एक दोगाना बहुत हिट हुआ था . .तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ...वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ...! जानेमाने कलाकार राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा पर फिल्माए गए इस गीत की लोकेशन दिखाई गई है एक कालेज का वार्षिक आयोजन। इस दोगाने के सवाल-जवाब/ /अन्तरे बहुत अर्थपूर्ण थे जिन्हें बहुत पसंद किया गया। बाकी गीत भी बहुत पसंद किए गए लेकिन इस गीत का तो जवाब ही नहीं था। लगातार दते हुए हैं हरनाम सिंह डल्ला 

इन गीतों को आवाज़ दी थी सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और सुरों के जादूगर मोहम्मद रफ़ी साहिब ने। गीत लिखे थे साहिर लुधियानवी साहिब ने। उनके लिखे गीत समाज के लिए एक विशेष संदेश भी छोड़ा करते गठे। इस फिल्म के गीतों में भी उन्होंने अपना संकल्प निभाया। इसी फिल्म के गीतों में एक गीत था-तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा

तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है

तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है

जिस इल्म ने इंसानों को तक़्सीम किया है

इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है

तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया

हम ने इसे हिन्दू या मुसलमान बनाया

क़ुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती

हम ने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया

जो तोड़ दे हर बंद वो तूफ़ान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा

नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है

इंसाँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है

क़ुरआन न हो जिस में वो मंदिर नहीं तेरा

गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है

तू अम्न का और सुल्ह का अरमान बनेगा

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा। 

इस गीत को सुन कर, इस गीत को पढ़ कर एक बारगी तो मज़हबी कटड़ता और धार्मिक उन्माद से नफरत होने लगती। बहुत से सवाल मन में उठने लगते। कुछ लोगों को यह गीत कम्युनिज़्म का संदेश फैलाता भी महसूस हुआ क्यूंकि साहिर लुधियानवी विचारों के तौर पर वामपंथी के तौर पर ही जाने जाते थे। उनकी नज़्म/गीत ताजमहल हो या फिर वो सुबह कभी तो आएगी - --उनका संदेश इसी विचारधारा का संदेश फैलाता ही लगता रहा। 

खैर दशकों गुज़र गए लेकिन आज भी इन गीतों का जादू कम नहीं हुआ। परिणाम यह हुआ कि आज भी कभी शिक्षा नीति को लेकर विवाद होता हौर कभी धर्म को लेकर। इन विवादों के बावजूद उन संदेशों का फैलना जारी है जिनको फैलाने में साहिर लुधियानवी साहिब भी अग्रसर रहे। 

आज के लेखक और शायर भी अब बड़े लोगों को समझाने की बजाए छोटे बच्चों को समझने समझाने का अभियान चलाने में लगे हैं। पंजाबी लेखक और पत्रकार हरनाम सिंह डल्ला आजकल  बच्चों के स्कूलों में जा जा कर इन बच्चों को बड़े दिल दिमाग वाला सच्चा इंसान बनाने में जुटे हैं। उनकी टीम भी साथ होती है और बच्चों को नई नई पुस्तकें थमाते हुए वे उन्हें ताकीद भी करते हैं कि इन पुस्तकों को पढ़ना ज़रूर है और वह भी पूरे ध्यान से। कुछ हफ़्तों के बात बच्चों की परीक्षा के मकसद से कुछ सवाल भी पूछे जाते हैं। 

अब जबकि कुछ संगठन और सियासतदान बच्चों की सोच को संकीर्ण बनाने में लगे हैं उस दौर में हरनाम सिंह डल्ला और उनकी टीम बच्चों की मानसिकता को खुले दिमाग वाला बनाने में जुटी है। यदि आप को उनका प्रयास अच्छा लगा हो तो आप भी उनसे जुड़ सकते हैं। उनकी टीम में साहित्य सभा रजिस्टर्ड बहरामपुर बेट के प्रधान कुलविंदर सिंह और कुछ दुसरे लोग भी शामिल हैं। 

इस टीम के सक्रिय सदस्त हरनाम सिंह डल्ला का मोबाईल फोन नंबर है: +91 94177 73283