Thursday, December 27, 2012

बालीवुड में गौरव सग्गी

फ़िल्मी दुनिया में फिर लुधियाना की मौजूदगी का अहसास
पंजाबी फिल्मों की बात चले तो जो नाम और चेहरे एकदम जहन में आते है उनमें से एक चेहरा है सरदार भाग सिंह का। चंडीगढ़ के बस स्टैंड से बाहर निकलते ही सडक पार करके उनके घर में जाना किसी वक्त रोज़ की बात हुआ करती थी। वक्त की गर्दिश में फिर यह सिलसिला न चाहते हुए ही लगातार कम होता चला गया। यहाँ रोज़ी रोटी के फ़िक्र में ऐसे सिलसिले अक्सर कम हो जाते हैं। पर उनकी जो बातें अब तक जहन में हैं उनमें से एक है सोमवार। वह सोमवार को उपवास रखते थे। भगवान् शिव में उनकी गहरी आस्था थी। शिव का नटराज रूप उनके ड्राईंग रूम में भी सजा होता। कभी मूड होने पर वह भगवान् शिव और कला की विस्तृत चर्चा भी करते। 
Photo Courtesy:Sara Tariq
इसी तरह गायन और अभिनय के क्षेत्र में अपना लोहा मनवाने वाली सुलक्षना पंडित भी बहुत अध्यात्मिक थी।सर्दी हो या ओले बरस रहे हों हर रोज़ सुबह पूरे केशों सहित स्नान करना और फिर पूजा पाठ में काफी समय गुज़ारना उनकी दिनचर्या में शामिल था। उनकी आवाज़ में भी जादू सा था और अभिनय में भी। बहुत सी लोकप्रिय फिल्मों में यादगारी भूमिका निभा पाना और फिर फिल्म फेयर एवार्ड भी हासिल कर लेना कोई आसान बात नहीं थी। हालाँकि उनके सामने चुनौती भी सख्त थी और प्रतियोगिता भी। 
दर्शकों के मन में हनुमान जी की छवि बनने के बाद दारा सिंह जी भी धर्म कर्म में बहुत रुचि लेने लगे। शायद यही कारण है कि दर्शक उनमें हनुमान जी को ही देखने लगे। पहले पहले मुझे लगता था की शायद इस तरह के सात्विक किस्म के लोग तामसिक प्रवृतियों से भरी फ़िल्मी दुनिया में सफल नहीं हो सकेंगे। पर इन सबकी सफलता देख कर दुनिया के साथ साथ मैं खुद भी हैरान रह गया। पंजाबी फ़िल्मी दुनिया के महारथी भाग सिंह ने किस तरह अपनी बेटी बरखा को पत्रकारिता की बारीकियों से अवगत करा कर एक कुआलिफाईड पत्रकार बनाया। अभिनय में नई जान डालने 
पठानकोट में गौरव सग्गी के भक्ति रस में झूमते भक्त 
वाली अपनी धर्मपत्नी कमला भाग सिंह के साथ किस तरह कदम दर कदम मिला कर कठिन से कठिन रास्तों पर चल कर सफलता की ऊंचाइयों को छुआ यह किसी करामत से कम नहीं। मुझे उनके परिवार के साथ इतय एक एक पल बिना किसी कोशिश के अब तक याद है। भाग सिंह जी का गोरा   रंग और मेहंदी रंगी भूरी दाड़ी कुल मिलकर उनकी शख्सियत बहुत ही आकर्षक लगती रिटायर्मेंट के बाद इस तरह की  सहेज पान तभी संभव होता है जब दिल और दिमाग के ख्याल भी बहुत खूबसूरत हों। ज़िन्दगी के सभी रंगों को उन्हों ने मुस्करा कर समझा। हर मुश्किल को उन्होंने हर बार सुस्वागतम कहा। एक आम इंसान की तरह ज़िंदगी जीते जीते वह अचानक ही अपनी सहजता के कारण खास हो जाते। मुझे याद है एक बार एक फ़िल्मी मेले के आयोजन को लेकर कुछ पत्रकार दोस्तों ने काफी कुछ विरोध में लिखा पर जब वे भाग सिंह जी के सम्पर्क में आये तो उनका नजरिया पूरी तरह बदल गया। वे समझ गए कि मामले को देखना अपनी अपनी सोच पर भी निर्भर करता है। जादू केवल जादूगर की छड़ी में नहीं शब्दों में भी होता है। बाद में यह विरोध दोस्ती में बदल गया। वे पत्रकार दोस्त दिल्ली से उन्हें मिलने विशेष तौर पर चंडीगढ़ आते।
लुधियाना का गौरव सग्गी 
इसी तरह दारा सिंह जी ने भी धमकियों और चुनौतियों को बहुत ही सहजता से सवीकार करके ज़िन्दगी जीने के नए अदाज़ सिखाये। चंडीगढ़ में दारा स्टूडियो की स्थापना का काम आसान नहीं था। मुझे पता चला कि उन्हें उतनी जगह नहीं मिली जितनी वह चाहते थे। किसी सनसनीखेज़ खबर की चाह में मैंने दारा जी से इसी मुद्दे पर सवाल कर दिया। दारा जी मुझे देखकर मुस्कराए और बहुत ही सहजता से बोले अगर सरकार यह जगह भी न देती तो हम क्या कर लेते? दारा जी जैसे महान लोगों ने जिंदगी को जो सलीके और सबक सिखाये उनकी अहमियत वक्त के साथ साथ लगातार बढती रहेगी। उनके पास बैठ कर, उनसे बातें करके एक नई ऊर्जा का अहसास होता था।
आज अचानक यह सब कुछ मुझे याद आ रहा है एक नए युवा चेहरे को देख कर। लुधियाना का गौरव सग्गी भी फ़िल्मी दुनिया को समर्पित है लेकिन पूरी तरह सात्विक रहते हुए। तकरीबन तकरीबन हर रोज़ उपवास, हर रोज़ पूजा पाठ, हर रात्रि मेडिटेशन। सोने में चाहे आधी रात हो जाये लेकिनउठना वही रात को दो बजे और ठंडे पानी से नहा कर रम जाना पूजा पाठ में। मेडिटेशन, रियाज़ या फिर शूटिंग, रिकार्डिंग या कोई और परफोर्मेंस बस यही है गौरव की दिनचर्या। मैंने कभी गौरव को आम लडकों की तरह इधर उधर आलतू फालतू बातों में नहीं देखा। लुधियाना से मुम्बई और मुम्बई से विदेश तक यही है उसका लाइफ स्टाइल।
कहते हैं धरती गोल भी है बहुत छोटी भी। बस इसी सिद्धांत पर एक बार हमारी मुलाकात पठानकोट में हुई। सुबह मूंह अँधेरे से लेकर देर शाम तक हम एक साथ रहे। यह सब किसी प्रोजेक्ट को लेकर था और इसके बारे में वहां शायद किसी को खबर भी नहीं थी लेकिन हमें वहां बिना किसी पूर्व कार्यक्रम के जाना पड़ा एक ही आयोजन में। हम सब ने जलपान किया लेकिन गौरव का उपवास था। खाना तो दूर जल या चाये की एक बूँद भी नहीं। अचानक ही मेरे सामने किसी आयोजक ने मंच पर गौरव का नाम अनाऊंस करवा दिया और उसके बाद कमरे में आ कर कहा कि अब आप मंच पर आ जाइये अगली बारी आपकी है। सुन कर मुझे चिंता हुई। मुझे मालूम था कि गौरव ने सुबह से कुछ नहीं खाया। 
चाये या पानी का एक घूँट भी नहीं। मुझे लगा कि शायद यह लड़का कहीं मंच पर गिर न पड़े। इसके साथ ही न वहां गौरव की टीम थी न ह साज़ और संगीत का पर्याप्त प्रबंध। पर गौरव के चेहरे पर न चिंता, न डर, न ही घबराहट। आशंकित मन के साथ कुछ ही पलों के बाद मैं भी पीछे पीछे बाहर बने मंच पर चला गया।वहां मेरे देखते ही देखते गौरव ने भगवान् का नाम लेकर अपना गायन शुरू कर दिया। कुछ ही पलों में वहां मौजूद सभी लोग पहले तो मस्त हुए फिर उठ कर गौरव के साथ साथ झूमने लगे।मुझे वह दिन अब भी याद आता है तो मुझे फिर फिर हैरानी होने लगती है। सुबह से लेकर रात तक मैंने गौरव पर से आँख नहीं हटाई तां कि वह छुप कर कहीं कुछ खा तो नहीं रहा पर सचमुच उसने सारा दिन कुछ नहीं खाया-पीया। मुझे लगता है कि इस के बावजूद इतनी अच्छी परफारमेंस किसी दैवी शक्ति से ही संभव हो सकी। गौरतलब है की मेडिटेशन करने वालों की कार्यक्षमता अक्सर बढ़ जाती है। मन की शक्ति एकाग्र हो जाने से उनकी योग्यता विकसित होती है।यही कारण है गौरव एक्टिंग में भी काम कर रहा है और गीत संगीत में भी। इसके साथ ही कैमरे की बारीकियों  को भी वह बहुत ही अच्छी तरह से समझता है। अपनी लोकप्रिय एल्बम "रब दा सहारा" में उसने गायन और अभिनय दोनों में अपना जादू दिखाया है। आखिर में एक बात और इस सबके लिए वह अपने पिता अश्विनी सग्गी और माता के आशीर्वाद को ही एक वरदान मानता है।-रेक्टर कथूरिया 


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तेज़ी से बुलंदियां छू रहा गौरव सग्गी 

