Monday, August 15, 2022

चल अकेला गाते गाते चले गए डाक्टर भारत

उनके बिन सब मेले सूने हो गए


लुधियाना
: 14 अगस्त 2022: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::

कल फिर आ रही है 15 अगस्त की तारीख। स्वतंत्रता दिवस के आयोजन कल भी होंगें। कल फिर फहराए जाएंगे तिरंगे लेकिन डाक्टर भारत के बिन सब सूना लगेगा कल भी। वह इस बरस भी नज़र नहीं आएंगे। उन्होंने पूरी उम्र होश संभालते ही स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के आयोजन मनाने शुरू कर दिए थे। हम लोग कई बरसों से इस आयोजन को लुधियाना के सिविल लाईन्स इलाके में स्थित न्यू कुंदनपुरी इलाके में देख रहे थे। इसके इलावा अयोध्या, फैज़ाबाद, आज़मगढ़, दिल्ली, मुंबई, भोपाल और कई अन्य जगहों पर भी भी डाक्टर भारत एफ आई बी के बैनर तले इस तरह के आयोजन करवाते रहे। इस बार भी उनकी अनुपस्थिति खटकती रहेगी। प्रस्तुत हैं सबसे पहले उनकी स्मृति में कुछ पंक्तियां: 

डाक्टर भारत ने झंडा उठाया था यह! 

उम्र भर हां तिरंगा झुलाया था यह!

आखिरी साँस तक वह समर्पित रहे! 

इसी की बात की, इस पर लड़ते रहे!

अपनी हर सांस इस पर न्योछावर करी!

अपनी पूरी उम्र इस के ही नाम की!

इन्हीं गलियों में झंडा फहराया था यह!

साल में दो समागम उन्हीं के तो थे!

साल में ये दो मेले उन्हीं के तो थे!

देश भक्ति के गीत वो गाते रहे!

देशभक्ति की बातें जगाते रहे!

सबसे मिलते रहे और मिलाते रहे!

झंडा ऊंचा रहे ये ही गाते रहे!

हर एक घर में तिरंगा पहुँचाया था यह!

ज़िंदगी भर वो खुद मुश्किलों में रहे!

फिर भी हंसते रहे, मुस्कराते रहे!

देश भक्ति के मेले लगाते रहे!

देश भक्ति की महफिल सजाते रहे!

चाय समोसों के लंगर लगाते रहे!

देश भक्ति के नारे लगाते रहे!

देश भक्ति का मकसद जगाया था यह!

उनके बिन आज सूनी न्यू कुंदनपुरी!

उनके बिन आज वैसी कोई महफिल नहीं!

न वो तंबू. कनातें, न वो कुर्सियां, 

उनके बिन आज गीतों की महफिल नहीं!

खो गए रूठ कर हमसे जाने कहां!

वो तिरंगा न जाने किसे दे गए!

उनके बिन कैसा मौसम अब आया है यह!

15 अगस्त 2018 को स्वतंत्रता दिवस पर जो आयोजन हुआ वह भी यादगारी था। डाक्टर भारत की सहयोगी टीम में सोनू शर्मा और उनके साथी राजू बंगा और दुसरे नौजवान पूरी तरह सक्रिय थे। बेलन ब्रिगेड की अनीता शर्मा भी विशेष तौर पर उस आयोजन में आईं। भाजपा की महिला नेत्री सुधा खन्ना ने विशेष हाज़िरी लगवाई। कांग्रेस के पार्षद डाक्टर जय प्रकाश भी पहुंचे थे। पड़ोस के ही लोकप्रिय डाक्टर राज गिल्होत्रा हमेशां इस तरह के आयोजनों में सक्रिय रह कर काम करवाते लेकिन खुद परदे के पीछे बने रहते। उस समय भी डाक्टर भारत की रहनुमाई में चलने वाले जानेमाने संगठन FIB ने कहा था कि सियासत से ऊपर उठ कर तिरंगे से जुड़ा भी जाए और सभी को जोड़ा भी जाए। वो कितना पहले सक्रिय थे तिरंगे  को घर घर ले जाने के लिए। 

कभी कभी जुबां पर शिकवा शिकयत भी आता है। डाक्टर साहिब आपके बिन कौन है यहाँ---बहुत जल्दी कर दी आप ने जाने में। कितनी लम्बी योजनाएं बना लीं थी।  क्या बनेगा अब उन योजनाओं का? उन पर काम भी शुरू था लेकिन आप अचानक हम सभी से रूठ गए।  आखिर ऐसा भी क्या हुआ था? काश उस दुनिया में कोई फोन मिल जाता या उस दुनिया का कुछ पता मिल जाता। लेकिन नामुमकिन जैसा ही है सब। बस अब उनकी बातें ही याद रह गयीं। वो भी बहुत कम लोग ही कर पाते हैं। जो बातें आप ने बतायीं थी उन्हें जल्द ही कलम से सबके सामने लाना भी है। अफ़सोस जिन्होंने चाईना गेट वाली टीम में हर सहयोग का वायदा किया था वही लोग डाक्टर साहिब के जाते ही बदल गए। और और मामलों में उलझ गए। शायद यही है दुनिया। 

उनकी पुरानी तस्वीरें अक्सर सामने आ जाती हैं तो बहुत सी पुरानी याद भी दिलाती हैं। उस दौर को एक बार तो फिर से जीवंत कर देती हैं ये तस्वीरें। हर तस्वीर बहुत कुछ याद दिला देती है--

तिरंगा हमेशां ऊंचा रहे-डाक्टर भारत राम का मकसद था यह और जीवन भर रहा। उसमें कभी उन्होंने समझौता न किया।  तिरंगे की बात आती तो वह पूरी तरह अड़ जाते। उनके लिए सबसे ऊपर था तिरंगा। 

