Saturday, September 15, 2018

लुधियाना में हिंदी भवन की मांग तो उठनी ही थी

कल को हो सकती है उर्दू, अंग्रेजी और अन्य भाषा भवनों की भी मांग 
लुधियाना: 14 सितंबर 2018: (हिंदी स्क्रीन टीम)::
हम लोगों की एक खासियत है कि हम सारा साल बेशक कुछ न करें लेकिन कोई विशेष दिवस आते ही एक दुसरे दे बढ़ कर सक्रिय हो जाते हैं। यही कुछ हिंदी दिवस पर भी होता नज़र आया। शहर के शिक्षण संस्थानों और साहित्यिक संगठनों की तरफ में शुक्रवार को हिंदी दिवस अपने अपने अंदाज़ में मनाया गया। कुछ नए संकल्प लिए गए कुछ नई मांगें उठीं। अलग अलग स्थानों पर इस दौरान विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। सभी ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में बढ़-चढ़कर भाग लेने की अपील की। लेकिन अंग्रेजी-फ्रेंच और जर्मन सीख कर विदेश जाने की इच्छा रखने वालों को तो याद भी नहीं था कि आज हिंदी दिवस है। उनकी सोच अपनी जगह सही है। हिंदी सीखने से अच्छा रोज़गार और जीवन की सुविधाएँ थोड़े मिलती हैं। उनका मानना है की फायदे में तो अंग्रेजी सीखने वाले ही रहते हैं। 
हिंदी भवन की मांग ने फिर पकड़ा ज़ोर 
लुधियाना में साहित्यिक आयोजनों के लिए गुरुनानक भवन और पंजाबी भवन पहले से ही मौजूद है। लेकिन पंजाबी साहित्य अकादमी के तत्वविधान में चलने वाले इस पंजाबी भवन में अक्सर पंजाबी को वरीयता दी जाती है। हालांकि यहाँ हिंदी पुस्तकें भी रिलीज़ होती रही हैं लेकिन फिर भी यहाँ पंजाबी का बोलबाला ही समझा जाता है। यहाँ का किराया-खर्चा और अन्य शर्तें भी कई बार लोगों को सख्त लगती हैं। ऐसे में हिंदी भवन की मांग उतनी जायज़ ही थी। पंजाब हिंदी परिषद की ओर से सतीश चंद्र धवन (एससीडी) गवर्नमेंट कॉलेज और राज भाषा कार्यान्वयन समिति आयकर विभाग लुधियाना के संयुक्त तत्वावधान में राज्य स्तरीय हिंदी दिवस समारोह मनाया गया। इस दौरान कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. धर्म सिंह संधू, सुरेंद्र भटुआ, ओम प्रकाश, यशपाल बांगिया, यश पाल छाबड़ा, मदन बस्सी मौजूद रहे। यशपाल बांगिया ने हिंदी की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इसे राष्ट्र भाषा का गौरव प्रदान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि पंजाब में एक हिंदी भवन जरूर होना चाहिए, ताकि हिंदी के प्रचार-प्रसार को सुदृढ़ दिशा प्रदान की जा सके। हिंदी प्रेमियों की यह मांग यथाशीघ्र पूरी हो ऐसी इच्छा भी है और आकांक्षा भी लेकिन क्या बनेगा उर्दू, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं से जुड़े लोगों का।  आखिर वे भी तो कर सकते हैं अपने अलग भवन की मांग।  
इस अवसर पर सुरेंद्र भाटूआ ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से राष्ट्रीय भावना प्रबल होती है। कॉलेज के हिंदी विभाग के छात्र-छात्राओं ने समूह गान, एकल गीत व नृत्य कार्यक्रम प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में 51 मेधावी छात्र-छात्राओं को सम्मानित किया गया। इस मौके पर ज्योति शर्मा और भरपूर कौर को ग्यारह-ग्यारह सौ रुपये का नकद पुरस्कार दिया गया। इस मौके पर डॉ. मुकेश अरोड़ा, डॉ. सौरभ कुमार, प्रो. सोनदीप, प्रो. इंद्रजीत पासवान मौजूद रहा। एसडीपी कॉलेज में आज हिंदी का रंग छाया रहा। 
इसी तरह एसडीपी कॉलेज फार वूमेन में हिंदी विभाग की ओर से हिंदी दिवस कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कार्यकारिणी प्रिंसिपल मंजू भाषिणी ने की। हिंदी में मेधावी रहने वाली छात्राओं को पुरस्कृत किया गया। कुल मिला कर आयोजन यादगारी रहा। गौरतलब है की यह कालेज हर बार इस दिन पर विशेष आयोजन करता है। 
हिंदी दिवस का आयोजन मालवा सेंट्रल कॉलेज में भी 
मालवा सेंट्रल कॉलेज ऑफ एजूकेशन में भी हिंदी दिवस के मौके पर कविता, भाषण व स्किट प्रतियोगिताएं कराई गई। हिंदी विभाग के प्रमुख डॉ. नरोत्तम शर्मा ने हिंदी भाषा के इतिहास और हिंदी की वर्तमान स्थिति के बारे में अवगत कराया। उल्लेखनीय है की यह संस्थान भी लुधियाना के पुराने और प्रतिष्ठित संस्थानों में से है। 
