Wednesday, September 30, 2020

कविता, कथा कारवाँ ने लॉकडाउन में भी बनाया नया रेकार्ड

 जसप्रीत कौर फलक के मार्गदर्शन में जारी रहा चुनौती भरा सफर  


लुधियाना
: 30 सितंबर 2020: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::

कोरोना युग का लॉक डाउन तो अपनी भयावह स्मृतियों के कारण याद रहेगा ही। ज़िंदगी का अचानक ठिठक जाना और मध्यवर्गीय  छोटे छोटे कारोबारों का दम तोड़ जाना काले दौर के तौर पर हमेशां याद रखे जायेंगे लेकिन इस सब के बावजूद जो साकारत्मक बात याद रखी जाएगी वह है ऐसे भयानक दौर में भी शायर वर्ग की हिम्मत। ज़िंदगी की रफ्तार के सामने लॉक डाउन की दीवार खड़ी होने के बावजूद शायर चलते ही रहे चलते ही रहे। इनके काफिले नहीं रुके। शायरों  ने इन दीवारों में से भी दरवाज़े निकाले। अंधेरों को भी उजालों में बदला।  रुकावटों  को भी अपनी सीढ़ी बनाया और लगातार चलते रहे। मिलने जुलने और सभा सम्मेलनों पर बंदिश लगी तो शायर वर्ग ने ज़ूम और गूगल मीट का सहारा लिया लेकिन रूबरू होना नहीं छोड़ा। शायर गाते रहे, "चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहींआई।" अंसभव राहों पर चलते हुए ये शायर लोग जोश में भी रहे और होश में भी रहे। जानीमानी शायरा डा. कविता किरण के शब्दों में कहें तो इस काले स्याह दौर में भी लगातार चलने वाले ये शायर लोग मानों कह रहे थे:   

नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं,

हम छलनी में पानी भरने निकले हैं।

                                आँसू पोंछ न पाए अपनी आँखों के

                               और जगत की पीड़ा हरने निकले हैं।

पंजाब, हरियाणा और अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में सरगर्म रहे काफिलों में से एक का ज़िक्र हम यहां भी कर रहे हैं। "कविता, कथा कारवाँ" हमेशां की तरह जसप्रीत कौर फलक  के मार्गदर्शन में लॉक डाउन के दौरान भी सरगर्म रहा। न तो कोरोना रोक सका न ही लॉक डाउन। 

जानीमानी शायरा फलक अपनी नई सरगर्मी के संबंध में कहती है:आजकल की परिस्थितियों को देखते हुए संस्था कविता कथा कारवाँ के तहत ,यू ट्यूब लाइव कार्यक्रम ,राष्ट्रीय हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में 14 से लेकर 28 सितम्बर करवाए गए। जिसमे विचार गोष्ठी, कवि सम्मेलन आदि  कार्यक्रम आयोजित किए गए।अतिम चरण में  भविष्य में हिन्दी की सम्भावनाओं पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। सर्व प्रथम श्रीमती रश्मि अस्थाना  ने सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का प्रारंभ किया। मंच की अध्यक्षा जसप्रीत कौर फ़लक ने सभी प्रतिष्ठित जनों का मंच पर स्वागत किया। अनेक सम्माननीय शिक्षाविदों ने हिंदी की समृद्धता पर अपने विचार पेश किए । उन्होंने कहा कि भले ही आज भारत की सभी भाषाओं ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है लेकिन इसके बावजूद हिंदी भाषा ही सर्वेसर्वा  है। मुख्य अतिथि के रुप में  डा. विनोद कुमार तनेजा ने हिंदी भाषा के महत्व  के विषय में  बताया कि आज हिंदी विश्व स्तर पर हिंदी की मान्यता अति आवश्यक  होती जा रही है और विदेशों का हिंदी के प्रति रुझान बहुत तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। संचार एवं संपर्क भाषा के रूप में हिंदी भारत की आत्मा है। इस प्रकार हिन्दी पखवाड़े के अंतिम चरण पर "कविता कथा कारवाँ" मंच को गौरवान्वित करने के लिए उपस्थित मुख्य अतिथि डॉ विनोद कुमार तनेजा, वरिष्ट अतिथि डॉ धर्मपाल साहिल और किरण साहनी  के साथ-साथ  विद्वतजन, बुद्धिजीवी, आचार्य, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ब्रह्मदेवडॉ राजेन्द्र जैन, डॉ विनोद कुमार, डॉ कुलदीप सिंह इत्यादि सभी ने सारगर्भित परिचर्चा की। डॉ राजेन्द्र साहिल ने अत्यंत कुशल मंच संचालन किया और धन्यवादी शब्द माननीय रश्मि अस्थाना जी ने कहे। इसके साथ ही एक सफल और सार्थक परिचर्चा सम्पन्न हुई। कार्यक्रम के प्रारंभ से लेकर अंत तक मंच का संचालन डॉ राजेन्द्र साहिल जी ने बहुत ही खूबसूरत अंदाज से  किया। मंच कविता कथा कारवांँ कीअध्यक्षा प्रो जसप्रीत कौर फ़लक द्वारा सभी अतिथियों को धन्यवाद दिया गया और अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देकर अंत में राष्ट्रगान के साथ सभा का समापन किया गया।

एक फिर शायर वर्ग ने साबित किया:

हम रुकते नहीं  

हम थकते नहीं!