देश हमेशां सुरक्षित हाथों में रहे उनका मिशन भी रहा। उनके स्रोत और साधन सीमित थे। फिर भी वह जासूसी में काम आने वाले सामान मंगवाते रहते। छुपे हुए कैमरे उनके पास अक्सर रहते जिन्हें उन्होंने अपनी टीम के ख़ास लोगों में बांटा भी था किसी न किस खास मिशन के लिए। अगर किसी को किसी ख़ास ख़ुफ़िया मिशन पर भेजते तो खतरों का पूरा आकलन करते। छुपे रह कर एक एक्स्ट्रा टीम ले कर उसके पीछे पीछे या आसपास रहते। अपने किसी जासूस या टीम को कभी खतरे में न पड़ने देते। कभी कभी तो हम हैरान रह जाते जिस जिस की डयूटी लगाई होती उसे आगाह करते हुए कहते आज घर परिवार के साथ जहाँ जा रहे हो वहां का प्रोग्राम रद्द कर दो। खतरा है वहां। इस तरह अपने लोगों को बचा भी लेते। डाक्टर भारत को किसी का पारिवारिक प्रोग्राम कैसे पता चलता थे यह आज भी रहस्य है। 

देश भक्ति डाक्टर भारत राम  की रग रग में रची हुई थी। बहुत सी देश विरोधी वारदातों को उन्होंने समझ से पहले सूंघ लें और फिर झट से इसकी सूचना सुरक्षा तंत्र को भी देनी। आतंकी खतरों से जगह करके बहुत सी जानें बचाई। कभी कभी आतंकी लोग भी आ जाते कि जो लेना है लो लेकिन हमारे कामों में टांग मत अड़ाओ। डाक्टर भारत सब कुछ नकार देते। उल्टा उन्हें कहते जो करना है करो लेकिन निर्दोषों का खून मत बहाओ। मेरे देश की तरफ आंख उठा कर मत देखो। मैं तिरंगे के दुश्मनों से कोई समझौता नहीं कर सकता। कभी कभी तो अपनी बातों से उनका ह्रदय परिवर्तन भी कर देते। आतंकी धमकियों की प्रवाह किए बगैर उन्हें सीधी राह पर-सद मार्ग पर  लाने के लिए डाक्टर भारत हमेशां प्रयासशील रहे। 

कांग्रेस की नीतियों से उन्हें इश्क था। शायद उनकी सियासत कांग्रेस के निकट रही हो। बड़े बड़े नेताओं से वह मिलते भी रहे। उनकी आलोचना भी करते रहे। अपने समय की लौह महिला इंदिरा गांधी के फैन भी रहे। राष्ट्रपति अब्दुल कलाम साहिब का तो बेहद आदर करते थे। उम्र भर देश उनके लिए सर्वोप्रिय रहा। आखिरी सांस तक यह भावना नहीं बदली। 

बड़े बड़े लोगों से मिलना जुलना रहा लेकिन उन्होंने कभी इसका फायदा नहीं उठाया। चाहते तो लाल बत्ती वाली गाड़ी, बंगला फ़्लैट सब ले सकते थे लेकिन नहीं। भावुक थे। दिल से सोचते थे। नफा नुकसान तो कभी नहीं सोचा उन्होंने। 

उनके लिए देश किसी इमारत का नाम नहीं था बल्कि देश की जनता थी असली भारत। समाज में एकता बनी रहे इसके लिए वह आखिरी सांस तक प्रयासशील रहे। साम्प्रदायिक और फूट डालने वालों के खिलाफ हर दिन लड़ते रहे।  फुट और नफरत की सियासत से उन्हें सख्त नफरत थी। प्रेम के पुजारी थे, प्रेम के ही दूत थे। हर तरफ प्रेम ही चाहते थे। प्रेम की रक्षा के लिए हर जंग भी लड़ सकते थे।  

डाक्टर भारत ज़िंदगी भर अभावों में रहे लेकिन मुस्कराते रहे। कोई नियमित आमदनी तो थी नहीं। फक्कड़ सवभाव लेकिन दिल में बादशाही भी। इसके बावजूद मेहमानों के लिए चायपानी का खर्चा कभी कभी हर रोज़ तीन सो रुपयों से भी ज़्यादा बढ़ जाता। किसी दिन किसी को खाना खिलाना पड़ जाता या शाम को जाम चला तो खर्चा और भी बढ़ भी जाता। जो भी आता इन्हीं बातों में खर्च हो जाता। उन्होंने दोस्तों की आवभगत में कभी कोई कसर न छोड़ी. कभी कोई कंजूसी न की। दोमोरिया  दोमोरिया पुल की मार्कीट में बहुत ही पुराने बने हुए प्रीतम ढाबे में कभी कभी शाम को ओंकार पुरी साहिब भी खर्चे पानी से हाथ खड़े कर जाते और दुसरे लोग भी। इसके बावजूद महफ़िल जारी रहती। प्रीतम ढाबे के मालिक को थोड़ी सी आशंका होती कि कि डाक्टर साहिब की जेब संकट में हैं। वह आ कर हाथ जोड़ कर कहता डाक्टर साहिब आपका अपना ही ढाबा है। कोई चिंता मत करना। हिसाब किताब होता रहेगा। और महफ़िल जारी रहती। डेस्क पर पड़ा उनका जासूसी छल्ला आसपास की खबर लेता रहता।  हम लोग नाराज़ भी होते लेकिन डाक्टर भारत मुस्करा कर सब माहौल हल्का बना देते। जवाबी सवाल करते अरे भाई कोई फैज़ाबाद से आ रहा है, कोई मुंबई से, कोई दिल्ली से तो कोई आज़मगढ़ से क़ज़ा उन्हें जलपान भी न कराया जाए? 

उम्र के आखिरी दिनों में बिजली बोर्ड वाले उनका मीटर काट गए। बिल अदा नहीं हो पाया था। इसका गहरा सदमा लगा उन्हें। वह उदास रहने लगे। बिल की रकम कुछ हज़ारों में ही थी लेकिन फिर भी बहुत बड़ी न थी। दोस्तों से मिल जल कर भी वह रकम भी अदा न हुई।

उदास थे। जिन लोगों के लिए मैंने कभी अपना कुछ न बनाया। किसी बड़े से बड़े मामले में समझौता न किया। उन लोगों ने मुझे बिल की रकम के लायक भी न समझा! एक अकाली लीडर ने कहा अच्छा ही हुआ अब जल्दी घर जाया करोगे। यूं भी पंखे की हवा से सेहत खराब होती है। उसने शायद मज़ाक में कहा था लेकिन उन बातों ने भी उनको गहरी ठेस पहुंचाई। डाक्टर भारत ने इन्हें दिल पर ले लिया। एक दिन दिल का दर्द अचानक शिद्दत से उठा और पूरी टीम को अकेला छोड़ गए। शायद कह रहे थे-यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! कभी कभी लगता है अच्छा हुआ इस मतलबी दुनिया को छोड़ गए यहां दिल की बातें कौन समझता है? लेकिन उनके बाद पैदा हुई उदासी भी नहीं जाती। 