Monday, December 24, 2012

सरकार ने किया जांच आयोग का गठन

24-दिसंबर-2012 17:20 IST
सामूहिक दुष्‍कर्म मामले में कड़ी कार्रवाई का आश्‍वासन 
दिल्‍ली में हुए सामूहिक दुष्‍कर्म मामले पर केन्‍द्रीय गृहमंत्री के वक्‍तव्‍य का विवरण इस प्रकार है: 
''16 दिसम्‍बर, 2012 को दिल्‍ली में हुए सामूहिक दुष्‍कर्म की चौंका देनी वाली घटना पर सरकार काफी चिन्तित है। पुलिस सभी छह अभियुक्‍तों को गिरफ्तार कर चुकी है। इनको सजा दिलाने के लिए पर्याप्‍त साक्ष्‍य इकट्ठे किए गये हैं और इस मामले में आरोप पत्र जल्‍द ही दाखिल किए जाएंगे। इस मामले की सुनवाई प्रतिदिन हो सके, इसके लिए सरकार न्‍यायालय से फास्‍ट ट्रैक न्‍यायालय के जरिए त्‍वरित सुनवाई का आग्रह कर रही है। इस घृणित अपराध में शामिल उस बस के ट्रांसपोर्टर के खिलाफ भी शीघ्र कार्रवाई की गई है। इस ट्रांसपोर्टर के सभी नौ वाहनों के परमिट रद्द कर दिए गये हैं। 

पीडि़ता को अच्‍छी से अच्‍छी चिकित्‍सा सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। उसकी हालत में सुधार के लिए जो कुछ भी आवश्‍यक होगा वह सरकार करेगी। उसकी स्थिति पर नजर रखी जा रही है। उसने इस अपराध से संबंधित मामले में एक्सिक्‍यूटिव मजिस्‍ट्रेट के समक्ष अपना बयान दे दिया है। 

पीडि़त युवती के लिए समाज द्वारा जो चिंता और समर्थन व्‍य‍क्‍त किया जा रहा है, उससे सरकार अपने को जोड़ती है। सरकार विरोध प्रदर्शन के वैध अधिकार का भी सम्‍मान करती है, लेकिन इसके साथ ही शांति बनाये रखने की भी आवश्‍यकता है और सुरक्षा के माहौल में सुधार लाने के लिए सभी को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्‍यकता है। 

अपनी ओर से सरकार राजधानी के साथ-साथ देश के बाकी हिस्‍सों में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। दिल्‍ली में हाल ही में कई कदम उठाये गये हैं जिनमें निम्‍नलिखित है : 

(i) रात्रि के समय बसों की संख्‍या बढ़ा कर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर बनाना। 

(ii) सभी सार्वजनिक वाहनों में जीपीएस लगाना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपने निर्धारित मार्गों से अलग अन्‍य मार्गों न चलें। 

(iii) यह भी सुनिश्चित करना कि सार्वजनिक परिवहन में तैनात कर्मचारी पहचान पत्र रखें, जो सत्‍यापित हों। 

(iv) मनोरंजन केन्‍द्रों और कार्यस्‍थलों से देर रात लौटने वाले परिवारों और महिलाओं द्वारा लिए जाने वाले मार्गों में पुलिस वैन/मोटरसाइकिलों की गश्‍त को सक्रिय करना तथा इसे और बढ़ाना।

इस तरह के अपराधों से निपटने के लिए सरकार एक कठोर कानून बनाएगी और आपराधिक कानून में संशोधन के लिए शीघ्र ही कदम उठाएगी ताकि इस तरह के अत्यन्त दुर्लभ यौन उत्‍पीड़न के मामलों में बड़ी और अधिक कारगर सजा दी जा सके। 

सरकार जांच आयोग अधिनियम 1952 के तहत एक जांच आयोग का गठन करेगी जो इस भंयकर अपराध पर हुई प्रतिक्रियाओं की समीक्षा करेगी साथ ही राजधानी दिल्‍ली में महिलाओं की सुरक्षा व्‍यवस्‍था बेहतर बनाने के लिए उपाय सुझाएगी। (PIB)

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Wednesday, December 19, 2012

आरक्षण पर राजनीति//राजीव गुप्ता


इन्हे बस अपने–अपने वोट बैंक की चिंता
Tue, Dec 18, 2012 at 9:03 AM
                      यह तस्वीर समय लाईव से साभार 
राज्यसभा द्वारा सोमवार को भारी बहुमत से 117वाँ संविधान विधयेक के पास होते ही पदोन्नति मे आरक्षण विधेयक के पास होने का रास्ता अब साफ हो गया है. अब यह विधेयक लोकसभा मे पेश किया जायेगा. हलांकि इस विषय के चलते भयंकर सर्दी के बीच इन दिनो राजनैतिक गलियारो का तपमान उबल रहा था. परंतु इस विधेयक के चलते यह भी साफ हो गया कि गठबन्धन की इस राजनीति मे कमजोर केन्द्र पर क्षेत्रिय राजनैतिक दल हावी है. अभी एफडीआई का मामला शांत भी नही हुआ था कि अनुसूचित जाति एव जनजाति के लिये पदोन्नति मे आरक्षण के विषय ने जोर पकड लिया. एफडीआई को लागू करवाने मे सपा और बसपा जैसे दोनो दल सरकार के पक्ष मे खडे होकर बहुत ही अहम भूमिका निभायी थी, परंतु अब यही दोनो दल एक-दूसरे के विरोध मे खडे हो गये है. इन दोनो क्षेत्रीय दलो के ऐसे कृत्यो से यह एक सोचनीय विषय बन गया है कि इनके लिये देश का विकास अब कोई महत्वपूर्ण विषय नही है इन्हे बस अपने – अपने वोट बैंक की चिंता है कि कैसे यह सरकार से दलाली करने की स्थिति मे रहे जिससे उन्हे तत्कालीन सरकार से अनवरत लाभ मिलता रहे.
लेखक राजीव गुप्ता 
2014 मे आम चुनाव को ध्यान मे रखकर सभी दलो के मध्य वोटरो को लेकर खींचतान शुरू हो गयी है. उत्तर प्रदेश के इन दोनो क्षेत्रीय दलो के पास अपना – अपना एक तय वोट बैंक है. एक तरफ बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा अध्यक्ष हामिद अंसारी पर अपना विरोध प्रकट करते हुए यूपीए सरकार से अनुसूचित जाति एव जनजाति के लिये आरक्षण पर पांचवी बार संविधान संशोधन हेतु विधेयक लाने हेतु सफल दबाव बनाते हुए एफडीआई मुद्दे से हुई अपने दल की धूमिल छवि को सुधारते हुए अपने दलित वोट बैंक को सुदृढीकरण करने का दाँव चला तो दूसरी तरफ सपा ने उसका जोरदार तरीके से विरोध जता करते हुए कांग्रेस और भाजपा के अगडो-पिछडो के वोट बैंक मे सेन्ध लगाने का प्रयास कर रही है.इस विधेयक के विरोध मे उत्तर प्रदेश के लगभग 18 लाख कर्मचारी हडताल पर चले गये तो समर्थन वाले कर्मचारियो ने अपनी – अपनी कार्यावधि बढाकर और अधिक कार्य करने का निश्चय किया. भाजपा के इस संविधान संशोधन के समर्थन की घोषणा करने के साथ ही उत्तर प्रदेश स्थित उसके मुख्यालय पर भी प्रदर्शन होने लगे. सपा सुप्रीमो ने यह कहकर 18 लाख कर्मचारियो की हडताल को सपा-सरकार ने खत्म कराने से मना कर दिया कि यह आग उत्तर प्रदेश से बाहर जायेगी और अब देश के करोडो लोग हडताल करेंगे. दरअसल मुलायम की नजर अब एफडीआई मुद्दे से हुई अपने दल की धूमिल छवि को सुधारते हुए अपने को राष्ट्रीय नेता की छवि बनाने की है क्योंकि वो ऐसे ही किसी मुद्दे की तलाश मे है जिससे उन्हे 2014 के आम चुनाव के बाद किसी तीसरे मोर्चे की अगुआई करने का मौका मिले और वे अधिक से अधिक सीटो पर जीत हासिल कर प्रधानमंत्री बनने का दावा ठोंक सके.

मुलायम को अब पता चल चुका है कि दलित वोट बैंक की नौका पर सवार होकर प्रधानमंत्री के पद की उम्मीदवारी नही ठोंकी जा सकती अत: अब उन्होने अपनी वोट बैंक की रणनीति के अंकगणित मे एक कदम आगे बढते हुए अपने “माई” (मुसलमान-यादव) के साथ-साथ अपने साथ अगडॉ-पिछडो को भी साथ लाने की कोशिशे तेज कर दी है. उनकी सरकार द्वारा नाम बदलने के साथ-साथ कांशीराम जयंती और अम्बेडकर निर्वाण दिवस की छुट्टी निरस्त कर दी जिससे दलित-गैर दलित की खाई को और बढा दिया जा सके परिणामत: वो अपना सियासी लाभ ले सकने मे सफल हो जाये. दरअसल यह वैसे ही है जैसे कि चुनाव के समय बिहार मे नीतिश कुमार ने दलित और महादलित के बीच एक भेद खडा किया था ठीक उसी प्रकार मुलायम भी अब समाज मे दलित-गैर दलित के विभाजन खडा कर अपना राजनैतिक अंकगणित ठीक करना चाहते है.

कांग्रेस ने भी राज्यसभा मे यह विधेयक लाकर अपना राजनैतिक हित तो साधने के कोई कसर नही छोडा क्योंकि उसे पता है कि इस विधेयक के माध्यम से वह उत्तर प्रदेश मे मायावती के दलित वोट बैंक मे सेन्ध लगाने के साथ-साथ पूरे देश के दलित वर्गो को रिझाने मे वह कामयाब हो जायेंगी और उसे उनका वोट मिल सकता है. वही देश के सवर्ण-वर्ग को यह भी दिखाना चाहती है कि वह ऐसा कदम मायावती के दबाव मे आकर उठा रही है, साथ ही एफडीआई के मुद्दे पर बसपा से प्राप्त समर्थन की कीमत चुका कर वह बसपा का मुहँ भी बन्द करना चाहती है. भाजपा के लिये थोडी असमंजस की स्थिति जरूर है परंतु वह भी सावधानी बरतते हुए इस विधेयक मे संशोधन लाकर एक मध्य-मार्ग के विकल्प से अपना वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश मे है. दरअसल सपा-बसपा के बीच की इस लडाई की मुख्य वजह यह है कि जहाँ एक तरफ मायावती अपने को दलितो का मसीहा मानती है दूसरी तरफ मुलायम अपने को पिछ्डो का हितैषी मानते है. मायवती के इस कदम से मुख्य धारा मे शामिल होने का कुछ लोगो को जरूर लाभ मिलेगा परंतु उनके इस कदम से कई गुना लोगो के आगे बढने का अवसर कम होगा जिससे समाजिक समरसता तार-तार होने की पूरी संभावना है परिणामत: समाज मे पारस्परिक विद्वेष की भावना ही बढेगी.

