Tuesday, December 14, 2021

मीरा, महादेवी वर्मा और अमृता प्रीतम-परंपरा की उत्तराधिकारिणी:जसप्रीत कौर फ़लक

पुस्तक लोकार्पण के आयोजन में शामिल हुई प्रमुख शख्सियतें 


लुधियाना
: 12 दिसंबर 2021: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::

पाकिस्तान की मरहूम लेखिका बानो कुदसिया ने एक लम्बी कहानी या फिर नावलैट जैसी एक रचना लिखी थी आठवां रंग। यह कहानी बहुत सी भाषाओं में अनुवाद हो कर भी छपी। जिस जिस ने भी इस कहानी को पढ़ लिया वह इसे भूल नहीं पाया। हमारी ही ज़िंदगी में हमारे ही आसपास ऐसा बहुत कुछ घटित होता है जिसकी झलक का अहसास इस कहानी में  मिलता है। वैसे खतरा भी कि यह कहानी बहुत से लोगों को चिंताजनक हद तक निराशा में भी धकेल सकती है। इसे पढ़ पाना और फिर पहले की तरह बने रहना सब के बस का नहीं है। पंजाबी में इस अनुवाद को सर्वप्रथम अमृता प्रीतम ने अपनी लोकप्रिय रही पत्रिका "नागमणि" में प्रकशित किया था। फिर इस कहानी को अमृता जी ने अपने संकलन "13 अवाज़ां" में भी शामिल किया जिसे प्रकशित किया था दिल्ली के उस समय के जाने माने प्रकाशक राज पैकेट बुक्स ने। शयद चली पचास वर्ष पूर्व। बाद में यह किताब भी नज़र नहीं आ सकी और न ही यह कहानी भी। फिर शब्द नाम की पत्रिका ने जब बानो कुदसिया पर विशेषांक प्रकाशित किया थी फिर इस कहानी की चर्चा दोबारा से शुरू हुई। जब जसप्रीत कौर फलक की नयी पुस्तक मार्किट में आयी तो बानो कुदसिया की कहानी भी फिर से ज़हन में आ गई। इसी तरह आठवें रंग की तलाश में बेचैन लोगों की तलाश हमारी टीम को भी रहती है। वास्तव में कुछ गिनेचुए लोग ही ारहवें रंग में भटकना को गले लगते हैं। इसी तलाश में मुलाकात हुई जसप्रीत फलक से। वह भी आठवें रंग की तलाश में है। खूबसूरती के साथ साथ कलम का जूनून और अध्यापन का प्रोफेशन। आम तौर पर ऐसे लोग बेहद व्यस्त रहते हैं।आराम का भी वक्त नहीं मिल पाता लेकिन जसप्रीत फलक ने तो साहित्य साधना के लिए पुरा वक्त निकाला। 

साहित्यिक संस्था 'कविता कथा कारवां' (रजि.) एवं 'कथा कारवां प्रकाशन' की ओर से प्रसिद्ध हिन्दी कवयित्री जसप्रीत कौर फ़लक के नये पंजाबी कविता संग्रह 'अठवें रंग दी तलाश' का लोकार्पण पंजाबी भवन, लुधियाना में पंजाबी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. रविंदर भट्ठल की अध्यक्षता में आयोजित एक भव्य समारोह सम्पन्न हुआ। ज़िला भाषा अधिकारी श्री संदीप शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में पधारे। 

कनाडा से प्रवासी साहित्यकार मीता खन्ना विशिष्ट अतिथि के रूप में तशरीफ़ लाईं। वरिष्ठ साहित्यकार त्रिलोचन लोची ने सभी उपस्थित साहित्य प्रेमियों का स्वागत करते हुए जसप्रीत कौर फ़लक को पंजाब की श्रेष्ठ संभावनाशील कवयित्रियों में स्थान दिया। इस अवसर पर पुस्तक 'अठवें रंग दी तलाश' पर एक सारगर्भित विचार चर्चा भी करवाई गई। 

विख्यात साहित्यकार-आलोचक प्रिंसिपल डॉ. गुरइकबाल सिंह ने जसप्रीत कौर फ़लक के संवेदना एवं रचना संसार पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए उन्हें भोगे हुए यथार्थ की कवयित्री सिद्ध किया और हिंदी भाषी होते हुए भी उत्कृष्ट पंजाबी सृजन के लिए उनकी सराहना की। विचार चर्चा को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ शायर सरदार पंछी समेत हरमीत विद्यार्थी, मनिंदर गोगिया, सहजप्रीत मांगट, परमजीत सिंह सोहल, चरनजीत सिंह, करमजीत ग्रेवाल, शैली वधवा,अजमेर सिंह आदि ने जसप्रीत कौर फ़लक के रचना संसार के विविध पहलुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। राजेन्द्र साहिल ने उनकी अनुभूति की प्रामाणिकता और सच्चाई को रेखांकित करते हुए उन्हें मीरा, महादेवी वर्मा और अमृता प्रीतम की परंपरा की उत्तराधिकारिणी सिद्ध किया। 

इसी के साथ-साथ संंस्था 'कविता कथा कारवां' के न्यूज लैटर का भी उपस्थित साहित्य प्रेमियों के कर-कमलों के द्वारा विमोचन भी किया गया। कार्यक्रम में प्रसिद्ध गायक धर्मेंद्र मसाणी, जतिंदर जीतू एवं गुरदर्शन धूरी और मीता खन्ना ने जसप्रीत कौर फ़लक को जन्मदिन की बधाई देते हुए उनकी ग़ज़लों का सुमधुर गायन प्रस्तुत किया। समारोह में आयोजित कवि दरबार में अमरजीत शेरपुरी, हरमीत पोएट, हरजीत लाडवा, जसकीरत सिंह, नवकमल सिंह, नवप्रीत सिंह, सारा सैफ़ी आदि ने जसप्रीत फ़लक की काव्य रचनाएं प्रस्तुत करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इसके अतिरिक्त संस्था द्वारा करवाए गए यू-ट्यूब लाइव कार्यक्रम में भाग लेने वाले नवोदित कवि-कवयित्रियों नभराज सिंह, हर सिमर सिंह एवं दिलप्रीत कौर को विशेष पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया। 

इस अवसर पर तरसेम नूर, सागर सियालकोटी, अमृतपाल गोगिया, हरदीप विरदी, वरिंदर जटवाणी, इरादीप त्रेहन, राजदीप तूर, मीनू कटारिया, सिमरन धुग्गा, सिमरतजीत कौर, मनिंदर कौर मन, अनु शर्मा, अनु पुरी एवं अन्य साहित्यिक व्यक्तित्व उपस्थित थे। कार्यक्रम में उपस्थित समस्त साहित्य प्रेमियों, साहित्यकारों एवं विशिष्ट अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। मंच संचालन की परिश्रम साध्य भूमिका प्रसिद्ध गीतकार प्रभजोत सोही ने निभाई। अंत में धर्मेंद्र शाहिद एवं जसप्रीत कौर फ़लक ने समस्त आगंतुकों को सहृदय धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए आभार प्रकट किया।

Wednesday, December 1, 2021

भाषा विभाग की ओर से फलक की नई पुस्तक रिलीज़

 जसप्रीत फ़लक का काव्य संग्रह 'अठवें रंग दी तलाश' अब मार्किट में 


लुधियाना
: 1 दिसंबर 2021: (हिंदी स्क्रीन ब्यूरो):: 

उर्दू के साथ साथ हिंदी, पंजाबी और अंग्रेजी में अपना हाथ आज़माने वाली शायरा जसप्रीत कौर फलक का नाम किसी जान पहचान का मोहताज नहीं है। उसने लगातार लिखा है और सक्रिय हो कर उसे छपवाया भी है। लिख लिख कर पांडुलिपियों का ढेर लगाने वाले ज़माने में जसप्रीत कौर फलक ने प्रकाशक ढूंढे या प्रकाशकों ने इस शायरा को ढून्ढ ´निकाला लेकिन कुछ कुछ अंतराल के बाद जसप्रीत कौर फलक की कोई न कोई पुस्तक सामने आती रही। इन पुस्तकों पर चर्चा  भी काफी हुई। इस बार जसप्रीत कर फलक सामने ै है अपनी नई पंजाबी पुस्तक को लेकर। पुस्तक का नाम है आठवें रंग की तलाश। फलक की इस नई पुस्तक को रिलीज़ करने का  यादगारी आयोजन करवाया भाषा विभाग पंजाब ने। आयोजन में बहुत से नामी कलमकार शामिल हुए।  

प्रसिद्ध हिन्दी कवयित्री जसप्रीत कौर फ़लक के नये पंजाबी कविता संग्रह 'अठवें रंग दी तलाश' का लोकार्पण भाषा विभाग पंजाब की ओर से आयोजित 'पंजाबी माह' के भव्य 'विदाई समारोह' में मुख्य अतिथि शिरोमणि पंजाबी आलोचक डॉ. जसविंदर सिंह, कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. सुरजीत लीअ, विशेष मेहमान शिरोमणि पंजाबी साहित्यकार निंदर घुंघिआणवी और पंजाबी, हिंदी, उर्दू साहित्य के अनेक प्रमुख हस्ताक्षरों के कर-कमलों के द्वारा सम्पन्न हुआ। 

भाषा विभाग की डायरेक्टर श्रीमती करमजीत कौर ने जसप्रीत कौर फ़लक की इस सृजनात्मक उपलब्धि पर उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की और उन्हें भविष्य में निरंतर सृजनशील रहने के लिए प्रेरित किया। जसप्रीत कौर फ़लक ने इस पल को अपने जीवन का अविस्मरणीय पल बताया। इस समारोह में विख्यात पंजाबी गायिका अमर नूरी विशेष रूप से उपस्थित थीं। इसके अतिरिक्त इस अवसर पर प्रसिद्ध साहित्यकार ओमप्रकाश गासो, दीपक जालंधरी, सरदार पंछी, सतनाम सिंह, वीरपाल कौर आदि समेत अनेक गणमान्य साहित्यकार और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

Friday, November 5, 2021

कातिलों के हाथ में देकर देश...//-रीतू कलसी

क्यों नही उठती इतने शोर में भी यह भारत माता 

किसान शवों की तस्वीर बोलता भारत टीवी के पेज से साभार 

रीतू कलसी प्रोफेशन से पत्रकार है और दिल से शायरा। बहुत ही बेबाकी से लिखने वाली पत्रकार और लिहाज़ शायरी में नहीं करती। उसकी कब्रों और ऋüपोर्टों में शायरी की झलक मिल जाती है और शायरी में खबरों की। मीडिया की डयूटी ने कभी जालंधर, कभी फ़िरोज़पुर, कभी लुधियाना, कभी नोयडा और कभी इंदौर। इस तरह डयूटी ने घाट घाट का पानी पिलवा दिया और कलम के बहाने बहुत सी जगहों के लोग देख लिए। इन रंगों से इंद्रधनुष तो  लेकिन अब उस आठवें रंग की रंग की झलक भी मिलने लगी है जिसकी तलाश साहित्य की दुनिया बानो पाकिस्तान की लेखिका बानो कुदसिया ने भी की थीऔर भी बहुत से लोग कर रहे हैं। देखिए इस काव्य रचना की एक झलक। --रेक्टर कथूरिया 