अब पूरी टीम में कोई नहीं है उन जैसा। डाक्टर भारत FIB टीम के सक्रिय सदस्यों को चाईना गेट टीम बोला करते थे। सारी उम्र उन्होंने इस टीम के प्रेम में काटी लेकिन हम लोग उन्हें हार्ट अटैक से बचा नहीं पाए। वह अपने FIB दफ्तर से अपनी बेटी की कार से घर की तरफ गए और फिर कभी लौट कर नहीं आए। हम इंतज़ार कर रहे थे शाम हो गई अभी आए  क्यूं नहीं! उस आखिरी दिन के घटनाक्रम को सोच सोच कर स्वयं पर ही आत्म ग्लानी  होती है हम कैसे दोस्त थे उन्हें सही वक्त पर किसी महंगे अस्पताल में नहीं लेजा पाए। 

अब भी दिल में दर्द उठता है उनके जाने के बाद। कोई तो आगे आए जो उनके मिशन को आगे ले जाने को राज़ी हो। पूरे समाज के लिए अपूरणीय क्षति है उनका इस तरह चले जाना--

-----आज भी उनके पड़ोस में रहना याद आता है।  उनके बिना अब न वो सिविल लाईन्ज़ का न्यू कुंदनपुरी वाला इलाका अच्छा लगता है न ही यहाँ मोहाली का इलाका जहां हमने एकसाथ आना था। वो भी अकेले चले गए। हम भी अकेले रह गए। याद आता है वो गीत चल अकेला चल अकेला चल अकेला! तेरा मेला पीछे छूटा बाबू चल अकेला!

                  --रेक्टर कथूरिया

               पंजाब स्क्रीन मीडिया समूह

बहुत सी यादें हैं बाकी फिर कभी सही---

इस आलेख को भी पढ़िए प्लीज़--

शांतिनिकेतन में पढ़ने का वो सपना टूट गया 

Sunday, July 31, 2022

प्रेमचंद के नाम में कैसे जुड़ा 'मुंशी'

पूरी कहानी बता रहे हैं जाने माने लेखक राजिंद्र साहिल 

लुधियाना: 31 जुलाई 2022: (राजिंद्र साहिल//हिंदी स्क्रीन)::

आज महान कथाकार प्रेमचंद की जयंती है। इस अवसर उन्हें बड़ी आत्मीयता से याद भी किया जा रहा है। उनके नाम के साथ 'मुंशी' शब्द का प्रयोग भी धड़ल्ले से किया जा रहा है। दरअसल वे मुंशी जैसे किसी पद पर कभी कार्यरत नहीं रहे। फिर यह 'मुंशी' आया कहां से? 

"हंस' पत्रिका जब आरंभ की गई, तब उसके दो संपादक निश्चित हुए। पहले प्रसिद्ध साहित्यकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और दूसरे स्वयं प्रेमचंद। संपादक के तौर पर दिया गया : मुंशी - प्रेमचंद।

बाद में इन दोनों शब्दों के बीच से '-' हाइफन भुला दिया गया और कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का 'मुंशी' प्रेमचंद के साथ जुड़ गया और वे बन गये मुंशी प्रेमचंद।

(प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी द्वारा लिखित प्रेमचंद की जीवनी 'प्रेमचंद घर में' इस तथ्य का उद्घाटन किया गया है।

अहमद फ़रहाद साहिब की वह ग़ज़ल जिसने लोकप्रियता के रेकार्ड तोड़ दिए

 मैं फूल बाँटता हूँ मुझे–मार दीजिए 


खरड़//मोहाली: 30 जुलाई 2022: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन)::

वैसे तो अहमद फरहाद की यह ग़ज़ल भी लोकप्रियता की बुलंदियों को छूती हुई जन जन के दिल में उत्तर गई लेकिन हमें इसे पढ़ने की खुशनसीबी मिली खरड़//मोहाली के एक वटसप ग्रुप वेद दीवाना फैन क्लब में। बहुत ही मय्यारी रचनाओं को पाठकों के सामने रखने वाला यह ग्रुप तेज़ी से अपनी जगह बनाता चला जा रहा है। इसी ग्रुप में से हम दे रहे हैं अहमद फरहाद साहिब की यह ग़ज़ल जिसे ग्रुप में सभी के सामने रखा है इंद्र सैनी साहिब ने। 

काफ़िर हूँ सरफ़िरा हूँ मुझे– मार दीजिए

मैं सोचने लगा हूँ मुझे– मार दीजिए

                      मै पूछने लगा हूँ सबब अपने क़त्ल का

                     मैं हद से बढ़ गया हूँ मुझे– मार दीजिए

शायर अहमद फरहाद साहिब 

ख़ुशबू से मेरा रब्त है जुगनूँ से मेरा काम

कितना भटक गया हूँ मुझे–मार दीजिए

                    मालूम है मुझे कि–बड़ा जुर्म है ये काम

                    मैं ख़्वाब देखता हूँ मुझे– मार दीजिए

ये ज़ुल्म है कि ज़ुल्म को कहता हूँ साफ़ ज़ुल्म

क्या ज़ुल्म कर रहा हूँ मुझे–मार दीजिए

                           ज़िंदा रहा तो करता रहूंगा हमेशा प्यार

                          मैंसाफ़ कह रहा हूँ मुझे– मार दीजिए

जो ज़ख़्म बाँटते हैं उन्हें–ज़ीस्त पे है हक़

मैं फूल बाँटता हूँ मुझे–मार दीजिए

                       बारूद का नहीं– मेरा मसला दुरूद है

                      मैं ख़ैर माँगता हूँ मुझे–मार दीजिए

                             --अहमद फ़रहाद 

Friday, July 22, 2022

कविता कथा कारवां की ओर से 'सावन कवि दरबार' का आयोजन

18th July 2022 at 09:14 PM

 जानेमाने शायर सरदार पंछी मुख्य अतिथि के रूप में पधारे 


लुधियाना: 18 जुलाई 2022: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन):: 

