19th July 2025 at 18:15 Via WhatsApp From H S Dalla Regarding Behrampur Bet
संदेश है: तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा .......!
खरड़/ /बहरामपुर बेट: 19 जुलाई 2025: (मीडिया लिंक रविंद्र/ /हिंदी स्क्रीन डेस्क)::
पहली जनवरी 1959 को एक फिल्म रिलीज़ हुई थी "धूल का फूल"इस फिल्म की कहानी उसी समाजिक समस्या पर आधारित थी जिसे आजकल उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता। अवैध संतान कुछ दशक पूर्व एक बहुत बड़ी समस्या हुआ करती थी। इसी विषय पर निर्माता बी आर चोपड़ा ने एक गज़ब की फिल्म बनाई थी जिसे निर्देशित किया गठा उन्हीं के भाई यश चोपड़ा ने। इसका एक दोगाना बहुत हिट हुआ था . .तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ...वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ...! जानेमाने कलाकार राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा पर फिल्माए गए इस गीत की लोकेशन दिखाई गई है एक कालेज का वार्षिक आयोजन। इस दोगाने के सवाल-जवाब/ /अन्तरे बहुत अर्थपूर्ण थे जिन्हें बहुत पसंद किया गया। बाकी गीत भी बहुत पसंद किए गए लेकिन इस गीत का तो जवाब ही नहीं था। लगातार दते हुए हैं हरनाम सिंह डल्ला
इन गीतों को आवाज़ दी थी सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और सुरों के जादूगर मोहम्मद रफ़ी साहिब ने। गीत लिखे थे साहिर लुधियानवी साहिब ने। उनके लिखे गीत समाज के लिए एक विशेष संदेश भी छोड़ा करते गठे। इस फिल्म के गीतों में भी उन्होंने अपना संकल्प निभाया। इसी फिल्म के गीतों में एक गीत था-तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है
तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है
जिस इल्म ने इंसानों को तक़्सीम किया है
इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है
तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
हम ने इसे हिन्दू या मुसलमान बनाया
क़ुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती
हम ने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया
जो तोड़ दे हर बंद वो तूफ़ान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा
नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है
इंसाँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है
क़ुरआन न हो जिस में वो मंदिर नहीं तेरा
गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है
तू अम्न का और सुल्ह का अरमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।
इस गीत को सुन कर, इस गीत को पढ़ कर एक बारगी तो मज़हबी कटड़ता और धार्मिक उन्माद से नफरत होने लगती। बहुत से सवाल मन में उठने लगते। कुछ लोगों को यह गीत कम्युनिज़्म का संदेश फैलाता भी महसूस हुआ क्यूंकि साहिर लुधियानवी विचारों के तौर पर वामपंथी के तौर पर ही जाने जाते थे। उनकी नज़्म/गीत ताजमहल हो या फिर वो सुबह कभी तो आएगी - --उनका संदेश इसी विचारधारा का संदेश फैलाता ही लगता रहा।
खैर दशकों गुज़र गए लेकिन आज भी इन गीतों का जादू कम नहीं हुआ। परिणाम यह हुआ कि आज भी कभी शिक्षा नीति को लेकर विवाद होता हौर कभी धर्म को लेकर। इन विवादों के बावजूद उन संदेशों का फैलना जारी है जिनको फैलाने में साहिर लुधियानवी साहिब भी अग्रसर रहे।
आज के लेखक और शायर भी अब बड़े लोगों को समझाने की बजाए छोटे बच्चों को समझने समझाने का अभियान चलाने में लगे हैं। पंजाबी लेखक और पत्रकार हरनाम सिंह डल्ला आजकल बच्चों के स्कूलों में जा जा कर इन बच्चों को बड़े दिल दिमाग वाला सच्चा इंसान बनाने में जुटे हैं। उनकी टीम भी साथ होती है और बच्चों को नई नई पुस्तकें थमाते हुए वे उन्हें ताकीद भी करते हैं कि इन पुस्तकों को पढ़ना ज़रूर है और वह भी पूरे ध्यान से। कुछ हफ़्तों के बात बच्चों की परीक्षा के मकसद से कुछ सवाल भी पूछे जाते हैं।
अब जबकि कुछ संगठन और सियासतदान बच्चों की सोच को संकीर्ण बनाने में लगे हैं उस दौर में हरनाम सिंह डल्ला और उनकी टीम बच्चों की मानसिकता को खुले दिमाग वाला बनाने में जुटी है। यदि आप को उनका प्रयास अच्छा लगा हो तो आप भी उनसे जुड़ सकते हैं। उनकी टीम में साहित्य सभा रजिस्टर्ड बहरामपुर बेट के प्रधान कुलविंदर सिंह और कुछ दुसरे लोग भी शामिल हैं।
इस टीम के सक्रिय सदस्त हरनाम सिंह डल्ला का मोबाईल फोन नंबर है: +91 94177 73283