Friday, November 5, 2021

कातिलों के हाथ में देकर देश...//-रीतू कलसी

क्यों नही उठती इतने शोर में भी यह भारत माता 

किसान शवों की तस्वीर बोलता भारत टीवी के पेज से साभार 

रीतू कलसी प्रोफेशन से पत्रकार है और दिल से शायरा। बहुत ही बेबाकी से लिखने वाली पत्रकार और लिहाज़ शायरी में नहीं करती। उसकी कब्रों और ऋüपोर्टों में शायरी की झलक मिल जाती है और शायरी में खबरों की। मीडिया की डयूटी ने कभी जालंधर, कभी फ़िरोज़पुर, कभी लुधियाना, कभी नोयडा और कभी इंदौर। इस तरह डयूटी ने घाट घाट का पानी पिलवा दिया और कलम के बहाने बहुत सी जगहों के लोग देख लिए। इन रंगों से इंद्रधनुष तो  लेकिन अब उस आठवें रंग की रंग की झलक भी मिलने लगी है जिसकी तलाश साहित्य की दुनिया बानो पाकिस्तान की लेखिका बानो कुदसिया ने भी की थीऔर भी बहुत से लोग कर रहे हैं। देखिए इस काव्य रचना की एक झलक। --रेक्टर कथूरिया 

कातिलों के हाथ में देकर देश 

कर रहे हैं हम न्याय की बातें 

पत्रकारिता और शायरी का 
कॉम्बिनेशन है रीतू कलसी 
जिस देश के नेता करते हों बातें

लठ मारने की किसानों को।

ऐसे देश में न्याय की बातें

जहां गाड़ियों के नीचे रौंदे जाते हों अन्न दाता।

एसी कमरों में बैठ कर खाते हों खाना

इन्हीं अन्न दाता के हाथ से पैदा किए हुए को

लगाते साथ में ठहाके बिना शर्म कर।

तुमने कितने मारे

मैंने इतने मारे करते होंगे बातें

जैसे खेल रहें हों कोई खेल 

लगाते जोर-जोर से नारे 

भारत माता की जय।

क्यों नही उठती इतने शोर में भी यह भारत माता 

क्या बहरी हुई पड़ी है 

क्यों नही तड़प रही, या तड़पन को छुपा रही है।

उठो कुछ तो करो अब फैसले की घड़ी है 

अपने साथ उठाओ अपने अवाम को भी। 

सबक़ सिखाने की घड़ी आ पहुंची है।

बहुत बह गया है खून अपनों का 

कभी हिन्दू-मुस्लिम करते 

कभी अमीर-गरीब करते

कभी सवर्ण-दलित करते।

बस अब बहुत हुआ 

एक साथ सबको अब होना है

न्याय की मशाल को खुद ही उठाना है

                          -रीतू कलसी

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