शायरी तभी सम्भव होती है जब इन्दगी दर्द भी देती है, संवेदना भी देती है, दर्द भी देती है। इस जहां अनुभूति के बाद कोई कोई ही होता है जो इस सरे अनुभव की अभिव्यक्ति कर सकता है। जैसे जैसे यह अनुभूतियां गहरी होती आती है वैसे वैसे अभिव्यक्ति का रंग भी गहराता जाता है। लोग कहने लगते हैं आपकी कविता बहुत सुंदर हो गई है। बस ऐसे अनुभवों का अहसास करते करते ही जसप्रीत कौर फलक ने श्री अटल बिहारी वाजपेयी साहिब  की कविता पर पीएचडी कर ली। यानि जीवन में भी कविता, शोध में भी कविता और इन्दगी के आयोजनों में भी कविता। कुल मिला कर जसप्रीत कौर फलक का पूरा जीवन ही कवितामय बन गया है। इसकी चमक अब तो चेहरे पर भी स्पष्ट नज़र आने लगी है। 

कविता कथा कारवाँ (रजि.) की ओर से 'सावन कवि दरबार' का आयोजन माया नगर में किया गया।  वरिष्ठतम शायर सरदार पंछी  इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पधारे। इस अवसर पर संस्था की अध्यक्षा डॉ जसप्रीत कौर फ़लक ने आमंत्रित कवियों एवं उपस्थित गणमान्य काव्य प्रेमियों का स्वागत किया। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रसिद्ध भजन गायिका सरोज वर्मा के सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना गायन से हुआ। 

इसके बाद कविगणों एवं शायरों ने सावन ऋतु को केंद्र में रखकर अपनी-अपनी बेहतरीन कविताएं और ग़ज़लें प्रस्तुत कीं। रचनाकारों ने अपनी खूबसूरत ग़ज़लों, गीतों और कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। साहित्य के साथ साथ संगीत का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था। 

कवि दरबार में  डॉ जसप्रीत कौर फ़लक, डॉ जगतार धीमान, दानिश भारती, डॉ राजेंद्र साहिल, अमृतपाल गोगिया, हरदीप बिरदी, रश्मि अस्थाना, गुरचरण नारंग, नवप्रीत हैरी और डॉ रविंदर सिंह चंदी ने अपनी उच्च स्तरीय रचनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया। मशहूर शायर दानिश भारती ने प्रभावशाली ढंग से मंच का संचालन किया। 

अंत में सुश्री रश्मि अस्थाना, सचिव, कविता कथा कारवाँ (पंजीकृत) ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा। कार्यक्रम का सबसे बड़ा आकर्षण रहे मालपुए और खीर। सभी साहित्यकारों एवं साहित्य प्रेमियों ने स्वादिष्ट मालपुए-खीर का आनंद लिया और श्रावण मास का शगुन भी पूरा किया।


चलते चलते कुछ पंक्तियां 

कोई किस्से नहीं होते कोई बातें नहीं होतीं

महकते दिन नहीं होते मधुर रातें नहीं होतीं

कहीं पर दूर रहकर भी कोई दूरी नही होती

कहीं पर पास रहकर भी मुलाकातें नहीं होतीं

-डॉ कविता'किरण"

Thursday, July 21, 2022

कठिन अनुभूतियों की सहज अभिव्यक्ति है रीतू कलसी

नई काव्य रचना भी यही बताती है 


सोशल मीडिया: 21 जुलाई 2022: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::

कितनी कठिन रही होगी ऐसी अनुभूति! 

कितनी कठिन रही होगी ऐसी कल्पना भी!

कितनी सहजता से कर दी अभिव्यक्ति!

कितनी शानदार है रीतू कलसी की यह काव्य रचना भी--!

आप ने सुना होगा वह लोकप्रिय गीत--

तुम मुझे यूं भुला न पाओगे--जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे-संग संग तुम भी गुनगुनाओगे!

वो गीत भी सुना होगा--गर तुम भुला न दोगे

सपने ये सच ही होंगे

हम तुम जुदा न होगे

हम तुम जुदा न होगे 

ऐसे बहुत से गीत हैं--बहुत सी कहानियां हैं लेकिन कितने लोग याद रख पते हैं जब बिछड़ने वाला बिछड़ ही जाता है। हकीकत यही है कि जिसके बिना एक कदम तक चलना नामुमकिन लगता था हम उसके बिना भी फिर से जीना सीख ही लेते हैं। बेवफाई कहो या ज़िंदगी की मजबूरियां कि याद रखने में सहायता देने वाली सभी निशानियां मिल कर भी उन यादों को भूलने से रोक नहीं पातीं। हम सभी धीरे धीरे सभी को भूल जाते हैं। हमारे स्वार्थ हमें यही तो सिखाते हैं। ऐसे में रीतू ने कुछ ज़्यादाही सच्ची बात कह दी है। 

वैसे सत्य भी यही है--जीवन भी यही है--लेकिन स्वीकार करना आसान तो नहीं होता। हम भ्रम में जीने वाले लोग। अंधेरे में जीने वाले लोग। घर के अंदर और बाहर भी अपनी ज़रूरत के मुताबिक ही रौशनी का प्रबंध करते है। ऐसा तो कभी सपने में भी नहीं सोचते के हमारे अंतर्मन में भी हकीकत की रौशनी आ जाए। स्वयं को भुलाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलते हैं। कभी दारो--कभी सिनेमा--कभी नावल--कभी कविता---फिर भी स्वयं को भूल नहीं पाते तो कई बार नींद की गोली का भी सहारा--! बहुत डरते हैं हम अंतर्मन में रुष नि होने से। बहुत डरते हैं हम स्वयं के साक्षताकार से। अंतर्मन के आईने में झाँकने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हम लोग। जब अंतर्मन में किसी न किसी तरह ऐसी रौशनी आ ही  जाती है तभी सम्भव हो पाता है ऐसी रचना लिख पाना। ऐसी सफल रचना के लिए रीतू को हार्दिक बधाई। आप भी इस रचना को पढ़ सकते हैं लेकिन खतरा है यह आप का साक्षताकार कहीं आप से ही न करवा दे..! हिम्मत जुटा सकते हैं तो य्रुर पढिए इस धंदर कविता को।   --रेक्टर कथूरिया 

