Wednesday, January 29, 2020

हम तन्हा हर बार चले//*पुष्पिंदर कौर "नीलम"

क्या बतलायें  कैसे हमपे  दुनिया के सब वार चले!
दोधारी तलवार था जीवन फिर भी हम हर बार चले!
मौत से आँख मिलाई हमने तांकि घर संसार चले!

आग का इक दरिया था जीवन फिर भी हमने कदम रखा;
तांकि शायद सकूं का जीवन हमको भी उस पार मिले! 

किसने सपने दिखलाये और किसने सपने तोड़ दिए;
लाख भुलाया लेकिन दिल में सोच वही हर बार चले!

इक इक सांस था मुश्किल फिर भी चेहरे पर मुस्कान रही;
क्या बतलायें  कैसे हमपे  दुनिया के सब वार चले!

बेगानों का क्या कहना है अपने भी अपने न हुए;
फिर भी जीवन की हर राह पर हम तन्हा हर बार चले!

मौत इशारे करती थी और रस्ता भी आसान सा था;
लेकिन हमको जीना था कि अपना घर परिवार चले!

कदम मिलाये, कदम बढ़ाये, फिर राहों में छोड़ गए!
आज भी लगता है कि शायद फिर उनका इकरार मिले!

हर मुस्कान में गम होता है, हर गम में कोई ख़ुशी छुपी;
ध्यान से देखो रातों में भी किरणों का इज़हार मिले! 

इक उजियारा, इक अँधियारा बार बार मिलते ही रहे;
समझ न पाए कब नफरत और कब कब किसका प्यार मिले! 

हम तो हम हैं, फिर भी खुद ही समझ न पाए खुद को हम;
फिर भी चाहत है कि हमको भगवन का इज़हार मिले!
                                                ---*पुष्पिंदर कौर "नीलम" 
*जन्म भी चंडीगढ़।  कर्मभूमि भी चंडीगढ़। कुराली और खरड़ के साथ बहुत सा भावुक लगाव। औपचारिक पढ़ाई लिखाई के बाद घर गृहस्थी में रहना चाहा था लेकिन पति की मौत एक बहुत बड़ा हादसा भी थी और चुनौती भी। रोज़ी रोटी की तलाश अकाउन्टस की तरह ले आई। फिर LIC में भी भाग्य आज़माया। चुनौतिओं का सामना करने की हिम्मत और सीख वहां से भी मिली। फिर ज़िंदगी पत्रकारिता की तरफ भी ले आई। पंजाब स्क्रीन मीडिया समूह से जुड़ना कुछ ऐसा ही साबित हुआ। यहीं से मन में दबी शायरी भी जाग उठी। तब से हालात की आंधिओं में गुम हुई डायरियों का शिकवा छोड़ कर फिर से लिखना शुरू किया है। जानती हूँ बहुत सी कमियां हैं। आप सभी लोग बताते रहना। --पुष्पिंदर कौर "नीलम" 

Sunday, January 26, 2020

एक कोर्स नुमा गीत//कहां है शाहीन बाग//कार्तिका सिंह

दिल में है जज़्बा, हथेली पे जान है! वहां बैठी हर एक औरत महान है
कहां है शाहीन बाग! कहां है शाहीन बाग!
पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग!
जहां से बुलन्द हुई देश की आवाज़ है!
जहां पे छिड़ा है कुर्बानियों का साज़ है!
वही है शाहीन बाग! वही है शाहीन बाग!

पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग!

आज नया तीर्थ है, आज वही धाम है!
जिसने सुनाया हमें सच का पैगाम है!
वही है शाहीन बाग! वही है शाहीन बाग!

पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग!

छाया था अंधेरा पर वह चांदनी सा छा गया!
हर एक माथे में चिराग बन आ गया!
वही है शाहीन बाग! वही है शाहीन बाग!

पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग!

सुनो सुनो आती यहां ज़ोर से आवाज़ है!
हिम्मत और एकता की ऊंची परवाज़ है!
वही है शाहीन बाग! वही है शाहीन बाग!

पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग!

माई भागो बन के जहां औरतें हैं आ गईं!
झांसी वाली रानी का हैं रूप दिखला रहीं!
वही है शाहीन बाग! वही है शाहीन बाग!

पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग!