चाहे आये कोरोना 

या 

हो  लॉक डाउन!                                    प्रस्तुति--रेक्टर कथूरिया 


Tuesday, September 29, 2020

हिन्दी फिल्मों में राष्ट्रवाद का विकास

 24-अगस्त-2017 10:05 IST

 लेकिन आज के बॉलीवुड में वह बात कहां! 


हिंदी फिल्मों ने राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  इस मकसद को सामने रख कर बनी फिल्मों के गीत-संगीत और डायलॉग्स में एक जादू सा असर होता। गीत तो देखते ही देखते सबके  होंठो पर आ जाते। इस दौर की याद दिला रहे हैं-
*प्रियदर्शी दत्त

*प्रियदर्शी दत्त
पिछले 70 वर्षों में हिन्दी की अनेक यादगार फिल्मों ने लोगों में देशभक्ति भाव, शौर्य और देश के लिए बलिदान का भाव भरा है। फिल्मों के विषय स्वतंत्रता संघर्ष, आक्रमण और युद्ध, खेल, प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास, विद्रोह आदि रहे हैं। लेकिन सबके मूल में भारतीय होना और देश के प्रति कर्तव्य का भाव रहा है। लेकिन आज के बॉलीवुड में कम संख्या में देशभक्ति की फिल्मे बन रही है। पुराने जमाने के बम्बई फिल्म उद्योग में देशभक्ति फिल्मों की संख्या अधिक हुआ करती थी।

भारत में फिल्म उद्योग स्वतंत्रता आंदोलन के समय उभरा। 19वीं शताब्दी के नाटक की तरह इस बात की प्रबल संभावना थी कि फिल्मों के माध्यम से देशभक्ति की भाव का संचार किया जा सकता है। 1876 में लॉर्ड नॉर्थब्रुक प्रशासन ने मंच से राजद्रोह दृश्य खत्म करने के लिए नाटक प्रदर्शन अधिनियम लागू किया था। इसी तरह ब्रिटिश शासन ने सेंसर कार्यालय और पुलिस के माध्यम से फिल्मों पर कड़ी नजर रखी। वर्ष 1943 में रामचन्द्र नारायण जी द्विवेदी  उर्फ कवि प्रदीप के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट निकला। यह वारंट बॉम्बे टॉकिज की फिल्म किस्मत में भारत छोड़ो आंदोलन के समर्थन में अप्रत्यक्ष रूप में शासन के विरुद्ध लिखे गाने को लेकर जारी किया गया था। यह गाना था आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है दूर हटो ऐ दुनिया वालो, हिन्दुस्तान हमारा है। इसी गाने में आगे लिखा गया है शुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिन्दुस्तानी, तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी। दूसरे विश्व युद्ध (1939-1945) में भारत मित्र राष्ट्रों की ओर था और वास्तविक रूप में जर्मनी और जापान का शत्रु था। 1942 में सिंगापुर और बर्मा के लड़खड़ाने के बाद भारत में जापानी आक्रमण की चिंता वास्तविक होने लगी। लेकिन अंग्रेज चलाक तरीके से समझते थे कि जंग (युद्ध) का मतलब स्वतंत्रता संघर्ष है और विदेशी का जिक्र गाने में अंग्रेजों के लिए किया गया है। गिरफ्तारी से बचने के लिए कवि प्रदीप भूमिगत हो गए।

15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता की घोषणा के साथ इस तरह की बाधाएं दूर हो गई। लेकिन राष्ट्रवाद के विषय पर हमने फिल्मों को बनते नहीं देखा। स्वतंत्रता के लंबे संघर्ष के बाद स्वतंत्र देश में देशभक्ति फिल्म का न बनना एक विषय रहा। ऐसा इसलिए कि तुलनात्मक दृष्टि से 1952 की मिस्र की क्रांति पर अनेक फिल्मे बनी और बांग्लादेश की मुक्ति पर भी फिल्में बनी। इस संबंध में कुछ अपवाद भी है। वजाहत मिर्जा ने शहीद फिल्म का लेखन किया और इसका निर्देशन रमेश सहगल ने किया। इस फिल्म ने 1948 में अच्छा व्यवसाय किया। इस फिल्म का गीत वतन की राह में वतन के नौजवां शहीद हो कमर जलालाबादी ने लिखा था। 1950 में सबसे अधिक कामयाब फिल्म थी सामाधि। इसका निर्देशन भी रमेश सहगल ने किया था। कहा जाता है कि यह फिल्म नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज से जुड़ी सच्ची घटना पर आधारित थी। उसी वर्ष आजाद हिन्द फौज पर एक और फिल्म आई। यह फिल्म थी पहला आदमी और इसका निर्देशन महान निर्देशक विमल रॉय ने किया था।