अब जिस कविता की बात की ज़रा उसे भी पढ़ लीजिए  


जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

भूल जाना उसी वक्त

बिल्कुल भी समय बरबाद मत करना

अपने दिमाग को कष्ट मत देना

मत सोचना कितना समय गुजारा मेरे साथ

हो सकता है पल भर के लिए भर आए आंखें

फिर भी जानती हूं किसी और के साथ होने से

याद भी न आयेंगे साथ गुजारे लम्हें

यही जिंदगी है जीवन है किसी के साथ कोई नही जाता

तो इसीलिए तुम ऐसा ही करना

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

सब झूठ जला देना मिटा देना 

कभी एक साथ रहने के वादों से खुद ही छुटकारा मिल जाएगा 

वादा खिलाफी के झमेलों से बचा लेगी मौत की खबर तुम्हे 

बस फिर भी 

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे

तो चले जाना उसी समय बरसात में नहाने 

सब कुछ धुल जाएगा मन से तन से 

कहीं खुशबू बचाए न रखना अपने पास

जैसे ही तुम्हारे पास मेरे मरने की खबर पहुंचे 

मिटा देना नामोनिशान हर जगह से, हर जगह से

   ---रीतू कलसी

Tuesday, May 10, 2022

अपने बच्चों से माँ कभी हो न जुदा से.......

 9th May 2022 at 09:57 PM

 कवियों ने मातृ दिवस पर समा बांधा


जयपुर
: 9 मई 2022: (साधना गुप्ता//हिंदी स्क्रीन)::

इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल की पंजाब इकाई की अध्यक्षा साधना गुप्ता ने 8 मई को मातृ दिवस के उपलक्ष्य में ऑनलाइन कवि सम्मेलन करवाया।जिसमें  इकाई के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. चन्द्रमणि ब्रह्मदत्त ने भी शिरकत की।इकाई के सलाहकार विजय वाज़िद तथा उपाध्यक्ष प्रकृति झा भी शामिल हुए।अफ़रोज़ अज़ीज़ ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।डॉ. रश्मि झा मुख्य अतिथि तथाअनुराग सुरुर विशिष्ट अतिथि रहे।देश के विभिन्न क्षेत्रों से आये कवियों ने मातृ दिवस पर एक से बढ़कर एक प्रस्तुति दी। साधन गुप्ता की कविता अपने बच्चों से माँ कभी हो न जुदा ने सबकी आँखे नम कर दी ।पूनम कुमावत की रचना जो देखा माँ की आँखों ने मार्मिक थी।आरती झा की कविता'माँ दिल में बसी पूज्य है सम्माननीय ने समा बांध दिया। प्रवीना त्रिवेदी की पंक्तियां मेरे सपनों में रोज आती हो तुम ने भाव विभोर कर दिया।रामकुमार प्रजापति की कविता मातृ सृष्टि आधार है सकुल गुणों की खान ने तालियां बटोरीं।प्रकृति झा की पंक्तियां मेरी माँ ने मुझको जन्म दिया ने सभी  को भावुक कर दिया।डॉ. रश्मि झा की कविता माँ को भी नज़रें लगती है ने माहौल को खुशनुमा कर दिया। गीतेश्वर जी के गीतों ने धूम मचा दी।अनुराग सुरुर की ग़ज़ल डर रहा था मैं जिनको खोने से तथा विजय वाज़िद जी की ग़ज़ल वो टूटे फूटे और कच्चे घर नही बदले ने वाहवाही बटोरी।डॉ. चन्द्रमणि ब्रह्मदत्त ने कार्यक्रम की सराहना की। कार्यक्रम के अंत में साधना गुप्ता ने सभी का आभार प्रकट कर कार्यक्रम का समापन किया।

Tuesday, May 3, 2022

ज़िंदगी का असली संदेश देती हुई रजनी शर्मा की एक नई रचना

 अक्षय तृतीया , ईद एवं परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं 

रजनी शर्मा अध्यापन के क्षेत्र में है और प्राकृतिक सौंदर्य के नज़दीक रहने का सौभाग्य भी। उनकी रचना भी बहुत ही सलीके और  कोई न कोई सीख देती है। इसका अहसास आपकी उनकी यहां दी जा रही रचना पढ़ कर भी होगा। बहुत ही बेबाकी से बहुत ही पते की बात। --रेक्टर कथूरिया 

Pexels Photo by Alena Darmel

दिल में इतना ज़हर न घोलो।

 ईद मुबारक सबको बोलो ।


नर्क सरीखी कर दी दुनिया,

नफ़रत से क्यों भर दी दुनिया,

 विष अमृत में अब ना घोलो।

ईद मुबारक सबको बोलो ।।


पूजा और अजान करें हम,

गीता और कुरान पड़ें हम,

प्यार ख़ज़ाने अब तो खोलो।

ईद मुबारक सबको बोलो।।


अपनों से ना डर लगता हो,

 अपना घर अपना लगता हो,

 फिर नानक सा तेरह तोलो,

ईद मुबारक सबको बोलो।।


सच हो अब ज़ुबान पे सब के,

पत्थर उछले न मकान पे सब के,

आपस की नफ़रत को छोड़ो।

ईद मुबारक सबको बोलो।।

!!रजनी शर्मा!!  

Saturday, February 19, 2022

हिन्दी लेखिका संघ के वार्षिक सम्मान और पुरस्कार घोषित

गाजीपुर की कवयित्री रश्मि शाक्य भी होंगी पुरस्कृत


देवबंद: (*ज्योति बजाज//इनपुट:कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन डेस्क ):: 

हिन्दी लेखिका संघ के वर्ष 2021-22 के वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा हो गयी है। संघ की अध्यक्ष अनीता सक्सेना ने कल देर रात इस वर्ष सम्मानित होने वाली महिला साहित्यकारों की सूची जारी कर दी। इसमें देश भर से 25 से अधिक लेखिकाएं सम्मानित और पुरस्कृत की जाएंगी। सम्मान समारोह 6 मार्च को हिन्दी भवन, भोपाल में सम्पन्न होगा।

