Saturday, March 30, 2024

सनातन धर्म बनाम हिंदू धर्म//संजय पराते की टिप्पणी

Saturday: 30th March 2024 at 5:39 PM

हिंदी पुस्तक सनातन धर्म : इतना सरल नहीं पर विशेष टिप्पणी 

छत्तीसगढ़ से: 30 मार्च 2024: (संजय पराते//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::
हाल ही में अरुण माहेश्वरी की 8 अध्यायों में विभाजित एक छोटी-सी पुस्तिका "सनातन धर्म : इतना सरल नहीं" आई है। यह पुस्तिका सनातन धर्म और हिंदू धर्म के बीच के संबंधों और विवादों का गहराई से तथ्यपरक विश्लेषण करती है। 

हाल ही में हिंदुत्व का झंडा उठाए संघ-भाजपा ने चुपचाप हिंदू धर्म को सनातन धर्म से प्रतिस्थापित करने की कोशिश की है और सनातन धर्म को हिंदू धर्म का  समानार्थी बता रही है। संघ भाजपा के इस चमत्कार पर पानी डालने का काम अरुण माहेश्वरी ने किया है। इस मायने में सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनैतिक कार्यकर्ताओं के लिए यह पुस्तिका बहुत उपयोगी है। 

स्वामी करपात्री महाराज हिंदू धर्म के कट्टर नेता और शास्त्रज्ञ थे, जिन्होंने वेद, दर्शन, धर्म और राजनीति से जुड़े विषयों पर विपुल लेखन किया है। कट्टर हिंदू थे, सनातनी धर्म के अनुयायी थे, तो निश्चित रूप से मार्क्सवाद विरोधी भी थे। उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी "मार्क्सवाद और रामराज्य।" इसके जवाब में राहुल सांकृत्यायन ने एक छोटी-सी पुस्तिका लिखी थी "रामराज्य और मार्क्सवाद", जिसमें उन्होंने करपात्रीजी के दार्शनिक और राजनैतिक तर्कों की धज्जियां उड़ा दी थी। लेकिन इससे करपात्रीजी की विद्वत्ता पर कोई आंच नहीं आती।

वर्ष 1940 में उन्होंने एक 'धर्म संघ' की स्थापना की थी -- जिसका उद्देश्य था सनातन धर्म की स्थापना ; जबकि वर्ष 1925 में ही आरएसएस की स्थापना हो चुकी थी, जो हिंदू धर्म और नाजीवाद के आधार पर देश को चलाना चाहता था। साफ है कि आरएसएस के हिंदू धर्म से करपात्री महाराज के सनातनी धर्म का कोई लेना-देना नहीं था। वर्ष 1948 में उन्होंने 'रामराज्य परिषद्' का गठन किया, जबकि इसके बाद आरएसएस ने 1951 में जनसंघ का गठन किया था। आरएसएस का यह कदम भी बताता है कि उस समय उसके हिंदू धर्म का सनातन से कोई संबंध नहीं था। 1966 से गोरक्षा आंदोलन की शुरुआत भी करपात्रीजी ने ही की थी, जबकि यह मुद्दा आरएसएस के एजेंडे में भी नहीं था। करपात्रीजी के आरएसएस विरोध का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि उन्होंने 'राष्ट्रीय सेवक संघ और हिंदू धर्म' नामक एक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने संघ के परम पूज्य गुरु गोलवलकर की 'विचार नवनीत' और 'हम या हमारा राष्ट्रीयत्व' में उल्लेखित हिंदू धर्म संबंधी धारणाओं का दार्शनिक दृष्टि से खंडन किया है और आरएसएस को हिंदू धर्म विरोधी संगठन घोषित किया है। उनकी दृष्टि में संघ का पूरा आचरण कपट और मिथ्याचार से भरा था और ऐसे में उनसे हिंदू धर्म की रक्षा की आशा नहीं की जा सकती थी। यही कारण है कि अपने शुरुआती जीवन के कुछ वर्षों बाद उन्होंने संघ से सहयोग का रास्ता छोड़ दिया था।

