Friday, March 12, 2021

जन-आवाज़ बनी शायरा अनामिका को साहित्य अकादमी पुरस्कार

 नारीवाद को बुलंद आवाज़ में कहती है अनामिका 


नई दिल्ली//लुधियाना12 मार्च 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क):: 
इस बार साहित्य के आम पाठक भी खुश हैं और कलमकार भी। आखिर साहित्य अकादमी पुरस्कार 2020 की घोषणा भी हो ही गयी है। हिंदी काव्य की बुलंद आवाज़ कवयित्री अनामिका को उनके कविता संग्रह ‘टोकरी में दिगंत, थेरी गाथा: 2014’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार 2020 दिया गया है। इस कविता संग्रह में अनामिका ने बुद्ध की समकालीन महिला भिक्षुओं पर लंबी कविता लिखी है। महिला भिक्षुओं  के दर्द और अहसास को पहचान  नहीं था। इस संग्रह में उन भिक्षुणियों के संघर्ष का चित्रण है। अनामिका वही शायरा है जो तीन दश्कों से भी अधिक समय से निरंतर लिखती आ रही है।  उसकी शायरी में उस गहरे दुर्ख़ और दर्द की अनुभूति को अभिव्यक्ति दी गई होती है जो दुःख दर्द सभी को तो नज़र भी नहीं आता। स्त्री संवेदना पर उसकी कलम अक्सर कमाल करती है।

प्रेम के लिए फांसी (ऑन ऑनर किलिंग) / अनामिका


मीरारानी तुम तो फिर भी खुशकिस्मत थीं,

तुम्हे जहर का प्याला जिसने भी भेजा,

वह भाई तुम्हारा नहीं था,


भाई भी भेज रहे हैं इन दिनों

जहर के प्याले!


कान्हा जी जहर से बचा भी लें,

कहर से बचायेंगे कैसे!


दिल टूटने की दवा

मियाँ लुकमान अली के पास भी तो नहीं होती!


भाई ने जो भेजा होता

प्याला जहर का,

तुम भी मीराबाई डंके की चोट पर

हंसकर कैसे ज़ाहिर करतीं कि

साथ तुम्हारे हुआ क्या!


"राणा जी ने भेजा विष का प्याला"

कह पाना फिर भी आसान था,


"भैया ने भेजा"- ये कहते हुए

जीभ कटती!


कि याद आते वे झूले जो उसने झुलाए थे

बचपन में,

स्मृतियाँ कशमकश मचातीं;

ठगे से खड़े रहते

राह रोककर


सामा-चकवा और बजरी-गोधन के सब गीत :

"राजा भैया चल ले अहेरिया,

रानी बहिनी देली आसीस हो न,

भैया के सिर सोहे पगड़ी,

भौजी के सिर सेंदुर हो न..."


हंसकर तुम यही सोचतीं-

भैया को इस बार

मेरा ही आखेट करने की सूझी?

स्मृतियाँ उसके लिए क्या नहीं थीं?


स्नेह, सम्पदा, धीरज-सहिष्णुता

क्यों मेरे ही हिस्से आई,


क्यों बाबा ने

ये उसके नाम नहीं लिखीं?

                 --~अनामिका 

अनामिका को पुरस्कार मिलने से हुआ प्रगतिशील काव्य का सम्मान

  नारीवादी लेखिकाओं में भी सम्मान की घोषणा बाद खुशी की लहर 


नई दिल्ली//लुधियाना: 12 मार्च 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

अनामिका को पुरस्कार मिलने की घोषणा होते ही हर तरफ प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। लेखिकाओं ने एक दुसरे को बधाईयां दीं। वास्तव में अनामिका का सम्मान उस कलम का सम्मान है जिसने मानवीय संवेदना को पहचाना, जन के दुख्ख दर्द को पहचाना, नारीवाद की आवाज़ बुलंद करते हुए नए हिम्मतवर प्रयोग भी किये। यह सम्मान बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था।  बावजूद अब देरी से ही सही लेकिन बहुत अच्छा एलान आया है। पुरस्कार की खबर आप हमारी अलग पोस्ट में भी पढ़ सकते हैं।  