दिल में है जज़्बा, हथेली पे जान है!
वहां बैठी हर एक औरत महान है!
वही है शाहीन बाग! वही है शाहीन बाग!

पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग!

देश की चुनौती जिसने कर ली कबूल है!
जगह जगह खिला जहां इन्कलाबी फूल है।
वही है शाहीन बाग! वही है शाहीन बाग!

पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग! 

तिलक करो कि वहां माटी भी महान है!
एकता की आन जहां सब की ही आन है!
वही है शाहीन बाग! वही है शाहीन बाग!

पूछते हैं आज सभी कहां है शाहीन बाग!
                              ---कार्तिका सिंह
(इसका गायन/मंचन करने के इच्छुक अपना सम्पर्क//विवरण 9915322407 पर वाटसअप करें)

Thursday, January 23, 2020

सादर निमंत्रण//विमोचन//हर चिराग सूरज है

डा. राजिंद्र टोकि की पुस्तक पर प्रपत्र वचन होगा डा. अनु शर्मा कौल का
लुधियाना: 23 जनवरी 2020: (हिंदी स्क्रीन ब्यूरो)::  
जब अधिकतर लोग जाने अनजाने अपनी ऊर्जा सियासतदानों के प्रभाव में आ कर सोशल मीडिया के अलग अलग मंचों पर व्यर्थ गंवा रहे हैं उस माहौल में डा. मनोज प्रीत इन मंचों का सदुपयोग साहित्य को उत्साहित करने के नेक मकसद में कर रहे हैं। इनकी देख रेख में चलते संगठन प्रीत साहित्य सदन की ओर से इस बार हो रहा है एक नई पुस्तक का विमोचन। इस बार रिलीज़ होनी है खन्ना के रहने वाले डा. राजिंदर टोकी की पुस्तक हर चिराग सूरज है। कई दशकों से ग़ज़ल रचना में साधना रत्त डाक्टर राजिंदर टोकी लगातार साहित्य रचना में तल्लीन रहते हैं। इस पुस्तक पर प्रपत्र वाचन होगा डाक्टर अनु शर्मा कौल की तरफ से। हर बार की तरह इस बार भी मंच संचालन करेंगे डा. मनोज प्रीत। यह सारा आयोजन होगा रविवार 26 जनवरी 2020 को अपराह्न 3 बजे। इसके बाद होगी काव्य गोष्ठी। काव्य गोष्ठी में नए पुराने शायर अपना अपना कलाम प्रस्तुत करेंगे। सभी साहित्य प्रेमी सादर निमंत्रित हैं। किसी और जानकारी की आवश्यकता हो तो सम्पर्क किया जा सकता है डा. मनोज प्रीत से उनके मोबाईल नंबर:98144-30162 पर। गौरतलब है की यह आयोजन समराला चौंक के नज़दीक होना है। 