अपनी पुस्तिका में अरुण माहेश्वरी ने गोलवलकर की विचार-सरणी के बरक्स करपात्री महाराज को रखा है। आज जब "भगवाधारी आए हैं" का नारा संघ-भाजपा का प्रिय नारा बन गया है, माहेश्वरी बताते हैं कि किस प्रकार    करपात्रीजी ने भगवा ध्वज की श्रेष्ठता और इसके राष्ट्रीयता का प्रतीक होने की संघ की धारणा को दार्शनिक चुनौती दी थी। वे करपात्री जी को उद्धृत करते हैं -- (महा) "भारत संग्राम में भीष्म, द्रोण, कर्ण, भीम, अर्जुन के रथ के ध्वज पृथक-पृथक थे। अर्जुन तो कपि ध्वज के रूप में प्रसिद्ध ही है। अतः सभी हमारे पूर्वज भगवा ध्वज को ही मानते थे, यह तो नहीं ही कहा जा सकता। ... (इसलिए) आपके भगवा ध्वज को अपना लेने से वह सार्वभौम, सर्वमान्य नहीं कहा जा सकता।" यह उल्लेखनीय है कि भगवा ध्वज की श्रेष्ठता का प्रचार करते हुए छत्तीसगढ़ में ध्वज विवाद के नाम पर कई जगहों पर संघ-भाजपा ने सांप्रदायिक तनाव और दंगे भड़काए हैं। इस वर्ष गणतंत्र दिवस पर तो ऐसा माहौल बनाया गया था कि राष्ट्रीय झंडा 'तिरंगा' की जगह भगवा ने ही ले लिया है। 

करपात्रीजी शास्त्रों के सहारे यह भी सिद्ध करते है कि सनातनी हिंदू अनिवार्य तौर पर वर्णाश्रमी होगा और सांप्रदायिक होना कोई दुर्गुण नहीं, बल्कि हिन्दू होने का प्रमुख गुण है। संघ-भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति इन दोनों आरोपों से बचना चाहती है। इसी क्रम में उन्होंने 'राष्ट्रीयता' के संबंध में आरएसएस की इस अवधारणा का भी शास्त्रीय खंडन किया है कि केवल समान धर्म, समान भाषा, समान संस्कृति, समान जाति और समान इतिहास वाले लोग ही 'एक राष्ट्र' कहे जा सकते हैं और मुस्लिम, ईसाई आदि यदि हिंदू धर्म में सम्मिलित हो जाएं, तो वे भी 'राष्ट्रीय' हो सकते हैं। करपात्री जी के सनातनी विचारों के अनुसार संघ की यह सोच मुस्लिम विरोध और हिटलर के उग्र राष्ट्रवाद की अनुगामिता से उपजी है। उनका मानना है कि सनातन की अवधारणा मूलतः वेदों की अनादिता और अपौरुषेयता पर टिकी हुई है, जिसे गोलवरकर नहीं मानते। इस प्रकार, अपने शास्त्र-आधारित तर्कों से करपात्री महाराज आरएसएस को न केवल हिंदू धर्म विरोधी, बल्कि सनातन धर्म विरोधी भी साबित करते हैं। 

गोलवलकर और किसी भी अन्य संघी सिद्धांतकार ने आज तक करपात्री जी के आरोपों का कोई जवाब नहीं दिया है, क्योंकि उनके पास करपात्री के धर्म आधारित विचारों का खण्डन करने के लिए आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि नहीं है, जैसी दृष्टि राहुल सांकृत्यायन के पास थी। अरुण माहेश्वरी की टिप्पणी है -- "आज तो इस मोदी युग में आरएसएस ने खुद ही सनातन धर्म का झंडा उठाकर प्रकारांतर से करपात्री के तब के सारे अभियोगों को नतमस्तक होकर पूरी तरह स्वीकार कर लिया है।" जिन लोगों पर सनातन धर्म नष्ट करने का आरोप लगा था, यह इतिहास की उलटबांसी है कि उनके ही वंशज आज सनातन धर्म का झंडा उठाए विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' पर आरोप लगा रहे हैं कि वे भारत से सनातन को नष्ट करना चाहते हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसा अंग्रेजों का तलुवे चाटने वाला संघ आज अपने को राष्ट्र भक्त और विपक्ष को राष्ट्र विरोधी बताने में लगा हुआ है। हिंदू धर्म को सनातन धर्म कहना वैसा ही है, जैसा वर्ष 2014 के चुनावी वादे बाद में पूरे संघी गिरोह के लिए 'जुमलों' में बदल गए थे और आज फिर उसे 'मोदी गारंटी' के रूप में पेश किया जा रहा है। साफ है कि संघ-भाजपा को न तो हिंदू धर्म से कोई मतलब है, न सनातन धर्म से कोई लेना-देना है। सत्ता के लिए धर्म को जब राजनीति का हथियार बनाया जाता है, तो ऐसी कलाबाजी भी करनी ही पड़ेगी। 