समाज के जातिगत विभेद को खत्म करने के लिये ही अंबेडकर साहब ने संविधान मे जातिगत आरक्षण की व्यवस्था की थी परंतु कालांतर मे उनकी जातिगत आरक्षण की यह व्यवस्था राजनीति की भेंट चढ गयी. 1990 मे मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करने के निर्णय ने राजनैतिक दलो के राजनैतिक मार्ग को और प्रशस्त किया परिणामत: समूचा उत्तर प्रदेश इन्ही जातीय चुनावी समीकरणो के बीच फंसकर विकास के मार्ग से विमुख हो गया. इन समाजिक - विभेदी नेताओ को अब ध्यान रखना चाहिये कि जातिगत आरक्षण को लेकर आने वाले कुछ दिनो आरक्षण का आधार बदलने की मांग उठने वाली है और जिसका समर्थन देश का हर नागरिक करेगा, क्योंकि जनता अब जातिगत आरक्षण-व्यवस्था से त्रस्त हो चुकी है और वह आर्थिक रूप से कमजोर समाज के व्यक्ति को आरक्षण देने की बात की ही वकालत करेगी.

बहरहाल आरक्षण की इस राजनीति की बिसात पर ऊँट किस करवट बैठेगा यह तो समय के गर्भ में है, परंतु अब समय आ गया है कि आरक्षण के नाम पर ये राजनैतिक दल अपनी–अपनी राजनैतिक रोटियां सेकना बंद करे और समाज - उत्थान को ध्यान में रखकर फैसले करे ताकि समाज के किसी भी वर्ग को ये ना लगे कि उनसे उन हक छीना गया है और किसी को ये भी ना लगे कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी उन्हें मुख्य धारा में जगह नहीं मिली है. तब वास्तव में आरक्षण का लाभ सही व्यक्ति को मिल पायेगा और जिस उद्देश्य को ध्यान मे रखकर संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी वह सार्थक हो पायेगा.      राजीव गुप्ता(9811558925)

आरक्षण पर राजनीति//राजीव गुप्ता

Tuesday, December 18, 2012

सब्सिडी वाले गैस कनेक्शन के लिए नये नियम

एक आवासीय इकाई में एक घरेलू एलपीजी कनेक्शन 
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में राज्‍य मंत्री श्रीमती पनबाका लक्ष्मी ने आज राज्यसभा में एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में बताया कि एलपीजी (आपूर्ति और वितरण का विनियमन) आदेश, 2000 के अंतर्गत प्रावधानों के अनुसार एक आवासीय इकाई में पति,पत्नी,अविवाहित बच्चों और आश्रित माता-पिता सहित एक साथ रह रहा परिवार, जिसकी एक साझी रसोई हो, परिवार के किसी भी वयस्क सदस्य के नाम पर जारी घरेलू एलपीजी कनेक्शन ले सकता है। उपर्युक्त शर्त के उल्लंघन में उसी पते पर अलग-अलग नामों पर और उसी नाम और उसी पते पर एक से अधिक एलपीजी कनेक्शन अनुमत नहीं है। तथापि, ऐसे कनेक्शनों को ग्राहक के अनुरोध पर गैर घरेलू छूट प्राप्त श्रेणियों (एनडीईसी) की दरों पर 14.2 कि0ग्राम कनेक्शन में परिवर्तित करने की अनुमति प्रदान की गई है। 

उन्होंने स्वीकार किया कि घरेलू इस्तेमाल के लिए एलपीजी के खुदरा मूल्य और वाणिज्यिक एलपीजी के बाजार मूल्य में अंतर होने के कारण कुछ बेईमान तत्वों द्वारा राजसहायता प्राप्त घरेलू एलपीजी सिलेंडरों के कदाचार की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। 

मंत्री महोदया ने कहा कि एलपीजी वितरण में कदाचारों को रोकने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां (ओएमसीज) वितरकों के परिसरों का नियमित रूप से औचक निरीक्षण, रीफिल जांच, ग्राहकों के परिसरों पर औचक जांच, सुपुर्दगी वाहनों की मार्गस्थ जांच, औचक गुणवत्ता नियंत्रण जांच करती है, जिसमें वितरकों के गोदामों पर सिलेंडरों का वज़न आदि करना शामिल है। एलपीजी वितरकों का किसी कदाचार में दोषी पाए जाने पर विपणन अनुशासन दिशा –निर्देशों (एमडीजी) के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाती है। 

तेल वितरण कंपनियों द्वारा की गई कार्रवाई के अतिरिक्त राज्य सरकारों को भी अनिवार्य वस्तु अधिनियम, 1955 के अंतर्गत प्रकाशित एलपीजी (आपूर्ति और वितरण का विनियमन) आदेश, 2000 के अंतर्गत घरेलू एलपीजी की कालाबाजारी के विरूद्ध कार्रवाई करने के लिए अधिकार दिए गए हैं। (PIB)   18-दिसंबर-2012 18:21 IST
वि.कासोटिया/क्वात्रा/मीना —6196

Saturday, December 15, 2012

27वीं भारतीय इंजीनियरिंग कांग्रेस का उद्घाटन

गरीबी उन्‍मूलन सतत विकास के लिए अति महत्‍वपूर्ण-राष्‍ट्रपतिराष्‍ट्रपति ने आज नई दिल्‍ली में 27वीं भारतीय इंजीनियरिंग कांग्रेस का उद्घाटन किया। इस वर्ष इस सम्‍मेलन का विषय है सतत विकास और समावेशी प्रगति के लिए इंजीनियरिंग-दृष्टिकोण-2025 ।

इस अवसर पर अपने भाषण में राष्‍ट्रपति ने कहा कि सतत विकास का लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के लिए गरीबी उन्‍मूलन अति महत्‍वपूर्ण है। श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि गरीबी और पर्यावरण प्रदूषण सीधे-सीधे आपस मे जुडे हुए हैं, खास तौर से वहां जहां लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए अपने निकट के प्राकृतिक संसाधनों की ओर देखते हैं। इसीलिए पर्यावरण संरक्षण के लिए गरीबी उन्‍मूलन जरूरी है। उन्‍होंने कहा कि जलवायु के माकूल उपयुक्‍त टैक्‍नोलॉजी इसीलिए आवश्‍यक है क्‍योंकि समाज के कमजोर वर्गों की सहायता के लिए उसकी जरूरत पडेगी। 

राष्‍ट्रपति ने कहा कि विकासशील देशों को वाजिब लागत पर नई से नई टैक्‍नोलॉजी उपलब्‍ध कराने की व्‍यवस्‍था अवश्‍य की जानी चाहिए। साथ ही, यह भी जरूरी है कि नई टैक्‍नोलॉजी पाने वाले समाज में इस टैक्‍नोलॉजी का क्‍या असर पडेगा- इसकी सूचना उन्‍हें दी जानी चाहिए। लेकिन जहां भी संभव हो, स्‍थानीय रूप से मौजूद तकनीकों का उत्‍कृष्टिकरण किया जाना चाहिए और उन्‍हें अधिक कुशल और उपयोगी बनाकर अपनाया जाना चाहिए। 
(PIB)  14-दिसंबर-2012 15:31 IST
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मीणा/शुक्‍ल /चन्‍द्रकला-6105

डाकघरों का आधुनिकीकरण और विविधीकरण

14-दिसंबर-2012 19:06 IST
समूचे देश में विभागीय डाकघरों का आधुनिकीकरण
                                                                                                                                                   Courtesy Photo
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्‍य मंत्री डॉ. श्रीमती किल्‍ली क्रुपारानी ने बताया कि सरकार ने देश के सभी डाकघरों का नवीनतम सुविधाओं आदि के साथ आधुनिकीकरण करने का निर्णय लिया है। उन्‍होंने राज्‍य सभा में एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में बताया कि डाक विभाग ने प्रोजेक्‍ट ऐरो के माध्‍यम से अपने डाकघरों के लुक एण्‍ड फील को सुधारने का निर्णय लिया है। चरणबद्ध तरीके से समूचे देश में विभागीय डाकघरों का आधुनिकीकरण करते हुए इस परियोजना की शुरूआत की गई है जिसका उद्देश्‍य उन डाकघर प्रचालनों में स्‍पष्‍ट, उल्‍लेखनीय, असाधारण सुधार लाना है जो आम आदमी से संबंधित है। इसका उद्देश्‍य डाकघर प्रचालनों के साथ-साथ उस परिवेश का व्‍यापक सुधार करना है जिसमें डाक का लेन-देन किया जाता है। पिछले तीन वर्षों के दौरान प्रोजेक्‍ट ऐरो शामिल के तहत डाकघरों की संख्‍या निम्‍नानुसार है :2009-10–500 डाकघरों कवर किए गए 
2010-1–530 डाकघर कवर किए गए 

2011-12 – 206 डाकघर कवर किए गए कवर किए गए डाकघरों की सूची अनुबंध पर है उन्‍होंने बताया कि अतिरिक्‍त राजस्‍व का सृजन करने हेतु विभाग डाकघरों में कार्यकलापों का विविधीकरण कर रहा है जो एक सतत प्रक्रिया है। आईटी प्रोजेक्‍ट के तहत स्‍थापित आई टी प्‍लेटफार्म नए उत्‍पादों एवं सेवाओं को समर्थन देगा। अन्‍य संगठनों को उत्‍पाद एवं सेवा देने के लिए इसके विशाल नेटवर्क के प्रयोग हेतु इसके सभी कार्यकलापों में विविधीकरण किया गया है, जैसे - 

1. रेलवे आरक्षित टिकटों की बुकिंग। 
2. आधार कार्डों के लिए यूआईडी नामांकन/वितरण। 
3. चिन्हित डाकघरों में पासपोर्ट फार्मों की बिक्री। 
4. चिन्हित डाकघरों में उपयेागिता बिलों में स्‍वीकार करना। 
5. डाकघर बचत बैंक के माध्‍यम से मनरेगा लाभार्थियों को मजदूरी वितरण। 
6. ग्रामीण मूल्‍य सूचकांक डाटा का एकत्रीकरण – इस तरह से एकत्रित डाटा को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्‍वयन मंत्रालय को इलेक्‍ट्रॉनिक रूप से पारेषित किया जाता है। 
7. डाकघर बचत खातों तथा मनीआर्डर के माध्‍यम से राज्‍य सरकारों द्वारा भुगतान की जाने वाली वृद्धावस्‍था पेंशन का भुगतान।
8. सोने के सिक्‍कों की बिक्री।
9. डाकघरों इत्‍यादि के माध्‍यम से नई पेंशन स्‍कीम का प्रावधान। 