Sunday, January 12, 2020

शायरी में आज के सवाल उठाती रजनी शर्मा की एक रचना और

Sent: Friday: 10th January 2020:Whats app
दिल को छोड़ कर वह देश से पूछती है-हुआ क्या है!
लुधियाना: 12 जनवरी 2020: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::
कभी जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब साहिब ने लिखा था--दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है!आखिर  इस दर्द की दवा क्या है! यह ग़ज़ल बहुत मकबूल हुई और फ़िल्मी गीत के रूप में भी सामने आई। इसमें शब्द और संगीत का जो जादू महसूस होता है वह बहुत गहरे तक असर करता है।  यह फैसला करना मुश्किल सा लगता है कि इसके शब्द इस संगीत या इस धुन के लिखे गए या फिर यह धुन या संगीत इन शब्दों के लिए बनाई गई। जनाब गुलाम मोहम्मद साहिब ने इस की धुन बनाते समय जो कमाल दिखाया वह हमारे युग की एक विशेष उपलब्धि है। कितना सुंदर है यह संगीत और यह गीत इसकी विस्तृत चर्चा अलग से भी की गई है। यहां शायद इसका दोहराव भी होता अगर आज के युग की आधुनिक शायरा रजनी शर्मा ने अपनी यह रचना न भेजी होती। आज के हालात में हो रहे हर घटनाक्रम पर शायराना प्रतिक्रिया व्यक्त करने में बहुत अग्रणी है रजनी शर्मा। नवां शहर जैसे प्राकृतिक रंग में रंगे हुए  इलाके में रहने वाली रजनी शर्मा यूं तो अध्यापन के क्षेत्र  है लेकिन उसका अंतर्मन पूरे ब्राह्मण्ड से जुड़ा हुआ है। कहीं भी मानवता पर कुछ आघात जैसा कुछ होता है तो उसका कंम्पन,  उसका दर्द रजनी शर्मा के दिल तक भी पहुंचता है और दिमाग तक भी। इस असहनीय दर्द को झेल कर भी वह चुप नहीं बैठती। खामोश नहीं रहती। सवाल डॉ सवाल उठाती है। पूरी बुलंद आवाज़ से पूछती है। इस रचना में भी उस ने सवाल उठाये हैं। वह पूछती इस पूरे देश से, देश की जनता से और देश के कर्णधारों से। उसके यही सवाल दिल से देश तक की बात करते हैं, दुनिया तक पहुंचते हुए पूरे ब्राह्मण्ड को झंकझोरने का प्रयास करते हैं।  फिर मन के भावों का आवेग हिंदी में उठे या पंजाबी में-वह व्यक्त करके ही रहती है। देखिये उसकी शायरी की एक और झलक। -रेक्टर कथूरिया 
यह मेरे मुल्क को हुआ क्या है। 
क्या बताऊँ के मामला क्या है। 

मज़हबी चालों से उठी आँधी; 
नफ़रतों की यहाँ शिफा क्या है। 

बह रहा है लहू जो सब का तो;
दौर ए हिन्द की सजा क्या है। 

लिखनी है तो ग़ज़ल तू सच पे लिख;
झूठ का फिर ये काफिया क्या है। 

यह जो फ़रमान जारी वहशत के;
ताबो ताकत का ये नशा क्या है। 

मेरी दिवानगी पे हसते हैं;
होश वालों का माजरा क्या है। 

कलियों को यूँ सुलगते देखा तो;
दिल में मेरे ये दिलजला क्या है।                                    

आशिकी से जो ना मिले हम को;
ऐसा भगवान ओ ख़ुदा क्या है। 
                      --रजनी शर्मा