1952 में बंकिमचन्द्र चटर्जी के उपन्यास पर बनी फिल्म आनंद मठ आई। इसका निर्देशन हेमेन गुप्ता ने किया था हेमेन गुप्ता स्वतंत्रता सेनानी थे और वह वर्षों जेल में रहे। हेमेन गुप्ता फांसी से बच गए थे। बाद में उन्होंने फिल्म निर्माण की ओर कदम बढ़ाया। आनंद मठ दस बड़ी फिल्मों में शुमार नहीं हुई। बड़ी फिल्मों में आन, बैजू बावरा, जाल तथा दाग थी जिनमें संगीत, रोमांस, सस्पेंस और सामाजिक ड्रामा था। 1940 और 1950 के दशक में सामाजिक, रोमांटिक, संगीतप्रधान, एक्शन, सस्पेंस, पौराणिक फिल्में बनी। देशभक्ति और राष्ट्रवादी फिल्में अपवाद थीं। 1953 में शोहराब मोदी ने झांसी की रानी फिल्म बनाई लेकिन यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई। 1953 में शीर्ष पर नंद लाल जसवंत लाल की फिल्म अनारकली रही। इसी तरह 1956 में बंकिमचन्द्र चटर्जी के ऐतिहासिक उपन्यास पर बनी दुर्गेश नंदिनी फिल्म भी असफल साबित हुई।

इसका अर्थ यह नहीं है कि दर्शक राष्ट्रवादी भावना से मुंह मोड़े हुए थे। इसका अर्थ सिर्फ यही था कि भारत के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता अकेली चुनौती नहीं थी। इससे पहले 1946 चेतन आनंद की फिल्म नीचा नगर में यह दिखाया गया था कि किस तरह धनवान लोग गांव में रहने वाले गरीबों का शोषण करते है। इस फिल्म को कांस फिल्म समारोह में प्रवेश मिला। 1953 में ख्वाजा अहमद अब्बास ने राही फिल्म का निर्देशन किया। इस फिल्म में असम के चाय बगानों में अंग्रेजी मालिकों द्वारा मजदूरों के शोषण को दिखाया गया था।

स्वतंत्रता के बाद फिल्मों को अपना जीवन मिला। 1940 और 1950 में लोगों की पसंद को देखा गया। नए गणराज्य की अपनी समस्याएं थी और लोगों का ध्यान उसी ओर था। 1950 के दशक की सबसे कामयाब फिल्म महबूब खान की मदर इंडिया (1957) रही। इस फिल्म में गांव की गरीब महिला राधा (नरगिस अभिनित) के दो बच्चों के पालने और धुर्त साहूकार के विरुद्ध संघर्ष को दिखाया गया था। 1955 की सबसे सफल फिल्म थी राज कपूर की श्री 420 । इस फिल्म में गरीबों का खून चूसने वाली पोंजी योजनाओं की विपत्ति को दिखाया गया था। 1959 में ऋषिकेश मुखर्जी ने अनाड़ी फिल्म बनाई। इस फिल्म के हीरो थे राज कपूर। इस फिल्म में शहरों में घातक जहरीली दवाइयों के भयावह परिणाम दिखाए गए थे। स्वतंत्र भारत की समस्याओँ को फिल्मों में जगह मिली।

1960 के दशक में यह जाहिर हुआ कि भारत को केवल आंतरिक चुनौतियों का ही सामना नहीं करना है। सैन्य दृष्टि से भी भारत को तैयार रहना है। देश ने 60 के दशक में 1960 में गोवा मुक्ति युद्ध, 1962 में चीनी आक्रमण और 1965 में पाकिस्तानी आक्रमण को झेला था। फिर 1971 में भी भारत-पाक युद्ध हुआ। इन युद्धों से हम, शौर्य, देशभक्ति और बलिदान को लेकर सचेत हुए।

उसके बाद से अनेक देशभक्ति फिल्में आई। इनमें हकीकत (1964), हमसाया (1968), प्रेम पुजारी (1970), ललकार (1972), हिन्दुस्तान की कसम (1973), विजेता (1982) और आक्रमण (1975) शामिल हैं। अपने समय के मुताबिक प्रहार (1991), बॉर्डर (1997) और एलओसी करगिल (2003), टैंगो चार्ली (2005), शौर्य (2008), 1971 (2007), गाजी अटैक (2017) जैसी फिल्में बनी। इन फिल्मों से साधारण भारतीय लोगों के मन में सेना के प्रति सम्मान बढ़ा।

1960-70  के दशक में अभिनेता हरिकिशन गिरि गोस्‍वामी उर्फ मनोज कुमार ने फिल्‍मों में सकारात्‍मक और देशभक्ति के विचारों का जिम्‍मा संभाला। इसी लिए उन्‍हें ‘’भारत कुमार’’ का उपनाम भी मिला। उन्‍होंने फिल्‍म शहीद (1965) में क्रांतिकारी भगत सिंह की भूमिका अदा की। उनकी उपकार (1967) जैसी फिल्‍मों ने फौज की नौकरी छोड़ चुके व्‍यक्ति के काला बाजारी और नकली दवाओं के जाल में उलझने के खतरों को दर्शाया। पूरब और पश्चिम (1970) में उन्‍होंने पश्चिम में भारतीय संस्‍कृति की अलख जलाये रखी।

1970 के दशक तकभारत को पश्चिम में पिछड़ा और प्रतिगामी देश समझा जाता था। मनोज कुमार ने पूरब और पश्चिम में भारतीय संस्‍कृति की श्रेष्‍ठता को सामने रखा। उदारीकरण के पश्‍चात स्थिति में बदलाव आयाजिसमें सूचना और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में प्रदर्शन ने भारत को वैश्विक स्‍तर पर उदीयमान दर्जा दिलाया। 1960 के दशक के मध्‍य के बाद सेअमरीका और ब्रिटेन जैसे पश्चिम के औद्योगिक देशों में जाने वाले भारतीय नागरिकों की संख्‍या में वृद्धि हुई है। इसने सुदूर राष्‍ट्रवाद की भावना के उदय का मार्ग प्रशस्‍त किया, जिसके द्वारा भारतीय अपनी पहचान पर गर्व करने लगे। ‘’आई लव माई इंडिया’’ (परदेस 1997) जैसे गीतों ने इस भावना को बरकरार रखा।