कातिलों के हाथ में देकर देश 

कर रहे हैं हम न्याय की बातें 

पत्रकारिता और शायरी का 
कॉम्बिनेशन है रीतू कलसी 
जिस देश के नेता करते हों बातें

लठ मारने की किसानों को।

ऐसे देश में न्याय की बातें

जहां गाड़ियों के नीचे रौंदे जाते हों अन्न दाता।

एसी कमरों में बैठ कर खाते हों खाना

इन्हीं अन्न दाता के हाथ से पैदा किए हुए को

लगाते साथ में ठहाके बिना शर्म कर।

तुमने कितने मारे

मैंने इतने मारे करते होंगे बातें

जैसे खेल रहें हों कोई खेल 

लगाते जोर-जोर से नारे 

भारत माता की जय।

क्यों नही उठती इतने शोर में भी यह भारत माता 

क्या बहरी हुई पड़ी है 

क्यों नही तड़प रही, या तड़पन को छुपा रही है।

उठो कुछ तो करो अब फैसले की घड़ी है 

अपने साथ उठाओ अपने अवाम को भी। 

सबक़ सिखाने की घड़ी आ पहुंची है।

बहुत बह गया है खून अपनों का 

कभी हिन्दू-मुस्लिम करते 

कभी अमीर-गरीब करते

कभी सवर्ण-दलित करते।

बस अब बहुत हुआ 

एक साथ सबको अब होना है

न्याय की मशाल को खुद ही उठाना है

                          -रीतू कलसी

Monday, November 1, 2021

लुधियाना के पंजाबी भवन में हुआ अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन

डॉ. अंजना कुमार की पुस्तक "कुछ मेरे दिल ने कहा" का विमोचन 


लुधियाना
: 31 अक्टूबर 2021: (ज्योति बजाज//हिंदी स्क्रीन)::

ईश्वर के आशीर्वाद से साहित्यक दीप वेलफेयर सोसाइटी (रजि) द्वारा तिथि 31 अक्टूबर, 2021 दिन रविवार को शहर लुधियाना के पंजाबी भवन में अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन एवं डॉ. अंजना कुमार जी की लिखी हुई पुस्तक "कुछ मेरे दिल ने कहा" का विमोचन समारोह भी आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में श्रीमती डॉ. अंजना कुमार जी कानपुर से यहां उपस्थित हुई। सुप्रसिद्ध गज़लकार एवं लेखक श्री सागर सियालकोटी जी और श्री तरसेम नूर जी ने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि की भूमिका निभाई। मुख्य मेहमान के रूप में अजय सिंह जी(अंबाला),  विवेक जी, गौरव जी तथा धरेंद्र सिंह जी भी शामिल हुए। कार्यक्रम की शुरुआत ज्योति प्रज्वलन करने के बाद  कुमारी श्वेता जी ने सरस्वती वंदना पढ़ के की। मंच संचालन का कार्य बड़ी ही शालीनता एवं प्रेम से श्रीमती शैली  वाधवा जी एवं श्री अकरम बलरामपुरी जी ने संभाला। इस कवि सम्मेलन में नेपाल से फयाज़ फैज़ी जी, योगेंद्र सुन्द्रियाल जी दिल्ली से, शब्द दीप्ती जी करनाल से, मनोज मनमौजी जी फरीदाबाद से, चंद्रमणि चंदन जी दिल्ली से, क्रांति पांडे दीप क्रांति जी मध्य प्रदेश से, शिवेश ध्यानी जी सहारनपुर से, हरी  बहादुर सिंह प्रतापगढ़ से, प्रांशु जैन देवबन्द से, गिरीश सोनवाल राजस्थान से शामिल हुए। इसके अतिरिक्त लुधियाना से मलकीत सिंह मालधा जी, मोनिका कटारिया जी, पूनम सपरा जी, सिमरन धुग्गा जी, सुखमनदीप कौर मिनी जी, छाया शर्मा जी, रंजीत कौर सवी जी एवं इरादीप त्रेहन जी ने इस कवि सम्मेलन में अपनी अनूठी प्रस्तुतियां पेश कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। 

साहित्यक दीप  वेलफेयर सोसाइटी (रजि) कार्यक्रम में पहुंच कर अपना स्नेह एवं आशीर्वाद देने वाले हर साहित्य प्रेमी को  प्रेम पूर्वक धन्यवाद करती है।  कार्यक्रम के अंत में इस संस्था की संस्थापिका कुमारी रमनदीप कौर (हरसर जाई) जी, सह संस्थापिका ज्योति बजाज जी एवं सेक्रेटरी सरदार बूटा सिंह काहने के कार्यक्रम की कामयाबी के लिए सच्चे दिल से ईश्वर को धन्यवाद देते हो यही प्रार्थना की कि हमारी संस्था द्वारा साहित्य की सेवा होती रहे एवं संस्था को साहित्य प्रेमियों से प्रेम मिलता रहे। --ज्योति बजाज 

Saturday, October 16, 2021

इस बार पुस्तक चर्चा "कोई ख़ुशबू उदास करती है''

हिंदी पुस्तक में पंजाबी का रंग इसे और भी  यादगारी  बना देता है


नई दिल्ली
: 16 अक्टूबर 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

ज़िंदगी और किस्मत जब रंग बदलती हैं तो सचमुच इसका पता तक नहीं चलने देती। गिरगिट भी मात खा जाता है। बदलाहट के बाद ही अहसास होता है कि अब पहले जैसा वो सब नहीं रहा। इसके बावजूद सतर्क कलमकार और बुद्धिजीवी इस बदलाहट को उसी वक्त पहचान लेते हैं जब यह दस्तक दे रही होती है। नीलिमा शर्मा ने बदलाहट का पता देने वाली उस मूक दस्तक की भयभीत करने वाली ख़ामोशी भरी आवाज़ के सूक्ष्म क्षणों को सफलता से पकड़ा है। उस हत्यारे दौर की तबाही को कलात्मक ढंग से कलमबद्ध किया है नीलिमा शर्मा ने। उस ज़हर को नीलकंठ की तरह पीने का प्रयास भी किया, कुछ सफलता भी मिली लेकिन वह नीलिमा थी न जिसके पास इंसान की सीमित शक्तियां होती हैं। वह देव न बन सकी। नीलकंठ न बन सकी। लेकिन इस प्रयास ने उसे बहुत ऊंचाई प्रदान की है। यह पुस्तक उस दौर की गहन उदासी से निकली है जिसकी टीस अभी सदियों तक महसूस की जाएगी। यह पुस्तक-"कोई ख़ुशबू उदास करती है'' बहुत ही विशिष्ट पुस्तक है। इसकी अनुभूति भी नीलिमा शर्मा ही कर सकती थी और इसकी अभिव्यक्ति की कला और क्षमता भी महांदेव ने नीलिमा को ही प्रदान की। तबाही अभी जारी है। तबाही की खामोश सी दस्तक भी अभी जारी है। नीलिमा जी अभी भी सुन रही हैं। इस किताब को पढ़ कर शायद आप बच सकें इस तबाही की मार से जो हम सभी की नियति ही बन गई लगती है। इस किताब को पढ़ना तो फायदेमंद रहेगा ही लेकिन पहले पढ़ लीजिए थोड़ा सा साराँश कि कैसे बनी यह पुस्तक? कैसे रखा गया  इसका नाम? यह दास्तान आपको भी उदास कर देगी लेकिन ज़िंदगी के लिए यह उदासी भी बेहद आवश्यक है। एक आवश्यक औषधि की तरह। -रेक्टर कथूरिया  

नीलिमा जी बताती हैं-एकांत की क्या कहूँ,बरसों से भीड़ के साथ रहते हुए भी मन का एक कोना अकेला है लेकिन उदास कभी नही रहता था। खुल कर ठहाके लगाना मेरी आदतों में शुमार था शायद मेरे ठहाकों को मेरी ही नज़र लग गयी। उस दिन किसी ने कहा तुमने अपनी कहानी की किताब का नाम "कोई ख़ुशबू उदास करती है'' क्यों रखा। आजकल तुम उदास लिखती हो तुम उदास लगने लगी हो, ज्यादा उदास रहने से उदासी की आदत बन जायेगी बस तब से सोच में हूँ ...

उदास होना तो प्रकृति ने सबकी नियति में लिखा है। हर कोई किसी न किसी क्षण में उदास होता है, लेकिन अवसाद को हावी नही होने देता । मैंने  तो कई बार उदासियों के महासागर देखे है लेकिन मेरे मन की छोटी सी नाव उम्मीद की पतवार के सहारे वास्को डी गामा बनकर अपनी  बाकी बचीकुची जिंदगी की तलाश में है। मन की यात्राएँ मुझे बहुत पसंद है औऱ हर बार सामने वाले को उदास देखकर अपनी ज़िन्दगी की खुशियों के लिए ईश्वर का शुकराना भी अदा करती हूँ।

आजकल मूडी हो गयी हूँ ,यस (चाहे तो) आप बूढ़ी भी पढ़ सकते है। आजकल कार की पिछली सीट पर बैठे बैठे मोबाइल में सर घुसाए रहती हूँ। शहनाज ओर सिद्धार्थ  के वीडियो देखती रहती हूँ।  परिजनों से 'कोई कंपनी मेरे बिना लॉस में नही जायेगी' के ताने उलाहने सुनती रहती हूँ। बार बार सबके कहने पर फोन को कुछ देर के लिए चार्जिंग रूपी ऑक्सिजन का मास्क पहनाती हूँ तो नजरें बाहर घूमती है कि "ओह यह तो दिल्ली है मेरी जान"। मुझे पता ही नही चलता कि दिल्ली है देहरादून ,मुज़फ्फरनगर है या मेरठ।  हवाओ की ठंडक कभी कभार ही अहसास दिलाती है कि जिस शहर में आजकल तुम रहती हो न वहाँ का मौसम थोड़ा नम है, ख़ुश्क है या  सर्द क्योंकि मन का मौसम तो आजकल खोया खोया रहता है।

खैर बात हो रही थी कार के बाहर झाँकने की।  कल दिल्ली कैंट की एक सड़क पर रेड लाइट पर ट्रैफिक काफी ज्यादा था। कारें धीरे धीरे सरक रही थी।अचानक एक काली बाइक आगे आयी। हेलमेट पहने कोई मध्यम कद काठी का लड़का (या आदमी) ड्राइव कर रहा था। एक मोटी लड़की (मुझसे कम) बाइक पर उसके पीछे बैठी थी।  झटके से एकदम मेरी विंडो के साथ  बाइक रुकी थी तो नज़र जाना स्वाभाविक ही था।  पाकिस्तानी लॉन प्रिंट का पलाज़ो सूट पहने उस लड़कीं का हाथ उस लड़के की कमर पर था और आगे से उसकी शर्ट को मुठ्ठी में हल्का पकड़ा हुआ था।  लड़के ने बड़े प्यार से उस हाथ को थामा औऱ अपने होठों तक ले जाकर हौले से चूम लिया । हेलमेट की  वजह से  उसका चेहरा नजर नही आया लेकिन लम्बी सी नाक हेलमेट के आगे शीशा/प्लास्टिक न लगे होने से बाहर तक नजर आ रही थी।  

न जाने वो दोनो कौन थे लेकिन उनको देख कर  एक प्यारा सा अहसास हुआ।  हर रेडलाइट पर फेविकॉल के जोड़ की तर्ज पर चिपके लड़के लड़कियां नजर आ जाते है लेकिन यह तो .......मौसम सुहाना सा लगने लगा था। 

फिर तो नज़र उस बाइक के साथ साथ चलती रही। कभी कार के आगे कभी कहीं पीछे बाइक हमारे साथ साथ रही। वेगास मॉल के फ़ूड कोर्ट में उस प्रिंट सूट को फिर मैंने अपने से आगे वाली टेबल पर बैठे देखा। अकेली बैठी वो चुपचाप फोन में एक तस्वीर देख रही थी। एक लड़के के साथ तस्वीर, लेकिन तस्वीर वाला लड़का साथ आये लड़के से अलग था।  मेरे बच्चे भी मेरे लिए खाना लेने के लिए गए थे। हर कोई आता और हम खाली कुर्सी ले सकते है कहकर  झुकने लगता। हर बार मना करती मेरी नजर उस महिला के सामने रखी खाली कुर्सी पर थी। जिसपर ज़ारा का शॉपिंग बैग था। तभी अचानक किसी का कॉल उसके फ़ोन पर आया।  

मंद स्वर से फुसफुसाती सी वो बोली.... " आहो बीजी आज मैनू मॉल लेके आये ने, पिज़्जा लेण गए ने , मैं नही रहणा एथ्थे,  मैं काके नू मिस कर रहिया। उन्ने रोटी खादी आज?  नही प्रशांत चंगा हेगा लेकिन  देव वर्गा तां नही हो सकदा न। बीजी जे कोरोना न  होंदा ते आज देव मेरे नाल हौंदा।" उसकी ख़ामोश सिसकियां सिर्फ मुझे सुनाई दी । मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा औऱ वो भीगी आँखों से मुस्कुरा दी।

आप  नही समझे न माजरा ? 