विचारशील 'भक्तों' के लिए भी यह पुस्तिका उनकी आंखें खोलने वाली साबित होगी, ऐसी आशा की जा सकती है।

 _*(टिप्पणीकार वामपंथी कार्यकर्ता और छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष है। संपर्क : 94242-31650)*

पुस्तक : सनातन धर्म : इतना सरल नहीं
लेखक : अरुण माहेश्वरी (मो. 98310-97219)
प्रकाशन : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर
मूल्य : 200 रूपये

Sunday, March 17, 2024

नवरंग लिटरेरी सोसायटी फिर सजाई लुधियाना में अदबी महफिल

Sunday 17th March 2023 at 20:09 

शायरों ने फिर दिया समाज और दुनिया को ढाई आखर प्रेम का ज्ञान


लुधियाना
: 17 मार्च 2024:(कार्तिका कल्याणी सिंह//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

लुधियाना यूं तो कारोबारी शहर है। बिलकुल महानगर जैसा लेकिन फिर भी यहाँ शायरी लगातार फलफूल रही है। दशकों पहले साहिर लुधियानवी साहिब ने शायरी के जो बोल और सुर इस शहर की फ़िज़ायों में घोले थे उनका अहसास आज भी होता है। साहिर साहिब के बाद जनाब कृष्ण अदीब और अजायब चित्रकार जैसे समर्पित कलमकारों ने शायरी  के इस माहौल को अमीर बनाया। 

इसी परम्परा को ज़िंदा रखने वालों में नवरंग लिटरेरी सोसायटी भी है। जनाब सागर सियालकोटी साहिब सरदार पंछी और कई दुसरे शायर अपने अपने कलाम में लुधियाना के शायरी पसंद लोगों को उन्ही  के दिल की गहरी और सच्ची बातें  सुनाते रहते हैं। 

इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए आज की इस अदबी महफ़िल का स्थान श्री यशपाल गोसाईं जी का दफ्तर रखा गया था। चंडीगढ़ रोड पर फोर्टिज हस्पताल के नज़दीक सत्संग घर गेट नंबर 7 के सामने बने इस कार्यालय में हुआ  इस छोटी सी अदबी महफ़िल  का आयोजन। 

इस मौके पर सागर सिसलकोटी, विजय वाजिद, ए पी मौर्य, पाल संसारपुरी, गगन, केवल दीवाना, अशोक सन्यासी व रविन्द्र अग्रवाल ने अपने कलाम से महफ़िल में चार चाँद लगाए। नवरंग के अध्यक्ष सागर स्यालकोटी जी ने कहा ऐसी अदब की महफिलें सजती रहनी चाहिए इससे आपस में प्यार बढ़ता है और साहित्यकार अपनी रचनाओं से समाज की समस्याओं को उजागर करते हैं। नवरंग की कोशिश रहेगी कि हर माह में काव्य गोश्ठी का आयोजन करती रहेगी।

गौरतलब है कि उस्ताद शायर सागर सियालकोटी साहिब उर्दू ज़ुबान और शायरी की गहरी समझ रखते हैं। शायरी का मर्म समझने के लिए कई बार बहुत से साहित्य प्रेमी और खुद शायर भी सागर साहिब के साथ फोन पर मशवरा करते हैं। आज की महफ़िल भी बेहद ख़ास रही।