लगान (2001), चक दे इंडिया (2007)भाग मिल्‍खा भाग (2013)दंगल (2016) जैसी फिल्‍मों ने देशभक्ति की भावना जगाने के लिए खेलों का सहारा लिया। इस संबंध में 29 जून 1911 में कोलकाता में आईएफए शील्‍ड मैच में  मोहन बगान की ईस्‍ट यॉर्कशायर रेजिमेंट पर जीत की घटना पर आधारित अरूण रॉय की बंगाली फिल्‍म इगारो या द इमॉर्टल इलेवन (2011) का उल्‍लेख भी किया जाना चाहिए। यह किसी ब्रिटिश टीम पर किसी भारतीय फुटबॉल क्‍लब की पहली जीत थी। इस घटना के शताब्‍दी वर्ष के अवसर पर आई यह फिल्‍म उसके प्रति श्रद्धांजलि स्‍वरूप थी।

देशभक्ति के प्रति फिल्‍मकारों का आकर्षण बरकरार है और यह इस बात से साबित होता है कि वर्ष 2002 में भगत सिंह के बारे में तीन हिन्‍दी फिल्‍मों का निर्माण किया गया। ये फिल्‍मे थीं - राजकुमार संतोषी की द लिजेंड ऑफ भगत सिंहगुड्डू धनोवा के निर्देशन में बनी 23 मार्च : शहीद और सुकुमार नायर की शहीद-ए-आजम । 2004 में विख्‍यात निर्देशक श्‍याम बेनेगल की फिल्‍म नेताजी सुभाष चन्‍द्र बोस : द फॉर्गाटन हीरो आई। लेकिन बॉक्‍स ऑफिस पर कामयाबी के लिए देशभक्ति ही अकेला जादू नहीं हैजैसा कि चटगांव शस्‍त्रागार विद्रोह (1930-34) पर आधारित आशुतोष गोवारिकर की फिल्‍म खेले हम जी जान से (2010) की नाकामयाबी से साबित हुआ। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि राष्‍ट्रवाद सिनेमा के रूपहले पर्दे पर आने के नये रास्‍ते तलाशना जारी रखेगा। उसे दर्शकों को लुभाने के लिए लगातार खुद को नये सिरे से खोजना जारी रखना होगा।

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  • लेखक दिल्‍ली स्थित स्‍वतंत्र शोधकर्ता और स्‍तंभकार हैं।

लेख में व्‍यक्‍त किये गये विचार उनके निजी विचार हैं।


Monday, September 28, 2020

महिला काव्य मंच मोहाली ने भी कराई ऑनलाइन काव्य गोष्ठी

 शायरी के महिला हस्ताक्षरों ने बिखेरे अपनी कविताओं के रंग 

मोहाली: 28 सितंबर 2020: (अमरजीत कौर हिरदे//हिंदी स्क्रीन)::

बेहद संवेनदशील और जानेमाने पुरुष शायर श्री नरेश नाज़ द्वारा संस्थापित राष्ट्रीय महिला काव्य मंच लगातार सक्रिय है। इस मंच की मोहाली  इकाई की ओर से सितंबर 2020 माह की मासिक कवयित्री गोष्ठी का आयोजन ऑनलाइन गूगल मीट एप पर किया गया। 

इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता मैडम श्रुति शुक्ला ने की। उन्होंने बेटी दिवस पर अपनी तरफ से पूरे समाज के लिए और खासकर मांओं के लिए कुछ संदेश दिए के वह बेटियों में ऐसे संस्कार पैदा करें कि वह खुद सशक्त होकर जहां माई के परिवार से जुड़कर रहती है वही वह अपने ससुराल के परिवार को जोड़ कर रखें और बड़ों का सानिध्य पाती रहें। और उन्होंने बेटी के प्रेम से ओतप्रोत और उत्साहवर्धक एक काव्य रचना भी प्रस्तुत की। 

ट्राइसिटी अध्यक्ष सुश्री शारदा मित्तल और ट्राइसिटी उपाध्यक्ष राशि श्रीवास्तव का सानिध्य प्राप्त रहा। इसमें मोहाली की विदुषी कवयित्रियों ने मन से मंच तक में  कविता पाठ किया। कार्यक्रम  का संचालन डॉ रूपेंद्र जीत कौर ने किया। महिला काव्य मंच मोहाली इकाई की अध्यक्ष अमरजीत कौर हृदय ने सभी मेहमानों का स्वागत किया और गोष्ठी के अंत में सभी का धन्यवाद किया। 

काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ सरस्वती वंदना से हुआ। इस रस्म को निभाने की औपचारिकता सुधा जैन 'सुदीप' द्वारा  विशेष रूप से मां सरस्वती को ज्योति प्रज्ज्वलित एवं पुष्प अर्पित करके की गई। 