अनामिका जी के काम और साहित्य साधना का संक्षिप्त विवरण देते हुए अपरा सिन्हा बताती हैं: मुजफ्फरपुर की अनामिका को साहित्य एकेडमी पुरस्कार मिलना केवल बिहार के लिए नही बल्कि देश के लिए गौरव की बात है क्योंकि वह पहली हिंदी कवयित्री है जिन्हे यह अवार्ड मिला। यह अवार्ड तो महादेवी वर्मा को भी नही मिला था। अनामिका हमारे परिवार से जुड़ी रही हैं। उनके पिता श्यामानंदन किशोर खुद नामी लेखक थे। वे बिहार विश्विद्यालय के कुलपति रहे। अनामिका आंटी ने बहुत से अनुवाद भी किए हैं कई उपन्यास भी लिखे। उन्हें भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार भी मिल चुका है। गत वर्ष उनके घर गई तो मुझे बहुत प्यार और स्नेह दिया। इसी तरह बहुत से अन्य लेखकों और लेखिकाओं ने अनामिका  अपनी यादों को साँझा किया है। सभा सभाओं में यही चर्चा हो रही है और सोशल मीडिया पर भी। 

इस सम्मान की मुबारक देने वाले खुले मन से बधाईयां दे रहे हैं। ख़ुशी की एक ऐसी लहर जो बहुत देर बाद नज़र। 

छल का शिकार होने के बाद  Pexels-Photo-by RODNAE Productions


एक काव्य देखिये 

उससे छल करने में

कौन सी विचक्षणता

जिसने विश्वास कर लिया,

उसे मार देने में कौन सी बहादुरी

जो गोदी में आकर सो ही गया।

           ~अनामिका 

यह आखिरी लघु पोस्ट लक्ष्मी शर्मा जी के प्रोफ़ाइल से साभार 

Wednesday, March 10, 2021

क्या मोहब्बत अकेलेपन से निजात दिलवा सकती है?

अमृता प्रीतम का कहना भी इस संबंध में ध्यान से सुनिए 


इंटरनेट/सोशल मीडिया//लुधियाना: 10 मार्च 2021: (हिंदी स्क्रीन)::

जानीमानी शायरा अमृता प्रीतम की बातों से सहमति हो यह ज़रूरी भी नहीं और अमृता जी  ने कभी इसकी अपेक्षा भी नहीं की होगी। हमारी सहमति की अमृता को कभी ज़रूरत भी नहीं रही। उन्होंने जीवन के आरम्भिक दौर में ही बेबाकी और हिम्मत भी जुटा ली थी और अकेले चलना भी सीख लिया था। 
शादी के बाद साहिर लुधियानवी साहिब के साथ जो अंतरंगता महसूस की वह स्थाई तौर पर उनके जीवन का हिस्सा तो कभी न बन सकी फिर भी यह इश्क उनके जीवन की उपलब्धि ज़रूर रहा। बिलकुल उसी तरह जैसे बिन बरसी काली घटा ज़िंदगी की तपती दोपहरी में यादगारी पल छोड़ जाती है जो उम्र भर राहत देते रहते हैं। साहिर साहिब के साथ विवाह की बात एक ऐसी शादी बन के रही जो हकीकतों के बहुत नज़दीक हो कर भी कभी हकीकत न बन सकी। शायद सही है कि जोड़ियां ऊपर वाला तय करता है। जीवन में मिली असफलताओं, नाकामियों और निराशाओं के अंधेरों में इमरोज़ का आना अमृता के लिए एक रूहानी ख़ुशी जैसा रहा। काफी देर उसने खुद को अमृता प्रीतम की बजाए अमृता इमरोज़ भी लिखा। बहुत से लोग इसे अभी भी सहन नहीं कर पाते। भूल जाते हैं की अमृता को भी अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने का हक़ था। आप कौन होते हैं इसमें एन्क्रोचमेंट करने वाले! अमृता जी की ज़िंदगी में इमरोज़ के आने  पर एतराज़ भी हुए, बुरा भला भी कहा गया और  लोगों ने अमृता जी को अमृता इमरोज़ के तौर पर नहीं अमृता प्रीतम के तौर पर ही याद किया। इसकी चर्चा भी हुई लेकिन अमृता मैडम ने तो जो ठान लिया वही किया। ज़िंदगी भर यही असूल रहा। शायद इस पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। अरुता प्रीतम को मिलना किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं समझा जाता था। लोग दूर दूर से उनके घर के-25 हौज़खास में जाते, कुछ पल रुकते और बहुत सा स्कून  ले कर लौटते।  यह पल उनकी जीवन भर की ख़ास उपलब्धियों में शामिल रहते। 
इसी बीच साहिर लुधियानवी साहिब ने भी जो बहुत ही गहरे गीत लिखे वे इसी तरह की उदासी भरी कटु अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करते हुए ही लिखे। इन्हीं में से एक गीत था: 

महफ़िल से उठ जानेवालों, 

तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम 

तुम आबाद घरों के वासी, 

मैं आवारा और बदनाम 

मेरे साथी, मेरे साथी, 

मेरे साथी खाली जाम...... 

