Thursday, April 13, 2023

प्रेम में हारे हुए पुरुष//शिखा पांडेय

गहरे अहसास की गहरी रिपोर्ट जैसी है यह पोस्ट 


सोशल मीडिया
: 13 अप्रैल 2023: (रेक्टर कथूरिया//हिंदी स्क्रीन डेस्क)::

सोशल मीडिया का ज़माना है। यह  बात अलग है कि आजकल केवल सियासत से जुडी बातों का ही गंभीरता से नोटिस लिया जाता है जबकि बहुत कुछ और भी होता है जिसे पढ़ते, सुनते जा देखते हुए मन में बहुत कुछ कौंधने लगता है। ऐसी ही एक रचना गत रात भी पढ़ी जिसे पोस्ट किया गया था 22 अप्रैल 2020 को। 

कोई ज़माना था जब केवल पुरुष  पर ही काव्य रचनाएं लिखी जाती रही। उनकी कथाएं और गाथाएं बनती रहीं। जल्द ही ट्रेंड बदला और प्रशंसा भरे इस साहित्य में महिलाओं की निंदा कम हो गई। फिर नारी की प्शारशंसा का रिवाज भी शुरू हुआ। बहुत सा साहित्य लिखा गया और बहुत सी फ़िल्में भी बनीं। शायद इसलिए कि धीरे धीरे  महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था। समय के साथ साथ यह अनुपात बार बार बदलता ही चला गया। इस बदलते हुए अनुपात में नारी का दर्द तो सामने आता रहा और बहुत से कानून भी बनें लेकिन पुरुष का दर्द नज़रअंदाज़ होता रहा। इसी बीच नर-नारी की बराबरी की आवाज़ ने ज़ोर पकड़ा और इस पर भी लिखा जाने लगा कि मर्द को भी दर्द होता है। वह भी रोता है बेशक छुप कर ही सही। इसी विषय पर सोशल मीडिया में एक काव्य जैसी रचना फेसबुक पर भी नज़र आई। लेखिका का नाम शिखा पांडेय बताया गुया लेकिन उनसे सम्पर्क नहीं हो सका। फिलहाल आप यह पोस्ट पढिए जिसमें आपको काव्य रस का अहसास भी महसूस होगा। अंतर्मन में चलते द्वंद और पीड़ा का भी अहसास होगा।  आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं। आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी। स्नेह के साथ आप का--रेक्टर कथूरिया 

यह है वो रचना 

प्रेम में हारे हुए पुरुष

कहीं दूर गाँव या शहर में

ढूँढते हैं एक शांत कोना

जहाँ होता है मध्यम अलसाया हुआ अँधेरा

उदास पुरवाई को लिये हुए

वो जूझते है अपने ही अंतर्मन में छुपे अपनी नाकामी के सवालों से, क्योंकि वो पुरुष है इसलिए कह नही सकते किसी से भी अपनी व्यथा....

गुम करने लगते है खुद को बेवज़ह मुस्कुराहटों की तहरीरों में....झोंक देते हैं स्वयं को रोज़गार की भट्टी में

और जब इनसे में शांत नही होता उनका चित्त तो आ जाते हैं किसी सोशल मीडिया के द्वार पर और ढूढने लगते हैं किसी द्वार पर झूठा प्रेम....जी हां सिर्फ झूठे प्रेम को ही ढूढते है क्योंकि नही जाना चाहते छोड़कर ये अपने पुराने अक्स को......और बन जाते है दुनिया की नज़र में बेग़ैरत और लानत भरे बेशर्म पुरुष, और फिर इसी झूठी दुनिया मे लिप्त होकर

वे खोजते हैं अपनी पवित्रता को।

और अंत में अब  वो रोज देखते हैं उस हाथ की  हथेलियों में गहरी रेखाओं को

जिन्हें देखकर किसी भविष्य वक्ता ने कहा कि

तुम भाग्यशाली हो...❤️

- शिखा पांडेय


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