गोष्ठी में सोनिमा सत्या, मीनू सुखमन, डॉ. सुनीत मदान, सुरिंदर कौर चिंगारी, प्रभजोत कौर, सुधा जैन 'सुदीप', डेजी बेदी जुनेजा, नीना सैनी, शैलजा पांडे, नीरजा शर्मा, संगीता शर्मा कुंद्रा अध्यक्ष चंडीगढ़ इकाई और संगीता गर्ग अध्यक्ष पंचकूला इकाई आदि ने काव्य पाठ किया। इसके साथ ही चंडीगढ़ और पंचकूला की बहुत सारी कवित्रीयोन ने श्रोताओं के रूप में शामिल हो कर कविता पाठ का आनंद लिया।

Wednesday, September 23, 2020

टेली-लॉ कार्यक्रम पर सफलता की कहानियों की पहली पुस्तिका

23-सितम्बर-2020 10:15 IST

'रीचिंग द अनरिच्‍ड-वॉइसेज ऑफ द बेनिफिसिएरीज' जारी


 नई दिल्ली: 23 सितंबर 2020: (पीआईबी//हिंदी स्क्रीन)::

न्याय विभाग ने टेली-लॉ कार्यक्रम पर सफलता की कहानियों की पहली पुस्तिका का ई-संस्करण 'रीचिंग द अनरिच्‍ड - वॉइसेज ऑफ द बेनिफिसिएरीज' शीर्षक के तहत जारी किया। 

टेली-लॉ कार्यक्रम ने 29 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के 115 आकांक्षी जिलों सहित 260 जिलों के दूरदराज के क्षेत्रों में 3 लाख से अधिक लाभार्थियों को कानूनी सलाह प्रदान की समय पर एवं बहुमूल्य कानूनी सलाह प्रदान करने के लिए इस पहल के तहत गरीब, दलित, कमजोर और दूरदराज के समूहों एवं समुदायों को पैनल के वकीलों से जोड़ने के लिए स्मार्ट तकनीकों का उपयोग किया गया। 

केंद्रीय न्‍याय विभाग ने अपने टेली-लॉ कार्यक्रम की यात्रा को मनाने के लिए 'टेली-लॉ - रीचिंग द अनरिच्ड, वॉइसेज ऑफ द बेनिफिसिएरीज' शीर्षक के तहत अपनी पहली पुस्तिका जारी की है। यह लाभार्थियों की वास्तविक जीवन की कहानियों और टेली-लॉ कार्यक्रम के तहत उन्‍हें विवादों को सुलझाने के लिए दी गई कानूनी सहायता का एक मनोरम पठनीय संग्रह है। इस प्रकार के विवाद दैनिक जीवन को प्रभावित करते हैं। वर्तमान में इस कार्यक्रम के तहत 29 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के 260 जिलों (115 आकांक्षी जिलों सहित) और 29,860 सीएससी के जरिये भौगोलिक रूप से दुर्गम एवं दूरदराज के क्षेत्रों में 3 लाख से अधिक लाभार्थियों को कानूनी सलाह दी गई है।

यह पठनीय पुस्तिका कानूनी सहायता के एक अनिवार्य घटक के तौर पर कानूनी सलाह लेने के लिए ग्रामीणों को शिक्षित करने और उन्‍हें प्रोत्साहित करने में पैरालीगल स्वयंसेवकों और ग्रामीण स्तर के उद्यमियों की भूमिका को उजागर करती है। यह वैकल्पिक विवाद तंत्र के माध्यम से अपने विवादों को निपटाने में आम आदमी के डर और मिथकों को सफलतापूर्वक तोड़ती है। बहुत ही सरल कहानियों में यह 6 श्रेणियों को उजागर करता है जिनमें अन्याय के खिलाफ लड़ाई, संपत्ति विवादों का निपटान, कोविड पीडि़तों को राहत देना, सूचना के साथ सशक्तिकरण, प्रक्रियागत बाधाओं से निपटना और घरेलू शोषण के खिलाफ कार्रवाई शामिल हैं।

भारत सरकार के 'डिजिटल इंडिया विजन' के अुनरूप न्याय विभाग इस कार्यक्रम को गति देने और न्‍याय तक सभी की पहुंच को वास्‍तविक बनाने के लिए 'उभरते' और 'स्‍वदेशी' डिजिटल प्लेटफॉर्मों का उपयोग कर रहा है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए वर्ष 2017 में टेली-लॉ कार्यक्रम को लॉन्‍च किया गया था ताकि मुकदमेबाजी से पहले के चरण में ही विवादों को निपटाया जा सके। इस कार्यक्रम के तहत पंचायत स्तर पर कॉमन सर्विस सेंटर के व्‍यापक नेटवर्क के तहत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए स्‍मार्ट तकनीक, टेलीफोन/ इंस्टेंट कॉलिंग आदि सुविधाएं उपलब्‍ध हैं। इन सुविधाओं का उपयोग गरीब, दलित, कमजोर, दूरदराज के समूहों एवं समुदायों को पैनल के वकीलों से जोड़ने के लिए जाता है ताकि उन्‍हें समय पर एवं बहुमूल्य कानूनी सलाह दी जा सके।