नामुराद कोरोना ने कितने घरों के चिराग बुझा दिए। कितने तकिये अंदर तक आँसुओं की सीलन से भीगे हुए है। लेकिन कुछ ऊँची दीवारों के बीच मंद बुझती आँखों ने उम्मीद नहीं छोड़ी।  ज़िन्दगी की उम्मीद, आने वाले कल की उम्मीद, अमावस की रात में जुगनुओं की रोशनी की उम्मीद, सुबह के आने की उम्मीद। उन बुझती उम्मीदों ने अपने बड़े बेटे के जाने के बाद  छोटे  बेटे की शादी बड़े की पत्नी से कर दी। छोटे ने मेरी लाइफ मेरा रूल मेरे सपने न कहकर उस ज़िम्मेदारी को प्यार से सम्हाल लिया।  (है न हमारी परिवार संस्था  महान)

नया  उनका नया नया रिश्ता है। अचानक  जुलाई में ही उन दोनो के रिश्ते ने  नाम और रंग बदला है। उनके रिश्ते की ख़ुशबू बदल गयी है सो लड़कीं के 4 साल के बच्चे को दादी ने साथ रख लिया कि अब यह दोनों आपस मे एक दूसरे को समझें। फिर बाकी सब अबकि बार साथ रहेंगे। पंजाब के गांव में ज़मीन बेचने की तैयारी चल रही है। खेती करने वाला किसान बेटा अब नही रहा। बूढ़ा बाप कब तक माफियाओं से ज़मीन बचायेगा।  द्वारका में फ्लैट खरीदने की बात चल रही है। अब जितनी ज़िंदगी बची है सब साथ  साथ बिताएँगे। 

अब बताओ ऐसी खुशबुएँ उदास करेंगी न .... चाहे उम्मीद भरी ख़ुशबू है। 

बहुत सी खुशबुएँ मेरे कहानी संग्रह में भी समाहित है ।

कुछ दोस्त मेरी किताब 'कोई ख़ुशबू उदास करती है'  मंगवाना चाहते है  तो उनके लिए यह लिंक दे रही हूँ ।आप Shivna Prakashan से सीधे  भी पुस्तक मँगवा सकते है । 

Koi Khushbu Udas Karti Hai, Neelima Sharma 

http://www.amazon.in/dp/B08YN5D7YF


Thursday, September 30, 2021

भारतीय अर्थव्यवस्था को परत दर परत खोलती है--पुस्तक "उलटी गिनती"

 Thursday: 30th September 2021 at 5:40 PM

"उलटी गिनती" पुस्तक में हैं बहुत से सबंधित सवालों का जवाब 

नई दिल्ली: 30 सितंबर 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

MRP 250/- (Paperback)
अच्छे दिनों का वायदा, फिर उस वायदे को चुनावी जुमला बताया जाना, साथ ही नोट बंदी, जीएसटी, कोविड का आतंक, लॉक डाऊन का प्रहार और बेरोज़गारी व भूख के मारे मज़दूरों का पलायन। देश की जनता ने निकट अतीत में ही बहुत से ह्रदय विदारक दृश्य देखे हैं।  

अर्थव्यवस्था पर आर्थिक हमला बेहद नाज़ुक स्थिति में हुआ। कोविड महामारी ने तो भारतीय अर्थव्यवस्था को ऐसे समय तहस-नहस कर दिया जब यह पहले से ही गहरे ढाँचागत मन्दी से जूझ रही थी। करोड़ों लोगों के रोजगार गँवा देने और उनके सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव लौटने के बीच शेयर बाजार न केवल तेजी से पटरी पर लौटा बल्कि जल्दी ही ऊँचाइयों पर पहुँच गया। इस तरह कोविड युग की यादें लम्बे समय तक भारतीय जनमानस के दिलो दिमाग पर छाई रहेंगी। गौरतलब है कि 2020 के भारत में चरम आर्थिक असमानता जिस तरह प्रमुखता से दिखाई दे रही है, वैसी पहले कभी नहीं देखी गई। इस चरम आर्थिक असमानता ने बहुत सी आशंकाओं को भी जन्म दिया जिसे लेकर मज़दूरों के गंभीर आंदोलन भी खड़े हुए। 

इस स्थिति पर बहुत कुछ लिखा गया। बहुत कुछ लिखा जा रहा है। बहुत कुछ अभी लिखा जाना है। बेहद सख्त लॉकडाउन थोपे जाने का सिलसिला शुरू होने के एक साल बाद, ‘उलटी गिनती’ इस आपदा के आर्थिक परिणामों/प्रभावों की समझ बनाने की कोशिश करती है और इसकी पड़ताल करती है कि क्या भारत सुधार-प्रक्रिया की कुछेक अहम उपलब्धियों यानी प्रतियोगिता और गरीबी में तेज़ गिरावट को, उलटने के करीब है। बहुत ही महत्वपूर्ण और नाज़ुक सा विश्लेषण भी है यह। इस किताब को दस्तावेज़ भी कहा जा सकता है। 

इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है कि भारत के लिए समय तेजी से निकलता जा रहा है। यहां तक कि बढ़त के सर्वोत्तम सालों के दौरान, भारत पर्याप्त रोज़गार पैदा करने या मानव विकास की दिशा में ठोस प्रगति करने में विफल रहा। अब जनसांख्यिकी लाभांश के दौर के अन्तिम दशक में, भारत की अर्थव्यवस्था को दोबारा गति देने के लिए एक साहसिक नजरिए की जरूरत है। आखिर कौन जुटाएगा यह साहस? कौन दे सकेगा इस जरजराती महसूस हो रही अर्थव्यवस्था को गति? महंगाई जिस चरम पर है उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। 

यह पुस्तक ‘उलटी गिनती’ सतत सुधार के लिए एक खाका भी पेश करती है जो भारत को तेज़ बढ़त की पटरी पर वापस ला सकता है और न्यूनतम सम्भव समय में उसकी युवा आबादी के लिए करोड़ों रोजगार पैदा कर सकता है। क्या यह सम्भव हो सकेगा? क्या आम जनता की निराशा को विराम देना सम्भव रह गया है? क्या महंगाई पर अंकुश की कोई संभावना बाकी बची है? इस महंगाई ने सबसे ज़्यादा मार रसोई पर मारी है। 

ऐसा बहुत कुछ है जिसे पढ़ते हुए या जिसकी बात करते हे नए नए सवाल पैदा होंगें। महामारी और लॉकडाउन के दौरान हुई गंभीर आर्थिक क्षति की पहली व्यापक समीक्षा पेश करती किताब। इस किताब ने इन सवालों का जवाब देने की भी कोशिश की है। जमीनी स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था के गहरे जख्मों की पड़ताल करती यह किताब। इसका यही अंदाज़ इसे ख़ास भी बनाता है। 

सारे प्रस्तुतिकरण को देख कर कहा जा सकता है कि ‘उलटी गिनती’ पुस्तक व्यापक समृद्धि की ओर बढ़ने और पर्याप्त रोजगार सृजन के साथ फिर से ऊँची बढ़त हासिल करने के लिए सुधार का एक टिकाऊ एजेंडा मुहैया कराती है। यह एजेंडा हौंसला भी देता है और उत्साह भी बढ़ाता है। 

इसके साथ ही एक सौगात भी है जो पुस्तक खरीदने वालों को एकदम निशुल्क मिलेगी। आप भविष्य में अपनी बचत के कौन-से सुरक्षित रास्ते अपनाएँ, इस बारे में विश्वसनीय सुझाव और तथ्य पेश करती 16 पृष्ठों की एक पुस्तिका ‘उलटी गिनती’ किताब के साथ निःशुल्क। यह लघु पुस्तिका बहुत ही काम की होगी। आप इसे संभाल कर रखना चाहेंगे। 

Thursday, September 23, 2021

सोनिया पाहवा की दूसरी पुस्तक "कीमती जज़्बात" हुई रिलीज़

Thursday 23rd September 2021 at 08:22 PM Whatsapp

GCG लुधियाना में सहायक प्रोफेसर हैं मिस सोनिया पाहवा


लुधियाना: 23 सितंबर 2021: (अमृतपाल सिंह//कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन)::

लुधियाना के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों में से एक है लड़कियों का राजकीय कालेज अर्थात जीसीजी। इस शिक्षण संस्थान में जहां सिलेबस की पढ़ाई होती है हुए उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है वहीं साहित्य और कला के क्षेत्र में ऊँची उड़ान का मौका सभी को दिया जाता है। इसका अहसास हुआ एक नई पुस्तक के विमोचन को देख कर। 

अपनी पहली पुस्तक "ट्यून इनटू द वर्ल्ड ऑफ रेडियो" की शानदार सफलता के बाद गवर्नमेंट कॉलेज गर्ल्स, लुधियाना में सहायक प्रोफेसर का तौर पर कार्यरत्त सोनिया पाहवा ने आज अपनी दूसरी पुस्तक, कीमती जज़्बात का विमोचन किया।  

पुस्तक का विमोचन करते हुए सहायक प्रोफेसर सोनिया पाहवा ने कहा कि वह लंबे समय से अपनी भावनाओं को पाठकों तक पहुंचाना चाहती थीं।  इस पुस्तक में लिखी गई शायरी के माध्यम से उन्होंने अपनी अनमोल भावनाओं को लोगों के सामने पेश किया है और उम्मीद है कि पहली किताब की तरह इस किताब को भी लोगों का प्यार मिलेगा| यह किताब Amazon, Flipkart आदि पर मिल सकती है।

इस पुस्तके के विमोचन की औपचारिक रस्म अदा करते हुए गवर्नमेंट कॉलेज गर्ल्स, लुधियाना की प्रिंसिपल डॉ सुखविंदर कौर ने कहा कि यह उनके कॉलेज के लिए बहुत ही गर्व की बात है।  मैडम सोनिया पाहवा की इस किताब में शायरी को बेहद खूबसूरत अंदाज में पेश किया गया है और वे ना केवल अध्यापन के क्षेत्र में नाम कमा रही हैं बल्कि लेखन के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रही हैं। 

इस तरह यह कॉलेज व समस्त स्टाफ के लिए फखर की बात है।  पुस्तक के विमोचन के अवसर पर श्रीमती कृपाल कौर (उप प्रधानाचार्य), श्रीमती गुरजिन्दर बराड़ (अंग्रेज़ी विभागाध्यक्ष) तथा अन्य स्टाफ सदस्य उपस्थित थे। अन्य साहित्य प्रेमियों ने भी ीा आयोजन में भाग लिया। 

Tuesday, September 14, 2021

हर पल सुनहरा:हिंदी के साथ--पूनम बाला

 14th September 2021 at 12:20 PM

प्रताप कालेज आफ ऐजुकेशन ने भी मनाया हिंदी दिवस 


लुधियाना
: 14 सितंबर 2021: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन)::

शायद कोविड नियमों की मजबूरियां इस बार भी आड़े आ रही हों वरना प्रताप कालेज आफ ऐजुकेशन, लुधियाना आयोजनों को भव्य अंदाज़ में किया करता है। इस मामले में यह कालेज हमेशां ही बहुत अच्छी कारगुज़ारी दिखाता रहा है। इस बार कालज द्वारा "हिंदी दिवस" के उपलक्ष्य में बहुत ही सादगी से हिंदी दिवस समारोह का आयोजन किया गया। इस बार भी जिन संस्थानों से बड़े पैमाने पर हिंदी दिवस मनाए जाने की अपेक्षा थी उनमें प्रताप कालेज ऑफ़ एजुकेशन भी एक था। मौजूदा हालात में इतना भी बहुत है। 