Saturday, January 11, 2020

इस बार चर्चा है कविता वर्मा के कहानी संग्रह "कछु अकथ कहानी"पर

Mailed: 9th January 2020 at 3:34 PM
परवाज़ की बातें करती कहानियाँ ...//श्रद्धा श्रीवास्तव
पुस्तक संसार: 11 जनवरी 2020: (श्रद्धा श्रीवास्तव//हिंदी स्क्रीन)::
मुक्तिबोध का कथन है–सच्चा लेखक खुद का दुश्मन होता है, वह अपनी आत्मशांति को भंग करके ही लेखक हो सकता है। कविता वर्मा की कहानियों का कथ्य और किरदार इसी बेचैननियों का रूपांतरण है जो अपनी सहज सरल कथन शैली में सजगता के साथ बुना हुआ है। उनकी कहानियों का पाठ आपको मनुष्य बनाता है। आप कह सकते है पढने के बाद 'बर्फ पिघल चुकी थी जो कभी पूरी तरह जमी ही नहीं थी'। (कहानी आदत) 
कहानी संग्रह-कछु अकथ कहानी में कुल पंद्रह कहानियाँ है जो विविध विषय को अपने में समेटे हुए है जैसे आज के समय का अजनबीपन और अकेलापन, अपने एकांत की तलाश, विवाहोत्तर प्रेम-सम्बन्ध, स्त्री सशक्तिकरण, विस्थापन का दर्द, पराश्रित विधवा, दरकिनार होते धंधे, गरीबी और शोषण, सांप्रदायिक उभार, मनुष्यता और ईमान को बचाए रख पाने की कोशिश आदि। कुछ कहानियों के हवाले से देखते हैं।
संग्रह की पहली कहानी "दरख्तों के साये में धूप" दुष्यंत जी की पंक्ति है जो स्त्री के जीवन के विरोधाभास को व्यक्त करती है। "लोग सोचते है कितनी खुश है वह। खुश है जब तक सबके अनुसार सोचे और करे।" एक मम्मी की भोली-सी इच्छा है वह खुद कार ड्राइव कर सहेली के घर जाए और एक निर्णय का हौसला जुटाने के द्वन्द ही कहानी है। औरत अपनी ज़िन्दगी की गाड़ी खुद ड्राइव करे यह वास्तव में एक सुखद सपन हैं–सपने देखना और बात है, उन्हें पूरा करने के साधन जुटाना आसान है लेकिन हौसला जुटाना आसान नहीं हैं।
आज भी स्त्री को कुछ खास भूमिकाओं में देखने का हमारा समाज आदि है। स्नेह, समर्पण, वात्सल्य, करुणा, कोमलता की मूर्ति। कविता वर्मा इस गढ़ी हुई छवि से बाहर आना चाहती है। सच तो यह है इस गढ़ंत से बाहर आना आसान भी नहीं है। "अपारदर्शी सच" की तनुजा अपने पति से यौन-तृप्ति न पाकर संस्कारों के अंकुश और नैसर्गिक प्यास की कशमकश में उलझी और खोयी-खोयी रहती है, रास्ते तलाशती अवश्य है वह ...समाज में स्त्री व पुरुष के इस संयम पर-पर स्वयं से बात भी करती हैं और अपनी विश्वसनीय सहेली निशा से भी और यहाँ पर उषा प्रियंवदा की कहानी नायिकाओं की ही तरह अपने संस्कारों को छोड़ भी नहीं पाती। कहानी की मौलिकता व नया विमर्श अवश्य रेखांकित किया जाना चाहिए जहाँ पति मनीष ही टूटने से बचाते है यह कहकर- "मैं तुम्हारा दोषी हूँ ...तुम चाहो तो..." 
इसी तरह "अभिमन्यु लड़ रहा है" "व" दाग-दाग उजाला" में विवाहेत्तर समबंधो के पीछे का मनोविज्ञान व्यक्त हुआ है। एक पुरुष मित्र से दोस्ती की इज़ाजत भी है तो किस कीमत पर? सोनाली का भास्कर द्वारा ठगा जाना और इस्तेमाल किये जाना और अपने पति मयंक का अविश्वास पाठक को सालता है ...दरअसल मन को समझाना ही जीवन को नए अर्थ दे सकता है। 
एक ओर जहाँ सामराज की स्त्री पात्र वह बूढी अम्मा अपनों की उपेक्षा का खतरा, भौतिकवाद के खतरे के प्रति हमें सचेत करती है वह पात्र भी कभी ठकुराइन थी जो अब सड़क पर भिखारिन की तरह रहती है जिसे अपने प्रति एक निर्मम अन्याय की कोई शिकायत ही नहीं है ... "अम्मा तुम पुलिस के पास क्यों नहीं जाती, वह तुम्हारे बेटों से कहेंगी तुम्हें रखें। -नहीं बेटा अब वापस उते नहीं जाने जो थो सो ठाकुर साब को उनके बाद उनके लड़कों को। स्त्री का संपत्ति पर हक़ का कानून तो है पर स्त्री ही नकार रही है। वही दूसरी ओर विदा कहानी की माता पिता की इकलौती संतान दाखा है जिसने अट्ठारहवें साल में पिता का साया उठ जाने के बाद रणचंडी बनकर तमाम विरोध के बाद सबसे लड़कर पगड़ी पहनी और खेत खलिहान और माई की जिम्मेदारी भी खुद उठायी। दाखा एक सशक्त पात्र है। दाखा में अनायास ही हमें शिवमूर्ति की" कुच्ची" का अक्श दिखता है।
"बहुरि अकेला" कहानी में एक दर्शन छुपा है वस्तुतः हम सब अकेले है। जीवन एक यात्रा है। यात्रा आपको दुख से उबारती है। यात्रा में जिसका साथ मिला उसके बारे में कथा नायिका का कथा नायक से कहना है "आज शाम यह यात्रा खत्म हो जाएगी, यह साथ छूट जायेगा जिसमें कहीं कोई वादे न थे, कोई आवेग न था, न कोई रूठना मनाना, न चुहल भरी चटपटी बातें लेकिन फिर भी बिछड जाने का दुःख उस पर हावी था, फिर कभी न मिल पाने की कसक थी।"
एक और कहानी गौरतलब है, गरीबी और लाचारी की। "आसान राह की मुश्किल" जहाँ मजदूर देवला और सेठ के बीच शोषक और शोषित का रिश्ता ज्यो का त्यों है ठीक वैसा ही जैसे सवा सेर गेहूँ में शंकर और पुरोहित का। देवला गरीबी से त्रस्त है और अत्यधिक काम के बोझ से भी। वह सोचता है–बीस रुपये का क़र्ज़ करे? कर्जा ही करना है तो बीस रुपयें का क्यों? इतना पैसा उठाये की सारी ज़रूरते पूरी हो जाएँ। उसे अपनी नियति मालूम है गुलामी।
"कछु अकथ कहानी" का झेमरिया बड़ोदा में एक सेठ की जमीन बटाई पर लेता है घर परिवार के कई लोग हिस्सेदार होते है। अपनी कमाई के पूरे रुपए लेकर जब वह गाँव पहुचता है तो वहाँ की कहानी यह है गाँव में जो आटा चक्की डाली है उसका बिल कैसे भरा जाएँ। साहेब के द्वारा बिल आधा हो जाने व साहेब ने उसकी बात पर विश्वास कर पांच सौ रुपये भर दिए थे ...पांच सौ रुपएँ साहब द्वारा दिए जाने पर भी वह बैचेन है–वह अपने से कहता है ' ए झेमरिया तू कई एतरा भला मानस के धोके देवोगो? "बल्कि पाठक बिजली के बिल का सच जनता है जो इन अपढ़ गरीबों से अंगूठा लगा कर भराया जाता होगा ...यही कहानी संग्रह का प्राण है और मुक्तिबोध के कथन के माध्यम से कहना होगा" आत्मपरक ईमानदारी तथा वस्तुपरक सत्यपरायणता इन दोनों का अन्तःकरण में जो संवेदनात्मक योग होता है, वह जीवन विवेक का प्राण है। जीवन विवेक के दोनों पक्षों में से किसी एक को छोड़ा नहीं जा सकता। 
कछु अकथ कहानी (कहानी संग्रह )
लेखिका -कविता वर्मा  
कलमकार मंच, जयपुर राजस्थान 
मूल्य -केवल 150 रूपए 
समीक्षा: श्रद्धा श्रीवास्तव 
F/4, प्रियदर्शनी हाईट्स
गुलमोहर कॉलोनी
भोपाल (मध्य प्रदेश)
मोबाइल 94254 24802
shraddha.kvs@gmail.com