उक्त जानकारी साहित्यक एंव सामाजिक संस्था चेतना के महामंत्री गौरव विवेक ने प्रेस को जारी ब्यान में बताया कि संस्था की सरंक्षक व गाजीपुर की कवयित्री रश्मि शाक्य को उनकी पुस्तक हमसे कोई वचन न मांगो, मुक्तक विधा में सुशीला जिनेश स्मृति पुरस्कार, प्रदान किया जाएगा। रश्मि शाक्य की अब तक चार किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा राष्ट्रीय स्तर का सम्मान हरिवंश राय बच्चन युवा गीतकार सम्मान, राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा साहित्य गौरव सम्मान, भारतीय सिने कर्मचारी संघ द्वारा इंस्पायरिंग वीमेन अवार्ड, तुलसी शोध संस्थान लखनऊ द्वारा सन्त तुलसी सम्मान, विपुलम विदुषी सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। कार्यक्रम में कुसुम कुमारी जैन वरिष्ठता सम्मान, माया अग्रवाल, डॉ. फीरोजा मुजफ्फर सेवा सम्मान, डॉ. साधना शुक्ला को एवं डॉ. सुशीला कपूर हिंदी सेवी सम्मान, श्रीमती मनोरमा पंत, श्रीमती शोभा शर्मा कर्मठता सम्मान डॉ. साधना गंगराड़े को प्रदान किया जाएगा। 

संस्था की सरंक्षक रश्मि शाक्य को सम्मान मिलने पर डा0 अंजना कुमार, योगेन्द्र सुन्दरीयाल, पल्लवी त्रिपाठी, आदेश चैहान, डा0 दिवाकर, बलराज मलिक, गौरव विवेक, रितेश कुमार आदि ने हर्ष व्यक्त किया। साहित्यिक दीप वेलफेयर सोसाइटी (रजि) लुधियाना की तरफ से भी हर्षित ह्रदय के साथ श्रीमती रश्मि शाक्य जी को सम्मान मिलने की खुशी में हर्ष व्यक्त किया गया।

गौरतलब है कि रश्मि शाक्या विद्रोही स्वर जैसे अपने विचार बभूत बेबाकी और बुलंदी से रखती हैं।  उनकी शायरी की एक झलक आप यहाँ भी देख सकते हैं:

जो विधर्मी  थे, पुजारी हो  गए।

न्याय पर अन्याय भारी हो गए।

हो गयी धृतराष्ट्र जैसी राजसत्ता,

और हम भी  गांधारी हो  गए॥

----------------------------------

ये तो सच है कि कैसे भी कट जाएगी।

चन्द ग़म में ख़ुशी में निपट जाएगी।

गर तुम्हारे लिए प्यार दिल से घटा,

ज़िन्दगी भी उसी रोज़ घट जाएगी॥

--------------------------------

अगर निभा न हम पाए तो तड़प-तड़प कर मर जायेंगे,

हमसे कोई वचन न मांगो .......वचन बड़े भारी होते हैं.

-------------------------------------

सत्ताओं के निर्णायक  हैं .... हम भारत के लोग।

जन-गण भी हैं अधिनायक हैं हम भारत के लोग॥

---------------------------------

सत्य का परिणाम घोषित क्या करेंगे?

स्वयं हैं भूखे तो तोषित क्या करेंगे ?

आप सब उम्मीद पर जिनकी टिके हैं,

आत्मा से वे कुपोषित, क्या करेंगे ?

--------------------------------

मैंने आज़ादी मांगी 

उन्होंने मुझे देशद्रोही कहा

उस दिन समझ आया-

"आज़ादी और देशभक्ति

दो अलग - अलग तलवारें हैं

जो एक म्यान में कभी नहीं आ सकतीं...."[

आप ज़रूरत अनुसार 'आज़ादी' की जगह रोज़गार,  सामाजिक न्याय, सुरक्षा आदि-आदि शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं]

----------------------

बर्छी जैसे इस मौसम में,

नर्म धूप सी याद तुम्हारी

------------------------------------

कितने चेहरे आप लगाते साहब जी।

देख मुखौटे भी शरमाते साहब जी।

लोकतंत्र को लाठी लेकर हांक रहे,

तानाशाही ख़ूब चलाते साहब जी॥

छुरियों से छलनी-छलनी कर डाला है,

लेकिन मुँह से प्यार जताते साहब जी॥

घर को अपने रोज़ फूंक पर फूंक रहे,

ग़ैरों पर इल्ज़ाम लगाते साहब जी।

अपना कहते, पर हिस्सों में बांट रहे,

कैसा रिश्ता आप निभाते साहब जी॥

आपकी वहशत पर यदि चीखूं-चिल्लाऊं

 मुझको विद्रोही बतलाते साहब जी॥

भ्रम टूटेगा, सदियां माफ़ करेंगी क्या?

कुछ तो इज़्ज़त आप बचाते साहब जी॥

हमसे कोई वचन न मांगो ( Humse Koi Vachan Na Maango) https://www.amazon.in/.../ref=cm_sw_r_apan_glt_fabc...
❤️
 *हमसे कोई वचन न मांगो*
❤️
इस नए साल अपनों को गिफ़्ट करने के लिए आपके पास बेस्ट चॉइस के रूप में है...

*ज्योति बजाज स्वयं भी सक्रिय शायरा हैं और समकालीन आयोजनों और साहित्यिक सरगर्मियों पर नज़र भी रखती हैं। 


Friday, February 18, 2022

एक आयोजन "निर्मल ऋषि" मैम के साथ

साहित्यिकदीप वेलफेयर सोसाइटी ने कराया विशेष कार्यक्रम 

लुधियाना:17 फरवरी 2022: (हिंदी स्क्रीन ब्यूरो)::
साहित्यिकदीप वेलफेयर सोसाइटी (रजि) की ओर से प्रकाशित करवाए गए सांझे संकलन "काव्य-क्यारी"को साहित्य प्रेमियों को समर्पित करने से पहले पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री में अपना नाम कमाने वाले "निर्मल ऋषि"मैम को भेंट किया गया। ऋषि मैम एक बढ़िया अदाकारा होने के साथ-साथ एक बहुत ही नरम दिल इंसान भी हैं जिन्होंने हमारी पूरी टीम की हिम्मत बढ़ाते हुए पुस्तक काव्य-क्यारी को बेहद प्यार और आशीर्वाद दिया। साहित्य के प्रति उनका प्रेम एवं अपनी मातृभाषा पंजाबी के प्रति उनकी रूचि देख हम सभी को उनसे बेहद कुछ सीखने को मिला। ईश्वर की असीम कृपा से पुस्तक काव्य-क्यारी को जल्दी ही साहित्य प्रेमियों को समर्पित किया जाएगा। 