बाद में यही गीत फिल्म दूज का चांद में भी शामिल हुआ। 

इसका संगीत तैयार  किया था रौशन साहिब ने और इसे आवाज़ दी थी मोहम्मद रफी साहिब ने। इस गीत में भी उसी अकेलेपन की तरफ इशारा किया गया है जो मोहब्बत करने वालों को ही मिला करती है। 

अमृता प्रीतम की रचनाओं में भी इसी अकेलेपन का अहसास होता है। जब उसे अधिकतर लोग गालियों जैसी भाषा में ही सम्बोधन और याद किया करते थे उस दौर में जानेमाने कहानीकार कुलवंत सिंह विर्क की तरफ से स्नेह और सम्मान में मिली सौगात ज़ख्मों पर मरहम जैसी थी। अमृता जी ने कहा भी है शायद कहीं कि लोग मुझे जी भर कर गालियां दे क्र भी रुला नहीं पाते लेकिन विर्क मुझे अपने अच्छेपन से रुला देते हैं। उनदिनों पंजाब के बुद्धिजीवी, पत्रकार और खास कर एक स्थापित अख़बार अमृता के पीछे पड़े थे। उन दिनों विर्क की सौगात का मिलना ख़ास बात। थी।  वोह भजन जैसा बहुत ही लोकप्रिय गीत है न-जैसे सूरज की गर्मी में तपते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया! बस उसी तरह के अहसास की अनुभूति कराती हुई यह सौगात अमृता प्रीतम को हमेशां याद रहीं। उन्होंने अपने अंदाज़ से ही जीवन जिया। लेखन में उनके अनुशासन की बातें तो अमिया कुंवर जी ने भी बहुत ही नज़दीक हो कर देखीं। 

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उतरावों चढ़ावों से भरी हुई ज़िंदगी में अमृता जी ने कब और कैसे इस तरह का साहित्य लिखा होगा सचमुच एक करिश्मे जैसी बात है। हम लोग तो ज़रा ज़रा सी बात पर बेचैन हो कर आपा खो बैठते हैं। अमृता की रचनाएं पढ़ते हुए यूं लगता जैसे स्कून की बरसात हो रही हो। इस तरह लगता जैसे हम बहुत ऊंचा उठ गए हों। अमृता का साहित्य एक ऐसा पर्यावरण आसपास बना देता है कि उसमें हम किसी उड़नखटोले में बैठा महसूस करते हैं।  अपने जीवन की मानसिकता के स्तर से कुछ ऊंचाई पर उठे हुए। उस सुरताल के ज़रा सा टूटते ही हम फिर आम जैसी ज़िंदगी की परेशानियों में घिर जाते क्यूंकि वह ऊंचाई हमारी उपलब्धि नहीं होती बल्कि अमृता प्रीतम से उधर ली हुई ऊंचाई होती है। 

लेकिन इस के साथ ही एक हकीकत यह भी है कि अमृता प्रीतम को पढ़ने के बाद दिल और दिमाग में जज़्बातों के तूफ़ान न उठें यह हो ही नहीं सकता। अमृता प्रीतम को पढ़ने के बाद शायद आपको पहली बार खुद से प्रेम होने का आभास हो। पहली बार शायद आपको लगे कि इस सिस्टम और समाज को बदलना ज़रूरी है। हो सकता है पहली बार आप को आपके ही अंतर्मन में बगावत की सुर सुनाई दे। हो सकता है पहली बार आपको  लगे कि आप खुद के रूबरू हो रहे हैं। उस रुबरू के दौरान खुद ही खुद से कई तरह के सवाल भी कर सकते हैं। ज़्यादातर यह सवाल मोहब्बत को ले कर होते या बंदिशों को लेकर होते। धर्मकर्म और लाईफस्टाईल के मुद्दे भी उठते हैं। बहुत से लोगों को अमृता प्रीतम का कटे हुए बालों वाला स्टाईल उम्र भर अखरता रहा। कइयों को अमृता जी का सिगरेट और शराब पीना भी बेहद बुरा लगा। जून-1984 और नवंबर-1984 के बाद तो पंजाब के बहुत से लोगों को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ अमृता प्रीतम जी की पुराणी दोस्ती भी खटकती रही। उन पर कविताएं भी लिखीं गईं कि बुल्ले शाह को आवाज़ लगा कर पुकारने वाली अब दिल्ली में इतना कुछः हुआ देख कर भी चुप्प कयूं रही? शायद ये विवाद अब हमेशां बने  क्यूंकि  शख्सियत ही  दरम्यान नहीं रही। 