Friday, January 10, 2020

विश्व हिंदी दिवस 2020 पर कार्तिका सिंह की विशेष काव्य रचना

हिंदी में फिल्में देखी और गीत सुने ! हिंदी में ही बातें की और स्वप्न बुने!
हिंदी में जो अपनत्व है वह और कहां !
हिंदी में जो ममत्त्व है वह और कहां !

हिंदी में कुछ कहें तो अपना लगता है !
बाकी सब कुछ सपना सपना लगता है !

हिंदी में ही सोचना अच्छा लगता है !
हिंदी में ही बोलना अच्छा लगता है !

होश संभाला आरती सुन कर हिंदी में !
बड़े हुए जन गण मन पढ़ कर हिंदी में।

हिंदी में फिल्में देखी और गीत सुने !
हिंदी में ही बातें की और स्वप्न बुने।

हिंदी में ही गणित है और विज्ञान भी !
हिंदी में ही है अंतरिक्ष का ज्ञान भी !

दुनिया भर में पहुंच बढ़ी है हिंदी की !
दुनिया भर में बात चली है हिंदी की !

हिंदी का सम्मान ही अपना गौरव है !
हिंदी का यह मान ही अपना गौरव है !

आओ मिल कर सब हिंदी की बात करें !
हिंदी सब की अपनी बस यह बात करें !
                                        --कार्तिका सिंह 