कानूनी विवादों का शुरू में ही पता लगाने, उनमें हस्तक्षेप करने और उनकी रोकथाम की सुविधा उपलब्‍ध के लिए विशेष तौर पर डिजाइन की गई टेली-लॉ सेवा सीएससी- ई जीओवी और एनएएलएसए द्वारा उपलब्‍ध कराए गए अग्रणी स्वयंसेवकों के एक कैडर जरिये समूहों और समुदायों तक पहुंचती है। ये जमीनी स्‍तर के योद्धा अपने क्षेत्र में गतिविधियों के दौरान आवेदकों के पंजीकरण और अपॉइंटमेंट के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन से लैस होते हैं। लाभार्थियों को निरंतर कानूनी सलाह एवं परामर्श प्रदान करने के लिए समर्पित वकीलों के एक समूह को तैनात किया गया है। समृद्ध आईईसी को उसके सार्वजनिक पोर्टल पर अपलोड किया गया है जिसे https://www.tele-law.in पर एक्सेस किया जा सकता है। वास्तविक समय में डेटा हासिल करने और प्रदान की गई सलाह की प्रकृति को देखने के लिए एक अलग डैशबोर्ड तैयार किया गया है। निकट भविष्य में जिला स्तर पर विस्‍तृत विवरण सुनिश्चित करने के लिए डेटा को पीएमओ प्रेयर्स पोर्टल पर भी डाला जा रहा है। 

देश के सभी जिलों को कवर करने की आकांक्षा और कानूनी सहायता श्रृंखला के तहत टेली-लॉ को एक अद्भुत स्तंभ के रूप में स्थापित करने के लिए न्याय विभाग तिमाही आधार पर इस प्रकार की परिवर्तनकारी एवं सशक्तिकरण वाली कहानियों का प्रकाशन जारी रखेगा।

'टेली-लॉ - रीचिंग द अनरिच्ड, वॉइसेज ऑफ द बेनिफिसिएरीज' पुस्तिका देखने के लिए यहां क्लिक करें

******** नई पुस्तिकाएं//हिंदी स्क्रीन 

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है !

 जनता की रोके राह, समय में ताव कहां? 


सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी,

मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।

 

जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,

जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,

जब अँग-अँग में लगे साँप हो चूस रहे

तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली ।


जनता? हाँ, लम्बी-बडी जीभ की वही कसम,

"जनता,सचमुच ही, बडी वेदना सहती है।"

"सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है ?"

'है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है?"


मानो,जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं,

जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;

अथवा कोई दूधमुँही जिसे बहलाने के

जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में ।


लेकिन होता भूडोल, बवण्डर उठते हैं,

जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढाती है;

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।


हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,

साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है,

जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?

वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है ।


अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अन्धकार

बीता; गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं;

यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय

चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं ।


सब से विराट जनतन्त्र जगत का आ पहुँचा,

तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तय करो

अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,

तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो ।


आरती लिए तू किसे ढूँढ़ता है मूरख,

मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?

देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे,

देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में ।


फावड़े और हल राजदण्ड बनने को हैं,

धूसरता सोने से शृँगार सजाती है;

दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। 

                         --रामधारी सिंह "दिनकर" 