इस बार भी हिंदी दिवस आया तो कालेज का वही जाना पहचाना चेहरा आगे आया-प्रोफेसर पूनम बाला का। कालेज में ही कार्यरत्त हिंदी की सहायक शिक्षिका श्रीमती पूनम बाला ने संयोजिका के रूप में समूह स्टाफ सदस्यों व विद्यार्थियों को हिंदी दिवस की बधाई देते हुए समारोह की शुरुआत की। सरस्वती वंदना के पश्चात अपने सम्बोधन में उन्होंने हिंदी दिवस मनाये जाने का औचित्य बताया।उन्होंने अपनी स्वरचित कविता के माध्यम से सभी को हिंदी भाषा अपनाने के लिए प्रेरित किया। भारत की नई शिक्षा नीति के अनुसार हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार के लिए किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात महाविद्यालय के भावी शिक्षकों द्वारा हिंदी को समर्पित कविताओं का काव्य पाठ किया गया।इस अवसर पर उपस्थित समूह स्टाफ सदस्यों ने भावी अध्यापकों द्वारा उच्चरित कविताओं की सराहना की। उल्लेखनीय है कि पूनम बाला बहुत ही अच्छी शायरी करती हैं। दिल को छू लेने वाली शायरी। साथ ही मंच संचालन में भी किसी प्रोफेशनल एंकर से काम नहीं हैं उनकी कला। 

कालेज डायरेक्टर डा.बलवंत सिंह तथा प्रिंसिपल डा.मनप्रीत कौर ने एक संदेश द्वारा सभी को हिंदी दिवस की बधाई दी।अंत में समारोह की संयोजिका श्रीमती पूनम बाला ने सभी का धन्यवाद  किया। गौरतलब है कि हिंदी और साहित्य के मामले में कालेज की प्रिंसिपल डा. मनप्रीत कर बहुत ही गहरा ज्ञान रखती हैं। 

Saturday, September 11, 2021

मनोज धीमान ने लिखी एक और हिंदी फिक्शन किताब

'ये मकान बिकाऊ है' (लघुकथा संग्रह) बाजार में भी चर्चा में भी  

पुस्तक समाज के कई पहलुओं, व्यवस्था और शासकों की कार्यशैली को करती है उजागर

लुधियाना: 11 सितंबर 2021: (पंजाब स्क्रीन ब्यूरो)::

आज के युग की पत्रकारिता आसान नहीं होती। लगातार इसका अभ्यास करते करते निष्ठुरता सी आने लगती है। घटनाओं की खबर बनाते वक़्त स्पेस और टाईम को देखते हुए उसकी बेरहमी से कांटछांट करनी पड़ती है। सामूहिक हत्याकांड की खबर आ जाए तो आंसू बहाने से पहले खबर कवर करनी होती है। इसके बावजूद हमारे पुराने मित्र मनोज धीमान ने अपनी संवेदना बचाए रखी। उसे मरने नहीं दिया। अपनी मासूमियत भी बचाए रखी जिसका बचना आज के युग में असम्भव सा ही हो गया है। मनोज की जीवन शैली से ही निकली है मनोज की चौथी पुस्तक। फ़िलहाल पढ़िए पुस्तक के आने की खबर बाकी बात फिर कभी करते हैं मनोज धीमान पर भी और मनोज जी की साहित्यिक रचना पर भी।  --रेक्टर कथूरिया 


पंजाब में पिछले तीन दशकों से अंग्रेजी पत्रकारिता से जुड़े पत्रकार मनोज धीमान ने
एक और हिंदी फिक्शन किताब 'ये मकान बिकाऊ है' (लघुकथा संग्रह) लिखी है, जिसका औपचारिक रूप अभी विमोचन नहीं हुआ है। लेकिन, यह किताब बाजार में आ गई है और पाठकों के हाथ में पहुंचते ही यह चर्चा का विषय बन गई है।

इस लघुकथा संग्रह में धीमान ने लगभग सभी विषयों जैसे राजनीति, धर्म, आर्थिक समस्या, सामाजिक विषमता, प्रेम, खराब संबंध और मीडिया पर अपनी कलम चलाई है। उन्होंने मानव मन में उत्पन्न हुई निराशा, दहशत, भय, त्रासदी को मनोवैज्ञानिक तरीके से प्रस्तुत करने का भी प्रयास किया है। लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू) के हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. अनिल कुमार पांडे ने कहा, "जिस तरह ये सभी विषय एक-दूसरे से संबंधित हैं, उसी तरह लघुकथाएं एक के बाद एक समस्याओं को व्यक्त करती रहती हैं।" 

लघु कथाओं के बारे में बोलते हुए डॉ पांडे ने कहा कि प्रत्येक कहानी अपने आप में पूर्ण है। उन्होंने कहा कि लघु कथाएँ समाज के कई पहलुओं, व्यवस्था और शासकों की कार्यशैली को उजागर करती हैं। उन्होंने कहा कि लाखों प्रयासों के बावजूद भ्रष्टाचार सामाजिक नीति का हिस्सा बना हुआ है। जिन पर भ्रष्टाचार को रोकने की जिम्मेदारी थी, वे इसे फलने-फूलने का धंधा कर रहे हैं। लघुकथा 'सोने की मुर्गी' में लेखक ने एक व्यापारी की कहानी के बहाने पुलिस व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है। कैसे एक पुलिस केस में व्यापारी को फंसाया जाता है और उसका फायदा उठाया जाता है। इसी तरह लेखक ने लघुकथा 'नया धंधा' में पथराव की घटनाओं का जिक्र किया है। यह लघुकथा एक बेरोजगार युवक के भाग्य के बारे में बताती है। लघुकथा 'राजा और प्रजा' में राजा स्वयं भगवान बन जाता है। यदि राजा कोई नेक कार्य करे तो प्रजा उसे भूल जाती है। अब क्योंकि हर राजा चाहता है कि जनता उसके 'दरबार' में उसकी प्रशंसा करने के इरादे से उपस्थित हो, तो भारतीय राजनेताओं में उनके द्वारा किए गए नेक कामों को गलत कामों में बदलने की कला है। बाढ़ से बचाव के लिए बनाए गए मजबूत बांध को कमजोर करने के लिए राजा ने ऐसा किया।

डॉ पांडे ने कहा, "इस तरह, हर छोटी कहानी सच्चाई और आज की वास्तविकता के बहुत करीब है", "लेखक अपने समय की कहानियों को खुली आंखों से व्यक्त करता है।"

लघुकथा संग्रह 'ये मकान बिकाऊ है' के लेखन की शुरुआत कैसे हुई? इस सवाल का जवाब देते हुए धीमान ने कहा कि साल 2020 में कोरोना काल में वह व्हाट्सएप पर प्रसिद्ध हिंदी लेखकों के समूह "पाठक मंच" से जुड़े। "पाठक मंच" में कुछ लघु कथाएँ पोस्ट करने पर पाठकों की उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली, जिससे लेखन की निरंतरता बनी रही। इस तरह इन लघुकथाओं ने आखिरकार एक किताब का रूप ले लिया।

धीमान ने इस पुस्तक को प्रसिद्ध कवि, नाटककार और आलोचक डॉ. नरेंद्र मोहन को समर्पित किया है। उन्होंने  कहा कि डॉ. नरेंद्र मोहन ने न केवल उन्हें लघु कथाओं को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया, बल्कि उन्हें अपने प्रकाशक - अकादमिक प्रकाशन, दिल्ली से बात करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने कहा, "मुझे जीवन भर पछताना पड़ेगा कि डॉ. नरेंद्र मोहन ने किताब प्रकाशित होने से पहले ही इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। नहीं तो आज अगर वह जिंदा होते तो किताब प्रकाशित होने के पश्चात जश्न का माहौल कुछ और होता।"

हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष व विख्यात लेखक कमलेश भारतीय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "लघुकथाएं रोजमर्रा की घटनाओं या जीवन की स्थितियों से निकलती हैं। रचनाएं जमीन से जुड़ी हुई हैं। समाचार पत्रों की सुर्खियां, राजनीति में कोई भी मोड़ या हमारे चारों ओर का जीवन लेखक की लघु कथाओं की दुनिया है।"

पंजाब के जाने-माने हिंदी उपन्यासकार व पंजाब सरकार द्वारा शिरोमणि हिंदी साहित्य पुरस्कार से सम्मानित डॉ. अजय शर्मा ने कहा, "लघु कथाएँ एक पूरी कहानी कहती हैं। ऐसी तकनीक बहुत कम लघु कथाकारों में देखी जाती है।"  अंजू खरबंदा, संचालिका, लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल (दिल्ली शाखा) ने कहा, "लघुकथा पढ़ते समय पाठक भी उन लघु कथाओं के साथ चलने लगता है। लघु कथाएँ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव हैं, जो सीधे लोगों के दिलों तक पहुँचती हैं।" दोआबा साहित्य एवं कला अकादमी, फगवाड़ा (पंजाब) के अध्यक्ष डॉ. जवाहर धीर ने कहा, "लघुकथाएं बहुत कम शब्दों में एक बड़ा संदेश देने में सक्षम हैं।"

एकैडमिक पब्लिकेशन, दिल्ली के राजेश कुमार ने कहा कि पुस्तक में आज के जीवन और घटनाओं से ओत-प्रोत लघु कथाएँ हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह पुस्तक निश्चित रूप से हिन्दी साहित्य में एक विशेष स्थान बनाएगी। उन्होंने कहा कि किताब जल्द ही अमेज़न पर उपलब्ध होगी।

लघुकथा संग्रह 'ये मकान बिकाऊ है' में कुल 164 पृष्ठ हैं और इसमें 120 लघु कथाएँ हैं।

यहां बताया जाता है कि मनोज धीमान ने इससे पहले तीन हिंदी पुस्तकें लिखी हैं। ये पुस्तकें थीं: 'लेट नाइट पार्टी' (कहानी संग्रह), 'बारिश की बूंदे' (कविता संग्रह) और 'शुन्य की ओर' (उपन्यास)। 'लेट नाइट पार्टी' पुस्तक का अंग्रेजी संस्करण भी प्रकाशित हो चुका है। अंग्रेजी अनुवाद प्रोफेसर शाहीना खान द्वारा किया गया था।

Tuesday, August 17, 2021

कविता कथा कारवां ने कराया एक यादगारी आयोजन

 17th August 2021 at 4:08 PM

 ज़ूम के ज़रिये शायरी से बुलंद किया तिरंगा 


लुधियाना
: 17 अगस्त 2021: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन)::

कुछ लोग बुरे हालात के बावजूद ही नहीं दबते। उनकी जीवेषणा इतनी मज़बूत होती है कि उनको कहीं से उखाड़ कर फेंक दो तो वे फिर से वहीं पर अपनी जगह बना लेते हैं जहां हालात उन्हें फेंक देते हैं। जब कोविड के चलते लॉकडाऊन हुआ तो तकरीबन सभी आयोजन बंद हो गए। अन्य शहरों की तरह लुधियाना के स्कूल, कालज और सांस्कृतिक केंद्र बंद भी हो गए पंजाबी भवन, गुरुनानक भवन और अन्य संस्थान में भी आयोजनों का सिलसिला बंद हो गए। गेट पर ताले लग गए। इनके साथ ही बंद हो गए इनमें होने वाली छोटी छोटी सभाओं के आयोजन। कुछ देर मिल बैठने का एक अच्छा स्थान बन चुका था पंजाबी भवन। एक वीरानी, एक उदासी, एक ख़ामोशी सी छा गई पंजाबी भवन में। सिर्फ कुछ पंछी चहचहाते थे, कुछ तितलियां आती रहीं बाकी सब बंद हो गया। 

इसके साथ ही एक तड़प सी जागने लगी उन लोगों के दिलों में जो कभी यहां अपने मुशायरे किया करते थे। कभी अपनी किताबों को रिलीज़ करने की खुशियां बांटा करते थे। तड़प उठने वाले इन लोगों में शायर थे, लेखक थे, रंगमंच कर्मी थे, अच्छे श्रोते थे, अच्छे दर्शक थे। कंटीन वालों को भी घाटे उठा कर जाना पड़ा। वीरानी और बढ़ गई। कोविड और लॉकडाऊन के इन कटु प्रभावों  याद किया जाता रहेगा। इनमें से कुछ लोगों ने सोचा आखिर कोई तो रास्ता होगा? कुछ तो बात बनेगी? कभी तो फिर से कलमों वालों के मेले सजेंगे? 

