आंच में हैं गहन संवेदना का अहसास करवाती कविताएं
मोहाली: 7 जून 2023: (कार्तिका कल्याणी सिंह//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::
डयूटी के साथ साथ कलम की साधना आसान नहीं होती। बहुत से अनुशासन और बहुत से नियम--सब याद रखना पड़ता है। इस सब के बाद सम्भव हो पति है साहित्य की साधना। सुमिता कुमारी का जन्म 12 जून, 1983 को रामपुर नगवाँ, पालीगंज, पटना (बिहार) में हुआ। वह इतिहास एवं हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। उनकी कविताएँ एवं कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। ‘मौसम बदलने की आहट’ नामक कविता-संग्रह में कुछ कविताएँ शामिल हैं। ‘आँच’ उनका पहला कविता-संग्रह है। शायरी बहुत ही कोमल संवेदना भरी साधना होती है और इसके ज़रिए निष्ठुर समाज की बात करना बेहद मुश्किल भी होता है लेकिन सुमिता जी ने यह सब आसानी से किया। उनका काव्य संग्रह आंच बताता है कि उनकी काव्य साधना को अपनी रचना प्रक्रिया के दौरान कितना तपना पड़ा होगा। कैसे कैसे हालात सामने आए हो सकते हैं।
कलम और जीवन दोनों के दरम्यान संतुलन भी सहज नहीं होता। वर्तमान में वह बिहार के नालंदा में प्रखंड विकास पदाधिकारी हैं। इसलिए समाज के बहुत से वर्गों के साथ उनका आमना सामना होता ही है। समाज के इन विभिन्न वर्गों के विभिन्न जीवन ढंग, दोगले चेहरे और गिरगिट की तरह बदलते रंग उन्होंने सब बहुत नज़दीक से देखा होगा।
महिला जीवन को जब कोई महिला देखती है तो उसकी नज़र वो सब भी देख पाती है जिसे देखना या समझना सब के बस में होता ही नहीं। अगर इस पीड़ा को देखने समझने वाली महिला लेखिका भी हो तो बात ही कुछ और हो जाती है। उनको पढ़ने वाले प्रबुद्ध पाठक बताते हैं कि यहाँ स्त्रियों के पारिवारिक जीवन और श्रमिक स्त्रियों के संघर्ष तथा जीवट के नए चित्र मिलते हैं। ‘आँच’ शीर्षक कविता जीवन-संग्राम और प्रतिरोध की विशिष्ट कविता है। धान रोपती स्त्रियों और वृद्धाओं के जीवन के विश्वसनीय रेखांकन द्रवीभूत करते हैं। इन कविताओं की तेज आँच हमें तप्त कर देती है। अधिकांशतः ये कविताएँ गद्यबद्ध हैं। कहीं-कहीं लय का भी मिश्रण है। भाषा सरल, सहज और मुहावरेदार है। मगही के अनेक शब्दों का निपुण व्यवहार कवि की सृजन-क्षमता को दर्शाता है और उनकी रचनाओं को अद्वितीय बनाता है। कुछ नए बिम्ब और अलंकरण भी कवि ने सिरजे हैं। मगही भाषा की समृद्धि का समुचित उपयोग हिन्दी कविता में कम ही हो पाया है। इस तरह इस पुस्तक में संकलित रचनाओं ने इस पुस्तक को उन पुस्तकों के वर्ग में भी ला दिया है जो भाषा को अमीर बनाने में अपना योगदान देती हैं।
उनको नज़दीक से जानने वाले साहित्यकार और कलाकार बताते हैं कि पेशे से प्रशासनिक पदाधिकारी होते हुए भी सुमिता जी ने निरन्तर काव्य-साधना की है और जीवन को बहुत ध्यान से देखा है। बहुत बारीकी से जीवन के उतराव चढ़ाव का जहां अध्यन किया है। लोगों के जीवन और उनके दुःख सुख बहुत ही नज़दीक हो कर देखे हैं। वास्तव में बाहरी दुनिया के साथ-साथ आन्तरिक दुनिया का भी वह अनवरत अवलोकन करती रहती हैं और इसके साथ साथ अत्यन्त व्यस्त दिनचर्या के बावजूद भी काव्य-रचना के लिए किंचित अवकाश निकाल ही लेती हैं। उनकी कविता पढ़ते हुए पाठक इसीलिए खो से जाते हैं क्यूंकि इन कविताओं में आवेग और त्वरा है जो सुमिता जी को बाक़ी सभी समकालीनों से पृथक एक विशिष्ट स्थान पर स्थापित करती है। इसलिए देश और दुनिया के साहित्य से भी उनका सम्पर्क निरंतर बना रहता है। वह पाठकों के पत्रों का जवाब भी देती हैं और उनके व्हाटसएप्प संदेशों का भी। समय मिलने पर आयोजनों में शामिल होने का भी प्रयास करती हैं।
जल्द ही हमें उनकी काव्य रचनाओं और अन्य रचनाओं का नया संकलन भी मिले ऐसी आशा भी है और आकांक्षा भी। हम जल्दी ही देख पाएंगे उनकी नई पुस्तक इसकी उम्मीद हम भी को है। उनकी काव्य रचनाओं को पंजाबी और अन्य भाषाओं में अनुदित करने की संभावनाओं पर भी बात जल्दी ही हम सभी के पास खुशखबरी बन कर आएगी।
देखिए उनकी एक रचना का रंग भी:
प्रेम//सुमिता
आसान नहीं था
उसे जिंदगी में वापस खींच लाना
सब कुछ देकर ही तो उसने यह जिंदगी चुनी थी
वह हंसता-गाता और रोता भी था
लेकिन खुद को समभाव ही दिखाया सबको
मानवीय भावनाएं उसे साबित कर सकती थी सांसारिक
कि उसे सौंप देगा अपने जीवन का बसन्त
और पतझड़ में बिखरते हुए भी
उसने किसी सावन में भीगना नहीं चुना
उसे जिंदगी से मोह बस इतना था
कि जिंदगी किसी की अमानत है
और देह से अपनापन इतना ही
कि देह ने बसा रखी है किसी और की आत्मा
जिसका त्याग उसकी हत्या के बराबर है
उसे देखकर महसूस होता
कि विरक्त-सा यह आदमी
लड़ रहा है युद्ध
स्वयं के विरुद्ध
अपनी काया में जी रहा है अनागत अस्तित्व
जो कभी उसके जीवन का हिस्सा न बन सका
वह आंखें कितनी अनमोल होंगी
उसकी बातें कितनी मर्मस्पर्शी
जिसमें डूबकर
कोई सारी उम्र पार नहीं उतरना चाहता
भूल जाना चाहता है दुनियां
लेकिन उसे नहीं भूलना चाहता
उसके जाते
दुनियां में प्रेम करने लायक कुछ नहीं रहा
यह किसका भाग्य है किसका दुर्भाग्य
कितना उचित है कितना अनुचित
बहस का मुद्दा हो सकता है
मगर आधुनिकता के दौर में
ऐसी आत्माओं ने ही बचा रखी है
प्रेम की आत्मा...
सुमिता (27-01-23)
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प्रस्तुति:कार्तिका कल्याणी सिंह (हिंदी स्क्रीन डेस्क)