Saturday, September 5, 2020

लगातार जारी है अमृता प्रीतम का जादू

 चंडीगढ़ में अमृता प्रीतम की शब्द शक्ति पर हुआ विशेष वेबिनार 
चंडीगढ़: 03 सितंबर 2020: (पुष्पिंदर कौर//हिंदी स्क्रीन)::
शब्द रुकते नहीं शब्द झुकते नहीं!
शब्द दबते नहीं, शब्द मरते नहीं!
ये करिश्मा हैं कुदरत का देखो ज़रा!
इनसे बातें करो, इनको सुन लो ज़रा!                         (कार्तिका सिंह)
अक्सर लगता है कि शब्द अतीत हो गए लेकिन वे हमेशां वर्तमान  बने रहते हैं। अतीत की कहानियां भी सुनाते हैं और भविष्य की दस्तक का भी पता देते हैं। बहुत खुशकिस्मत होते हैं वे लोग जो शब्दों को समय पर सुन लेते हैं और इनमें छिपे रहस्य भी समझ लेते हैं। इन कालजयी शब्दों की रमज़ समझने के लिए इनसे एकरूप होना भी आवश्यक है। इनका जादू जब चलने लगता है तो फिर किसी से नहीं रुकता।
"मैं तवारीख हां हिंद दी" अमृता प्रीतम के 101वें जन्मदिन को समर्पित समागम "अनुरूप साहित्य संवाद मंच पंजाब" और "काव्य शास्त्र" (पंजाबी पत्रिका) के संयुक्त प्रयास से 31 अगस्त 2020 को पंजाबी साहित्य की शीर्ष लेखिका अमृता प्रीतम जी के 101वें जन्मदिन के अवसर पर एक रोज़ा वेबीनार और कवि दरबार आयोजित किया गया। आयोजन का शुभारम्भ अमरजीत कौर हिरदे के स्वागतीय भाषण से हुआ। उन्होंने कहा कि अमृता प्रीतम के जीवन,  साहित्य और शख्सियत को नए संदर्भ से पुनर्मूल्यांकन  करने की आवश्यकता है।  'अमृता प्रीतम की शख्सियत के विचारधाराई बिंब' सिरलेख के अंतर्गत उसकी शख्सियत और साहित्य के विश्वव्यापी पहलूओं के ऊपर कई अन्य पंजाबी चिंतकों ने भी महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। 
वेबीनार में डॉक्टर दरिया (प्रमुख पंजाबी विभाग, गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी) ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि, "अमृता प्रीतम की शख्सियत पंजाबी साहित्य, साहित्यिक पत्रकारिता और लोक मनों के ऊपर छाई हुई है। अमिया कुंवर (पंजाबी लेखिका और आलोचिका) ने अमृता प्रीतम के साथ बिताए अपने पलों के अनुभवों को श्रोताओं के सन्मुख बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत किया। डॉक्टर प्रवीण कुमार (पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़) ने कहा कि उनकी शख्सियत बहु-विधावी, बहु-दिशावी प्रभाव रखती है और पंजाबी कावि-आलोचना पर उसकी सियासत के संदर्भ में उसकी जद्दो-जहद, सिर्जना और जीवन के नए आयाम प्रस्तुत किए। डॉ अमरजीत सिंह (मुखी पंजाबी विभाग संत बाबा भाग सिंह यूनिवर्सिटी) ने अमृता प्रीतम को अंतरराष्ट्रीय पंजाबी सृजक के तौर पर मानता देते हुए कहा कि उनकी शख्सियत और साहित्य के विश्वव्यापी पहलूओं, साहित्यक राजनीति के प्रभाव और लोक चेतना में बसे बिंब को समग्र रूप में देखने की आवश्यकता है। डॉ कुलदीप सिंह (कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी) ने अमृता प्रीतम के साहित्य के विचारधाराई पहलुओं का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया। इस सैशन का मंच संचालन डॉक्टर रूपिंदरजीत कौर (संत बाबा भाग सिंह यूनिवर्सिटी) ने किया।
इस आयोजन के दूसरे सैशन में कवि दरबार किया गया। जिसमें पंजाबी जुबान के अजीम शायरों ने शिरकत की। अमरजीत कौर हृदय ने आए हुए कवियों का स्वागत करते हुए अमृता प्रीतम की समकालीन सार्थकता के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए और उसके ऊपर अपनी कविता प्रस्तुत की। 
"जेकर तेरे कोल कुझ सी तां ओह सी तेरा इश्क 
तेरा हुनर अते    
तेरी कलम था जुनून 
अते एक तेरी साफगोई 
जिवें चिकड विच कमल 
इस काव्य महफिल में स्वामी अंतर नीरव, सेवा सिंह भाषो, सुदेश नूर मौदगिल, प्रिंसिपल जगदीप कौर अहूजा, नीना सैनी,  भूपिंदरप्रीत कौर, अमरजीत कसक, डॉक्टर सनोबर चिब, निम्मी वशिष्ठ, कुलदीप चिराग, रजनी वालिया, लखविंदर कौर लकी, ने अमृता प्रीतम की कविताएं और उसके जीवन चेतना, संवेदना और विचारधाराक नुक्ता-निगाह से कवियों ने अपनी शायरी प्रस्तुत की और उसको श्रद्धांजलि भेंट की। इस सैशन का मंच संचालन डॉ हरप्रीत सिंह (संत बाबा भाग सिंह यूनिवर्सिटी) ने किया। 
अब इसकी आयोजक टीम किसी नए आयोजन की तैयारी में है जिसका दिन, तारीख और समय जल्द ही बताया जायेगा। आप इसमें शामिल होने की तैयारी रखिये।  

Wednesday, September 2, 2020

जनाब दुष्यंत कुमार के जन्मदिन पर डा. कुमार विश्वास

दुष्यंत के तेज़ाबी तेवरों में एक बार फिर असली कलम का रंग 
जनाब दुष्यंत कुमार साहिब की शायरी झलक 

सोशल मीडिया
: 2 सितंबर 2020: (हिंदी स्क्रीन ब्यूरो)::
विदेश से लेकर पंजाब की हर गली तक जन चेतना  लगी पत्रकार सोनिया के
साथ जानेमाने शायर डाक्टर कुमार विश्वास
 