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वि.कासोटिया/कविता/तारा-6131

Wednesday, December 12, 2012

बुद्ध का भिक्षापात्र

 1 मीटर ऊंचा, 1 मीटर व्‍यास
विदेश मंत्री श्री सलमान खुर्शीद ने आज लोक सभा में एक प्रश्‍न के लिखित उत्‍तर में बताया कि एक बड़े आकार का शिला निर्मित पात्र, जो लगभग 1 मीटर ऊंचा, 1 मीटर व्‍यास, जिसके शीर्ष भाग की मोटाई लगभग 18 सें.मी. है और जिसका वजन 200-300 कि.ग्रा. है तथा जिसके ऊपरी फेरे के समानांतर अरबी तथा फारसी भाषाओं में सुलेख लिपि में कुरान की आयतें लिखी हें, इस समय काबुल स्थित अफगानिस्‍तान के राष्‍ट्रीय संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर रखा हुआ है। मूलत: यह कंधार में स्‍थापित किया गया था, जहां से इसे अफगानिस्‍तान के पूर्व राष्‍ट्रपति डॉ. नजीबुल्‍लाह के शासनकाल में काबुल ले जाया गया था। दावा किया जाता है कि यह भिक्षापात्र भगवान बुद्ध का है।

सरकार ने काबुल स्थित भारतीय दूतावास से इस पात्र की फोटो प्राप्‍त की है। निदेशक, (पुरालेख शास्‍त्र–अरबी, फारसी) भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण (एएसआई) नागपुर ने इस फोटो की जांच की है। इस फोटोग्राफ की प्रारंभिक जांच में निदेशक, (पुरालेख शास्‍त्र– अरबी, फारसी) ने उल्‍लेख किया है कि इस पात्र की बाहरी सतह पर गुदाई यह दर्शाती है कि यह पात्र कंधार नगर की किसी मस्जिद (संभावित रूप से जामा मस्जिद) से संबंधित है। उन्‍होंने सुझाव दिया है कि इसके मूल के बारे में और जानकारी प्राप्‍त करने के लिए इस पात्र की भौतिक दृष्टि से तथा भू-वैज्ञानिक दृष्टि से जांच की जानी चाहिए।
सरकार भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण के परामर्श से इस पात्र का उद्गम स्‍थापित करने के लिए अपेक्षित और उपायों, यदि कोई हों, की जांच कर रही है।  (PIB)   12-दिसंबर-2012 14:37 IST
मीणा/बिष्‍ट/चन्‍द्रकला -5987

Monday, November 26, 2012

रेल क्षेत्र

26-नवंबर-2012 20:03 IST
भारत और चीन ने किए सहमति-पत्र पर हस्‍ताक्षर
भारत और चीन ने रेलवे में तकनीक सहयोग के बारे में आज एक सहमति-पत्र पर हस्‍ताक्षर किए। सहमति-पत्र पर हस्‍ताक्षर भारत की ओर से रेलवे बोर्ड के अध्‍यक्ष श्री विनय मित्‍तल और चीन की तरफ से वहां रेल मंत्रालय में उपमंत्री श्री लॉन्‍ग झिग्‍युओ ने किया। 

सहमति-पत्र के अनुसार, दोनों देश द्रुत गति रेल, भारी वस्‍तुओं की ढुलाई और रेलवे स्‍टेशनों के विकास सहित रेल तकनीक के विभिन्‍न क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ाएंगे। दोनों पक्ष नीतियों की जानकारी प्रशिक्षण एवं विनियम कार्यक्रम, परियोजना स्‍थलों का दौरा, आदि क्षेत्र में आदान-प्रदान के आधार पर काम करेंगे। दोनों देश इस बात पर भी सहमत हैं कि भारत-चीन राजनीतिक आर्थिक वार्तालाप के तहत गठित इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर कार्य दल के तहत ही भविष्‍य में रेल क्षेत्र में सहयोग करेंगे। भारत और चीन के बीच ये समझौता हस्‍ताक्षर होने की तारीख से अगले 5 साल के लिए लागू होगा। (PIB)


वि.कासोटिया/अनिल/सुनील-5552               रेल क्षेत्र

Sunday, November 25, 2012

दीपावली व धनतेरस पर खरीदी जाती हैं लडकियां भी!

एक कदम आगे, दो कदम पीछे
Posted On November - 25 - 2012
वीना सुखीजा
चित्रांकन : संदीप जोशी
भरतपुर पुलिस ने बीती 12 नवम्बर को लुधियाना के एक गांव में दबिश डालते हुए दो ‘दलालों’ सुप्रिया कुमार व मुकेश उपाध्याय को गिरफ्तार किया। पुलिस ने उनके पास से तीन लड़कियों को बरामद किया। इन लड़कियों को मध्य प्रदेश के जबलपुर से भरतपुर में एक धार्मिक मेला दिखाने के बहाने लाया गया था। लेकिन बाद में उन्हें यह कहते हुए ‘बंदी’ बनाकर रखा गया कि उन्हें जल्द उनकी ससुराल भेजा जाएगा। इन लड़कियों को जबलपुर से लक्ष्मण  नामक व्यक्ति बहला-फुसलाकर लाया था  और उसने ही इन्हें ‘दलालों’ को बेचा था।
लेकिन यह मानव तस्करी की कोई असाधारण घटना नहीं है। यह उस भयावह परंपरा का हिस्सा है जिसमें महिलाओं के साथ जानवरों से भी बदतर सलूक किया जाता है। दीपावली व धनतेरस पर लोग देशभर में सोना व चांदी खरीदते हैं, लेकिन राजस्थान के मेवात क्षेत्र में इस अवसर पर लड़कियां ‘खरीदी’ जाती हैं, खासकर कि भरतपुर, अलवर व धौलपुर जिलों की ‘मंडियों’ में। दीपावली या उससे पहले खरीदी गई इन लड़कियों को ‘देव उठनी एकादशी’ पर ऐसे पुरुषों के साथ ‘ब्याह’ दिया जाता है जो इनसे आयु में बहुत अधिक बड़े होते हैं।
इस घटना से जाहिर होता है कि दुनिया जहां एक कदम आगे बढ़ रही है वहीं कम से कम महिलाओं के सिलसिले में दो कदम पीछे हट रही है। अब यह खबर किसी से छुपी नहीं रही है कि 31 वर्षीय भारतीय महिला सविता हलपन्नावर को मिसकैरिज के बावजूद कैथोलिक देश आयरलैंड में गर्भपात से इनकार कर दिया गया क्योंकि 21वीं शताब्दी में भी हजारों वर्ष पुरानी धार्मिक परंपराओं को जीवन के अधिकार पर वरीयता दी गई और नतीजे में सविता की मौत हो गई। सविता को बचाया जा सकता था लेकिन उसके उपचार में लगे डॉक्टरों में दकियानूसी नियमों के खिलाफ जाने का साहस नहीं था। यह घटना इतनी शर्मनाक व त्रासदीपूर्ण थी कि जिन डॉक्टरों को शपथ दिलाई जाती है कि वह बीमार का उपचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, उन्होंने ही धर्म व दकियानूसी कानून का सहारा लिया और सविता को मरने दिया।
सविता अकेली ऐसी महिला नहीं है जो त्रासदीपूर्ण नतीजों का सामना करने के लिए इसलिए मजबूर की गई कि वह महिला है। मलाला यूसुफ जई के साथ हुई घटना से भी अब पूरा संसार परिचित है। पाकिस्तान में इस 14 वर्षीय लड़की को तालिबान ने कत्ल करने का प्रयास किया था। उसका दोष सिर्फ इतना था कि वह अपने आपको व अन्य लड़कियों को शिक्षित करना चाहती थी।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि महिलाओं को अगर जान का खतरा होने पर भी गर्भपात का अधिकार नहीं है तो उन्हें शिक्षा का भी कोई अधिकार नहीं है।
संसार में परिवर्तन को छोड़कर कोई चीज स्थायी नहीं है। परिवर्तन को ही विज्ञान की भाषा में क्रमविकास कहते हैं। आज जब आधुनिक संसार तकनीकी प्रगति पर गर्व करते हुए यह बताना नहीं भूलता कि निकट भविष्य में बिना वीर्य (स्पर्म) व पुरुषों को भी बच्चे पैदा करना सम्भव हो जाएगा वहीं यह भी कड़वा सच है कि इस तकनीकी प्रगति के चेहरे पर सामाजिक प्रतीप-गमन (रिग्रेशन) कलंक बना हुआ है, चाहे वह महिलाओं व बच्चों के खिलाफ दिल दहलाने वाली हिंसक अपराधों के रूप में हो या बदजुबानी के रूप में सामने आए।
क्या इसे प्रगति कहा जा सकता है कि एक 20 दिन की बच्ची जिसका अभी नामकरण भी नहीं हुआ है, को मात्र 100 रुपये में बेच दिया जाता है और उसे भीख मांगने के औजार के रूप में प्रयोग किया जाता है। चेन्नै की यह घटना भी शायद अखबारों में न आ पाती अगर एक महिला सब इंसपेक्टर सतर्कता न बरतती। मूलाकड्डाई की मुन्नीअम्मल की मुलाकात इस बच्ची की मां सेलवी से बीती 12 नवम्बर को गवर्नमेंट स्टेनले हास्पिटल में हुई। 30 वर्षीय सेलवी विधवा है और यह बच्ची इसके दूसरे पुरुष से सम्बंध स्थापित करने के कारण वजूद में आई। मुन्नीअम्मल अस्पताल में अपने किसी रिश्तेदार को देखने के लिए गई थी कि उसकी नजर सेलवी की बच्ची पर पड़ी। सेलवी ने व्यथा कथा मुन्नीअम्मल को सुनाते हुए बच्ची को बेचने के इरादे से एक हजार रुपये मांगे, लेकिन मुन्नीअम्मल ने मात्र 100 रुपये देकर बच्ची को खरीद लिया।
बच्चे निश्चित रूप से हमारे देश का भविष्य हैं इसलिए उन्हें सम्पूर्ण विकास के लिए तमाम सुविधाएं मिलनी चाहिए, जिनमें खेलने के लिए पार्क व मैदान भी शामिल हैं। लेकिन स्थिति यह हो गई है कि सार्वजनिक स्थल जैसे पार्क, बस स्टॉप, सड़कें व चौराहे बच्चों के लिए खतरनाक स्थान बनते जा रहे हैं। बच्चों के लिए समय कितना खतरनाक हो गया है इसका अंदाजा अनेक चिन्हों से लगाया जा सकता है, जिनमें से एक यह है कि पैरेंट्स पब्लिक पार्क की तुलना में मॉल के नियंत्रित क्षेत्र को अपने बच्चों के लिए अधिक सुरक्षित जगह मानते हैं। ‘अर्ली चाइल्ड हुड एसोसिएशन’ का मानना है कि सार्वजनिक स्थल बच्चों के लिए सुरक्षित नही हैं, आप यह अंदाजा कर ही नहीं सकते कि कब कोई बुरी नीयत वाला वयस्क आपके बच्चे की तरफ कदम बढ़ा दे। हद तो यह है कि धार्मिक स्थल भी अपराधियों के अड्डे बन गए हैं। चूंकि साहित्य अपने दौर का आइना होता है, इसलिए आज का शायर कहता है :-
माहौल के ज़हर से जो लोग  वाकिफ हैं,
अपने बच्चों को घर से निकलने नहीं देते।