देवकी देवी जैन कॉलेज भी विशेष आयोजन 
लुधियाना के किदवई नगर में स्थित देवकी देवी जैन कॉलेज में हिंदी साहित्य परिषद के अंतर्गत हिंदी दिवस मनाया गया। हिंदी विभाग की ओर से भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें 11 छात्राओं ने हिंदी भाषा के इतिहास और विकास पर अपने विचार प्रस्तुत किए। प्रिंसिपल डॉ. सरिता बहल ने हिंदी भाषा को सभी भाषाओं की जननी बताया। गौरतलब है की इस कालेज में भी हिंदी और अन्य सबंधित विषयों पर अक्सर सेमिनार कराये जाते रहते हैं। 
आर्य कॉलेज में हुआ सम्मान 
आर्य कॉलेज ग‌र्ल्स सेक्शन में हिंदी के मौके पर हिंदी विषय में 90 प्रतिशत से अधिक अंक पाने वाली छात्राओं को सम्मानित किया गया। बीए द्वितीय वर्ष की अंजू गुप्ता को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। कॉज छात्राओं ने हिंदी दिवस के मौके पर कविताएं भी पेश की। प्राचार्य डॉ. सविता उप्पल और प्रभारी सूक्ष्म आहलूवालिया ने हिंदी भाषा के प्रचार एवं प्रसार के लिए छात्राओं को प्रोत्साहित किया।
मध्यप्रदेश से ऊषा व्यास ने इस विशेष दिन पर लिखा है:
आज हम हिन्दुस्तानी हिन्दी भाषा को जो राजभाषा भीहै विशेष याद कर रहे हैं और हिंदी -दिवस मना रहे ।वास्तव में यह हमारे लिए गर्व की बात है क्योंकि हिन्दी ही वह भाषा है जो हमें भारतीय होने का एहसास कराती है और एकता की भावना को जागृत कराती है। अब हम जानते हैं कि हिंदी भारत और विश्व में बोली जाने वाली सर्वाधिक भाषाओं में से एक है।इसकी जड़ें प्राचीन भारत की संस्कृत भाषा मेंतलाशी जा सकती है। परंतुहिन्दी साहित्य की जड़ें ज
मध्ययुगीनभारत की ब्रज, अवधी, मारवाड़ीऔर मैथिली जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती है। हिंदी में गद्य का विकास बहुत बाद में हुआ पहले इसनेअपनी शुरूआत कविता के माध्यम से जो ज्यादातर लोकभाषा के रूप में प्रयोग कर , विकसित किया है। हिन्दी का आरंभिक साहित्य अपभ्रंश में मिलता है हिन्दी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है गद्य ,पद्य,चम्पू । अब हम इसके इतिहास पर भी प्रकाश डालें तो वास्तव में हिंदी साहित्य का विकास आठवीं शताब्दी से माना जाता है और यह वह काल है जब सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई थी और भारत में अनेक छोटे छोटे-छोटे शासन केन्द्र स्थापित होंगे लगे थे, जो परस्पर संघर्ष रत थे। हिंदी साहित्य के इतिहास को आलोचक सुविधा के लिए पांच ऐतिहासिक चरणों में देखते हैं।जो इस तरह _एक_आदिकाल जो १४००ई से पहले,,दूसरा भक्ति काल,१३७५-१७००ई.,तीसरा-रीतिकाल-१६००-१९००, चौथाआधुनिकाल -१८५०ई के पश्चात,और फिर-नव्योत्तरकाल-१९८०ई के पश्चात।और जैसे कि हम और आप जानते हैं कि संविधान में इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया है। भारत में तीन चौथाई से ज्यादा लोग हिंदी भाषा बोलते और समझते हैं। भाषा का प्रयोग केवल संप्रेषण के लिए नहीं वल्कि तर्क, कल्पना, विचार और सृजन के लिए भी होता है। और मानव का भाषाई विकास जन्म से ही हो जाता है,और जीवन पर्यन्त तक रहता है। शब्द,वाक्य, ध्वनियां और छन्द , अलंकार यह ही किसी भाषा को सजाते हैं व्यवस्थित रूप देते हैं। फिर हमारी "हिंदी" तो व्याकरण, कविता ,और साहित्य , इत्यादि रूप में बहुत विशाल और विविधताओं कोभरे हुए हैं। इसलिए हिन्दी ही हमारी पहचान है। जय हिन्दी जय हिन्द। जय भारत 🙏
इसी तरह अन्य कई संगठनों ने भी हिंदी दिवस पर विशेष आयोजन किये। इनका विवरण अलग से दिया जा रहा है।  इस दिवस पर प्राप्त हुए विचारों को भी अलग पोस्ट में प्रकाशित किया जा रहा है। 
आवाज़ के जादू की जानीमानी आर जे और शायरा छिंदर कौर सिरसा ने अपने भाव कुछ इस अंदाज़ में व्यक्त किये   