आज के दौर में जो शायर लोकप्रियता के शिखर छू रहे हैं उनमें डाक्टर कुमार विश्वास भी विशेष तौर पर ख़ास शायरों में से गिने जाते हैं। पहली सितंबर के मौके पर उन्होंने कालजयी शायर दुष्यंत कुमार को बहुत ही श्रद्धा से अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये। उन्होंने अपने फेसबुक प्रोफाईल पर कहा:
कविता के चाहने वाले अक्सर मुझसे पूछते हैं कि ये ‘कालजयी-कविता’ कैसी होती है ! आइए समझाने की कोशिश करता हूँ ! आपातकाल के दौरान जब हमारे देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गाँधी जी ने सत्ता के अहंकार और चमचों की जय-जयकार में मग्न होकर भारतीय-लोकतंत्र को व्यक्ति-निष्ठा के आगे नतमस्तक करने की कोशिश की थी तो उसी पार्टी की राज्य सरकार में कार्यरत कवि-ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से बेख़ौफ़ उन्हें सच का आईना दिखाया था ! उस वक़्त की बंधक सरकारी-मशीनरी, घुटने टेकती मीडिया और इमरजेंसी को ‘अनुशासन-पर्व’ बताते भयभीत बौद्धिकों से उम्मीद हार चुकी आम जनता की ज़ुबान, दुष्यंत के तेज़ाबी तेवरों में मुखरित होने लगी ! याद रखिए ये आज से पैंतालीस साल पहले का इतिहास है😳! 
अब समझिए ‘कालजयी’😂! दुष्यंत कुमार के जन्मदिन पर आज जब हमने, आज से भी पाँच साल पहले बनाए ‘महाकवि सीरियल के ये पैंतालीस साल पहले लिखे अंश, कवि को श्रद्धांजलि स्वरूप, सोशल मीडिया पर लगाए तो ‘व्यक्ति-निष्ठा’ की उसी पुरानी बीमारी के युगीन शिकारों ने लगभग हर ग़ज़ल के नीचे ‘गाली-गुफ्तार’ करनी शुरू कर दी ! वे भड़क उठे कि मैं व्यवस्था का विरोध कर रहा हूँ बिना ये जाने की ये पैंतालीस साल पुरानी ग़ज़लें हैं और उस वक़्त की व्यवस्था के ख़िलाफ़ रची गई थीं😂! पढ़कर मैं तो बहुत हँसा कि चलो इनकी इस संकुचित सोच के कारण हमारा बड़ा कवि तो ‘कालजयी रचनाकार’ सिद्ध हो ही रहा है, सत्ता के अकारण अहंकार और व्यक्ति को व्यवस्था समझने वाले जय-जयकारी भक्त भी जय के तस, आजतक वैसे ही बराबर मौजूद है, यह भी सिद्ध हो ही रहा है ! अब आप समझे, यह होता है “कालजयी कवि” और यह होती है उसकी कालजयी कविता 😍😍🇮🇳👍!
ख़ैर आज उस खुद्दार कवि दुष्यंत कुमार के जन्मदिन के समापन से पहले, आइए देखिए ये एपिसोड और जानिए कि अंधभक्ति की अलोकतांत्रिक ख़ुराक पाकर कैसे धीरे-धीरे, हर दौर, हर सरकार, हर व्यवस्था में सच सुनने की शिद्दत ख़त्म होती जाती है लेकिन हर दौर में कवि बिना डरे उस अहंकार की आँखों में आँखें डालकर जनता के सवाल पूछता ही है ! न व्यवस्था का ग़ुरूर बदला न कवि का बेबाक़ सच कहने का सुरूर 😍🇮🇳 !
बक़ौल हमारे राजनैतिक विद्यालय के कवि-कुलपति अटलजी “सरकारें तो आएँगी जाएँगी, पार्टियाँ बनेंगी बिगड़ेगी, सत्ता का खेल तो चलेगा लेकिन ये देश रहना चाहिए, इसका लोकतंत्र रहना चाहिए !”
🇮🇳👍 देश और सच को कभी मत छोड़िए ! देश का मसला हो तो अपने “आप” के ख़िलाफ़ भी बोलिए और अपने बाप के ख़िलाफ़ भी बोलिए 😂😂! जयहिंद 


शशि थरूर साहिब ने याद दिलाई दुष्यंत कुमार साहिब की

 सत्ता और सियासत पर बहुत ही सधी हुई चोट मारती है शायरी 
लुधियाना: 2 सितंबर 2020: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन)::
शशि थरूर 
अभी हाल ही में हमें जिन सदमों से दो चार होना पड़ा उनमें एक सदमा डाक्टर राहत इंदौरी साहिब के बिछड़ने का भी रहा। जब कुछ विशेष किस्म के लोग हिन्दोस्तान को अपनी जागीर समझने का राग अलाप रहे थे उस समय बार बार याद एते रहे जनाब राहत साहिब:
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, 
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है?
कभी इसी तरह के तेवर हिंदी शायर जनाब दुष्यंत कुमार साहिब के हुआ करते थे। तकरीबन हर बात पर उनका कोई शेयर याद आ जाता था। सत्ता और सियासत पर दुष्यंत साहिब की शायरी बहुत ही असरदायिक चोट करती थी। 
सभी को लपेटे में लेते हुए कभी जन जन के दिल पर शासन करने वाले दुष्यंत कुमार साहिब ने लिखा था:
आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख

घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख
आज फिर दुष्यंत साहिब की याद बहुत ही शिद्द्त से दिलाई है जनाब शशि थरूर साहिब ने। उन्होंने टविटर पर टवीट करते हुए जनाब दुष्यंत साहिब के एक बहु चर्चित रहे शेयर को भी सामने रखा। यह शेयर बहुत ही चर्चा में रहा था: 
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो 
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं 
जनाब शशि थरूर ने इस शेयर को अपने टवीट का मुखड़ा बनाते हुए दुष्यंत साहिब के ही कुछ अन्य शेयरों पर आधारित एक तस्वीर भी साथ ही पोस्ट की है।

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए;
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। 

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी;
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। 

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में;
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। 

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं;
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। 

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही;
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए। 

सत्ता और सियासत पर बहुत ही सधी हुई चोट मारती है शायरी इस बात को जाने माने शायरों ने कई कई बार साबित किया है। पुरानी कविता से लेकर नयी कविता तक इस तरह के तेवर जारी हैं। अब देखना है कि इस तरह की शायरी सियासत की दुनिया पर सच में कितना असर डाल सकती है!
उल्लेखनीय है कि कल अर्थात पहली सितंबर को जनाब दुष्यंत कुमार साहिब का जन्म दिन भी था जिसे बहुत से लोगों ने अपने अपने तौर पर मनाया। शशि तहररोर साहिब की पोस्ट उसी सेलिब्रेशन का एक  कही जा सकती है। बहुत से अन्य वशिष्ठ लोगों ने भी अपने अपने अंदाज़ में इस दिन को मनाया। उनका ज़िकर हम अलग पोस्टों में कर रहे हैं।