बहरहाल, खतरा सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं है बल्कि महिलाओं ने भी सुबह व शाम को अपनी सहेलियों के साथ वॉक पर निकलना बंद कर दिया है। अब तो बंगाल के लोक (पुरुष) भी भद्र (विनीत, सभ्य) नहीं रहे हैं, जैसा कि पश्चिम बंगाल में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों से स्पष्ट है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार बंगाल में बलात्कार की घटनाओं में पिछले एक साल के दौरान 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो कि राष्ट्रीय वृद्धि (33 प्रतिशत) से लगभग दोगुनी है। मध्य प्रदेश के बाद पश्चिम बंगाल में बलात्कार (29133) की सबसे ज्यादा घटनाएं हुई हैं। इसी प्रकार बंगाल में महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाओं में 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यह भी इस संदर्भ में अखिल भारतीय वृद्धि (24 प्रतिशत) से दोगुनी से भी अधिक है।
हद तो यह है कि बंगाल की महिलाएं न सिर्फ घर के बाहर बल्कि घर के अन्दर भी असुरक्षित हैं। इस राज्य में नवविवाहित महिलाओं पर ससुराल में की गई ज्यादतियों की पिछले एक साल में 19722 घटनाएं रिकार्ड की गई हैं, जबकि घरेलू हिंसा की वारदातें बंगाल में अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा होती हैं। महिला संगठनों का कहना है कि ये आंकड़े पूरी तरह से सही नहीं हैं क्योंकि बलात्कार, छेड़छाड़, उत्पीडऩ आदि की बहुत सी घटनाओं को तो रिकार्ड ही नहीं किया जाता है।
लेकिन अकेले बंगाल को ही दोष क्यों दिया जाए। देश में हर जगह यही हाल देखने को मिल रहा है। एक समय में मुंबई को महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित जगह समझा जाता था कि अकेली महिला भी वहां बिना किसी डर के रह सकती थी। लेकिन अब इस महानगर में भी हाल यह है कि एक स्पेनी छात्रा से बांद्रा जैसे पॉश इलाके के फ्लैट में बलात्कार किया गया, बुजुर्ग विधवा की उसके घर में हत्या कर दी गई व एक नाबालिग पर सेक्सुअल हमला किया गया।  पिछले महीने (अक्तूबर) हरियाणा में सामूहिक बलात्कार की 19 घटनाएं हुईं, जिनमें एक पीडि़त बच्ची तो मात्र 13 वर्ष की थी। जबकि बेंग्लुरू के सम्मानित नेशनल लॉ स्कूल के कैंपस में एक 22 वर्षीय महिला को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया गया। जब इस महिला ने हमले का विरोध किया तो उसकी गर्दन काट दी गई।
लेकिन इन दर्दनाक घटनाओं से भी अफसोसनाक बात यह है कि महिलाओं के खिलाफ इस हिंसा को राजनीतिक रंग देने का प्रयास किया गया या पीडि़त पर ही सारे इल्जाम लगा दिए। मसलन, हरियाणा में जब दलित महिलाओं को सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा था तो एक नेता ने कहा कि 90 प्रतिशत ‘बलात्कार’ आपसी सहमति से होते हैं। हरियाणा सरकार की एक मंत्री ने इन वारदातों को ‘राज्य सरकार के खिलाफ साजिश’ बताया। खाप पंचायतों ने बलात्कार के लिए फास्ट फूड को दोषी ठहराया। खाप पंचायतों ने यह भी कहा कि बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को कम कर देना चाहिए।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महिलाओं के खिलाफ हिंसक अपराध निरंतर बढ़ते जा रहे हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार 2001 में देश में बलात्कार की घटनाएं 16075 हुई थीं जो 2011 में बढ़कर 24206 हो गईं। इसी तरह 2001 में 14545 महिलाओं का अपहरण किया गया जबकि 2011 में यह आंकड़ा बढ़कर 35565 हो गया। जहां तक महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा की बात है तो 2001 में 49170 महिलाएं अपने पति की क्रूरता का शिकार हुई थीं, जबकि 2011 में यह संख्या बढ़कर 99135 हो गई। 2001 में 6851 दहेज हत्याएं हुई थीं जो 2011 में बढ़कर 8618 हो गईं।
एक समय था जब हम अपने आप से सवाल किया करते थे कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वास्तव में इजाफा हो रहा है या मीडिया के विस्तार के कारण इस किस्म की खबरों को हम ज्यादा सुन रहे हैं? लेकिन अब हम अपने आपको धोखा नहीं दे सकते; क्योंकि महिलाओं के विरुद्ध हर किस्म की हिंसा में तेजी आई है। कहा यह जा रहा है कि चूंकि जॉब्स की कमी है और महिलाएं प्रतिस्पर्धा में शामिल हो रही हैं, इसलिए उन्हें भेदभाव व हिंसा का सामना तो करना ही पड़ेगा।
सशक्तीकरण का सच

लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के मुंह से महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक शब्दों को इन दिनों सुना जा सकता है। महिला संगठनों ने इसका विरोध किया है लेकिन बाकी किसी को इसकी परवाह नहीं है। संसद में नियमित छोटी-छोटी बातों पर गर्मागर्म बहस होती है व रोजाना ही कोई न कोई समूह यह प्रदर्शन करता है कि उसकी भावनाओं को ठेस पहुंची है। लेकिन महिलाओं की भावनाओं को तो हर पल ठेस पहुंचती रहती है, उनका अपमान किया जाता है, गाली दी जाती है व उनके खिलाफ हिंसा की जाती है।
इस बारे में कहीं कुछ नहीं होता, सिवाय इसके कि कुछ महिला संगठन विरोध प्रदर्शन कर देते हैं व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर आधे घंटे की बहस छेड़ दी जाती है। कभी न इस पर सवाल होता है और न ही हल करने का प्रयास किया जाता है कि 2011 में देश की विभिन्न अदालतों में 95065 बलात्कार के मामले ट्रायल के स्तर पर थे जिनमें से मात्र 26 प्रतिशत पर ही फैसला हुआ । इसी तरह से घरेलू हिंसा के 3.4 लाख मामले व महिला अपहरण के 71078 मामले अदालतों में लंबित पड़े हैं। यौन-उत्पीडऩ (25099) व दहेज (29669) के मामले भी लंबित हैं। आप हैरत करेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में दिशा-निर्देश जारी किए थे कि बलात्कार पीडि़तों को आर्थिक मुआवजा दिया जाए, लेकिन इस पर योजना बनाने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग को 10 साल का समय लगा।
एक रिपोर्ट के आधार पर न सिर्फ विकसित देशों ने बल्कि पड़ोसी श्रीलंका जैसे अनेक विकासशील देशों ने प्लान बना लिया है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि अपने देश में अब तक ऐसा नहीं हुआ है।
कुछ देशों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर विराम लगाने के लिए जो तरीके अपनाए गए हैं उनको अपने देश में भी लागू करना लाभकारी हो सकता है। मसलन, ऑस्ट्रेलिया में पुरुषों, विशेषकर सांसदों व सामुदायिक नेताओं को प्रेरित किया जाता है कि वह महिलाओं के खिलाफ हिंसा के विरुद्ध बोलें। तुर्की में नवविवाहित जोड़ों को घरेलू हिंसा कानूनों व प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी जाती है। इस प्रकार के विशिष्ट दृष्टिकोण महिलाओं के खिलाफ हिंसा में कमी ला सकते हैं, लेकिन क्या महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने वाले हमारे नेता ऐसे प्लान को बनाने के लिए तैयार हैं? (दैनिक ट्रिब्यून से साभार)