Friday, September 14, 2018

" हिंदी " दिवस पर पी के तिवारी जी की काव्य रचना

Sep 13, 2018, 11:36 PM
संस्कृत से आया ये हिंदी

हिंदी है शान , हिंदी है मान,
हिंदी है देश की शान |
हिन्दू हैं हम, हिंदी हो तुम,
हिंदी हैं, हम सब लोग |
हिंदी है हमारी सबसे प्यारी,
सूरज और गगन से भारी |
भारत में हैं अनेक भाषाएँ,
हिंदी को है उसमें से लाएं |
संस्कृत से आया ये हिंदी,
लगाना मत भूलना तुम बिंदी |
कोई बोले अंग्रेजी दिन भर,
तो कोई है हिंदी पर निर्भर |
हिंदी है हमारी मन की भावनाएँ,
हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ |

भाषा को सियासत का हथियार बनने से बचाना होगा

तभी कायम हो सकेगा हिंदी और अन्य भाषाओं का आपसी सौहार्द 
लुधियाना: 14  सितंबर 2018:( हिंदी स्क्रीन टीम)::
करीब तीन-चार वर्ष पूर्व जब किसी एक सप्ताह लम्बे आयोजन में भाग लेने के लिए मैं कोयम्बतूर (तमिलनाडू) गया तो भाषा के मामले में मेरे अनुभव काफी नए थे। मुझे लगता था की दश्कों के बाद हिंदी से नफरत केवल कम ही नहीं होगी बल्कि शायद प्रेम में भी तब्दील हो गयी होगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। मैंने किसी रेहड़ीवाले से हिंदी में बात करने की कोशिश की तो वो मेरे साथ झगड़ने की सुर में बोला... नो हिंदी नो हिंदी। ओनली तमिल ऑर इंग्लिश। उसके परिवार की एक महिला--शायद उसकी पत्नी ने हिंदी बोल कर मेरी सहायता करनी चाही तो उसने उसे भी डांट दिया। वह भी चुप हो गयी। फिर मैंने वहां पहुंची किसी लाल झंडे वाली वाम महिला से सहायता चाही वह उत्तर भारत से वहां गयी लगती थी; शायद हिमाचल प्रदेश से। 
इसके बाद मेरी बात करने की मुश्किल आसान हुई। लेकिन इसके साथ ही मन में पैदा हुए कई सवाल। भाषा तो जोडती है फिर इसके नाम पर विवाद क्यूँ? सोच के सागर में डुबकी कुछ और गहरी हुई तो याद आया कैसे पंजाब के  टुकड़े भाषा के नाम पर ही किये गए थे। भाषा, साहित्य, संस्कृति, धर्म और कला जैसे गैर सियासी क्षेत्रों में सियासत की दखलंदाजी कुछ कुछ समझ में आने लगी। सत्ता लोलुप लोग क्या क्या कर सकते हैं यह भी दिखने लगा। अब 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के अवसर ऐसा बहुत कुछ याद आने लगा है। जब पंजाब के पंजाबी भाषी लोगों ने सियासी आदेशों के चलते अपनी भाषा पंजाबी की बजाये हिंदी लिखवाई थी। इसी गलतबयानी से शुरू हुई थी पंजाब की समस्या जो बाद  में विकराल बनी। 
साथ ही यह भी याद आया कि तमिलनाडू में हिंदी का विरोध 1937 से चला आ रहा है। वर्ष 1960 के दशक में जब यह आंदोलन और भड़का तो 65-66 में 25 जनवरी के दिन काले झंडे लहराए गए। मदुरई में आंदोलन हिंसक हो उठा। स्थानीय कांग्रेस कार्यालय के बाहर आठ लोगों को जिंदा जला दिया गया। यह हिंसक विरोध कम से कम दो सप्ताह तक चला।  अधिकारिक सूत्रों के मुताबिक 70 लोगों की जान गयी। अनुमान लगा कर देखें भाषा के नाम पर खूनखराबा किस ने किया कराया होगा? काम से काम भाषा प्रेमी तो नहीं करेंगे हाँ सियासतदान ऐसा माहौल बना सकते हैं। 