मोहब्बत पर एक टवीट सामने आया है। टविटर पर अमृता के नाम से ही उसके कुछ चाहने वालों ने शायद एक प्रोफाईल बना रखा है। इस टवीट में दर्ज है:इंसान अपने अकेलेपन से निजात पाने के लिए मुहब्बत करता है, और मुहब्बत इस बात की तस्दीक करती है कि उसका अकेलापन अब ताउम्र कायम रहेगा। इन शब्दों में छिपी हकीकत और गहराई बहुत ही सूक्ष्मता से दिल में उतरती है और उसके बाद दिमाग को चढ़ जाती है। उस वक़्त मोहब्बत के इतने पहलू दिमाग में आने लगते हैं कि इंसान मोहब्बत के रंगों से ही चकरा जाता है। कुल मिला कर आज की पीढ़ी को अमृता जी की अधिक से अधिक कताबें पढ़नी चाहियें। इन नावलों कहानियों के पात्र आज भी आपको अपने आसपास घुमते और सक्रिय मिलेंगे। अजीब इतफ़ाक़ है की वक़्त ने उनकी रिहायश के-25, हौज़खास का अस्तित्व भी नहीं रहने दिया। उनके चाहनेवालों ने उसे  के तौर पर  कोई ज़ोरदार प्रयास भी किया।  अमृता जी  उनकी यादगार। 