दीपावली व धनतेरस पर खरीदी जाती हैं भी!
हिंदुत्व शंखनाद सोशल साइट्स पर भी काफी सक्रिय है। राष्ट्र के लिए, राष्ट्र वादियों के साथ जुड़ना और जोड़ना हैं ये एक गैर राजनैतिक संगठन हैं !!अभी हाल ही में पोस्ट की गई एक रचना यहां भी प्रकाशित की जा रही है।गौरतलब है की मूल तौर पर यह रचना अरविन्द कुमार गुप्ता जी की है। महानता के  दावों को आईना  दिखाती यह रचना आपको कैसी लगी अवश्य लिखें।-रेक्टर कथूरिया
बात दुर्ग के रेलवे स्टेशन की है.., कल रात .,मैं ट्रेन के इंतज़ार में रेल्वे - प्लेटफार्म पर टहल रहा था .,
एक वृद्ध महिला , जिनकी उम्र लगभग 60 - 65 वर्ष के लगभग रही होगी ., वो मेरे पास आयी और मुझसे खाने के लिए पैसे माँगने लगी ....
उनके कपडे फटे ., पूरे तार - तार थे., उनकी दयनीय हालत देख कर ऐसा लग रहा था की पिछले कई दिनों से भोजन भी ना किया हो ..
मुझे उनकी दशा पर बहुत तरस आया तो मैंने अपना पर्स टटोला ., कुछ तीस रुपये के आसपास छुट्टे पैसे और एकहरा " गांधी " मेरे पर्स में था .,
मैंने वो पूरे छुट्टे उन्हें दे दिए...
मैंने पैसे उन्हें दिए ही थे ., कि इतने में एक महिला ., एक छोटे से रोते - बिलखते., दूधमुहे बच्चे के साथ टपक पड़ी ., और छोटे दूधमुहे बच्चे का वास्ता देकर वो भी मुझसेपैसे माँगने लगी ... मैं उस दूसरी महिला को कोई ज़वाब दे पाता की उन वृद्ध माताजी ने वो सारे पैसे उस दूसरी महिला को दे दिए ., जो मैंने उन्हें दिए थे .... पैसे लेकर वो महिला तो चलती बनी... लेकिन मैं सोचमें पड़ गया ... मैंने उनसे पूछा की-" आपने वो पैसे उस महिला को दे दिए ..??? "
उनका ज़वाब आया -" उस महिला के साथउसका छोटा सा दूधमुहा बच्चा भी तोथा ., मैं भूखे रह लूंगी लेकिन वो छोटा बच्चा बगैर दूध के कैसे रह पायेगा ... ??? भूख के मारे रो भी रहा था ..."

उनका ज़वाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गया .... सच ... भूखे पेट भी कितनी बड़ी मानवता की बात उनके ज़ेहन में बसी थी ....
उनकी सोच से मैं प्रभावित हुआ ., तो उनसे यूं ही पूछ लिया की यूं दर -बदर की ठोकरे खाने के पीछे आखिर कारण क्या है ...???

उनका ज़वाब आया की उनके दोनों बेटो ने शादी के बाद उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया ., पति भी चल बसे .., आखिर में कोई चारा न बसा ...
बेटो ने तो दुत्कार दिया ., लेकिन वो भी हर बच्चे में अपने दोनों बेटो को ही देखती है ., इतना कहकर उनकी आँखों में आंसू आ गए ...

मैं भी भावुक हो गया .,मैंने पास की एक कैंटीन से उन्हें खाने का सामान ला दिया ... मैं भी वहा से फिर साईड हट गया ...
लेकिन बार-बार ज़ेहन में यही बात आ रही थी ., की आज की पीढी कैसी निर्लज्ज है ., जो अपनी जन्म देने वाली माँ तक को सहारा नहीं दे सकती ...??? लानत है ऐसी संतान पर .... और दूसरी तरफ वो " माँ " ., जिसे हर बच्चे में अपने " बेटे " दिखाई देते है ....
धन्य है " मातृत्व-प्रेम

Friday, November 23, 2012

राष्ट्रपति ने प्रदान किये

23-नवंबर-2012 16:49 IST
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर साहित्य रत्न सम्मान
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज (23 नवंबर 2012) 21 प्रख्यात लेखकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ साहित्य रत्न सम्मान प्रदान किये। 

इस अवसर पर, राष्ट्रपति ने आजादी के संघर्ष में श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के योगदान एवं हिन्दी साहित्य के प्रति उनके द्वारा की गयी सेवाओं का उल्लेख किया। 

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वि.कासोटिया\यादराम\चित्रदेव-5493

मोदी का जादू क्या है ?

गुजरात : जैसा मैने देखा // राजीव गुप्ता      
                                                                                                                                                                 Courtesy Photo
पिछ्ले दिनो मुझे गुजरात जाने का अवसर मिला. शहर की चकाचौन्ध से कोसो दूर ग्रामीणो के बीच कई दिनो तक उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. अभी तक मैने गुजरात के बारे मे अच्छा – बुरा  मात्र मीडिया की माध्यम से ही सुना था परंतु गुजरात की आम-जनता से सम्मुख होने का यह अनुभव मुझे पहली बार प्राप्त हुआ. एक तरफ जहा मीडिया मोदी के जादू के बारे मे अपना आंकलन प्रस्तुत करने की कोशिश करता है तो दूसरी तरफ वह 2002 मे गोधरा मे हुए दंगो से आगे सोच ही नही पा रहा. इसी बीच अमेरिका-ब्रिटेन द्वारा मोदी की तरीफ ने मुझे गुजरात देखने को और अधिक बेचैन कर दिया. एक तरफ जहां ये सेकुलर बुद्धिजीवी और मीडिया की आड़ में राजनेता अपनी राजनीति की रोटियां सेकने में व्यस्त है तो वही इससे कोसो दूर गुजरात अपने विकास के दम पर भारत के अन्य राज्यों को दर्पण दिखाते हुए उन्हें गुजरात का अनुकरण करने के लिए मजबूर कर रहा है . 
मोदी की जादू के बारे मे वहा के ग्रामीण-समाज से मुझे जानने का अवसर मिला. सड्के अपनी सौन्दर्यता से मेरा ध्यान अपनी ओर बार-बार खींच रही थी. पुवाडवा, चनडवाना, मांगरोल, धोरडो, खावडा, कुरण, धौलावीरा, लखपत, क़ानेर, उमरसर जैसे अनेक गांवो मे खस्ता हालत मे सड्को को ढूंढ्ने की मैने बहुत कोशिश की पर असफल रहा. लगभग हर गांव को सडको से जुडे हुए देखकर मुझे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की उस दूरदर्शिता की याद आ गयी जिसे उन्होने जोर देकर भारत के हर गांव को सडक से जोड्ने के लिये प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक योजना की शुरुआत की थी.

गुजरात के प्रत्येक गांव मे 24 घंटे बिजली की आपूर्ति होती है ग्रामीणो की इस बात ने मुझे और हैरत मे डाल दिया, परंतु उनकी यह बात सौ प्रतिशत सच थी कि गुजरात के सभी गांवो मे बिजली कभी नही जाती. उत्सुकतावश मैने उनसे बिजली वितरण प्रणाली और बिजली चोरी की बात भी की तो उनके माध्यम से पता चला कि बिजली वितरण प्रणाली के चलते बिजली चोरी यहा सम्भव ही नही है क्योंकि हर घर मे बिजली का मीटर लगा है और पूरे गांव क एक अलग से बिजली का मीटर लगा है. हर गांव के सरपंच को यह निर्देश है कि गांव के बिजली के मीटर की रीडिंग और हर घर के मीटर की रीडिंग का कुल योग बराबर होना ही चाहिये अन्यथा जबाबदेही सरपंच के साथ-साथ पूरे गांव की ही होगी. परिणामत: बिजली चोरी का सवाल ही नही उठता.
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समरस ग्राम पंचायत के बारे मे उनसे पहली बार जानने का मौका मिला. ग्राम पंचायत को और अधिक मजबूत करने के उद्देश्य से नरेन्द्र मोदी द्वारा समरस ग्राम पंचायत की शुरुआत की गयी. समरस ग्राम पंचायत का अर्थ समझाते हुए मुझे उन लोगो ने मुझे बताया कि हमारे यहा अन्य राज्यो की भांति सरपंच का चुनाव कोई सरकारी मशीनरी द्वारा न होकर अपितु गांव के लोग ही मिलकर अपना सरपंच चुन लेते है और ऐसे सभी समरस ग्राम पंचायत को विकास हेतु सरकार अलग से वितीय सहायता देती है. परिणामत: सरपंच के चुनाव हेतु सरकारी खर्च बच जाता है और गांव के लोगो के मन-मुताबिक उनका मुखिया भी मिल जाता है.  कुरण गांव के लोगो ने सोढा प्राग्जि एवम सता जी का उदाहरण भी बताया कि उनके यहा मुस्लिम समुदाय की संख्या लगभग 50,000 है और हिन्दु समुदाय की संख्या लगभग 400 ही है परंतु सोढा प्राग्जि एवम सता जी जो कि हिन्दु समुदाय से ही थे उनके निर्णयो की कसमे आज भी लोग खाते है. छोटे-मोटे झगडो का निपटारा पंचायत द्वारा गांव मे ही कर दिया जाता है.   उन सबकी यह बात सुनकर मुझे मुंशी प्रेमचन्द की कहानी पंच-परमेश्वर एवम गान्धी के पंचायत राज की याद आ गयी. वास्तव मे अपनी कई खूबियो के चलते गुजरात की पंचायत व्यवस्था देखने लायक है.
वैसे तो कुरण गांव मे रहने वाले लोग अनुसूचित जाति से सम्बन्धित है परंतु उस गांव के मन्दिर मे पुरोहित भी अनुसूचित जाति से ही है. इस गांव का आदर्श उन कुंठित राजनेतओ के मुह पर तमाचा है जो समाज विभेद की राजनीति करते हुए छुआछूत को बढावा देते हुए अपने वोट बैंक की राजनीति करते है. गुजरात के हर गांव मे एक पानी – संग्रहण की व्यवस्था है जिसका उपयोग सामूहिक रूप से सभी ग्रामीण अपने जानवरो को पानी पिलाने, कपडे धोने, एवम स्नान इत्यादि के लिये करते है. खेती की सिंचाई हेतु सरकार द्वारा कई छोटे-छोटे तालाब बनवाये गये है जिसमे बारिश का पानी संग्रहित किया जाता है. परिमात: किसानो को सिचाई हेतु भरपूर पानी मिलता है.