हालात बेहद नाज़ुक थे। यहां तक कि पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी रॉय भी हिंदी थोपे जाने के सख्त ख़िलाफ़ थे। यह थोपे जाने की आशंका और भावना ही बवाल का कारण बनी होगी। दक्षिण भारत के सभी राज्य भी इसके विरोध में खुल कर खड़े थे। केवल इतना ही नहीं विरोध करने वालों में दक्षिण के कांग्रेस शासित राज्य भी थे। नेहरू और शास्त्री का ज़माना था। कहीं जनसंघ का होता तो शायद बात ही और बनी होती। 
हालात निरतंर बिगड़ते रहे। विरोध प्रदर्शनों के परिणाम स्वरूप उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री को आश्वासन देना पड़ा। उन आश्वासनों को तत्कालीन सूचना और प्रसारणमंत्री इंदिरा गांधी ने राजभाषा अधिनियम में संशोधन के जरिए अंग्रेज़ी को सहायक राज भाषा का दर्जा देकर अमल में लाया। इससे कुछ शांति बहाल हुई। लेकिन कड़ुवाहट अभी तक काम नहीं हुई। 
इन हालातों पर टिप्पणी करते हुए मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंटल स्टडीज़ के पूर्व निदेशक वीके नटराज ने कभी कहा था कि विरोध प्रदर्शनों के बिना हिंदी को संरक्षण देने वाले लोग मज़बूत हो जाते।  गौरतलब है की तमिल अपनी भाषाई पहचान को अन्य लोगों की तुलना में अधिक गंभीरता से लेते हैं। उनको इस बात का अहसास है कि भाषा को खत्म करके पूरी संस्कृति को ही समाप्त किया जा सकता है। ऐसा कई जगहों पर हो भी चुका है शायद। अब उन जगहों के लोगों का मूल स्वरूप ही बदल गया है। 
इसी तरह एरा सेज़ियान कहते हैं  कि हालात अन्य जगहों पर भी ठीक नहीं हैं। अब उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य भी अंग्रेज़ी सीखने को प्रोत्साहन दे रहे हैं। अब हालात पूरी तरह से बदल गए हैं। राज्य पहले से अधिक मजबूत हुए हैं और केंद्र अब पहले की तरह ताकतवर नहीं रहा। ऐसे में अंग्रेजी भाषा और कल्चर सभी क्षेत्रों में निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। 
कुछ ही समय पूर्व पंजाब में भी हिंदी को पंजाबी पर हमला समझा गया था। पंजाबी को दूसरे दर्जे की भाषा समझे/बनाये जाने के जवाब में सड़कों पर लिखे साईन बोर्डों से हिंदी पर कालिख पोत दी गयी थी। अगर हिंदी को हमलावर माना जाता रहा या बनाया जाता रहा तो भाषा का सौहार्द खतरे में है। पंजाब के जिन लेखकों ने हिंदी-पंजाबी दोनों में साहित्य रचा है उनका शुद्ध स्नेह खतरे में है। भाषा को सियासत का हथियार बनने से बचाना होगा।