प्रस्तुति:रेक्टर कथूरिया 

Sunday, March 7, 2021

नारी मन की थाह पाने का प्रयास था महिला काव्य मंच का आयोजन

एक्सटेंशन लायब्रेरी में हुआ महिलाओं का विशेष शायरी आयोजन 

लुधियाना
: 7 मार्च 2021: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::
नारी के हुसन और प्रेम को लेकर अगर पुरुष अक्सर लालायित रहा है तो शायद प्रकृति भी यही चाहती है। प्रेम की इन सदियों पुरानी कहानियों में निरंतर दोहराव जारी है लेकिन फिर भी इसका नयापन कायम है। ये किस्से ये कहानियां कभी पुराने नहीं हो सके। इसे प्रकृति और प्रेम का करिश्मा ही कहा जा सकता है। हर युग में प्रेम में पड़ने वाले युवाओं को यही महसुस होता है कि शायद उन्हीं का प्रेम ही नया है। शायद पहली बार उन्होंने ही प्रेम किया है। जो लोग जिस्म तक ठहर जाते हैं उन्हें इसकी गहराई का भान कभी नहीं हो पाता।  जो लोग तन से आगे जा कर मन तक उतरते हैं, फिर दिल तक पहुँचते हैं और उसके बाद अंतरात्मा का रास्ता तलाश कर लेते हैं उन्हीं को अर्धनारीश्वर के रहस्यों का पता चलना शुरू होता है। 
नारी को अर्धांगनी कहना आसान लग सकता है लेकिन इस आधे अंग के हर दर्द और हर अहसास को महसूस करना जीवन भर की साधना भी हो सकती है। गृहस्थ आश्रम में यही सच्ची भावना है जो मोक्ष तक ले जाती है। कुंडलिनी जागरण क्या होता है इसी से पता चलने के दरवाज़े खुलने लगते हैं। महादेव क्यूं महादेव कहे जाते हैं इसकी अनुभूति होनी शुरू होती है। आदियोगी ने क्या समझाया था इसका विवरण बिना किताबों को पढ़े मिलना शुरू हो जाता है। गृहस्थ को त्यागने वाले जब दुनिया को एक परिवार मानने की बातें करते हैं तो उनकी बातों पर शक होना शुरू हो जाता है। गृहस्थ में ही भगवान दीखनेके चमत्कार प्रेम से ही सम्भव हैं। 
कहते हैं कपड़ा सीने वाली सूई कहाँ राखी है इसका पता घर की महिला को होगा। नमक मिर्च कहां पड़ा है इसका पता भी उसे होगा। ज़रूरी कागज़ात कहाँ रखे हैं इसकी संभाल भी वही करती है। कब किसके यहां आना जाना है इसका पता भी उसी को होगा लेकिन इन सारे झमेलों में उसकी जगह कहां है यह पूछने पर उसकी आंखों में शायद आंसू आ जाएँ। वह बता नहीं पायेगी। 
जहां अपने मायके और शहर के साथ साथ सभी कुछ यहां तक कि सारी दुनिया छोड़ कर किसी बेगाने परिवार को अपना मान कर रहने आ जाती है तो यह घर सारी उम्र उसका नहीं हो पाता। उसके पति का हो सकता है, उसके बच्चों का हो सकता है, उसके परिवार का हो सकता है लेकिन उसका नहीं हो सकता। इसी दर्द की बात हुई पंजाब यूनिवर्सिटी के रीजनल सेंटर की एक्सटेंशन लाईब्रेरी में हुए आयोजन के दौरान। यह आयोजन महिला काव्य मंच का था। महिलाओं का था। शायरी का था। 
पूंजीवाद के इस दौर में नारी को एक बाजार की चीज़ बना दिया गया। टायर बेचने हों तो भी नारी की चर्चा, परफ्यूम बेचना हो तो भी नारी की चर्चा अर्थात हर मामले में नारी देह को एक व्यापर बना दिया गया है। इस अन्याय और इस दर्द की चर्चा तो अब हर रोज़ करनी पड़ेगी। पूरे वर्ष में केवल एक महिला दिवस काफी नहीं है। हमें पूरा वर्ष हर रोज़ नारी पर हो रहे हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करनी होगी। 
नारी के स्वतंत्र अस्तित्व की चर्चा करने वालों के इस सारे आयोजन के संचालन में डाक्टर बबीता जैन, प्रिंसिपल नरिंदर कौर संधु, प्रिंसिपल मनप्रीत कौर, पंजाब हरियाणा और चंडीगढ़ की प्रभारी-श्रीमती शारदा मित्तल, ट्राईसिटी चंडीगढ़ की अध्यक्ष-राशि श्रीवास्तव, कानून विभाग की समन्वयक-डा. आरती पुरी, पंजाब इकाई की प्रधान-डा. पूनम गुप्ता, और उनके साथ साथ समाज के बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं बेनू सतीश कान्त, छाया शर्मा, एकता पूजा शर्मा, नीलू बग्गा लुधियानवी बहुत ही मौन और गंभीर भूमिका अदा करती रहीं। पंजाब यूनिवर्सिटी रीजनल सेंटर के केंद्रीय निदेशक डा. रवि इंद्र सिंह आयोजन के अंत तक सभी को बहुत ही ध्यान से सुनते रहे। उन्होंने अपने गहन गंभीर विचार भी रखे। 
शायरी के दौर में जहां छात्राओं ने कमाल की रचनाएँ रखीं वहीं बड़ी उम्र में कदम रख चुकी लेखिकाओं ने भी अपने दिल की बातें कहीं। कार्तिका सिंह की काव्य रचना गौरी लंकेश को समर्पित रही जिस  तालियां बटोरी। रीता मक्क्ड़ ने बहुत ही खूबसूरती से नारी के अधिकारों की बात कही जो उसे सारी उम्र नहीं मिल पाते। प्रिंसिपल मनप्रीत कौर ने नारी की चर्चा करते हुए छाया अर्थात परछाईं के महत्व को भी समझाया और कैफ़ी आज़मी साहिब के शेयरों के ज़रिये भी नारी के मन की थाह समझने का प्रयास किया। 
शायरी के आयोजनों में अपना अलग स्थान बनाने वाली जसप्रीत कौर फलक ने अपने अलग से अणदाय में अपनी मौजूदगी का अहसास कराया। 
महिला काव्य मंच के इस प्रोग्राम का यह यादगारी आयोजन पंजाब यूनिवर्सिटी रीजनल सेंटर की  एक्सटेंशन लाइब्रेरी के एनी बसंत हाल में किया गया।  अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में पंजाब यूनिवर्सिटी रीजनल सेंटर का यह सक्रिय सहयोग वास्तव में नारी शक्ति और नारी गरिमा को सैल्यूट करने जैसा ही था। गौरतलब है कि इसके आयोजक   पुरुष अर्थात नरेश नाज़ साहिब ने की और इसकी बागडोर महिलाओं को संभाल दी। आजकल यह मंच अक्सर कोई न कोई आयोजन देश के  भागों  में करता ही रहता है। पंजाब और चंडीगढ़ में इसकी सक्रियता तेज़ी से बढ़ी है। इसका पूरा विवरण हिंदी स्क्रीन में देख सकते हैं। --रेक्टर कथूरिया 