Wednesday, January 8, 2020

विश्व पुस्तक मेले से लौटकर कविता वर्मा की विशेष रिपोर्ट

Tuesday: 8th January 2020 at 3:44 PM
यह पुस्तक मेला गांधी जी को समर्पित है
नई दिल्ली: 7 जनवरी 2020: (कविता वर्मा//हिंदी स्क्रीन)::
दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले का इंतजार पुस्तक प्रेमियों लेखकों और प्रकाशकों को साल भर रहता है। अभी कुछ वर्षों से यह जनवरी के प्रथम शनिवार से दूसरे रविवार तक लगने लगा है। हालांकि इस समय दिल्ली कड़ाके की ठंड और कोहरे की गिरफ्त में होती है और दूरदराज के प्रदेशों से आने वाले पुस्तक प्रेमियों लेखकों को ट्रेन बस या फ्लाइट की लेटलतीफी या निरस्त होने की आशंका से जूझना पड़ता है। लेकिन फिर भी उनका उत्साह कम नहीं होता।  
 यह पुस्तक मेला एक ही छत के नीचे लेखकों के आपसी मेलजोल पुस्तक विमोचन अपने प्रिय लेखक से मिलने और कुछ चर्चा परिचर्चा का अवसर देता है। लगभग हर दिन विभिन्न प्रकाशकों के स्टॉल पर बड़ी संख्या में पुस्तक विमोचन होता है। इस स्टॉल से उस स्टाॅल तक रेलम पेल लगी रहती है। लेखक खुद अपने दोस्तों परिचितों को याद दिला दिला कर स्टॉल तक खींच लाते हैं वहां जो भी वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित होते हैं उन्हीं के हाथों विमोचन करवाया जाता है। 
कुछ  बड़े या कहें लोकप्रिय प्रकाशक जिनके यहां से बहुत पुस्तकों का प्रकाशन होता है वह कुछ मीडिया फोटोग्राफर या वीडियो ग्राफर को भी बुलाते हैं और फिर बकायदा कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग होती है। लेखक और वरिष्ठों की बाइट ली जाती है जिसे सोशल मीडिया पर प्रसारित करके पुस्तक की पब्लिसिटी की जाती है। 
दरअसल पुस्तक मेले में पुस्तक विमोचन लोगों का जमावड़ा फोटो वीडियो आदि का  समस्त तामझाम सोशल मीडिया या अपने अपने यूट्यूब चैनल पर पुस्तक के प्रचार-प्रसार के लिए ही होता है। इसमें न लेखक को अलग से खूब इंतजाम करना होते हैं और न प्रकाशक को कोई खर्च। अब इस सब में कुछ मित्र गण मन से कुछ रिश्तो की खातिर तो कुछ शर्मा शर्मी में कुछ किताबें खरीद लेते हैं। कुछ वहीं के वहीं गिफ्ट भी कर दी जाती हैं समीक्षा की उम्मीद में। वरिष्ठ भी इस बात से खुश होते हैं कि पुस्तक मेले में झोले भरकर किताबें मिलीं। बहरहाल किताबें लिखी जा रही हैं प्रकाशित हो रही हैं और उसकी सूचना प्रसारित हो रही है यह जरूरी है और पुस्तक मेला यह कार्य बखूबी कर रहा है। लगभग सभी हिंदी भाषी प्रदेशों के लेखक और प्रकाशक सूचनाओं के आदान-प्रदान में लगे हैं। 
इस वर्ष देश गांधी जी का डेढ़ सौ वाँ जन्म वर्ष मना रहा है और यह पुस्तक मेला गांधी जी को समर्पित है। पुस्तक मेले के बैनर पोस्टर पर गांधी जी की तस्वीर और डेढ़ सौ का शून्य उनका चरखा इस शून्य होती संवेदना के युग में नया वितान रचता है। इस चरखे से बना सूत गांधी जी के हाथों में बड़ा संदेश देते हैं । 