इन तड़पते लोगों में से एक खूबसूरत शायरा जसप्रीत कौर फलक भी थी। फलक आसमान को कहते हैं। इस मैडम का तख्खलुस ही फलक ठहरा। वह जब भी वक्त मिलता आसमान की तरफ देखती रहती जैसे कह रही हो हो खुदा से कि कुछ तो मेहर कर! कोई तो चमत्कार दिखा! आंसू उसके शब्दों में आ जाते! वह पूछती दुनिया भर को जोड़ने वाले कलमकारों के दरम्यान क्यों पैदा हुईं इतनी दूरिया? कब जाएगा कोरोना? कब खत्म होगा लॉकडाऊन?  उसके सवाल खुदा के दरबार तक पहुंचत्ते रहे। कहते हैं न-दिल से जो बात निकलती है असर रखती है। इन  दुआयों का भी जल्दी ही असर हुआ और बहुत अच्छा असर हुआ। खुदा का संदेश जल्दी ही धरती पर पहुँच गया। बात समझ में आ गई और वह बोल उठी-वे फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं!

आखिर शुरू हुआ ज़ूम का सिलसिला। ऑनलाइन आयोजन तेज़ी से आयोजित होने लगे। अपने अपने घर में बैठ कर एक दुसरे के सामने बैठने जैसा अनुभव इस नई तकनीक ने दिया। बहुत से संगठनों की खुशियां लौट आईं। यूटयूब पर किताबें रिलीज़ होने लगीं। फ़िल्में रिलीज़ होने लगीं। इन्हीं बहानों के ज़रिये कलम से जुड़े लोग फिर से एकजुट होने लगे, मिलने जुलने लगे।  

साहित्य और कला से जुड़े मंच कविता कथा कारवां के तत्वाधान में भी एक ऐसा ही आयोजन हुआ। पंद्रह अगस्त 2021 को  जूम ऐप द्वारा एक अन्तरराष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें  विदेश  और अपने देश के विविध प्रदेशों के कवि-कवयित्रियों ने हिस्सा लिया और स्वतंत्रता दिवस के पाक अवसर पर देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत काव्य रचनाएँ  प्रस्तुत कीं और देश के अमर सपूतों को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। 

डॉ राशि ने सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आग़ाज़ किया। इस मंच की अध्यक्षा  जसप्रीत  कौर  फ़लक ने स्वागत-भाषण दिया और शहीदों को श्रद्धांजलिअर्पित करते हुए एक ग़ज़ल पेश की। रेडियो से जुडी दुनिया की जादूई शख्सियत डॉ रश्मि खुराना (इंग्लैंड) मुख्य अतिथि के तौर पर कार्यक्रम में विशेष रुप से उपस्थित थीं। डाक्टर रश्मि खुराना से पहली भेंट में ही मिलने वाला उनका कायल हो जाता है। उन्होंने भी ज़िंदगी के दुःख सहते हुए खुद को संतुलित रखा है। दिल में दर्द का सागर और चेहरे पर मुस्कान। यही खासियत है डाक्टर रश्मि खुराना की। जो लोग उन्हें आकाशवाणी जालंधर में मिलते रहे हैं वे इसे अच्छी तरह जानते हैं। उनकी किताब को भी कोविद ने बहुत देर रोके रखा। 

खैर बात तो मुशायरे की चल रही थी न। सुश्री मोनिका कटारिया ने बेहद जोशीले अंदाज में कार्यक्रम का संचालन किया। डॉ रश्मि  चोदा ने सस्वर सरस्वती वंदना गा कर कार्यक्रम का आगाज किया। डॉ दीप कमल (अमृतसर), डॉ अनु मेहता (गुजरात), कोमल दीप,डॉ सुमन शर्मा ज़ी (गुजरात),डॉ राजेश(जीरकपुर) की रचनाओं ने समा बाँध दिया और हमें सोंचने को मजबूर कर दिया कि हम देश के प्रति अपनी फर्ज़ अदायगी में कितने ईमानदार हैं। अंत मे मंच की सचिव रश्मि अस्थाना ने अपनी काव्य प्रस्तुति के साथ-साथ सभी सम्मानित गुणी जनों का धन्यवाद करते हुए सुश्री जसप्रीत कौर फ़लक के साहित्य प्रेम और कर्मठता की भूमि-भूमि प्रशंसा करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया ।राष्ट्रीय गान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।  जल्दी ही फिर से मिलने का वायदा करके यह आयोजन सम्पन्न हुआ। --कार्तिका सिंह 

Friday, July 2, 2021

काव्य गोष्ठी: नारी मन की थाह पाने का प्रयास रहा इस बार भी

Thursday: 1st July 2021 at 4:50 PM Via WhatsApp

महिला काव्य मंच ने किया एक और यादगारी आयोजन 

लुधियाना//ऑनलाइन मंच (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन):: 

जुनून नज़र तो आ जाता है पर फिर भी इसे किस्मत वाले लोग ही देख पाते हैं। न तो यह सभी की किस्मत में होता है न ही सभी को यह नज़र आ पाता है। बस एक तूफ़ान सा मन में उठता है जिसे संभालना सभी के बस में होता भी नहीं। इसका अहसास हुआ जब पिछली बार लॉकडाउन लगा। इसके बाद कर्फ्यू का एलान हो गया। सब लोग अपने अपने घरों में बंद। कोरोना के आतंक ने और भी निराश कर दिया था। कभी कभी--हर हफ्ते जा हर महीने किसी न किसी शायरी  में पहुंचना एक अलग सा आनंद देता था। अपनी शायरी सुनना, दूसरों की सुनना-एक अलग सा परिवार बनता जा रहा। था। जनाब नरेश नाज़ और उनकी धर्मपत्नी के प्रयास रंग ला रहे हैं। शायरी के मैदान में निकलीं इन महिला कलमकारों का काफिला विशाल होता जा रहा है।

आप शायरी के वक़्त मुस्करा रही इन कलमकारों के चेहरों को ज़रा ध्यान से देखें तो आपको मुस्कान के पीछे छिपी हुई स्ट्रगल भी बहुत ही आसानी से नज़र आएगी। इनकी शायरी की पंक्तियां ज़िंदगी की आंख से आंख मिला कर बात करती हैं। पुरुष प्रधान समाज की सभी चालों को इनकी शायरी बहुत ही सलीके से बेनकाब कर देती हैं। इनके आयोजन होते रहते हैं। अब फर्क सिर्फ इतना कि आमने सामने या साथ साथ बैठ कर गरमा गर्म समोसे, गुलाब जामुन और चाय का मज़ा आम नहीं  रहा। जल्द ही वे दिन दोबारा आएंगे इसकी उम्मीदें सभी को हैं। इस बार का ऑनलाइन आयोजन भी अच्छा रहा। देखिए एक संक्षिप्त सी रिपोर्ट। 

महिला काव्य मंच, लुधियाना इकाई की मासिक काव्य गोष्ठी 29 जून 2021 को आजकल के चलन को सामने रखते हुए आनलाइन आयोजित की गई। लुधियाना इकाई की अध्यक्षा सुश्री बेनु सतीशकांत जी ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। डा. मोनिका शर्मा नें मंच संचालन बखूबी निभाया।  श्रीमती बेनु सतीशकांत ने गोष्ठी में जुड़ी सभी कवयित्रियों का स्वागत किया और मुख्य अतिथि पंजाब इकाई की उपाध्यक्ष श्रीमती इरादीप त्रेहन जी का स्वागत भी किया। गोष्ठी में उपस्थित सभी तीस कवयित्रियों ने बहुत ही बढिया विषयों को उठाया और सुंदर भावों के साथ प्रस्तुत कर समां बाँध दिया।

सीमा भाटिया, पूनम सपरा, पूर्वा सिंह, ममता जैन, रश्मि अस्थाना, मोनिका चौधरी, ममता शर्मा, शालू, मोनिका कटारिया, अनुराधा कटारिया, ममता वडेहरा, अलका शर्मा, रचना गुलाटी, संतोष गोतम, नीतू जोशी, बृज बाला, राधा शर्मा, अनु बहल, सोनिया बुधिराजा, श्रुति, निधि सागर, नैंसी शर्मा,ज्योति बजाज,श्रद्धा शुक्ला,अंशु मदान, सविता अबरोल, बेनु सतीशकांत ,इरादीप त्रेहन और डा. मोनिका शर्मा जी ने नारी मन, आंखों, नारी अस्मिता से जुड़े सवालों, प्रेम की सुकोमल भावनाओं, देश भक्ति और मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं पर बहुत ही खूबसूरत और भावपूर्ण रचनाओं से समां बांधा।

 कार्यक्रम के अंत में लुधियाना इकाई की अध्यक्ष श्रीमती बेनु सतीशकांत जी ने सबको धन्यवाद दिया।

Sunday, April 4, 2021

बुलंद हौसलों की परिचायिका कुलविंदर बुटृर

चार अप्रैल को सम्मान दिवस पर डा. भावना की तरफ से विशेष पोस्ट 

फाईल फोटो 


जालंधर: 3 अप्रैल 2021: (डा. भावना//हिंदी स्क्रीन)::

'उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि ना मनोरथै' मेहनत से ही सब कार्य सिद्ध होते हैं मन की इच्छाओं से नहीं, को चरितार्थ करने वाली कुलविंदर बुटृर के हौसलों की उड़ान इस कथ्य को व्यापक फलक देती है। कर्मठता को जीवन का पर्याय बनाने वाली कुलविंदर बुटृर जहां अपने कार्य क्षेत्र में तल्लीनता रखती हैं, वहीं अपने समाज के प्रति भी उत्तर दायित्व निभाती हैं। पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत के प्रति इनका दृष्टिकोण इनके व्यावसायिक जीवन में दृष्टिगोचर होता है। पंजाबी भाषा को सिंचित करने वाली बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व की स्वामी कुलविंदर बुटृर का पंजाबी के संरक्षण एवं संवर्धन में विशेष योगदान रहा है। आकाशवाणी जालंधर में कार्यरत कुलविंदर बुटृर ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष पंजाबी बोली के संवर्धन के लिए समर्पित किए हैं। पंजाबी बोली के लिए पूर्ण रूप से समर्पित इनकी भावना ने ना सिर्फ भाषा के क्षेत्र में ही योगदान दिया अपितु 'निर्माता दूरदर्शन जालंधर पंजाबी' होने के नाते पंजाबी सभ्याचार का संदेशा घर-घर तक पहुंचाया। यह इनका सौभाग्य था कि इनका बचपन उस परिवेश में पला बढ़ा और बीता जहां  क्रांति और देश भक्ति की बयार बहती थी। गदरी बाबा और बाबा भगत सिंह बिल्गा जैसे क्रांतिकारियों का आशीर्वाद इनके व्यक्तित्व को तराशने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे। इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 'बाबा भगत सिंह सरकारी विद्यालय बिल्गा' से पूरी की, जबकि उच्च शिक्षा 'गुरू नानक गर्ल्स कालेज बाबा से ढेसिया' से प्राप्त की। तत्कालीन रेडियो के प्रसिद्ध कार्यक्रम 'युववाणी' में अपनी आवाज प्रतिभा और मेधा के बल पर अपना वर्चस्व स्थापित किया। इसी स्थान से इनके जीवन की एक महत्वपूर्ण और लंबी यात्रा प्रारंभ होती है, जो कदम दर कदम उन विचारों को छूती है जो इनके अंत:करण में उद्वेलित हो रहे थे। मीडिया से इनका जुड़ाव इन के सपनों को व्यापक फलक देता गया। यद्यपि उन्होंने अपना पढ़ाई का शौक भी पूरा किया लेकिन इनकी प्रतिभा ने उन्हें सन 1985 मैं दूरदर्शन की सरकारी सेवा से जुड़ने का अवसर प्रदान किया। इस मंच से जुड़ कर इन्होंने दूरदर्शन के क्षेत्र में अनेकों अनवरत  प्रयत्न किए। कड़ी मेहनत और इमानदारी ने इन्हें दूरदर्शन और पंजाबी सभ्याचार की चहेती बना दिया। इन्होंने पंजाबियत से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों और महान विभूतियों को अपने कार्य क्षेत्र से जोड़ा और अनेकों 'टेली फिल्में' , 'दस्तावेजी फिल्में ' और 'लाइव टीवी' कार्यक्रम करवाए। बचपन से ही भरी गई देशभक्ति की भावना ने उन्हें अनेकों देशभक्ति परक कार्यक्रम करवाने के लिए प्रेरित किया। 'धियां पंजाब दियां', 'सपनों की उड़ान', एवं 'नारी मंच' इनके बहुत चर्चित कार्यक्रम थे। नारी उत्थान को वह कई तरह से मुखरित करती रही हैं। कला, समाज, राजनीति जैसे कई अन्य क्षेत्रों में इन्होंने पंजाब की नारी को ऐसा मंच प्रदान किया कि जहां वह अपनी आवाज को बुलंद कर सकें और गौरवान्वित महसूस करें। अपनी दस्तावेजी फिल्मों में उन्होंने पंजाब के शहरों को बारीकी से उतारा है। इनके अथक प्रयास के फल स्वरूप भारतीय दूरदर्शन पर पहली बार 'मास्टर शैफ पंजाबी' जैसी प्रतियोगिताओं का आरंभ किया गया। बहुत से कार्यक्रमों में पर्दे के पीछे से मधुर आवाज देकर इन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई।

कुलविंदर जी के जीवन को सफल बनाने में इनके पति प्रो. गोपाल सिंह बुटृर का विशेष योगदान रहा है। यह उन्हें अपने जीवन की कूंजी मानती हैं। प्रगतिवादी एवं आशावादी जीवनी दर्शन के चलते यह जीवन में नई  ऊंचाइयों को छूना चाहती हैं। यह अपने पारिवारिक जीवन से पूर्णतः संतुष्ट हैं।'काम ही पूजा है' को ध्येय मानने वाली आपकी सोच जगी रहे, जगाती रहे और उत्तरोत्तर संवर्धित हो।

डॉ. भावना लायलपुर खालसा कॉलेज, जालंधर के हिन्दी विभाग में कार्यरत हैं 

Friday, March 12, 2021

जन-आवाज़ बनी शायरा अनामिका को साहित्य अकादमी पुरस्कार

 नारीवाद को बुलंद आवाज़ में कहती है अनामिका 


नई दिल्ली//लुधियाना12 मार्च 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क):: 
इस बार साहित्य के आम पाठक भी खुश हैं और कलमकार भी। आखिर साहित्य अकादमी पुरस्कार 2020 की घोषणा भी हो ही गयी है। हिंदी काव्य की बुलंद आवाज़ कवयित्री अनामिका को उनके कविता संग्रह ‘टोकरी में दिगंत, थेरी गाथा: 2014’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार 2020 दिया गया है। इस कविता संग्रह में अनामिका ने बुद्ध की समकालीन महिला भिक्षुओं पर लंबी कविता लिखी है। महिला भिक्षुओं  के दर्द और अहसास को पहचान  नहीं था। इस संग्रह में उन भिक्षुणियों के संघर्ष का चित्रण है। अनामिका वही शायरा है जो तीन दश्कों से भी अधिक समय से निरंतर लिखती आ रही है।  उसकी शायरी में उस गहरे दुर्ख़ और दर्द की अनुभूति को अभिव्यक्ति दी गई होती है जो दुःख दर्द सभी को तो नज़र भी नहीं आता। स्त्री संवेदना पर उसकी कलम अक्सर कमाल करती है।

प्रेम के लिए फांसी (ऑन ऑनर किलिंग) / अनामिका


मीरारानी तुम तो फिर भी खुशकिस्मत थीं,

तुम्हे जहर का प्याला जिसने भी भेजा,

वह भाई तुम्हारा नहीं था,


भाई भी भेज रहे हैं इन दिनों

जहर के प्याले!


कान्हा जी जहर से बचा भी लें,

कहर से बचायेंगे कैसे!


दिल टूटने की दवा

मियाँ लुकमान अली के पास भी तो नहीं होती!


भाई ने जो भेजा होता

प्याला जहर का,

तुम भी मीराबाई डंके की चोट पर

हंसकर कैसे ज़ाहिर करतीं कि

साथ तुम्हारे हुआ क्या!


"राणा जी ने भेजा विष का प्याला"

कह पाना फिर भी आसान था,


"भैया ने भेजा"- ये कहते हुए

जीभ कटती!


कि याद आते वे झूले जो उसने झुलाए थे

बचपन में,

स्मृतियाँ कशमकश मचातीं;

ठगे से खड़े रहते

राह रोककर


सामा-चकवा और बजरी-गोधन के सब गीत :

"राजा भैया चल ले अहेरिया,

रानी बहिनी देली आसीस हो न,

भैया के सिर सोहे पगड़ी,

भौजी के सिर सेंदुर हो न..."


हंसकर तुम यही सोचतीं-

भैया को इस बार

मेरा ही आखेट करने की सूझी?

स्मृतियाँ उसके लिए क्या नहीं थीं?


स्नेह, सम्पदा, धीरज-सहिष्णुता

क्यों मेरे ही हिस्से आई,


क्यों बाबा ने

ये उसके नाम नहीं लिखीं?

                 --~अनामिका 

अनामिका को पुरस्कार मिलने से हुआ प्रगतिशील काव्य का सम्मान

  नारीवादी लेखिकाओं में भी सम्मान की घोषणा बाद खुशी की लहर 


नई दिल्ली//लुधियाना: 12 मार्च 2021: (हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

अनामिका को पुरस्कार मिलने की घोषणा होते ही हर तरफ प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। लेखिकाओं ने एक दुसरे को बधाईयां दीं। वास्तव में अनामिका का सम्मान उस कलम का सम्मान है जिसने मानवीय संवेदना को पहचाना, जन के दुख्ख दर्द को पहचाना, नारीवाद की आवाज़ बुलंद करते हुए नए हिम्मतवर प्रयोग भी किये। यह सम्मान बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था।  बावजूद अब देरी से ही सही लेकिन बहुत अच्छा एलान आया है। पुरस्कार की खबर आप हमारी अलग पोस्ट में भी पढ़ सकते हैं।  

अनामिका जी के काम और साहित्य साधना का संक्षिप्त विवरण देते हुए अपरा सिन्हा बताती हैं: मुजफ्फरपुर की अनामिका को साहित्य एकेडमी पुरस्कार मिलना केवल बिहार के लिए नही बल्कि देश के लिए गौरव की बात है क्योंकि वह पहली हिंदी कवयित्री है जिन्हे यह अवार्ड मिला। यह अवार्ड तो महादेवी वर्मा को भी नही मिला था। अनामिका हमारे परिवार से जुड़ी रही हैं। उनके पिता श्यामानंदन किशोर खुद नामी लेखक थे। वे बिहार विश्विद्यालय के कुलपति रहे। अनामिका आंटी ने बहुत से अनुवाद भी किए हैं कई उपन्यास भी लिखे। उन्हें भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार भी मिल चुका है। गत वर्ष उनके घर गई तो मुझे बहुत प्यार और स्नेह दिया। इसी तरह बहुत से अन्य लेखकों और लेखिकाओं ने अनामिका  अपनी यादों को साँझा किया है। सभा सभाओं में यही चर्चा हो रही है और सोशल मीडिया पर भी। 

इस सम्मान की मुबारक देने वाले खुले मन से बधाईयां दे रहे हैं। ख़ुशी की एक ऐसी लहर जो बहुत देर बाद नज़र। 

छल का शिकार होने के बाद  Pexels-Photo-by RODNAE Productions


एक काव्य देखिये 

उससे छल करने में

कौन सी विचक्षणता

जिसने विश्वास कर लिया,

उसे मार देने में कौन सी बहादुरी

जो गोदी में आकर सो ही गया।

           ~अनामिका 

यह आखिरी लघु पोस्ट लक्ष्मी शर्मा जी के प्रोफ़ाइल से साभार 

Wednesday, March 10, 2021

क्या मोहब्बत अकेलेपन से निजात दिलवा सकती है?

अमृता प्रीतम का कहना भी इस संबंध में ध्यान से सुनिए 


इंटरनेट/सोशल मीडिया//लुधियाना: 10 मार्च 2021: (हिंदी स्क्रीन)::

जानीमानी शायरा अमृता प्रीतम की बातों से सहमति हो यह ज़रूरी भी नहीं और अमृता जी  ने कभी इसकी अपेक्षा भी नहीं की होगी। हमारी सहमति की अमृता को कभी ज़रूरत भी नहीं रही। उन्होंने जीवन के आरम्भिक दौर में ही बेबाकी और हिम्मत भी जुटा ली थी और अकेले चलना भी सीख लिया था। 
शादी के बाद साहिर लुधियानवी साहिब के साथ जो अंतरंगता महसूस की वह स्थाई तौर पर उनके जीवन का हिस्सा तो कभी न बन सकी फिर भी यह इश्क उनके जीवन की उपलब्धि ज़रूर रहा। बिलकुल उसी तरह जैसे बिन बरसी काली घटा ज़िंदगी की तपती दोपहरी में यादगारी पल छोड़ जाती है जो उम्र भर राहत देते रहते हैं। साहिर साहिब के साथ विवाह की बात एक ऐसी शादी बन के रही जो हकीकतों के बहुत नज़दीक हो कर भी कभी हकीकत न बन सकी। शायद सही है कि जोड़ियां ऊपर वाला तय करता है। जीवन में मिली असफलताओं, नाकामियों और निराशाओं के अंधेरों में इमरोज़ का आना अमृता के लिए एक रूहानी ख़ुशी जैसा रहा। काफी देर उसने खुद को अमृता प्रीतम की बजाए अमृता इमरोज़ भी लिखा। बहुत से लोग इसे अभी भी सहन नहीं कर पाते। भूल जाते हैं की अमृता को भी अपनी मर्ज़ी की ज़िंदगी जीने का हक़ था। आप कौन होते हैं इसमें एन्क्रोचमेंट करने वाले! अमृता जी की ज़िंदगी में इमरोज़ के आने  पर एतराज़ भी हुए, बुरा भला भी कहा गया और  लोगों ने अमृता जी को अमृता इमरोज़ के तौर पर नहीं अमृता प्रीतम के तौर पर ही याद किया। इसकी चर्चा भी हुई लेकिन अमृता मैडम ने तो जो ठान लिया वही किया। ज़िंदगी भर यही असूल रहा। शायद इस पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। अरुता प्रीतम को मिलना किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं समझा जाता था। लोग दूर दूर से उनके घर के-25 हौज़खास में जाते, कुछ पल रुकते और बहुत सा स्कून  ले कर लौटते।  यह पल उनकी जीवन भर की ख़ास उपलब्धियों में शामिल रहते। 
इसी बीच साहिर लुधियानवी साहिब ने भी जो बहुत ही गहरे गीत लिखे वे इसी तरह की उदासी भरी कटु अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करते हुए ही लिखे। इन्हीं में से एक गीत था: 

महफ़िल से उठ जानेवालों, 

तुम लोगों पर क्या इल्ज़ाम 

तुम आबाद घरों के वासी, 

मैं आवारा और बदनाम 

मेरे साथी, मेरे साथी, 

मेरे साथी खाली जाम...... 