Saturday, March 6, 2021

साहिर लुधियानवी साहिब की सौवीं जन्म शताब्दी मनाई

Saturday: 6th March 2021 at 4:50 PM

 कविता कथा कारवाँ ने कराया विशेष आयोजन    


लुधियाना
6  मार्च  2021: (मीडिया-लिंक रविंद्र//हिन्दी स्क्रीन)::

साहिर लुधियानवी साहिब ने इश्क,मोहब्बत, ज़िंदगी, फलसफा और  बहुत। उनके शब्दों में कोई ऐसा जादू था कि जिस  उन्हें पढ़ा या सुना उस उस के दिल में ये अश्यार उतरते चले गए।  फ़िल्मी गीतों ने तो साहिर साहिब की शायरी को और  बुलंदी बख्शी। इतनी बुलंदी कि साहिर साहिब को न तो कोई खुद भूल सका और न ही साहिर साहिब को भुलाने की किसी साज़िश में भागीदार बन सका। साहिर साहिब ने पूंजीवादी साज़िशों का पर्दाफाश करने के लिए शायरी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया और वह भी खुल कर कर। जंग की सियासत को साहिर  साहिब ने बहुत ही बेबाकी से अपनी कलम का निशाना बनाया। जब साहिर साहिब कहते हैं:

बहुत दिनों से है यह मश्ग़ला सियासत का,

कि जब जवान हों बच्चे तो क़त्ल हो जायें।

बहुत दिनों से है यह ख़ब्त हुक्मरानों का,

कि दूर-दूर के मुल्कों में क़हत बो जायें॥  

अपनी  इन पंक्तियों में साहिर साहिब बहुत कुछ कहते हैं जो आज भी प्रासंगिक है। आज फिर इन पंक्तियों को बुलंद आवाज़ में हर गली मोहल्ले में दोहराये जाने की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की की जा रही है।  इस फ़र्ज़ को निभाने वालों में अग्रणी  हैं  शायरा जसप्रीत कौर फलक और उनकी टीम के सभी सदस्य। 

साहिर लुधियानवी साहिब की सौवीं जन्म शताब्दी पर कविता कथा कारवाँ संस्था की ओर से  शहीद भगत सिंह नगर में रंगों नूर की एक महफिल का आयोजन किया गया। इसमें न सिर्फ लुधियाना शहर के बल्कि दूसरे राज्यों की नामी-गरामी शख्सियतों ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम का  सफल संचालन कमलेश गुप्ता जी ने किया। संस्था की सचिव रश्मि अस्थाना ने स्वागती शब्द कहे।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मशहूर शायर सरदार पंछी जी थे। विशिष्ट अतिथि गवर्नमेंट कॉलिज फॉर गर्ल्स की प्रिन्सिपल डॉ सुखविंदर कौर जी थीं। गेस्ट ऑफ ऑनर डॉ खालिद आज़मी जी थे (प्रोड्यूसर उर्दू  विभाग दिल्ली दूरदर्शन)।कविता कथा कारवाँ की अध्यक्षा जसप्रीत कौर फ़लक के साथ/साथ  ईरादीप त्रेहान, छाया शर्मा और डॉ समीर बेहतवी जी (उर्दू शायर  सहारनपुर),ने साहिर जी के जीवन पर हुई परिचर्चा में भाग लिया।

सुरों की सरताज़ शख्सियतों-डॉ अशोक धीर, डॉ अश्विनी कौर, सुखविंदर लाभ, सुखविंदर कौर, रीना गोयल,  सरोज वर्मा, शैली वधवा (मेंबर ऑफ क्रिएटिव राइटर ग्रुप कविता कथा कारवाँ)  ने अपने जादुई सुरों से इस अवसर पर साहिर लुधियानवी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की ।शहर की मशहूर हस्तियों और साहित्य प्रेमियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया । 