Wednesday, February 16, 2022

नहीं रहे बेनू परवाज़ के माता अजीत कौर जी

कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे लुधियाना में हुआ निधन 

लुधियाना: 16 फरवरी 2022: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::

कुछ लोग दुःख से टूट जाते हैं। कुछ बहादुर लोग  टुकड़ों को फिर से उठा क्र जोड़ लेते हैं और चल पड़ते हैं नए जोश के साथ  पर। जब प्रोफेसर सतीश कांत का अचानक निधन हो गया तो उनके परिवार के लिए सब कुछ टूट गया। सभी सपने बिखर गए। जो अपने थे उनके पास पहले से ही उनके अपने झमेले थे। जो अपने नहीं हैं वे भी या तो हालत का फायदा उठग्ने लगते हैं या फिर औपचारिक अफ़सोस व्यक्त करने के बाद लौट जाते हैं अपनी अपनी दुनिया में। कौन किसका दुःख बंटा पाता और सा ही दुःख बंटाने की बात सम्भव भी नहीं होती। सती प्रथा को मानने वाली महिलाएं तो आग में जल कर रख हो जाती रहीं लेकिन इस आग से ज़्यादा पीड़ादायक होती है बिरहा की आग। उसमें जीवन भर एक एक सांस सती होते रहना होता है। इसके साथ ही घर परिवार और दुनिया की रस्में भी निभानी होती हैं। सभी ज़िम्मेदारियां भी उठानी होती हैं। इस धर्मयुद्ध से भागने की सिफारिश न  न ही समाज। परिवार, समाज और स्वयं की ज़िम्मेदारियों से भाग कर की गई पूजा भी स्वीकारयोग्य नहीं होती। 

प्रोफेसर सतीश कांत का निधन होने के बाद यह सभी चुनौतियां मैडम बेनु के सामने थी। पति चल बसे तो सती जैसी प्रथाएं शुरू करने और चलाए रखने वाला समाज पत्नी का मुस्कराना भी ठीक नहीं समझता। ढंग से कपड़ा पहन ले तो उसे दूसरी ही निगाहों से देखने लगता है। लेकिन ज़िंदगी की जंग में मुस्कराना भी पड़ता है और ढंग के कपड़े भी पहनने पड़ते हैं। 
बेनू मैडम के पिता बहुत ही प्रगतिशील थे। उन पर वाम के विचारों का काफी असर था। एक तरह से कामरेडों वाली लुक थी इस परिवार की। पीटीआई का साथ छूटा तो उन्हें पिता भी बहुत याद आए लेकिन वह भी तो पास नहीं न थे। 
इस दूरी के बावजूद पिता के अपनाए  विचारों ने बेनू मैडम और उनके परिवार को शक्ति दी कि समाज से डर कर नहीं बल्कि उन्हीं सिद्धांतों को अपना कर चला जाता है जो पूरे समाज का भला करने वाले हों। 
उस बेहद नाज़ुक माहौल में जिसने स्नेह और मातृत्व के साथ आगे बढ़ने की शक्ति दी वह बेनू की मां थी। हम से कुछ लोगों ने उस महान शख्सियत माता अजीत कौर जी के दर्शन भी किए हुए हैं। उस महान माता ने बेनू को हौंसला दिया। पूरी हिम्मत से काम करने के लिए ढांढ़स बंधाई। समाज आड़े आया तो बेनू की माता जी ने पूरे समाज के साथ टक्कर  ले कर उसे अपने साथ चलने पर मजबूर किया। बेनू को साहित्य सृजना के लिए उत्साहित किया। 
बेनू को टूटने से बचाने वाली वह महान शख्सियत अब इस दुनिया में नहीं रही। इस महीने की 15 फरवरी को उनका निधन हो गया। वह कुछ दिन से बीमार तो चल रहे थे लेकिन ऐसी आशंका तो कदापि भी नहीं थी। शायद यही होती है अनहोनी। जो हम सोचना भी नहीं चाहते वही हो कर रहता है। वह बेनू और परिवार को छोड़ कर चली गयीं उस सफर पर जहां से कोई नहीं लौटता। दुःखद मन से उन्हें सिविल लाईन्ज़ के श्मशान घाट में अंतिम दर्शनों के बाद विदा कर दिया गया। चिता की अग्नि के साथ ही ज्योति के साथ ज्योति मिल गई। अब यादें शेष हैं। उनके दिए आशीर्वाद शेष हैं। उनकी बातें अब भी कानों में सुनाई देती रहेंगी। जहां जहां वह उठते बैठते थे वहां वहां से उनके होने का भरम होता रहेगा।  उन्हें खोने के बाद उनकी अहमियत हर पल बढ़ती रहेगी। हम सोचते रहेंगे काश आज फिर वह हमारे पास होते लेकिन कौन आया है उस जहां से लौट कर। वह अदृश्य हो गई हैं लेकिन वह हमारे आपस ही तो हैं। बस अब नज़र नहीं आएंगी। 

Friday, February 11, 2022

साहित्य अकादमी की ओर से जारी हैं विशेष प्रयास

प्रविष्टि तिथि: 10 FEB 2022 6:36PM by PIB Delhi

बड़ी संख्‍या में भारतीय उत्कृष्ट ग्रंथों, लोकप्रिय कृतियों और उत्कृष्ट साहित्यिक रचनाओं को विदेशी भाषाओं में सवंर्धित किया गया है: श्री जी. किशन रेड्डी