पुस्तक मेला हर वर्ष हॉल 12 ए में  लगता है इस बार इसका आकार काफी बड़ा है। जहाँ हिंदी इंग्लिश के साथ अन्य भाषाओं की पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। हॉल 12 ए में प्रवेश के साथ ही योग खानपान आचार व्यवहार  प्रेरणादायक कहानियों की पुस्तकों के स्टॉल हैं जहाँ सबसे ज्यादा भीड़ रहती है। वहीं बच्चों के लिए बाल कहानी कविता खिलौने वर्क बुक भी बहुतायत में उपलब्ध हैं। बच्चों के लिए आजकल खूब साहित्य लिखा जा रहा है और कई बड़े साहित्यकार बच्चों के लिए लिख रहे हैं। बाल साहित्य की रंग बिरंगी मोटे चिकने पृष्ठों की मोटी मोटी किताबें भी साहित्य के प्रकाशन से छप रही हैं। हालांकि अभी इस बाल साहित्य का आकलन होना बाकी है। नेशनल बुक ट्रस्ट बाल साहित्य पर अच्छा काम कर रहा है लेकिन साहित्य की अन्य विधाओं की तरह ही इस पर किसी तरह का पैमाना नहीं है। मोटे चिकने रंग-बिरंगे पृष्ठों में किताबों की कीमत भी बढ़ा दी है जिससे वह एक वर्ग विशेष की पहुंच तक रह गई हैं और वह वर्ग विशेष शायद पुस्तकों में रुचि ही नहीं रखता। प्रकाशक लेखक अगर दिखने की सुंदरता के मोह से बाहर आएं और पेपर बैक में सामान्य रेखा चित्रों के साथ बाल साहित्य की पुस्तकों को प्रकाशित करें तो इनकी पहुंच सही हाथों तक हो सकती है। 
पुस्तक मेले में बड़े नामी और पुराने प्रकाशकों के यहाँ भारी भीड़ देखी जाती है और यह भी रिसर्च पुस्तकों के लिए ज्यादा उमड़ती है। हिंदी साहित्य में रिसर्च संबंधित वरिष्ठ साहित्यकारों नामवर सिंह धर्मवीर भारती कमलेश्वर की पुस्तकें यहां पेपर बैक में उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं। यहाँ प्रकाशक किसी सेलिब्रिटी की बायोग्राफी या अन्य पुस्तकों पर उनके हस्ताक्षर सहित पुस्तक का प्रलोभन देकर अच्छी कमाई करते हैं। 
मेले के बीचो बीच एक मंच पर चर्चा परिचर्चा विमोचन साक्षात्कार के कार्यक्रम लगातार चलते हैं। लगभग पचास लोगों की बैठक व्यवस्था के साथ आधे से एक घंटे के टाइम स्लॉट में अलग-अलग कार्यक्रम होते रहते हैं जिन्हें कोई भी अपनी रूचि के अनुसार देख सुन सकता है। इसी मंच पर  मशहूर एक्टर  प्रेम चोपड़ा की बायोग्राफी के हिंदी अनुवाद का विमोचन का कार्यक्रम भी हुआ यश पब्लिकेशन से आए इस अनुवाद को किया श्रुति अग्रवाल ने और इंग्लिश में बायोग्राफी लिखी है स्वयं प्रेम प्रेम चोपड़ा की बेटी ने।
 हर वर्ष कार्यक्रमों की संख्या बढ़ती जा रही है इसलिए एक अन्य हॉल में भी सेमिनार हॉल उपलब्ध है इस हाल में इंग्लिश और अन्य भाषाओं की पुस्तकों के स्टॉल भी हैं। 
हार्ड कॉपी में प्रकाशित पुस्तकों का अपना महत्व है लेकिन आज का युवा डिजिटल हो गया है और सोशल मीडिया के प्रचार-प्रसार के बाद अगला दौर डिजिटल साहित्य का है। आज कई वेब पोर्टल ईमैग्जीन चलताऊ से लेकर अच्छा सार्थक साहित्य उपलब्ध करवा रहे हैं। इन्हीं में एक मातृ भारती पोर्टल ने तो बकायदा लेखकों को प्रकाशन पूर्व मानदेय देना भी प्रारंभ किया है। आज इस वेब पोर्टल पर हजारों कहानियाँ कविताएँ लघुकथाएँ और उपन्यास उपलब्ध हैं। जो संपादन टीम की नजरों से गुजर कर इस वेब पोर्टल पर पहुंचते हैं और डाउनलोड के आधार पर अपने पाठकों की संख्या की जानकारी भी लोगों तक पहुंचा रहे हैं। 
 युवा वर्ग इस डिजिटल माध्यम से ही भारतीय साहित्य तक पहुंच रहा है अन्यथा वह देशी विदेशी इंग्लिश या अनुवादित पुस्तकों तक सीमित है। अगर कहा जाए कि ये वेबपोर्टल  युवाओं को भारत से जोड़ रहे हैं तो गलत नहीं होगा। 
कुल मिलाकर विश्व पुस्तक मेला साहित्य का बड़ा समागम है इसका आकर्षण ही इसकी सार्थकता है। यहाँ आया हर लेखक प्रकाशक पाठक समीक्षक आलोचक और युवा यहाँ से कुछ लेकर ही जाता है चाहे वे किताबें हो मिलने जुलने की संतुष्टि हो या अच्छी यादें।          --कविता वर्मा