इस मौके पर मंच संचालिका श्रीमती कमलेश गुप्ता को संस्था की तरफ़ से 'बेस्ट एंकर अवार्ड' का सम्मान देकर सम्मानित किया गया।

खन्ना से विशेष रूप से पधारे,धर्मेंद्र शाहिद जी ने धन्यवाद शब्द कहे। संस्था की रूहें रवाँ और अध्यक्षा जसप्रीत कौर फ़लक  ने सभी साहित्य प्रेमियों का इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आभार व्यक्त किया। 

Friday, March 5, 2021

कैफ़ी आज़मी साहिब का एक शायराना अंदाज़

   जो गवाही है कि वह औरत को बराबरी का दर्जा देते थे  


कामरेड का शाब्दिक अर्थ होता है साथी। बहुत से लोग अपने सहयोगियों को कामरेड कहते हैं और साथी भी। वाम विचारधारा से सबंधित जालंधर से प्रकाशित पंजाबी के अख़बार रोज़ाना नवां ज़माना में काम करते करते हम सभी एक दुसरे को साथी ही कहा करते। साथी कहने की आदत इतनी पक गई कि घर आ कर हम लोग अपने भाई, पिता, चाचा, ताया और पड़ोसी को भी साथी ही कहा करते। लेकिन कैफ़ी आज़मी साहिब तो इससे भी आगे तक गए। उन्होने पत्नी अर्थात शौकत आज़मी को हमेशां हर कदम अपने सबसे करीबी साथी के तौर पर ही देखा। समझा जाता है कि औरत नाम की यह बहुचर्चित नज़्म उठ मेरी जान-मेरे साथ ही चलना है तुझे का खुला एलान है। इसे बहुत ही खूबसूरती से संभाला है बाबा आज़मी साहिब ने जिसके लिए हम सभी को उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। 
सारी दुनिया एक तरफ और यह एलान एक तरफ। आज जबकि फिर से औरतों को घर के रसोईघर और बेडरुम तक सीमित करने की निंदनीय साज़िशें रची जा रही और इस तरह के पाठ पढ़ाये जा रहे हैं तो कैफ़ी साहिब के इस हिम्मतवर एलान को हर दिल तक लेजाना ज़रूरी भी है। इसी जज़्बात से निकली। करीब 78 बरस पहले महिला सशक्तिकरण की इस हकीकत पर आधारित आवाज़ को बुलंद किया था कैफ़ी साहिब ने। तकनीकी विकास और यूटयूब की मेहरबानी है कि उनकी इस नज़्म को उन्हीं की आवाज़ में आज भी सुना जा सकता है। आप इस नज़्म को यहां पढ़ भी सकते हैं। 

    औरत//कैफ़ी आज़मी  

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज

हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज

आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज

हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

 

तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार

तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार

तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार

ता-ब-कै गिर्द तेरे वहम ओ तअय्युन का हिसार

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है

तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है

पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है

बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है

ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं

नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं

उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं

जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए...

गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए

फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए

क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए

ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं

तुझ में शोले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल

ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल

नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल

क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल

राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़

तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़

तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़

तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं

तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं

हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं

मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं

लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

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जश्ने  रेख्ता ने शबाना आज़मी साहिबा के अंदाज़ में भी इसी खूबसूरत नज़्म को संभाला है:


यह नज़्म इतनी खूबसूरत है कि बार बार सुनने के मन करता है। इसे जानेमाने लोगों ने अपने  अंदाज़ में गाया भी है। इसके शब्द खुद ही धुन और अंदाज़ को बनाते चले जाते हैं। महिला सशक्तिकरण का एक लम्बा मंत्र जैसा गीत सकते इसे। इसे माल्विका हरिओम ने बहुत  अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। माल्विका हरिओम साहिब कामरेड बनने का ज़िक्र भी  अंदाज़ में करती हैं। इसे भी सुन कर देखिये।

अगर आप ने भी इसे गाया है तो ज़रा  हमें भी ज़रूर भेजिए।  गली  पहुंचाइये।  इसे घर घर तक पहुँचाईये। आज महिल सशक्तिकरण के लिए  ज़रूरी है। 

प्रस्तुति और संकलन:मीडिया लिंक रविंद्र 

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