भारत सरकार ने साहित्य अकादमी (संस्कृति मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय) के माध्यम से भारतीय साहित्य के विदेशी भाषाओं में अनुवाद को बढ़ावा देने/प्रोत्साहित करने के लिए निरंतर अनेक कदम उठाए हैं। इन वर्षों के दौरान अकादमी ने कई उत्कृष्ट भारतीय  ग्रंथों और लोकप्रिय भारतीय कृतियों को विदेशी भाषाओं में संवर्धित किया है, जैसे कि रामायण का अयोध्या कांड, जैसा कि कंबन द्वा कथित तमिल से अंग्रेजी में, मलयालम के चेम्मीन से अंग्रेजी और कई पूर्वी यूरोपीय भाषाओं में, तुलसीदास की कवितावली का अंग्रेजी में, प्रेमचंद के गोदान का अंग्रेजी में, एसएन पेंडसे की गारंबीचा बापू को अंग्रेजी में, विभूति भूषण बंद्योपाध्याय की पाथेर पांचाली का फ्रेंच में, कुछ उल्लेखनीय नाम हैं।

    अकादमी ने 10 विभिन्न भारतीय भाषाओं की निम्नलिखित 10 पुस्तकों का चीनी, रूसी और अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किया है:

  1. सैयद अब्दुल मलिक (असमिया) द्वारा सुरुज्मुख स्वप्ना
  2. तारा शंकर बंद्योपाध्याय (बंगाली) द्वारा आरोग्यनिकेतन
  3. झावेरचंद मेघानी (गुजराती) द्वारा वेविशाल
  4. निर्मल वर्मा द्वारा (हिंदी) कव्वे और कला पानी
  5. एस एल भैरप्पा (कन्नड़) द्वारा पर्व
  6. मनोज दास (उड़िया) द्वारा मनोज दसंका कथा ओ कहिनी
  7. गुरदयाल सिंह (पंजाबी) द्वारा मरही दा दिवा
  8. डी. जयकांतन (तमिल) द्वारा सिला नेरंगलिल सिला मणिदरगल
  9. आर विश्वनाथ शास्त्री द्वारा इलू (तेलुगु)
  10. राजिंदर सिंह बेदी द्वारा एक चादर मैली सी (उर्दू)

    उपर्युक्त अनुवादों और प्रकाशनों के अलावा, अकादमी ने कई शीर्षकों को विदेशी भाषाओं में प्रकाशित/अनुवादित किया है। विदेशों में भारतीय साहित्य को बढ़ावा देने के लिए विदेशी भाषाओं में अनूदित भारतीय कृतियों के प्रकाशन हैं:

 

क्रम संख्या

शीर्षक

अनूदित भाषा

  1.  

नबारुन भट्टाचार्य द्वारा हर्बर्ट

जर्मन

  1.  

खुशवंत सिंह द्वारा ट्रेन टू पाकिस्तान या पाकिस्तान मेल

स्वीडिश

  1.  

अंबाई द्वारा कातिल ओरुमान

फ्रेंच

  1.  

भरतला दा नाट्य शास्त्र कपिल वात्स्यायन द्वारा

रूसी

  1.  

भारतीय लघु कथाएँ ई.वी. रामकृष्णन

रूसी

  1.  

कविता

स्लोवेनियन

  1.  

द डुअल ऑफ द हार्ट

अंग्रेजी

  1.  

तेलुगू से अल्लम रजैया द्वारा भूमि

स्पेनिश

  1.  

हिंदी से जूठन वाल्मीकि द्वारा

स्पेनिश

  1.  

बांग्ला से महाश्वेता देवी द्वारा हजार चैरासी माँ

स्पेनिश

  1.  

उर्दू/अंग्रेजी राजिंदर सिंह बेदी द्वारा आई टेक दिस वुमन

स्पेनिश

  1.  

गुजराती/अंग्रेजी से सुरेश जोशी की लघु कथाएँ

स्पेनिश

  1.  

तमिल से सी.एस. चेलप्पा द्वारा वादिवासल

स्पेनिश

  1.  

सैयद अब्दुल मलिक द्वारा सूरजमुखिरस्वप्न

स्पेनिश

  1.  

तमिल से अशोकमित्रन द्वारा 18वां समानांतर

स्पेनिश

  1.  

पाश की 7कविताएँ

स्पेनिश

  1.  

आई ऑफ गॉड

स्पेनिश

  1.  

कन्नड़ से डी.आर. बेंद्रे की स्पाइडर इन द वेब

स्पेनिश

 यह जानकारी आज राज्यसभा में संस्कृति, पर्यटन और पूर्वोत्तर विकास मंत्री श्री जी. किशन रेड्डी ने दी।

Tuesday, January 11, 2022

नये में कुछ तो होगा नया//डाॅ वन्दना गुप्ता

8th January 2022 at 3:09 pm

 घटनाएं भी नये रुप में आएंगी 


लुधियाना
: 11 जनवरी 2022: (कार्तिका सिंह//हिंदी स्क्रीन)::

विकास तो हो रहा है लेकिन इस विकास के साथ पुराना सब कुछ मिटता चला जा रहा है। वो लैंडमार्क जो न जाने कब से ज़हन में थे वे अब नहीं रहे। जिस दौर में हमने बचपन देखा उस दौर की सभी निशानियां मिटटी चली जा रही हैं। इस दर्द को मेहसुस किया है शायरा डा. वंदना गुप्ता ने। इसके बाद शज़र ने न कोई शिकवा किया न ही कोई शिकायत। अपनी आशा भी नहीं टूटने दी। मिले जुले भावों और अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करती है यह काव्य रचना। --कार्तिका सिंह 

नये साल का

स्वागत

आशावान होना

भविष्य के लिए


शायद इस वर्ष भी होगा

कुछ नया

बदलेगा किसी

पुराने शहर का ढांचा


कोठियां बदलेंगी

होटलों में

घर दरबों  में

सड़कें

फ्लाईओवरों में


बाज़ार माल में

देशी विदेशी सामानों

में मिलेगा सब कुछ

नयी रंगत के लिए


घटनाएं भी

नये रुप में आएंगी

नया साल है

आखिर


बनते बिगड़ते

रिश्तों की होगी

लम्बी फेरहिस्त


फेसबुकियां मित्रों की

सूची में जुड़ेंगे

नये नाम


ताक पर रखें

देश की पुरानी आत्मा को

छीला जाएगा

इस बार भी

नए मुद्दों को लेकर


भ्रमित होगी

मर्यादाएं

अरे हां, 

पुरानी संस्कृतियों को भी

पहनाया जाएगा

नया जामा


नया साल है

आखिर कुछ तो

होगा नया

नया साल है 

आखिर।

#डाॅ वन्दना गुप्ता