हिंदी में गज़ल के रंग को गहरा करने में जुटी शायरा
कम से कम 10 पुस्तकों की रचेता जिनमें 5 दोहा संग्रह, 1 कविता संग्रह, 1 ग़ज़ल संग्रह, 1 लघुकथा संग्रह,1 उपन्यास, 1छंद संग्रह इत्यादि शामिल हैं। इन दस पुस्तकों में उनकी रचनात्मक क्षमता का विशेष रंग देखने को मिलता है। भिलाई छत्तीसगढ़ में रहते हुए भी पंजाब और पंजाबी से भी शुचि भवि का पूरा लगाव है। पंजाब के साहित्य प्रेमी जब भी याद करें तो शुचि भवि इतनी दूरी तय करके पंजाब में भी आ जाती हैं। उनकी शायरी में जहां ख्यालों की उड़ान कमाल की होती है वहीं गज़ल की व्याकरण और तोल का भी पूरा ध्यान रखा जाता है।
इस मुहारत का सारा क्रेडिट वह अपने उस्ताद शायर जनाब सागर सियालकोटी साहिब को देती हैं और बताती हैं कि उनकी गज़ल साधना में सागर साहिब हर कदम पर मार्गदर्शन देते रहे हैं। अब भी उनका आशीर्वाद हमेशा साथ रहता है।
इस बार वह नवरंग लिटरेरी सोसाइटी की तरफ से विशेष तौर पर आयोजित एक कार्यक्रम में लुधियाना आ रही हैं 21 अक्टूबर 2023 को। इसका विवरण अलग पोस्ट में है। मंच पर भी शुचि भवि का अंदाज़ बेहद यादगारी होता है।
उन्हें पहली बार सुना देखा था कई बरस पहले लुधियाना के बहुत ही पुराने स्कूल वायली मेमोरियल स्कूल में। अंधेरा होने को था लेकिन श्रोता बार बार उनसे एक और*एक और रचना की गुजारिश किए जा रहे थे।फ़िलहाल आप यहां पढिए सुश्री शुचि भवि की एक नई गज़ल। जो उन्होंने हमें हाल ही में प्रकाशनार्थ भेजी है। हम आपके सामने उनकी और रचनाएं भी जल्द लाएंगे। --रेक्टर कथूरिया
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शायरा शुचि भवि |
कहाँ बदरी कि मनमानी टिकेगी चाँद आते ही
चली है चाँदनी इठला के चंदा के बुलाते ही
नज़र उसने झुका ली क्यों ग़ज़ल ये गुनगुनाते ही
चमक रुख़सार पर आयी ये किसका नाम आते ही
ज़माने भर के झूठों ने जलायीं थी मशालें जो
बुझीं सारी, हमारे सच की इक शम्अ के जलाते ही
मुझे अफ़सोस है इस बात का लेकिन है मजबूरी
कई चेहरे उतर जाएंगे मेरे मुस्कुराते ही
वफ़ाएँ जो नहीं समझा,नहीं समझा जो अश्कों को
उसे क्यूँ ढूँढता है दिल ज़रा सा दूर जाते ही
था बेशक तंग थोड़ा जो, हुआ अब क़ीमती बेहद
वो तहख़ाना मेरे दिल का, मकीं उसको बनाते ही
तेरी तस्वीर का भी आसरा अब है नहीं 'भवि' को
झलक जाऊँगी मैं तुझमें, तेरा चेहरा बनाते ही
---*शुचि 'भवि'
भिलाई, छत्तीसगढ़
नवरंग लिटरेरी सोसाइटी की तरफ से विशेष आयोजन का विवरण अलग पोस्ट में यहाँ क्लिक कीजिए