बाद में यही गीत फिल्म दूज का चांद में भी शामिल हुआ। 

इसका संगीत तैयार  किया था रौशन साहिब ने और इसे आवाज़ दी थी मोहम्मद रफी साहिब ने। इस गीत में भी उसी अकेलेपन की तरफ इशारा किया गया है जो मोहब्बत करने वालों को ही मिला करती है। 

अमृता प्रीतम की रचनाओं में भी इसी अकेलेपन का अहसास होता है। जब उसे अधिकतर लोग गालियों जैसी भाषा में ही सम्बोधन और याद किया करते थे उस दौर में जानेमाने कहानीकार कुलवंत सिंह विर्क की तरफ से स्नेह और सम्मान में मिली सौगात ज़ख्मों पर मरहम जैसी थी। अमृता जी ने कहा भी है शायद कहीं कि लोग मुझे जी भर कर गालियां दे क्र भी रुला नहीं पाते लेकिन विर्क मुझे अपने अच्छेपन से रुला देते हैं। उनदिनों पंजाब के बुद्धिजीवी, पत्रकार और खास कर एक स्थापित अख़बार अमृता के पीछे पड़े थे। उन दिनों विर्क की सौगात का मिलना ख़ास बात। थी।  वोह भजन जैसा बहुत ही लोकप्रिय गीत है न-जैसे सूरज की गर्मी में तपते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया! बस उसी तरह के अहसास की अनुभूति कराती हुई यह सौगात अमृता प्रीतम को हमेशां याद रहीं। उन्होंने अपने अंदाज़ से ही जीवन जिया। लेखन में उनके अनुशासन की बातें तो अमिया कुंवर जी ने भी बहुत ही नज़दीक हो कर देखीं। 

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उतरावों चढ़ावों से भरी हुई ज़िंदगी में अमृता जी ने कब और कैसे इस तरह का साहित्य लिखा होगा सचमुच एक करिश्मे जैसी बात है। हम लोग तो ज़रा ज़रा सी बात पर बेचैन हो कर आपा खो बैठते हैं। अमृता की रचनाएं पढ़ते हुए यूं लगता जैसे स्कून की बरसात हो रही हो। इस तरह लगता जैसे हम बहुत ऊंचा उठ गए हों। अमृता का साहित्य एक ऐसा पर्यावरण आसपास बना देता है कि उसमें हम किसी उड़नखटोले में बैठा महसूस करते हैं।  अपने जीवन की मानसिकता के स्तर से कुछ ऊंचाई पर उठे हुए। उस सुरताल के ज़रा सा टूटते ही हम फिर आम जैसी ज़िंदगी की परेशानियों में घिर जाते क्यूंकि वह ऊंचाई हमारी उपलब्धि नहीं होती बल्कि अमृता प्रीतम से उधर ली हुई ऊंचाई होती है। 

लेकिन इस के साथ ही एक हकीकत यह भी है कि अमृता प्रीतम को पढ़ने के बाद दिल और दिमाग में जज़्बातों के तूफ़ान न उठें यह हो ही नहीं सकता। अमृता प्रीतम को पढ़ने के बाद शायद आपको पहली बार खुद से प्रेम होने का आभास हो। पहली बार शायद आपको लगे कि इस सिस्टम और समाज को बदलना ज़रूरी है। हो सकता है पहली बार आप को आपके ही अंतर्मन में बगावत की सुर सुनाई दे। हो सकता है पहली बार आपको  लगे कि आप खुद के रूबरू हो रहे हैं। उस रुबरू के दौरान खुद ही खुद से कई तरह के सवाल भी कर सकते हैं। ज़्यादातर यह सवाल मोहब्बत को ले कर होते या बंदिशों को लेकर होते। धर्मकर्म और लाईफस्टाईल के मुद्दे भी उठते हैं। बहुत से लोगों को अमृता प्रीतम का कटे हुए बालों वाला स्टाईल उम्र भर अखरता रहा। कइयों को अमृता जी का सिगरेट और शराब पीना भी बेहद बुरा लगा। जून-1984 और नवंबर-1984 के बाद तो पंजाब के बहुत से लोगों को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ अमृता प्रीतम जी की पुराणी दोस्ती भी खटकती रही। उन पर कविताएं भी लिखीं गईं कि बुल्ले शाह को आवाज़ लगा कर पुकारने वाली अब दिल्ली में इतना कुछः हुआ देख कर भी चुप्प कयूं रही? शायद ये विवाद अब हमेशां बने  क्यूंकि  शख्सियत ही  दरम्यान नहीं रही। 

मोहब्बत पर एक टवीट सामने आया है। टविटर पर अमृता के नाम से ही उसके कुछ चाहने वालों ने शायद एक प्रोफाईल बना रखा है। इस टवीट में दर्ज है:इंसान अपने अकेलेपन से निजात पाने के लिए मुहब्बत करता है, और मुहब्बत इस बात की तस्दीक करती है कि उसका अकेलापन अब ताउम्र कायम रहेगा। इन शब्दों में छिपी हकीकत और गहराई बहुत ही सूक्ष्मता से दिल में उतरती है और उसके बाद दिमाग को चढ़ जाती है। उस वक़्त मोहब्बत के इतने पहलू दिमाग में आने लगते हैं कि इंसान मोहब्बत के रंगों से ही चकरा जाता है। कुल मिला कर आज की पीढ़ी को अमृता जी की अधिक से अधिक कताबें पढ़नी चाहियें। इन नावलों कहानियों के पात्र आज भी आपको अपने आसपास घुमते और सक्रिय मिलेंगे। अजीब इतफ़ाक़ है की वक़्त ने उनकी रिहायश के-25, हौज़खास का अस्तित्व भी नहीं रहने दिया। उनके चाहनेवालों ने उसे  के तौर पर  कोई ज़ोरदार प्रयास भी किया।  अमृता जी  उनकी यादगार। 

प्रस्तुति:रेक्टर कथूरिया 

Sunday, March 7, 2021

नारी मन की थाह पाने का प्रयास था महिला काव्य मंच का आयोजन

एक्सटेंशन लायब्रेरी में हुआ महिलाओं का विशेष शायरी आयोजन 

लुधियाना
: 7 मार्च 2021: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::
नारी के हुसन और प्रेम को लेकर अगर पुरुष अक्सर लालायित रहा है तो शायद प्रकृति भी यही चाहती है। प्रेम की इन सदियों पुरानी कहानियों में निरंतर दोहराव जारी है लेकिन फिर भी इसका नयापन कायम है। ये किस्से ये कहानियां कभी पुराने नहीं हो सके। इसे प्रकृति और प्रेम का करिश्मा ही कहा जा सकता है। हर युग में प्रेम में पड़ने वाले युवाओं को यही महसुस होता है कि शायद उन्हीं का प्रेम ही नया है। शायद पहली बार उन्होंने ही प्रेम किया है। जो लोग जिस्म तक ठहर जाते हैं उन्हें इसकी गहराई का भान कभी नहीं हो पाता।  जो लोग तन से आगे जा कर मन तक उतरते हैं, फिर दिल तक पहुँचते हैं और उसके बाद अंतरात्मा का रास्ता तलाश कर लेते हैं उन्हीं को अर्धनारीश्वर के रहस्यों का पता चलना शुरू होता है। 
नारी को अर्धांगनी कहना आसान लग सकता है लेकिन इस आधे अंग के हर दर्द और हर अहसास को महसूस करना जीवन भर की साधना भी हो सकती है। गृहस्थ आश्रम में यही सच्ची भावना है जो मोक्ष तक ले जाती है। कुंडलिनी जागरण क्या होता है इसी से पता चलने के दरवाज़े खुलने लगते हैं। महादेव क्यूं महादेव कहे जाते हैं इसकी अनुभूति होनी शुरू होती है। आदियोगी ने क्या समझाया था इसका विवरण बिना किताबों को पढ़े मिलना शुरू हो जाता है। गृहस्थ को त्यागने वाले जब दुनिया को एक परिवार मानने की बातें करते हैं तो उनकी बातों पर शक होना शुरू हो जाता है। गृहस्थ में ही भगवान दीखनेके चमत्कार प्रेम से ही सम्भव हैं। 
कहते हैं कपड़ा सीने वाली सूई कहाँ राखी है इसका पता घर की महिला को होगा। नमक मिर्च कहां पड़ा है इसका पता भी उसे होगा। ज़रूरी कागज़ात कहाँ रखे हैं इसकी संभाल भी वही करती है। कब किसके यहां आना जाना है इसका पता भी उसी को होगा लेकिन इन सारे झमेलों में उसकी जगह कहां है यह पूछने पर उसकी आंखों में शायद आंसू आ जाएँ। वह बता नहीं पायेगी। 
जहां अपने मायके और शहर के साथ साथ सभी कुछ यहां तक कि सारी दुनिया छोड़ कर किसी बेगाने परिवार को अपना मान कर रहने आ जाती है तो यह घर सारी उम्र उसका नहीं हो पाता। उसके पति का हो सकता है, उसके बच्चों का हो सकता है, उसके परिवार का हो सकता है लेकिन उसका नहीं हो सकता। इसी दर्द की बात हुई पंजाब यूनिवर्सिटी के रीजनल सेंटर की एक्सटेंशन लाईब्रेरी में हुए आयोजन के दौरान। यह आयोजन महिला काव्य मंच का था। महिलाओं का था। शायरी का था। 
पूंजीवाद के इस दौर में नारी को एक बाजार की चीज़ बना दिया गया। टायर बेचने हों तो भी नारी की चर्चा, परफ्यूम बेचना हो तो भी नारी की चर्चा अर्थात हर मामले में नारी देह को एक व्यापर बना दिया गया है। इस अन्याय और इस दर्द की चर्चा तो अब हर रोज़ करनी पड़ेगी। पूरे वर्ष में केवल एक महिला दिवस काफी नहीं है। हमें पूरा वर्ष हर रोज़ नारी पर हो रहे हो रहे हमलों के खिलाफ आवाज़ बुलंद करनी होगी। 
नारी के स्वतंत्र अस्तित्व की चर्चा करने वालों के इस सारे आयोजन के संचालन में डाक्टर बबीता जैन, प्रिंसिपल नरिंदर कौर संधु, प्रिंसिपल मनप्रीत कौर, पंजाब हरियाणा और चंडीगढ़ की प्रभारी-श्रीमती शारदा मित्तल, ट्राईसिटी चंडीगढ़ की अध्यक्ष-राशि श्रीवास्तव, कानून विभाग की समन्वयक-डा. आरती पुरी, पंजाब इकाई की प्रधान-डा. पूनम गुप्ता, और उनके साथ साथ समाज के बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं बेनू सतीश कान्त, छाया शर्मा, एकता पूजा शर्मा, नीलू बग्गा लुधियानवी बहुत ही मौन और गंभीर भूमिका अदा करती रहीं। पंजाब यूनिवर्सिटी रीजनल सेंटर के केंद्रीय निदेशक डा. रवि इंद्र सिंह आयोजन के अंत तक सभी को बहुत ही ध्यान से सुनते रहे। उन्होंने अपने गहन गंभीर विचार भी रखे। 
शायरी के दौर में जहां छात्राओं ने कमाल की रचनाएँ रखीं वहीं बड़ी उम्र में कदम रख चुकी लेखिकाओं ने भी अपने दिल की बातें कहीं। कार्तिका सिंह की काव्य रचना गौरी लंकेश को समर्पित रही जिस  तालियां बटोरी। रीता मक्क्ड़ ने बहुत ही खूबसूरती से नारी के अधिकारों की बात कही जो उसे सारी उम्र नहीं मिल पाते। प्रिंसिपल मनप्रीत कौर ने नारी की चर्चा करते हुए छाया अर्थात परछाईं के महत्व को भी समझाया और कैफ़ी आज़मी साहिब के शेयरों के ज़रिये भी नारी के मन की थाह समझने का प्रयास किया। 
शायरी के आयोजनों में अपना अलग स्थान बनाने वाली जसप्रीत कौर फलक ने अपने अलग से अणदाय में अपनी मौजूदगी का अहसास कराया। 
महिला काव्य मंच के इस प्रोग्राम का यह यादगारी आयोजन पंजाब यूनिवर्सिटी रीजनल सेंटर की  एक्सटेंशन लाइब्रेरी के एनी बसंत हाल में किया गया।  अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष में पंजाब यूनिवर्सिटी रीजनल सेंटर का यह सक्रिय सहयोग वास्तव में नारी शक्ति और नारी गरिमा को सैल्यूट करने जैसा ही था। गौरतलब है कि इसके आयोजक   पुरुष अर्थात नरेश नाज़ साहिब ने की और इसकी बागडोर महिलाओं को संभाल दी। आजकल यह मंच अक्सर कोई न कोई आयोजन देश के  भागों  में करता ही रहता है। पंजाब और चंडीगढ़ में इसकी सक्रियता तेज़ी से बढ़ी है। इसका पूरा विवरण हिंदी स्क्रीन में देख सकते हैं। --रेक्टर कथूरिया 