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इतना ही नही इस गांव मे ही 8वी तक का स्कूल है जिससे बच्चो को प्राथमिक पढाई हेतु गांव से बाहर जाने की नौबत ही नही आती. इस स्कूल मे लड्के – लड्कियो का अनुपात भी बराबर ही है. गांव के इस स्कूल की खासियत यह है कि यहा पर बच्चो को सीधे  बायोसेफ प्रोग्राम जो कि  जी सी ई आर टी, गान्धीनगर द्वारा संचालित होता है से उनका पूरा पाठ्यक्रम पढाया जाता है. इस स्कूल के  सभी बच्चो कम्पय़ूटर से न केवल अपने पाठ्यक्र्म को पूरा करते है अपितु वे अपनी समस्याये सीधे इंटरनेट के जरिये जी सी ई आर टी से भी पूछ सकते है. अध्यापिकाओ की संख्या अध्यापको की संख्या से अधिक ही है. इस स्कूल के पुस्तकालय की तरफ आप स्वत: ही खींचे चले जाते है.   
वैसे तो गांव के नजदीक ही कोई न कोई कम्पनी लगी है जिससे वहा के स्थानीय निवासियो को रोजगार सुलभ है परंतु लोगो का मुख्य व्यवसाय पशु-चारण और दुग्ध – उत्पादन ही है. एक-एक घर मे लगभग सैकडो गाय है. झुंड के झुंड चरती गायो को देखकर तो मुझे एक बार द्वापर युग और गुप्त-काल की याद आ गयी जहा नन्दगांव मे भगवान श्रीकृष्ण गायो को चराने जाते थे और दूध की नदिया बहती थी. मुझे सबसे आश्चर्य की बात यह लगी कि इन गायो का स्वामी हिन्दू समुदाय से न होकर मुस्लिम समुदाय से थे और वे सभी भी गाय को दूध-उत्पादन के लिये ही पालते है. हिन्दु समुदाय के साथ – साथ  उनके लिये भी गाय पूजनीय ही है साथ ही कभी भी वहा गाय का वध नही किया गया. घी से सराबोर रोटी के साथ छाछ अनिवार्यत: मिलेगी. इतना ही नही गांव के लोगो द्वारा दूध/छाछ सप्ताह मे दो दिन “मुफ्त” मे बांटा जाता है. एक बार तो मुझे लगा कि शायद मै किसी सपने मे हू परंतु यह ग्रामीण गुजरात की वास्तविकता थी. कई-कई दिन घर से बाहर लोग पशुओ को चराते रहते है और एक गाडी पैसे देकर उन पशुओ का सारा दूध इकट्ठा कर यात्रियो के लिये चलने वाली सरकारी बसो की सहायता से शहर मे पहुचा देती है. परिणामत: उन सभी को रोजगार उनके घर पर ही मिल जाता है.           
कच्छ के सफेद रण और भगवान द्त्तात्रेय के मन्दिर जहा कभी लोग जाने से भी डरते थे परंतु आज दृश्य पूर्णत: बदल चुका है. नरेन्द्र मोदी द्वारा इन स्थानो को पर्यटन का रूप देने से आज देश ही नही विदेशो से भी लोग कच्छ के सफेद रण और भगवान द्त्तात्रेय के मन्दिर को देखने आते है. हर वर्ष रणोत्सव मनाया जाता है जिसमे गुजरात के ग्रामोद्योग को बढावा देने हेतु हस्तकला इत्यादि की प्रदर्शनी लागायी जाती है जिसे देखने लाखो की संख्या मे विदेशी सैलानी आते है. परिणामत: वहा के ग्रामीण समाज को रोजगार वही उपलब्ध हो जाता है.                 इतना ही नही भुज से लगभग 19 किमी दूर एशिया का सबसे उन्नत केरा नामक एक गांव है. इनके घर शहर की कोठियो जैसे ही है व इस गांव के हर परिवार का कोई न कोई सद्स्य एनआरआई है.   

                                                     Courtesy Photo
महिलाये देर रात तक बिना किसी भय के शहर/गांव व नदियो/झीलो के सौन्दर्य घाटो पर घूमती है. अहमदाबाद का चिडियाघर सौन्दर्यता का एक विशिष्ट उदाहरण है. कानून – व्यवस्था के बारे मे गुजरात के कुछ पुलिसवालो से बात करके पता चला कि उन्हे अपवाद स्वरूप ही महीने मे किसी झगडे इत्यादि मे जाना पड्ता है. और तो और ग्रामीण गुजरात मे मुझे कही भी हिन्दु-मुस्लिम समुदाय के बीच किसी भी प्रकार की विभाजन की रेखा देखने को नही मिली जैसा कि बारबार मीडिया द्वारा दिखाया जाता है. इतना ही नही एक आंकड़े के अनुसार गुजरात में मुसलमानों की स्थिति अन्य राज्यों से कही ज्यदा बेहतर है . ध्यान देने योग्य है कि भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात के मुसलमानों की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक है और सरकारी नौकरियों में भी गुजरात - मुसलमानों का प्रतिशत अन्य राज्यो की तुलना मे अव्वल नंबर पर है .  और तो और एक बार तो पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के 84वे स्थापन दिवस के मौके पर  गुजरात के कृषि विकास को देखते हुए यहा तक कहा था कि जलस्तर में गिरावट , अनियमित बारिश और सूखे जैसे समस्याओ के बावजूद गुजरात 9 प्रतिशत की अभूतपूर्व कृषि विकास दर के माध्यम से भारत के अन्य राज्यों पर अपना परचम लहरा है जबकि भारत की कुल कृषि विकास दर मात्र 3 प्रतिशत है . विश्व प्रसिद्द ब्रोकरेज मार्केट सीएलएसए ने  गुजरात के विकास विशेषकर इन्फ्रास्ट्रक्चर , ऑटोमोबाइल उद्योग तथा डीएमईसी प्रोजेक्ट की सराहना करते हुए यहाँ तक कहा कि नरेंद्र मोदी गुजरात का विकास एक सीईओ की तरह काम कर रहे है . यह कोई नरेंद्र मोदी को पहली बार सराहना नहीं मिली इससे पहले भी अमेरिकी कांग्रेस की थिंक टैंक ने उन्हें 'किंग्स ऑफ गवर्नेंस' जैसे अलंकारो से अलंकृत किया . नरेंद्र मोदी को  टाइम पत्रिका के कवर पेज पर जगह मिलने से लेकर ब्रूकिंग्स के विलियम एन्थोलिस, अम्बानी बंधुओ और रत्न टाटा जैसो उद्योगपतियों तक ने एक सुर में सराहना की है .
Courtesy:Hindu Jan Jagruti Samiti
नरेंद्र मोदी की प्रशासक कुशलता के चलते फाईनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में लिखा था कि देश के युवाओ के लिए नरेंद्र मोदी प्रेरणा स्रोत बन चुके है . पाटण जिले के एक छोटे से चार्णका गाँव में सौर ऊर्जा प्लांट लगने से नौ हजार करोड़ का निवेश मिलने से वहा के लोगो का जीवन स्तर ऊपर उठ गया . ध्यान देने योग्य है कि अप्रैल महीने में  नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी काउंसिल जनरल पीटर तथा एशियाई विकास बैंक के अधिकारियों की मौजूदगी में एशिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा पार्क का उद्घाटन किया था जिससे सौर ऊर्जा प्लांट से 605 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा जबकि शेष भारत का यह आंकड़ा अभी तक मात्र दो सौ मेगावाट तक ही पहुंच पाया है . भले ही कुछ लोग गुजरात का विकास नकार कर अपनी जीविका चलाये पर यह एक सच्चाई है कि गुजरात की कुल मिलाकर 11 पंचवर्षीय योजनाओं का बजट भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना के बजट के लगभग समकक्ष है .                                        
गुजरात के सरदार बल्लभ भाई पटेल को स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री न बनाकर इतिहास मे एक पाप किया गया जिसकी सजा पूरा देश आज तक भुगत रहा है परंतु वर्तमान समय मे अब ऐसा कोई पाप न हो यह सुनिश्चित करना होगा. नरेन्द्र मोदी जो कि संघ के प्रचारक भी रहे है परिणामत: उन्हे समाज के बीमारी की पहचान होने के साथ-साथ उन्हे उसकी दवा भी पता है. अत: अपनी इसी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता के चलते आज भारत ही नहीं विश्व भी नरेंद्र मोदी को भारत का भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखता है जिसकी पुष्टि एबीपी नील्‍सन ,  सीएनएन-आईबीएन और इण्डिया टुडे तक सभी के सर्वेक्षण करते  है और तो और  नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का अनुमान कई सोशल साइटो पर  भी देखा जा सकता है .   

राजीव गुप्ता स्वतंत्र पत्रकार है:  9811558925
मोदी का जादू क्या है ?

Wednesday, November 21, 2012

विशेष भारतीय सिनेमा शताब्‍दी पुरस्‍कार

गोवा में 43वें भारतीय अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह में भारतीय फीचर फिल्‍म के सौ साल पूरे होने के मद्देनज़र दस लाख रूपये के एक विशेष पुरस्‍कार की शुरूआत की गई है। भारतीय अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्म समारोह के निदेशक श्री शंकर मोहन ने कहा कि विशेष भारतीय सिनेमा शताब्‍दी पुरस्‍कार के लिए फिल्‍म का चुनाव अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍पर्धा, सिनेमा ऑफ द वर्ल्‍ड और भारतीय पैनोरमा से नामांकित तीन फिल्‍मों में से होगा। बुद्धदेब दास गुप्‍ता, गौतम घोष और किशवार देसाई की विशेष जूरी इन नामांकनों पर निर्णय लेगी । विजेता फिल्‍म को दस लाख रूपये का नकद पुरस्‍कार, रजत मयूर और एक प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा। (PIB) 20-नवंबर-2012 13:08 IST
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मीणा/विजयलक्ष्‍मी/मधुप्रभा-5403

सेंसरशिप वैश्विक समस्या- क्रिज्टॉफ जानुस्सी

कहा सेंसरशिप हमारी जिंदगी को प्रभावित करने वाली कठोर व्यवस्था
पोलैंड के प्रख्यात फिल्म निर्माता क्रिज्टॉफ जानुस्सी ने सेंसरशिप को वैश्विक समस्या माना है और इससे निपटने के लिए उपयुक्त मार्ग तलाशने पर बल दिया है। उन्होंने कहा सेंसरशिप हमारी जिंदगी को प्रभावित करने वाली कठोर व्यवस्था है और गैर-लोकतांत्रिक राष्ट्र इसे बेहद कडाई से लागू करते हैं जबकि लोकतांत्रिक देशों का रवैया अधिक लचीला होता है। 43वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में जीवनकालिक उपलब्धियों के लिए गोवा में आज शाम सम्मानित होने वाले जानुस्सी आज सवेरे मीडिया को संबोधित कर रहे थे । कम्फलेज, फैमिली लाइफ, द साइलेंट टच, द कॉन्ट्रैक्ट और रिविजिटेड जैसी सराहनीय फिल्मों का निर्माण करने वाले जानुस्सी ने विश्व को दिशा देने के लिए उच्च विचारों पर जोर दिया। भारत में सेंसरशिप के मुद्दे पर एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि इंटरनेट एक संपूर्ण नवीन समाज का निर्माण कर सकता है और यह हमें ध्वस्त भी कर सकता है इसलिए एक संतुलित मार्ग की पहचान करना बडी चुनौती है। समारोह में उनकी फिल्म “इल्युमिनेशन” को प्रदर्शित किया जाएगा। 