नीलिमा शर्मा की काव्य रचना सफेद कुरता सीधा दिल में उतरती है

इसके बाद कौंधती हैं दिमाग में यादों की बिजलियां 
अब तुम कही भी नही हो
कही भी नही
ना मेरी यादो में
न मेरी बातो में
अब मैं मसरूफ रहती हूँ
दाल के कंकड़ चुन'ने में
शर्ट के दाग धोने में
क्यारी में टमाटर बोने में
एक पल भी मेरा
कभी खाली नही होता
जो तुझे याद करूँ
या तुझे महसूस करू
मैंने छोड़ दिए
नावेल पढने
मैंने छोड़ दिए है
किस्से गढ़ने
अब मुझे याद रहता हैं बस
सुबह का अलार्म लगाना
मुंह अँधेरे उठ चाय बनाना
और सबके सो जाने पर
उनको चादर ओढ़ाना
आज तुमको यह कहने की
क्यों जरुरत आन पढ़ी हैं
सामने आज मेरी पुरानी
अलमारी खुली पड़ी हैं
किस्से दबे हुए हैं जिस में
कहानिया बिखरी सी
और उस पर मुह चिडाता
तेरा उतारा सफ़ेद कुरता भी
नही नही !! अब कही भी नही हो
न मेरी यादो में न मेरी बातो में
फिर भी अक्सर मुझको सपने में
यह कुरता क्यों दिखाई देता हैं...... --नीलिमा शर्मा 
नीलिमा शर्मा के ब्लॉग में उनकी यह काव्य रचना "सफेद कुरता" एक यादगारी प्रभाव छोडती है। सीधा दिल में उतरती है और फिर दिमाग में किसी बिजली की तरह कौंधने लगती है। उन अहसासों की अनुभूति कराती है जब हम बहुत कुछ भूलना चाहते हैं।  खुद को इधर उधर व्यस्त करते हैं लेकिन फिर भी खुद बेबस सा पाते हैं। जल्द ही यूं लगता है जैसे हार रहे हैं।  कभी कभी तो हारने का मन भी होता है।  लेकिन दिल की बातें न समाज सुनता है न ही दिमाग। उस उधेड़बुन के अहसास को महसूस करना, पकड़ पाना पाना या शब्दों में बांध पाना आसान कहां? इसके बावजूद  इसे बहुत ही सादगी और खूबसूरती से प्रस्तुत किया है नीलिमा शर्मा ने सफेद कुरता नाम की अपनी काव्य रचना में। 
कभी जानमाने शायर अहमद फ़राज़ साहिब ने कहा था न--
पहले पहले का इश्क अभी याद है फ़राज़!
दिल खुद यह चाहता था कि रुसवाईयां भी हों! इसके साथ ही उनका एक और शेयर याद आता है---
वो मुझ से बिछड़ कर खुश है तो उसे खुश रहने दो “फ़राज़ “
मुझ से मिल कर उस का उदास होना मुझे अच्छा नहीं लगता…
मोहब्बत में कैसे कैसे उतराव चढ़ाव आते हैं, कैसे कैसे ख्याल  हैं उनको पकड़ पाना या याद रख पाना आसान नहीं होता। ज़िंदगी के फ़र्ज़ों और ज़िम्मेदारियों का गहन अंधेरा और उस अंधेरे में कौंध जाना यादों की बिजलियों का।  जैसे बिजली का कौंध जाना बरसात के मौसम में किसी कठिन पहाड़ी रास्ते में पल भर में रास्ता दिखा जाता है बस उसी तरह यादों का अहसास ज़िंदगी में भी मार्गदर्शन करता है। उस अहसास को महसूस करना भी आसान नहीं होता जिसे पकड़ने में सफलता पाई है नीलिमा शर्मा जी ने। इस सफल रचना के लिए एक बार फिर से बधाई। --रेक्टर कथूरिया