Saturday, March 6, 2021

साहिर लुधियानवी साहिब की सौवीं जन्म शताब्दी मनाई

Saturday: 6th March 2021 at 4:50 PM

 कविता कथा कारवाँ ने कराया विशेष आयोजन    


लुधियाना
6  मार्च  2021: (मीडिया-लिंक रविंद्र//हिन्दी स्क्रीन)::

साहिर लुधियानवी साहिब ने इश्क,मोहब्बत, ज़िंदगी, फलसफा और  बहुत। उनके शब्दों में कोई ऐसा जादू था कि जिस  उन्हें पढ़ा या सुना उस उस के दिल में ये अश्यार उतरते चले गए।  फ़िल्मी गीतों ने तो साहिर साहिब की शायरी को और  बुलंदी बख्शी। इतनी बुलंदी कि साहिर साहिब को न तो कोई खुद भूल सका और न ही साहिर साहिब को भुलाने की किसी साज़िश में भागीदार बन सका। साहिर साहिब ने पूंजीवादी साज़िशों का पर्दाफाश करने के लिए शायरी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया और वह भी खुल कर कर। जंग की सियासत को साहिर  साहिब ने बहुत ही बेबाकी से अपनी कलम का निशाना बनाया। जब साहिर साहिब कहते हैं:

बहुत दिनों से है यह मश्ग़ला सियासत का,

कि जब जवान हों बच्चे तो क़त्ल हो जायें।

बहुत दिनों से है यह ख़ब्त हुक्मरानों का,

कि दूर-दूर के मुल्कों में क़हत बो जायें॥  

अपनी  इन पंक्तियों में साहिर साहिब बहुत कुछ कहते हैं जो आज भी प्रासंगिक है। आज फिर इन पंक्तियों को बुलंद आवाज़ में हर गली मोहल्ले में दोहराये जाने की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की की जा रही है।  इस फ़र्ज़ को निभाने वालों में अग्रणी  हैं  शायरा जसप्रीत कौर फलक और उनकी टीम के सभी सदस्य। 

साहिर लुधियानवी साहिब की सौवीं जन्म शताब्दी पर कविता कथा कारवाँ संस्था की ओर से  शहीद भगत सिंह नगर में रंगों नूर की एक महफिल का आयोजन किया गया। इसमें न सिर्फ लुधियाना शहर के बल्कि दूसरे राज्यों की नामी-गरामी शख्सियतों ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम का  सफल संचालन कमलेश गुप्ता जी ने किया। संस्था की सचिव रश्मि अस्थाना ने स्वागती शब्द कहे।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मशहूर शायर सरदार पंछी जी थे। विशिष्ट अतिथि गवर्नमेंट कॉलिज फॉर गर्ल्स की प्रिन्सिपल डॉ सुखविंदर कौर जी थीं। गेस्ट ऑफ ऑनर डॉ खालिद आज़मी जी थे (प्रोड्यूसर उर्दू  विभाग दिल्ली दूरदर्शन)।कविता कथा कारवाँ की अध्यक्षा जसप्रीत कौर फ़लक के साथ/साथ  ईरादीप त्रेहान, छाया शर्मा और डॉ समीर बेहतवी जी (उर्दू शायर  सहारनपुर),ने साहिर जी के जीवन पर हुई परिचर्चा में भाग लिया।

सुरों की सरताज़ शख्सियतों-डॉ अशोक धीर, डॉ अश्विनी कौर, सुखविंदर लाभ, सुखविंदर कौर, रीना गोयल,  सरोज वर्मा, शैली वधवा (मेंबर ऑफ क्रिएटिव राइटर ग्रुप कविता कथा कारवाँ)  ने अपने जादुई सुरों से इस अवसर पर साहिर लुधियानवी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की ।शहर की मशहूर हस्तियों और साहित्य प्रेमियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया । 

इस मौके पर मंच संचालिका श्रीमती कमलेश गुप्ता को संस्था की तरफ़ से 'बेस्ट एंकर अवार्ड' का सम्मान देकर सम्मानित किया गया।

खन्ना से विशेष रूप से पधारे,धर्मेंद्र शाहिद जी ने धन्यवाद शब्द कहे। संस्था की रूहें रवाँ और अध्यक्षा जसप्रीत कौर फ़लक  ने सभी साहित्य प्रेमियों का इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए आभार व्यक्त किया। 

Friday, March 5, 2021

कैफ़ी आज़मी साहिब का एक शायराना अंदाज़

   जो गवाही है कि वह औरत को बराबरी का दर्जा देते थे  


कामरेड का शाब्दिक अर्थ होता है साथी। बहुत से लोग अपने सहयोगियों को कामरेड कहते हैं और साथी भी। वाम विचारधारा से सबंधित जालंधर से प्रकाशित पंजाबी के अख़बार रोज़ाना नवां ज़माना में काम करते करते हम सभी एक दुसरे को साथी ही कहा करते। साथी कहने की आदत इतनी पक गई कि घर आ कर हम लोग अपने भाई, पिता, चाचा, ताया और पड़ोसी को भी साथी ही कहा करते। लेकिन कैफ़ी आज़मी साहिब तो इससे भी आगे तक गए। उन्होने पत्नी अर्थात शौकत आज़मी को हमेशां हर कदम अपने सबसे करीबी साथी के तौर पर ही देखा। समझा जाता है कि औरत नाम की यह बहुचर्चित नज़्म उठ मेरी जान-मेरे साथ ही चलना है तुझे का खुला एलान है। इसे बहुत ही खूबसूरती से संभाला है बाबा आज़मी साहिब ने जिसके लिए हम सभी को उनका शुक्रगुज़ार होना चाहिए। 
सारी दुनिया एक तरफ और यह एलान एक तरफ। आज जबकि फिर से औरतों को घर के रसोईघर और बेडरुम तक सीमित करने की निंदनीय साज़िशें रची जा रही और इस तरह के पाठ पढ़ाये जा रहे हैं तो कैफ़ी साहिब के इस हिम्मतवर एलान को हर दिल तक लेजाना ज़रूरी भी है। इसी जज़्बात से निकली। करीब 78 बरस पहले महिला सशक्तिकरण की इस हकीकत पर आधारित आवाज़ को बुलंद किया था कैफ़ी साहिब ने। तकनीकी विकास और यूटयूब की मेहरबानी है कि उनकी इस नज़्म को उन्हीं की आवाज़ में आज भी सुना जा सकता है। आप इस नज़्म को यहां पढ़ भी सकते हैं। 

    औरत//कैफ़ी आज़मी  

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

क़ल्ब-ए-माहौल में लर्ज़ां शरर-ए-जंग हैं आज

हौसले वक़्त के और ज़ीस्त के यक-रंग हैं आज

आबगीनों में तपाँ वलवला-ए-संग हैं आज

हुस्न और इश्क़ हम-आवाज़ ओ हम-आहंग हैं आज

जिस में जलता हूँ उसी आग में जलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

 

तेरे क़दमों में है फ़िरदौस-ए-तमद्दुन की बहार

तेरी नज़रों पे है तहज़ीब ओ तरक़्क़ी का मदार

तेरी आग़ोश है गहवारा-ए-नफ़्स-ओ-किरदार

ता-ब-कै गिर्द तेरे वहम ओ तअय्युन का हिसार

कौंद कर मज्लिस-ए-ख़ल्वत से निकलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तू कि बे-जान खिलौनों से बहल जाती है

तपती साँसों की हरारत से पिघल जाती है

पाँव जिस राह में रखती है फिसल जाती है

बन के सीमाब हर इक ज़र्फ़ में ढल जाती है

ज़ीस्त के आहनी साँचे में भी ढलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


ज़िंदगी जेहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं

नब्ज़-ए-हस्ती का लहू काँपते आँसू में नहीं

उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं

जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं

उस की आज़ाद रविश पर भी मचलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए...

गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए

फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए

क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए

ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए

रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं

तुझ में शोले भी हैं बस अश्क-फ़िशानी ही नहीं

तू हक़ीक़त भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तोड़ कर रस्म का बुत बंद-ए-क़दामत से निकल

ज़ोफ़-ए-इशरत से निकल वहम-ए-नज़ाकत से निकल

नफ़्स के खींचे हुए हल्क़ा-ए-अज़्मत से निकल

क़ैद बन जाए मोहब्बत तो मोहब्बत से निकल

राह का ख़ार ही क्या गुल भी कुचलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तोड़ ये अज़्म-शिकन दग़दग़ा-ए-पंद भी तोड़

तेरी ख़ातिर है जो ज़ंजीर वो सौगंद भी तोड़

तौक़ ये भी है ज़मुर्रद का गुलू-बंद भी तोड़

तोड़ पैमाना-ए-मर्दान-ए-ख़िरद-मंद भी तोड़

बन के तूफ़ान छलकना है उबलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे


तू फ़लातून ओ अरस्तू है तू ज़हरा परवीं

तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं

हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं

मैं भी रुकने का नहीं वक़्त भी रुकने का नहीं

लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि सँभलना है तुझे

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे

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जश्ने  रेख्ता ने शबाना आज़मी साहिबा के अंदाज़ में भी इसी खूबसूरत नज़्म को संभाला है:


यह नज़्म इतनी खूबसूरत है कि बार बार सुनने के मन करता है। इसे जानेमाने लोगों ने अपने  अंदाज़ में गाया भी है। इसके शब्द खुद ही धुन और अंदाज़ को बनाते चले जाते हैं। महिला सशक्तिकरण का एक लम्बा मंत्र जैसा गीत सकते इसे। इसे माल्विका हरिओम ने बहुत  अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। माल्विका हरिओम साहिब कामरेड बनने का ज़िक्र भी  अंदाज़ में करती हैं। इसे भी सुन कर देखिये।

अगर आप ने भी इसे गाया है तो ज़रा  हमें भी ज़रूर भेजिए।  गली  पहुंचाइये।  इसे घर घर तक पहुँचाईये। आज महिल सशक्तिकरण के लिए  ज़रूरी है। 

प्रस्तुति और संकलन:मीडिया लिंक रविंद्र 

medialink32@gmail.com

WhatsApp:+919915322407