भारतीय सिनेमा के बारे में श्री क्रिज्टॉफ ज़ानुस्सी ने कहा कि स्‍वतंत्र सिनेमा और लोकप्रिय फिल्‍में एक दूसरे के पूरक हैं। उन्‍होंने कहा कि लोकप्रिय फिल्‍मों का सम्‍मान किया जाना चाहिए क्‍योंकि यह आम व्‍यक्ति की संस्‍कृति को दर्शाती हैं। अपने देश में सिनेमा के बारे में श्री जानुस्सी ने कहा कि वहां पर इस दिशा में अच्‍छा काम चल रहा है लेकिन जो पहचान, 1980 की शुरूआत में राजनीतिक उथलपुथल के दौरान थी वैसी नहीं है। उन्‍होंने कहा कि पोलैंड में कॉम्‍युनिस्‍ट युग की तुलना में अब स्थिति बेहतर है लेकिन युवा फिल्‍म निर्माताओं को नई समस्‍याओं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ज़ानुस्सी ने भौतिकी विषय में शिक्षा ग्रहण की है। उन्‍होंने कहा कि भौतिकी को जब ग्ंभीरता के साथ पढ़ा जाए तो वो इंजीनियर पढ़ाई न लगकर तत्‍व विज्ञान जैसी लगती है। श्री ज़ानुस्सी ने 80 से अधिक फिल्‍में और वृत चित्रों का निर्माण किया है।(PIB)
(20-नवंबर-2012 14:21 IST
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मीणा/प्रियंका/विजयलक्ष्‍मी/चन्द्रकला-5404

Saturday, October 27, 2012

फेसबुक पर नई रचना

एक 'अमेरिकन" पर "पाकिस्तानियों" का हमला...! 
फेसबुक एक अलग और नई दुनिया बन के विकसित हो रही है. एक ऐसी दुनिया जो सोशल नेटवर्किंग से कहीं आगे बढ़कर आपके दिल पर दस्तक देती है, आत्मा को झंक्झौरती है और अपनी सोच का रुख बदलने पर भी विवश कर देती है. इस दुनिया में जिंदगी के हर अच्छे बुरे रंग की चर्चा होती है. फेसबुक पर पोस्ट होने वाली तस्वीरों के साथ साथ साहित्य भी अपनी जगह बना रहा है. एक नई एचना नजर आई है जिसे आगरा में रहने वाले बंटी ग्रोवर ने पोस्ट किया है. लीजीये आप भी पढिये यह रचना. आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य लिखें.--रेक्टर कथूरिया 
 अमेरिकन बनने के 4 घंटे बाद
एक पाकिस्तानी लड़के ने अमेरिकन स्कूल में
एडमिशन लिया।
टीचर- तुम्हारा नाम क्या है?
लड़का- अहमद।
टीचर- अब तुम अमेरिका में हो, इसलिए आज
से तुम्हारा नाम जॉन है।
लड़का घर पहुंचा...
...मां- पहला दिन कैसा रहा अहमद?
लड़का- मैं अब अमेरिकन हूं और आगे से मुझे
जॉन कहकर पुकारना।
मां और पापा ने यह सुनते ही उसकी जमकर
धुनाई कर दी।
शरीर पर चोट के निशान लिए अगले दिन वह
स्कूल पहुंचा।
टीचर- क्या हुआ जॉन?
लड़का- मेरे अमेरिकन बनने के 4 घंटे बाद
ही मुझपर 2 पाकिस्तानियों ने हमला कर
दिया !!

Monday, October 8, 2012

राष्ट्रिय विकास मंच ने किया एक और अहम एलान

गाँधी जी की विचारधारा को घर घर ले जाने का संकल्प  
13 अक्टूबर को होगा लुधियाना में बापू गाँधी का श्राद्ध
संकल्प लेते राष्ट्रिय विकास मंच के सदस्य और अन्य लोग 
महात्मा गाँधी का नाम और विचारधारा उनकी शहादत के बाद लगातार और जोर पकडती जा रही है। तेज़ी से से प्रासंगिक हो रहे गाँधी जी के विचार एक बार फिर युवायों को आकर्षित कर रहे हैं। उनके समर्थकों की सख्या भी बढ़ रही है और विरोधियों की भी। चर्चा उनक समर्थक भी उनके विचारों की करते हैं और उनके विरोधी भी। हालत यह है की गाँधी जी का विरोध करने वाले भी उनकी हत्या करने वाले नाथू राम गोडसे को सीधे सीधे नायक कहने की हालत में नहीं हैं। गत दिनों एक स्कूली छात्रा ने आरती आई के ज़रिये प्रधानमन्त्री कार्यालय से एक सवाल पूछा कि महात्मा गाँधी को बापू गाँधी की उपाधि या नाम किस ने और कब दिया। इस सवाल का जवाब न तो प्रधानमंत्री कार्यालय ने दिया और न ही गृह मन्त्रालय ने। आखिर इस बच्ची की तस्वीर, उसका सवाल और सरकार का इस पर टालमटोल का जवाब सब कुछ फेसबुक पर आ गया। राष्ट्र के बापू केसाथ यह कैसा मजाक ? जिस नमक आन्दोलन बापू ने सारी दुनिया हिला दी वही नमक देश में आजादी आ जाने के बाद महंगे भाव पर बिकने लगा। जिस स्वदेशी के नारे ने अँगरेज़ साम्राज्य की नींव हिला दी थी आजादी आ जाने के बाद आज उसी स्वदेशी की नीति को पांवों तले कुचल कर विदेशी कम्पनियों को घुटने टेक कर निमंत्रित किया जा रहा है की आईये और हमें लूटिये। देश के बापू के साथ यह कैसा खिलवाड़ ? सीधे विदेशी निवेश जको एक आवश्यक मुख्य नीती के तौर पर अपना लिया गया है। आज समझ आने लगा है की गाँधी जी ने आजादी आने के बाद कांग्रेस को भंग करने की बात क्यूं कही थी? महात्मा गाँधी का नाम लेने वाले लोग ही गाँधी जी के सपनों को धुल में मिला रहे हैं। हमारा संविधान जिस विचार, नीति और भावना की बात करता है हमारे कदम उस सब के पूरी तरह विपरीत जा रहे हैं। किसी भी तरह नहीं लगता कि  यह गाँधी जे के सपनों या विचारों की आजादी है ! 
राष्ट्रीय  विकास मंच के आयोजन की एक यादगारी तस्वीर  
हालात लगातार नाज़ुक हो रहे हैं। अमन, शांति और सदभावना के पुजारी महात्मा गाँधी को बापू कहने वाले देश में हत्या, साड्फूंक, खूनखराबा, लूटमार, बेईमानी, बलात्कार, भ्रूण हत्या, शोषण, बेरोज़गारी, छूयाछात जैसे कलंक एक आम बात हो चुकी है।  इन अत्यंत गंभीर हालात में राष्ट्रीय विकास मंच ने एक संकल्प लिया है गाँधी जी के विचारों को घर घर तक लेजाने का। इसकी औपचारिक शुरूआत की गयी दो अक्टूबर गाँधी जयंती के दिन। पहले दो छोटे छोटे से कार्यक्रम हुए लुधियाना के गोलबाग में, इसके बाद रखबाग और फिर 1 बजे गाँधी धाम पर हुआ मुख्य समारोह। गुरिंदर सूद, निर्दोष भारद्वाज, हरजीत सिंह नंदा और रवि सोई के मार्गदर्शन और संचालन में संकल्प लिया गया की वे सभी मिल कर छूआछात, साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और देश में बढ़ रहे विदेशी के चलन का दत कर विरोध किया जायेगा।  ਇਹਨਾਂ ਅੱਤ ਦੇ ਗੰਭੀਰ ਹਾਲਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਵਿਕਾਸ ਮੰਚ ਨੇ ਇੱਕ ਵਾਰ ਫੇਰ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਦੇ ਫਲਸਫੇ ਨੂੰ ਘਰ ਘਰ ਤੱਕ ਲਿਜਾਣ ਦਾ ਬੀੜਾ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ। दो अक्टूबर 2012 को शुरू हुआ यह अभियान 30 जनवरी तक जरी रहेगा। इस अभियान के अंतर्गत 13 अक्टूबर 2012 को बापू गाँधी का श्राद्ध भी किया जायेगा। गौरतलब है कि बापू के श्राद्ध का आयोजन किसी भी विचार्धार्क सन्गठन की और से शायद पहली बार किया जा रहा है। उल्लेखनीय है की 13 अक्टूबर 1948 के दिन को ही बापू गाँधी की अस्थियों का विसर्जन भी हुआ था। इस श्राद्ध में भाग लेने के इच्छुक नीचे दिए गए नम्बरों पर सम्पर्क भी कर सकते हैं। 
गुरिंदर सूद:               +91 98881 23786
रवि राज सोई:               +91 98884 92198
ਨਿਰਦੋਸ਼ ਭਾਰਦਵਾਜ :     +91 99884 03850

नीचे दिए गए दो पंजाबी लिंक भी देखें:
1*ਗਾਂਧੀਵਾਦ ਅੱਜ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ–ਮੋਹਿਤ ਸੇਨ


2*13 ਅਕਤੂਬਰ ਨੂੰ ਹੋਵੇਗਾ ਬਾਪੂ ਗਾਂਧੀ ਦਾ ਸ਼ਰਾਧ ਲੁਧਿਆਣਾ ਵਿੱਚ 

राष्ट्रिय विकास मंच ने किया एक और अहम एलान