Tuesday, May 5, 2015

आचरण और प्रवचन एक जैसा ही होना चाहिए

वाटसऐप पर पंजाब स्क्रीन ग्रुप में राजीव मल्होत्रा की एक मर्मस्पर्शी पोस्ट
लुधियाना: 5 मई 2015: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन):  
राजीव मल्होत्रा जानेमाने समाज सेवी हैं। कभी बहुत पहले उनसे मुलाकात एक धार्मिक आयोजन में हुई थी। शायद 18-20 वर्ष पूर्व।  उन दिनों विशाल बर्फ पर तांडव डांस करने वाले कलाकारों को उन्होंने जनता के सामने लाने का प्रशंसनीय कार्य किया था। फिर उनसे नज़दीकियां बड़ी जब मेरा बेटा थैलासीमिया के कारण अस्पताल में था। उन दिनों आज की  नहीं हुआ करते थे। हर परिवार को थैलेसीमिया की लड़ाई अकेले ही लड़नी पद रही थी। राजीव जी अपने साथियों सहित मेरे बेटे के लिए खून दान करने पहुंचे थे। रात्रि का वक़्त। अचानक डाक्टरों ने बताया कि बीटा नहीं रहा। गहरे सदमे की उस खबर के बाद मुझे और परिवार के साथ साथ राजीव जी ने साडी स्थिति को संभाला। अस्पताल के बिल से लेकर शमशान घाट तक उन्होंने मुझे एक पल के लिए भीं अकेला नहीं होने दिया
आजकल वह सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय हैं। कभी कभी उनके बेबाक विचारों से सहमति नहीं भी होती लेकिन इसके बावजूद हमारा प्रेम कभी खटास में नहीं बदला। उनकी एक पोस्ट आज ही सामने आई जिसे उन्होंने वाटसऐप पर बने पंजाब स्क्रीन ग्रुप में पोस्ट किया है। 
आप भी इस पोस्ट के मर्म से वाकिफ हो सकें इसलिए उसे यहाँ भी पोस्ट किया जा रहा है।  
 एक नगर मे रहने वाले एक पंडित जी की ख्याति दूर-दूर तक थी। पास ही के गाँव मे स्थित मंदिर के पुजारी का आकस्मिक निधन होने की वजह से, उन्हें वहाँ का पुजारी नियुक्त किया गया था।
एक बार वे अपने गंतव्य की और जाने के लिए बस मे चढ़े, उन्होंने कंडक्टर को किराए के रुपये दिए और सीट पर जाकर बैठ गए।

कंडक्टर ने जब किराया काटकर उन्हे रुपये वापस दिए तो पंडित जी ने पाया की कंडक्टर ने दस रुपये ज्यादा दे दिए है। पंडित जी ने सोचा कि थोड़ी देर बाद कंडक्टर को रुपये वापस कर दूँगा।
कुछ देर बाद मन मे विचार आया की बेवजह दस रुपये जैसी मामूली रकम को लेकर परेशान हो रहे है, आखिर ये बस कंपनी वाले भी तो लाखों कमाते है, बेहतर है इन रूपयो को भगवान की भेंट समझकर अपने पास ही रख लिया जाए। वह इनका सदुपयोग ही करेंगे।

मन मे चल रहे विचार के बीच उनका गंतव्य स्थल आ गया बस से उतरते ही उनके कदम अचानक ठिठके, उन्होंने जेब मे हाथ डाला और दस का नोट निकाल कर कंडक्टर को देते हुए कहा, "भाई तुमने मुझे किराया काटने के बाद भी दस रुपये ज्यादा दे दिए थे।"
  
कंडक्टर मुस्कराते हुए बोला, "क्या आप ही गाँव के मंदिर के नए पुजारी है?"
पंडित जी के हामी भरने पर कंडक्टर बोला, "मेरे मन मे कई दिनों से आपके प्रवचन सुनने की इच्छा थी, आपको बस मे देखा तो ख्याल आया कि चलो देखते है कि मैं अगर ज्यादा पैसे दूँ तो आप क्या करते हो! अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके प्रवचन जैसा ही आपका आचरण है। जिससे सभी को सीख लेनी चाहिए" बोलते हुए, कंडक्टर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी।

पंडित जी बस से उतरकर पसीना पसीना थे। उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान का आभार व्यक्त किया, "प्रभु तेरा लाख लाख शुक्र है जो तूने मुझे बचा लिया, मैने तो दस रुपये के लालच मे तेरी शिक्षाओ की बोली लगा दी थी। पर तूने सही समय पर मुझे सम्भलने का अवसर दे दिया।"

कभी कभी हम भी तुच्छ से प्रलोभन में, अपने जीवन भर की चरित्र पूंजी दांव पर लगा देते है।[5/5/2015, 09:34] Rajiv Malhotra:

1 comment:

  1. Rector Kathuria ji aap aur aapki posts mujhe sadaiv hi akarshit karti hain ........ aur Rajiv Malhotra ji ki is post ko to sabhi ko padhna chahiye isliye apni wall par share kar rahi hoon ......... dhnywad Tag ke liye

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